28 जून 2021

रचना :- सपना चंद्रा..!

हार कहां हमने मानी है..!

तमस हरा दिवाकर आया
बालमन कुछ खोया खोया
नीले अंबर पर यह कौन
मचल गया देख कर मन
नारंगी आभा बिखरी देखो
मेरा कंदुक निकला देखो
आ जाओ रवि धरा पर अब
संग खेलो हम बच्चों के अब
दिनकर तो हंस रहा था
बच्चों से कुछ कह रहा था
समझ न पाया क्या कहा था
थका बेचारा चुप निहारा
कैसा बंधु है दिनकर प्यारा
मस्तानी टोली फिर बच्चों की
आई खेलने खेल कंदुक की
बच्चें अपनी धुन में मगन
उधर दिनकर खुश हुआ था
हार कहां हमने मानी है
खेल हमारी अब ठनी है।


लघुकथा :- सफेद रंग..!

फिर से वही रंग प्रतीक..रानी रंग...!!!
तुम पर ये रानी रंग बहुत खिलता है प्रिया..!
मेरी बाडरोब मे ये रंग पहले से ही है.!
तो क्या हुआ .?
जब इन साड़ियों को पहनती हो तो मै तुम्हें एकटक निहारना चाहता हूं .!
हमेशा तुम्हें रंगों से घिरे रखना चाहता हूं...!
मुझे तो सफेद रंग भी पसंद है प्रतीक.!
एक भी कपड़े नही है सफेद रंग के..!
मै पसंद नही करता...!
पर हां मेरे प्यार का रंग सफेद है..!
क्या उसमें कोई मिलावट चलेगी..?
बिल्कुल नहीं..!
चलो बहुत हुआ, कल की पूजा की तैयारी करनी है सो जाओ...!
दूसरे दिन मंदिर की सीढ़ी से पुजा कर वापसी के समय प्रतीक फिसल जाता है,उसे काफी चोट लगती है और वह वहीं प्राण त्याग देता है...!
प्रिया उसे झिझोड़़ती है ,हमेशा तुम्हारी पसंद का ही मैने पहना है फिर तुम कैसे  जा सकते हो...?

लघुकथा :- कमजोरी..!
रमा अपने बेटे राजन को बचपन से देख रही थी, अगर वह चार आदमी के बीच पड़ जाए तो वह परेशान हो उठता...पढ़ाई-लिखाई मे अब्बल रहने वाला अब अगर इसी तरह से रहा तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी...अब तक तो वह हमेशा उसके साथ रहकर मानसिक तौर पर मजबुत रखती थी..अब जब उसकी बैंक की नौकरी पक्की हो गई है ,उससे पहले इंटरव्यू फेस करना है कैसे हो पायगा...!
इसी दुविधा मे सारी रात कट गई..मै हमेशा तो साथ नही रह सकती न ,मेरी ही गलती थी जो उसे भंवर मे तैरना नही छोड़ा ,मां की ममता कमजोरी बन गई उसकी..पर अब नही ,कुछ तो करना पड़ेगा यू पल्लु पकड़ जीवन की नैया पार नही कर पाएगा...अपने आप से बात करती वह एकदम से उठ खड़ी हुई..!
वह राजन के कमरे में गई ,उसके मासुम से चेहरे को देख उसके सिर को सहलाते हुए आंखे भर आई ,फिर झटके से वह बाहर आ गई..!
इंटरव्यू वाले दिन साथ जाने से सीधा इंकार करते हुए बोली...अपना रास्ता तुम्हें ख़ुद बनाना होगा, चाहो तो घर बैठ जाओ, हार मान लो...!
बिना मेरे अबकी अब्बल होकर दिखाओ तो हम जाने....!
राजन एकटक अपनी मां को देखता रहा फिर वह तेज कदमों से यह कहकर बाहर निकल गया, काश मुझे आपने पहले ये कहा होता...आप ने मेरे डर को निकाल दिया‌ है.....!


चढ़ावा :- लघुकथा..!

मोनू, जाओ मंदिर के बाहर बताशे या लड्डु जो मिले ले लेना, पर ज्यादा मत लेना ..दस रुपये में जितने आए ले लेना..!
मां दस रुपये के ..????
ज्यादा ले लो यहां कुछ मांगने वाले भी बैठे है उन्हें दे देंगें..आखिर वे लोग तो इसी मंदिर पर आश्रित है..!
नही ज्यादा दिमाग मत खाओ, जितना बोला है उतना ले आओ..!
ठीक है पर....!!
चलो अंदर आओ, भगवान के सामने अपनी अनेको मन्नत मांगती मां को देखकर मोनू हैरान हो गया..!
क्या दस रुपये के प्रसाद में भगवान इतनी मांगे पूरी कर देंगें..?
अगर ऐसा होता तो यहां क्रम से हाथ फैलाते लोगों को मांगने की जरुरत क्या थी..!
ईश्वर से भी सौदेबाजी ..????
चढ़ावा कितना हो ...??


******************

लघुकथा :- चीटिंग..!

अरे वाह..! सफाई से चीटिंग करते तो आज पहली बार देखा है...
ये चीटिंग नही है होशियारी है ...जो मुझे बचपन की याद दिलाती है...!
कैसे मां हमें खाना खिलाने या कड़वी दवा पिलाने के लिए ये युक्ति आजमाती थी....!.
मै भी तो वही कर रहा हूं..!
हमेशा दर्द की दवा मांगती है जो किडनी के लिए ठीक नही है..!
उम्र बढ़ने से जोड़ो का दर्द परेशान करता ही है....!
डॉक्टर ने ज्यादा दवा देने के लिए मना किया है..!
मां मुंह खोल ये रही दवाई और ये थोड़ी देर बाद पीने की दवा ..!
बस थोड़ी देर मे आराम मिल जाएगा..!
तुमने क्या दिया मां को...??
कैल्सियम की गोली और कफ सिरफ....!

चापलूसी..!

दफ्तर में महेश का आज पहला दिन था,बड़े साहब से मिलकर उनके पांव छुकर अपने कार्यस्थल पर आकर बैठ गया,कुछ देर के बाद चपरासी कई फाईलों की बंडल उसके सामने रख दी.. इतनी फाईले वो भी पहले दिन...बगल के अपने सहायक से इस बारे मे पुछने पर पता चला ...यहां सेटिंग की व्यवस्था है नही तो इसी तरह बंड़लो का पहाड़ मिलता रहेगा..मतलब...वो क्या है?
धीरे धीरे सब समझ जाओगे ..कल से साहब के लिए कुछ खर्चे का इंतजाम कर लो फिर बल्ले बल्ले है...कैसा इंतजाम...कुछ तोहफा दे देना और वो तुम्हारी टेबल से होकर जो भी फाईलें जाएगी चुपचाप साईन करके आगे कर देना..पर ये तो गलत है न ,किसी भी फाईल को बिना देखे पढ़े पास कर देना ,बच्चु ये इमानदारी का कीड़ा मार डालो वरना इमानदारी तुम पर उल्टा धब्बा बन कर चमकेगी..फाईलों में केश के साथ कैश होते है जो हमें  बस कायदे से टेबुल टू टेबुल बढ़ाने है पूरी इमानदारी के साथ..ये तो चापलूसी हुई अपने जमीर को मारकर..!

****************

ताजमहल... महसुस जो किया..! 

मुहब्बत की निशानी भले जग कहता
तड़पती रुह की कहानी कौन कहता
फलक से ही चमकता ये निशां कहता
चांद की रौशनी में क्यूं यहां कोई रोता
तारीख गवाह है कुछ किस्से पोशिदा थे
औरत के हक के हिस्से ही जुदा थे
मुहब्बत के लिए एक नजर थे काफी
इश्क की होड़ को विरासत न कहता
कोई शक नही है सच गर ऐसा‌ होता
ताज के दीदार को दिल बारबार कहता
ताज में जड़ा हर एक कीमती मरमर
इतनी साफगोई से तराशा क्यूं होता
कभी पास जाकर बैठना कब्र के पास
घुटन की बेचैनी साफ साफ कहेगी
किसी कोने उस रुह की सिसकी मिलेगी
जो दफ़्न है जड़ाऊ नगीनों से घिरकर
उस रुह को कभी न आजादी मिलेगी।


***************

लघुकथा :- बहाली..!

"नेक्सट प्लीज"...
आइए, आपका स्वागत है..
अभिवादन के पश्चात, शुक्रिया महोदय..!
आप अपना परिचय दें और क्यों आप ये नौकरी करना चाहती हैं..?
आपको पता है ये किस ग्रेड की है
जी सर,चतुर्थ ग्रेड..!
आप ने अपने परिचय मे जो भी बताया और आपके ये डाक्यूमेंट्स आपके वेल क्वालीफाइड होने की गवाह है..!
आप कैसे इस पद के योग्य हो सकती है..?
सर लेकिन ये आवेदन पत्र में कहीं उल्लेख नही था कि उच्च शिक्षा वाले इस पद के योग्य नही है..!
आपका कहना सही है पर मै थोड़ा व्यक्तिगत रुप से जानना चाहता हूं आपने क्यों आवेदन दिया है..!
वो सर ,शिक्षा तो किसी भी स्तर से पाई जा सकती है, पर सरकारी नौकरी की बहाली के लिए आज ये स्तर भी काफी मंहगी है,कम से कम हम पढ़े लिखे लोग इस खांचे मे तो फिट हो ही सकते है..!

*********

अक्षरज्ञान..!

पड़ोस की हमारी पहली शाला
अक्षरज्ञान पाने को पाठशाला
दीदीमुनि की हाथ डंडे को देख 
हमारी सारे शरीर रक्त गई सुख
दूर दूर ही रहकर उनकी बातें सुनती
पास जाने की कभी हिम्मत न होती
एक दिन नजर मे उनके मै आई
बड़े प्यार से मुझे अपने पास बुलाई
जो जो पुछा सब धड़ल्ले से बताई
खुश होकर मेरे गाल चपत मै पाई
दीदी मुनि तो बहुत ही अच्छी
क्यों बेकार मे मै डर डर कर रहती
मेरे उनके बीच पनपा कोमल सा प्रीत
कक्षा पुरी कर अरसे मिली थी मीत
संयोग ऐसा नाम भी एक ही हमारा
गुरु छात्र का बना संबंध अनोखा
चरण छुकर मैने आर्शीवाद खुब पाया
डंडे की कहानी सुन ठहाके जो आया
पहली कदम पाठशाला की मेरी
मधुर स्मृति बन सदा मन मे रहती
जय जय गान करूं अक्षर अक्षर की
आज पहचान मिली मंच पाकर ही।

******

हाइकु..!

हसीन शाम
मुमताज के नाम
देखे अवाम

यमुना तीरे
आभा धवल रुप
प्रेम महल

मूक संवाद
अपलक निहार
उर वेहाल

हंसती आंखे
बंद पड़े अधर
नैन मुखर

******************************

कैसी बुनाई की तकदीर ने मेरी
सिलते सिलते उघड़ ही गये हम

आदी बनाकर बदल ली राहें
चलते चलते बिखर ही गये हम

दिल में थी छोटी सी ख्वाहिश
देखते देखते किधर ही गये हम

तुरपन की कोशिश करने बैठे
बुनते बुनते उलझ ही गये हम

अपनेपन ने क्यूं हर बार डराया
बसते बसते उजड़ ही गये हम

झुक कर सबसे निभाना चाहा
जीतते जीतते हार ही गये हम


*******************************

कैसी वबा चली है की लोग तरसते काधें को
अपनों से बिछड़ फिर देख न पाए अपनों को।

सामने अपने देख रहे ,हम उजड़ते मंजर को
हम मसोस कर रह गये लगते दर्द के खंजर को।

चेहरे के उपर चेहरा रखते मौके की ताक‌ को
पैरहन तहजी़ब का पहना खुली तस्वीर को।

जब नजरें ही फेर ली क्या बतांए अपनी पीर को
कोई कितना समझे पीड़ा देखे आंखो की नीर को।

खुले आसमान के बीच देखा कुछ टहलती लाशों को 
मुक्ति की खातिर रिश्वत देते जल्दी अपनी बारी को।

कितनी चादर चांदी वाली यहां चढ़ती ईश को
बेचारा ठिठुर कर मर गया गर्माहट की चीर को।

******************

खुदा न देखा कोई यहां 
दर दर भटके खोज मे
मेरी खातिर मां ही मेरी,
मस्ज़िद और शिवाला है
ममता की मुरत न देखा 
दूजा कोई ऐसी सुरत है
क्यों किसी खुदा की खोज करे 
पास सबकी ममता की मुरत है। 

**********************

लघुकथा :- आ अब लौट चलें..!
सोहम हम कितने वेबस है ,अपनी आंखो के सामने लोगो को मरता देख शालिनी फूट फूट कर रोने लगी...क्या फायदा हमारी पढ़ाई का...आज ही छ: लोग पहली शिफ्ट की डयूटी मे....क्या करें पहले हम इतने लाचार कभी नही थे...रोज हम मरते हुए को देखे जा रहे है बस देखे जा रहे है...शहरों की ये हालत है तो सोचो गांवो मे कैसे हालात होंगे...कही से भी हमे उम्मीद नजर नही आ रही...
तभी फोन की घंटी बजने पर और दूसरी ओर की खबर ने पैर से जमीन खिसका दी.... ओह नो...ये क्या हो गया...दादाजी की ऑक्सीजन लेवल गिर रही है..और इतनी दूर है हमदोनो...कैसे उनकी मदद हम कर पाएंगे ये सोचकर सोहम दीवार पर अपने मुक्के मारता हुआ रो पड़ा... अपने जान पहचान के कई लोगों को फोन किया पर कही भी सिलेंडर उपलब्ध नही थे ,किसी तरह कई घंटे की कोशिश और छटपटाहट सिलेंडर उपलब्ध हुई पर इलाज होने मे बहुत देर हो चुकी थी ...दादाजी तक पहुंचने से पहले ही गांव के डॉक्टर साहब ने "नो मोर " कह दिया...सोहम अपने दादाजी का लाडला था दादाजी ने महानगर में प्रैक्टिस न करके यही पास के शहर या अपने गांव मे ही अपनी सेवा देने की इच्छा जाहिर की थी..पर जीवन की ऊंची उड़ान के लिए पंख फड़फड़ाते सपनों और दादाजी की बात मे से सपने आगे निकल गए... अब सोहम बहुत पछतावे लिए मन ही मन अपने को कोस रहा था...कोई कमी तो नही थी हमे...अस्पताल वहीं खोलने की बात बार बार याद दिला रही थी ..हम वहां होते तो दादाजी यूं नही जाते मै ही उनका गुनहगार हूं...पर अब और नहीं हमें अब यहां नही अपने घर लौटना है ताकि कोई और मेरे गांव के अपने इलाज के अभाव मे न गुजर जाए...चलो शालिनी अब हम लौट चले अपनों के पास....

****************************

हर तरफ चल रही सांसो का सिर्फ यहां व्यापार है
बाजारों के आगे ही लगा लाशों का यहां अंबार है।

मरने वाला भी तंग आकर कहा कैसा तेरा व्यापार है
गिद्धो की नही जरुरत क्या सच में जिंदा ये संसार है।

शमशानों मे खुशी के मारे सोचे, हर हर गंगे अबकी बार है
मांगने पर भी न दिया कभी तो छप्पर फाड़ इस बार है।

दवा ,हवा के दावों का, देख कर, हम करते कितना इंतजार है
अपने अपनों को लेकर फिरते मारे मारे,वे कितने लाचार है

व्यवस्था के आगे घुटने टेक चुका सारा तंत्र लाचार है
प्रजातंत्र में जनता ही जाने कौन किसका गुनेहगार है।

खादी कुर्ते और सादी टोपी का ही करना हमे आभार है
सारे के सारे पुण्य कर्मो का तो इन्ही पर दारोमदार है।

कुछ करिश्में की आश लिए प्रभु हाथ जोड़े हम हर बार है
जिंदा होकर भी हम कहां जीवित रहते, 
मरते यहां बांरबार है।

*******************

कैसी महामारी आन पड़ी है
भीषण आपदा सी जान पड़ी है
भागती दौड़ती बदहवास जिंदगी
बिन अपनों के कटे कैसी जिंदगी
हर ओर सिर्फ मौत का है तांडव
महामारी रुप मे आया ऐसा दानव
अपने प्रचंड रुप मे फैली हर ओर
घर घर विपदा धैर्य खोता मानव
मनोबल से अपने हार रहा है
हमे हर हाल करना‌ है मुकाबला
डरकर इससे दूर नही है भागना
धर कर धैर्य हर हाल है लड़ना
फिर छोड़ हमे जाएगा कोरोना
जिंदगी जीना चलना शूलों पर
फिर होगी हर कदम फूलों पर
हर बार जंग से जीतती है जिंदगी
धैर्य उत्साह और साहस से बदलती है जिंदगीं।

*********************

किसकी यकीन पर अब कौन खरा उतरे
क्यों जहमत उठानी यहां कौन पार उतरे।

सियासी हवाओं की चली चाल बड़े गहरे
किसे पड़ी है किसके कितने जख्म गहरे।

रोटी कपड़ा मकान की अब मुद्दे क्या करें
अपनी सबकी ढपली है तो राग क्या करे।

लांघ दिया घर आंगन उसकी फिक्र कौन करे
बदलने वाले अपने ही थे शिकायत क्या करे।

रार ठनी है आपस मे भाई भाई क्या करे
दौलत की भूख में बेचारी रोटी क्या करे।

यकीन की जमीन अब हुई बंजर ज्जबात क्या करे
खेतों में उसुल पैदा होते ही नही
फसल क्या करे।

बेटों ने बरगद बांट दिया यहां जरुरत क्या करे
शीतल घनी छाया मिलती नही,दरख्त क्या करे

गुनाहों की जब मार पड़ी जिक्र क्या करे
अति अंत मे बदलती है समय क्या करे।

****************************

तोहफा उम्र भर का दिया ये सजा जैसे
मिला जो दर्द मुझे हो गया अब दवा जैसे।

ठोकरें खाने की चली कोई हवा जैसे
वक्त के हाथों ही फिर सब लुटा जैसे।

लौटती है बहारें ,भरोषा था किया जैसे
जिंदगी एक बार फिर दे गई दगा जैसे।

दिल में हमारे अब न रहे कोई गम जैसे
मिलो तो ऐसे हमदम हो र्सिफ मेरे जैसे।

सुलग रही आस धीमे से बूझी राख जैसे
रहता है वो मिरा मुझमे ऐसी दुआ जैसे।

अब तो आईने भी आजकल रहे डरा जैसे
सारे गुनाहों के हम ही है जिम्मेवार अब जैसे।

********

वही थे जहां से चले कभी हम
कर तो देते हमे इशारा कसम से।

पल भर की जुदाई न गवारा हमे
कैसे हो  फिर गुजारा कसम से।

किसे कहूं अपना किसे पराया
छोडूं सब पीछे विसारा कसम से।

कभी तुमको देखूं कभी तो पढूं
यही था राब्ता हमारा कसम से।

पसंद नही पैहम मिलना मिलाना
अच्छा किया तुमने किनारा कसम से।

******************************

"मां"

आंचल मां का फलक ममतामयी हो जैसे
कांधा मां का पालना एहसास न दूजा ऐसा देता
लिपटी भाव विहल दुलारे हरदम कितनी मां
अपने कामों मे चाहे कितनी व्यस्त रहती क्यो न  मां
सबका ध्यान बड़े जतन से कैसे तू रखती मां
अनुपम प्यार और अनुराग हरदम दिखाती मां
कभी डांटती कभी पुचकारती मेरी मां
मां की गोद स्वर्ग सा सुंदर एहसास कराती मां
तुझसे बढ़कर फिर कोई दुजा न होगी मां
ईश्वर का उपहार है हर मानव को रुप मे मां
तेरे आलिंगन मे सब दुख का हल है मेरी मां
थक हार जब तुझसे लिपट कर रोऊं मां
हाथ जब मेरे सर पर फेरे सब भूल ही जाऊं मां।


***********************

बड़ी भयावह ये हवा की लहर है
जाने कैसा ये बिषाणु का कहर है

शफ़ीखाने में है खडी कतार जिंदगी
कब किसका साथ छोड़ जाए जिंदगी

घबड़ाहट भी बढ़ने लगी है अब इस कदर
किसकी शामत भारी आती मौत जिस कदर

इस तबाही के बड़े भयावह मंजर है
हर गरीब के पेट पर खड़ा खंजर है

बेलगाम ख्वाहिशें ही जब खुदा हो रही
इंसानियत इंसा से कितनी जुदा हो रही

हुकूमत भी थोप चला गुनाह है कुदरत का
अपनी जुनून मे भूला सब चिंता सिर्फ सत्ता का

इस जंग में कौन बच कर रह सकता है देखना कितना
उसकी जीत होगी पक्की जितनी रोधक क्षमता जितना।

**************

लघुकथा :- कुची..!
लो मांजी, मै सारे बर्तन ले आयी ,जो जो आपने कही थी... ये देखो टोकरी मे है सब..!
अपने बाबू भैया की शादी है ,चुन चुन कर लायी हूं,कोई कम है तो आप बताओ मै लेते आऊंगी..!
"अरे मालती!,ये क्या सारे के सारे बर्तन बिल्कुल ही मुझे पसंद नही आयी..!
पर क्यों मांजी ,अम्मा ने तो मुझे जो जो कहा वो मै ले आयी...!
"इसमे क्या दिक्कत है आप बताइए न..!"
मालती रुआंसी हो उठी...अच्छा ठीक है मै अम्मा को भेजती हूं..!
"अरे अरे!,रूक ,बैठ बताती हूं इसमे क्या दिक्कत है..!
बर्तन तो पूरे है,पर तुम्हें इसमे कोई कमी नही दिख रही है..!
कमी......!!!
सुना है तू कुची बहुत चलाती है अपने घर आंगन को भी बहुत सुंदर सजायी हो..!
अब बता जिसके भाई की शादी हो और बहन इतनी अच्छी कलाकार हो ...ये सादे सादे बर्तन कैसे लगेंगे..!
अरे हां, वो तो है....
सच मांजी मै भी न एकदम  मूरख हूं भैया की शादी है और यूं ही ले आयी..!
मै अभी सब ले जाती हूं अभी से ही इस पर ऐसी सुंदर सुंदर चित्र बनाएंगी कि लोग देखते रह जाएंगे..!
पर हां ,बहन वाले सारे अधिकार मै ही निभाऊंगी..!!!!!!

****************

लघुकथा :- गिरफ़्त..!

तूम जाना चाहो तो जा सकती हो ...
कितनी आसानी से ये सब कह गये हो...
अपने आप से बात करती हेमा निढाल सी हो गई थी..
सुबह सुबह किसी बात पर झड़प हो गई थी अंकूल के साथ ,पर इसी बात को राई से पहाड़ बना देगा क्या पता था..
हेमा ने भी तंग आकर कह दिया था ,मन करता है कहीं चली जाऊं..
बस इसी बात का जवाब मिला था ...
एक मन हुआ कही चली ही जाऊं क्या मै अपना ख्याल नही रख सकती?
मेरे पास उतनी योग्यता तो है ही???
आज मै भी किसी अच्छे पद पर होती पर अंकूल ने मना कर दिया था ,क्यों नौकरी करनी है तुम्हें ..!
इतना तो मै कर ले रहा हूं जिससे एक अच्छी जीवन यात्रा चल सकती है..!
उस वक्त से कुछ समय तो ठीक चल रहा था परंतू अब क्या हो गया है हर बार किसी न किसी बात पर उलझना..!
हमेशा से ही शांतचित वाली हेमा इन सबसे हमेशा बचना चाहती पर हो नही पा रहा था..!
कैसे तालमेल बिठाए समझ नही आ रहा था..!
आज उसे चूभ ही गई थी अंकूल की बात..!
अपने कुछ कपड़े और जरुरत के सामान  रखकर बैग तैयार कर लिए थे..!
बस खाना बना दूं शाम का नाश्ता भी तैयार कर देती हूं....
आते ही चाय और नाश्ता चाहिए होता है साहब को....!
इतना सब करते करते शाम हो ही आई थी..
बस अंकूल के आने का इंतजार कर रही थी ,घर की चाभी भी तो देनी थी..!
अंकूल के आते ही बालकनी मे चाभी, चाय और नाश्ता लगा कर अपना बैग लेकर कमरे से बाहर आ गई..!
घर के मेनगेट को खोलकर अपना पांव उतरती सीढ़ी पर रखने ही वाली थी कि उसने अपना पांव वापस कर लिया..!
क्या इतना आसान है औरतों के लिए अपने फैसले लेना....?
हेमा सोचने लगी क्या होगा जब लोग सवाल करेंगे ,क्या बताएगी वह...!
उन लोगों का क्या जिससे मै जुड़ी हूं मायका ससुराल सब सवाली हो जाएंगे..!
पर मै कैसे रह सकती हूं जहां मेरी जरूरत ही नही..!
कई सवालों ने हेमा को गिरफ्त मे ले लिया था,क्या करे क्या न करे..!
अपने वजूद को काफी हल्का महसूस कर रही थी..!
बार बार अपने सवालों से परेशान होकर अपने कमरे मे आकर काफी देर तक रोती रही..!
अचानक से अंकूल के स्पर्श से हड़बड़ा कर उठ गई...
ये क्या करने जा रही थी तूम ...?
घर छोड़ कर जा रही थी...?
गिरफ्त इतनी कमजोर नही है...
तूम कभी नही जा सकती ,क्योंकि ये रिहाई इतनी आसान नही है......पगली!
हेमा के आंसू को पोछते हुए उसने कहा...
नोकं झोंक तो जरुरी है तभी तो हमे पता चलता है एक दूसरे की अहमियत..!
देखो मैने न चाय पी है न नाश्ता किया..
साथ में रखी चाभी मूझे कुछ एहसास करा गई थी..!
क्या???..आपने कुछ भी नही लिया..?
नही!!अब साथ ही हम बैठ कर चाय पियेंगे ..!
अब हेमा को किसी बात का मलाल हो रहा था और सूकून भी...! 

********************

चित्र आधारित :- मातृत्व..!
विवाह के दस वर्ष बीत जाने के बाद भी शीला मां नही बन पाई थी..आए दिन आसपड़ोस की औरतों के संग सासू मां का रोना चालू रहता था...कभी बंजर कभी बांझ कह कह कर उलाहने दिया करती।वो तो हरीश का साथ था जो वह सब सहन कर रही थी..हरीश उसे हमेशा प्यार से समझाता,क्यूं मां की बातों को मन मे लेती हो अनसूना कर दिया करो न..!करती हूं बहुत करती हूं पर सारा दिन कैसे....!
ऐसा तो नही है कि मै मां नही बनी ,दो दो बार अगर मेरा मिसकैरेज हो गया तो मेरी क्या गलती ...मै बंजर नही हूं...इतना कहते ही फूट फूट रोने लगी ..!
जानता हूं, पर मै तो नही कहता न कुछ ..!
कुछ दिन के पश्चात वो लोग कही देवी दर्शन को जा रहे थे ...रास्ते मे गाड़ी की हवा निकल आई..
अरे ये तो कील चुभ गई है कुछ देर रुकना होगा..तभी दूर झाडियों से किसी छोटे बच्चे के रोने की आवाज से सभी चौंक पड़े..!
चलो देखते है ...!
झाडियों मे कपड़े से लिपटी एक नन्ही सी जान थी जो बहुत भूखी भी थी और चीटीयों ने काट खाया था ..!
शीला ने उसके शरीर को साफ कपड़ो से पोछकर अपने सीने से लगा लिया जैसे ममता फूट पड़ी हो..!
हरीश की मां ने उन्हें रोका ..क्या करने जा रहे हो ..कौन जाने किस जात का रक्त बह रहा हो उसकी रगो मे ..!
तभी हरीश ने अपनी मां को डांटा ,हमारी रगो में क्या अलग रंग बहता है .?
अब आगे आप कुछ न कहना,जो होगा मै देख लूंगा ..!
शीला वापस घर जाना चाहती थी ...चलो वापस चलो जल्दी से इसे डॅाक्टर के पास ले जाना है,देखो पूरे शरीर पर लाल चकते हो गए है..!
हरीश शीला के ममत्व रुप देख कर बस अपलक देखता रहा..!चलो हरीश..!
हां!हां.! चलो चलो,अस्पताल पहुंचने तक वह बच्चे को निहारती जा रही थी और उसकी आंखे कोर भिगों रही थी..!
देवी मां ने मुझे ये दिया है अगले वर्ष दर्शन करने जरुर जाऊंगी..!

*****************

लघुकथा :- आमदनी..!

मनु,कुंती और वेला आपस में पड़ोसन थी..!
"वेला!", क्या हुआ आज कुछ बोल नही रही ,कोई बात है क्या?
हां क्या बताऊं ,घर की हालात बहुत खराब हो रहे है,पहले तो हम लोग भी कुछ काम कर लेते थे तो कुछ पैसे हाथ मे रहते थे..!
जबसे मुन्ना के बापू बिमार हुए है माली हालात खस्ता हो गई है हमे भी तो कोई काम नही है इन दिनो..!
बात तो सही है कुछ मिली जूली हालात हमारे भी वैसे ही है मनु ने कुंती की तरफ देख कर कहा...
आजकल सुनने मे आया है कि अब कागजों के थैले ही इस्तेमाल किए जाएंगे.!
हां सुना तो है...!
तो क्यों न हम भी घर पर ही थैले बनाने वाली कागज बनाए..!
अपने यहां धान की भूसी और जो भी जरुरत होगी हम सब मिल कर जमा कर लेंगें और अपनी सखी ओखली तो है ही ..!
अरे वाह युक्ति तो अच्छी है,तो फिर हम आज से ही अपने काम पर लग जाते है..!
इससे हमारी आमदनी भी होगी और समय का सदुपयोग भी..!
हां हां चलो अब देर बिल्कूल नही ...!


************

खत का जवाब..!

प्रिय मोहित,
                 आज ही तुम्हारा खत मिला, तुमने बताया है कि हमारी पहली होली है और तुम हमारे साथ नही होगे..!
बार्डर पर तुम्हारी डयूटी लगी है और तुम्हें छुट्टी नही मिल सकती है..!
                 अब मै तुम्हारी पत्नी हूं और हमतुम एक दुसरे के हर सुख दुख के साथी है,तूम देश सेवा के लिए अपने परिवार से दूर हो..! हमने अपनी शादी में सात वचन जो लिए थे उसे हमेशा निभाना है और मुझे तो ये पता था कि तूम एक सैनिक हो और देश सेवा हमेशा तुम्हारी प्राथमिकता रहेगी..ये सारी बातों से मै पहले से अवगत हूं..!
                 ये सही है हमारी शादी के बाद पहली बार होली है और हम शारीरिक रुप से साथ नही है पर तुम तो हमेशा मेरे साथ हो...अन्य पति पत्नी की तरह हम नही रह सकते परंतु किसी सैनिक की पत्नी कहलाना भी तो बहुत र्गव की बात है..!
                 तुम यहां की चिंता बिलकुल नही करना ,अब मां बाबूजी रमा और किंजल की देखभाल मेरे जिम्मे है ,और हां जब भी तुम अपनी छुट्टी पर आओगे हमारी होली उसी दिन हो जाएगी..

तुम्हारी प्रतिक्षा में
तुम्हारी रमा...

***************

अब तो कौन दिवस मनाना और बनाना बाकी रह गया है..? 
ये सोचना है, कहीं कुछ छूट न जाए..!
यहां भूखों की थाली भरने से ज्यादा इलाइची दाने और बताशे चढा़ना ज्यादा जरुरी है, जहां सिर्फ मक्खियां भिन्नाती है। 
"अब तो दिवस ही दिवस है"
आज बापू होते तो,
पहला सवाल 
किस बंदर को ज्यादा नचाया..? 
दूसरा सवाल
बंदर ही क्यों चुना आपने..??
तीसरा सवाल
बंदर तीन ही क्यों..???

*******

भरोसा..!
"मांगन अपने दोनो बेटियों की शादी कर उसे विदा कर रहा था..!"
"बापू हम लोग कहां जा रहे है..?"
"अब तुमदोनो अपने ससुराल जा रही हो,वही अबसे तुम्हारा घर होगा..!"
"पर हमें नही जाना बापू,मेरी सारी सखियां मेरा इंतजार करेगी..!"
"हमलोग अपने गुड्डे गुडि़या की शादी करेंगें जिसकी तैयारी करनी है..!"
"अरे," अच्छा ये तुम्हारे पास ही तो थी,अपनी गुडियां की तो शादी हो गई न, अब ससुराल जाना होगा इसे..!"
"है न", देख दुल्हे राजा इंतजार कर रहे है..!
"गुडिया अकेले कैसे रहेगी,तुम्हें तो जाना होगा..!"
"हां हां बापू!,शादी तो हो गई मेरी गुडिया की,पर दुल्हा तो बहुत बूढ़ा है..!"
"जा जा बैठ जल्दी नही तो वे नाराज हो जाएंगें..!"
"अपनी गुड़िया को साथ लेकर जाते जाते अपने पिता को देखती हूई न जाने  क्या सोच रही थी..!"
"गाड़ी में बिठा कर मांगन रुपया गिन गिन खुश हो रहा था..!"


लघुकथा :- किश्त..!
"लता!", पिताजी को मैं ले आया हूं,उन्हें नाश्ता पानी करवाकर वो बात कर लेना..!"
मै अब आफिस जा रहा हूं ,शाम को देर से लौटूंगा..!
"मुझे बता देना ,बातचीत का क्या नतीजा रहा..!"
"पापा!", अपना ध्यान नही रखते देखिए तो कपड़ो मे वो चमक भी नही है..!
आपके कपड़े भी अब खास से आम हो गये..!
अरे नही नही बेटा!,क्या बात है बता ?
"तुम्हे कुछ चाहिए होता है तभी इतनी बारीक़ी से मेरे कपड़ो के लिए कहती है..!"
"नही नही पापा!,कुछ भी तो नही चाहिए  ,सब कुछ तो दे दिया आपने शादी में..!"
"सच कह रही हो न,सब ठीक है न बेटा?"
"हां हां पापा!,आप आराम करें सफर में थक गये होंगे..!"
लता अपने पति के काॅल से परेशान हो रही थी,क्योंकि वह पिता के थके चेहरे को देख कुछ कह नही पाई..!
शाम में ...
लता!,हां, पिताजी से बात हुई..?
"कुछ पुछ रहा हूं बोलती क्यों नही...?
जी नही,पिताजी खुद ही परेशान है उन्हे कैसे बतांऊ..!
"तुमसे एक काम नही हो पाया ,मै ही बात कर लेता हूं..!"
लता ने पैर पकड़ लिए ,भगवान के लिए ऐसा मत किजिए.!
"छोड़ो!",झल्लाते हुए रमेश ने लता को एक तरफ कर दिया.
"दो साल की ही तो बात थी एफडी पर मिलने वाले ब्याज को हमे दे सकते है..!"
"अब उन्हे क्या करना है पेंशन की रकम काफी नही है..?"
"इतना कुछ तो पापा ने दिया है ,ब्याज वाली रकम से अपनी लोन की किश्त चूका रहे है हमे कैसे दे सकते है..!"
"हमारी किश्त का क्या..?"
"आपकी किश्त??"
"मै जो फ्लैट ले रहा हूं क्या तूम उसमें नही रहोगी...?"
क्या!"??? ??
"सही सुन रही हो मैडम!" आपको अपने लिए तो किश्त चूकानी पड़ेगी..!
दूसरे कमरे में आराम हराम हो गई थी..!

*********************

भूखी कौर..!
"विवाह सदन के पास खड़ा बच्चा उस कैटरिंग वाले से कुछ खाने को मांग रहा था..!"
"कैटरिंग वाले ने उसे डांट कर भगाना चाहा,परंतू भूख की आग ने उसे जड़ कर दिया..!"
"वह वही थोड़ी देर हट कर खड़ा रहा शायद कुछ खाने को मिल ही जाए,उसे अपनी छोटी बहन की रोने की आवाज परेशान कर रही थी जिसे वह वहीं पास में बिठा रखा था..!"
"कभी बहन को चुप कराता कभी हाथ फैला कर खाना मांगता..!"
"किसी की भी नजरें उसकी मासूमियत को नही देख पा रही थी,शानों शौकत की इस दुनिया में वह कहीं नहीं था..!"
"आखिर उसने इंतजार करके फेके हुए भोजन से खाना लेकर बड़ी तेजी से अपनी बहन को खिलाने लगा मानो उसे छप्पन भोग मिल गया हो..!"
"बच्चे का बचपन जिम्मेदार हो गया था..!"



*********************

ओ गोरैया मेरी सोनी चिरैया
घर मेरे अब तू आजा रे
बचपन से देखा अपने आंगन
आती जाती रहती थी तू
इधर फूदकती उधर चहकती
संग हमारे रहती थी तू
देख देख कर तूझे खुश होती
ढूंढो तूझको अब कहां रे
निहारु रस्ता आएगी एकदिन
यादों की खिलती है लडियां
हर पल में रहती है तू
तेरे नन्हें कदमों से रहती थी
घर अंगने की शान चिरैया
अब न होती वो बात चिरैया
घास फूस को चुग चुग लाती
तिनकों से सारा घर पटा था
होने का तेरे एहसास था
तेरे होने से शगुन जुड़ा था
शुभ शुभ सारे काम बना था
कहां रुठ कर चली गयी तू
आजा न घर मेरी सोनी चिरैया
लोगों ने काटे है पेड़ पौधों को
छिना है तूझसे तेरा बसेरा
आजा मेरे घर मे तू रहना
अपनी पसंद की जगह चून लेना
न रोकूंगी तूझको न टोकूंगी
सारी जगह तेरी रहेगी
अपनी मर्जी से आना जाना
पर तू वापस आजा न
करुं याद कितना मेरी चिरैया
आजा आजा अब आ न रे।

***************

लघुकथा :- जरुरत..!
हरिया और किशन आपस मे बाते करते हुए देख उस पेड़ो को जो हमारी कहानी कह रहा है..!
ये पेड़ भी तो एक आश्रय दाता है...!
एक पे़ड दुसरे पेड़ से...ये मेरी ही शाख के पत्ते है,पर सभी अलग अलग रंग के..!
हां अब हमारी शाखें पत्ते विहिन होते जा रहे है..!
"थोड़े थोडे़ अंतराल पर पत्तो का पलायन जारी रहेगा,फिर सभी...!
शीत ऋतु अब जा चूका है,बसंत ने प्रवेश लिया है,धीरे धीरे अब मौसम ने करवट लेना प्रारंभ कर दिया है..!
झनझनाते डालों और शाखों पर पक्षिओं का भी कलरव नही होता..!
"कितना अकेला और बदरंग कर  दिया है वक्त ने हमें..!
सत्य कथन है,उन्हें भी आश्रय लेने के लिए हरे भरे पेड़ चाहिए..!
उमस और ताप बढ़ रही है ,हमारी भूख भी चढ़ते दिन जैसा बढ़ता जा रहा है..!
"समयचक्र के हम अधीन है,हमारे अपने वश में कुछ नही है..!
अब तो इंतजार है कोमल हरे हरे पत्तों का ,जिससे हमारी तन मन की भूख मिटेगी और चारों ओर हरियाली छाएगी।

*************************

मिलते हैं कितने ही यहां अपनों सा,
फ़कत है दिखावा अब इंसानों सा..!

क्या कुछ पाने की चाहत लिए,
कितने बदले भेष यहां इंसानों सा..!

जज्बातों से खेलना खेल पूराना है,
शिकायत बेमानी है अब इंसानों सा..!

दीवारें भी है मौन अब इमारत की,
कोई बसता नही है अब इंसानों सा..!

अपने अपनों को तज कर खुश हो रहे,
बिसरी हुई बात रही है अब इंसानों सा..!

दिल ,बहलाने की चीज बनकर रह गई,
हीर रांझां कहां मिलते ,उन इंसानों सा..!

अपनी सहुलियत से  रिश्ते टिकते अब,
बमुश्किल है निभाह रिश्ता इंसानों सा..!

***************************

क्या नयापन दिखता है दिखावे में अब,
बात वही पूरानी है दुनियादारी की अब..!

घरौंदा बनता नही है गीली मिट्टी का अब
पकड़ नही है पूराना बातों बातों में अब..!

मुस्कुरा कर जीये जाना फनकारी है अब,
कोई सानी नही है लोगों में अदाकारी की अब।

दौर वही चलन में ,चल रही रिवाजों का अब,
लाशों पर चढ़कर इमारत बुलंद करने का अब।

नित्य नई कहानी गढ़ने को लोग तैयार है अब,
बदलते रूख को फिर से पढ़ना बेमानी है अब।

नशा दौलत ,शोहरत या शबाब चढ़कर कहता है अब,
दिल्लगी की बस्ती में कौन यहां अपना  है अब।

मुस्कुराते चेहरों के पीछे ,गम छुपाते लोग है अब,
किसी की रंजो गम का कोई तलबगार नही है अब।

**************

लघुकथा :- नमी..!

"दादाजी", आप कहां जा रहे है..?
"अपने खेत पर जा रहा हूं चलोगे मेरे साथ..!"
"हां हां,मै भी चलूंगा..खेत देखने..!
"चलो ,थोड़ा थोड़ा संग खेलेंगें हम तुम..!"
"आज अपने बचपन को जी लेंगे तुम्हारे संग..!"
"फिर पता नही कब आओगे,इस बार तो होली साथ मनेगी हमारी तुम्हारी..!"
"दादाजी.!,खेत कहां है..?
"यही तो है लल्ला,जहां तू बैठा है..!
"पर ये तो सिर्फ मिट्टी और मैदान है..!
"आप क्या देख रहे है ..?
"हां बेटा..!" वही देख रहा हूं,इस सपाट मैदान में कितनी नमी बाकी है अब..!
"समय और देखरेख के अभाव मे अपना वजूद खो ही जाता है..!
"कितनी प्यास बाकी है अब.....देखता हूं..!

**************

गुनाह का पता नही, 
सजा भुगत रहे है..!
कश्ती को अपनी हम 
खुद डूबो रहे है..!
बेगानों की बस्ती मे तन्हा,
अपनों को ढूंढ रहे है ...!
शिकायत भी क्या करें,
जो बहाने ढूंढ रहे है..!
दूर रहकर ही सही पर 
साथ साथ चल रहे है..!
अपने अपने हिस्से की,
हम वफा निभा रहे है...!
वो खुश रहे जिस तरह,
कसमें निभा रहे है..!
रह गई कुछ बातें तो क्या,
रस्म अदा कर रहे है..!

********

शिकायत..!

माना गजलें उम्दा बहुत कहते
हो तुम तो क्या..!
हमारी एक बिंदू से ही पूर्ण
विराम लग जाएगी...!
लिखने की सच कोई सानी 
नही है तुम्हारी तो क्या..!
तूझको पढ़ने लग जाऊं तो
किताबें कम पड़ जाएगी..!
साथ चलने की तुम्हारी मर्जी
नही रही तो क्या..!
हमनें तो रास्ता बदल लिया
बाकी क्या रह जाएगी..!
वीरान रास्तों के बीच लाकर 
खड़ा कर दिये तो क्या..!
ख्याल बन कर गुजरी हूं आगे
भी जिंदगी गुजर जाएगी..!
थोड़ी सी नादान हसरत हमनें
पाल ली तो क्या..!
ख्वाहिशें कभी किसी की 
मोहताज नही हो जाएगी..!
जिस नजर से नजर मिलाने 
की जहमत कर ली तो क्या..!
तुझे देखने की चाहत में हर 
बार गुनाह नही हो पाएगी..!
तेरे नाम का संवारना गर न हो
पाया तो क्या...!
दर्पण देखने की चाहत कम तो 
नही हो जाएगी..!


*******************

लघुकथा :- आत्मनिर्भर..!

"काकी.!", हां बिटिया का बोलती है..!
"ये थोड़ी थोड़ी सब्जी भाजी लेकर इतनी दूर से आती हो ..!"
"इस उम्र में भी काम कर रही हो..!
हमरी कोई उम्र नाही होत बिटिया,सिर्फ शरीर होत है..!
"जब तक चले चला लेयो..!
" फिर भी काकी तुम्हें देखते है तो अच्छा नही लगता,आराम वाले उम्र में काम..!"
"तो क्या करें बिटिया,देखती नाहीं "कितनी मंहगाई बढ़ गई है,जब तक शरीर साथ दे रही है कर लेत हैं..!"
"हम गरीबों के लिए क्या दूर और क्या नजदीक,सारी जिंदगीं तो कमाओ तब ही खाओ..!"
"घर के सब लोगन के साथ साथ हम भी थोड़ी बहुत कर लेत हैं..!"
"कुछ तो मदद हो जाएगी..!"
सरकार साहेब भी  बोलन है,आतमनिरभर  होने को,सो हम भी सोचे ,सहीए बोल रहे है..!
"आत्मनिर्भर " काकी ..वैसे बड़ी सीख वाली बात कर दी काकी..!"
"किसी के भरोषे मे बेठै रहने से अच्छा है जो बन पडे़ कर लो..!"
"हां बिटिया!,इसी बहाने कछु प्यारे लोगन से भी तो मिल लेत हैं..!
" हमरी चिन्ता न कर बिटिया सब ठीक है..!"
"कौन सी नई बात है,आदत पड़ गई है..!


**********

आशियाना..!

"सुनो.!,हां बोलो..!"
"कितने अरमान से हमने यह अपना आशियाना बनाया..!"
"जीवन भर सरकार की नौकरी करते हुए सरकारी भवनों मे ही रहना हुआ..!"
"बड़ी इच्छा थी एक अपना जमीन का टुकड़ा हो और उस पर सपनों का संसार..!"
"इस मकान की हर दीवार पर सबके मन मुताबिक हर वो चीजें लगाई जो उनकी पसंद के हो..!"
"पर क्या मिला ,ये आशियाना सबको आश्रय दे ,इसकी हर कोनों से जीवन की तरंग गूंजे ,,यही तो सोच कर ये बनाया था न..!"
"कोई रहने वाला ही नही सिर्फ हमारे सपने ही दीवारों से टकराते है..!"
"कैसे बच्चे इसे बेचने को कहते है..!"
"कोई लगाव नही है इस घर से..!"
"क्या कोई चीज ऐसी नही है यहां जो उन्हें यहां बांधे रखे,जबकि सब तो उनलोगों की पसंद की ही है..!"
"आधुनिकता ने दौड़ की होड़ बड़ा दी है,जिसमें कई भावनाएं अपनी मौत मर जाती है..!"

****************

लघुकथा :- अंगीठी..!
बाबूलाल बता क्या बात है..?
बड़े उदास लग रहे हो,कोई समस्या है तो हम सब को बताओ..!
क्या बताना,कोई अलग कहानी थोड़े ही है..!
अब हमारी बात का कोई महत्व नही रह गया है भाई क्यों..?
बात तो सही है भैया ,आंख और कान बंद रखो ,और क्या..!
अपनी राय और मश्ववरे की जरूरत इस पीढ़ी को नही है..!
घर मे बोलते अब हमारी जरुरत नही रही..!
अब तो कुछ बोलने से पहले सोचना पड़ता है..!
हमे तो लगता है हमसे अच्छे वो निर्जीव सामान है ,कम से कम उसकी देखभाल तो होती है..!
देख रहे हो ये भठ्ठी कैसे इसमें अंगीठी सुलग रही है,कभी तेज कभी मद्दम..!
ऐसा ही कुछ अपना जीवन हो गया है बस सुलगते रहो,किसी न किसी दिन राख हो ही जाएंगें..!

*******

बंजारा..!

"अरी ओ कम्मो.!,हां बोल क्या बोल रही है..!"
"खड़ी क्यों है ..?"
"आजा तू भी आकर बैठ और थोड़ी देर सुस्ता लें..!"
"मै तो मांगन की राह देख रही हूं,कब का गया है कोई अच्छी जगह ढूंढ़ने ताकि  इस गरमी के मौसम में ज्यादा  समय रह सके..!"
"कितनी देर हो गई है ..!"
"अपनी भी जिंदगी कैसी है न कमली...
कोई ठौर ठिकाना की चिन्ता नही करनी होती...!"
"जहां चाहा वहां चल दिए बांध कर..!"
"वो तो है कम्मो अपनी मनपसंद की जगह पर रहो,पसंद का खाओ,पसंद का पहनो,किसी का भी हमारी ओर ध्यान नही जाता..!"
"सब कुछ हमें अपने आप ही करनी है..!"
"कुछ मिले न मिले रहने को हर जगह मिल जाती है ,चाहे हम जमीनी ही क्यों न हो ,ये कम थोड़े न है..!"
"नही तो कुछ पाने के लिए, पहले प्यासे ही जब तक न मर जाए पानी नही मिलती है यहां..!"
"अपना तो अच्छा है न लेना न देना..!"
हम बंजारों की तो ठाठ है ठाठ,देख ठंडी छांव कितने को नसीब है..!"

**************

बिषय :- वीर..!
विधा :- क्षणिका..!

1
वीर बड़े ही विरले होते
देते कुर्बानी अपने वतन
बांध कफन कर अपने सर
करते रक्षा सदा अपने वतन
भारत माता के वीर सपूत
हंस हंस करते जीवन वलिदान।

2
सदा तिरंगे की शान की खातिर
डटे रहते है करने न्योछावर प्राण
देश के दुशमनों को खदेड़ते वह
जज्बा जुनून और हौसलों संग
अपने कर्तव्य पथ पर डिगे रहते
देशसेवा को ही कहते अपना प्यार।

****************

चित्र आधारित कथा..!
शीर्षक :- रोटी..!

सरला अपने ससुराल अपने देवर की शादी मे आई थी..!
हमेशा अपने आफिस के काम में व्यस्त रहने वाली ,घर पर नौकर -चाकर ही सारा कार्य करते..!
यहां आकर अच्छा लग रहा था..!
यहां की पारंपारिक भेष -भूषा उसे बहुत भाती ..!
खासकर फुलके की महक पकते वक्त जब चूल्हे से आती..!
शादी के माहौल में घर की औरतें अलग अलग समूह मे बनकर काम निबटाती ..!
 शाम के वक्त रोटियां बनते देख वो भी सबके बीच बैठ गई..इस पर उसकी ननद ने कहा..भाभी रोटियां भी बनानी होगी.!
सरला ने भी हामी भरके रोटियां सेंकने बैठ गई..!
औरतें आपस में कानाफ़ूसी करने लगी,ये कलम चलाने वाली हाथ रोटी भी बेलती है..!
सरला उनकी भाव को भांप मन ही मन मुस्कुरा उठी..!
सरला ने बड़े प्यार से फुली -फुली रोटियां बनाई..!
दूर खड़े अपने भाई को सरला की ननद ने सरला की ओर इशारा करते हुए पूछा भैया पहचानते हो ,कौन रोटियां बना रही हैं..!
एकबारगी तो ना में सिर हिलाया ..!
"भाभी है भैया"!, क्या..?
अपनी पत्नी को इस माहौल में ढला देख और बिल्कुल आम लगने वाली छवि  हमेशा के लिए खास बना गई  ..!
सरला हमेशा से ही हाई सोसायटी मे पली बढ़ी थी,लेकिन यहां उसने अपने ससुराल के अनुरुप ही रखा..!

*****************

लघु कथा :- सन्नाटा..!

"बेटा! बेटा, ओ,बहु..!
" सुनो उठो..! देखो, पिताजी इतनी सुबह सुबह क्यों आवाज लगा रहे है..??"
"क्या हुआ पिताजी..? इतनी सुबह-सुबह आप क्यों उठ कर हमारी नींद खराब कर रहे है..!
"सुबह-सुबह..?...बेटा घड़ी में तो सुबह के आठ बज गए..!"
"गांव में तो चार से पांच में ही लोग जग जाते है..!"
"यहां अभी सुबह नहीं हुई...?"
"पिताजी !..ये महानगर है कब सुबह होती है कब शाम होती है और रात का तो पता ही नही होता....होता भी है या नही..!"
"वैसे आप आवाज क्यूं लगा रहे थे बताईए,कुछ चाहिए आपको ..?
"नहीं बेटा !बस जग गया तो अकेले मन नही लग रहा था...सो सोचा तुम्हारे संग कुछ देर बैठ लेंगें...!"
"ओह पिताजी..!क्या आप भी आराम करिए और हमें भी करने दिजिए....!"
"अब आपको आदत डालनी होगी यहां के माहौल के अनुसार..!"
"बेटा..!इस सन्नाटे को आदत बना लूं..?
" यहां इतनी भीड़ है फिर भी किसी को कोई नही जानता पहचानता..!
"सिर्फ चेहरे ही है सब..!"

******

बसंत..!
"अपने कजिन की शादी समारोह में हिस्सा लेने रोहन अपनी पत्नी संग अपने गांव आया हुआ था..!"
"दोनो ही पेशे से चिकित्सक थे..!
"छ:माह पूर्व ही उन दोनो की शादी बेहद "सादे समारोह मे संपन्न हुई थी..!"
"रंजना महानगर मे पली बढ़ी,गांव के माहौल से बिल्कुल अंजान थी..!"
"उसका बड़ा मन था गांव का जनजीवन कैसा होता है,नजदीक से देखने का..!
"मौका भी अच्छा था सो रोहन के एक बार कहने पर ही झट से तैयार हो गई..!
"गांव में आने पर,उसे सब पलकों पर रखते..!"
"हमरी बहुरिया भी डाक्टरनी है हमरे बिटवा की तरह,परिवार के लोग बड़े गर्व से बताते..!"
"रंजना!,हां!..चलो अपना खेत घूम कर आते है..!"
"चलो!", अरे वाह कितना सूंदर नजारा है ,चारो ओर पीले पीले फूल..!"
"हां!" जानती हो ये मौसम बसंत कहलाता है,चारो ओर प्रकृति अपने नए रंग रुप मे खिली रहती है..!"
"अब मै यहां से नही जानेवाली..!"
"सुनो!,क्यों न हम यही पर रहकर अपनी सेवा दे,वैसे भी यहां कोई बढि़या चिकित्सक नही है..!"
"वाह!", तुमने तो मेरी मन की बात कह दी,अब सचमुच गांव मे बसंत आ गया..!
"चलो जल्दी चलो अपने घर में सबको बताते है..!"


********

अंर्तमन..!

कभी तुम्हें मेरी 
हंसी फूल से लगते 
पर अब वही हंसी
तुम्हें शोर लगती है
मेरा चेहरा कभी
तुम्हारी दिन बनाती थी
अब वही तुम्हें हमेशा
दिन बिगाड़ती है
मेरा सजना संबरना
सब तुम्हें भाते थे
पर अब बेकार लगती है
कभी मेरी पायल से
संगीत गूंजती थी
मेरी चूड़ियों की खनखन
र्कणप्रिय लगती थी
अब ऐसा कुछ भी नही
सब बेकार हो गई
क्या बदल गया 
हमारे तुम्हारे बीच
बदला भी है तो
जितना मै बदली
उतना तुम भी बदले
फिर क्यों तुम्हारी हर
चीज मुझे अच्छी लगनी
चाहिए...?
मेरी हर चीज अब बिना 
मतलब की लगती है
मेरी भी अंर्तमन में
कभी झांक लिया करो।

****************

लघु कथा :- पंक्चर..!

"मोहन कई दिनों के बाद अपनी रिक्सा लेकर  सड़क पार कर रहा था ..!"
"अचानक पहिया दबा हुआ जा रहा था ...!"
"उसने देखा एक कील चुभ गई थी पहिए में..!"
"गत बीते दिनों में प्रशासन को रोकने के लिए उपद्रवियों ने सड़क पर कील फेंक दिए थे..!"
"जिसका खामियाजा उस जैसों को भुगतना पड़ता है..!"
"अब वो क्या करे,कुछ समझ नही पा रहा था..!"
"कुछ दूर पर एक पंक्चर की दुकान थी,पर मन में दुविधा थी कि बिना पैसे कैसे ठीक होगा..!"
"दुकान पहुंचकर अपनी सारी बात उस दुकानदार को बताई..!"
"पंक्चर वाले ने उसे आश्वाशन देते हुए कहा,जा भाई ले आ अपना रिक्शा..!"
"अब हमें एक दुसरे की मदद करनी ही होगी,आत्मर्निभर जो बनना है..!"
"पंक्चर को ठीक करके ही आगे बढ़ सकते है..!"

******************

बिषय :- सरसों के फूल..!
विधा :- क्षणिका..!
       1.
सरसों के फूल
लाई बासंती बहार
खिली खिली धरती
मन हुआ मंत्रमुग्ध
मुस्काती मदमाती बयार
जैसे खिलता यौवन
बिखरी खुशबू चहुंओर

         2.
मदमाती मधुमास
पीली पीली खेतों से
उठती बासंती खुमारी
प्रीत की चाह लिए मन
लहराए जैसे खिलता तन
कामदेव की कामवाण
धरा पर बिखर गई कण-कण।

*******************************

                प्रेम पखवाड़ा/फलक
                  (आधी चाॅकलेट) 
"वैलेनटाइन सप्ताह का chocolate day..!
कालेज टाईम की भागमभाग वाली जिंदगी ,र्सिफ कक्षाएँ ,टयूशन ,पढाई का बोझ और नोटस्..!
"ऐसा ही कुछ चल रहा था ,परंतु इस बार chocolate day पर एक खूबसुरत कार्ड और टाॅफी रोहन ने सुमन को थमाते हुए कहा ,आधी टाॅफी मेरे लिए भी रखना..!
" इतना कह कर वो चला गया..!"
सुमन ने वो कार्ड यूं ही रख दिया ,उसे मालुम ही नही था ये वैलेनटाइन डे क्या होता है..!
"दुसरे दिन सुमन ने रोहन के सामने ही रैपर हटाकर आधी टाॅफी उसे दे दी,परंतु सुमन के चेहरे पर किसी भी तरह का भाव न देख कर रोहन थोड़ा उत्सुक हो उठा..!
"आप वो कार्ड नही देखीं..?"
"नहीं!" क्यों?
"नहीं कुछ नहीं !"
"वैसे अभी ये कार्ड किसलिए..?,ऐसा तो कोई दिन भी नही है..!"
रोहन ने अपने सर पे हाथ मारा और साथ में आया रोहन का दोस्त अपनी हंसी रोक न पाया..!
"क्या सच में नही मालूम आपको..?"
"नहीं!,आप ही बता दो न क्या है..!"
"इसबार रोहन को सुमन के चेहरे को देख यकीन हो गया ,सच में इसे नही मालूम..!
" रोहन ने र्सिफ ये कहा ,ये कार्ड और टाॅफी इन दिनों मे उसको दिया जाता है जिससे प्यार होता है..!
इतना सुनते ही सुमन झट से गेट बंद करके अपने कमरे में दौड़ते हुई आई..!
"पूरा शरीर पसीने से लतपथ और दिल की धड़कन बढ़ी हुई ..!
"उसे यकीन ही नही हो रहा था रोहन के दिल में वो इस एहसास के साथ थी..!
"रोहन एक सुंदर और सौम्य छवि का और वो साधारण सी..!"
" आज भी वो दिन चेहरे पर मुस्कान दे जाती है कितनी वेवकूफ थी वो...!"
"रास्ते यक़ीनन जुद़ा है पर वो यादें हर वार  एक सुखद एहसास भर जाती है..!"

**************

प्यार और उपहार..!
"पापा;आप हमेशा भागलपुर जाते है!
आप मेरे लिए एक तोता ला देंगे
"जरुर ला देंगे बेटा,पर ये बताओ उसकी देखभाल कौन करेगा।"
"मै करुंगा पापा,मैने देखा है नानाजी को तोते की देखभाल करते हुए।"
"आप न एक पिंजरा भी ला दिजिएगा।
"वो किसलिए?"
"तोते के लिए पापा" वो कहां रहेगा!
"वो मेरा प्यारा तोता होगा,मै उसे बहुत प्यार से रखुंगा"
"वो तो ठीक है बेटा पर जिससे हम प्यार करते है उसे कैद कर रखना ठीक होगा!
हमलोग तुमसे कितना प्यार करते है ,क्या कैद कर के रखते है तुम्हें?
"नही पापा " बिल्कुल नही"
"तो फिर, ये कैसा प्यार है; जिसमे प्यार के बदले मे कैद का उपहार मिले!
"पंछी हो या इंसान ,कैदी रहना कोई नही चाहता!
"खुली हवा मे रहना सभी को पसंद है"
"आपने सही कहा पापा"
मुझे र्सिफ तोता चाहिए ,उसे यू ही रहने देंगें।
प्यार की भाषा तो सब समझते है।

**************

लघुकथा :- परी..!
"अरे तैयार हो गयी बेटा!,चलो चलो जल्दी वरना स्कूल के लिए देर हो जाएगी..!
"हा बाबा", अभी आई..!
" चल आ जा बैठ अपनी सवारी अपनी गाड़ी..!
"स्कूल पहुंचते ही बच्चे परी को देखकर हंसने लगे जिससे उसके विकलांग पिता को अपनी बेबशी और लाचारी पर मायूसी हो आई..!"
"बाबा!", आप दुखी क्यूं होते है ,मैं तो आपकी परी हूं न..!"
"और हां सुनो तुम सब,मेरे बाबा मुझे समय पर स्कूल छोड़ते और ले जाते है..!"
"समय के पूरे पक्के,तुम्हारी तरह मुझे इंतजार नही करना होता..!"
"छुट्टी के वक्त बच्चों की हंसी से आहत हुए अपने बाबा को सम्मानपूर्वक हाथ थामते हुए सबको आईना दिखाकर बोली..!
"मैं अपने बाबा की परी हूं परी...!"
"परी अपने बाबा की तिपहिए साईकिल पर बड़े शान से बैठती हुई बोली,चलो बाबा नही तो देर हो जाएगी।

**************

लघुकथा :- खत..!

"आज आलमारी खंगालते वक्त खतों की वो गड्डियां मिली, कितना प्यार कितना अपनापन इन शब्दों में पिरोए थे..!"
"इसी सोच में उलझी लता की तंद्रा सासु मां के आवाज से टूट गयी...!"
"लता!ओ,लता!"
"जी मांजी "
क्या कर रही थी,जरा मेरे पास भी बैठ लिया कर..!
"वो मै कपड़े छांट रही थी तो चिट्ठियों का ये बंडल मिला..!
इन्हें देखकर इन पर प्यार हो आया मांजी..!"
"ये चिट्ठियाँ ही तो थी जो एक एक शब्दों मे शहद भर कर लाती थी,अब वो कहां ..!
"संसाधनों ने जितनी दूरियाँ कम की लोगों के दिलों में दूरियाँ बढ़ती चली जा रही है..!"
"किसी के पास न ढंग से बात करने का समय और नाही वो उत्साह..!"
"हां बेटा,!सही बोल रही हो ,कई दिनों के इंतजार के पश्चात जो प्रेम भरी पाती मिलती थी ,वो मनोभाव का अब क्या मुक़ाबला..!

*********************

हां आ‌ंखे कुछ कहती है मेरी...

              हां
आंखे कुछ कहती है मेरी
गीली सी रहती है मेरी
दर्पण है मेरे वजू़द का
भावनाओं के सम्मान का
              हां   
आंखे कुछ कहती है मेरी
अपनेपन के एहसास का
अनकहे से जज्बात का
छुपे हुए सैलाब का
            हां
आंखे कुछ कहती है मेरी
प्यार और विश्वास का
सबके साथ चलने का
रिश्तों को निभाने का
             हां
आंखे कुछ कहती है मेरी
नशीली है पर नशा नही
कोई भी अभिमान नही
आत्मसम्मान है गुमान नही
             हां
आंखे मेरी कुछ कहती है

*************

सोचुं कभी बैठुं जो 
फुरसत में लिखेंगें तुझ को..!
कोई मशरुफीयत की गर 
वजह न हो मुझको..!
बहारें भी लौट कर 
आया करती है कभी..!
बिन बादल ही 
बरस जाया करती है कभी..!
कभी सुबह कभी शाम सी 
यादें है अब तो..!
भुल जाने का इरादा हो 
कोइ बात नही तब तो..!

*************

बोझ समाज का..!

"सुधा!"हां मां,क्या बात है..!
"आज पड़ोस से वर्मा जी की बेटी की शादी का कार्ड आया है..!
"परसों शादी है!" तुम भी चलना ,देखना शादी में क्या क्या होता है..!
"कुछ कुछ आप ही बता दो न मां..!"
"अरे बहुत सी तैयारियां करनी पड़ती है..!
"बेटी जब पैदा होती है तभी से मान लो उसके लिए तैयारियां शुरु हो जाती है..!"
"क्या मतलब तैयारियों का..?"
"मतलब ये क्या लेने देने है शादी में एक- एक चीजों का हिसाब रखना..!
"बेटी का घर जो बसाना पड़ता है..!
"ये क्या बात हूई..!
"हम्म,!थोडी रुआंसी होती हुई मां बोली..!
"हां बेटा !तुम्हारी शादी भी तो करनी है ,एक अच्छा घर और वर पाने के लिए बहुत पापड़ बेलने होते है..!"
"किसी की भी शादी में जाती हूं तो खर्च देखकर चिन्ता हो जाती है ..!
" एक लड़की अपने साथ पूरा साजोसामान ले जाकर ही ससुराल में सम्मान पाती है,ये उनकी हैसियत बताती है कि हम कितना ले सकते है..!
" तुम्हारे पिताजी एक कमाने वाले,तुम भाई बहनों की परवरिश..!
" अच्छे से अच्छा पढा़ई लिखाई करवाकर भी शादी के लिए इतनी माथापच्ची करनी ..!
"लोग कहते है पढ़ने लिखने से समाज बदलता है..!
"समाज का क्या मतलब है ,आज तक नहीं समझ पाई..!"

**********************

अपनी-अपनी समझ का इश्क 
कोई इसे पाकर भी रोता है
कोई सब खोकर भी हंसता है
सब कुछ पल भर की चाहत
आज मिली खत्म फिर चाहत
अपनी-अपनी ................!
इंतजार की हद तक में रहता
इश्क कभी चाहत न बनता
सपने बुनते आंखों मे पलता
अधुरापन ही तड़प इश्क का
सब पा जाओ किस काम का
फिर किसकी तमन्ना है करनी
अपनी-अपनी ................!
भीगी पलकें मुसकाती अधरें
खुली आंखों की सुहाने सपने
बातों-बातों मे ही विरह बतानी
कभी मिलो ताबीर है कहनी
अपनी-अपनी समझ का इश्क
अपनी-अपनी....................!

******************

कालहे से शुरु होकेह के ह
इजहार-ए-मोहब्बत के महीना 
जाने कौन कौन डे अईहेंजा
सात तारीख से चौदह तकले
केतना सब पगलईहेंजा
का होला ई इश्क के महीना
सोचनी हं थोड़ा हमहुँ जानबजा
केहूं के जौन बिशेष नालेज होकेह
तनि इधरो कुछ कुछ बतईहंजा
Valentine's week कहाला
देखिं rose day,propose day,
Chocolate day,teddy day,
Promise day, hug day,
kiss day,इतना दिन सब करके
तबहे valentine's Day अईहेंजा
केतना मंहगा ई वाला महीना हा
ईहे महीना सब बतईहा फेर मौका
कहां से इश्क करेके मिलीहें जा
एक हप्ता के गजब के रेलाहा
फेर कहां गईहें "प्रेम के हम पुजारी"हैं
 प्रेम प्रतीक गुलाब रोडे रोड कुचलाईजा
फरवरी के महीना एही से कम होकेला
Last year, से next year  पहुंचत
नयापन में केहूं के केहूं न पहचानत ह।

**********************

तुम्हारी नजरों से खुद को देखा
थोड़ी थोड़ी हूं लगी निखरने ..!

नजरें तुम्हारी हम पे जो पड़ गई
थोड़ी थोड़ी हूं लगी बिखरने ..!

तुम्हारी बातों के मुझपे, इशारे सारे 
थोड़ी थोड़ी हूं लगी समझने..!

आते हो अक्सर तुम ,ख्वाबों में मेरे
थोड़ी थोड़ी हूं लगी बहकने..!

तुम्हारी चाहतों की जो खुशबू फैली
थोड़ी थोड़ी हूं लगी महकने..!

यादों की पुरवाई जब जब है बहती
थोड़ी थोड़ी हूं लगी चहकने..!

निहारूं  दर्पण सोचूं जो तुझको
थोड़ी थोड़ी हूं लगी संबरने..!

**************************

( बिषय :- शूल.., विधा :- काव्य..! )
शूल..!
जिसनें पाई शूलों की राह
पाई उसनें फूलों की राह
जीवन पथ पर शूल चुभे
तभी मुल्यों का मूल मिले
मंजिल पाने नित्य गतिमान
मानव मन पाये अभिमान
ठोकरों से ही पथ निर्माण
हर कसौटी पर सदा खरा 
शब्दों का जीवन में मोल
तोल तोल कर बोले बोल
ऐसी वाणी बोले हरदम
मन का आपा दूर रहे
शूलों के ही मध्य खिले 
डलियां फूल गुलाब का
वाणी सदा हमारी मधुरिम
शब्दों ऐसी न शूल चुभे
शब्द शूल बैठे जब उर
घायल होता छिन्न-भिन्न मन..!

*******

व्यस्त..!
सुनो!,ठहर जाओ अभी जरुरी काम कर रहा हूं..!
कुछ देर बाद,सुनो न !
बोला न ठहरो ,कुछ काम कर रहा हूं..!
कब से मै कुछ बोलना चाह रही हूं पर तुम सुन ही नही रहे हो..!
मै जानता हूं तुम्हारी क्या कहानी होगी..!
क्या जानते हो,मै कोई फालतू की बातें नही कर रही ..!
बहुत जरुरी है तभी सुबह से कई बार कह चुकी हूं लेकिन तुम अपने काम में इतने व्यस्त हो कि मेरी बातें गैर जरुरी लग रही है..!
क्या जरुरी होगी ,कोई आफिस का काम और बात तो है नहीं..?
क्या घर की बातें जरुरी नही..!
इतनी व्यस्तता तुम्हारी किस काम की जब घर को घर ही न समझों ..!
घर को भी आफिस बना कर रखे हो..!
तुम्हारी जरुरत घरवालों को भी है,थोड़ी हमारी और बच्चों की भी सुन लिया करो..!
कभी मुझे भी पत्नी समझ लिया करो..!
मुझे भी थोड़ा अपने जिंदा होने का अनुभव करा दो..!
सारा दिन घर में ही उलझी रहती हूं..!
नही सुननी है मत सुनों मै बता देती हूं..!
हमारा बेटा स्कूल में टाॅप किया है और  कल हमें आंमत्रित किया गया है..!
मै बच्चों के साथ जा रही हूं..!
तुम भी हमारे साथ चलते तो अच्छा होता..!

( Click on the link below to read the composition, Satire or article collection written by the writer / creator / Satirist Sapna Chandra. )⇩⇩

https://sahibganjtoday.blogspot.com/2020/07/blog-post_20.html

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें