28 जून 2021

रचना :- पिंकी मुर्मू

वक्त ही है अभी कुछ करने को, 
क्यों रो रहा है तू बीते कल को . 
आज को देख, अभी कुछ नया कर, 
देख खड़ा है वह सुनहरा पल ..

बीते कल की रोना,
क्यों आने वाले कल को खोना, 
जब खुद में संयमता न रख पाया, 
सबको क्यों कोसता रह जाता.
हर राह में कुछ काटे हैं बिछे, 
कुछ चुभते, कुछ सबक सिखाते 
देख खड़ा है वो सुनहरा पल.... 

बिना मेहनत के किसने क्या पाया ?
हर नाकामी में है नहीं कोई कमी, 
क्या यह नाकामी का दंश रह जाए झेलता ? 
सवाल है तू ,जवाब भी तू , 
जब चलना है तुझको , 
गिरा है तो ,उठ वैशाखी की चाह न कर, 
कुछ देर को यें कंधे के सहारे, 
स्वस्थ मन को पंगु न कर . 
जख्म सारे धूंधले हो जाएंगे, 
 दर्द भी फीका हो जाएगा , 
जब पाएगा  मंजिल, 
चमकता रवि सा अक्श उभर जाएगा, 
देख खड़ा है वो सुनहरा पल...

दो बूंद इश्क़..!

कुछ दिनों से मिजाज खुशनुमा है , 
बदला हर वक्त हर फिजा है , 
दस्तक देती ठंडी हवाएं , 
बदन को जैसे गुदगुदाती है . 

राज ना चाहूं खोलना ,मगर
इस वीराने बगीचे में दिल के, 
शोरों का तूफान कहां अभी थमा है .
कर दी है उसने वो बातें , 
मानो पतझड में चारों ओर हरा है . 

वक्त का तकाजा हम भी सिमटे हैं खुद में, 
कड़ी धूप में इंद्रधनुष निकल पड़ा है.
एहसासों का मौसम गुजर गया , 
चोरी चोरी तकना कहीं खो गया . 
नजर जो टिकाई  उसने धीरे-धीरे , 
धूंधली उम्र में दो बूंद इश्क हो गया...

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कभी शाम के पहर..!
यादो के शहर में चले आना..
जब भूल जाओ अपने रुसवाई 
फिर इक ठोकर लगाने चले आना...
मुद्दत लगी है स्वीकारने में तेरी बेवफाई,
 जब याद आये वफा हमारी चले आना... 
न पूछो क्या गुजरती है जब देखू 
किसी गैर में दिलचस्पी, 
मुस्कुराहट में छिपे आंसू 
पहचानने चले आना... 
कभी रौशन न हुआ जहा दिल कि गलियां 
इक दीपक जलाने चले आना..... 
यूं खडे़ रहकर बीच सड़क में ,
हमें देखकर अनदेखा करने चले आना.... 
कुछ हरकत बता देती है अधूरी हसरत तेरी, 
उनको इनकार करने चले आना... 
वफा कि अदायगी न सही, जो है नहीं, 
उसे छुपाने भरे बाजार में चले आना...



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विकास-विकास की बात सब करे 
विकास न करे कोई ।
जब तब इक मुद्दा बने,
निज झोली भर जाये हर कोई ।
वादा करे बङे-बङे 
हम रह जाये सब खोय,
खुद बङे बन जाये जो 
बात बङे कि  होय। 
करत नही कुछ सब 
कहत ही रह जाये, 
निंद्रा खुलत जब 
चुनावी बयार आये, 
देत लुभावनी बादे 
देत सुनहरी  ख्वाबें ।
हो जाये पूरी ऐसे 
जादु का डंडा घुराये। 
हम सीधे-साधे जनता 
इनके बातो में आ जाये। 
नाश कर अधिकार का 
फिर पछतात रह जाये। 
जागल भी और सुवत भी 
सब जानत तबो फंस जाये,
मानो कोई खग 
पिंजरा में जैसन फङफङाये।
बतवा सुन मीठी 
मानो गुङ सा रस छाये ,
रिझाकर बतिया ठग जाये। 
मौसमी बुखार जब कभी छा जाये,
बाते हो ऐसे कभी-कभी तो 
यकीन न होय ।
फिर मानो कभी धरती पर 
चांद सूरज दिख जाये। 
अब सब जाने रही मतलबी खेला 
अबबे तो वक्त हो फैलबे उजीयारा
ठग न सके कोई , 
चाहे जग बैरी होय।

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यह जमाने के मस़ले मैं देख लूंगी, 
तू बस साथ ना छोड़ना 
क्या तेरा- क्या मेरा 
मैं हर वक्त तेरे साथ रहूंगी ।
तेरे बिन जीने की आदत नहीं ,
तन्हा मैं कैसे रहूंगी ।
जो तू चाहे साथ मेरा,
मैं हर रास्ता तय संग कर लूंगी 
चल चलते हैं उस जहां पर,
जहां तेरी-मेरी बातें बस होगी
रहेंगे दरमियां कुछ फासलें,
ख्वाबों में भी हकीकत कि बातें होगी। 
मुक्कमल होगी या मझधार में डुबेगी, 
ये उलझने न होगी 
जहां से मिले कायनात 
सारी आवाम हो साथ ,
मंजर बाधें जो शमा 
ऐसी वो बरसात होगी, 
साथ हो तेरा जब 
हर रास्ता तय कर लूंगी।

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मुद्दत बाद फिर चांद आया है नजर,
बेजार थे इन दिनों, था सब बेअसर ,
थे गमसार, था नहीं कोई हमसफ़र ।
पलक झपकते शब बीतता ,
अब लगता हुआ है सहर ,
आरजू हमारी अब भी वही है ।
क्या याद है तुझे वो मंजर
बूंद-बूंद का गिरना, बारिश कि लहर,
चल आज फिर याद करें सारे पहर।
पत्तों में लिख बयां करना हाले -ए-दिल 
यों इतराना मानो नहीं हमें खबर 
हर पल तलाशना वही नजर ,
धूप छांव की जहां होती थी फिकर 
चल आज फिर याद करे सारे पहर 
मुद्दत बाद फिर चांद आया है नजर ।


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खयालों के जंगल में 
यूं शोर हो रहा है,
दिन का सुकून, 
रात का चैन खो रहा है  ।

मुद्दतों के बाद 
बस रहा है शहर अपना, 
जिसे उजाड़ने को 
कोई देख रहा सपना ।

मेरे मुकद्दर में है ,
कांटे ही कांटे,
फिर क्यों फूलों की 
खुशबू ला रहा है ।

तमन्नाओं की उड़ान 
पतंग से उड़ रही ,
डोर है किसी ओर के हाथ में 
यह भी भूल रही ।

चुप सी मोहब्बत ,
खामोश सा प्यार ,
फिर क्यों जज्बातों की 
महल में कैद हो रहा है ।

रास्ते हैं बहुत चलने के वास्ते ,
फिर खङा क्यों इंतजार कर रहा है ।

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!..लघुकथा..!
!..मकर संक्रांति..!
शीला दौड़ती हुई पापा के पास आई और अपनी दोनों हथेलियां बढ़ाते हुए बोली, मेरे लिए क्या लाए हो पापा..??
।मोहन क्या जवाब दें इन सात आठ महीनों से घर चलाना कितना मुश्किल हो गया है, उसने शीला को गोद में उठाते हुए कहा ,आज नहीं कल  तुम्हें  तुम्हारे पसंद की चीज दूंगा।
 ग्यारह साल की शीला भी धीरे-धीरे हालातों को समझने लगी थी।बिना कुछ कहे खिलखिलाते हुए गली में खेलने चली गई ।
मोहन दिल्ली में काम करने वाला मजदूर था, लाक डाउन में किसी तरह घर तो आ गया लेकिन यहां रोजगार नहीं होने से आर्थिक स्थिति पूरी तरह डगमगा गई ।
तभी अचानक शीला हाथों में रंग-बिरंगे कागजों व लकड़ी के सिंक लेते हुए आती दिखी। देखो पापा मैंने क्या लाया है आप नव वर्ष में जो 40 दिए थे वह मैंने खर्च नहीं किए और उन रुपयों से ये सब खरीद लाई ।आप पतंग बनाना और सामने मैदान में बेच आना,इससे हम लोग दही चूड़ा का पर्व मकर संक्रांति मनाएंगे  ।
मोहन को याद आया कि किसी बड़े साहब के यहां नव वर्ष की पार्टी के बाद लाँन की सफाई करने का काम किया था,मजदूरी में मिले तीन सौ रुपए में से चालीस रुपए अपनी इकलौती बेटी को दिया था।  अपनी बेटी की मासूमियत व समझ से मोहन की आंखों में आंसू आ गए।  चलो बेटा, मकर संक्रांति  की तैयारी करते हैं,मोहन ने शीला की पीठ थपथपाते हुये कहा।

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लालसा है यूं गुजरे साथ पल
 जैसे दिखे धूप संग छांव ।
 ना देखे दूसरा यूं साथ संग हो ,
जब छुपे हो राज गहरे 
नयन भर देख ले वो,
 खामोशियों के बीच जान ले 
मन का जो शोर हो । 

लालसा है यूं गुजरे साथ पल 
जैसे दिखे धूप संग छांव
पग- पग साथ चले ,
चलने की  छाप एक हो ।
 कायनात में एक कायनात हो,
 ना देखे दूसरा यू साथ  संग हो ।

लालसा है यूं गुजरे साथ पल,
जब सोचूं ,सामने वो चेहरा हो ।
एक नई रंग -उमंग हो ,
जहां चाहत शुरू से शुरू 
इति का ना कोई अंश हो
 ना देखे दूसरा यूं साथ संग हो ।

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जज्बातों की सड़क पर 
चलती जिंदगी,
कई भावों के रंग में 
डूबती जिंदगी।
कहीं ठोकर तो कहीं सरसरी से 
गुजर जाती जिंदगी 

कहीं बीच जंगलों से गुजरती है, 
जहां कशमकश से बंधती जिंदगी ।

कहीं धूंध से सब 
छुपाती जिंदगी ।
कहीं धूप बन कई रंग 
दिखाती जिंदगी ।

बारिश बन 
गिरती धरा पर ,
अश्रू के कण भी 
लाती जिंदगी ।

सरपट दौड़ती जिंदगी, 
कभी रास्ता ना हो ,
तो थम जाती जिंदगी ।

चलना रुक जाए 
सड़क- ए -जिंदगी
निशान छोड़ जाए 
कुछ पल की जिंदगी।

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कभी दिल की बातें ना समझे वो, 
जिन से वजह मिले जीने की ।
हो जाए रुसवा, ना हो दीदार जब,
बेकरारियों का आलम बताएं कैसे 
पहला फूल खिले जब प्यार का,
जग नया, हर तराना सुहाना लगे।

रब भी उसका, वादा भी उसका ।
इंतजार में दिन कटता हमारा ।
चाहत उसकी भरपूर हर तमन्ना में 
चाहत ना समझे तो कोई क्या करें ।
इजहार ना कर सके यह लब
कहीं खो ना जाए वो ख्यालातों में,
आंसू हमारी मुस्कुराहट उसकी 
कभी दिल की बातें ना समझे वो ।

******************
कभी दिल की बातें ना समझे वो, 
जिन से वजह मिले जीने की ।
हो जाए रुसवा, ना हो दीदार जब,
बेकरारियों का आलम बताएं कैसे 
पहला फूल खिले जब प्यार का,
जग नया, हर तराना सुहाना लगे।

रब भी उसका, वादा भी उसका ।
इंतजार में दिन कटता हमारा ।
चाहत उसकी भरपूर हर तमन्ना में 
चाहत ना समझे तो कोई क्या करें ।
इजहार ना कर सके यह लब
कहीं खो ना जाए वो ख्यालातों में,
आंसू हमारी मुस्कुराहट उसकी 
कभी दिल की बातें ना समझे वो ।

******************

खामोशियों की जो गूंज समझ जाएं ,
हंसते चेहरे में छिपे आंसू के निशान ढूंढ जाये ।
 ए ! खुदा बिना कहे जो समझ जाएं ,
क्या ऐसा इंसान नहीं है जहांँ में ।

शब से सहर फिर दौड़ती जिंदगी ,
सुकून का ठहराव नहीं आता नजर  ।
भीड़ में भी तन्हा, तन्हा में भी तन्हा ,
क्यों भविष्य की चाह भूल जाता है 'आजकल '

मिलती है राहतें बहुत सारी 
मिल ही नहीं पाता जहा टिक जाये सर ।
बांट ले गम सारे, खुशियों में भी हो साथ ,
सबसे अलग सबसे खास ।

जिस का साथ होना ही हो सबसे खास,
राह चलते जो धूप में छांव बन जाए
खामोशियों की जो गूंज समझाएं ,
हंसते चेहरे में छिपे आंसू के निशान ढूंढ जाए ।

*************

मेरे ईश्वर सुन ले 
विनती हमारी,
कर मुआफ  
आज गलती सारी 
हम तो बच्चे 
अनजान , नादान
हमें नहीं अभी पूरी 
मानवता का ज्ञान ।
कभी किसी ने 
भटकाया मन को 
तभी किसी ने बताया 
सब कुछ तन को,
कभी बताया 
हर इच्छा है पैसा 
कभी बताया 
पैसा ईश्वर का प्रसाद ।
नए-नए पग पर 
नई चुनौती
कभी घोंपा खंजर 
मेरी पीठ में ,
कभी मैंने भी खींचा 
पैर किसी का 
होंङ लग गई 
आगे बढ़ने की 
भूल गई दी 
नैतिकता सारी ।
आज इस पायदान पर 
खङी दुनिया सारी ,
ईश्वर चुनने की 
टोकन है भारी
मेरे अंतर्मन में 
बसे हैं ईश्वर 
फिर जरूरत हो 
किसी लेबल की  
भूल गए हैं सारे 
एक ईश्वर की संताने ।
अंतिम पड़ाव है सबका 
'मृत्यु ' निश्चित 
फिर क्यों जाति 
धर्म की मारा-मारी, 
मेरे ईश्वर सुन ले 
विनती हमारी..!! 
कर मुआफ आज 
गलती सारी..!!

*****************

चल उठ अब तो चल ..
इस पल के इंतजार में, 
रोज कहा करता कल और कल 
जब सूर्य नित निकलता ।
नहीं कहता आज नहीं कल,
कर दृढ़ निश्चय मन को,
ठान ले चलने को 
जिस रास्ते को चुना है तू 
मंजिल तो मिलती है बस पग भरे कोई 
चल उठ आप तो चल .....
मैं भी थी बस यों आज और कल में,
भंवर था मानो इस 'कल' में 
आज मैंने जो राह चुनी
मानों सारा आसमां को जीता
राह तो अनजाने मगर 
मंजिल आ रही नजर 
रुकना नहीं अब आज चाहे हो जाए कल
रूकुगी नहीं जब तक ना आए सहर की लहर ।
एहसास को पूर्णता है पाना आज, 
इसलिए चलती रहूंगी हर पल 
चल उठ अब तो चल.....

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कौन है जिम्मेवार.....??

आज देश की बड़ी भयावह स्थिति उत्पन्न हो गई है । कहीं भी नारी सुरक्षा की बस बातें होती हैं, मगर जितनी बात उतनी ही बेबुनियाद ।
नारी उत्पीड़न या बलात्कार मानो हर दो दिन की घटना आम हो गई है ।अभी हाथरस की ताजी घटना जिसमें एक मासूम लड़की के साथ जबरन सामूहिक बलात्कार की घटना ने पूरी तरह से देश को आहत कर दिया है ।
मेरा यह सवाल है, कौन है वह दरिंदा..?? जो इन सभी घटनाओं को अंजाम देता है ? अभी हाल में निर्भया व हैदराबाद कांड से भी क्यों इन्हें सबक नहीं मिला..? इसका क्या मतलब है की कानून को ठेंगा दिखाना इनके लिए आम बात है या इनकी इतनी विक्षिप्त मानसिकता है, जो नारी जाति के लिए विष के समान है । इतनी कुंठित मानसिकता जो एक पल भी यह नहीं सोचता यह क्या कर रहे हैं । किसी की जिंदगी ,अरमानों , ख्वाबों व आत्मा को रौंद देने का अधिकार किस ने इन्हें दिया । 
 मोमबत्ती जलाकर और तोङ फोङ कर समाज में कुछ परिवर्तन नहीं होगा । हमें कुंठित मानसिकता वाले को समाज से पहचान कर उनके इरादों को हाथों - हाथ लेना होगा व त्वरित कार्रवाई करते हुए ऐसे लोगों का कोई उमर ना देखते हुए कठोर दंड देना होगा । 
हमारा समाज इतना संवेदनशील है की हर आरोपी के गुनाह पर भी पर्दा डालता है, जिससे वर्तमान में खुद को इंसाफ दिलाना समुद्र को  तैर कर पार करने के समान है ।गलत के खिलाफ सभी का ह्रदय सुलगता है पर क्यों शोषित घुट - घुट कर और आरोपी खुलकर जीता है ? सोचिए और हर परिस्थिति में पीड़ित की जगह खुद को रख कर सोचिए देखिए निर्णय स्वतः हो जाएगा ।

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हिन्दी दिवस..!
हिंदी दिवस प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को मनाया जाता है, और हर साल 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है । 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में सर्व मत से निर्णय लिया गया की हिंदी भारत की राजभाषा होगी । भारतीय संविधान के भाग 17  अध्याय अनुच्छेद 343( १) में इस प्रकार वर्णित है 
"संघ की राष्ट्रभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंको का रूप अंतरराष्ट्रीय रूप होगा" । 
कहा जाता है 14 सितंबर 1949 को हिंदी के पुरोधा साहित्यकार व्यौहार राजेंद्र सिन्हा का 50 वां जन्मदिन था । जिन्होंने हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए बहुत संघर्ष किया । इस कारण से हिंदी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया। हालांकि जब राष्ट्रभाषा के रूप में इसे अपनाया गया तो गैर हिंदी भाषी राज्य के लोग इसका विरोध करने लगे, और अंग्रेजी को भी व्यापारिक राजभाषा का दर्जा देना पड़ा ।जिससे आज वर्तमान में अंग्रेजी भाषा का दबाव हिंदी में देखने को मिलता है ।हिंदी को बढ़ावा देने के लिए हिंदी के प्रचार प्रसार के लिये व वातावरण तैयार करने के और हिंदी के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से हिंदी दिवस मनाया जाता है क्योंकि " हिंदी है हम ,वतन हैं हिन्दोस्तां हमारा" ।

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                    अजनबी..!
चलो एक वादा करते है अजनबी बन जाते है ।
न तुम मुझे जानो और न हम तुम्हें पहचानते है
छोङ दे वो ख्वाब जिसमें हम बसते है। 
भूलकर सारी कसमे वादे 
उस मुकाम की ओर बढ़ते हैं ,
जहां सिर्फ दर्द ही दर्द हो 
जख्म के अलावा कुछ और न हो 
चलो एक वादा करते है अजनबी बन जाते है ।
याद तो रहोगे हरदम भूलना फितरत नहीं ,
करे क्या अब जीना ऐसे ही है हमें।
न देखे तुम्हें देख कर अजनबी बनते है ,
चलो एक वादा करते है, अजनबी बन जाते है
मुश्किल है इस राह में चलना जहां कभी साथ साथ चलते थे। 
बसा कर यादे दिल में मुस्कुराने का वादा करते है। 
मलाल न करे वक्त का,
 कभी फुल यहां खिलते है बिखरते है। 
चलो एक वादा करते है अजनबी बन जाते है ।
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आनलाइन शिक्षा..!
आज पूरा देश वैश्विक महामारी करोना से लड़ रहा है, और इसमें उलझी शिक्षा व्यवस्था भी डगमगा गई हैं ।शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने और पठन-पाठन का कार्य नियमित रूप से चल सके ,इसके लिए लगभग सभी विद्यालयों ने ऑनलाइन शिक्षा आरंभ किया है ।मगर यह सोचने वाली बात है की क्या यह ऑनलाइन शिक्षा सभी जगह सफल हो रही है, या बस  खानापूर्ति हो रही है ।चुकी सभी सरकारी विद्यालयों में दीक्षा व  डीजी कंटेंट के माध्यम से शिक्षा मुहैया कराई जा रही है। जिसमें शहरी क्षेत्र में तो लगभग यह कारागार साबित हो रही है ,परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में जहां अभी वर्तमान समय में पानी ,बिजली और अन्य खाद्य सामग्रियों का अकाल रहता है । वहां यह ऑनलाइन शिक्षा कैसे सफल होगी..? 
यह बहुत ही सोचने वाली बात है कि आज भी हमारी शिक्षा व्यवस्था की बहुत सारी बातें कागजों पर तो सफल हो जाती है मगर जमीनी स्तर पर  नगण्य रहती हैं । पूरा देश डिजिटल व विकास की ओर बढ़ रहा है परंतु जहां कुछ भी व्यवस्था ना हो तो फिर शिक्षा का अलख कैसे जलाया जाए ? इस बात को गंभीरता पूर्वक लेना होगा मसलन आए दिन शिक्षा संबंधित कई समाचार प्रकाशित होते रहते हैं ,पर कितने ही समाचार सच हुए। धरा पर उतरते हैं ,इस पर यकीन करना असंभव है ।क्योंकि मैं सभी का ध्यान ऑनलाइन शिक्षा की ओर अंकित करना चाहती हैं की यह हमारे राज्य पर कितने सही ढंग से चल रही है या नहीं सबसे पहले मैं उस सुदूर देहात गांव की बात रखना चाहती हूं, जहां पर बहुत ही गरीब व मौसमी बेरोजगार रहते हैं जो अभी फिलहाल कोरोना काल में दैनिक रोजी- रोटी के लिए वक्त पर निर्भर है। वह अपने घर के बच्चों पर किस प्रकार शिक्षा के प्रति मदद करें क्योंकि जब उन्हें खाने-पीने वह दैनिक आवश्यकताओं की सामग्री का अभाव है ,तो वह परिवार एक पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन किस प्रकार खरीद सके ।जिससे उनके बच्चों का पठन-पाठन विद्यालय के ऑनलाइन पढ़ाई द्वारा नियमित चल सके इस पर अपनी राय दें ।
अभी भी बहुत से अभिभावक सरकारी विद्यालयों में अपने बच्चे का भविष्य देखते हैं, और उनका विश्वास है उस विद्यालय के शिक्षकों के प्रति जिस पर अपने बच्चों का भविष्य निर्माण का जिम्मा सौपते हैं अब लगभग पाठ्यचर्या का आधा काल समाप्त होने वाला है जिसमें बहुत से छात्र छात्राएं का अभी तक नामांकन भी नहीं हो पाया है। हमारी सरकार को शिक्षा पर लचीला और गंभीर होकर सोचना होगा की ,हमारे समाज में विभिन्न वर्गों के लोग रहते हैं और सभी में शिक्षा के प्रति अलग सोच व क्षमताएं हैं ।जिसमें बेहतर शिक्षा के लिए प्रतिभामान छात्र छात्राओं का भविष्य निर्माण में  उनके रूचि के अनुसार से नि :शुल्क व उच्चतर  शिक्षा उपलब्ध कराए जाएं ।
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  वंदना..!
वंदना करु नित  ईश्वर  की 
जिसने देन दिया नवजीवन की 
माता पिता के रूप में सृजन धार 
गुरु के रूप में नैतिक मूल्यों का दान,
ईश्वर है पास मेरे मानव रूप में । 
ऋणी हूं सदा मैं इनकी,
ईश्वर सदा रहे मेरे मन में ,
अंतरात्मा की संयमता ईश्वर से ,
वंदना करूं नित ईश्वर की ।
कामना यही सत मार्ग न त्यागूं
मैं भी मानव रूप में दान कर जाऊं।
करू विद्यादान या श्रमदान ,
ईश्वर की आस्था का हो सर्वत्र गुणगान ।
चाह रहित कोमल मन की, 
नित ईश्वर प्रेम को उजागर कर जाऊं ।
कभी मीरा सा रम जाऊं 
कभी तुलसी की रचना बन जाऊं ।
विपरीत क्षणों में भी ईश्वर के गुण गाऊं
अडिग रहे विश्वास सदा
वंदना करु नित  ईश्वर की ।

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रुक जाऊं या छोड़ दूं रास्तों को ,
नजर भी तो आता नहीं राह अब मुझको ,
थक गया तन और मन भी हताश 
छोड़ गए सभी जो थे कभी साथ साथ ।
सौ कोशिशों के बाद  नजर न आया,
 ना मंजिल, ना रोशनी का नामोनिशान ,
न चक पाया इक भी सफलता का स्वाद ।
जुनून था जो कहीं खो तो ना गया 
छोड़ दूं अब प्रयासों का सिलसिला 
ये जीवन मरीचिका सा बन गया ।
चलो आज अंतिम से आरंभ करते हैं ,
देखते हैं खामियों को उसे दूर करते हैं  ।
रेगिस्तान में जल की तलाश नहीं 
जल का स्रोत निर्माण करते हैं ।
ओढ़े कटुता व निंदक का चोला ,
खुद से चल उठने का वादा करते हैं 
धुंधली से जो धुंध नजर आती है 
शायद वही मेरी सफलता की प्रतीक है ।
 याद है सदा मुझे वही पुरानी नीति है-
"करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान"
"हम सभी खुद को स्वकेंद्रित  (motivate ) कर ही आगे बढ़ सकते है न कि नकल का रास्ता अपनाकर "..! 

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मैं क्यों ठहर जाऊं गर तुम ना ठहरे,

मैं क्यों रुक जाऊं,
जब तुम ने कई रास्ते निकाले ,
मैं आज उफान पर हूं, 
बदल दी है अपनी चाल।
तुमने संतोष नहीं किया,
फिर मैं भी क्यों शांत रहूं ,
किया छेड़छाड़ सदा प्रकृति से तुमने ,
प्रकृति ने तो मां बन तुम्हारा पोषण किया
बदल गई है आज रुख हवा की, 
समझो इसे तुम शायद बदले की भावना ,
मगर नव निर्माण के लिए विनाश है आवश्यक ,
सत्य यही नीति है सदा की ।
जिस ने जो किया वही पाया है, 
अब क्यों हतोत्साहित हो तुम
भूल गए पहाड़ रूपी संतरी को 
फिर क्यों आज बादल की सेना से ,
मन तुम्हारा घबराया है ।
तुम्हें हरियाली पसंद नहीं ,
देखो चकाचौंध रोशनी ने, 
आज सारा वातावरण को कैसे तपाया है ।
जहां सारे वर्ष खुशी से गुजरते थे ,
धूप में भी सुकून, बारिश की बूंदे गुदगुदाती थी।
आज वही धूप में जलन 
और बारिश में तेजाब लाया है ,
मैं क्यों ठहर जाऊं गर तुम ना ठहरे....  

   
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   विधार्थी जीवन..!
जीवन का जो अनमोल मोल है
उसका महत्व तब समझ आता है
जब विधार्थी जीवन का सांचा
सही आकार में डाला जाता है।

तमन्ना की उड़ान और चाहतों का सिलसिला
कशमकश में विधार्थी जीवन उलझ जाता है
बागडोर इसकी ढील न पड़ जाए
ये पल न दोबारा लौटकर आता है।

मगर उस वक्त बड़े होने की जल्दी और
ज़िम्मेदारी के बीच नादानियों में
ये कहां समझ पाता है
अब व्यस्तता के बीच चाहते हैं
गर लौटना उन क्षणों के बीच
मगर कभी भूत और वर्तमान
कहां मिल पाता है।

जीवन का जो अनमोल मोल है
उसका महत्व तब समझ आता है
जब विधार्थी जीवन का सांचा
सही आकार में डाला जाता है।

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किसी को भूलाना यूं आसान नहीं ,
कसमें वफा की निभाना आसान नहीं ।
जब इश्क़ शब्द ही अधूरा फिर ..
चाहत हरदम हो जाए पूरी जरूरी नहीं ।
गिरना, संभलना, उठना, फिर चलना ,
खुद को संभालना, दिलासा देना ।
गर हो यूं आसान, फिर उल्फत में 
किसी को भूलाना आसान नहीं ..
हमदम, हरदम साथ दे उम्र भर 
फिर तनहाई की रातें बिताना आसान नहीं ।
रूठना, मनाना, हंसना, हंसाना दस्तूर जिंदगी का,
मनाने ना आए कोई गर जिंदगी ही नहीं ।


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                  " वक्त "
बदल जायेगा ये वक्त भी बदल जायेगा 
राह में अंधकार छाये रोशनी जरूर आयेगा ।
चलना है पथिक तुझे पथरीले राहों से,
मंजिल नजर आयेगा जरूर आयेगा।
मत सोच कौन साथ तेरे साथ किसका छूटा,
ख्वाब है जो तेरे उसे पूरा करने न कोई और आयेगा ।
बदल जायेगा ये वक्त भी बदल जायेगा ।
संबंधों में कटुता आयेगी या मिसरी कही घोली जायेगी,
स्वाद चख सफलता का पूर्णता प्राप्त हो जायेगा।
पैरों के छालो का विस्मरण हो जायेगा ,
नयी ऊर्जा नयी फतह चारो ओर छायेगा ।
बदल जायेगा ये वक्त भी बदल जायेगा ।
नव पीढ़ी को फसाना सुनाना न भूलना,
 पैरों के छाले दिखाना न भूलना ।
खुद को अंधकार से कैसे उभारा जरूर ये बताना,
आज जरूरी है हर युवान को ये बात बताना ।
बदल जायेगा ये वक्त भी बदल जायेगा ।

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          मौन..!
मौन हो जाती हूँ जब इच्छा 
को परिस्थिति की बेदी चढाती हूँ,
अपने ख्वाब को छोङ 
सबके सपने पूरी करती है। 
मौन हो जाती हूंँ जब 
संग गुजारना चाहूं साथ तेरे ,
और जिम्मेदारी आ जाती आङे, 
जीते-जीते सबके ख्वाब 
खुद को अधुरा कर जाती हूँ। 
समान अधिकार का यथार्थ 
न समझ पाती हूँ ,
मौन हो जाती हूँ 
रिश्ते निभाना गर जानती हूंँ ।
मौन रह हर इच्छा 
अनिच्छा कि सहमति प्रदान करती हूँ,
मौनता शस्त्र या सौंदर्य 
भेद न बता पाती हूँ ।
मौन रहकर ही 
नव निर्माण कर जाती हूं।


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एकता..!
देश की नई व्यवस्था देखी है
कहीं मानवता जिंदा 
तो कहीं असुरता देखी है ।
देते दुहाई सभी सच्चे पथ की 
जब चलते तो 
कदम की छाप विलुप्त देखी है ।

सहर्ष स्वीकार करते कुछ संघर्षता,
तो कहीं पैरों की खिंचाई देखी है ।

नव निर्माण की बातें करते सभी 
निस्वार्थ भाव से समर्पण ईष्ट देखी है ।

गुजरते भाव से 
वक्त के साथ लोगों के मिजाज ,
क्षण पल कुछ तो क्षण में कुछ देखी है।

कहीं धूप की प्रचंडता तो कहीं,
छांव कि शीतलता देखी है।
निराशा से डूबती कश्ती तो 
कहीं जीत की फुहार देखी है।

कायरता की भरमार तो कहीं 
सबल की मिसाल देखी है 
बनती, बिगड़ती, 
नवीनता में ढलती व्यवस्था ,
भारत है वीरों का देश 
अनेकता में 'एकता' देखी है ।


********************

मेरे इन उखङे पन्नों को किसी ने
जोड़ने की कोशिश की थी,
धुंधले पड़े मेरे शब्दों को
पढ़ने की कोशिश की थी ,
मेरे अल्फाजों को
बयां करने की कोशिश की थी
मैं हूं किताब मुझे किसी ने
समझने की कोशिश की थी ।
अतित में शामिल हो जाऊंगी
पन्ने से पन्ने अलग हो जाऊंगी
जो समझा नहीं मेरा मोल
अब किलो के भाव में आऊंगी
मैं हूं किताब
मुझे किसी ने समझने की कोशिश की थी ।
ज्ञान का सागर आता है मुझ में
न समझे मेरी इसमें ना खता है ,
सब के नजरिया से समझ जाती हूं मैं ।
मैं तो किताब हूं सब समझ जाती हूं ,
कुछ व्यवहारिक बातें
कुछ मन की बातें सबकी खबर रहती है,
मुझमें कुछ ऐसे हैं
जिसका गूढ़ रहस्य बताती हूं,
मैं तो किताब हूं
जितना पढो उतनी गर्त जाती हूँ मैं।


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मृत्यु..!
मृत्यु एक विराम  तो लग जाना है,
फिर तो लम्हों में जीना है,
मृत्यु की नियति को स्वीकारना है। 
गिले - शिकवे से दूर कराना है ,
नम आंखों से विदाई कर जाना है। 
अश्रुपूर्ण कुछ दिनों तक 
संबंधियों के अतीत व मुद्दे बन जाना है,
मेरी उपलब्धियों को याद कर 
तटस्थ रह जाना है,
किसी की चाह लिए किसी की तङपन 
अब पूरी नहीं कर पाना है 
मृत्यु एक विराम तो लग जाना है ।
लिखे पन्ने को छोड़कर नए पन्ने में आना है ,
कहीं शुरू तो कहीं इतिश्री कर जाना है  । 
रुख मोड़ नये अध्यायों का 
कहीं पछतावा भी कर जाना है 
रिक्ति की पूर्ति के लिए सबल छोड़ जाना है ,
गर्त में डूबे रहें नामोनिशाँ भूल जाना है ,
मृत्यु एक विराम तो लग जाना है ।


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इंतजार था मुझे जैसे, 
पतझङ के बाद वसंत का
सूखी भूमि पर उठी तृष्णा का ,
स्वागत करें आज शीतल सावन का ।
बारिश की बूंदे धरा पर पड़ रही ,
नवचेतना जागृति उत्पन्न कर रही ,
चारों तरफ हरियाली दिखने लगी ,
बूंदों की सौंधी खुशबू ताजगी दे रही ।
जिस तरह विरह के बाद मिलन सुख देता 
सावन माह मुझे भोले बाबा से मिलाता ।
मन हर्षित अंतर प्रफुल्लित कर रही श्रृंगार 
हरी चूड़ियों से, हरियाली मन में छा रही है 
सावन हरियाली से हर्षित नवगीत गा रही है ।
इंतजार था मुझे जैसे, 
पतझङ के बाद बसंत का...
सूखी भूमि पर उठी तृष्णा का 
स्वागत करें आज सावन का ।
 
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आज की रचना मेरे मित्र श्री प्रदीप उरांव के वीर अनुज कुलदीप उरांव व पिता श्री घनश्याम उरांव साथ ही उनके परिवार को समर्पित है..!
धन्य हो गई जमीं साहिबगंज की 
जिसके जमीं में वीर सपूत को सींचा है,
धन्य हो गई सारी आवाम 
जहां वीर वीरगति को प्राप्त हुआ है ।
शत-शत पूजनीय है वो माता 
जिसके कूल में 'कुलदीप' जन्मा है,
उस पिता का ह्रदय कितना विशाल है 
जिसने वीर के बलिदानी को स्वीकारा है ।
गर्व की बात है दुख का भी साया है ,
वीर सपूत को खोकर भी 
एक बाप मुस्काया है,
कर धरती मां को नमन कहा
आज 'दीप' तेरे काम आया है ।
व्यर्थ न जाए यह शहादत 
आंसुओं को छुपाया है,
वीरों की धरती है यह साहेबगंज 
मुन्ना, कुंदन और कुलदीप का अखंड दीप जलाया है ।
धन्य हो गई जमीन साहिबगंज की 
जिसके जमीं में वीर सपूत को सींचा है ।

*********************

ढूंढोगे मुझे तुम कहाँ-कहाँ..?? 
मिलेगा न कहीं मेरा नामों-निशाँ..!!
गर्दिश में हो जाएंगे खाक, 
इश्क़ नहीं समंदर था मेरा,
तेरे लिए जिया और तुझ पर खत्म 
समझ ना आया तुझे यहाँ 
ढूंढोगे मुझे तुम कहाँ-कहाँ..?? 
दूरियां दिल की मजबूरियां दिल की 
फकत ना थी तेरे सिवा आरजू किसी की 
नाराजगी तेरी और दीवानगी मेरी 
गर मुक्कमल ना हो सकी मोहब्बत यहाँ,
ढूंढोगे मुझे तुम कहाँ-कहाँ..?? 
ये माना कमी थी हमारे फल-सफाने में,
तूने भी तो वक्त दिया ना जताने में ,
गरुर था मगरूर तू जमाने से,
ना कैफियत थी हमारे फ़िक्रआने में ,
इस जहां की तो बात है थी गर 
तूने साथ ही झिङक दिया यहाँ 
ढूंढोगे मुझे तुम कहाँ-कहाँ..?? 
मिलेगा न कहीं मेरा नामों-निशाँ..!!



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सखी....
सुन सखी, मेरे दिल की झंकार, 
पूरी जो होती है तार दिल की,
हम दो नहीं एक है,
क्यूं जानती है तू भी सखी
दर्द दोनों ने बांट लिया है, 
एकांकी से यूं खुद को उभार लिया है..
पूरी शोहरत है साज- सज्जा भी, 
रिक्ति जो है तन्हा दिल की ,
सुन सखी मेरे दिल की झंकार ।
जब हर पग में अंधेरा छा जाए 
कहने को सब, गर कोई ना हो 
तब सखी तू ही रहना चारों ओर मेरे 
देना ज्ञान संसारी उलझनों का 
निस्वार्थ साथ है तेरा सखी ।
कभी मैं कभी तू संभाले एक दूजे को सखी
ना रहेगी कोई विवशता दिल की 
सुन सखी मेरे दिल की झंकार ...
पूरी जो होती है तार दिल की...

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             " शून्यता "

जीवन बढ़ चला शून्यता की ओर 
ना रही जंग किसी जुङाव अंको की होङ....
मुक्ति और तृप्ति कि चाह लिए ....
करूं क्या जुगाड़ यही बात है चारों ओर,.....
खुद के अरमाँ को छुपा लूं या रौंद दूं सारे ख्वाबो को.....
नजर नहीं आता अब मुझे कुछ और .....
बात तो नहीं भी है दरम्यान मेरे ,
क्यों नहीं मिलती फिर शांति मुझे, 
बस चल रही हूं अनजान राह की ओर......
खुल जाए गाँठ मेरे दिल की,
चाह अब भी जिंदगी के साथ जीने की......
बढ़ा दो कदम, मिट जाए मेरे जीवन का शोर ,.....
जीवन बढ़ चला शून्यता की ओर.....



********************
कहने को बहुत सी बातें हैं..!
क्या मुझे जानते हो..?? 
ये जानना है...
ख्यालों में आना लाजमी है आपका..! 
हकीकत में कब आओगें..?  
ये जानना है...
रूबरू हुए जमाना हो गया..! 
मिलने का बहाना कब होगा..?
ये जानना है.....
तारीफ में क्या लिखूं..??
आपकी वह टकटकी सी ठहरी हुई निगाहें..! 
चुपके से देखना फिर मुस्कुराना..!! 
ये अल्फाजों में ही रहेगा क्या..?
ये जानना है .....
वो बारिश में भीगते आंखों से आंसू..! 
कब पहचानोगे..?? 
ये जानना है ...
तड़प का एहसास है कभी गर, 
वो तड़पन कब पूरी होगी..?
ये जानना है...


*************************
पथ प्रदर्शक, नव विधान निर्माता।
गुरु समान दूजा न पूजा जाता।।
वही हमारा भाग्य विधाता।
माता -पिता ईश्वर अपरूप।
गुरु, प्रदान करे स्वरूप।।

मिला सदा सदाचार का गुण।
चाहें भला हम क्यों अवगुण।।

सम्मान पाने की जो हो आशा।
दूसरों को भी हो ना निराशा।।

मूख से निकले सदा सतवाणी।
जीवन तो है आनी जानी।।
धैर्य धरो, संग शांति करो यापन।
शक्ति स्वरूपा का अंग यह जीवन।। 

कौन ना जाने, भाग्य अनेक। 
ईश्वर से आस्था ना टूटे देख ।।
मूल मंत्र है जीवन की सीख 
सत्कर्म का साथ ना छूटे देख।।
*******************
कौन है यह लोग, 
जिनसे हमें दूर जाना है..?? 
क्यों हमें सामाजिक दूरी बनाना है ।
किस बात का डर अब यह क्या कर जाना है, 
क्या करे हम आज कैसे खुद को बचाना है 
इस संकट की घड़ी में विश्वनीयता को अपनाना है 
पूरे वर्ग को यह समझाना है।
दूरी और स्वच्छता का मार्ग अपनाना है 
उसके साथ पूरे समाज को भी बचाना है।
छुपाना नहीं है अपने लक्षणों को 
होने वाली हर गतिविधि से अवगत कराना है 
हम है तो हमसे समाज हैं 
समाज में रहकर हर उपाय अपनाना है..! 
जहां जरूरत हो सहारे की वहां सहारा बन जाना है, 
इंतजार नहीं करना है औरों का 
खुद से जग निर्माण करना है।
बहुत हो गया इसकी-उसकी बातें 
अब कुछ सबके काम आना है। 
आज समाज से बीमारी को दूर भगाना है,
अपना कर सारी हिदायतें 
अच्छी नागरिकता का ज्ञान बढ़ाना है ।
आज, हम सबको मिलकर कोरोना जड़ से मिटाना है..!
कोरोना जड़ से मिटाना है..!

***********************
लिखूं भी तो क्या आज आंखें नम है...
खोया आज देश नें वीर सपूत है,
वीर है जो वीरगति को प्राप्त करें ।
आज देखी है मां के आंखों में आंसू के सैलाब को
वक्त की करवट है आज सब दुबके पड़े हैं घरों में 
वह जवान खड़ा डटकर रहा सरहदों में ।
धरा भी शुद्धित हो गई वीर के लहू से
लिखूं भी तो क्या आज आंखें नम है ।
बिछड़ गया है आज एक भाई बहन से, 
जिसने बहन की डोली उठाने का वादा किया था,
आज उस बहन की आंखें अर्थी देख रही ।
वेदना -पीड़ा की ना कम हो रही है,
लिखूं भी तो क्या आज आंखें नम है ।
आज साहिबगंज शहर भी शांत है, 
उसके हृदय में भी उठ रहा तूफान है,
शहादत से भर उठी है जमीं 'झार' की,
व्यर्थ न जाएगी बलिदानी वीर 'मुन्ना यादव' की,
चारों ओर गूंज रही है ध्वनि वंदे मातरम की ।

**************************

मेरे दिल के जज्बात वो समझ जाते
ना होती लंबी इंतजार,
गर वो लौट आते

माना रूठना मनाना यह फितरत है
दूरियां -दूरियां पर क्यों भूला जाते

तन्हाई की रातें क्या जाने
वो जो तन्हा रातें गुजार न पाते

कांच की खिलौने से जिंदगी हमारी
गर हाथों से छूट बिखर जाते हैं
दूर कर देते हैं यूं मुझे कांच हूं न चूभा जाते

'सिर्फ तुम' की चाहत में जिंदगी गुजार जाते
गर बाहों में किसी गैर को ना देख पाते

मस्ला ईश्क का कब सुलझा है
इस सफर में हमसफर तलाश लाते

गुप्तगूं थी कुछ पल की आपसे इजाजत
हो हाले इश्क़ बयां कर जाते ।

***********************

कोई बेखौफ घुम रहा है सङको में
कोई दिल में लिए दर्द दुबका है घरों में ।

कोई जीवन बचाने के लिए खुद का जीवन झोंक रहा है,
कोई जीवन का मोल लगा जीवन बेच रहा है ।

सुनसान सी है गलिया मन में शोर हो रहा है ,
अनजानी सा खौफ चारों ओर हो रहा है ।

तमन्ना तो थी गुजा़रे हम सारी जिंदगी साथ-साथ,
मगर हिंदूस्तान को खंडित करने का जोर भी तो हो रहा है ।

तव्व़जो तो न दोगें मेरे अल्फाजों का
गर ये भी बयां हकीकत कर रहा है


************************


चलो आज नमन करे उस प्रहरी को,
जिसने देश सेवा कर हमें सुरक्षा दी..।
खुद के स्वार्थ को त्याग कर,
हमें हर सुख- सुविधा दी..!!
वंचित हो गए जिनके परिवार आज आकांक्षा से,
चलो आज नमन करे उस प्रहरी को..!!

रहकर खुद धुप में जिसने घरों में छांव दी,
जग कर रातों में हमें आंखों में नींद दी,
स्वादिष्ट व्यंजनो को भी छोङकर दो जून से पूर्ति की ,
चलो आज नमन करे उस प्रहरी को..!

आज एक विपदा (कोरोना) आ पड़ी हैं,
जिसमें हमारी रक्षा को ईश्वर ने दो रूप भेज दी..!
सच कहते है जीवन अनमोल हैं,
इस अनमोल की रक्षा आज स्वर्गदूत ने की..!
चलो आज नमन करे उस प्रहरी को..!
चलो आज नमन करे उस प्रहरी को..!

********************
आज कोरोना को धोना है..!
करके याद बचपन कि आदतें, 
आज फिर से बात-बात में हाथ धोना है ।
डरना नहीं है आज इस कोरोना से
मिलकर इसे दूर भगाना है,
होगी बहुत सी अफवाह 
या भ्रम का भी फैलेगा मेला 
सुझ और समझ का प्रयोग कराना है
आज कोरोना को धोना है

करते आए है तिरस्कार विदेशी तत्वो का,
आज इस विदेशी बीमारी को नहीं अपनाना है, 
हमारी देशी संस्कारों और सभ्यता को अपनाना है,
आज पूरे विश्व को ये दिखाना है
आज कोरोना को धोना है ।

भारत देश हमारा महान है, 
हमारी एकता से ये जताना है,
कदम-कदम पर साथ देकर,
मिलकर कदम चलाना है,
सतर्क और सजग होकर,
आस-पङोस को समझाना है,
आज कोरोना को धोना है ।

भूलना नहीं है बापू का सपना, 
स्वच्छ भारत देश हो अपना ,
स्वच्छता और सफाई कि फितरत,
रग में बस जाना है ,

आज कोरोना को धोना है ।

******************

महिला मतलब समर्पण 
महिला मतलब सर्वसंपन्न 
महिला मतलब आसक्ति
महिला मतलब जन्मधात्री
महिला मतलब सर्वश्रृंगार
महिला मतलब सर्वशांति
महिला मतलब अर्पण-तर्पण
महिला मतलब खुशियों कि खान
महिला मतलब जन्नत कि द्वार

महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..!

******************************


महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..! 
ममता की मुरत फिर कहाँ पाओगे..?? 
कितने भी रकम लो भरपाई नहीं कर पाओगे..!
आँखो में छिपे आसूं को यूं छिपाओगे,
बयां न कर सके जब हालात, 
मां के आंचल में जा कर सुकून पाओगे..!
माफ कर देती जो पल में हर गलती को,
कर देती फरमाइश पूरा चुटकियों में,
उसके कुर्बानियों को आज जो अवहेलना करोगे,
इस जमीं में न जन्नत फिर देख पाओगे..!


***************************
      
   ~: आनॅलाइन इश्क :~
वो हमसे आनॅलाइन इश्क फरमाते है,
होते है आनॅलाइन जब हम आनॅलाइन आते है 
करके चेक स्टेटस हमारी सारी 
हमें फिर से ब्लॉक कर डालते है 
वो हमसे आनॅलाइन इश्क फरमाते है..! 

इंतजार रहता है उन्हें हमारे हर नये पोस्ट का
जवाब नहीं आता उनके रिएक्शन का
जानते है वो, मेरी रचना में उनका है नाम छिपा
न जाने क्यूं हमें रिप्लाय नहीं देते है,
वो हमसे आनॅलाइन इश्क फरमाते है..! 

गर हो जाती है हमें भी खबर उनकी इन बेकरारयों का
हम भी खुद में इतराते है,
वो हमसे आनॅलाइन इश्क फरमाते है! 

राहें अलग है अब हमारी 
इस अजूबे यन्त्र ने थामी है ड़ोर हमारी,
अब हम भी छुप के से प्रोफाइल में उनके चले जाते है, 
देख छवि उनकी यादों के सागर में डूबकी लगा आते है, 
आनॅलाइन इश्क वाला फितूर हम भी आजमाते है,

वो हमसे आनॅलाइन इश्क फरमाते है..!
  
************       
 * औकात *

तुझ से करना है मुहब्बत छुप-छुपकर 

मुझे मेरी औकात पता है
तुझ से जुड़ी हर बात पता है,
गैर की बाहों में शामें रंगीं तेरी 
मेरी बुझती महफिल कि हर बात पता है।

बयां न कर सके इजहारे मोहब्बत 

वो जख्म का मरहम पता है।
तुझ से करना है मुहब्बत छुप-छुपकर 
मुझे मेरी औकात पता है।

मुक्कमल न हो सकी गुफ्तगू हमारी

कसक इश्क कि हर जाम पता है।
ख्वाब कब हकीकत होते है,
मुझे भूली तेरी हर बात पता है।
टूटे दिल की हर टुकङे में तेरा अक्स छिपा है
गर इसे छिपाना मुझे पता है,
तुझ से करना है मुहब्बत छुप-छुपकर 
मुझे मेरी औकात पता है..!

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आज का नज्म मैंने आज कि युवा पिढी को ध्यान रखते हुए लिखा है जो इक-दो मुलाकातों में प्रेम का इजहार व साथ जीने मरने कि कसमें तो खाते है लेकिन किसी कारणवश अगर अलग होना पङे तो उसकी यादो में अपना स्वर्ण सा जीवन बर्बाद कर देते है । अपने लालन पालनहार को भी भूल जाते है ।
      
       'एहसास -ए -वफा '
मेरे हर नज्म में तेरा तराना होगा
मेरे हर अरमां का जिक्रराना होगा
हम तो हालातो से लङते लङते 
मुकद्दर से जीत जाएगें।

तेरे न होने से सफर- ए -जिंदगी 
गंवाना न अब गवॉरा होगा,
तेरे होने से पहले का वादा है जीवनदाता से
इसे साबित करने का बहाना होगा

अब जमाना मेरे साथ -साथ होगा
ढूढोगें तब नाम खुद का मेरे फसाने में,
गुजरे वक्त का एहसास तब तुझको होगा।


******************************************** '
          
              " स्त्री -अंतर्मन "
अभी तो मुझे उङना है उन्मुक्त गगन में,
दूर कहीं चलना है कदमो के ताल में,
बांधो न मुझे झूठे रिवाजो के बेङियों में,
मुझे भी कुछ कर दिखाना है जमाने में,
आशा कि जो किरण जल रही है ।
उसे न बुझने देना है मुझे भी उङना है,

राहों में कठिनाइयों से भरे रोङे हैं,
जरूरत बस थोङी हौसलों की है ।

चाहत है खुले आसमान में मंडराने की,
पक्षियों के साथ साथ गुनगुनाने की,
दे दो साथ थोङा ये भी जरुरी है जमाने में,
अभी तो मुझे उङना है उन्मुक्त गगन में..।

3 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. वक़्त की एक आदत बहोत अच्छी है जैसा भी हो गुजर ही जाती है।💕💕

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    1. जी सही कहा आपने,बस इसान को उम्मीद का दामन नहीं छोङनी चाहिए

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