23 जून 2021

रचना :- सुबोध कुमार झा "झारखंडी"

मैंने "कविता" के भावों को मुक्तकों के रूप में सजाया है। शीर्षक है...

         कविता :- मुक्तक के रूप में..! 
                         (1)
अपने शब्दों को पिरोया है हमने कविता में,
मन के भावों को बताया है हमने कविता में,
ऐसे दुनियाँ में कई राग है सुने हमने,
उन्हीं रागों को सजाया है हमने कविता में।
         (2)
कविताओं में मन के भाव देखे जाते हैं,
उन्हीं भावों को तो शब्दों में लिखे जाते हैं,
ऐसे कई भाव आते जाते हैं चंचल मन में,
है वही भाव जो कविता में पढ़े जाते हैं।
          (3)
कुछ कविता में आंसूओं की धार होती है,
कई कविताओं में हमारी आत्मा रोती है,
हम भी तो इन्सान हैं कुछ दर्द है देखा हमने,
है वही दर्द जो कविता समेटे होती है।
         (4)
ऐसा नहीं कि सिर्फ है रोती कविता,
हास्य व्यंग का भी पुट है देती कविता,
कविताओं में है सब भाव समाहित होते,
है छायावाद से दुनियाँ को जगाती कविता।
        (5)
शब्दों की तेज धार में बहती कविता,
कवियों के मन के भाव को पढ़ती कविता,
हम उन्हीं शब्दों का रसपान किया करते हैं,
सदा साहित्य की सेवा में है रहती कविता।

पितृ दिवस..!

पिता ही पालक,पिता ही सेवक,
पिता ही घर की शान है,
पिता शक्ति है,पिता संरक्षक,
पिता ही सबसे महान है।

पिता में बसती परिवार की आत्मा,
पिता से ही सब संतान है,
पृथ्वी पर एक सुन्दर जीवात्मा,
करो हम सब उनकी गुणगान है।

पिता साधन है,पिता जीवन है,
उनपर हमें अभिमान है,
हमें करना उनका सम्मान है,
पिता विहीन जीवन का क्या मान है?

पिता हिम्मत है,पिता ताकत है,
पिता में बसता पारिवारिक जीवन है,
पिता एक अनमोल रत्न है,
उन्हीं की सेवा में रहो मगन है।


कवि ने इस रचना के माध्यम से एक प्रेमी या मित्र के विरह को दर्शाने का प्रयास किया है जिससे उसका मित्र किसी बात पर बिछड़ गया है..!! 

विरह गीत..!
 
हद को पार कर जाऊँ, 
दीवाना हूँ तेरा,
इतना तो मुझको भी पता है।

तेरे प्रेम की लौ में जल जाऊँ,
परवाना हूँ तेरा, 
यह तो तुझको भी पता है।

कौन सा तुझे नाम दूँ,
सिर्फ मित्र बनीं,
पर तू मेरी दीवानी नहीं ,
यह तो मुझको भी पता है। 

जलते परवाने का दर्द सहता रहूँ ,
फिर भी तुम्हारी आँखों में पानी नहीं ,
यह तो मुझको भी पता है।

खैर परवानों की फिक्र क्यों करें,
वे तो सदा जलते ही रहते हैं,
यह तो सबको भी पता है।

उसी तरह दीवानों की कद्र ही क्यों करें,
वे तो सदा मरते ही रहते हैं,
यह तो हमको भी पता है।
 
प्रेम की बलिवेदी पे चढ़ जाऊँ,
प्रेमी हूँ तेरा,
इतना तो तुझको भी पता है।

सोचा था एक मधुर संबंध निभाऊँ,
पर छोटी सी बात पे रूठ जाओगी,
इतना तो मुझको पता नहीं।

प्रेम शाश्वत है,
प्रेम अमर है,
किसी से कभी भी हो सकता है,
जो हुआ है 
और इजाजत भी मिली है,
इतना तो तुझको भी पता है।

सोचा था ताउम्र उसी पवित्र रिश्ते को निभाऊँ,
एक अनजान प्रेमी बनकर,
इतना तो मुझको भी पता है।

पर किस अधिकार से,
क्या कहूँ,किससे कहूँ और क्यों कहूँ?
कि कुछ ही दिनों में भूल जाओगी,
इतना तो मुझको पता नहीं।

यह कवि की कोरी कल्पना है हकीकत नहीं। शीर्षक है :-

एक ख्वाब..!

ख्वाब की बात ही क्या ,
इजहारे मोहब्बत यदि हो
तो जन्नत की सैर करा दूं मैं ।
प्यार की सौगात ही क्या,
सम्पूर्ण इजाजत यदि हो,
तो दुनियाँ से बैर करा लूँ मैं।
तुम्हारी सिर्फ एक चाहत ही क्या, 
गर हकीकत ये कि तुम मेरी हो,
तो आसमां से सितारे जमीं पे ला दूँ मैं।
तुम्हारे आंसुओं की बात ही क्या,
गर मालूम मुझे पहले हो,
तो उस गम की राह बदल दूँ मैं। 
पर मेरी तकदीर की बात ही क्या,
गर मालूम कि ऐसा ख्वाब हो,
तो ऐसे ही क्यों दिल लगाऊँ मैं।
छोड़ो इस ख्वाब की औकात ही क्या,
गर थोड़ी सी मिले मोहलत हो,
तो अपने जीवन की धार बदल दूँ मैं।


मैंने महसूस किया कि वट सावित्री पवित्र पर्व की कथा का काव्य रूप में सृजन होना चाहिए क्योंकि अभी तक कहीं भी नहीं पढ़ा गया है। कविता लम्बी तो निश्चित रूप से है लेकिन पठन योग्य है।विशेषकर महिलाओं के लिए यह सबसे रूचिकर होगा।  शायद यह पहली रचना है कथा के रूप में :-
वट सावित्री व्रत कथा..!

वट सावित्री व्रत कथा,
कह गए स्कंद पुराण; 
थीं सावित्री पतिव्रता,
बचा लिए पति के प्राण। 
कथा जो सुहागन सुने, 
हो सौभाग्य सुख प्रदान;
अखंड सौभाग्यवती बनी रहे, 
जो सुने कथा सावित्री सत्यवान।
यह कथा है पतिव्रत्य धर्म की, 
सौभाग्यदायक और महान; 
सुना गए माता पार्वती को, 
जगतपति शंकर भगवान। 
मद्र देश के राज में, 
एक राजा अश्वपति था नाम; 
धर्मात्मा,क्षमाशील सत्यवादी,
पर वे रहित थे संतान।
प्रभास क्षेत्र भ्रमण पर पहुंचा,
राजा दम्पति सावित्री स्थान; 
सावित्री व्रत पूर्ण किया रानी ने, 
फलदायक हुए भगवान। 
श्री ब्रह्मा जी की प्रिया,
सावित्री देवी का मिला उन्हें वरदान; 
लक्ष्मी रत्न की प्राप्ति हुई रानी को, 
कन्या थी दिव्य समान।
प्रसन्न हुए राजा दंपत्ति,
सावित्री ही रखा उसका नाम;
पली-बढ़ी बेटी  महलों में,
जो थी देवकन्या समान।
पिता की आज्ञा पाकर कन्या,
चली स्वयं वर खोजन;
चहूँओर ढ़ूँढ़त ऋषि संग,
पहुंची कन्या एक तपोवन ।
शाल्व देश के राजा  द्युमत्सेन,
जो थे संपूर्ण नेत्रहीन;
रुक्मी नामक सामंत ने,
कर दिया उन्हें राजविहीन।
वर रूप वरन कर उनके पुत्र को ,
नाम था सत्यवान; 
कष्टमय जीवन था उनका, 
पर थे सत्यवादी गुणवान।
दान और गुण में, 
रन्तिदेव के शिष्य समान;
साक्षात अश्वनी कुमार वे,
थे बड़े रूपवान। 
पर सिर्फ एक वर्ष शेष थे,
उनके जीवन का विधि विधान;
वर्णन कर कह गए, 
महर्षि नारद महान।
पर वरन किया था सावित्री ने,
राजा ने किया कन्यादान ;
पति रूप प्राप्त हुए सावित्री को, 
अल्पायु सत्यवान। 
रहने चले आश्रम को, 
सावित्री संग सत्यवान; 
याद कर नारदवाणी को, 
विचलित थीं नारी गुणवान। 
तीन दिन बस शेष बचे,
विह्वल थीं सावित्री महान;
निराहार व्रत पूजन कर देवी,
बचाने चली पति के प्राण।
लकड़ी काटत मूर्छित हुए,
पतिव्रता गोद सत्यवान; 
उदित हुए यमराज तब, 
साक्षात सूर्य समान। 
कहा हर लेने आया हूँ, 
हे पतिव्रता तेरे पति के प्राण; 
मैं भी जाऊँ पति संग, 
कहा सावित्री ने कर विनम्र प्रणाम।
हरन प्राण कर पति के,
चले यमराज भगवान; 
पीछे चली पतिव्रता नारी,
सीधे उनके संग सुरधाम।
कहा यम ने लौट जाओ देवी,
सिर्फ वहाँ जाते हैं जीवात्मा;
सशरीर नहीं पहुंचा वहाँ कोई,
वही आए जिसे लाते हैं परमात्मा। 
कहा यम ने मत चलो परपुरुष संग,
यह लज्जा की बात; 
बोली सावित्री क्या शर्म व ग्लानि,
जब पति सशरीर हों साथ। 
पृथ्वीलोक में पतिरहित,
तिरस्कृत है नारी सम्मान; 
पति बिना जीवन कैसा,
स्त्री सब मृतक समान।
सावित्री की पतिव्रत्य से,
प्रसन्नचित्त थे भगवान;
देते गए वह सब कुछ,
जो मांगा सावित्री ने वरदान।
सास ससुर को दी नेत्रज्योति,
दिया खोया राज्य व सम्मान ;
चतुर पतिव्रता सावित्री की मांग पर,
दिया सौ पुत्रों का वरदान। 
स्वयं के वरदान के जाल में,
फँसते चले यम भगवान; 
मुक्त किया पति की आत्मा को, 
लौटाया प्राण सहित सत्यवान। 
सावित्री सत्यवान की कथा,
जो सुने नारी सुजान; 
सफल हो पारिवारिक जीवन, 
प्रसन्न रहें भगवान।
वटवृक्ष के निकट सब, 
पंचदेव सहित पूजन करो विष्णु भगवान;
फल,फुल,पान,सिंदूर से,
देवी सावित्री व श्रीब्रह्मा का करो आह्वान। 
वटवृक्ष पूजन कर,
कच्चा सूत से करो परिक्रमण;
सुन्दरतम वस्त्र आभूषण धारण कर,
पतिदेव पर पवित्र जल करो अर्पण।
पवित्र रहेगा पारिवारिक जीवन,
हर वर्ष वट सावित्री कथा सुनो;
रखो अपना पवित्र मन,
हमेशा स्वस्थ और सुंदर बनो।

*******

कसक..! 

तुम्हारा मिलना था 
मेरे जीवन की जरूरी;
जो तुम न होते तो 
ये जिन्दगी थी अधूरी।
जिधर देखूँ वहाँ 
एक ही चेहरा नजर आता है;
तुम्हारे सिवा मुझे 
और कोई भी नहीं भाता है। 
क्या कहूँ, कैसे कहूँ,
सिर्फ तुम्हीं से तो मेरी आश है;
कौन सुनेगा मेरी व्यथा 
सिर्फ तुम्हीं तो मेरे पास है।
देखता हूँ तुम्हारे शब्दों में 
गमों का खुमार रहता है;
हर इक शब्द में राजे बयां
 बेशुमार रहता है।
मुझे तो बस तुम्हारे 
चेहरे पर सदा हँसी चाहिए;
गमों से इतना नाता क्यूँ 
थोड़ा तो मुस्कुराइए।
टुटकर बिखर जाऊँ मैं यदि 
तुम्हारे चेहरे पे हँसी न ला सकूँ;
अपनी काव्यधारा को मोड़ दूँ मैं 
यदि तुमको न हँसा सकूँ।

गनीमत है कि तुम कम से कम 
मुझे याद तो कर जाती हो ;
गमगीन ही सही अपने शब्दों से 
अपनी उपस्थिति तो बता जाती हो।
देखा है मैंने कई शायरों को 
दूसरे के शब्दों को उतारते हुए;
कम से कम तुम हमें 
अपने शब्दों से शायरी तो सीखा जाती हो।


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आइये सुनते हैं एक हास्य व्यंग पर आधारित एक रचना जो एक कवि जीजा जी अपने प्यारी साली के लिए मजाक में लिख रहा है। शीर्षक है:-
मैं हूँ ना---!

तुम्हें लगने लगे यह जब,
कि तेरा कोई नहीं है अब,
तुम्हें कुछ जरूरी हो तब,
तो याद कर लेना मुझे,
मैं हूँ ना-- !

अकेले में सूनापन लगे,
कहीं से न अपनापन लगे,
रात्रि पहर डरावनापन लगे,
तो याद कर लेना मुझे,
मैं हूँ ना---!

मध्य रात्रि ख्यालों में,
तुम्हारी चाहत के सवालों में,
यदि किसी की याद आने लगे,
तो याद कर लेना मुझे, 
मैं हूँ ना--!

बाहर घटा हो घनघोर,
मन में प्रेम हो पुरजोर,
कोई नहीं रहे चहुँओर,
फिर याद कर लेना मुझे,
मैं हूँ ना--!

तेरा घर बसने लगे जब,
तेरे बच्चे चलने लगे अब,
तुम्हारे वे तुमपर हँसने लगे तब,
फिर याद कर लेना मुझे,
मैं हूँ ना---!

अंत में कवि सुबोध कहता है,
जो तुम्हारे बगल में हीं रहता है,
यदि तुम्हें मेरी आवश्यकता है,
तो याद कर लेना मुझे,
मैं हूँ ना--!


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गीत :- शिक्षा पर व्यंग्य..!

क्या कहूँ शिक्षा की हालत, 
सरकारों ने कर दी भाई-2,
पढ़ाई लिखाई चौपट हो गई, 
ऐसी नीति बनाई।
बी एड,एम एड शिक्षक रखकर,
ऐसी शिक्षा चलाई-2, 
जनसंख्या गिनना, खाना बनाना,
यही काम है भाई।
कैसी है ये शिक्षा,
बस कैसा इमान की-2,
जय हो जनता की 
जय बोलो हिन्दुस्तान की-2.

बनने गया था शिक्षक भैया,
बना दिया हलवाई-2
अब चावल से कंकड़ चुनता हूँ,
क्या करूँ मैं भाई?
मैंने भी अपने बचपन में 
खुब मार थी खाई-2
अब जाके बच्चों को पीटकर 
मैंने बदला चुकाई।
यही है शिक्षा,भारत जहान की-2,
जय हो जनता की 
जय बोलो हिन्दुस्तान की-2.

कभी कभी मन करता  
तो किताबों से धूल हटाता-2,
भेड़ बकरियां गिनने के चक्कर में 
सबकुछ भूल मैं जाता।
अपनी लेखनी को बस में कर,
अपनी किस्मत पे रोता-2, 
थककर चूर होकर मजबूर मैं 
कुर्सी पर सो जाता।
अब सब मिलके बोलो जय 
शिक्षण संस्थान की-2.
जय हो जनता की 
जय बोलो हिन्दुस्तान की -2.

पढ़ाना लिखाना साढ़े बाईस 
सिर्फ छड़ी चमकाता-2,
बज गए हैं चार रे भैया, 
सबको घड़ी दिखाता।
जब कोई विद्यालय आए 
उसको खिचड़ी खिलाता-2,
जाते जाते उसके पाॅकिट में 
सौ दो सौ दे जाता।
कैसी हो गई शिक्षा कि 
कौन करे निदान की-2, 
जय हो जनता की 
जय बोलो हिन्दुस्तान की-2.


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समसामयिक..!
वर्तमान परिस्थिति में यदि देखा जाए तो यह जान पड़ता है कि सम्पूर्ण विश्व में मनुष्य की आवश्यकताएँ कम हो गईं हैं। एक विकृत मानसिकता से उत्पन्न लाईलाज वैश्विक महामारी से सम्पूर्ण विश्व विकट स्थिति में पहुँच गया है। इसे तृतीय विश्व युद्ध की यदि संज्ञा दी जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। 
       विगत कुछ महीनों से लोग आभावग्रस्त जीवन जीने को आदि हो चुके हैं।लोग कम से कम वस्तुओं के उपभोग कर जीवन जी लेते हैं परन्तु किसी से कोई शिकायत नहीं साथ ही एक दूसरे के सहयोग करने की प्रवृति के साथ दृढ़संकल्पित हैं। यदि कुछ स्वार्थ व राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को छोड़  दें तो आम जनमानस में सौहार्दपूर्ण जीवन पद्धति अपनाने की प्रवृति आने लगी है और यही तो मानवता की परिभाषा है।
       वर्तमान परिप्रेक्ष्य में किसी भी देश की जनता में आयातित वस्तुओं के उपभोग में एक शंका सी है। जिससे भारत भी अछूता नहीं है। और यही समय है जब सरकार को स्वदेशी उपभोग को आवश्यक  बनाने हेतु कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। यद्यपि जनमानस को कई समस्याएं आएंगी जो स्वनिर्मित नहीं है और आवश्यकता का अंग हो गया है जैसे मोबाइल जैसा कि लोग अपनी चायनीज मोबाइल से मेरे कोरियन मोबाइल पर फोन कर बताते हैं कि आप भी तो उपभोग करते हैं आदि, के लिए मैंने अपनी एक रचना में बताया था कि उत्पादन हेतु--
  परराष्ट्र को मिले निमंत्रण, 
  पर उस पर हो स्व नियंत्रण। 
ध्यान रहे कि आगामी कुछ दिनों के बाद ही सम्पूर्ण भारत में एक विकट परिस्थिति उत्पन्न होने वाली है जब प्रवासी मजदूर अपने सुरक्षित स्थान घर को छोड़कर जाना पसंद नहीं करेंगे तो विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में कुशल व सक्षम मजदूरों की कमी की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इससे उत्पादकता और GDP पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हेतु रोजगार गारंटी योजना का कार्यान्वयन न होने पर अराजकता उत्पन्न होने की संभावना बढ़ सकती है। अतः इस संदर्भ में केन्द्र तथा राज्य सरकारों को आपसी मतभिन्नता को त्याग कर समन्वय समिति गठित कर विभिन्न प्रकार के सरकारी प्रयास व नियंत्रण करने की आवश्यकता है। 
     इस प्रकार विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता हेतु विभिन्न संस्थाओं व संगठनों को मजबूत बनाने हेतु सरकारी तंत्रों को भरपूर प्रयास करने की आवश्यकता है ।तभी हम स्वदेशी उपभोग व स्वावलंबी भारत की परिधि के अंतर्गत आते हुए-
 "अपना भारत, श्रेष्ठ भारत " 
की परिकल्पना की सोच को विस्तारित कर सकते हैं। 

**********************

मैंने भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम की सम्पूर्ण कहानी को एक लम्बी कविता के रूप में व्यवस्थित किया है जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना से लेकर भारत विभाजन तक लगभग 200 वर्षों की सभी घटनाओं तथा कुछ अनकही या अनछुए पहलुओं को भी उजागर करने की कोशिश की गई है। अभी तक स्वातंत्र्य संग्राम का काव्यात्मक अभिव्यक्ति देखने को नहीं मिली है। मैंने एक कोशिश की है। यद्यपि यह लम्बी कविता के रूप में प्रस्तुत है फिर भी आप इसे अपने समय के अनुरूप जब भी मिले तो अवश्य पढ़ने की कोशिश करें,थोड़े थोड़े रूप में ही सही । यह प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी जरूरी है जिसमें सभी तिथियों को उद्धृत किया गया है। इस पवित्र कार्य में कितना सफल रहा हूँ आपकी गरिमामयी प्रतिक्रिया ही बता सकती है। 
एक प्रश्न है मेरे मन में कि क्या इसे महाकाव्य का नाम दिया जा सकता है?यद्यपि महाकाव्य में कम से कम 8 सर्ग और एक नायक जिसके इर्द-गिर्द कहानी घूमती है, होने चाहिए ।अब प्रश्न यह है कि  विभिन्न आन्दोलनों को सर्ग और महात्मा गाँधी जी को नायक मानकर इसे महाकाव्य का नाम तो दिया ही जा सकता है । धन्यवाद। तो आइए देखते हैं:-

कहानी भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम की..!

इतिहास के पन्नें पलटने से,
बलिदानों से पर्दा उठता है ,
फिर उसी खून की स्याही से,
कवि सुबोध कहानी लिखता है।

आओ सुनाएं अपनी जुबानी,
स्वातंत्र्य संग्राम की एक कहानी।
कईयों ने दी थी बड़ी कुर्बानी,
कितनों ने खोई थी अपनी जवानी।

एक सुन्दर सा था देश मेरा, 
पुरातन गणतंत्र कहलाता था, 
थी सारी दुनिया में नाम बड़ा, 
सोने की चिड़िया कहलाता था।
 
राजा महाराजाओं का देश बड़ा, 
सबकी क्षमताओं पर देश खड़ा।
एक सुन्दर सा था देश मेरा,
जो खुशियों से था हरा भरा।

फिर आपसी रंजिशों में, 
यहाँ कुछ जयचंद मिले,
उनके स्वार्थ बंदिशों में,
क्रुर मुगल साम्राज्य खिले।

फिर विपदा देश पर हुई बड़ी, 
जो अंग्रेजों की कुदृष्टि पड़ी।
व्यापार अपना बढ़ाने को,
ईस्ट इंडिया कंपनी आ पहूँची।

उसने एक कुटिल प्रस्ताव दिया, 
फिर भारत में आकर व्यापार किया।
उसने जो हमको आश दिया,
हमने उसपर विश्वास किया। 
 
हम भोले भाले भारतवासी थे,
हम तो सीधे सादे संन्यासी थे। 
भाई से भाई को लड़ा दिया ,
अपने साम्राज्य को खड़ा किया।
 
देश को लगे लूट खसोटने,
अकूत खजानों को लगे समेटने,  
भारत के लोगों से ही मिलकर,
अपने साम्राज्य को लगे बढ़ाने।

1757 की प्लासी युद्ध जीत कर,  
बंगाल से सिराजुद्दौला का अंत किया,
गद्दार सेनापति मिरजाफर से मिलकर, 
क्लाइव ने भारत में राजनैतिक सत्ता अख्तियार किया।

पलासी और बक्सर युद्ध  जीत कर,
भारत में साम्राज्य का विस्तार किया,
कलकत्ता को राजधानी बनाकर,
बंगाली संस्कृति का संहार किया। 

फिर 1857 में हुई एक सिपाही क्रांति, 
चर्बीयुक्त कारतूस बना नाश की हमारी संस्कृति,
तभी मंगल पाण्डे ने आवाज उठाई थी,
"ह्यूसन" व "बाग" पर उसने गोली चलाई थी।

फांसी हो गई वीर मंगल को,
पर देश को उसने जगा डाला,
तैयार सभी थे मर मिटने को,
यह चिंगारी थी बड़ा असर वाला।

वीर मंगल पाण्डे की त्याग से, 
क्रांति की ज्वाला लहर उठी,
फैल गई चिंगारी देश में,
अंग्रेजी सत्ता फिर सिहर उठी। 

लखनऊ में हजरत बेगम थीं, 
कुंवर सिंह जगदीशपुर,
इलाहाबाद में लियाकत अली थे,
बरेली में थे खान बहादुर।

दिल्ली में बहादुर शाह व बख्त खाँ थे,
नाना संग तात्या ने कानपुर को मिला लिया,
रानी लक्ष्मीबाई झांसी संभाल रही,
अंग्रेजी सत्ता को हिला दिया।

काश ! रानी का वह घोड़ा,
नाला पार कर गया होता,
इतिहास बदल जाता भारत का,
घोड़े में कुछ प्राण बचा होता। 

पर समय के पहले क्रांति  से, 
जाग गई अंग्रेजी शक्ति, 
पर जगा गए सम्पूर्ण देश को, 
देश के प्रति समर्पित भक्ति।

सिपाही विद्रोह को मिली असफलता,
पर सिद्ध हुई सत्ता की विफलता, 
तब भारतवासी सब एक हुए, 
सत्ता उखाड़ फेंकने को टुट पड़े।

सिपाही विद्रोह के पहले भी विद्रोह हुआ था, 
जिसे इतिहासकारों ने दबा दिया,
वास्तव में यह आजादी की पहली लड़ाई थी,
संथाल या हूल क्रांति था नाम दिया।

सिदो कान्हू के संग आदिवासियों ने,
अंग्रेजी सत्ता का प्रतिकार किया,
30 जून 1855 भोगनाडीह,झारखंड की भूमि पर, 
फिर अंग्रेजों ने संथालों का संहार किया।

बढ़ता गया शोषण अंग्रेजों का,
हममें कहाँ दम था उनसे भिड़ने का,
पर हर जगह क्रांति धधक उठी ,
युवा पीढ़ी लड़ने को  तैयार खड़ी।

1858 में रानी विक्टोरिया ने,
अपने सेक्रेटरी ऑफ स्टेट की घोषणा की, 
जिसके तहत् कम्पनी के गवर्नर जनरल को,
भारत के वायसराय की पदवी दी।

वफादार राजाओं,जमींदारों को
सत्ता ने पुरस्कृत किया, 
पर शिक्षित आम जनमानस को 
अंग्रेजों ने तिरस्कृत किया ।

तब सम्पूर्ण भारत में सत्ता के प्रति, 
तिरस्कार व घृणा बढ़ती गई,
तब राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रति, 
जन जन की तृष्णा बढ़ती गई।

1885 में अंग्रेज अफसर ओ.ए.ह्यूम ने,
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की।
प्रथम अधिवेशन दिसम्बर 1885 मुम्बई में,
डब्ल्यू सी बनर्जी की अध्यक्षता में हुई।

लोकमान्य व अरविंद घोष ने, 
स्वदेशी आन्दोलन चलाया था,
स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है,
लेकर रहेंगे,जनता से नारा लगवाया था। 

पर 1907 में कांग्रेस 
दो खेमों में बंट गए,
गरम दल और नरम दल दोनों 
एक-दूसरे से हट गए।

गोखले,फिरोज मेहता व नौरोजी नरम दल ने,
ब्रिटिश शासन में ही स्वशासन का आह्वान किया ,
पर लाल, बाल व पाल गरम दल वालों ने, 
सम्पूर्ण भारत में पूर्ण स्वराज का एलान किया।

फिर आया अंग्रेजों का
1919 में रौलट कानुन,
एक अंधा कानून ट्रायल के बिना ही,
जेल में डाला सभी नेताओं को चुन चुन।

फिर भारतीय इतिहास का वह काला दिन भी आया,
जब 19 अप्रैल 1919 को एक मनहूसियत लाया।
अंग्रेजों के दमन से भारतवासी टूट गए,
जालियांवाला बाग में विरोध को एकत्रित हुए। 

अचानक आ पहुंचा एक क्रूर हत्यारा, 
जनरल डायर नाम का दुश्मन था हमारा,
निहत्थों पर अंधाधुंध गोलियों से वार किया,
इस तरह इतिहास का सबसे बड़ा नर संहार किया।

प्रतिशोध की भावना लेकर,
उधम सिंह ब्रिटेन गया,
जनरल डायर को मारकर, 
उसने अपना बदला लिया।

फिर कांग्रेस में नवयुग का प्रादुर्भाव हुआ,
जब गांधीजी का भारत में आविर्भाव हुआ।
तब आन्दोलन की नये सिरे से शुरुआत हुई,
फिर अंग्रेजी दमनकारी नीति की बरसात हुई।

सत्य अहिंसा नीति अपना कर,
सभी देश वासियों का सत्कार किया;
फिर सबों ने साथ मिलकर, 
अंग्रेजी सत्ता पर बहिष्कार किया।

राज कुमार शुक्ल के निमंत्रण पर,
19 अप्रैल 1917 चम्पारण में सत्याग्रह किया,
फिर गुजरात के खेड़ा की भूमि पर,
1918 में किसान आंदोलन किया। 

सुभाष,भगतसिंह,आजाद, बटुकेश्वर ने,
गाँधी का यूँ ही बस मान किया, 
पर अपनी क्रांति की हिंसक ज्वाला से,
आजादी की लड़ाई का आह्वान किया। 

1920-22 में गांधी ने भारत भूमि पर,
असहयोग आन्दोलन का सूत्रपात किया,
एक नई ऊर्जा के साथ सबके सहयोग पर,
अंग्रेजी सत्ता पर वज्रपात किया। 

उसी समय चौरा चौरी की एक घटना हुई,
क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सिपाहियों की हत्या कर दी। 
इस घटना ने महात्मा को आहत किया, 
भावावेश में असहयोग आन्दोलन को वापस लिया।

सम्पूर्ण देश में क्रांति लाने को, 
1925 में काकोरी कांड किया, 
लूटकर अंग्रेजी सम्पत्ति को,
क्रांतिकारियों के नाम किया।
  
बिस्मिल,अशफाक,रौशन सिंह व लाहिड़ी का,
भारत देश बड़ा आभारी था।
सम्पूर्ण भारत में नौजवानों के मर मिटने का,
दौर अभी भी जारी था। 

1925 में कांग्रेस से अलग होकर डाॅ हेडगेवार ने,
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का निर्माण किया।
व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण को,
भारतवासियों का आह्वान किया।

सुलह ,सुधार के लिए  1927 में, 
एक साइमन कमीशन भारत आया,
जनता भड़क उठी तब यह जानकर,
जब उसमें एक भी भारतीय नहीं पाया।

अपने स्वराज को न पाकर,
लाला जी ने कमीशन का विरोध किया ,
जनसमूह पर लाठियाँ बरसा कर,
अंग्रेजों ने शेरे-ए-पंजाब को शहीद किया।

बदला लिया तब क्रांतिकारियों ने,
भगत सिंह,आजाद व राजगुरु आगे आया,
अंग्रेजी अफसर सांडर्स की कर दी हत्या,
जो लाहौर षडयन्त्र फिर कहलाया।

जून 1928 को पटेल के नेतृत्व में,
बारदोली किसान आंदोलन हुआ।
जागरण लाया सम्पूर्ण भारत में, 
किसानों की दशा में सुधार किया।

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह,बटुकेश्वर दत्त ने,
एसेम्बली में बम चलाया था, 
पहली बार इन्कलाब जिंदाबाद कह,
स्वयं को वहाँ पकड़वाया था।

1929 में महात्मा गांधी ने,
अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया ,
जिसके तहत् ब्रिटिश सरकार का, 
पूर्णतः सबने विरोध किया ।

फैसला हुआ 26 जनवरी 1930 को,
भारत स्वतंत्रता दिवस मनाएगा,
सम्पूर्ण देश में प्रत्येक संस्थानों पर,  
भारत का झंडा फहराया जाएगा।
 
गाँधी नेहरू समेत हजारों लोगों को,
जेल की सलाखों में डाल दिया,
अपने निरंकुश शासन से, 
उभरते आन्दोलन को कुचल दिया।

12 मार्च 1930 दांडी मार्च थी ऐसी यात्रा,
जिसने लिख दी स्वतंत्रता की एक गाथा।
गाँधी ने साबरमती आश्रम से पैदल यात्रा की,
समुद्रतट पर नमक कानून की अवज्ञा की।

प्रथम व तृतीय गोलमेज सम्मेलन का,
कांग्रेस ने पूर्णतः बहिष्कार किया,
7 सितम्बर 1931 द्वितीय सम्मेलन में भाग लेकर,
गाँधी ने सवज्ञा आन्दोलन से उनपर प्रहार किया।

फिर 23 मार्च 1930 को वह दिन भी आया,
जो कानून से विवादित दिन कहलाया था।   
भागने का अवसर पाकर भी ,
सुखदेव,भगत,राजगुरु ने फांसी लगवाया था।

लोग कहते हैं मैं क्या जानूँ,
गाँधी के कारण सबों की फाँसी रूक सकती थी।
लार्ड इर्विन की बात यदि मैं मानूँ, 
फाँसी की जगह कालापानी हो सकती थी।

इधर गांधीजी व सुभाष बाबू की, 
आजादी के लिए अलग संस्कृति थी,
गाँधीवादी सोच थी अहिंसा की, 
सुभाष बाबू के हृदय में धधकती क्रांति थी।

फिर संग्राम में एक ऐसा दौर भी आया था, 
जब बोस ने सिंगापुर में आजाद हिन्द फौज बनाया था,
द्वितीय विश्व युद्ध में जापानी सहयोग से,
फौज ने ब्रिटिश सेना को धूल चटाया था।

1943 में अंडमान निकोबार को, 
ब्रिटिश शासन के चंगुल से मुक्त कराया था, 
सुभाष बाबू ने अपनी स्वतंत्र सरकार बनाकर, 
पहली बार भारत का तिरंगा फहराया था।

"तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा "का नारा देकर,
भारतियों को फौज में आमंत्रित किया।
"दिल्ली चलो" का नारा देकर,
फौज को आजादी के लिए व्यवस्थित किया। 

पर 1945 में जापानी सेना की हार हुई
तब भारतवासियों का दुर्भाग्य से सामाना हुआ,
सुभाष बाबू को सुरक्षित पहुँचाने एक जहाज गया,
दुर्घटना हुई या क्या हुआ अंत तक रहस्य रहा।

इधर गांधी के अहिंसा आन्दोलन की 
अंग्रेजों को अहमियत समझ आई,
जब ब्रिटिश सरकार ने 1942 में, 
विश्वयुद्ध में साथ देने 'क्रिप्स प्रस्ताव' लाई।
 
यह प्रस्ताव भारतियों को, 
लुभाने के लिए एक फेक था,
गाँधी जी के अनुसार यह,
एक "पोस्ट डेटेड चेक" था।

नागरिकों के बढ़ते असंतोष से,
क्रिप्स प्रस्ताव वापस लिया। 
खुश हो वर्घा अधिवेशन में गांधी ने,
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन प्रस्ताव किया।

शायद यही आजादी की,
एक अंतिम लड़ाई थी,
क्रूर फिरंगियों को दूर करने की, 
जनमानस ने ले ली अंगड़ाई थी।

गांधी ने जब "करो या मरो" का, 
एक जोशिला नारा दिया,
कुद पड़े तब सब नर नारी, 
अंग्रेजी सत्ता को बेसहारा किया। 

उधर सुभाष के अमर त्याग ने,
जोश जवानों में था भर डाला ,
लोग मानें या न मानें पर,
कारण बड़ा ही था असर वाला ।

काकोरी क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि देने,
9 अगस्त को सभी भारतीय जुटते थे,
श्रद्धा सुमन उन्हें अर्पित कर,
अपनी किस्मत पर रोते थे।
 
गाँधी ने अंतिम लड़ाई के लिए,  
ठीक इसी समय का चुनाव किया,
सहानुभूति मिली सभी भारतवासियों का, 
जिसे अगस्त क्रांति का नाम दिया। 

उधर 'दिल्ली चलो' बोस की नारों से,
आन्दोलन को तेज धार मिला। 
शक्ति मिली गाँधी को इन्हीं बातों से,
अंग्रेजी सत्ता पर चौतरफा प्रहार किया।

गुलामी की हलवा पूरी से,
आजादी की खिचड़ी अच्छी है।
फिरंगियों की सत्ता से,
अपनी सरकार ही सच्ची है।

भनक लगी तब अंग्रेजों को,
शीर्षस्थ नेतृत्व को गिरफ्तार किया।
डाला सबों को अलग-अलग जेलों में, 
पर मेहमानों जैसा सत्कार किया।

दुश्मन बड़ा ही शक्तिशाली था,
एक एक को जेल में मसल डाला।
दुश्मन बड़ा ही व्यभिचारी था,
आन्दोलन को निर्दयता से कुचल डाला।

आन्दोलन की धधकती ज्वाला में, 
सम्पूर्ण भारत था झूलस रहा,
आजादी की महकती  खुशबू में,
था आजादी के दिवाने हुलस रहा। 

जगह जगह विरोध था हो रहा,
आगजनी का भयंकर शुमार था,
जल रही थी सरकारी सम्पत्ति,
अंग्रेजी शक्ति बस सिर्फ खुमार था। 

तोड़-फोड़ और हिंसा से, 
सारा तन्त्र अस्त व्यस्त था, 
भूल गया गाँधी की अहिंसा को,
आजादी का दिवाना अपने ही धुन में मस्त था।

आन्दोलन को कुचलने, 
सेना को बुला लिया, 
सारा दोष लगा कांग्रेस पर
फिर उसपर प्रतिबंध लगा दिया।
 
पर जाग उठा था सम्पूर्ण भारत 
गुलाम भारतीय भी सत्ता से दूर हुए।
दूभर हो गया भारत में बने रहना,
फिर भारत छोड़ने को मजबूर हुए।

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर, 
अंग्रेजों की शक्ति बढ़ती गई ।
जीत हुई थी मित्र राष्ट्र की, 
फिर भी भारत छोड़ने की सहमति हुई।

कारण क्या था समझ से परे है,
क्या गांधी की अहिंसा से  वे डर गए,
या सुभाष बाबू की क्रांति में, 
अंग्रेजी बाबू झूलस गए। 

कारण जो भी हो पर भारत के भाग्य खुले,
ब्रिटेन को प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली मिले।
युद्ध के बाद लेबर पार्टी सत्ता में आयी, 
जिसने आजादी की सहानुभूति साथ लायी।

गाँधी,बा,नेहरू व आजाद मौलाना,
पटेल,नायडू, राजेन्द्र प्रसाद व अरूणा,
लोहिया,अच्युत पटवर्धन व जे पी,
नाना पाटिल,चितू पांडे और चौहान वाई पी।

उषा मेहता ने 14 अगस्त 1942 को 
बम्बई से रेडियो प्रसारण कर दी,
गाँधी ने 10 फरवरी 1943 को
 21 दिनों का उपवास की घोषणा कर दी। 

6 जुलाई 1944 में महात्मा को,
पहली बार बोस ने राष्ट्रपिता का संबोधन दिया।
लार्ड वेवेल ने 4 जुन 1945 को,
एक वेवेल योजना प्रस्तावित किया।

फूट डालो और राज करो 
अंग्रेजों की नीति उजागर हुई,
वीटो पावर दिया लीग को,
शिमला सम्मेलन में वेवेल नीति शर्मसार हुई।

18 फरवरी 1946 को बंबई में, 
शाही नौसेना ने विद्रोह किया, 
डोल उठी अंग्रेजी सत्ता फिर, 
वल्लभभाई पटेल व जिन्ना ने शांत किया।

फिर आया 24 मार्च 1946 का दिन,
जब एक कैबिनट मिशन भारत आया,
2 सितम्बर 1946 को नेहरू के नेतृत्व में,
भारत में अंतरिम सरकार का गठन हुआ।

यही सब थे जिन्होंने अंतिम समय में, 
आजादी की लड़ाई लड़ी थी, 
पर सब पर भारी थे सुभाष चन्द्र बोस,
जो एटली ने राजगोपालाचारी से कही थी।

पर दुर्भाग्य था भारत का, 
फूट डालो और राज करो की नीति, 
अंग्रेजों की काम कर गई,
जब लीग व जिन्ना ने द्विराष्ट्र की चुनौती दी।

माउण्टबेटेन वायसराय बन भारत आया,
साथ 3 जून 1947 भारत विभाजन प्रस्ताव लाया। 
कटने लगा भारत का अंग अंग,
नहीं रहा पाक व पूर्वी बंगाल अपने संग।

धर्म आधारित प्रांत बँट गए, 
फिर क्या हुआ इतिहास कह गए।
कवि सुबोध अपने मुख से क्यों बतलाए?
नोआखाली की याद फिर क्यों कर आए?

14 अगस्त 1947को जिन्ना ने 
नया पाकिस्तान बनाया था,
15 अगस्त 1947 को नेहरूजी ने 
लाल किला पर तिरंगा फहराया था।
 
हत्या और षडयन्त्र हुआ फिर
माँ भारती लहू-लुहान हुई।
लाशों से पिट गया था भारत, 
अपनी सुन्दर धरती बेजान हुई।

जगह जगह मार काट मची थी, 
मानवता शर्मसार हुई। 
भाई भाई में लड़ाई हुई थी, 
भारती की अस्मिता तार तार हुई।

आजादी तो मिली हमें पर,
खुशियाँ हमें फिर भी न मिली,
बँट रहे थे हम भाई भाई, 
जंग व धर्म आधारित जमीन मिली।

पर सही मायने में आजादी तभी मिलेगी,
जब सौहार्दपूर्ण हो अपना भारत,
विश्व पटल पर गुरु बनें हम,
स्वावलंबन में हो हमें महारत।

लोग कहते हैं कि इस संग्राम में, 
आर.एस.एस. की भूमिका नहीं है,
पर राष्ट्रवाद की जोत जलाने, 
यह सामाजिक संस्था भी खड़ी थी। 
  
इतिहास हमें बतलाता है, 
जब कबालियों ने जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण किया था,
तब रातों रात हमारे स्वयंसेवकों ने, 
सेना के लिए राह बनाया था। 

यदि सरदार ने हैदराबाद निजाम को मिलाया,
तो गुरूजी ने भी हरि सिंह से विलय की बात कराया।
तब पुरा हुआ भारत का एकत्रीकरण, 
तब शुरू हुआ भारत का लोकतंत्रीकरण।

जो कुछ हमारे पुर्वजों ने बताया, 
वह आजादी की कहानी अच्छी है,
जिसने भी किरदार निभाया 
उसकी सम्पूर्ण कहानी सच्ची है।

क्या  इतिहास की कहानी अधूरी है?
क्या इसमें कुछ अध्याय जोड़ना जरूरी है?
क्या कवि सुबोध की यह अभिव्यक्ति,
मिलेगी जमाने भर की स्वीकृति?

( इस काव्य में तुकबंदी या उसकी विस्तृत स्वरूप को देखते हुए कुछ ऐसी घटनाएँ या अग्रणी नेताओं को उद्धृत नहीं किया जा सका जिनका स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है, जिसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। यह काव्य समर्पित है उन सभी महान विभूतियों को जिन्होंने अपने बलिदान व त्याग के आधार पर भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम की पटकथा लिखी है।ऐसे महान आत्मा को सहृदय श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। )

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माँ..!

माँ की ममता की भव्यता,
ब्रम्हाण्ड की एक दिव्यता।
माँ के हृदय की कोमलता,
यही तो है उनकी विशेषता।
पृथ्वी पर नहीं ऐसी ममता, 
इसी में है यथार्थ सत्यता।
देख माँ के हृदय की विह्वलता,
मेरी बढ़ जाती है व्याकुलता।
माँ तो बस माँ होती है, 
हर टुकड़े की जां होती है।
सृष्टि में सबसे सुन्दर शब्द माँ है,
इस शब्द में ही सारा जहाँ है।
माँ अपने आप में संस्था है,
माँ से ही सारी व्यवस्था है।
माँ पृथ्वी पर सबसे बड़ी हस्ती है,
उनके चरणों में ही हमारी बस्ती है।
माँ जहाँ है वहीं भगवान का वास है,
तिरस्कृत करे जो उसका विनाश है।

माँ तुझे प्रणाम!

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जीवन जीने की कला..!

स्वास्थ्य जब अच्छा हो तो, 
नींद गहरी आती है;
नींद जब गहरी हो तो,
ख्वाब कहाँ ला पातीं हैं;
मन में जब ख्वाब ही न हो तो,
खुशियाँ चलीं जातीं हैं;
जीवन में खुशियाँ ही न हो तो,
समृद्धि कहाँ आ पाती है;
जीवन में समृद्धि न हो तो, 
मान कहाँ आ पाता है;
जब समाज में मान ही न हो तो,
नाम कहाँ हो पाता है;
जब किसी का नाम न हो तो,
सम्मान कहाँ आ पाता है;
जब सम्मान ही न हो तो,
घुट घुट कर जीना कहाँ भाता है;
जो घुट घुट कर जीता हो तो,
वह मानव कहाँ कहलाता है;
जो मानव ही न हो तो, 
वह देव या दानव श्रेणी में आता है।
यदि देव हों तो,
वे पुजे जाते हैं;
पर यदि दानव हो तो, 
बहिष्कृत जीवन जीते हैं।
बस जब मानव हो तो,
हमें मानवता का धर्म निभाना है;
जो आदेश ईश्वर का हो तो,
हमें उसी का पालन करना है।

***********

प्रेरणादायक..!
अब थोड़ा हँस भी तो लें।

कहीं मत जाएँ 
बीबी के लिए BJP-BJP सदा रटते रहें ,
लाॅकडाउन में 
B(बर्तन) J(झाड़ू)  P(पोंछा) करते रहें ।
अपने तो बस पालन करना है करते रहें,
मैसेज फॉरवर्ड कर दूसरे को भी प्रेरित करें।
इससे आपका शरीर भी तंदुरुस्त हो जाएगा,
और मोदी जी का हाथ भी मजबूत हो जाएगा।
बीबी भी खुश और मोदी भी खुश हो जाएगा,
घर के साथ देश भी रसातल जाने से बच जाएगा।

********************

हनुमान जयंती पर विशेष..!
देखो कैसी बेरंग है दुनियाँ,
आज कितना बेबस है इन्सान,
करने चले थे मुट्ठी में दुनियाँ,
आज मुँह छिपाए पड़ा है विज्ञान।
जान लेने उतारू है शहर दर शहर,
देखो कैसा चला है कोरोना कहर।
सन्नाटे में है हर गली,हर डगर,
आज भारी है इन्सान का हर पहर।
कहाँ से आया यह दुष्ट चीनी जहर,
खुशियाँ देखने व्याकुल है हर नज़र।
आज कितना मजबूर है इन्सान,
शरणागत हूँ कुछ करो मेरे हनुमान।
जब जब घिरे थे घोर संकट में, 
जगत के आराध्य पुरुषोत्तम श्रीराम, 
तब तब भार उठाया था तुमने, 
तुम आए थे प्रभु के काम। 
आज संकट है उनकी सृष्टि को,
सुनो पवनपुत्र महावीर बलवान,
फलित करो मानव की भक्ति को,
अपनी जयंती पर ऐ मेरे हनुमान।

*******************

झा जी कहिन..!
वाह, विचित्र है भारत में राष्ट्र भक्ति।
लोगों को डराओ मन लगता है। सरकार, चाहे जिस किसी की हो, को बदनाम करो मजा आता है। 
मैं कहता हूँ कि लोग कहते हैं कि कोरोना का कहर जारी है इससे वहाँ इतने लोग मर गए।बात डरने वाली अवश्य है,और डरना भी चाहिए , लेकिन कोई कहने वाला नहीं है कि इतने लोग संक्रमण से उबरने के बाद घर पहुँच गए हैं और सुरक्षित हैं। मरने वाले मात्र 1% भी नहीं है लेकिन 99% जिसे इस संक्रमण से मुक्ति मिली ,संक्रमण काल से गुजर कर घर आए हैं उन्हें तो सामने आना चाहिए ताकि लोग डर के माहौल से बाहर आ सकें।  कहाँ हैं वे 99% लोग?कृपया आपलोग सोशल मीडिया पर आकर कुछ ऐसा माहौल तैयार करें और बताएँ कि आपको ऐसा हुआ था और अब आप पूरी तरह से स्वस्थ हैं। 
    लेकिन आज मैं केजरीवाल साहब पर चर्चा के लिए आया हूँ। राज्य के किसी भी मुख्यमंत्री को लीजिये चाहे वो किसी भी पार्टी का हो , कोरोना संक्रमण काल से गुजर रही इस कालखंड को त्रासदी मानते हुए अपने सारे इन्तजाम में लगे हैं। कोई टी वी पर आकर रोते नहीं हैं। 
      मुझे सबसे बुरा दिल्ली के मुख्यमंत्री  आदरणीय अरविंद केजरीवाल साहब को देखकर लगता है कि डर का माहौल बनाकर वे क्या सिद्ध करना चाहते हैं?दिल्ली पर जब भी कोई आफत आए वे सीधा हाथ खड़ा कर सोशल मीडिया पर आकर रोने गाने लगते हैं।पहले संक्रमण काल में उन्होंने अपने को पुरी तरह से कोरंटाइन कर लिया था।जबकि यहाँ हेमंत सोरेन जी का परिवार संक्रमित हैं, योगी जी स्वयं कोरोना के चपेट में आ गए हैं फिर भी दोनों लगातार जनता की चिंता में लगे हैं। लेकिन उधर केजरीवाल साहब का देखिए।  इस बार वे लगातार टी वी पर आकर रोते हुए जनता से सहानुभूति प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।  आप क्या समझते हैं मीडिया उनसे पैसे नहीं लेते हैं।  दिल्ली वालों के पैसे चुकाकर वे वहाँ रोते हैं। जितना पैसे वे मुंह सुखाकर रोने गाने में लगाते हैं उतना में तो वे कई बेड और ऑक्सीजन सिलिन्डर जुटा सकते हैं। खांस खांसकर अन्ना हजारे जैसे गुणी लोगों को साइड कर सत्ता पा लिया अब रो गाकर उसे बरकरार रखने का प्रयास करते हैं और विडम्बना देखिए कि इतना माहिर की जनता की नब्ज को पुरी तरह से समझ उसी के अनुरूप उनकी भावनाओं से खेलते हैं। अभी देखिए पहले सारा समय खांसी में जाता था जबकि दिल्ली पर खतरा है फिर भी उनके चेहरे पर रौनक है। अरे भाई आप मुख्यमंत्री हैं आपका ही दायित्व बनता है।  आप ही डरते हो तो आपकी जनता में भगदड़ मचेगी ही। केन्द्र सरकार को फँसाने की कोई कसर नहीं छोड़ते हैं आप जबकि यह पुरी तरह से राज्य सरकार के अधीन है। राजनीति है भाई। अब देखिए ना कल PM तथा CM की गुप्त मीटिंग को ब्राडकास्ट कर अपने शातिराना राजनीति का परिचय दिया और देखिये माफी मांगने में भी कोई दिक्कत नहीं हुई । वाह केजरीवाल साहब आपने तो राजनीति की दिशा और दशा दोनों ही बदल दी है।

***************
O my dear Baby !
World is not here healthy.
Everyone is sufferer here.
No one is happy dear.
The Corona is disgusting.
Mankind is suffering.
The world becomes destructive.
In case of Corona Positive. 
So ,excuse me please.
to say the world is better place to live. 
I'm ok.
My family is ok.
But the whole world is not ok here. 
All is not well dear.
So,I make a claim,
to break the coronian chain.

*****************

सुबोधित सुप्रभातम..!

सुप्रभात..!
विश्वास का सदाबहार पौधा उगाइए,
पारिवारिक जीवन का आनंद लीजिए,
अभी मानव के लिए समय भारी है,
सीमित साधनों में ही गुजर कर लीजिये।
नवदुर्गा की नौवीं शक्ति माँ सिद्धिदात्री तथा हमारे आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम  को समर्पित राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सुप्रभात..!
********************
सुस्वागतम् ..!
स्वजन-प्रियजन ही याद करते हैं,
शुभकामनाएं या शुभाशीष देते हैं;
हृदय में अकस्मात प्रेम उभरता है,
सुबह-सुबह उसे प्रेषित कर देते हैं✍
सभी मित्रों को सुन्दर सुप्रभात की हार्दिक शुभकामनायें
*******************
एक मुक्तक अनुरोध का..!
आजकल विशेषकर प्रदूषित शहर है,
बाहर गलियों में कोरोना का कहर है,
बिता लो ना कुछ दिन अपने ही घरों में,
घर से निकलना जीवन के लिए जहर है।
इसी अपनत्व भरा शुभ संदेश के साथ सुप्रभात की सुबोधित शुभकामनायें।
*******************
सुप्रभात..!
प्रेम और प्रार्थना में पहचान भूल जाइए,
समर्पित भाव से उसका आनंद लीजिए;
ईश्वर आपकी सारी मनोकामनाएँ पूरी करें,
स्वस्थ व सुखी रह अपना काम करते रहिए। 

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सुप्रभात.
*******************
सुप्रभात
कृपालु ईश्वर आप पर कृपा करें ,
सदा सपरिवार स्वस्थ-सुखी रखें,
खुले मन से प्रभु की प्रार्थना कर लें;
उनसे मनवांछित फल प्राप्त कर लें..!

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सुप्रभात
********************
सुप्रभात..!
कृपालु ईश्वर आप पर कृपा करें ,
सदा सपरिवार स्वस्थ-सुखी रखें,
खुले मन से प्रभु की प्रार्थना कर लें;
उनसे मनवांछित फल प्राप्त कर लें
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सुप्रभात
********************
सुप्रभात..!
जीवन जीने की कला हमें अब नये सिरे से सीखना है, 
मुसीबतों के पहाड़ सामने है उसी होकर हमें गुजरना है,
दशरथ मांझी ने अकेले पहाड़ काट रास्ता बनाया था,
उसी रास्ते पर चलते हुए स्वयं सुरक्षित रह समाज सुरक्षित रखना है।

इसी संदेश के साथ सुप्रभात की हार्दिक शुभकामनायें..!

*****************************

एक गुदगुदी..!
महाकाल की नगरी उज्जैन निवासी मेरे प्यारे कवि मित्रों में से सबसे प्रिय महान आधुनिक हास्य कवि आदरणीय श्रीमान राजेन्द्र ठाकुर, काका श्री को उनके जन्मदिन पर अशेष शुभकामनायें। उन्हें समर्पित है मेरी यह हास्य व्यंग में रचना जिसे मैंने अभी अभी की है।यदि किसी को हँसी आती है तो हँस लें।इससे मेरे काका श्री को खुशी मिलती है क्योंकि वे ऐसे इन्सान हैं अपने खुद बुड़बक बनकर दुसरे को हँसाने का प्रयास करते हैं और इसी लिए हास्य कवि कहलाते हैं। हाँ तो काका श्री मैं भी आपके पिछली सीट पर हूँ :-

एक थे बाबा (अम्बेडकर साहब)
एक हैं काका।
फिर आया 14th अप्रैल,
क्या कहूँ, किससे कहूँ,
अपनों की बातें, 
एक तो महाज्ञानी 
पर एक थे महाबिगड़ेल। 
अवतरित हुए दोनों थे इस दिन,
समाज अधूरा दोनों के बिन।
कसम खाई थी दोनों ने,
नूतन समाज बनाना है,
कहा बड़े भाई बाबा ने,
मैं बनूँ समाजसेवी तुमको काका उन्हें हँसाना है। 
फिर वही था हुआ 
जो बड़े भाई ने कहा। 
एक ने तो संविधान बनाया,
पर दूसरे ने लोगों को हँसाया। 
पर काका को कहाँ मालूम था?
एक दिन किसी से पंगा ले लिया, 
उस दिन से रोज उसने काका से दंगा किया। 
नाम था झाजी ,
बड़ा था पाजी ,
एक नंबर का झूठा था,
कहकर नहीं आता पटल पर, 
पर रोज काका के सर बैठा था। 
हाँफते हाँफते काका
जा पहुंचा ढ़ाका ,
रास्ते में थी मिली ममता 
बोलीं आओ चुनाव कराते हैं, 
कोई मुझे दीदी दीदी करता है उसे भगाते हैं। 
उसने कहा "खेला होबे",
पर झाजी ने कहा इस बार "ना चोलबे"
"खेला शेष होबे" ।
भागा काका 
पहुँचा ढ़ाका,
फिर आखिरकार उज्जैन पहुँचा, 
पीछे पीछे मैं भी आ धमका।
मैंने जो देखा वही कहता हूँ बड़े पते की बात,
अक्षरशः सत्य घटना घटित हुई काका के साथ।
देखा भाभीश्री काका को खुब खटवातीं,
चौंका बर्तन तक करवातीं ,
इससे भी जी नहीं भरता तो
पड़ोस की दोस्त से पिटवातीं ।
मैंने कहा सुनो भाभीश्री,
आज जन्मदिन ब्याय हैं काकाश्री,
कुछ तो उनपर दया करो,
आज तो थोड़ी छोड़ दो।
बोलीं मुझसे यदि चिंता है तुम्हें काका की
तो आज से और अभी से उनका काम तुम ही करो।
भागा झाजी वहाँ से निकला, 
सीधे अपना घर जा पहँचा।
बोला जान बचे तो रस्सी बाँट कर खाऊँगा,
पर भूलकर भी काका के घर नहीं जाऊँगा। 
जय महाकाल का हमारे काका श्री को आशीर्वाद प्राप्त हो आपका ताकि वे सदा आनन्दित रहते हुए हमें भी आनन्दित करते रहें। 


****************

नूतन वर्षाभिनंदन..!
आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, नवरात्रि शुभारंभ के साथ-साथ भारतीय नववर्ष मनाने हेतु, भारतीय पुरातन संस्कृति व जीवन दर्शन के ध्वजवाहक रहे, विश्व प्रसिद्ध विशुद्ध राष्ट्रवादी व सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के विभिन्न सक्रिय स्वयंसेवकों के साथ "भूमि सुपोषण व संरक्षण अभियान" के तहत् वसुधैव कुटुंबकम् व विश्व शांति स्थापना के भाव लिए परम्परागत रूप से गंगा स्नान किया गया। तत्पश्चात परम पूज्य गुरुदेव भगवा ध्वज को साक्षी मानकर,भगवा झंडे लगाते हुए कलश स्थापन ,भूमिपूजन सहित प्रकृति पूजन किया गया ताकि माँ गंगा व सम्पदा परिपूर्ण भूमि व प्रकृति के आशीर्वाद से माँ भारती को परम वैभव की प्राप्ति हो। इस अवसर पर मेरे साथ, विभाग प्रचारक श्रीमान बिगेन्द्रजी, झारखंड प्रांत संयोजक गंगा समग्र विकास डाॅ देवव्रत जी, प्रो वासुकी नाथ जी, विभाग व्यवस्था प्रमुख श्रीमान नीतेश जी, झारखंड प्रांत हिन्दू धर्म जागरण सह संयोजक श्री मान संजय जी,  नगर शारीरिक प्रमुख देवजीत सिंह राठौड़ जी, नगर प्रचारक श्रीमान सत्यम जी  और मेरे अनुज सामाजिक कार्यकर्ता तथा इस अभियान के तत्कालीन संयोजक श्री मान महेश तिवारी जी (जिन्होंने आज के कार्यक्रम का सफल संचालन किया) सहित कई सक्रिय स्वयंसेवकों की उपस्थिति रही ।
पुनः एक बार भारतीय नववर्ष की ढ़ेरों शुभकामनायें देते हुए देशवासियों के लिए समृद्ध व मंगलमय जीवन की कामना करता हूँ। 
जय श्री राम।नूतन वर्षाभिनंदन, ..!

***************

नूतन वर्षाभिनंदन..!
है कितना कठिन यह वर्ष, 
खत्म हो गया विश्व का उत्कर्ष।
कोरोना संक्रमण के खंडकाल में, 
बन गए हम सभी कोरोना वियोगी।
पर आज और अभी से, 
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से, 
भारतीय हिन्दू नववर्ष 
हम सबों के लिए हों, 
हितकारी, मंगलकारी, सुखकारी, 
हों हम सभी कोरोना निरोगी।
इसी शुभ संदेश व हिन्दू नूतन वर्षाभिनंदन के साथ सबों का स्वागत करते हुए सुप्रभात की हार्दिक शुभकामनाएं।  माँ भारती व माँ दुर्गा का समस्त विश्व को आशीर्वाद प्राप्त हो।

****************


सुबोधित सुप्रभातम..!

सुप्रभात
आप के जीवन का हर पल, हर क्षण, शुभ, सुखद और मंगलमय हो ।

सबसे बड़ा सुख, 
स्वस्थ्य तन, 
प्रसन्न मन 
और प्रफुल्लित जीवन है,
जिसके लिये नियमित व्यायाम,
प्राणायाम, 
संतुलित आहार, 
संयमित विहार,
परिष्कृत विचार, 
थोड़ा ध्यान और 
महिलाओं का सम्मान,
परन्तु मित्र से......
जय श्री राम ।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आप सबों को सुन्दर सुप्रभात..!

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सुप्रभात 
खूबसूरत जिंदगी को खूबसूरत ही रहने दें,
नकारात्मक सोच से बदसूरत नहीं होने दें,
जिंदगी आपकी है, उसका सदा आनंद लें,
उसके लिए ईश्वर से रोज प्रार्थना करें..!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सुप्रभात..!

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सुप्रभात 
साधना और सफलता में गहरा संबंध है,
उसी में जीवन का छिपा मधुर आनंद है,
लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयास कीजिए,
जीवन का मधुर आनंद मिलकर लीजिए..!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सुप्रभात..!

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सुप्रभात

उम्मीदों के आकाश में उड़ना जरूरी है,
पर उसकी सीमा का  सदा  ध्यान रखें,
मनवांछित ऊँचाई को छू लेने के लिए,
जीवन में निरंतर  सत्प्रयास करता रहें..!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सुप्रभात..!

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सुप्रभात

प्रात:काल रोज  प्रभु-वंदना कीजिए,
परमपिता परमेश्वर को प्रसन्न रखिए,
याद रहे अंतस् में अभिमान नहीं रहे,
इंसान की तरह ईश्वर को नहीं ठगिए..!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सुप्रभात..!

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सुप्रभात 
सुबह-सुबह प्रभु की प्रार्थना कीजिए,
फिर दैनिक कार्य में समय दीजिए,
जिसने मानव को दिया  है सबकुछ,
उस ईश्वरीय सत्ता को याद कर लीजिए..!
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सुप्रभात..!

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सुप्रभात  
स्वदेशी व स्वावलंबी भारत, 
इसी में हो अपना महारत,
आएँ हम प्रार्थना करें ईश्वर से,
भारत को मिले विश्व में शोहरत।
इसी संदेश के साथ एक सुन्दर सुप्रभात की हार्दिक शुभकामनाएँ..!!


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दुनियाँ बदल गई कोई बात नहीं,
     स्वयं को मत बदलो!
 
लोग कहते हैं कि अब दुनियाँ बदल गईं। 
मैं कहता हूँ कि,
क्या नदियों का चलना बंद हो गया ?
क्या चिड़ियों का चहकना बंद हो गया?
क्या आम ने अपना मिठास खो दिया?
क्या मिर्ची ने तीता लगना बंद कर दिया?
क्या पत्तों का हरापन बंद हो गया?
नहीं न,
अब बताओ, 
हम इन्सानों ने इन्सानियत छोड़ दी
तो दोष दुनियाँ को क्यों देते हो भाई?
हम साहित्यकार व पत्रकार ही अच्छे हैं,
हमने आपदा को अवसर में बदल दिया।
वास्तव में हमलोग ही मन से सच्चे हैं
लोग कहते हैं कि कोरोना चला गया,
तो क्या हमने मास्क पहनना छोड़ दिया?
इस कोरोना संक्रमण काल में,  
जब ऑफलाइन मिलने न दोगे तो देखो
हमने उसे ऑनलाइन साहित्यिक पटल में बदल दिया।
अब तो हम पहले से भी अधिक लोगों से मिलते हैं जनाब, 
यहाँ सही कहा आपने हमने तो दुनिया ही बदल दिया। 

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मित्रों, बहुत हो गया गम्भीर कविताएँ..! अब कुछ हास्य-व्यंग्य पर आधारित बातें हो सकतीं हैं क्या..? थोड़ा हँस तो लें..!
हास्य व्यंग :- पतिता पति..!
गुणवंती पत्नी फिर भी बुरा हाल,
सभी पतियों ने कर दिया उन्हें बेहाल ।
अक्सर देखता हूँ मंच पर कवि पतियों को,
अपनी पत्नियों को शब्दों से कर देता है निहाल।
सभी पति कंजूस होते हैं, 
एक से बढ़कर एक मक्खीचूस होते हैं।
कुछ माँगने पर कहते हैं अपनी पत्नी को,
कल अवश्य ला देंगे भागवान,
परन्तु ले जाते हैं अपनी पड़ोसन को,
सिनेमा दिखाने फिल्म बागवान।
विशेषकर एक हास्यकवि सुरेन्द्र शर्मा हैं,
कवि पतियों के सबसे बड़े सरदार,
जब भी देखो बाट लगा देते हैं,
और अपनी पत्नी को कर देते खबरदार। 
परन्तु उनके शब्द होते हैं बड़े असरदार।
हँसा हँसा कर लोट पोट कर देते हैं ,
परन्तु उनकी बातों में होतीं हैं 
हास्य के साथ सीख भी भरमार।
परन्तु अब पत्नियों ने भी पर्चा भर दी है, 
उन्होंने भी अपनी मोर्चा खोल दी है।
याचना नहीं अब रण होगा, 
बेइज्जती बड़ा भीषण होगा, 
सभी पत्नियों के हाथों में चप्पल होगा,
और कवि पतियों का गाले अमल होगा। 
इसलिए कवि पतियों अपने शब्दों को दें विराम,
गुजारिश है उनसे कि पत्नियों को दें आराम। 
अब देखो पत्नियों ने भी कर दी है शिकायत ,
कवि सुबोध की भी होने वाली है फजीहत।
अब जो भी हो देखा जाएगा, 
कुछ हँसा लूँ आगे सोचा जाएगा। 
अपने दुःख सहकर भी जो दूसरों को हँसाता है,
वही इस स्वार्थी दुनियाँ में मानव कहलाता है। 


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यह रचना मैंने राम चरित मानस की पृष्ठभूमि से लिया है जिसमें चारों भाइयों,चारों जनक नन्दनी व माताओं के सम्पूर्ण त्याग ,प्रेम, समर्पण व बलिदान का  दर्शन कराने की कोशिश की है। कितना सफल हुआ हूँ यह पाठक की प्रतिक्रिया पर निर्भर है। इसे लव कुश ने रामायण धारावाहिक में जो एक गीत गाया था उसी तर्ज पर गाया भी जा सकता है।

यह कथा है त्याग बलिदान की..!

मैं कथा सुनाऊँ पुण्य आत्मा श्री राम की,
यह रामायण है कथा है त्याग बलिदान की-2

त्याग समर्पण एक से बढ़कर अनेक की,
यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की-2
 
सुनो कहानी सुनाता हूँ एक रात की,
यह कहानी है दर्द भरी एक बात की।
एक दिन सोते में माता कौशल्या को ,
छत पर चलने की आहट हई।
नींद खुली जा पहुँची छत पर , 
देखा श्रुतिकीर्ति थी टहल रही।
चरणस्पर्श कर माता को थी सामने खड़ी रही।
पुछा माता कौशल्या ने फिर
रात अकेली क्यों यहाँ खड़ी?
क्या नींद तुम्हें आती है नहीं?
तुम्हारा शत्रुघ्न कहाँ पड़ा है ?
माँ यहाँ खड़ी वह कहाँ खड़ा है?
फिर चिपट गई श्रुतिकीर्ति छाती से, 
सिमट गई माता की गोदी से।
बोली श्रुति माँ तेरह वर्ष बीत गए, 
नहीं जानती आपके पुत्र कहाँ चले गए?
नहीं जानती आपके पुत्र कहाँ चले गए?
फिर कम्पन किया माता के दिल ने,
पालकी उठा चली बेटे से मिलने ।
उन्हें मालूम था कहाँ शत्रुघ्न है,
भरत जहाँ वहीं उसका तन मन है।
चलीं नंदीग्राम जहाँ भरत तपस्या करते थे।
राम इन्तजार में तपस्वी जस रहते थे।
वहीं बाहर एक शिला पड़ा था, 
वहीं शत्रुघ्न लेटे मिला था -2 
सिरहाने बैठी माता ने
उनके बालों में हाथ फिराया,
शत्रुघ्न की आंखो से 
फिर उन्होंने आँखें मिलाया। 
चरण छू कर बेटे ने पुछा ,
इतनी रात देख चिंता में सोचा। 
श्रत्रुघ्न की रूलाई फूटी ,
कष्ट क्यों की बुलवा ली होतीं-2 
माता ने कहा चलो अब चलो घर चले,
विरान पड़ी है राजमहल अब चलें। 
कहने लगे फिर बिलख बिलख कर
माता की गोदी में अपना सिर रखकर। 
सिया संग भैया वन को चले गए, 
अपने संग भाई लखन को ले गए,
भैया भरत यहाँ तपस्वी भेष में, 
क्या मैं ही अभागा अपने देश में ?-2
राज पाठ के लिए ही बना मैं 
अभागा था क्या इतना बड़ा मैं? -2 ।
माता कौशल्या तब निरूत्तर थीं, 
त्याग देख वह बड़ी  व्यथित थीं।
यह कथा है त्याग और बलिदान की ,
यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की-2.

यह प्रतियोगिता थी त्याग और सम्मान की,
बस होड़ लगी थी किसकी प्रथम बलिदान थी-2 ?
यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की-2। 
मैं कथा सुनाऊँ भ्रातृत्व प्रेम बलिदान की, 
यह रामायण है कथा है श्री राम महान की-2।

अब कथा सुनाऊँ पत्नी धर्म बलिदान की,
थीं जनक नन्दनी मिथिला वासी महान की-2
पति संग सीता वनवासी हुईं,
माता बिलखते यहाँ रह गईं। 
बचपन से भाई राम की सेवा करते थे।
राम बिन लक्ष्मण कैसे रह सकते थे?
माता सुमित्रा से आज्ञा पाकर 
पत्नी उर्मिला के द्वार जाकर। 
सोचा माता ने तो आज्ञा दे दी 
पर उर्मी को कैसे समझाऊँ, 
सोच विचार जब लखन वहाँ पहुँचे,
देख उर्मिला लक्ष्मण अचरज थे-2
देखा उर्मी थाल लिए खड़ी थी,
आरती कर वो फिर बोली थी,
भैया संग वन जाओ मैं ना रोकूंगी,
साथ जाने की जिद्द मैं ना करूँगी। 
देख पत्नी धर्म लखन चकित थे,
भाव विभोर हो वन को गए थे। 
तब उर्मिला ने कठोर तप किया, 
खोल महल द्वार दीपक जला जप किया। 
पति भैया भाभी की सेवा में ना सोया,
सारी रात उर्मी ने लौ बुझने ना दिया। 
उधर मांडवी भी भरत की आश में, 
तपस्विनी बन रहतीं रणिवास में।
सीता जी का त्याग भी देखा, 
श्रुतिकीर्ति का विश्वास भी देखा। 
यह कथा थी जनक नन्दनी महान की, 
यह रामायण है कथा है त्याग बलिदान की-2।

मेघनाथ से घनघोर युद्ध हुआ था,  
लक्ष्मण को शक्तिबाण लगा था, 
तब संजीवनी बूटी लाने को,
राम भक्त हनुमान गए थे। 
पहाड़ समेत जब लौट रहे थे हनुमत, 
राक्षस समझ प्रहार कर गए थे भरत।
भरत भाई तब व्याकुल हो गए
सारा वृतांत जब हनुमत कह गए-2
सीता जी को रावण ले गया, 
युद्ध में लक्ष्मण मुर्क्षित हो गया । 
सुनते ही कौशल्या गुस्सा हुईं ,
हनुमत को यह बात सुना गईं। 
सुनो हनुमान राम से कहना, 
लखन बिन अयोध्या मत आना-3
एक माता का त्याग देखकर 
माता सुमित्रा बोलीं सिहरकर, 
हे हनुमत तुम राम से कहना 
माता कौशल्या की बात न रखना। 
पुत्रवियोग में बावरी हो गईं 
गुस्से में फिर बात यह कह गईं। 
मैंने दो दो पुत्र जना है -2
दोनों राम सेवक ही बना है-2
लक्ष्मण चल जाए कोई बात नहीं, 
सेवा हेतु शत्रुघ्न भी खड़ा है-2
देख त्याग माता का 
सबका बह चला अश्रुधार, 
धन्य हुआ हनुमत वहाँ
देख माता का प्यार।
मैं कथा सुनाऊँ माता के त्याग व प्यार की
यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की-2.

यह दृश्य देखने उर्मी खड़ी थी,
शांत चित्त पर प्रसन्न बड़ी थी।
पुछा हनुमान ने चिंता नहीं तुम्हें 
पति मुर्छित है श्री राम की गोद में। 
फिर भी प्रसन्नता का क्या कारण है 
आपके पति के प्राण संकट में है। 
तब उर्मी जो बात कह गयी 
तीनों लोक अश्रुधार बह चली। 
कहा उर्मी ने मेरा दीपक
अभी कहाँ है वह संकट में 
भैया राम के प्राण बसे हैं 
मेरे पति के ही घट घट में। 
बुझ नहीं सकता है मेरा दीपक 
नहीं होगा मेरे पति को संकट।
सूर्य उदित नहीं होगा तबतक, 
पहुँच न सकें वहाँ आप जबतक।
इच्छा हो तो तनिक विश्राम आप कर लें, 
अयोध्या नगरी का भ्रमण आप कर लें। 
आपने कहा मेरे पति प्रभु की गोदी में लेटा है, 
जबकि उनके हृदय में श्री राम बैठा है। 
काल का नहीं पड़ सकती है छाया,
यह तो दोनों भाइयों की है माया। 
जबसे लखनजी वन को थे गए
तब से वे नहीं कभी थे सोए।
विश्राम करते ही गहरी नींद लग गई,
सोने दें उन्हें प्रभु की गोदी मिल गई।
शक्तिबाण मेरे पति को कहाँ लगी है 
यह बाण तो श्री रामचन्द्र को लगी है। 
जिसके हर श्वास में राम बसा हो
जिसके हर धड़कन में राम फँसा हो,
रोम रोम में राम बसे हों
खून की हर बुंद में राम बसे हों 
शक्ति तो श्री रामजी को लगी है 
दर्द तो प्रभु जी को हो रही है। 
इसीलिए तो मैं कहती हूँ ,
सुरक्षित हैं वे आश्वस्त रहती हूँ। 

उर्मिला का उत्तर सुना जब,
तीनों लोकों ने वंदन किया तब। 
उर्मिला तुम तो महान हो 
राजा जनक की संतान हो।
मैं कथा सुनाऊँ जनक नन्दनी महान की 
यह रामायण है कथा है त्याग बलिदान की-2

प्रभु श्री राम ने तो राज्य स्थापित किया, 
पर सबने अपना प्रेम, त्याग सत्यापित किया।
तभी राम राज्य कहलाया था
सबने मिलकर महिमा गाया था। 
यह  कथा नहीं समर्पण है राम भक्त इन्सान की,
यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की-2।

जय श्री राम। 


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निर्गुण :- मौत सत्य है..!
 
मौत सत्य है,सबके लिए आती है, 
कहाँ किसी में फर्क कर पाती है?
पता नहीं किसी को क्यों तड़पाती है,
पर किसी को तो चट पट ले जाती है।
मुझे उनकी तड़प पर दया आती है,
फिर मौत को यह सब क्यों भाती है?
देखा है मैंने किसी अपने को तड़पते हुए,
तड़प तड़प कर कष्ट से मरते हुए।
ऐसा दृश्य देखकर मेरी आत्मा रोती है, 
फिर मौत से शिकायत कर जाती है।
कि औरों की तरह उसे भी ले जाओ,
माफी दो उन्हें भी जल्दी से अपनाओ।
इसीलिए तो कवि सुबोध कहता है,
कि जो यहाँ अच्छे कर्म करता है, 
वही सदा ही जीवन में फलता है,
अपने दुष्कर्मों पर अंत समय में रोता है।
मौत तो प्रकृति का शाश्वत तत्व है,
सत्कर्म ही दिलाता अमरत्व है।

जब तन को मौत की सोना होता है, 
तब कहाँ मलमली बिछौना होता है?
फिर वही दफनाने या जलाने के लिए,
सिर्फ श्मशान का एक कोना होता है।

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प्रस्तुत रचना एक वृद्ध दम्पति के अमर प्रेम की कहानी है जिसे मैंने काव्य के रूप में व्यवस्थित किया है जो बड़ा ही हृदयस्पर्शी है।यह कहानी काव्य है जिसे सम्पूर्ण पढ़ने के बाद हो सकता है कि निश्चित रूप से दिल को छू सके। तो आइए पढ़ते हैं:-
कहानी मधुर प्रेम की..!
सूर्योदय हुआ था अभी अभी ;
दरवाजे पर एक घंटी बजी तभी।
खुला डाक्टर साहब का दरवाजा।
एक वयोवृद्ध वहाँ खड़ा था  पाया।

फिर साहब की श्रीमती थी आईं,
वृद्ध को देखते ही मुस्काई।
बोलीं दादा क्या है बात ?
क्यों कटी नहीं आपकी रात?
इतने सबेरे है कौन सी बात ?
क्यों कोई नहीं है आपके साथ?
आप आए मेरे द्वार 
ये आपकी है मेहरबानी ;
पर यह बताएँ कि आपको
कौन सी है परेशानी?

बोला वृद्ध ने अंगुठे के टांके कटवाने हैैं;
फिर खुद को कहीं और पहुंचाने हैैं।
वे वृद्ध डाॅक्टर का पड़ोसी था;
इसीलिए वह कुछ हितैषी था।

उन्होंने उनके अंगुठे की पट्टी खोली;
फिर कुछ मधुर स्वर में उनकी पत्नी बोली।
कि आपका घाव अब भर गया है;
अब सारा डर चला गया  है। 
आइए हमारे साथ कुछ नाश्ता कर लें;
आपके लिए भी कुछ आया है।
आपकी कुछ तकलीफ हर लें,
लगता है आपको कुछ संकट का साया है। 
आपको यदि कुछ देर हुई तो;
मैं छोड़ दूँ उनके द्वारे;
कुछ पुण्य का भागीदार बना तो,
जीवन धन्य हो जाए हमारे।

डाक्टर बड़ा दयालु था, 
वह बड़ा ही श्रद्धालु था।
बिल लेकर तो सभी उपचार करते हैं, 
पर दिल देकर कौन उपकार करते हैं?

कहा वृद्ध ने मैं तो यहाँ नास्ता कर लूँ ,
अपना पेट यहाँ मैं भर लूँ।
पर उन्हें नास्ता कौन कराएगा?
घर पर मेरे कोई नहीं है, 
मेरी पत्नी अस्पताल में बीमार पड़ी है,
उनको वहाँ कौन  संभालेगा?
इसलिए अभी तो मैं घर जाऊँगा;
भोजन तैयार कर उनके  साथ ही खाऊँगा।
वृद्ध ने कहा मेरी पत्नी मुझे बहुत प्यार करतीं थीं,
वह मेरे बिना कभी नहीं रहतीं थीं।
अब उसे अल्जाइमर हो गया है, 
अब मेरा घर उदास हो गया है। 
अब उसकी याददाश्त चली गई है, 
इसीलिए पाँच साल से वह मुझे भूल गई है।
रोज सुबह अस्पताल जाता हूँ, 
फिर उसको नास्ता खिलाता हूँ। 
वह फटी आँखों से मुझे निहारती है, 
मानो आंसू भरी नेत्रों से मुझे पुकारती है।
मैं उसके लिए अब अनजाना हूँ,
पर मैं उसका पहले से ज्यादा दीवाना हूँ।
यह कहते कहते वृद्ध के आँखों में आंसू आ गए,
डाक्टर दम्पति भी वहाँ भाव विभोर हो गए।
दम्पति ने कहा आप रोज कई बार वहाँ जाते हैं, 
वृद्ध हो गए नहीं थकते हैं?
वे आपको नहीं जानतीं, 
फिर भी आप नहीं उबते हैं?
क्या आपके बेटे नहीं हैं?
यदि हैं तो फिर वे कहाँ हैं?

फिर वृद्ध ने जो जवाब दिया 
सुन हृदय में एक अफ़सोस हुआ।
 
बेटे हमें छोड़ चले गए परदेश, 
बहुत पढ़ा था नहीं भाया अपना देश।
एक अकेला यहाँ  मैं ही पड़ा हूँ, 
पर मैं पत्नी संग हर पल खड़ा हूँ। 
उसने जीवन में मेरी बड़ी सेवा की है, 
ॠण चुकाता कर सकूँ कोशिश की है।  
पर मन भर जाता है उसे देखकर ,
जब उसे बिस्तर पर पड़े देखता हूँ। 
सोचता हूँ अगर वह यहाँ न होती, 
तो शायद मैं भी बिस्तर पकड़ लेता, 
इसी सोच से फिर ताकत आती है,
फिर अपने काम में लग जाता। 
उसके पिछले प्रेम से ही
आज मुझमें शक्ति आती है, 
जिसके कारण ही मुझमें
उसके प्रति भक्ति आती है। 
रोज उससे मिलने जाना,
उसके साथ ही नास्ता करना,
उसे अपने हाथों से खिलाना,
इसी में आनन्दित रहता हूँ, 
जो किया था उसने पहले
वही तो रिश्ता निभाता हूँ।
उसका दर्द भरा चेहरा
सम्मोहित कर जाता है, 
उसी सम्मोहन में मेरा 
प्रेम प्रवाहित हो जाता है।  
पारिवारिक जीवन में
स्वार्थ एक अभिशाप है, 
जबकि प्रेम अटूट होता है
जो आपसी विश्वास है।

वृद्ध ने कहा वह नहीं जानती मैं कौन हूँ, 
पर मैं तो जानता हूँ कि वह कौन है?

इतना कहते ही वृद्ध की,
आँखों से निकल पड़ी अश्रुधार,
आंखें भर आयीं दम्पति की,
वे भी हो गए वहाँ लाचार।

प्रेम कम हो जाने से ही परिवार टुटता है,
वर्तमान समाज में यही तो कुछ दिखता है। 

कहानी तो खत्म हो जाती है, 
पर वृद्ध का यह कहना कि 
वह नहीं जानती मैं कौन हूँ 
पर मैं तो जानता हूँ कि वह कौन है?
दिल में अथाह दर्द जगा जाता है।
प्रेम  प्रवाहित कर जाती है, 
जिसमें सारे रिश्ते समाहित हो जाते हैं। 

अपने वो नहीं,जो तस्वीर में साथ दिखे,
अपने तो वे हैं जो तकलीफ में साथ दिखे।

महल बनाए तो क्या हुआ, 
परिवार नहीं संग कोय;
ढ़ाई अक्षर प्रेम का, 
गढ़े सो परिवार होय।

कहानी कैसी है 
यह मैं नहीं जानता हूँ, 
पर पारिवारिक प्रेम का संदेश दे जाती है 
यह मैं जानता हूँ। 

****************


एक रूहानी आवाज..!

एक आवाज़ सी आई ,
आकर फिर चली गई ।
शायद रूहानी आवाज थी वो,
जो वास्तव में रूह से निकली थी।
मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया, 
इसीलिए वो मेरे दिल से फिसली थी।
नादानी थी मेरी जो मैं उसे पहचान न सका,
आत्मा थी मेरी किसी रूप में मैं जान न सका। 
क्या करूँ मानव हूँ, भगवान नहीं, 
पर इन्सान हूँ, कोई शैतान नहीं। 
उसने मुझे रोका था,
उसने मुझे टोका था।
फिर भी मैं जीवन पथ पर, 
बहकता सा चला गया। 
अकेला अपने प्रगति पथ पर,
बढ़ता सा चला गया। 
मेरे अपने कब के छूट गए,
पर मेरे सपने अब टुट गए।
इसीलिए रफा दफा सब साफ करें ,
सारी गलती को अब माफ करें।
मुझे अभिमान था सो बिगड़ गया,
मैं नादान था पर अब सुधर गया । 
अब मैं भी मददगार हूँ,
मानवता के प्रति जिम्मेदार हूँ। 
मानव हूँ अन्य की तरह स्वार्थी हूँ, 
पर अब ठीक हूँ इसलिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
यह मैं स्वयं सहित सबकी हकीकत बयां कर गया,
आज मैं दुनियाँ को वर्तमान मुसीबत बयां कर गया।  

**************

आओ खेलें होली..!

आओ खेलें होली सजनी के संग, 
लगा दूं मैं तुम्हें अंग अंग रंग।

धड़कने लगे फिर दिल में तरंग,
फड़कने लगे तब हर अंग अंग।

मच जाए तब बड़ा हुड़दंग, 
शरबत में मिले जब थोड़ी भंग। 

कोई लगा दो मुझे रंग हर अंग, 
लाल, पीली और हरी हरी रंग। 

बजने लगे जब ढोल व मृदंग , 
नफरत के तब मिट जाए सब रंग।

समरसता का ऐसा हो रंग,
कि देखकर दुनियाँ रह जाए दंग।


*****************

अंग अंग में रंग लगा दो

गिले शिकवे अब आज भुला दो, 
होली आई है सबको मिला दो। 
शरबत में थोड़ी भंग मिला दो, 
अंग अंग में रंग लगा दो।

पिचकारी से रंग चला दो, 
दुनिया को रंगीन बना दो।
मन के तार से तार जुड़ा दो, 
मन में बस मिरदंग बजा दो। 

फूलों की क्यूँ खेलूं होली? 
लाल गुलाबी हरा व पीली। 
रंग लगाकर करें ठिठोली, 
हम सब मिलकर खेलें होली। 

मस्ती में सबका दिल बहला दो, 
साजन को सजनी से मिला दो। 
भाई भाई में दरार मिटा दो, 
जाति धर्म की दीवार गिरा दो। 

आओ मिलकर करें रंगरेली, 
क्यूँ न बनें हम सब हमजोली?
रंग अबीर से बनाऊं रंगोली, 
खुशियां लेकर आई है होली।

सम्मान करो अपने भाई का..!

छोड़ विषमता की बातों को, 
हिंदू राष्ट्र अपनी पहचान,
सामाजिक समरसता से ही, 
अपना भारत बने महान-2।

कोटि हिंदू से बना है भारत, 
कोटि हिंदू अपनी पहचान, 
ध्यान रखें मां भारती का, 
रखें सभी हम इनका मान, 
छोड़ आपसी भेदभाव हम, 
एकीकृत भारत हो नाम,
सामाजिक समरसता से ही, 
अपना भारत बने महान-2.
छोड़ विषमता -----

जब हम भूलें अपने भाई को, 
भूल गए हैं उनका काम,
पाप करने को चले हैं हम सब, 
जो न करें उनका सम्मान। 
आओ सत्कर्मों का ध्यान करें हम ,
ध्यान करें उनका ही नाम, 
सामाजिक समरसता से ही,
अपना भारत बने महान-2
छोड़ विषमता की---

जब हम भूलें उनके अपमानों को, 
करते हैं उनका अपमान,
रोती है तब मां भारती,
कहकर उन्हें अपनी संतान। 
बेबसी और लाचारी को मिटाकर, 
करें हम उनका सम्मान,
सामाजिक समरसता से ही,
अपना भारत बने महान। 
छोड़ विषमता की बातों को, 
हिंदू राष्ट्र अपनी पहचान, 
सामाजिक समरसता से ही, 
अपना भारत बने महान-2 ।

********

पलायन..!

जमीन बिक रहा है शहरों में, 
क्या तुम भी खरीदोगे?
जमीर बिक रहा है वहाँ, 
क्या तुम भी अपना बेचोगे?
गाँवों से शहरों को पलायन,
आजकल एक श्रृंगार बन गया है;
क्या बताऊँ मैं यह आदतन,
आम लोगों का व्यापार बन गया है।
स्वच्छ,सुन्दर,सुहाना सुप्रभात छोड़,
धूल धूसरित तंग गलियों में, 
क्या तुम भी वहाँ जाओगे?
तुम्हें पता नहीं 
तुम क्या करने जा रहे हो,
तुम्हें पता नहीं तुम अपने 
पुरखों को छोड़े जा रहे हो।
तुम छोड़े जा रहे हो 
एक सुन्दर सा गांव,
कोयल की कूक व कौवे की कांव,
तुम छोड़े जा रहे हो 
पीपल की छांव 
व मांझी की नाव।
कुछ खनकती सिक्के समटने 
एक सुन्दर सुरक्षित गांव।
आज पलायन एक चलन बन गया है,
क्या शहरों में तुम्हारा घर है?
यह भी एक फैशन बन गया है।
भारत गाँवों का देश है,
फिर भी लोग बसते परदेश है।
भारत की आत्मा है गाँवों में,
क्यों जा रहे तुम शहरों में?
गाँवों का बोझ शहरों पे डाल रहे हो,
बढ़ा रहे हो आर्थिक विषमता,
बढ़ा रहे हो सामाजिक असमानता,
बढ़ रही है आबादी शहरों की 
बढ़ रही है कुव्यवस्था।
आओ अब लौट चलें गाँवों की ओर,
पुकार रही है पुरखों की मिट्टी,
आओ चलें गाँवों की ओर।
अब तो सारी सुविधा गाँवों में है,
सरकारी व्यवस्था गाँवों में है।
उचित उपभोग में लाएँगे,
गाँवों में ही अपना घर बसाएँगे।


**************

मोहे रंग दो लाल..!

मोहे रंग दो लाल 
नंद के लाल,लाल,लाल
मोहे रंग दो लाल।
 
देखो-देखो सखियाँ 
रंग लायी गुलाल,
छूओ नहीं बस रंग दो लाल। 
मोहे रंग दो लाल। -2
यमुना तट पर रंग घोरे 
राधा के संग कृष्ण मोरे,
करत थैय्या, ता ता थैय्या, 
ग्वाल बाल संग दाऊ भैय्या।
मोहे रंग दो लाल 
नंद के लाल लाल लाल 
मोहे रंग दो लाल। 

देखूँ-देखूँ तुझको 
मैं होके निहाल-2
छुओ नहीं बस रंग दो गाल 
मोहे रंग दो लाल 
नंद के लाल लाल लाल 
मोहे रंग दो लाल।

देर भयो क्यूँ न आवे गय्या,
नंद संग खोजे यशोदा मैय्या।
गोपी संग सखियाँ होके निहाल,
कृष्ण संग सब ग्वाल बाल। 
नाचे नंद के लाल 
लाल लाल लाल।
मोहे रंग दो लाल।

********************

क्योंकि, मेरी माँ नहीं है न..!
भाई.. !
क्योंकि, मेरी माँ नहीं है न..!
जब भी किसी की माँ को देखता हूँ,
एक अनजान सा रिश्ता बन जाता है।
फिर उस माँ में ही मैं अपनी माँ को देखता हूँ 
फिर जागृत होती है 
मेरी भावना और रचना कर जाता हूँ।
क्योंकि, मेरी माँ नहीं है न!  
कह जाता हूँ कि 
भाई!
थोड़ा माँ का आशीर्वाद मुझे भी दिला देना,
थोड़ा मुझे भी उनसे मिला देना। 
कर लूँ मैं भी उनका चरणस्पर्श,
कर लूँ मैं उनसे थोड़ा विचार विमर्श। 
क्योंकि,मेरी माँ नहीं है न!
मुझे भी उनका प्यार दिला देना, 
कर दुंगा मैं तुम्हें वापस,
कुछ दूसरे रूप में, 
उसमें थोड़ी माँ की चरणधूलि भी मिला देना।
कुछ तो दया करो,खुब दुआएं लगेगी मेरी तुझे,
यदि हो सके तो कुछ बातें उनसे करा दो न मुझे।
क्योंकि, मेरी माँ नहीं है न!
इसीलिए तो कहता हूँ। 
जब भी किसी की माँ को देखता हूँ, 
मचल उठता है 
चरण छू लेने को,
सारी भावनाएँ कह देने को।
क्योंकि, मेरी माँ नहीं है न!
बरसों बीत गए मैंने माँ को नहीं देखा है, 
परन्तु उनका एहसास अभी भी संग है,
उनका एहसान अभी भी जीवन का रंग है।
याद है मुझे ,
उनके द्वारा मुझे चपत लगाना।
मैं बड़ा हो गया था ,
मेरे बच्चे बड़े हो गए थे।
फिर भी उनके सामने, 
मैंने कहा ऐसा क्यों किया आपने। 
मेरी गलती सिर्फ यही थी 
कि मैं अपनी स्वयं की पत्नी को सिनेमा ले गया। 
उन्होंने कहा कि पत्नी आते ही तुम माँ को भूल गया। 
इसीलिए तो कहता हूँ , 
जब भी किसी की माँ को देखता हूँ, 
उसी चपत को याद करता हूँ। 
और फिर मचल उठता है कुछ कहने को, 
मचल उठता है कुछ आशीष पाने को।
क्योंकि, मेरी माँ नहीं है न!
इस सृष्टि में माँ एक विचित्र सृजन है,
प्रेम का जीता जागता एक सचित्र स्पंदन है।
खुद मिटकर भी लुटाती है अपनी ममता,
अपने प्रेम के साथ दर्शाती है अपनी समता। 
माँ तो माँ होतीं हैं,
हर टुकड़े की जाँ होतीं हैं।
इसीलिए तो कहता हूँ, 
क्योंकि, मेरी माँ नहीं है न!
देखो मुझसे इर्ष्या मत करना,
थोड़ी प्यार मुझे भी दिला देना। 
समझूँगा कि मुझे मेरी माँ मिल गईं,
धन्य हो जाऊं मैं समझूँ कि मुझे मेरी जाँ मिल गईं।
क्योंकि, मेरी माँ नहीं है न! 


*************

जीन्स या साड़ी..!
 
जीन्स साड़ी में छिड़ी लड़ाई, 
सब अपनी अपनी करते बड़ाई।
साड़ी सुन्दर हो तब चलती है, 
जीन्स फटा हो चल जाता है,
साड़ी में आती है झलक सुन्दरता की, 
जीन्स में होता है परख आधुनिकता की ।
साड़ी में है सौंदर्य निखारती,
जीन्स में है कौमार्य निहारती।
साड़ी दिखाती भारतीय संस्कृति,
जीन्स दिखाता है अपनी विकृति। 
क्या करे जींस या साड़ी,
दोनों एक दूसरे पर भारी।
काम पर जाओ तो जींस जरूरी,
शादी में जाओ तो साड़ी मजबूरी।
काम पर साड़ी पहनो तो  होगी फजीहत,
शादी में जींस पहनो तो देते नसीहत।
क्या करे अब दोनों ही भाई, 
दोस्ती कर लें इसी में है भलाई।
दुनियाँ बड़ी जालिम है, 
एक को दूसरे से भय है,
उसमें हम भी शामिल हैं,
पर हमारी तो सदा जय है। 

*************

सब ओल झोल है

ओल झोल भाई सब ओल झोल है,
आन्दोलन के नाम पर करता गोल गोल है,
जनता को यहाँ बुड़बक बनाकर ,
सरकार से देखो करता तोल मोल है।

रास्ते पर सब देखो बैठा है,
खुब लजीज़ बिरियानी खाता है, 
कहता है वह खाली पेट है,
पर हर रात सुहानी करता है।

ठंड वंड की फिक्र नहीं है, 
हर जगह लगे हैं हीटर भी;
स्नान ध्यान कर बैठो भईया, 
वो देखो लगे हैं गीजर भी।

देखो आयी है शाहीनबाग से,
वही दिहाड़ी वाली दादी;
हाथरस से है आयी,
वही देखो है नक्सली भाभी।

नारे लगते हैं जोर जोर से, 
खालिस्तान जिन्दाबाद !
तुमको मारेंगे इन्दिरा की तरह,
मोदी को नहीं रहने देंगे आबाद।

सब मांगें मान लो भईया,
यह आंदोलन खत्म नहीं होगा;
चलता रहेगा अगले चुनाव तक 
जबतक एक पार्टी भस्म नहीं होगा। 

यही तो है हकीकत भईया,
क्या कहूँ आंदोलन का हिसाब;
आने वाली है मुसीबत भईया, 
लिख डालोगे एक किताब। 

***********

जी आदरणीया,
आपको प्रणाम ।
आपकी कुशाग्र बुद्धि को प्रणाम ।
आपकी हर शुद्धि को प्रणाम। 
आपकी वाकपटुता को प्रणाम।
आपकी अस्मिता को प्रणाम ।
आपके व्यक्तित्व को प्रणाम। 
आपके हर अस्तित्व को प्रणाम ।
आपकी अंदाजे बयां को प्रणाम।
आपकी राजनीतिक आगाजे बयां को प्रणाम। 
आपकी खूबसूरती को प्रणाम ।
आपकी हर प्रतिमूर्ति को प्रणाम ।
आपकी खुदा से की गई हर विनती को प्रणाम।
आपकी हर उस संस्कृति को प्रणाम। 
आपकी हर अदाओं को प्रणाम।
आपकी हर विधाओं को प्रणाम। 
आपकी मधुर आवाज  को प्रणाम। 
आपके स्नेहिल अंदाज को प्रणाम।
आपके व्याकुल विकर्ष को प्रणाम।
आपके पीछे किए गए स्नेहिल स्पर्श को प्रणाम। 

और अंततः गृहकार्य करते हुए आपकी सम्पूर्ण  प्रतिक्रिया, शैक्षणिक,  व्यावसायिक, व्यापारिक, व्यावहारिक, सांगठनिक, संवैधानिक, असंवैधानिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक, दैहिक, दैविक, भौतिक, नैतिक, साहित्यिक, अकादमिक आदि सम्पूर्ण मानव मूल्यों पर आधारित दैनिक गतिविधियों को प्रणाम करता हूँ।
(मेरी अर्धांगनी को समर्पित )

************************

     
-: एक पहेली :- 
बोलो बोलो कौन है वो..?

एक बात जो भारत की जनता को 
बिलकुल नहीं भाया है, 
एक शख्स जो जनता द्वारा 
पूर्ण बहुमत से चुनकर आया है,
मुट्ठी भर लोग लगे हैं 
उसे जबर्दस्ती गिराने में,
उन्हें क्या मालूम कि वह 
जनता के दिलों में समाया है। 

लोग आग उगलते रहे पर  
लोगों ने उसे फिर से लाया है,
नये सिरे से भारत की कहानी 
लिखने वह फिर से आया है। 
दुकानें बंद होतीं हैं तो 
हो जाने दो उन सब की,
कुछ लोगों को छोड़कर सबों ने उन्हें 
पलकों पर बिठाया है।

पहले थोड़ी छोटी दाढ़ी थी,
जो अब थोड़ी बड़ी हो गई,
पोशाक वही इन्सान  वही,
सिर्फ अब सूरत बदल गई।

अभी भी उनका अंदाज़ वही है,
नवभारत के सृजन का आगाज़ सही है,
बढ़ी दाढ़ी में देखो शख्सियत वही है,
एक महामानव जिसमें इन्सानियत भरी है।

बोलो बोलो कौन है वो?
जो कहता है.....

अब चाहे जो भी हो 
हमें तो मोहब्बत है अपने वतन पे,
अब चाहे कोई गाली दे या मार 
झेल लेंगे हम अपने तन पे।

बोलो बोलो कौन है वो..?

***************

कैसी है ये दुनियाँ..?

एक ने कहा, 
हमारा धर्म खतरे में है, 
आओ उनलोगों से लड़ते हैं, 
जो हमारे धर्म का सत्कार नहीं करता।
उसके पीछे दुनियाँ चली गयी। 
 
दुसरे ने कहा,
वास्तव में हमारा धर्म खतरे में है,
आओ उनसे लड़ते हैं,
जो हमपर उपकार नहीं करता।
उसके पीछे भी कई लोग चले गए। 
 
मैंने कहा,
आओ हम उन दोनों से लड़ते हैं,
जो हमें लड़ाता है, 
जो हमारी संस्कृति से सरोकार नहीं रखता।
मेरे पीछे कोई नहीं आया।
 
वे लोग रोज लड़ते हैं,
फिर भी जिन्दा है। 
मैं तो यहाँ घुट घुट कर जीता हूँ। 
फिर भी मैं ही शर्मिंदा हूँ। 

क्यों है ऐसी दुनियाँ
जहाँ ऐसे लोग रहते हैं?
क्यों है ऐसी गतिविधियाँ 
जहाँ मेरे श्रीराम बसते हैं?

***********

इकरारनामा..!

हो गया है प्यार,
कर रहा इजहार,  
ये दिल-ए-बेकरार।
क्या कहे, किससे कहे,
समझ में नहीं आता है उसे यार।
किससे,कब,कैसे,क्यों 
और कहाँ हो गया है प्यार,
जो दूर पहाड़ की वादियों में 
हो रहा है इजहार।
यदि है प्यार बेशुमार,
तो कह दो उसे, 
कर दो इकरार। 
मत रखो खुमार। 
चाहे तो कर दे वे इकरार 
या करे इनकार,
यदि हाँ तो होगा उपकार।
ना हथियार से मिलती है 
ना अधिकार से मिलती है,
किसी के दिलों में जगह, 
तो व्यवहार से मिलती है।
शिक्षा अज्ञानता दूर करती है, 
व्यापार सुख समृद्धि लाती है,
परंतु प्रेम यदि सच्चा हो 
तो जीवन में शांति आती है।
व्यापार की समृद्धि के लिए परिश्रम को अपना लेना चाहिए ,
सच्चा प्यार पाने के लिए अहम् को त्याग देना चाहिए ।
इसीलिए कह दो उसे कि
तुमने तो बस उससे बेइन्तहा 
मोहब्बत की है,
सोचा, 
ना तुम्हें पाने के बारे में , 
ना तुम्हें खोने के बारे में।  
हर घड़ी हर पल हजार बार,
चाहे हो इकरार या इनकार,
करता रहूँ बस तुझपे ही एतवार,
तुझसे ही प्यार,
ये बेशुमार।  
तेरे फोन आने का इन्तजार।
बस जनम जनम तक इन्तजार।

********************

       मिडिल क्लास..!
अच्छी सोच,नहीं कोई ओज;
मिडिल क्लास नहीं है बोझ।
अपने दम पर जीता है;
फिर भी जिन्दा रहता है।
सबसे ज्यादा कर देता है,
बदले में क्या कुछ लेता है।  
सरकार को इसका फिक्र नहीं,  
बजट में इसका जिक्र नहीं। 
ना सरकार से उम्मीद यह करता है,
परिश्रम से नहीं डरता है। 
फिर भी दोष इन्हें लगता है,
सबकुछ यही वर्ग तो सहता है। 
ईश्वर का नाम ये ले लेकर,
गुजर बसर यह कर लेता, 
सरकार से कोई शिकायत भी नहीं,
महंगाई भी सजा इन्हें देता।
सरकारी आंकड़ा यह कहता है,
इनमें भुखमरी गरीबी है;
कोई तो यह भी कहता है,
कि यह तो बड़ा शराबी है।
खुदा ने इनको रहमत दी है, 
फिर हम क्यों तोहमत देते हैं?
जैसे रहना चाहे ये लोग, 
हम क्यों न सहमत होते हैं। 
यदि ये बंद कर दे देना वोट,
तो सरकार को दे सकता है चोट।
कवि सुबोध यह कहता है,
यह वर्ग ही भारत में रहता है।
पर यह वर्ग सदा से उपेक्षित है,
इन्हें सरकारी सहायता अपेक्षित है।


*********************

शायद दिल्ली पर खतरा है..!

देखो,शायद दिल्ली पर खतरा है,
हर जगह आन्दोलनकारी पसरा है,
चारों ओर से घिरी हमारी दिल्ली,
कोई नहीं जानता क्या मसला है?

आन्दोलन के नाम पर सजीं दुकानें,
खाली नहीं हैं यहाँ कोई मकानें,
अब तो उब चली हमारी दिल्ली, 
अब क्या करे कोई  सरकारें।

हर वार्ता के पीछे छिपी है साजिशें,
पुरी कैसे हो उनकी सारी  ख्वाइशें,
हर वार्ता के लिए तैयार है दिल्ली ,
पर विफल वार्ता के पीछे है रंजिशें।

आन्दोलन खत्म हो कि कहाँ है मंशा?
आन्दोलन के नाम पर होती है हिंसा।
हे भाई! परेशान है अपनी दिल्ली,
शायद आफत आने की है आशंका।

ऐ दिल्ली! जागृत हों अब तुम, 
ना जाने कहाँ पर खोयी है;
पुकार रहे हैं भारतवासी हम,
फिर भी तुम क्यों सोयी है?

खत्म करो अब ड्रामेबाजी, 
दिल्ली को मत अब रोने दो,
सिसक रही ये हमारी दिल्ली,
उसको चैन से सोने दो।


शायद दिल्ली पर खतरा है---!

देखो,शायद दिल्ली पर खतरा है,
हर जगह आन्दोलनकारी पसरा है,
चारों ओर से घिरा हमारी दिल्ली,
कोई नहीं जानता क्या मसला है?

आन्दोलन के नाम पर सजीं दुकानें,
खाली नहीं हैं यहाँ कोई मकानें,
अब तो उब चली हमारी दिल्ली, 
अब क्या करे कोई  सरकारें।

हर वार्ता के पीछे छिपी है साजिशें,
पुरी कैसे हो उनकी सारी  ख्वाइशें,
हर वार्ता के लिए तैयार है दिल्ली ,
पर विफल वार्ता के पीछे है रंजिशें।

आन्दोलन खत्म हो कि कहाँ है मंशा?
आन्दोलन के नाम पर होती है हिंसा।
हे भाई! परेशान है अपनी दिल्ली,
शायद आफत आने की है आशंका।

ऐ दिल्ली! जागृत हों अब तुम, 
ना जाने कहाँ पर खोयी है;
पुकार रहे हैं भारतवासी हम,
फिर भी तुम क्यों सोयी है?

खत्म करो अब ड्रामेबाजी, 
दिल्ली को मत अब रोने दो,
सिसक रही ये हमारी दिल्ली,
उसको चैन से सोने दो।

********

पुरुषार्थ..!

देखो मैं अभी भी पढ़ रहा हूँ ,
नित नये नये रचनाएँ गढ़ रहा हूँ,
राहें हैं कठिन पर्वतों की तरह,
देखो फिर भी मैं उसपर चढ़ रहा हूँ।

हो सकता है कि कोई मिल जाएँगे,
तुम्हें कोई कुछ सहारा देने वाले,
गिरने लगोगे जब तुम कभी जमीं पर,
तैयार मिलेंगे उठाने को ऊपरवाले।

पर तुम्हें सिर्फ खतरा है उन दुष्टों से,
तैयार खड़े हैं तुम्हारे पैर खींचने वाले,
अवगत कराया मैंने तुम्हें उन कष्टों से,
सम्भव हो तो चलो राह में चलने वाले।

माना कि जीवन की राह आसान नहीं,
फिर भी तुम्हें चलना ही होगा, 
परिश्रम करने वालों की होती हार नहीं,
गिरते उठते तुम्हें सम्भलना ही होगा।  

याद रहे परिश्रम का फल मीठा होता है,
पर ईश्वर में भी विश्वास जरूरी है,
भाई परिश्रम भी करो नाम भी लो,
प्रभु का नाम न लेने में क्या मजबूरी है?

याद करो उस दशरथ मांझी को, 
जिसने काट पर्वत रास्ता बनाया था,
झोंका था अपने बाइस वर्षों को,
तब "पर्वत पुरूष" नाम कहलाया था।


********************

"मुझे यह भेजा एक मित्र ने ,
जो रचना कर गया सचित्र ने।"
शीर्षक है "वह पढ़ते-पढ़ते सो गया" ।

वह पढ़ते पढ़ते सो गया..!

देखो किताब में खो गया,
वह पढ़ते-पढ़ते सो गया, 
अब सारी दुनिया जो समझे,
वह तो किताबों का हो गया। 

इसके घर में कुछ प्रकाश नहीं,
इसका घर भी कुछ छोटा है,
इसको किसी से कुछ आश नहीं,
क्योंकि उनका दिल कुछ खोटा है।

मददगार यहाँ कोई नहीं, 
दूनियाँ ऐसों पर हँसतीं हैं,
सरकारी मदद भी कोई नहीं,
इसकी माँ ऐसा कहतीं हैं।

मत टोको इसे कुछ पढ़ने दो,
आगे चलकर कुछ बनने दो,
भाई आदमी है मशीन नहीं ,
थक गया इसे बस सोने दो।

बेरोजगारों की इस दुनियाँ में,
इसका कुछ भी मोल नहीं;
पर मस्त रहो तुम  पढ़ने में, 
कुछ बनो फिर तेरा तोल नहीं।

दर्द भरी इस दुनियाँ में, 
कुछ ऐसे लोग भी होते हैं,
कुछ खो जाते हैं किताबों में,
कुछ लोग जो उनपर हँसते हैं।

पर याद करो उस बालक को,
कुछ ऐसा ही कर दिखलाया था,
गर्व हो रहा है भारत को,
जो विद्यासागर कहलाया  था।

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समाजसेवा भी व्यापार हो गया..!
मैं पढ़ लिख कर बेकार हो गया, 
वो बिना पढ़े ही सरकार हो गया, 
अब वही लोग शासन करते हैं जनाब,
यहाँ तो समाजसेवा भी व्यापार हो गया।

जब समाजसेवा व्यापार हो गया,
तो शोषणकारी ही सरदार हो गया,
अब मिल बैठकर सब खाते हैं जनाब,
इसीलिए तो नेतागिरी भरमार हो गया।

जब नेतागिरी भरमार हो गया, 
तो भाईगिरी संस्कार हो गया, 
अब तो कभी भी किसी को दबा देते हैं जनाब,
क्या करें यहाँ जनमानस लाचार हो गया। 

जब जनमानस लाचार हो गया, 
तो समझो गणतंत्र बेकार हो गया,
बात-बात में आन्दोलन की जाती है जनाब,
आन्दोलन ऐसा कि देश भी शर्मसार हो गया।

अभिव्यक्ति के नाम पर गालियाँ शिष्टाचार हो गया,
विरोध के लिए विरोध करना संस्कार हो गया,
किसी के लिए देश को बदनाम कर रहे हैं जनाब,
यह कैसी संस्कृति व कैसा व्यवहार हो गया..?

*******************

आओ चलें गाँवों की ओर..!
नाचे मन मोर,
जाग्रत हों अब हो चला है भोर,
क्या रख्खा है उमसभरी शहरों में, 
आओ चलें गाँवों की ओर।
गाँवों की ओर
जहाँ इन्सान बसते हैं, 
वहाँ एक दूसरे पर लोग कहाँ हंसते हैं?
वहाँ जहाँ स्वच्छता की तरुणाई है, 
वहाँ वसंत का हो रहा अगुवाई है।
आओ विस्तृत करें भारत के हृदय को,
इन्तजार कर रही जहाँ समृद्धि,
आओ स्पर्श करें किसलय को,
इन्तजाम कर रही जहाँ प्रकृति।
दुर पर्वतों से आच्छादित, 
आ रही सुगंध मलय की,
शहरें तो ऐसे हैं व्यवस्थित,
जहाँ फैली दुर्गंध गटर की।
परन्तु दुख तो तब होता है,
जब कोई गाँवों को ठगता है।
किसानों के वेश में, 
इन्सानों के देश में, 
आ जाते आवेश में,
हैवानियत फैला जाता है।
किसान आन्दोलन के नाम पर,
देश को बदनाम करता है।
लाल किला पर उन्माद फैलाकर,
तिरंगे को अपमान करता है।

*******************


कर दो इजहारे मोहब्बत..! 

इजहारे इश्क जरूरी है, 
छिपे रहने की क्या मजबूरी है..?
कहीं ऐसा न हो कि 
दूर हो जाए वो तुमसे,
उसे बता देना भी जरूरी है। 

कभी कृष्ण ने भी 
राधे से प्यार किया , 
पर प्यार अधूरा ही रह गया। 
एक तुफान उठा वर्षाने में, 
और सबकुछ उसमें बह गया। 

हमारे आराध्य श्रीराम को भी प्रेम था,
उनके सबसे प्रिय थीं सीते,
परन्तु कभी इजहार नहीं किया था, 
इसलिए अंततः अकेले ही रह गए ।

प्रेम तो था लैला को मजनूँ से,
शीरी को फरहाद से,
अनारकली को सलीम से,
पर सभी अकेले रह गए। 

इसीलिये तो कहता हूँ 
इस बात पे अडिग रहता हूँ,
चाहे लोग कुछ भी कहे,
पर अपनी बात सुनाता हूँ। 

कि जब प्यार किया तो डरना क्या?
घुट घुट कर जीना और मरना क्या?
जो भी हो सबकुछ कह भी दो,
नहीं तो प्यार के चक्कर में फँसना क्या?

**********

सब अपने हैं..!
सब अपने हैं जग अपना है,
ईश्वर एक पर रामराज सपना है।
सब अपनी अपनी करते हैं, 
स्वार्थी दुनियाँ में बसते हैं।
स्वार्थपरक इस बड़ी  दुनियाँ में, 
यहाँ सब भाई भाई लड़ते हैं।
अपने तो बस अपने ही हैं, 
उसकी तो कुछ बात करो;
सिसकती है जिन्दगी जिसकी,
उसकी कुछ सुहानी रात करो। 
सभी फँसे अपने ही जाल में,
किसको कौन निकालेगा?
मैं तो कहूँ छोड़ो सब ऊपरवाले पर,
सबकुछ वही संभालेगा। 
फिर भी लोग कहाँ सुधरते, 
अपनी मनमानी करते हैं;
जब डंडा चलता है उनका,
तब राम राम सब जपते हैं। 

********************

अभिव्यक्ति की आजादी..!
संविधान ने दी है कैसी
आजादी अभिव्यक्ति की,
तौहीन कर रहे हैं सीधे
अपनी भारतीय संस्कृति की।
बात करूँ मैं जनमानस के 
बदले हुए प्रकृति की,
भाई भाई में फूट पड़े हैं
बात करूँ मैं उनके विरक्ति की।
अभिव्यक्ति के नाम पर
प्रधानमंत्री को दी जाती है गालियाँ,
खुब मजे लेकर देते हैं
सब मिलकर यहाँ  तालियाँ।
गणतंत्र शर्मसार हो गया
फिर भी खुश हैं लोग यहाँ,
लाल किला अपमानित कर 
कसते हैं सब फब्तियाँ।
साम्प्रदायिकता का जहर घोलकर 
अपनों में ही विवाद किया,
वोट बैंक की राजनीति में 
जातिगत विषाद दिया। 
सत्ता लोलुपता में कुछ लोगों ने 
कृषकों को बदनाम किया,
विदेशी ताकतों से मिलकर 
उनकी इज्जत सरेआम किया।
अब भी क्या बदला है देखो
चुने हुए का मत उपहास करें ,
देखो भारत फिर से संभला है
आओ सब मिलकर विकास करें।
एक रहे थे एक रहेंगे
अखंड भारत को आकार करें,
एक बने हम नेक बनें हम
रामराज के सपनों को साकार करें।

भारत माता की जय !

( Click on the link below to read the composition, Satire or article collection written by the writer / creator / Satirist Subodh Kumar Jha "JHARKHANDI" )

https://sahibganjtoday.blogspot.com/2020/05/blog-post.html

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