23 जून 2021

रचना :- रागिनी लहेरी साहा

एक रात मैं मूँद लूँगी आँखे अपनी
और  फिर न कभी होगी सुबह मेरी
उस दिन ज़रूर शायद आँखें होगी नम तुम्हारी 
पर तुम बहुत न होना दुखी 

मेरी मुस्कुराती  तस्वीर टाँग देना 
तुम हर कमरे की दीवार में
दिखूँगी तुम्हें मैं घर के हर कोने मे

मेरी मुस्कुराती तस्वीर पे न तुम
फूलो की कोई माला चढ़ाना 
नहीं हूँ मैं तुम्हारे साथ कभी भी
खुद को ये तुम याद न दिलाना

जब सब मिलकर बैठोगे साथ खाने
तब इक कुर्सी ख़ाली रखना तुम 
मैं भी शामिल हूँ तुम्हारे साथ में
बस मन में यह यकीन कर लेना

जब मन करे सुनाना गीत मुझे 
बेआवाज साथ  मैं भी गाऊंगी
पहले सुना लेना दिल की बात 
यह भी नहीं कहूँगी मैं मत करो इतनी बात

बात करते हो जैसे तुम मुझसे आज
हरदम  वैसे ही करना तुम मेरे साथ
बस इतना समझना की मैं हूँ तुम्हारे आस पास


अगर करते हो वकाई मुझसे  प्यार 
इक दूजे के सम्मान का रखना खयाल 
दुखा दिल किसी का भी तेरी वजह से
दुखी होंगीं तुम्हारे साथ मैं भी हर बार

यादों को बोझिल न बना लेना मेरी
नाम लेकर मेरा ज़रा मुस्करा देना
अगर न दिखूँ तुम्हें तो मूँद लेना आँखें 
भीतर अपने मुझे साथ पा लेना अपने

हँसी में तुम्हारी खिलखिलाऊँगी मैं भी
खुशी में तुम्हारी ख़ुश हो जाऊँगी मैं भी
जिंदगी को जीना हर घड़ी भरपूर तुम
साथ तुम्हारे जीती जाऊँगी मैं भी हर पल

******************

जिंदगी में  होना चाहिए 
इक ऐसा मित्र  जो
अपना  सा लगे 

जो अलग हो सारे बंधनो  से
सारे रिति रिवाज़ से
समाज के अंधविश्वास  से  

बांटते रहे जिससे अपने
मन की  हर बात
बिना किसी संकोच के 

जो समझ सके हमे 
हमारी तरह से
पढ़ सके आंखो को  
होना चाहिए
एक साथी ऐसा भी
ज़िन्दगी में..........

जो अलग हो दायरों से..
जिससे मिल कर लगे हा मैने
खुद  से खुद  की बात  की
दिल ने दिल से मुलाकात  की  

जरूरी  होता  जीवन मे
इक सच्चे साथी की
इक खुद  जैसे दोस्त  की


**************

बाजू को थाम ,
कदम के साथ कदम
अपना  मिलाते हुए 
मैंने कहा,
अच्छा, सुन अगर मैं हवा बन जाऊं तो
उसने कहा,
मैं पेड़ बन जाऊंगा
तुम मेरे हर पत्ते को छूती हुई 
मुझ से लिपट कर रहना ।।
मैंने कहा, 
धत, मैं बारिश की बूंद बन जाऊंगी
फिसल कर तुम्हारे पत्तों से बह जाऊंगी ।।
उसने कहा, 
फिर में धरती बन जाऊंगा
दोनों बाहें खोल कर तुम्हारा स्वागत करूंगा
तुम आना और मुझ में खो जाना ।।

मैंने कहा, 
अरे नहीं मितवा  मैं तो धूप बन जाऊंगी
उसने कहा ,
मैं आँगन बन जाऊंगा
तुम अलसायी सी पड़ी रहना ।।
मैंने कहा ,
मैं चांदनी बन जाऊँगी
उसने कहा ,
मैं गगन बन जाऊंगा ...

मैंने कहा, 
ओफ्फोह ,छोड़ भी
मुझे कुछ भी नहीं बनना 
बस जा रही हूँ मैं ।।
उसने कहा, 
रुक ,मैं तुम्हारे साथ आ रहा हूँ ।
***************

ख़्वाहिशें रंग लाती हैं
सपने दिल को सजाती है
प्यार सच्चा हो तो
कायनात भी दिल को दिल से
मिलाती है।
हवाएं अफ़साने लिखती हैं
बारिश की बूंदें उसे मिटाती हैं
प्यार सच्चा हो तो
तूफान हो या बाढ़ दिल की कश्ती
किनारे लग ही जाती है।
वक़्त हालात बयां करती है
समस्याएं आंखें दिखाती हैं
प्यार सच्चा हो तो
कांटों के बीच भी
दिल की बगिया खिल ही जाती है।

********************

दिल की बातें करते रहे सभी
फेंफड़े का कुछ बताया ही नहीं, 
फेंफड़ा भी स्वाभिमानी निकला
गुस्सा था, पर जताया ही नहीं।

इतना नाराज थे ऐ दोस्त!
तो कम से कम जताया तो होता
दिल की जगह तुम भी ले सकते थे 
बस एक बार बताया तो होता। 

दिल का क्या है वो तो टूटता है
फिर जुड़ जाया करता है,
ऐ फेंफड़े! तू गर नाराज़ हो तो
मौत की तरफ मुड़ जाया करता है।

ऐसा पता होता तो तुझे 
अलग ही सम्मान दिलाया होता, 
अपने मोहब्बत को दिल से नहीं,
तुझसे मिलाया होता।

***************

अगले क्षण में क्या है
ये कौन जानता है
इस क्षण में क्या है
ये हम जानते हैं
जिन्हें नहीं जानते
उन क्षणों के पीछे
एक अंधे की तरह
दौड़ रहे हैं
या फिर ठहर गए हैं
और बस अनुमान लगा रहे हैं
किंतु जो वर्तमान
हमारे हाथों में है
उसे जीना भूल से गए हैं
डरे, सहमे बिना हलचल के
बस सोच के बस में है
जबकि इन क्षणों के हम स्वामी है
जब मृत्यु चारों ओर हो
तब जीवन का मूल्य बढ़ जाता है
तो फिर क्यों
कल के लिए
आज को  खो दें
ये मलाल न रहे
कि कुछ था जो 
बाकि रह गया
इस लिए आज
एक-एक क्षण को
हम भरपूर जी लें।

**************

कुछ दिन रखे हैं
कुछ रातें रखी हैं
तुझ संग बिताने को
कुछ अपनी सांसें रखी हैं।

कुछ धूप रखी है
कुछ छांव रखी है
तेरे इंतज़ार में मैंने
दहलीज पे अपनी
आंखें रखी हैं।

कुछ बादल रखे हैं
कुछ बारिशे रखी हैं
तेरे साथ भीगने को
मैंने कुछ प्यासे रखी हैं।

कुछ अश्क रखे हैं
कुछ शिकायतें रखी हैं
तेरे सीने से लिपट कर
कहने को बहुत से
प्रीत के किस्से रखें हैं।

इक पायल रखी है
इक कंगन रखा है
तेरे इश्क में सजने को
टूटे आइने के सब
हिस्से रखे हैं...

***************

प्रेम रहता कहां है..!!

संभालकर रखी हुई कविताओं में
या अनकही पंक्तियों में ..

मिलने की अनंत प्यास में
या इंतज़ार में ..

जरूरी नींदों के देखें गए सपनों में
या कुछ करने की कल्पनाओं में ..

आंसूओं के गीलेपन में
या सुकून के पलों में ..

तेरी-मेरी रोजमर्रा की बातों में
या कुछ खास मुलाकातों में ..

कुछ जरूरी निभाए गए वचनों में
या ढेरों शिकायतों में ..

जवाबों की तलाशों में
या अनुतरित सवालों में ..

जीवन की सुबहों में
या अंत की रातों में..

***********

इंतजार है तेरा
तेरी बातों का,
मेरे हाथ में तेरे हाथों का,
एक दूजे से जुड़े ज़ज़्बातों का,
इंतज़ार है 
तेरी मेरी नज़रों के मिलने का,
थोड़ा तेरे पिघलने का,
इंतज़ार है तेरे मानने का,
तुझे और ज्यादा करीब से जानने का,
अपनी हर गलती की माफ़ी मांगने का,,,
इंतज़ार है तेरी चाहत का,
ज़ख्मों को मिलने वाली राहत का,
कभी ना छूटने वाली मेरी आदत का,

इंतज़ार है तेरे हर ख्वाब को सजाने का,,
तेरे रूठने और मनाने का
बस तुझे अपना बनाने का,,,
इंतज़ार है 
तेरी बाहों में खुद को उलझाने का,,
तेरे उलझे मन को थोड़ा सुलझाने का,,
कभी ना खत्म होने वाला
इंतज़ार कर रही हूँ
की मेरी यार कभी तो मान जाए,,,

इंतज़ार कर रही हूँ
की फिर तू मुझ पर अपना
हक़ जमाये,
इंतज़ार कर रही हूँ
तेरे साथ मुस्कुराने का,
इंतज़ार कर रही हूँ
फिर से तुझे सताने का,
इंतज़ार कर रही हूँ
तेरे आग़ोश में आने का,
जानती हूँ 
कभी खत्म नहीं होगा ये इंतज़ार
पर फिर भी तेरे इंतज़ार में
ज़िन्दगी बिताने की तैयारी है
जानती हूँ पागल हूँ मैं
पर ये पागलपन ही मेरी बिमारी है..

*************************

थी वह किसी और की अर्धांगिनी !
आकर्षित उसपर कोई और हो गया !
उसे पाने के लिए 
"छल" किया!
और पहले ने 
 क्रोध में आकर उसे श्राप दे दिया!!
दुख इतना गहरा था कि--
सन्न! अवाक! बेजार!
नारी-देह "पत्थर" हो गई!!
मौसम , फिर बदला सहसा--
फिर एक तीसरे के स्पर्श ने,
पत्थर में" प्राण" फूँक दिए !
वो पत्थर  अब फिर से नारी हो गई 
और वह बैठे-बैठे सोच रही है -
एक ने छला!
एक ने शाप दिया!
और
एक ने जीवनदान!
इन तीन पुरुष चरित्रों को 
एक सूत्र में बाँधने वाली
अपनी इस कहानी में आखिर
"मैं" कहाँ हूँ...??
ये तो
तीन पुरुषों की 
इच्छा-पूर्ति के "माध्यम" की
कहानी है...!!
आखिर इसमें "मैं" कहाँ हूँ...???
क्या पुरुष की "अभिलाषा" ही
स्त्री की "नियति" है...???
नहीं नही ! ये मेरी कहानी
नहीं हो सकती...!!
वो उठी 
उसने अपना"अहिल्या" नाम का
चोला उतारा 
और चल पड़ी 
अपने "अस्तित्व" की
तलाश में खुद की तलाश में

*******************

दिल को ठेस लगी जिनसे 
उनसे उम्मीदें सारी थी 
वो ख्वाबों को हकीकत समझने की
बड़ी भारी भूल  हमारी थी 

दुःख -सुख दोनों की सिलवटें  थी 
और  दोनों  ही बेजार रहा 
कही धूप रही आँगन में तो 
कभी छाँव तले अरमान  रहा 

क्या लिखूँ मेरे भावों  में तो
 बस दर्द की सरिता बहती है 
अतीत से  ना उबरता ये मन 
कल -कल अश्रुधारा बहती है 

कोई कहता है क्यों रोते हो 
क्या तुमने अपना खोया है 
कुछ छोड़ गए, कुछ छूट गए
उनके लिए ये दिल रोया है 

मेरी कविता और भाव मेरे 
ये दोनों मेरे साथी है 
जो हँसते है पढ़कर इसको
वो तो इसके बाराती है 

मत  कुरेदा करो घाव मेरे 
कभी तुम भी जख्मी होओगे 
जब छोड़ जायेंगे तेरे अपने 
हमसे भी ज्यादा रोओगे

माना दिल है कमजोर बहुत 
भावुक हूँ सरल हूँ सहज बहुत
पर चोट मुझे भी लगती है 
फूलों से मारो या पत्थर से 
इस दिल से  सरिता तो बहती है

**********************

मुझे नहीं करनी इश्क राधा सी
मुझे तो बनना है विरहनी मीरा सी

मुझे नहीं बनना बनारस की गंगा आरती
जहाँ बस गंगा को दूर से देख पाऊँ
मुझे बनना है उस पत्ते पर तैरते दीपक सा
जो गंगा की लहरों में आगे बढ़ती जाऊँ

मुझे नहीं बनना शाम बनारस की
जहाँ चहल-पहल के शोर में मैं तुम्हें न सुन पाऊँ
मुझे बनना है उस शोर के बाद छाये खामोशी सा
जहाँ मैं लहरों की धड़कनों को भी सुन पाऊँ

मुझे नहीं बनना उन घाटों सा
जहाँ लेते हैं जन्म जन्मांतर के फेरे सात
मुझे बनना है गंगा की उस सीढ़ी सा
जहाँ मौत और मोक्ष
मिलते हैं एक तट पर साथ-साथ।

*************

बरसों पुरानी मेरी 
एक खोयी किताब मिली....
न जाने फिर से क्यों 
खुद से मुलाकात हुई ....

पूछा ये खुद से मैंने ....
क्या खुशियों से अब भी नाता छूटा है..
क्या अब भी खुद से ही मुँह मोड़ा है..
क्या ज़िन्दगी ने अब भी तुझसे 
कोई खेल खेला है ..

बरसों पुरानी मेरी एक खोयी किताब मिली ....
न जाने फिर से क्यों खुद से मुलाकात हुई ....

पूछा ये खुद से मैंने....क्या अब भी अकेले में आंसू बहाती हो ...
अपनी उँगलियों से  बालो की लटे क्या अब भी बनाती हो ...
कैसी हो तुम?  क्या अब भी खुद अपने आप से बतियाती हो ....

बरसों पुरानी मेरी एक खोयी किताब मिली ....
न जाने फिर से क्यों खुद से मुलाकात हुई ....

पूछा ये खुद से मैंने....
क्या अब भी अपने बागीचे में गुलाब के फूल उगाया करती हो ...
उन फूलो की खुशबु में क्या अब भी गुम हो जाया करती हो .....
अब भी क्या अपनी किताबों में वैसे ही उलझा करती हो.....

बरसों पुरानी मेरी एक खोयी किताब मिली ....
न जाने फिर से क्यों खुद से मुलाकात हुई ...

पूछा ये खुद से मैंने....जिसको चाहा था वो मिला तो होगा ...
देखा जो भी सपना सच हुआ तो होगा ....
क्या अब भी रंग सफ़ेद पहन तुम वैसे ही इतराती हो....
क्या अब भी अपनी आँखों मे काजल लगाती हो ....

इतने सवाल पल भर में खुद ने खुद से कर डाले....
जवाब के नाम पर खुद को जवाब न दे पायी...
बस मुस्कुरा कर झूठ ही कह दिया....
हाँ खुश हुँ मैं....
हाँ खुश हुँ मैं....
हाँ खुश हुँ मैं...


********

अंतर्मन..!

मधुरम चंदन कर दु 
तुम बस जाओ मेरे अंतर्मन में
मैं आंखों को अपनी दर्पण कर दु 
जो तुम झाको मेरी आंखों में

सांसो का आना-जाना 
जीवन भी झुठ लगता तुम बिन  
बस जाओ मेरी सांसों में 
मैं अपनी सांसों को भी 
तुम पर अर्पण कर दु

प्यासी है धरा प्यासा है गगन 
छा जाऊ बादल बनकर 
तू कहे तो मरुथल को भी मधुबन कर दु

पलकों में आंसू व्याकुल है बहने को 
तू कहे तो इस बहते आंसू को भी सावन कर दु


******************

     
अनोखा सफर..!
क्या चल सकोगे कुछ दूर
मेरे साथ यूं ही खामोश
ना हमसफ़र ना दोस्त 
ना प्रेमी बनकर
पर चलने से पहले
एक बार जरूर सोच लेना
क्या चल सकोगे कुछ दूर
मेरे कुछ ना बन कर
बहुत आसान होता है
इस भागती दौड़ती दुनिया में
हमसफर दोस्त प्रेमी बन जाना
पर बहुत मुश्किल है
बिना कुछ बने
उसके साथ एक कदम भी चल पाना


**********************

मेरी जिंदगी की परेशानियों की 
तुम्हें तो खबर ही नहीं
मेरे इश्क की जज्बातों का 
तुम पर कोई असर ही नहीं।
तुमको समझाते-समझाते 
जख्म बन जाएगा दर्द मेरा
सबको दिखता है तुमको 
नजर ही नहीं आता गम मेरा।
हर जन्म में 
तुम ही तुम मिलो मुझे
तुम सा पागल दूसरा है ही नहीं ।
खुद से पूछो कि किस 
कदर फिदा है तुम पर
पर तुम क्या जानो 
तुम्हारे पास तो दिल ही नहीं ।
चुपचाप जिंदगी 
मेरे साथ मुस्कराती है
इसी में जी लेती हूँ 
तुम्हें  मेरी  कद्र ही कहां।

*******************

‘कहो’ ना...!!

वह कहता था, 
वह सुनती थी,
जारी था एक खेल
कहने-सुनने का।
खेल में थी दो पर्चियाँ।
एक में लिखा था ‘कहो’,
एक में लिखा था ‘सुनो’।
अब यह नियति थी 
या महज़ संयोग?
उसके हाथ लगती रही वही पर्ची
जिस पर लिखा था ‘सुनो’।
वह सुनती रही।
उसने सुने आदेश।
उसने सुने उपदेश।
बन्दिशें उसके लिए थीं।
उसके लिए थीं वर्जनाएँ।
वह जानती थी,
'कहना-सुनना'
नहीं हैं केवल क्रियाएं।
राजा ने कहा, 'ज़हर पियो'
वह मीरा हो गई।
ऋषि ने कहा, 'पत्थर बनो'
वह अहिल्या हो गई।
प्रभु ने कहा, 'निकल जाओ'
वह सीता हो गई।
चिता से निकली चीख,
किन्हीं कानों ने नहीं सुनी।
वह सती हो गई।
घुटती रही उसकी फरियाद,
अटके रहे शब्द,
सिले रहे होंठ,
रुन्धा रहा गला।
उसके हाथ कभी नहीं लगी वह पर्ची,
जिस पर लिखा था, ‘कहो’ ना...!!

****************
जाने क्यों ऐसा लगा 
जैसे तूने आवाज दी है
मेरी यादों की धूप 
आज दिल मे सुलगा ली है
माजी के महकते  
लम्हो की कसम थी तुम्हे
तुमने क्यों तस्वीर मेरी  
कमरे में लगा ली है
आंधियों का क्या भरोसा 
कब चली आएं वो 
बेहतर है कश्ती तुमने 
साहिल पे लगा ली है
मैं तन्हा चली जा रही थी 
मंजिल की तरफ
मेरी राहों से मगर 
रोशनी तुमने हटा ली है
दिल के रिश्ते कभी 
टूटते नही सुना तो ये था
बर्फ अब तुमने रिश्तों में 
अपने जमा ली है

****************

कुछ न कुछ छूटना तो लाज़मी है..!

अचानक से आज यूँ ही ख्याल आया कि 
अखबार पढ़ा तो प्राणायाम छूटा
प्राणायाम किया तो अखबार छूटा
दोनों किये तो नाश्ता छूटा
सब जल्दी जल्दी निबटाये
तो आनंद छूटा
मतलब ...
कुछ ना कुछ छूटना तो लाज़मी है।
हेल्दी खाया तो स्वाद छूटा
स्वाद का खाया तो हेल्थ  छूटी
दोनों किये तो ....
अब इस झंझट में कौन पड़े।
मुहब्बत की तो शादी टूटी
शादी की तो मुहब्बत छूटी
दोनों किये तो वफा छूटी
अब इस पचड़े में कौन पड़े।
मतलब ...
कुछ ना कुछ छूटना तो लाज़मी है।
जो जल्दी की तो सामान  छूट गया
जो ना की तो ट्रेन छूट गयी
जो दोनों ना छूटे तो
विदाई के वक़्त गले मिलना छूट गया
मतलब ...
कुछ ना कुछ छूटना तो लाज़मी है।
औरों का सोचा तो मन का छूटा
मन का लिखा तो तिस्लिम टूटा
खैर हमें क्या ...
खुश हुए तो हँसाई छूटी
दुःखी हुए तो रुलायी छूट गयी
मतलब...
कुछ ना कुछ छूटना तो लाज़मी है।
इस छूटने में ही तो पाने की खुशी है
जिसका कुछ नहीं छूटा
वो इंसान नहीं मशीन है
इसलिये कुछ ना कुछ छूटना तो लाज़मी है।


**************

स्त्री साथ कहाँ ....
छोड़ती है........
वो तो छोड़ देती है...जीना..
सुकून....से ...
जागती पलकों में
जाने कितनी राते...
वो छोड़ देती है....
अपना ख्याल...
छोड़ देती हैं रसोई में बनाने 
मन पसन्द व्यंजन....
पहनने...मन पसन्द.कपड़े
छोड़ देती..है...चाय/ कॉफी की मिठास...
शाम की आस....
सुबह...का....अलसाना...
पूजागृह में इष्ट से बतियाना...
चाय के बहाने करीब आना...
पेड़ पौधों से...नजरें मिलाना..
तुलसी को..जल चढ़ाना..
अपनो से प्यार करना ..
खुद को सजाना...
सोलह ऋंगार निभाना...
पड़ोस में बतियाना..
रिश्तेदारी निभाना..
तुम्हारा..मन....
तुम्हारी साँसें...
तुम्हारा....प्यार.....
सब...बेकार.....
जब टूटता है दिल...
स्त्री.......का.....
फिर भी स्त्री साथ कहाँ छोड़ती है...
जब तक उसमें साँस हैं...
मर मर कर भी खुद में तुझको जिन्दा रखती हैं......
हाँ तभी तो वो स्त्री है........
..............................
जब पुरुष साथ छोडे तो 
उसे मनाया जा सकता है 
जब स्त्री साथ छोड़े 
तो उसे नही मना सकते 
क्योंकि वो साथ छोडने से
बहुत पहले ही तुम्हे छोड़ 
चुकी होती है .....


*****************

संतान की दीर्घायु के लिए,
करती है मां खर जितिया।
पितर पक्ष में घर आते हैं पितर,
देते हैं वंश वृद्धि का आशीर्वाद।
अपना वंश बढ़ाने को,
करते हैं पितरों को अर्पण-तर्पण।
बिना अन्न जल के 
आठों पहर उपवास,
करती है अपने संतान की 
लंबी उम्र के लिए 
पूर्वजों और पितरों से 
हाथ जोड़े विनती बारम्बार।
सुरक्षित हो वंश हमारा अंश हमारा,
यही करती है पितरों से प्रार्थना हर बार।
मां से सुंदर ना कोई शब्द है, 
ना कोई परिभाषा।
खुद भूखी रहकर करती है,
संतान की लंबी उम्र की प्रार्थना।
खुश होकर पितर भी,
दे जाते हैं आशीर्वाद,
रहो सदा-सुहागन 
फूले-फले तुम्हारा वंश परिवार।
रहे सदा तुम्हारा धन धान्य भरा,
ऐसे अनोखे जीवित पुत्रिका व्रत को 
और अपने पूर्वज-पितरो को 
करती हूं नमन में बारम्बार।।

*******************

    अनोखा बंधन..!

बन्धनों के कई रूप होते हैं... 
सात फेरों का बन्धन , 
सात जन्मों का बन्धन
जन्मों - जन्मान्तर का बन्धन...!!!
पर एक बन्धन और भी होता है... 
मन से मन का बन्धन...!!!
रेशम सा... 
बहते नीर सा... 
हवाओं में बहता सा... 
महकते खुशबू सा... 
बान्धे एक ही... 
डोर से... 
मन से मन को... 
हर भीड़ में तलाशती... 
एक दूसरे को... 
उस नाम को... 
उसके लिखे शब्दों को... 
यही तो है... 
मन से मन का बन्धन...!!!
देखते सुनते... 
जाने कब... 
कैसे... 
खुद के आत्मा... 
मन... 
और मौन... 
मिल से जाते हैं... 
बन्ध से जाते हैं... 
और फिर... 
प्रेम हो जाता है... 
बस हो जाता है...!!!
एक - दूसरे को... 
मन से मन को... 
शायद इस बन्धन में... 
कोई अग्नि साक्षी नहीं... 
हवन नहीं... 
कोई सात वचन नहीं... 
पर सबसे  ...
अलग है ये... 
न बान्धने की चाहत... 
न छूटने का मन... 
बस ऐसा है ये... 

मन से मन का बन्धन...

*********************

उसके कड़वे शब्दों को सुनकर 
वह दूर बहुत हो गया था उससे
किसी ऐसे की तलाश में इसके 
शब्दों से रस की धार बहती हो
मिले तो बहुत उसको 
हर गुजरते लम्हों के साथ 
पर एहसास भी होने लगा कि 
इनकी मिठास जरूरत के सिवा कुछ नहीं
एक वह था 
जो हर पल कड़वा बोला करता था 
मगर चाहत ना थी कुछ उसकी 
सिर्फ उसके भलाई के सिवा
उसके हर नुकसान में 
अपना नुकसान ही देखता था वह 
शायद इसलिए खफा रहता था वो
खफा होकर भी उसकी सलामती ही चाहिए थी 
उसने और कुछ ना चाहा उसके सिवा
कुछ जरूरी सीखने के लिए 
शायद यह सफर भी जरूरी था उसके लिए


******************

सोचा नहीं था जिंदगी में 
कभी ऐसा दौड़ भी आएगा 
इंसान-इंसान से दूर भागेगा
लोग पहले कहते थे 
फुर्सत नहीं जिंदगी जीने की 
आज फुर्सत से बैठे हैं 
मौत के खौफ से
जिंदगी की भागमभाग में 
जरा सी कंपन क्या हुई 
सब को भगवान याद आ गई
चलो एक बात अच्छी है 
इस करोना ने मानव में 
करुणा का भाव पैदा कर दिया
यह मंजर यह खौफ भी जरूरी था 
काश यह करोना 
मानवता का पाठ पढ़ा कर लौट जाए 
और फिर से 
सबके चेहरे पर खुशहाली छा जाए..!

********************

एक साल ऐसा भी..!
ना बर्फ की चुस्की, 
ना गन्ने का रस, 
ना मटके की कुल्फी ॥
एक साल ऐसा भी..
ना लिफाफों पर नाम,
ना तीये का उठावना,
ना दसवें की बैठक ॥
एक साल ऐसा भी..
ना मेकअप का सामान, 
ना जूतों की फरमाइश,
ना गहनों की लिस्ट ॥
एक साल ऐसा भी..
ना बस का किराया,
ना फ्लाइट की बुकिंग,
ना टैक्सी का भाड़ा ॥
एक साल ऐसा भी..
ना मामा की मस्ती,
ना मामी का प्यार, 
ना नाना का दुलार ॥
एक साल ऐसा भी..
ना माँ का स्वाद,
ना भाभी की मनुहार,
ना भाई का उल्लास ॥
एक साल ऐसा भी..
ना पूजा की थाली,
ना भक्तों की कतार, 
ना भगवान का प्रसाद ॥
एक साल ऐसा भी..
सदा रहेगा 
इस साल का मलाल,‍‍‍
जीवन में फिर 
कभी न आये ऐसा साल ॥


****************

जिंदगी जंग हुआ , 
कोरोना के संग हुआ । 
मौत के सफर में ,
खुशनुमा जिंदगी बेरंग हुआ । 
आंधी-तूफान की तरह  , 
बढ़ रहा है कोरोना का कहर । 
न जाने कब सील हो जाए , 
हमारे गांव -शहर । 
अर्थव्यवस्था चरमरा रही , 
बेरोजगारी से जिंदगी तंग हुआ । 
जिंदगी जंग हुआ , 
कोरोना के संग हुआ . . . .
घर से निकलते ही , 
वायरस की आबो-हवा 
कोहराम मचा रहा है । 
हर जगह खुली छूट , 
लापरवाही और बुरी आदतों से , 
दिमाग चकरा रहा है , 
मन घबरा रहा है । 
बहुत आया भूकंप महामारी और तूफान , 
सबका हुआ काम तमाम , 
लेकिन इस बार दुश्मन बड़ा दबंग हुआ । 
जिंदगी जंग हुआ , 
कोरोना के संग हुआ । 
मौत के सफर में ,
खुशनुमा जिंदगी बेरंग हुआ । 
हम और आप ही, 
इस कोरोना चेन को तोड़ सकते है । 
तो क्या हम अपने और अपने देश की सुरक्षा में , 
कुछ दिनों के लिए अपने बेड हैबिट्स छोड़ सकते है..?? 
सोशल डिस्टेन्सिंग का कठोरता से पालन हो, 
और इम्यूनिटी पर ध्यान लगाए  । 
फिर जीत हमारी पक्की है ।


*************************

बैजनाथ नाथ मधुवन हो जाए
सोमनाथ धड़कन हो जाए।
नयनों में उज्जैन बसे तो
पावन ये मन हो जाए।
विश्वनाथ का करें स्मरण
मल्लिकार्जुन तन हो जाए।
ममलेश्वर का ध्यान करें
वैद्यनाथ आंगन हो जाए।
भीमाशंकर के दर्शन हो
नागेश्वर तपवन हो जाए।
त्रियंबकेश्वर हो नयनों में
घुश्मेश्वर अंजन हो जाए।
राम मिलें जब रामेश्वर में
केदारनाथ ये मन हो जाए


****************

आया सावन झूम के..!
मोर पपीहा कोयल सब 
नाचे बागों में झूम के
बुलबुल चहके कोयल गाए 
पपीहा राग सुनाएं 
रिमझिम घटा मदमस्त हवा
हाथों में खनके चूड़ियां हरी भरी 
वन उपवन चारों और छाई हरियाली
बम लहरी के नारों से 
पूरा जग गूंज रहा है 
महाकाल के जयकारों से

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वह कुछ भी लिखेगे 
मेरे ही नाम की तस्वीर बनेगी
चाहे दे मुझे कितनी भी बद्दुआ 
मेरी तकदीर ही बनेगी
यहां कुछ बसर चलते हैं 
मेरे काम से धुआं अगर दिल से उठे 
तो उससे भी मेरी ही तस्वीर  बनेगी
मुझको मिटाने वाले की चाहत भी देखूंगी
रब जो खुद को सोचे 
उसकी ताकत भी देखूंगी
मुकद्दर को मेरे तय करने वाले 
सुन ले गौर से 
तेरी मोहब्बत भी देखी है 
तेरी नफरत भी देखूंगी

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मुस्कुराने की वजह ना तलाश

कभी बेवजह भी मुस्कुराया कर

फिर देख तेरे साथ 
जिंदगी भी खिलखिलाएगी
बढ़ जाती है करोड़ गुना खूबसूरती 
बस मुस्कुराने से
पर फिर भी ना जाने क्यों लोग 
बाज ना आते मुंह फुलाने से
शिकायतें आप की मंजूर है हमें
मगर जब शिकायत करना 
तो मुस्कुरा कर करना


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एक राजा और एक रानी की कहानी 
आज की नहीं यह सदियों पुरानी
और बीच में सात समुंदर सा पानी
ना नौका ना पतवार 
डूब के जाना था उस पार
और फिर आई एक भयानक तूफान
पर जाना जरूरी था उस पार
लगा दी दोनों ने एक साथ छलांग
पानी का वेग खींच रहा था 
दोनों को अपनी ओर
पर दोनों की आंखों में था 
एक दूजे के मिलन की आस
मिलन की बेला आ गई नजदीक
थामें एक दूजे के हाथों को 
समा गए समुंद्र की गहराई में
और हो गई दोनों की अमर प्रेम कहानी


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कभी तराशना हो तो 
मुझे तराशना पत्थर की तरह
राम बना दोगे तो 
युद्ध के काम आऊंगी
रावण बना दोगे तो 
किसी सीता के उठाने के काम आऊंगी
अगर दुर्योधन बना दोगे तो 
अपमान की हंसी को बदला समझकर 
किसी द्रोपदी को बेआबरू करूंगा
पर कभी ना बनाना मुझे गंधारी 
भीष्म धृतराष्ट्र जो अंधे बने रहे निष्कारण
मुझे नहीं बनाना अश्वत्थामा 
जो घूमता रहा सदियों खून से भरे जख्म लिए हुए
मुझे नहीं बनाना द्रोण 
जो मान बैठे किसी का अंगूठा 
मुझे नहीं बनाना कुंती 
जो अपने ही खून को अपना ना कर सके
इतना तराशना मुझे इतना तरसना की 
अनगिनत नुकीले खाकर भी 
मेरा मन रहे बिल्कुल शांत

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कभी धूप में निकल कर देखो
कभी घटाओं में नहा कर देखो
जिंदगी क्या होती है कभी
किताबों को हटा कर देखो
वह सितारा है चमकने दो यूं ही
क्या जरूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो
जुबा होते हैं पत्थरों के और दिल भी होते हैं पत्थरों के
कभी अपने घर और दीवार को सजा कर तो देखो
फासले नज़रों का धोखा भी तो
हो सकता है वह मिले या ना
मिले हाथ बढ़ा कर तो देखो

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खुलकर हवा में सांस लेने दो
मुझे जी भर कर 
बुलबुल से बात करने दो
कौन कातिल है बुलबुल का
मुझे कातिल का पता लगाने दो
थक गई सफर में 
चलते-चलते बुलबुल
मुझे उनके पैरों के छाले पर 
मरहम लगाने दो
जिसने कत्ल किया बुलबुल का
उसे फांसी के फंदे में लटकाने दो
खुलकर हवा में सांस लेने दो
मुझे जी भर कर 
बुलबुल से बात करने दो....

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ख़ामोश आंखों से दहलीजों से झांकती ज़िन्दगी 
खौफ़ के मंज़र में मौत से भीख मांगती ज़िन्दगी 
लोगों में पहले कभी ऐसी दूरी नहीं देखी
जिंदगी से ही आंचल छुड़ाती 
ज़िन्दगी 
शहरों में ऐसा डर का आलम न देखा
हर मोड़-मोड़ पर घबराती 
ज़िन्दगी 
महफ़िलों में बैठकर 
कभी बेखौफ़ हंसा करते थे
ना जाने कहाँ खो गई 
वो खिलखिलाती 
ज़िन्दगी
पर भरोसा रखना बहुत जल्द, 
फिर से देखेंगे मुस्कराती 
ज़िन्दगी


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लिखने बैठे कुछ नज्म
और कलम ठिठक गए 
दिल भर आया और फिर 
हो गए हम जज्बाती और
बहने लगे अश्कों की धारा
बह जाने दो इस अश्कों को
धारा बनकर जाने फिर कब खुलेगी..?? 
बांध के कितने दरवाजे
जिंदगी में शायद धूल जाए,
कुछ यादें, कुछ बातें, कुछ लम्हे 
इस अश्कों की बरसातों में..........


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मां भारती..!
दुश्मनों से जंग लड़ते-लड़ते 
अगर मैं थक जाऊं 
तो अपनी गोदी में 
सुला लेना मां भारती
झिलमिल झिलमिल रंग-बिरंगे 
कफन नहीं चाहिए 
बस अपना तिरंगा 
आंचल ओढ़ा देना मां भारती
जिस वसुंधरा के लिए प्राण अर्पण 
बस उस माटी को चंदन की तरह मस्तक पर 
लगा देना मां भारती
बलिदान मेरा व्यर्थ न जाए 
विजय का कारवां आगे बढ़ा देना मां भारती
आंखों से जब मां की छलके आंसू 
तो उसको शहादत की याद दिला देना मां भारती


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चाहत....!
चाहत रूहानी हो
जिस्मों से परे हो
बस वह सुंदर हो अपने आप में
नहीं चाहत हो कुछ पाने की
ना मापनी चाहत की गहराई को
बस चाहत के लिए सर्वस्व छोड़ दो
जहां पाने को हो प्रेम 
वहां चाहत होती नहीं
जो ग्रहण करते हैं इंतजार को
आत्मिक चाहत पाते वही
पा लो पूरा चाहत अर्पण में
चाहत तो होती है बस समर्पण में


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खामोश हूँ मैं...!!

हां, बिल्कुल खामोश हूं मैं
पत्थर हो गई अहिल्या की तरह
जिनकी सारी इच्छाएं सपने मर गए हो जैसे
दम तोड़ दिए हो जैसे 
उसमें ही डुब कर ख्वाहिशें उम्मीदें सारी
हाँ, खामोश हूँ मैं
मौन हूँ ,
दुख तो सब प्रकट करते हैं
लेकिन सहारा कोई नहीं देता
भंवर में छोड़ना तो सब जानते हैं
मगर किनारा कोई नहीं देता
पर ऐसा नहीं कि आज यह
पहली बार हो रहा
या इससे पहले नहीं हुआ
युगो युगो से आ रहा है होता ऐसा
मेरे खामोश रहने और 
मुझे चुप कराने की प्रथा
आदि काल से चलती आ रही है..!!
सीता ने की अग्नि परीक्षा वह भी खामोश..!!
बिना  जाने 
अहिल्या को गौतम का श्राप
अहिल्या खामोश,पत्थर..??
अग्नि वेदी में सती का कूद जाना पूरी"सृष्टि खामोश"
पर कभी-कभीसोचती हूँ
क्यों खामोश रहूं हूँ मैं
क्यूँ पार करती रही हूँ मैं
सहनशीलता की हद को
जूझती रहूं क्यों मैं
पाने को कुछ-कुछ और
सब कुछ खोने को लेकर
क्यों या एहसास मेरे अंदर जन्म लेता रहा
कि सब अर्थहीन है
और मैं भी अंश हूँ
उस अर्थहीन का
क्यूँ सार्थक नहीं हो रहा मेरा व्यक्तित्व
मेरा अस्तित्व
ये जानते हुए कि
जननी हूँ मैं पोषक हूँ मैं
किसी जीव किसी आत्मा का
क्यूँ लगता है ऐसा कि 
जो कुछ चाहा आज तक नहीं मिला
या फिर कुछ मिला और कुछ नहीं मिला
जो नहीं मिला वो निरर्थक था
और जो मिला वो भी 
निरर्थक होता जा रहा है
समय भी अपनी गति से 
यूँ दौड़ रहा है मानो मुट्ठी से रेत.....


*********


बहुत दूर.....

इंतजार मुझे था
मिलने का तुम से
बातें बहुत करने का
एकटक तुझे निहारने का
औऱ  मिलन की
जब घड़ी आयी
बेजान  हुये कदम
धड़कनों में
तेजी आयी दिल की
सामना करू तेरा कैसे
कदमों को उठाया जैसे-जैसे
तुझ तक मैं आऊं कैसे
चाहती थी जी भरकर देखना
नजरें भी लाज से उठा न पायी
जो बातें करने की थी चाहत
लब  तक आ न पाई
तुझे चाहती रही मन ही मन
पर  कुछ कह तुझे न पाई
समझ पायेगा क्या,तू
खामोश प्यार के
इजहार को 
इंतजार को मेरे
मेरे एहसास को मेरे जज्बात को
जो खोयी रहती थी,
बस तेरे ही ख्यालों में
तू समझ पायेगा क्या मुझे
छूकर नही आयी तुझे
पर रूह को छू आयी तेरी
तेरे चाहत मैं, जोगन बन आयी मीरा नही हूँ मैं
जो रिवाजों को तोड़ दूँ
दीवानी राधा सी ताकत नही बंशी धुन पर दौङ जाऊं
हूँ मैं आज की नारी
मिलने आयी तुझे
बोल भी न पायी पर
इन आँखों की तड़प
बुझा भी नही पायी
दिल की बात पहुंचा भी न पायी
मुलाकात के लम्हे बीत गए एक बार फिर
बिन बोले ही
मिलन की आस लिए
दबा के अश्कों को
दूर आ गई तुझसे
मैं तुझसे दूर आ गई l

***********************



********************

शुन्य....!

मुझे संख्या में मत तलाशना 
मैं संख्या में नहीं मिलूंगी 
मैं शुन्य हूं मुझे अपने साथ नहीं 
अपने पीछे रखना 
जब आवाज़ दोगे तो आऊंगी 
जब कीमत अपनी हो बढ़ाना 
तब अपने साथ कर लेना 
बेवजह मुझे अंको में मत घसीटना 
जब तुम्हारे साथ के सभी अंक हार जाए 
तब मुझे आवाज देना 
मैं चुपके से पीछे से तुम्हारी कीमत बढ़ा दूंगी 
पर फिलहाल अभी मुझे आवाज ना देना

*************************

डर लगता था कभी तन्हाइयों से बीमार न पड़ जायें,
अब महफ़िलो से डर है कि कहीं रोग न ले आये।

ना जाने कैसी गुस्ताखी सब कर गये,
कि चेहरे पर मास्क लगाने पड़ गये।

इस घुटन से कब निकल पाएँगे,
ना जाने कब खुली हवा में खुलकर साँस ले पाएँगे


*******************

इंतजार....

जब जब मेरा जीवन परेशान हुआ...  
ईश्वर वो टेबल लैम्प बना...  
जिसकी रोशनी में मैंने खुद को लिखा, 
कभी-कभी कुछ सपने 
आंखों में रहते है इंतजार बनके 
मेरे भी आंखों में कुछ सपने हैं 
और जब मेरे आंखों में नमी आ जाती है 
तो वह मुझसे कहती है 
कि ये आंसु मोतियों से भी कीमती है 
इन्हें बहने मत दो 
और मैं फिर उन आंसु को 
अपने सपने बना लेती हूं 
और फिर रहता है सिर्फ 
इंतजार इंतजार इंतजार..


*************

धूप और बारिश..!

धूप के बाद बारिश
रिमझिम फुहार 
मदमस्त शीतल बयार 
उदयीमान सूर्य की पहली  किरण 
अपनी सुनहरी आभा लिए 
जैसे पहचाने 
रास्ते की व्यग्रता और व्याकुलता को
जैसे सूखी डाली का पत्तियों से 
सँवरना फूलों का खिलना 
ख़ुशबू का बिखर जाना और एक
आत्मिक अहसास का मुझमें समाना....



*************

वह मजदूर था....!

कड़ी धूप थी 
और बदन जल रहा था
वह मजदूर था 
इसलिए दर्द को सह रहा था
पैरों के छाले का दर्द 
उनकी आंखों से छलक रहा था 
कड़ी धूप थी 
और बदन जल रहा था
वह मजदूर था 
इसलिए दर्द को सह रहा था
भूख बहुत थी 
फिर भी वह पानी से पेट भर रहा था
वह मजदूर था 
इसलिए दर्द को सह कर चल रहा था 
मीडिया टी०आर०पी० और सुर्खियां बटोर रही थी
नेता अपनी राजनीति रोटियां सेक रही थी
ट्रेनों से कटकर रास्ते में गिर कर 
जान उसकी जा रही थी
फिर भी घर मंदिर परिवार 
देवता और कर्म पूजा समझ कर 
हर दर्द को भूल कर वह चल रहा था
कड़ी धूप थी 
और बदन जल रहा था 
वह मजदूर था इसलिए चल रहा था...
वह मजदूर था इसलिए चल रहा था...



******************

एक सुबह उम्मीद भरी..! 

रात के खत्म होते ही आती है,
एक सुबह उम्मीद भरी 
टूटकर ही बनता है बीज एक,
संपूर्ण सुंँदर एक शज़र।

हर फूल, शाख के  दुख सुख की,
शज़र को होती पूरी खबर,
पतझड़ के मौसम में रखता,
वो  धैर्य  सबर और हिम्मत।

कुछ लम्हों में बीत जायेगा,
अभी का मुश्किलों भरा पहर।
तूफ़ान से टकरा कर ही,
पाती किनारा देखो लहर।

नहीं बदलना अभी आशियाना,
कुछ वक्त को तो अभी कर सब्र।
ठीक नहीं मौसम देखो,
टूट रहा प्रकृति का कहर।

धीरज और धैर्य से लेना काम,
सभी रखना थोड़ा सा सब्र।
विश्वास रखना रब पर,
है उनको हम सभी की फिक्र।

टूटकर ही बनता है बीज,
संपूर्ण सुंँदर एक शज़र।
हर रात के बाद आती है,
नई उम्मीद भरी एक सहर।


********************

अनजान रास्तों पर
आओ चलें...
कुछ न कहें.....
अपनी-अपनी खामोशियाँ लिए
सवालों के दायरों से निकलकर
रिवाज़ों की सरहदों के परे
हम यूँ ही साथ चलते रहें
कुछ न कहें
चलो दूर तक चले
तुम अपने माजी का
कोई ज़िक्र न छेड़ो
मैं भूली हुई
कोई नज़्म न दोहराऊँ
तुम कौन हो
मैं क्या हूँ
इन सब बातों को
बस, रहने दो
चलो दूर तक चले...

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