28 जून 2021

रचना :- निर्मल कुमार " दे "

विडम्बना..!

समाज की
सारी अच्छाइयां
धीरे धीरे
समाप्त होने लगती है
जब इंसान का
नैतिक पतन 
हो जाता है ।
नैतिक बल 
नहीं रह जाता है,
सच को सच और
झूठ को झूठ
बोलने का।
लोभ के वशीभूत
इंसान बन जाता है
कपटी और चाटुकार
छोड़ देता है दामन सच का
और करने लगता है
झूठ की जयजयकार।


कविता :- शूल और फूल..!

शूलों की चुभन भी झेली
फूलों का सौगात भी मिला
जिंदगी के सफ़र में
कभी निराश न हुआ।

राम का वनवास पढ़ा
द्रौपदी का चीर हरण भी
हेलेन केलर की कहानी पढ़ी
गीता का संदेश पढ़ा।

शूल भी बन जाते फूल
पुरुषार्थ की तपिश में,
कंकड़ को मोती बना लो
गुरुजनों का वरदान मिला।
जीवन में सिर्फ सुख नहीं मिलता
कभी दुख के भी पल आते हैं
धैर्य और हिम्मत हो तो
शूल में फूल खिलते हैं।

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कैंसर दिवस 4 फरवरी के उपलक्ष्य में पांच हाइकु..!
     1.
कैंसर रोग
तम्बाकू का जहर
अकाल मृत्यु।
      2.
तम्बाकू छोड़ो
जीवन अनमोल
निरोग काया
       3.
सुखी जीवन
नशा मुक्त जिंदगी
धुंआ से दूर।
        4.
कर्कट  रोग
असाध्य बीमारी
लाखों मरते।
         5.
जागरूकता
कैंसर दूर करो
नशे का त्याग।

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कैंसर एक चुनौती..!!
पूरे विश्व में 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस मनाया जाता है ताकि जनमानस में कैंसर के बारे में वैज्ञानिक जानकारी तथा जागरूकता की वृद्धि हो। विश्व के लोगों में कैंसर के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए एकजुट करने तथा सरकारों को संवेदनशील बनाने के लिए इस कार्यक्रम  की शुरुआत की गई है।
विशेषज्ञों के अनुसार 2030 तक कैंसर दुनियाभर में मृत्यु का पहला बड़ा कारण बन जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में कैंसर की मरीजों की संख्या  पिछले बीस वर्षों में दुगुनी हो गई है।
देश में बुजुर्ग ही नहीं, युवा और बच्चे भी कैंसर की चपेट में आ रहे हैं।गलत खानपान,मोटापा,शारीरिक सक्रियता  की कमी  रेडिएशन धूम्रपान आदि कारणों से कैंसर चालीस साल से कम उम्र के लोग भी कैंसर की गिरफ्त में आ जाते हैं।
हमारे शरीर की कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि जो एक ट्यूमर का रूप ले लेती है,कैंसर के कारण हैं।
कैंसर विशेषज्ञों के अनुसार  कैंसर के कुछ लक्षण बेहद सामान्य होते हैं।पर कुछ दूसरे भी लक्षण होते हैं।कोई भी लक्षण जो लंबे समय तक रहे,उसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
निम्नलिखित लक्षणों पर सावधान हो जाने की जरूरत है।
शरीर के किसी भी भाग में उभार या गांठ,
खांसी और गले में खराश,
निगलने में असुविधा,
मल त्यागने की आदतों में बदलाव,
मूत्रमार्ग से जुड़ी समस्याएं,
शरीर में तेज दर्द,
वजन तेजी से कम होना,
बार बार बुखार,
लगातार थकावट,
त्वचा में बदलाव
मस्से का रंग बदलना,
सांस फूलना,
पेट फूलना आदि।
कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर हरि गोयल के अनुसार किसी भी उम्र में किसी को भी कैंसर हो सकता है।
कैंसर होने की संभावना बढ़ा देने वाले निम्नलिखित कारकों पर नजर देने की जरूरत है।
मोटापा  40 साल के पहले मोटापा बढ़ना  कैंसर के खतरे की निशानी हो सकता है।
शारीरिक निष्क्रियता  शारीरिक रूप से सक्रिय न रहना कैंसर का रिस्क फैक्टर है।
धूम्रपान   धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण माना जाता है।हमारे देश में होने वाले कुल कुल कैंसर के मामलों में 22 प्रतिशत तम्बाकू के सेवन से होते हैं।
गलत खानपान  जंक फ़ूड,तला भुना खाना ज्यादा खाने,मैदा नमक चीनी शराब  का अत्यधिक सेवन कैंसर का कारण हो सकता है।
धूप का प्रभाव   धूप का नितांत अभाव या खुली धूप में ज्यादा देर तक रहना  कैंसर के खतरा को बढ़ाता है।
रसायनों का अधिक इस्तेमाल।  आजकल रासायनिक द्रव्यों और प्रसाधनों का प्रयोग बढ़ गया है। देखा गया है कि यह भी कैंसर के होने का कारण है।
बढ़ता प्रदूषण  वायु प्रदूषण  और जल प्रदूषण भी कैंसर रोग के बढ़ने का कारक बन रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2018 में विश्वभर में 96 लाख लोगों की मृत्यु कैंसर से हुई है।
साइंस जर्नल नेचर के अनुसार समय के साथ  कैंसर के उपचार में काफी सुधार हुआ है।
आज कैंसर की इलाज के लिए देश विदेश में कई नामी संस्थान उपलब्ध हैं।
आज हमें कैंसर से बचाव हेतु खुद जागरूक होकर  स्वस्थ जीवन शैली अपनाने की जरूरत है।
( आलेख विभिन्न स्रोतों से प्राप्त तथ्यों के आधार पर लिखा गया है। साभार। )

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लघुकथा :- अहिंसा..!
मनोज अपने कमरे में बैठा अखबार पढ़ रहा था।
 बरसों बाद मिलने  आए उनके भांजे ने दीवार पर टंगी गांधीजी की तस्वीर को देख कहा, "मामाजी,इस फोटो को हटा दीजिए।"
भांजे की बात सुन मनोज ने कहा,"क्यों,यह तस्वीर राष्ट्रपिता गांधी जी की है। सत्य और अहिंसा के पुजारी,भारत माता के महान सपूत।"

 "आप मुझे बताएं इन्हें क्यों गोली से मार दी गई?" भांजे ने प्रश्न किया।

"केशव,तुमने गांधी जी पर किसी विख्यात जीवनीकार की कोई किताब भी पढ़ी है?" मनोज ने  भांजे से पूछा।

 "नहीं मैंने गांधी नेहरू सुभाष की  कोई किताब नहीं पढ़ी है। लेकिन मेरे दोस्त लोग गांधी की आलोचना करते हैं।"

"वाह! मुझे पूरा विश्वास है तुम्हारे किसी भी दोस्त ने  गांधी जी को पढ़े बिना उनकी आलोचना करते हैं,"  मनोज ने हंसते हुए कहा।

तभी मनोज की सात साल की पोती  एक गीत गाते हुए कमरे में दाखिल होती है, "दे दी हमें आज़ादी,बिना खड्ग बिना ढाल,साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।"

दोनों का ध्यान बच्ची के गीत  पर चला जाता है।

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गणतंत्र दिवस..!
गणतंत्र दिवस एक राष्ट्रीय पर्व है जो हर साल 26 जनवरी को मनाया जाता है।  इसे प्रजातंत्र दिवस भी कहा जाता है।  
अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति के लिए  बरसों तक स्वाधीनता आंदोलन के फलस्वरूप हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ। गांधी सुभाष नेहरू पटेल से लेकर तिलक आज़ाद गोखले भगत सिंह और सैकड़ों देशभक्तों ,स्वामी विवेकानंद ,टैगोर, प्रेमचंद जैसे  महान लेखकों  एवम असंख्य व्यक्तित्वों के प्रयास से भारतीय जनता में आज़ादी के लिए सर्वस्व त्याग करने की प्रेरणा और ऊर्जा जगी। 
 द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक राजनीति में हुए परिवर्तन के फलस्वरूप अंग्रेज़ भारत को आजाद करने को बाध्य हुआ। 2 सितम्बर 1946 को जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ।
उस समय तक अपना संविधान नहीं था। संविधान निर्माण हेतु संविधान सभा का गठन 9 दिसंबर 1946 को हुआ। डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा संविधान सभा के अस्थायी अध्यक्ष चुने गए। बाद में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद  स्थाई अध्यक्ष और डॉक्टर भीम राव अंबेडकर मसौदा कमेटी के अध्यक्ष चुने गए। हमें स्मरण रखना चाहिए कि इस संविधान सभा में ऊंचे दर्जे के विद्वान वकील देशभक्त नेता और सामाजिक शास्त्री थे जिन्होंने अथक परिश्रम किया स्वतंत्र भारत के लिए एक लिखित संविधान बनाने में। दो साल ग्यारह महीने अठारह दिन लगे संविधान के निर्माण में। 26 नवम्बर 1949 को इस संविधान को  गृहित किया गया।ऐतिहासिक तीस जनवरी की महत्ता को अक्षुण्ण रखते हुए भारत सरकार अधिनियम 1935  को निरस्त कर  नए भारतीय संविधान को  26 जनवरी 1950 लागू किया गया। 
इस प्रकार 26 जनवरी 1950 को भारत एक संप्रभु  लोकतांत्रिक पंथनिरपेक्ष गणराज्य बना  जिसके तहत संघीय व्यवस्था कायम हुई।
1929 को लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस से पूर्ण स्वराज्य की मांग की थी। इस मांग को अंग्रेजों द्वारा ठुकरा दिए जाने पर  भारतीय नेताओं ने तीस जनवरी 1930 को पूरे भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाया।  तबसे प्रतिवर्ष तीस जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता था। लेकिन समय और परिस्थिति के कारण जब अंग्रेजों ने  सत्ता हस्तांतरण को तैयार हुए तो 15 अगस्त 1947 को ही भारत को स्वतंत्र देश  घोषित कर दिया गया। इसके एक दिन पहले 14 अगस्त को पाकिस्तान  ने अपना स्वतंत्रता दिवस मनाने का ऐलान किया।
24 दिसंबर 1950 को राजेंद्र प्रसाद देश के राष्ट्रपति बने। इसी दिन राष्ट्र गान और राष्ट्र गीत को अपनाया गया। 24 दिसंबर 1950 को संविधान सभा भंग कर दी गई।
देश के प्रधान  तथा प्रथम नागरिक के रूप में गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्रपति दिल्ली में झंडे फहराते हैं। राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक परेड निकाली जाती है जिसमें भव्य झांकियां प्रदर्शित की जाती है।
गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय अवकाश रहता है,लेकिन सभी सरकारी अर्धसरकारी संस्थाओं स्कूलों कॉलेजों में पूरी गरिमा और श्रद्धा से राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है।
गणतंत्र दिवस हमें याद दिलाता है कि शहादत और त्याग से भारत एक संप्रभु लोकतांत्रिक  देश बना है,हमें अपने संविधान का सम्मान और रक्षा करनी चाहिए।

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राष्ट्रीय बालिका दिवस 2021.
कविता :- बेटी..!
दुर्गा की शक्ति तुममें
वाणी की अवतार तुम
लक्ष्मी मैंने तुझमें पाई
गंगा की धारा तुम।

तुम ही मेरा सूरज
चन्द्रकला प्यारी तुम
मेरी सारी खुशियां लेकर
मेरे घर आई तुम।

दीपशिखा सी लगती बेटी
प्रेम वात्सल्य की मूर्ति तुम
खुद हंसने और हमें हंसाने
सुंदर गुड़िया आई तुम।

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राष्ट्रीय बालिका दिवस..!
इंदिरा गांधी 24 जनवरी 1966 को पहली महिला प्रधान मंत्री बनकर इतिहास रचाया..। आजादी के लगभग बीस वर्षों के अंदर भारत में नारी शक्ति के उदय की यह शुरुआत है। भारत में नारी को देवी के रूप में देखी जाती है। कहा गया है जहां नारी की पूजा की जाती है  वहां देवता रहते हैं अर्थात समाज में नारी का सम्मान हमारे समाज की विशेषता है।किन्तु,व्यवहार में देश की आधी आबादी यानी महिला की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। समाज में लड़कियों के अधिकार,उनके प्रति लोगों के नजरिया में बदलाव तथा बालिका शिक्षा,स्वास्थ्य और पोषण के महत्त्व पर जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से भारत में राष्ट्रीय बालिका दिवस हर साल 24 जनवरी  को मनाया जाता है।इसकी शुरुआत महिला एवम बाल विकास मंत्रालय,भारत सरकार द्वारा 2008 में की थी। इस दिन सरकार,विभिन्न संगठनोंऔर स्कूलों कॉलेजों द्वारा विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। बैनर ,रैलियों एवम  गोष्ठियों का आयोजन कर जन मानस में बालिकाओं के प्रति सकारात्मक सोच पैदा करने के प्रयास किए जाते हैं। राष्ट्र संघ के सौजन्य से प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत 11 अक्तूबर 2012 से हुई। इसे मनाने का उद्देश्य भी लड़कियों द्वारा सामना की जानेवाली  असमानताओं और असुरक्षा  तथा हिंसा के विरुद्ध जागरूकता पैदा करना है।
भारतीय समाज में सभी वर्गों के लोग बेटा होने की इच्छा रखते हैं और नहीं चाहते हैं कि उन्हें बेटी हो।सरकार द्वारा भ्रूण जांच अवैध घोषित किए जाने के वाबजूद लैंगिक विषमता और हिंसा आज भी  एक गंभीर समस्या है। 1991 से 2011 के बीच लिंगानुपात 945 से 918 पर पहुंच गया है। परिवार में लड़कियों के पालन पोषण शिक्षा  खानपान में सौतेला व्यवहार किया जाता है। अधिकतर लड़कियों की शिक्षा अधूरी रह जाती है और उसकी शादी रचा दी जाती है। समाज और परिवार में घरेलू हिंसा और यौन उत्पीडन की घटना  खूब बढ़ी है। बालिकाओं को आगे बढ़ने के अनुकूल माहौल का अभाव है। सरकारी प्रयास से बालिका और महिला की शिक्षा,रोजगार स्वास्थ्य तथा सुरक्षा के लिए  बहुत से प्रावधान और कार्यक्रम देखे जा रहे हैं। धीरे धीरे माता पिता अपनी कन्या संतान के प्रति सकारात्मक सोच रख उन्हें पढ़ने लिखने तथा आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। राष्ट्रीय बालिका दिवस के उद्देश्य को पूरा करना हमारा दायित्व बनता है।

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गांधी, सुभाष, नेहरू..!
भारत की आज़ादी के तीन महान योद्धा परन्तु तीनों के व्यक्तित्व की अलग अलग छवि।
गांधी जी सत्य और अहिंसा को अपना हथियार बनाया,अपने विभिन्न रचनात्मक कार्यक्रमों के द्वारा आम जनता में आजादी के लिए जागरूकता जगाई,नेताजी ने गांधीजी के प्रति सम्मान रखते हुए उनकी अहिंसक विचारधारा के प्रति असहमति जताते हुए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सैनिक विद्रोह और सामरिक युद्ध को अपना हथियार बनाया।नेहरू गांधी और नेताजी के विचारों के सामंजस्य के प्रतीक बने। इन तीनों में नेताजी  उम्र में सबसे छोटे थे लेकिन एक समय लोकप्रियता और वैचारिक प्रतिबद्धता के लिए सबसे ऊंचे शिखर पर पहुंच गए थे।
देशप्रेम और राष्ट्रनिर्माण के लिए आईसीएस की परीक्षा पास करने के वाबजूद नेताजी  स्वाधीनता आंदोलन में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।
गांधीजी के असहयोग आंदोलन और अपने राजनीतिक गुरु चित्तरंजन दास  के कार्यक्रमों में सक्रिय होकर नेताजी का राजनीतिक सफर शुरू हुआ।
चित्तरंजन दास और उनकी पत्नी बासंती देवी के खूब प्रिय थे नेताजी। गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन वापस लिए जाने पर देशबंधु चित्तरंजन दास ने मोतीलाल नेहरू के साथ मिलकर स्वराज पार्टी का गठन किया। नेताजी चित्तरंजन दास के साथ मिलकर  पार्टी के कार्यक्रमों को सफल बनाया। चित्तरंजन दास द्वारा प्रकाशित पत्र फॉरवर्ड तथा लिबर्टी का संपादन का काम भी नेताजी ने किया।
1925 को चित्तरंजन दास की मृत्यु के बाद कांग्रेस की युवा वाहिनी का सर्वेसर्वा बना। 1928 में कांग्रेस के अधिवेशन में नेताजी और जवाहरलाल नेहरू  के प्रगतिशील विचारों से कांग्रेस के युवा वर्ग में नई चेतना और ऊर्जा संचारित हुई। 1930 में नेताजी कोलकाता नगर निगम के मेयर चुने गए।
नेताजी ने टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष की हैसियत से श्रमिकों के हित में कई मांगें पूरी करवाने में सफल रहे। सौ साल पुराने इस यूनियन में आज भी नेताजी के कुशल नेतृत्व की चर्चा होती है।
अंग्रेजी हुकूमत नेताजी  से शंकित और भयभीत रहती थी। कांग्रेस के समझौतावादी नीति का मुखर विरोधी थे नेताजी तथा दक्षिणपंथी नेताओं  को उनके उभरते नेतृत्व से अपना भविष्य संकट में नजर आता था।
अंग्रेजी हुकूमत ने बीस साल के अंदर ग्यारह बार नेताजी को जेल में डाला लेकिन  नेताजी के अदम्य साहस  और जुझारू नेतृत्व के सामने बौनी साबित हुई।
अंग्रेजी हुकूमत ने नेताजी जैसे राजनीतिक बंदी के स्वास्थ्य की घोर उपेक्षा की,इनका  स्वास्थ्य बिगड़ता गया और तपेदिक के शिकार हो गए। जनमत के दवाब के चलते इन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए विदेश जाने की अनुमति दी। अपने विदेश प्रवास के दौरान  इन्होने  An Pilgrim और The Indian Struggle नामक दो किताबें लिखी। 
1938 और 1939 में नेताजी लगातार दो बार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गए। दूसरी बार त्रिपुरी कांग्रेस में गांधीजी द्वारा समर्थित उम्मीदवार  पट्टाभि सीतारमैया को भारी मतों से हराकर अपने श्रेष्ठ नेतृत्व को स्थापित किया। यह दुर्भाग्य का विषय है कि गांधीजी से मतैक्य न होने के कारण अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा। पार्टी अनुशासन के नाम पर नेताजी को कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया।
उस समय पटेल पंत नेहरू समेत अन्य दिग्गज कांग्रेसियों ने नेताजी का साथ नहीं दिया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय नजरबंद नेताजी ने अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंक कर विदेश जाने में सफल रहे।  जर्मनी में हिटलर से मिलकर नेताजी ने अंग्रेज़ो के खिलाफ रणनीति बनाई। जर्मनी होते हुए जापान पहुंच आज़ाद हिन्द फौज की कमान संभाली। 1943 में आज़ाद हिन्द सरकार बनाई। अंग्रेजों के खिलाफ  युद्ध किया। विषम परिस्थितियों में भी अपने अदम्य साहस और कुशल रणनीति से अंग्रेजों को  भारत छोड़ने को बाध्य कर दिया।
कथित तौर पर अगस्त 1945 को ताईहुकु विमान दुर्घटना में  नेताजी की मृत्यु हो गई,परन्तु इसकी आधिकारिक पुष्टि अभी तक नहीं की जा सकी है।
नेताजी की मृत्यु को लेकर  मतैक्य का होना  कभी भी संभव नहीं है।
विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर ने नेताजी को देश नायक की उपाधि दी थी।अपनी एक प्रसिद्ध रचना तासेर देश नेताजी को उत्सर्ग किया था।
नेताजी का असली नाम सुभाष चन्द्र बोस था। इनका जन्म एक संभ्रांत बंगाली परिवार में 23 जनवरी 1997 को कटक में हुआ था। पिता जानकीनाथ बोस बैरिस्टर थे। 
भारत सरकार में उनकी 125 वीं जयंती के अवसर पर उनकी जन्मतिथि को "पराक्रम दिवस" के रूप में मनाने की घोषणा की है।
भारत के इतिहास में नेताजी का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया है।उनके त्याग,देशप्रेम और अदम्य साहस से हमें सीख लेनी चाहिए।
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तेरी यादें..!

तन्हाई में भी
मैं आज़ाद नहीं हूं
तेरी यादें
तेरी परछाईं
घेर लेती है हमें
रजनीगंधा की खुश्बू सी,
मेरी हर कोशिश बेकार हो जाती है;
तेरी परछाईं के पीछे
भागता हूं
और तुम दूर बहुत दूर
चली जाती हो
मैं बंद कर लेता हूं आंखें
नींद बैरन बन गई है।

तुम्हारी परछाईं कभी
करीब मेरे आती है
मैं बाहें पसारता हूं
और तुम दूर
चली जाती हो;
चाहता हूं कुछ भी न दिखे
तन्हा रहना चाहता हूं,
रात की जुल्फों में
सो जाना चाहता हूं;
लेकिन तेरी यादें
तन्हा कहां रहने देती है।

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कविता
विधा :- हाइकु..!
शब्द :- खुश्बू, रात, छत आदि..!
      1.
प्यार की खुश्बू
महकते फूल सी
खुली दास्तान
       2.
तन्हा की रात
आंखों में नींद नहीं
यादें सताती।
      3.
नभ के नीचे
छत पर अकेली
चांद से बातें।


विधा :- कविता..!
बिषय :- ख्वाब..!

ख्वाबों के महल 
हर इंसान बनाते हैं
पर धरातल पर इसे
बहुत कम लोग खड़ा कर पाते हैं,
यह सही है 
हर कामयाबी के पीछे
पहली शर्त है ख्वाब
पर उसे मुकम्मल जामा पहनाने की
पुरकश कोशिश भी होनी चाहिए।
मेहनत और योजना के बल पर
ख्वाब के महल
हकीकत में बदल जाते हैं।

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कविता :- शून्य..!
शून्य गगन है
शून्य पवन है
दिखता कुछ भी नहीं है
पर तुम क्या जानो, इसमें
असीम अनंत भी है।
शून्य का महत्त्व निराला
अंकों में स्थान निराला
सही जगह पर स्थान मिले
बढ़ जाए दाम दस गुना।
 अच्छे मित्र की भांति शून्य
निरहंकार निर्लोभी
मदद करने को सदा तत्पर
होते हैं निर्मोही।
शून्य हृदय होता है
जब  दुर्भावना से रिक्त हो
गंगा नीर से भरा कलश सा
सुविचार से भरा हृदय हो।
शून्य करो हृदय अपना
कुविचारों को बाहर करो
बहने दो प्रेम सरिता
शून्य को परिपूर्ण करो।

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कविता..!
औरत..!

जिंदगी मेरी
एक पतंग सी है
दूर आसमान में उड़ती हूं
कभी इधर कभी उधर 
डोर से बंधी हूं
स्वाधीन नहीं,
पराधीन हूं मैं
अपनी जज़्बात नहीं
नहीं अपनी कोई पसंद
मैं औरत हूं
पतंग की जिंदगी जीती हूं।



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स्वामी विवकानन्द :- महान व्यक्तित्व..!
आधुनिक भारत के महान व्यक्तित्व स्वामी विवेकानंद ने मात्र 39 साल की जिंदगी में देश और विश्व के इतिहास में जो कृतिमान स्थापित कर गए हैं वह अभूतपूर्व ही नहीं आने वाले सदियों तक असंभव सा लगता है।
स्वामी विवेकानंद और रवीन्द्रनाथ ठाकुर लगभग समकालीन थे। उन्नीसवीं सदी के साठ दशक में रवींद्रनाथ,विवेकानंद और गांधीजी का जन्म हुआ। ये तीनों  भारत माता के यशस्वी संतान हैं।
स्वामी विवेकानंद मात्र 25 साल की उम्र में सन्यासी बने। सन्यास धर्म ग्रहण करने पर ये स्वामी विवेकानंद के नाम से  अपना सम्पूर्ण जीवन वेदांत दर्शन और भारतीय सनातन धर्म के प्रचार प्रसार में समर्पित कर दिया।
कोलकाता के एक कुलीन परिवार में बालक नरेंद्रनाथ का जन्म 12 जनवरी 1863 में हुआ था। पिता विश्वनाथ दत्त प्रगतिशील विचारधारा के  शिक्षित व्यक्ति थे और माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थी। बालक नरेंद्रनाथ के जीवन में मातापिता के संस्कार का सामंजस्य था। घर पर नरेंद्रनाथ को बिले उर्फ बिरेश्वर भी कहा जाता था। यही बालक नरेंद्रनाथ आगे  चलकर विश्व विख्यात  स्वामी विवेकानंद बनकर भारत का मान बढ़ाया।
स्कॉटिश चर्च कॉलेज से इन्होंने दर्शन शास्त्र में ग्रेड्यूशन किया। कॉलेज के दिनों ही ये विद्वानों की खोज में रहते जो उनके प्रश्नों के सटीक उत्तर दे सके। कॉलेज के प्राचार्य जो अंग्रेज़ थे इन्हें दक्षिणेश्वर के स्वामी रामकृष्ण परमहंस से मिलने की राय दी।
युवा नरेंद्रनाथ ने परमहंस जी को अपना गुरु बनाया और उनके आदर्श को आत्मसात किया।
रामकृष्ण परमहंस ने अपने विचारों और सिद्धांतों से  विवेकानंद  को आगे का रास्ता दिखाया। परमहंस के निर्वाण के बाद  कोलकाता के निकट बरानगर में अन्य गुरु भाइयों के साथ मिलकर रामकृष्ण धारा के प्रचार प्रसार में लग गए।
संपूर्ण देश का भ्रमण नंगे पैरों किया। भारत को समझने और उसे जगाने के लिए इन्होंने कई बार भूखा प्यासा  रहकर भी अपने व्रत में लगे रहे।
इन्होंने देखा भारत के गरिमा मय अतीत से अनजान भारतीय आर्थिक सामाजिक और मानसिक दैन्य के शिकार हैं। भौतिकवाद से जर्जरित समाज  को सही दिशा दिखाने की जरूरत है।
गरीबी,अशिक्षा, कुरीतियां,जातपात स्त्रियों और कमजोर वर्गों की दुरवस्था जैसी समस्या चरम सीमा पर है।
अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। अपने ओजस्वी और शानदार भाषण से विवेकानंद ने विश्व में भारत का परचम लहराया। हमें ध्यान देने की जरूरत है कि भारत तब स्वाधीन नहीं था। मात्र तीस साल की उम्र में  अपनी विद्वता और वक्तृता के लिए स्वामी विवेकानंद अमेरिका यूरोप सह विश्व के अन्य देशों में मशहूर हो गए।
 सभी देशों में इनकी डंका बजने लगी और साधारण से लेकर बड़े बड़े विद्वान विदेशी शिष्य  और शिष्याओं की संख्या बढ़ने लगी।
तीन साल बाद भारत आकर रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जो आज भी मानवजाति के कल्याण में कार्य कर रहे हैं।
स्वामी विवेकानन्द की रुचि संगीत और कविता में थी। इन्होंने कविता और किताबें भी लिखी है। इनके विचारों भाषणों और लेखन को  पूरे विश्व में आदर के साथ पढ़ा जाता है।
4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद ने अंतिम सांस ली। उस समय उनकी उम्र मात्र 39 साल और कुछ महीने की थी।
स्वामी विवेकानंद को राष्ट्रवादी देशभक्त सन्यासी और प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में देखे जाते हैं।
गांधी,सुभाष,नेहरू,तिलक अम्बेडकर सभी ने इनकी प्रशंसा में लिखे हैं। भगिनी निवेदिता, रोम्या रोलां एवम अनेक विद्वान इनके भक्त रहे हैं।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने लिखा है," अगर भारत को जानना चाहते हैं,तो स्वामी विवकानन्द को पढ़ो।"
इनकी जन्मतिथि को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है।


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आलेख..!
मकर संक्रांति पर्व..!
मकर संक्रांति पर्व भारतवर्ष का एक महत्वपूर्ण पर्व है जो  खरमास के अंत में संक्रांति के दिन मनाया जाता है।
इस दिन सूर्य दक्षिणायन छोड़कर उत्तरायण में प्रवेश करता है।देश के विभिन्न प्रांतों में इसके  अलग नाम प्रचलित हैं। तमिलनाडु में इसे पोंगल,उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी पर्व,असम में बिहू तो पंजाब और जम्मू कश्मीर में लोहिड़ी नाम से मनाया जाता है। दक्षिण के कुछ राज्यों में संक्रांति पर्व के रूप में मकर संक्रांति मनाई जाती है। इस पर्व को दधि संक्रांति भी कहा जाता है। 
शरद ऋतु की समाप्ति के मुहाने पर यह पर्व प्राय 14 जनवरी या 15 जनवरी को मनाया जाता है हालांकि अंग्रेजी तिथि से इस पर्व का कोई सीधा संबंध नहीं है।
इस दिन दही चूड़ा,खिचड़ी,तिल के लड्डू और मीठे पकवान  खाने का रिवाज है।
आसमान में रंग बिरंगी पतंग देखने को मिलती है मकर संक्रांति के दिन। बच्चे और युवक पतंग उड़ाने का आनंद लेते हैं।
मकर संक्रांति के दिन लाखों श्रद्धालु गंगा यमुना और अन्य पावन नदियों में स्नान कर गरीबों  के बीच अनाज, रुपए पैसे,कंबल  वस्त्र आदि दान करते हैं।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य भगवान को तिल गुड़ के साथ अर्घ्य देने और पूजा करने से सालों भर स्वस्थ रहने और इच्छाएं पूरी होने का प्रसाद मिलता है।
यूं तो मकर संक्रांति के साथ कई पौराणिक और धार्मिक कथाएं जुड़ी हुई है। कहते हैं नाराज भगवान सूर्य आज के ही दिन अपने पुत्र शनिदेव के घर पधारे थे और पिता पुत्र का मधुर संबंध स्थापित हुआ था। दूसरी कथा है कि आज के दिन ब्रह्मा विष्णु महेश और सभी देवी देवता अपना वेश बदल कर संगम प्रयाग राज में स्नान करते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन सुर सरिता गंगाजी का धरती पर अवतरण हुआ था। बंगाल के सागर द्वीप में प्रसिद्ध गंगा सागर मेला में लाखों लोग मकर संक्रांति के अवसर पर पहुंचते हैं और गंगा स्नान करते हैं
बंगाल के ही जयदेव केंदुली गांव में एक महीने तक चलनेवाला केंदुली मेला लगता है। इस मेले का प्रमुख आकर्षण बाउल गाना और कीर्तन पाला गान है। संस्कृत के विद्वान और गीत गोविंद के कवि जयदेव की स्मृति में यह मेला लगता है। अजय नदी में स्नान कर लोग खिचड़ी भोग ग्रहण करते हैं।
बिहार के बौंसी मेला की भी बड़ी प्रसिद्धि है। मंदार पर्वत की तलहटी में सप्ताह व्यापी मेले में सैकड़ों भक्त दर्शक पहुंचते हैं मेले के दर्शन के लिए तथा मकर स्नान करते हैं। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय मंदार पर्वत का उपयोग‌ मथानी की तरह किया गया था।
मकर संक्रांति में आदिवासियों खासकर साफा होड़ समुदाय के नर नारियों की पारंपरिक पूजन अर्चना और भक्ति देखने योग्य होती है।
इस साल हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन होगा तथा मकर संक्रांति के दिन प्रथम कुंभ स्नान होगा। प्रशासन ने मेले की तैयारी लगभग पूरी कर ली है।
14 जनवरी गुरुवार को मकर संक्रांति है,सुबह 8.30 से शाम 5.46 तक पुण्य काल है।
चंद्रमा दिन रात मकर राशि में रहेगा।
प्रकृति के पर्व मकर संक्रांति का स्वागत है।


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कविता..!
"अपनी जन्मतिथि 7 जनवरी पर"

वक्त ने बहुत कोशिश की
मुझे बदलने की,
जिद  मेरी भी कम नहीं थी
वक्त का चेहरा ही बदल दिया।
माना कि सफर में बहुत कुछ झेला
कहीं ठहरा तो कहीं दौड़ा भी
शूल को फूल बनाया
धूल को चंदन भी मैंने बनाया
कुछ गैर अपने हुए
सुख दुख के साथी बने
कुछ अपने ही गैर बनें
राहों में रोड़े अटकाए
कोई गिला कोई शिकवा नहीं
मुझे तो सभी लगे प्यारे
 नज़रें रही मंज़िल
कभी अपने मकसद से नहीं हटे।
अपने जन्मदिन की सुखद वेला में
बस एक छोटी सी विनती है
प्रेम नीर का प्यासा हूं
खुद प्रेम का दरिया हूं
फिर भी अगर दी हो तकलीफ तुम्हें
माफ़ कर देना निर्मल को प्यारे।


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-:कविता :- 
( दोगली जिंदगी )

कभी सोचता हूं
मैं भी दोगली जिंदगी जी रहा हूं
खूब लिखा पिछले कई वर्षों से
भाषण भी दिए यहां वहां
अपना परिचय देता हूं,
मैं कलमकार हूं,पत्रकार हूं;
पर आत्मा धिक्कार रही है;
आंखें बंद हैं मेरी,
जुबान पर थूक सनी मलाई है सत्ता की
बेजुबान हो गया हूं ढोर जैसा;
किसानों की पीड़ा 
समझ से परे हो गई
या मानुष से अमानुष हो गया हूं
चाटुकार हो गया हूं
डरपोक कमीना बन गया हूं
लाभ हानि का हिसाब करने में
बनिया से भी तेज बन गया हूं
भूल गया हूं गरीबों की आह
और असहायों का श्राप
भवन ही नहीं
कुल खानदान की कब्र
खोदने में दिन रात 
आंसू बहा रहे हैं।

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कविता..!
विधा :- हाइकु..!
शब्द :- शबनम,फूल, खुश्बू, गजल, रात आदि..!
     1.
भावों के मोती
शबनम की बूंदें
अमूल्य निधि।
     2.
प्यार के फूल
मीठी मीठी खुश्बू
उम्दा गजल।
      3.
पूस की रात
किसान की कहानी
धन्य लेखनी।

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नववर्ष का स्वागत..!
विधा आलेख/ गद्य..!
वर्ष 2020 की विदाई वेला आसन्न है। यह अब अपने अंतिम दौर में है।इस समय अगर हम महीने का पन्ना पलटकर देखें,तो हमें अहसास होगा कि हम कितने  बुरे वक्त को पार करके 2021 का स्वागत करने जा रहे हैं। बीत रहा साल हमें असफलताओं में भी आशावादी  रहना सिखाया।
इस साल हमने सीखा,भविष्य की चिंता करना हमारी समस्याओं का समाधान नहीं है। हमें वर्तमान में रहकर अपनी बेहतर देने की कोशिश करनी चाहिए। हमें अपनी जिम्मेदारी खुद लेनी है।
कोरोना महामारी के बहाने ही सही हमने बहुत कुछ सीखा।महामारी से हम अभी तक पूर्णतः सुरक्षित नहीं हैं।इस वैश्विक महामारी में हमने सीखा," हमें छोटी छोटी चीजों का भी आनंद लेना चाहिए।"

नववर्ष हमारे दरवाजे पर दस्तक देने ही वाला है। आइए  हम इसका स्वागत जोरदार तरीके से करें।
 पूरे विश्व में नववर्ष को आनंद और उत्साह के साथ मनाया जाता है। नववर्ष की पूर्व संध्या से ही लोग  नए साल के स्वागत के लिए परिवार रिश्तेदार और दोस्तों के साथ तैयारी शुरू कर देते हैं 
मध्यान्ह रात्रि के बाद ही हैप्पी न्यू ईयर की बधाई और शुभकामनाएं देनी शुरू हो जाती है। डिजिटल मीडिया के पहले रंग विरंगे सुंदर सुंदर ग्रीटिंग कार्ड्स भेजे जाते थे अपने प्रियजनों को। आज सोशल मीडिया में कई माध्यमों से नववर्ष की शुभकमनाएं भेजी जाती है।
समय और परिस्थिति के अनुसार हर इंसान को बदलना पड़ता है।
 नववर्ष में हम नए संकल्प के साथ  दिन की शुरुआत करेंगे। अपनी सामाजिक दायित्वों और कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी से करने का संकल्प लेंगे। वसुधैव कुटुंबकम् की धारणा को आत्मसात करेंगे। 

परिस्थिति चाहे जैसी भी आए आत्मविश्वास और साहस के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का पुरजोर कोशिश करेंगे।सम्पूर्ण मानव सभ्यता के विकास और संरक्षण के लिए एक दूसरे से कंधे से कंधे मिलाकर काम करेंगे।
समाज में व्याप्त कुरीतियों ,निरक्षरता ,कुपोषण तथा प्रदूषण के खिलाफ काम करेंगे।
 जियो और जीने दो,सर्वे भवन्तु सुखिन के सिद्धांतों पर चलने का व्रत लेंगे नववर्ष में।

पिछले वर्ष के सभी दुख,सभी असफलता  सभी कटु अनुभवों को भूल हम तैयार हैं  करने को नववर्ष का स्वागत।
 आप सबों को नव वर्ष की अग्रिम बधाई और शुभकामनाएं।नव वर्ष मंगलमय हो। स्वागतम नूतन वर्ष 2021.


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1.
अटल वाणी
संवेदना से पूर्ण
सार्वभौमिक
     2
महान वक्ता
धुरंधर सांसद
हिंदी के भक्त
      3
अजातशत्रु
राजनीतिक योद्धा
धन्य अटल
     4
दिव्य मुस्कान 
पांडित्य भरी बातें
अटल शैली
     5
सबों का प्रिय
विरोधी भी कायल
ये हैं अटल


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अजातशत्रु अटल बिहारी बाजपेई..!
भारत महापुरुषों का देश है। पौराणिक धार्मिक ऐतिहासिक व्यक्तित्व के अलावा भी बहुत सारे राजनैतिक महापुरुषों के सैकड़ों नाम गिनाए जा सकते हैं जिनके प्रति श्रद्धा और विश्वास से मस्तक झुक जाते हैं। ऐसे ही एक व्यक्तित्व हैंअटल बिहारी वाजपेई।
अटल बिहारी वाजपेई भारतीय राजनीति के उज्ज्वल नक्षत्र रहे जो आज भी चमक रहे हैं।
राजनीति के अजात शत्रु अटल जी को तीन बार प्रधान मंत्री बनने का मौका मिला।
इनका जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। इनके पिता जी कृष्ण बिहारी वाजपेई ग्वालियर में अध्यापन करते थे। माता कृष्णा वाजपेई धार्मिक विचार की कुशल गृहिणी थी।
अटल जी बचपन से ही बड़े तेज दिमाग के थे ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से बी ए करने के बाद  कानपुर के डी ए वी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में प्रथम श्रेणी से एम ए की परीक्षा पास की।
छात्र जीवन से ही लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में इनकी ख्याति फैल चुकी थी।
इन्होंने लॉ की पढ़ाई अधूरी छोड़कर संघ कार्य में जुट गए।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय के साथ मिलकर इन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की जो आज भारतीय जनता पार्टी के रूप में भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है।
आपातकाल में अटल जी को भी जेल में डाल दिया गया था। जेल के अंदर इन्होंने कई सुंदर कविताएं लिखी है।
जनता पार्टी की सरकार में इन्होंने विदेश मंत्री के रूप में एक सफल नेता कुशल वक्ता और जनप्रिय मंत्री के रूप में ख्याति अर्जन की।
संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में अपना व्यक्तव्य देकर हिंदी और भारत का मान बढ़ाया।
1957 से 1977 तक अटलजी अपनी पार्टी के संसदीय दल के नेता रहे।
1996 में तेरह दिनों के लिए तो 1998 में तेरह महीने के लिए प्रधान मंत्री रहे।
तीसरी बार 1999 में प्रधान मंत्री बने और पूरा कार्यकाल पांच सालों तक भारत के पहले गैर कांग्रेसी प्रधान मंत्री के रूप खूब ख्याति अर्जन की।
2004 के आम चुनाव में अटल जी की पार्टी  को सफलता नहीं मिली।
उन्होंने भविष्य वाणी की थी कि कमल खिलेगा,और उनकी वाणी सच सिद्ध हुई।
अटल जी ने राष्ट्र धर्म,पांचजन्य और वीर अर्जुन जैसे राष्ट्रवादी पत्र पत्रिकाओं का संपादन भी किया है।
एक लेखक और कवि के रूप में भी अटलजी प्रसिद्ध हैं। उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं। अविवाहित अटल जी नमिता भट्टाचार्य को  बेटी के रूप में गोद लिया था जिन्होंने उनकी अंतिम क्रिया में  अपनी भूमिका निभाई। 16 अगस्त 2018 को हिमालय जैसे विशाल व्यक्तित्व के धनी अटल जी चिर निद्रा में सो गए।

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कविता..!
विधा :- हाइकु..!
शब्द  :- किसान..!
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      1.
कंधे पे हल
भारत के किसान
भूखा इंसान।
       2.
किसान कथा
दूसरों को खिलाता
खुद है भूखा
        3.
पूस की रात
किसानों की कहानी
दया के पात्र
        4.
जलता प्रश्न
किसान आंदोलन
बूझो पहेली
       5.
गांधी का देश
आजादी की कीमत
मरे किसान।


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 लघुकथा..!
( स्मार्टफोन..! )

देखो बेटा,समय के साथ ताल मिलाकर चलना जरूरी है,साथ ही सच और झूठ,  अच्छे और बुरे की पहचान के लिए शिक्षित और विवेकवान होना भी जरूरी है; पिता  अपने बेटा को समझा रहा था।
पिताजी, आजकल हर कोई तो मोबाइल से ही सबकुछ सीख रहा है,बेटे ने कहा।।
मैं तुम्हारी बात को बिल्कुल गलत नहीं कह सकता,।लेकिन आभासी दुनिया के जितने भी ऐप्स हैं,सभी किसी न किसी  दोष से दूषित है।
अब देखो हमलोग महान लोगों की सूक्तियों को याद करते थे,जरूरत पड़ने पर उसे उद्धृत करते थे,महापुरुष को भी उद्धृत करते थे। किताबें पढ़कर और उसमें गलती की संभावना नहीं थी। 
जी पिताजी,बेटा शांत होकर पिता की बातें सुन रहा था।
अब लाओ तुम्हारा स्मार्ट फोन,तुम्हें एक सच्चाई दिखाते हैं।
बेटे ने अपना स्मार्ट फोन पिता को दिया।
पिता ने फोन पर दिखाया कि किस तरह सुप्रसिद्ध  उक्तियों को गलत ढंग से दिखाई गई है। उक्ति किसी की नाम किसी और की।
 अब देखो अपने विरोधियों को किस तरह अपमानजनक ढंग से झूठे तथ्यों के द्वारा दिखाया गया है।
बेटे ने पिता की बातों में सच्चाई देख कहा,जी पिताजी,इस तरह से हम बच्चों को  दिग्भ्रमित ही किया जाता है।
हां बेटा,किताबों और अखबारों में इस तरह की गलती रहने की संभावना कम रहती है।
बेटा, मैं नहीं कहता कि स्मार्ट फोन का व्यवहार एकदम नहीं करो,करो लेकिन संभल कर;समय के साथ ताल मिलाकर तो चलना ही पड़ेगा।
पिता ने फोन बेटे को वापस देते हुए कहा,जाओ अब फोन रख दो और खेलने जाओ,तुम्हारे दोस्त सब मैदान में तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

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भारत के किसान..!

बड़े कठिन दौर से गुजर रहा हूं
सच कहने का आदी हूं और
झूठ से परेशान हूं।

कहना चाहता अपनी बात
खून पसीने की कमाई खाता हूं
किसी की रहम नहीं

अपनी उपज का सही दाम मांगता हूं
मैं किसान हूं,राजनीति से दूर हूं
देश की तरक्की में मैं सदा आगे हूं
मुझे कमतर समझने की भूल कोई न करे
मैं सिर्फ अन्नदाता नहीं,
नेताओं का भाग्य विधाता हूं।

समय रहते मेरी आवाज सुनो
पक्ष विपक्ष सबको ललकारता हूं
छल प्रपंच से दूर हूं
मुझे देशद्रोही कहनेवाले मूर्खों,
होशियार हो जाओ
मैं हलधर,
श्री कृष्ण का भैया कहता हूं।

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अधकचरा दिमाग और सोशल मीडिया..!
मैं पिछले दिनों आपके गांव के एक लड़के का पोस्ट पढ़ा जिसमें  अरविंद बाबू पर कटाक्ष किया था,नीरज बाबू ने अपने यहां पधारे धीरज बाबू से कहा।
जी मैंने भी पढ़ा था,पीछे लड़के ने यह पोस्ट डिलीट कर दिया।
क्या माजरा है कुछ बताना चाहेंगे,हमलोग तो जानते हैं अरविंद बाबू काफी सज्जन हैं और शिक्षित भी,नीरज बाबू ने कहा। 
जी आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, असल में जिस लड़के ने यह पोस्ट किया था,खुद अधकचरे दिमाग का है। गंभीरता की कमी है। उसे अरविंद बाबू के संघर्ष और त्याग की कोई जानकारी नहीं थी। एक छोटा सा क्लब के लिए कुछ चंदा मांग बैठा था अरविंद बाबू ने हां ना कुछ भी नहीं कहा था। तुरत कोई रेस्पॉन्स नहीं पाकर अरविंद बाबू के खिलाफ  कुछ बेबुनियाद बातें पोस्ट कर दिया था, धीरज बाबू ने कहा। 
मैंने तो सुना है सार्वजनिक हित के कामों में अरविंद बाबू कभी पीछे नहीं रहे।  चंदा आदि में भी उनका कंट्रीब्यूशन सबसे ज्यादा ही रहता है, नीरज बाबू ने कहा।
जी नीरज बाबू,एक तो अरविंद गांव में नहीं थे, वे अपने बेटे के पास चेन्नई में हैं, उसके खिलाफ पोस्ट करना सरासर गलत था।
फिर पोस्ट डिलीट कैसे कर दिया, नीरज बाबू ने पूछा। 
गुस्सा में अरविंद बाबू ने समाज के हित में अपने द्वारा तथा उनके पिताजी द्वारा किए गए कार्यों और आर्थिक मदद का पूरा ब्योरा पोस्ट के कॉमेंट बॉक्स में लिख दिया था।
यह तो होना ही था
सबसे बड़ी बात इस लड़के ने बहुत से लोगों के साथ साथ अरविंद बाबू को भी अपने पोस्ट में टैग कर दिया था।जब कुछ लोगों ने उस लड़के को धिक्कारा तो पोस्ट डिलीट कर दिया।
अरविंद बाबू को कितना मानसिक कष्ट हुआ होगा इसका अंदाजा हम आप नहीं लगा सकते,नीरज बाबू ने कहा।

(कुल शब्द 297)


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बुजुर्गों का मानसिक स्वास्थ्य..!
पापा को खुश देखकर बेटा और बेटी  दोनों खुश नजर आईं । अब पापा पहले जैसे  स्वस्थ और सक्रिय दिख रहे हैं। महामारी के कारण घर में कैद की जिंदगी जी रहे थे राजीव बाबू। अखबार भी आना बंद हो गया कुछ दिनों के लिए। राजीव बाबू को टीवी से शुरू से लगाव नहीं था। मम्मी भी छोटी बहन की देखभाल के लिए जमशेदपुर में रह गई थी। भाई बहन ने मिलकर पिताजी को स्मार्ट फोन  चलाना सीखा दिया और कुछ अच्छे ग्रुप में पिताजी को जोड़ दिया। अब पिताजी पढ़ने भी लगे अपनी पसंद  की रचनाएं,सबसे खुशी की बात पिताजी की लेखन  रुचि को नई जिंदगी मिल गई। अब पिताजी फेसबुक पर नित्य कुछ न कुछ लिखते रहते हैं। आभासी दुनिया में उन्हें कई दोस्तों का साथ भी मिल गया है। खान पान और स्वस्थ वातावरण के अलावा मानसिक स्वास्थ्य भी बहुत जरूरी है, समझदार संतान ही इस सत्य के महत्व को समझते हैं, डिग्री के साथ समझदारी भी चाहिए, पिताजी के इस पोस्ट को पढ़ कर भाई बहन को अपार संतोष मिला। 

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साहित्य संवेद पत्र लेखन प्रतियोगिता 2020.
प्रिय कविता,
                 आज अख़बार में नमिता की सफलता की कहानी पढ़कर बहुत खुशी हुई। जब वह कॉलेज में पढ़ती थी और कॉलेज के लगभग सभी खेल प्रतिस्पर्धा में अव्वल रहती थी ,हम शिक्षकों को उसके उज्ज्वल भविष्य को लेकर पूरा भरोसा था। परन्तु नमिता ने जिस  पारिवारिक और सामाजिक परिवेश से जुड़ी प्रतिकूल परिस्थितियों का दिलेरी से मुक़ाबला कर आज इस मुकाम पर पहुंची है,इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है।
एक बेहद सामान्य और गरीब परिवार की नमिता सुबह चार बजे प्रैक्टिस के लिए लगभग दो किलोमीटर दूर स्टेडियम जाती थी,साथ में उनके पिताजी जाते थे; नौ साल  उम्र से बारह साल तक पिताजी साथ जाते थे, अकेले जाने लगी। कमाल का जज्बा और साहस था बचपन से ही। अगल बगल के लोगों और रिश्तेदारों की कटूक्ति की कभी परवाह नहीं की नमिता के मातापिता ने।दादी नहीं चाहती थी कि नमिता लड़कों के साथ तीरंदाजी कुश्ती आदि खेले ,प्रैक्टिस करें। साहिबगंज जैसे कस्बे में सामाजिक परिवेश लड़कियों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शन करने के  कड़ी प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। नमिता ने एक मिसाल कायम किया है, जो लोग कभी उनके आलोचक थे आज उनकी प्रशंसा करने में आगे हैं।
नमिता को उनके खेल प्रदर्शन के लिए कॉलेज, विश्वविद्यालय एवं सरकार द्वारा पुरस्कृत की गई है। फिल्म अभिनेता आमिर खान की फिल्म दंगल में उसने कुश्ती के लिए रेफरी का अभिनय किया है नमिता ने।
अपने मां बाप की लाडली आज सरकारी सेवा में है।
कविता, नमिता ने इतिहास रचा है और समाज को नई दिशा दी है। जीवन के हर क्षेत्र में लड़कियां अव्वल हो सकती है। बस सफल होने के लिए ध्येय,साहस धैर्य और जज्बा होना चाहिए।
आशा है नमिता की सफलता देख तुम्हें भी आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी। आज बस इतना ही। प्यार और आशीर्वाद के साथ।
तुम्हारा पापा..!

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मुहब्बत..!

मुहब्बत जिस्म का मुंहताज नहीं होती
मुहब्बत की कोई उम्र नहीं होती
रूह से रूह जब मिलती है
मुहब्बत खुद ब खुद फूट पड़ती है
एक धारा सी निकलती है
कब सैलाब बन जाती है।
खुद मुहब्बत को पता नहीं चलता।
मुहब्बत की कोई जात नहीं होती
मुहब्बत का कोई रंग नहीं होता
मुहब्बत की कोई मजहब नहीं होती
मुहब्बत है खुदा की एक रहमत
जो सबों के नसीब में नहीं होती।
मुहब्बत है एक किरण जैसी
जिसके आगे  कालिमा ठहर नहीं सकती।
मुहब्बत जब होती है
सारे भेद मिट जाते हैं
 ढाह जाती है स्वार्थ की दीवारें
पीर पराई अपनी हो जाती है
मुहब्बत बड़ी खूबसूरत होती है
इसकी सादगी इसकी खुशबू
रजनीगंधा सी महकती है।

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ठंड..!

ठंड मौसम 
गुनगुनी धूप
कितनी अच्छी लगती है
दादा के गोद में
नन्ही पोती
निश्चिंत सी
कितनी खुश नजर आती है
अपने को अंबानी की परी समझती है। 1।
ठंड मौसम
गुनगुनी धूप
कितनी अच्छी  लगती है
घास पतवार से बने घोंसले में
चिड़िया अपने साथी संग
असीम की सीमा नापने
के सपने बुनती चहकती है
ठंड मौसम
गुनगुनी धूप
कितनी अच्छी लगती है।

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लघुकथा..!
पंचायत में फैसला..!
"गांव के लिए यह पहली और असंभव सी घटना है। इसकी निंदा की जानी चाहिए",लगभग पचास साल के धीरज बाबू ने कहा।
"गांव के लिए पहली घटना हो सकती है लेकिन इसकी निंदा क्यों की जाए",रंजन ने धीरज बाबू के प्रस्ताव का विरोध किया।
रंजन की बातों से बैठक में उपस्थित सबों को जैसे सांप सूंघ गया। पढ़ा लिखा रंजन कैसे मोहन और प्रीति के कदम का समर्थन करता है। 
मोहन और प्रीति एक ही साथ कॉलेज में पढ़ लिख कर एक प्राइवेट स्कूल में  शिक्षक थे। दोनों बालिग थे  लेकिन दोनों की जाति अलग अलग थी।   आर्थिक रूप से दोनों का परिवार गरीब नहीं तो समृद्ध भी नहीं था।
दोनों में कब प्रेम हो गया इसकी भनक तक किसी को नहीं लगी लेकिन होली के बाद दोनों अचानक शहर में जाकर कोर्ट मैरिज कर ली और रोजी रोटी के लिए दिल्ली पहुंच गए जिसकी सूचना मात्र प्रीति की मां को थी।
अब जितने मुंह उतनी बातें। बच्चे बूढ़े स्त्री पुरुष सभी के कान खड़े हो गए हैं इन दोनों के बारे में नई नई गॉसिप सुनने के लिए।
 बैठक में प्रीति की जाति के कुछ युवक इस घटना से काफी नाराज़ थे,तो मोहन की जाति के कुछ लोग इस घटना को आनेवाले समय में समाज के लिए अहितकर।
एक ने शंका व्यक्त की कि यह शादी असफल होगी।
इस पर रंजन ने कहा,"क्या किसी को दोनों को कभी गलत आचरण करते पाया है,दोनों पढ़े लिखे हैं,संघर्षशील हैं,हो सकता है सुंदर भविष्य की तैयारी के लिए दोनों ने एक होने का निर्णय लिया है।"
"इसकी क्या गारंटी है",प्रीति की जाति के एक युवक ने कहा।
अंत में निर्णय लिया गया कि मोहन की मां को अपने बेटे से संपर्क कर प्रीति के परिवार वालों से आशीर्वाद लेने  और मैरिज सर्टिफिकेट की कॉपी जमा करने के लिए तैयार करना होगा।
बैठक की समाप्ति इतनी सुन्दर होगी किसी ने सोचा नहीं था।
रंजन बाबू ने मन ही मन सोचा काश एक बार प्रीति और मोहन ने उनसे भेंट कर लिए होते और दोनों के सफल वैवाहिक जीवन की प्रार्थना की।

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शीर्षक :- प्रेम पत्र..!
-: विधा क्षणिका :-

कांपते हाथों से
लिखा था 
पहला प्रेम पत्र
बड़ी मुश्किल से 
लिख पाया था
"मेरे दिल की धड़कन"

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आस्था का पर्व :- छठ पूजा..!
आस्था का महापर्व छठ हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। छठ पूजा बिहार और झारखंड के निवासियों का प्रमुख त्योहार है,लेकिन अब पूरे उत्तर भारत के अलावा पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भी छठ व्रत रखने और पूजा वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।
कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर सप्तमी  तिथि तक यह पर्व चार दिनों तक अत्यंत श्रद्धा और नियम से मनाया जाता है।
इस पर्व में सूर्यदेव एवम षष्ठी देवी की आराधना और पूजा की जाती है।
ऐतिहासिक दृष्टि से सूर्य उपासना से जुड़ा छठ पर्व भारत के आदि कालीन सूर्यवंशी भरत राजाओं का मुख्य पर्व था।छठ पर्व बिहार के मगध  क्षेत्र का सर्वाधिक लोकप्रिय पर्व क्यों बना इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं।
देवी षष्ठी अर्थात छठी मैया और सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों ही व्रत रखते हैं। व्रत चार दिनों का होता है। पहले दिन यानि चतुर्थी को आत्मशुद्धि के लिए अरवा चावल खाते हैं।बिल्कुल निरामिष आहार करते हैं और शरीर तथा मन से शुद्ध रहते हैं। पंचमी के दिन नहाय खाय होता है।लोग गंगा या पवित्र सरोवरों नदियों में स्नान करके संध्या में गुड़ और नए चावल से खीर बना कर  फल और मिष्टान्न से छठी मैया की पूजा करते हैं। षष्ठी के दिन घर में पवित्रता एवम शुद्धता से पकवान बनाए जाते हैं। मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ियों से आग पर ठेकुआ बनाया जाता है। गुड और आटे से बने ठेकुआ पर लकड़ी के सांचे से सूर्यदेव के रथ का चक्र भी अंकित होता है।
इसी दिन अर्थात षष्ठी को  अपरान्ह वेला सूर्यास्त के पहले पकवानों,विभिन्न प्रकार के फलों ईख मूली एवम अन्य पूजन सामग्रियों को बड़े बड़े बांस के डालों में भरकर  निकट के नदी,सरोवर या अन्य जलाशय  पर ले जाया जाता है। इस दिन दोपहर से हीं नदियों और तालाबों के किनारे व्रती जनों तथा दर्शकों रिश्तेदारों भक्तों की भीड़ जुटने लगती है।महिलाएं सूर्यदेव और छठ मैया के गीत गाती हुई अपने घरों से निकलती है।बांस निर्मित सूप और डलिया को,जिस पर सभी पूजन सामग्री रखी जाती है,  माथे पर लेकर खाली पैर घाट पर पहुंचते है। घाट की साफ सफाई और रोशनी की अभूतपूर्व व्यवस्था भी की जाती है। घाट पर ईख का घर बनाकर उन पर दीया जलाया जाता है।जैसे ही भगवान सूर्य अस्त होने लगते हैं,व्रती जन जल में खड़े होकर दोनों हाथों से सूर्य  भगवान को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
व्रत करने वाले  विधिपूर्वक डालों को उठाकर डूबते सूर्य और षष्ठी माता को अर्घ्य देते हैं।सूर्यास्त के पश्चात लोग अपने अपने घर वापस आ जाते हैं।रातभर जागरण किया जाता है।सप्तमी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में पुनः संध्या काल की तरह  डालों में नारियल,केला,मिठाई,भर कर लोग घाट पर जमा होते हैं। स्नान कर व्रत करने वाले सुबह के समय उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।अंकुरित चना हाथ में लेकर षष्ठी व्रत की कथा कही और सुनी जाती है। कथा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है और फिर लोग अपने अपने घर लौट आते हैं। व्रती जन इस दिन व्रत का परायण यानि परना करते हैं।

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लघुकथा नजरिया..!
दो बुद्धिजीवी किस्म के लोग छठ पूजा के लिए सरकारी निर्देशों को लेकर तर्क कर रहे थे।
एक ने कहा,"यह सरकार की ज्यादती है। धार्मिक मामले में सरकार का हस्तक्षेप है।"
संयोग से दोनों दोस्त थे लेकिन अलग-अलग राजनीतिक दल के पक्षधर थे।
दूसरे ने कहा,"अपने राज्य में सरकारी निर्देश की खिलाफत तो करते हो, खूब सोशल मीडिया में पोस्ट करते हो।परन्तु तुम्हें पता है कि हमारे बगल के राज्य में भी तो यही फरमान जारी किया है।"
पहले की चुप्पी पर दूसरे ने फिर कहा, "सार्वजनिक हित में भी हम दलीय राजनीति से ऊपर क्यों नहीं  उठ पाते।"
सामने टीवी पर दिल्ली में कोरोना के नए संक्रमण की वृद्धि की खबर दिखाई दी जिस पर दोनों की नजर गई।

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माँ सारदा देवी..!
रामकृष्ण परमहंस की आध्यात्मिक सहधर्मिणी सारदा देवी का जन्म 22 दिसंबर 1853  को एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रामचंद्र  मुखोपाध्याय तथा माता का नाम श्यामा सुंदरी देवी था।
सारदा देवी को स्कूली शिक्षा नहीं मिली,पर आगे चल कर बांग्ला भाषा का अक्षर ज्ञान मिला।
मात्र पांच वर्ष की उम्र में  दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुरोहित  रामकृष्ण के साथ उनकी शादी हुई,उस वक्त रामकृष्ण की उम्र तेईस साल थी।
शादी के बाद वर्षों तक सारदा देवी अपनी पैतृक गांव जयराम वाटी में रही।
18 साल की उम्र में सारदा देवी अपने पति से मिलने दक्षिणेश्वर पहुंची।  उस वक्त रामकृष्ण का आध्यात्मिक जीवन की पराकाष्ठा शुरू हो चुकी थी। दोनों का वैवाहिक जीवन अलौकिक था। शुद्ध और ब्रह्मचर्य का जीवन बिताते हुए रामकृष्ण परमहंस ने सारदा देवी को अपनी प्रथम शिष्या बनाया।
मा सारदा देवी का आविर्भाव एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। दो बहनें और पांच भाइयों में वह सबसे बड़ी थी।
एक सामान्य परिवार में आविर्भाव हुआ, मात्र पांच साल की उम्र में शादी हुई, पति से दीक्षा ली, ब्रह्मचर्य और सात्त्विक जीवन जीकर रामकृष्ण परमहंस के आदर्शों को  जीवन का लक्ष्य बनाया, जन जन की मा बनी। 
जिन्हें खुद रामकृष्ण परमहंस ने मातृ रूप में पूजा की,ऐसी ही असाधारण अवतार थी मा सारदा देवी। 1886 को रामकृष्ण परमहंस का तिरोधान हो जाता है,उस वक्त मा सारदा देवी तेंतीस साल की थी। अपनी तपस्या और लोक मंगल भावना के बल पर  रामकृष्ण मठ की मां बनी।
हम उनके जिस बहु व्यव्हृत तस्वीर को देखते हैं उसे किसी भक्त ने तब खींचा जब वह पैंतालीस साल की थी।
स्वामी विवेकानंद ने उन्हें साक्षात दुर्गा रूप में पूजा की है।
20 जुलाई 1920 को कोलकाता के बाग बाज़ार में मा सारदा देवी का तिरोधान हो गया।
मां को नमन..!

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लघुकथा..!
एक पुरानी किताब..!
'सर आपने बहुत सारी किताबें मुझे कोई मूल्य लिए बिना दे दी। कुछ नई भी और कुछ पुरानी भी,फिर इस पतली सी किताब को binding करने के लिए क्यों दिया?", बुक बींडर ने कहा।
"उस्मान भाई,यह किताब किसी की उदारता की निशानी है। आज मैं हजारों रुपए की किताबें दान करने का सक्षम हूं,शायद यह संभव नहीं होता अगर कृष्ण कुमार ने यह किताब मुझे नहीं दिया होता" नीरज बाबू ने कहा।
 सर,पूरी कहानी जानने की इच्छा है, बुक बिंडर उस्मान ने विनम्रता पूर्वक कहा।
 जब मैं मैट्रिक में था आर्थिक रूप से कमजोर था,पिताजी  की मृत्यु  परिवार का सारा बोझ मां अकेले उठाती थी। पैसे के अभाव में मेरे पास एक अच्छी ग्रामर की किताब नहीं थी। मुझसे एक साल सीनियर कृष्ण कुमार ने  मुझे यह किताब देकर बहुत बड़ी मदद की थी।
नीरज बाबू की बातें सुन   नीरज बाबू और कृष्ण कुमार के प्रति उस्मान का आदर का भाव उमड़ पड़ा।
 आप दोनों को प्रणाम सर,उस्मान ने कहा।
"उस्मान भाई,कभी कभी छोटी सहायता ही बहुत बड़ी होती है। आज मैं अंग्रेजी का लेक्चरर हूं। इस किताब से मुझे बहुत मदद मिली है।"
"सर आपसे मैं बहुत प्रेरित हुआ। मेरी दुकान में अक्सर गरीब घर के बच्चे ही पुरानी किताबें खरीदने आते हैं।
मैं आधे मूल्य पर पुरानी किताबें बेचता हूं। अब गरीब के बच्चों को चालीस प्रतिशत में बेचूंगा" उस्मान ने कहा।
"बहुत अच्छा उस्मान भाई।इस रहमत का फायदा आपको जरूर मिलेगा। मैं दो दिन बाद आऊंगा।" नीरज बाबू ने कहा।
"ठीक है सर, आप कभी कभी मेरे इस गरीब की दुकान में जरूर तशरीफ़ लाएं,"  उस्मान भाई ने शुक्रिया अदा किया।

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मधुर स्मृति..!
दीपक का पत्र देख इंजीनियर आर के गुप्ता चकित रह गए।  दीपक के जीवन के खुशनुमा अध्याय की खबर से उन्हें बहुत खुशी हुई। अपनी पत्नी को बुला कर कहा, जानती हो, "दीपक बैंक का मैनेजर बन चुका है"।
"क्या कहते हो जी, आश्चर्य है!"  पत्नी ने कहा।
"देखो, कितना संघर्ष किया होगा। मैट्रिक के बाद तो उसने पढ़ना छोड़ दिया था और गल्ले की दुकानदारी शुरू कर दी थी।"
बहुत ही सुशील और विनम्र, हम लोगों से पारिवारिक संबंध सा बना लिया था,पत्नी सुषमा ने कहा।
"और भरोसेमंद भी" , पति ने जोड़ा।
"सगा देवर सा सदा तत्पर हर काम में मदद करने के लिए।
जब भी जरूरत पड़ी उसे बुला लेती थी। पढ़ने का शौक था। हमें लगता था कि प्रतिभा क्यों परिस्थिति के आगे हार मान ली।"
"तुम भी तो उसे  बहुत मानती थी। तुम दोनों के मधुर संबंध देख मुझे भी अच्छा लगता था, लक्ष्मण जैसे भाई को तुम्हारे पास रख मैं अपनी ड्यूटी में निश्चिंत रह पाता था। बहुत ध्यान रखता था", पति ने कहा।
उसे अगली छठ पूजा में अपने यहां आने का न्योता देते हैं। उसने एक पहेली अभी तक नहीं बुझा पाया है। सुषमा ने कहा।
कौन सी पहेली ? पति ने आश्चर्य व्यक्त किया।
उसके आने पर उसके सामने बोलूंगी,सुषमा ने कहा।
दीपक ने एक बार सुषमा का नाम जानना चाहा था, सुषमा ने कई विकल्प दिए थे अनुमान से पता लगाने, पर दीपक अनुमान नहीं लगा पाया था।

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लघु कथा..!
"बड़े भाई की जिम्मेवारी"
हेडमास्टर उमेश झा ने बाजार में  शंभू दास को देख अपने पास बुलाया और कहा, "अरे शंभू,नीरज स्कूल क्यों नहीं आता है"?
शंभू ने कहा,"सर एक महीना हो गया,पिताजी चल बसे। महीनों बीमार थे"
 "यह तो हम सभी शिक्षकों को मालूम है।  तुम्हारा भाई जब परीक्षा में शामिल नहीं हो पाया तो उसके सहपाठी  अजित ने इसकी सूचना दी।"
"जी सर,अजित बगल का ही है। लेकिन नीरज तो फेल हो गया न! वार्षिक परीक्षा नहीं दे पाया।"
 " किसने बताया नीरज फेल हो गया। तुम्हारा भाई  फर्स्ट बॉय रहा है। परीक्षा कमेटी के निर्णय के अनुसार उसे अगली कक्षा में प्रमोटेड कर दिया गया है।" हेडमास्टर ने कहा।
 "लेकिन सर,अब पिताजी नहीं रहे" शंभू ने कहना शुरू किया।
हेडमास्टर ने उसे बीच में ही रोक दिया और समझाते हुए कहा, "शंभू,तुम भी मेरे छात्र रह चुके हो। तुम तो पढ़ने लिखने में लापरवाह रहे और तुम्हारा भाई नीरज हमेशा टॉपर रहा है। अब उसका और परिवार की जिम्मेवारी तुम्हारे ऊपर है।"
शंभू चुप रहकर हेडमास्टर की बातें सुनता रहा।
 "शंभू,तुम बड़े भाई हो। सम्पन्न परिवार से हो। तुम्हारा दायित्व है अपने छोटे भाई बहनों की ठीक से परवरिश करना", हेडमास्टर ने शंभू को समझाया।
 हेडमास्टर उमेश झा की बातें सुन शंभू ने कहा, "जी सर, मां से सलाह कर नीरज को स्कूल भेजता हूं।"
"मां क्यों नहीं चाहेगी? अगर तुम पढ़ने से मना नहीं कर दिया होता तो आज  तुम  भी किसी कॉलेज में पढ़ रहे होते। जो हो,तुम भी मेरे छात्र हो,मेरा आदेश है तुम नीरज को जरूर स्कूल भेजोगे। अगले साल वह मैट्रिक की परीक्षा देगा और हमें पूरी उम्मीद है कि वह मेरिट के साथ परीक्षा पास भी करेगा।
शंभू ने हामी भरी और सर को प्रणाम कर जाने की इजाजत मांगी।
"खुश रहो,अगले रविवार को मैं और बद्री बाबू तुम्हारे यहां जाएंगे और तुम्हारी मां से मिलेंगे,तुम्हारी मां को इसकी सूचना दे देना" हेडमास्टर उमेश झा ने कहा।


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नारायण सोरेन तोड़े सुताम संथाली भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार थे।उनकी रचनाएं स्नातक से लेकर स्नातकोत्तर तक में पढ़ाई जाती है।वे संथाली,बांग्ला हिंदी और संस्कृत के अलावा अंग्रेजी के अच्छे जानकार थे। सन 1947 में उन्होंने अंग्रेजी भाषा और साहित्य में सम्मान के साथ स्नातक की परीक्षा पास की।उनकी लिखी किताबों में आषाढ़ विनती एक प्रसिद्ध रचना है जो महाकवि कालिदास की कालजयी कृति मेघदूतम पर आधारित है। जब वे बी एस के कॉलेज में संथाली विभाग के शिक्षक थे तो उनसे बात करने का मौका मिला था।उनका लिखा एक आलेख जो बांग्ला में था,मैंने अपने बांग्ला शिक्षक डॉक्टर कृष्णा गोपाल राय के निर्देश से हिंदी में अनुवाद किया था।कजंगल  पत्रिका में छपा था ,मूल भी, अनुवाद भी।।
नारायण सोरेन की विद्वता का अंदाजा उस समय तो नहीं लगा पाया था, परन्तु उनका सादगी पूर्ण जीवन देखकर मैं अभिभूत हो गया था।
श्री नारायण सोरेन का जन्म एक साधारण कृषक परिवार में 28 अक्टूबर 1922 को हुआ था। इनका पैतृक घर झारखंड के साहिबगंज जिले का छोटा आसिला गांव में है।इनके पिताजी रघुवीर सोरेन और मां सीता  ने आजादी के पूर्व अपने इस होनहार पुत्र की शिक्षा दीक्षा में कोई कमी नहीं नहीं रखी। सन 1942 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद सन 1947 में अंग्रेजी भाषा और साहित्य विषय में स्नातक की डिग्री हासिल किया। अखंड बिहार में एक प्रसिद्ध संथाली पत्रिका होड़ संवाद@  Hore Somvad का प्रकाशन 1947 ईसवी में शुरू हुआ।इसी पत्रिका में उनकी पहली रचना "कुकली"सन 1948 में छपी।
1948 से 1952 तक इन्होंने आपूर्ति विभाग में  सप्लाई इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत थे।1952 के चुनाव में भाग लिया परन्तु सफल नहीं हुए। फिर उधवा ,राजमहल उच्च विद्यालय में शिक्षकता की।1962 से 1968 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे।1
इस दरम्यान इनका लेखन कार्य चलता रहा।1942 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। गौरतलब है कि 42 की क्रांति  पूरे संथाल परगना जिले में आदिवासियों के बीच गांधी समर्थक  पट नायक ,मोतीलाल केजरीवाल के नेतृत्व में क्रांति और सामाजिक चेतना की ज्योति जलाई जा रही थी। श्री नारायण सोरेन के मानस पटल पर इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
संथाली समाज में अपनी सभ्यता, आचार विचार, पर्व त्योहार, रीति रिवाज पोशाक का बहुत ज्यादा महत्त्व है।समाज में कुछ कुरीतियां और अंधविश्वास भी था। इन कुरीतियों और अंधविश्वाों का प्रखर विरोध करना उस जमाने में बहुत ही कठिन था। लोक कथा,लोकगीत और वाचिक साहित्य ही इतिहास और मनोरंजन का साधन था।समाज में प्रधान,परगनैत,मांझी जोग मांझी के  निर्देशन में निर्णायक फैसले लिए जाते थे।
संथाल आदिवासियों की बड़ी आबादी बिहार,बंगाल, असम,मिजोरम,त्रिपुरा उड़ीसा, मध्यप्रदेश,नेपाल और बांगलादेश में बसती है परन्तु 1925 के पहले संथाली भाषा की न अपनी लिपि थी और न लिखित साहित्य।1925 में उड़ीसा के पंडित रघुनाथ मुर्मू ने अपनी विचक्षण प्रतिभा के बल पर ओलचिकी लिपि का प्रणयन किया जिसे 1939 में प्रकाशित किया गया। बांग्ला भाषा के निबंधकार कमल चक्रवर्ती ने पंडित रघुनाथ मुर्मू को संथाली भाषा का भगवान कहा है।
संविधान की आठवीं अनुसूची में संथाली भाषा को शामिल कर लिया गया है।आज बंगाल,झारखंड,उड़ीसा आदि राज्यो में इस भाषा की पढ़ाई स्नाकोत्तर स्तर तक हो रही है।परन्तु कोई सर्वमान्य लिपि का निर्धारण अभी तक नहीं हुआ है।लेखक अपनी सुविधा अनुसार देवनागरी,रोमन,ओलचिकी,बांग्ला या उड़िया लिपि में लिखते हैं। डॉक्टर राय से मिली सूचना के अनुसार श्री नारायण सोरेन ने अपनी सारी रचनाएं देवनागरी लिपि में ही लिखा है। श्री नारायण सोरेन ने कुल 14 पुस्तकें लिखी है जिनमे से लगभग 6/7 किताबें अभी तक प्रकाशित नहीं हो पाई है।इनकी किताबों को भारतीय प्रशासनिक सेवा,झारखंड लोक सेवा आयोग,बंगाल लोकसेवा आयोग  उड़ीसा लोक सेवा आयोग  तथा नेट आदि परीक्षा में संथाली भाषा के लिए शामिल किया गया है।
श्री नारायण सोरेन को विक्रमशिला विश्वविद्यालय द्वारा कवि रत्न तथा संताली साहित्य परिषद द्वारा विद्या वाचस्पति सम्मान से सम्मानित किया गया है।राज्य सरकार तथा केन्द्र सरकार को इनकी पांडुलिपियों के प्रकाशन की जिम्मेवारी लेनी चाहिए।संताली साहित्य के इस कालिदास को यथोचित सम्मान देना सरकार का फ़र्ज़ बनता है।
संताली भाषा के इस महान साहित्यकार का निधन 67 साल की उम्र में लंबी बीमारी से 12 अक्टूबर 1989 को हो गया।
क्रमशः-...............................
मैं अपनी जानकारी और पठित सामग्री के आधार पर यह आलेख लिख रहा हूं।इस आलेख पर सुधी पाठकों की प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।सधन्यवाद।

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इंदिरा प्रिदर्शिनी गांधी..!
19 नवंबर 1917 को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी का जन्म इलाहाबाद में हुआ था।
वे राजनीतिक दृढ़ता और प्रतिभा के लिए विश्व राजनीति में जानी जाती है। उन्हें लौह महिला के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
वे 1959 में पहली बार कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बनीं।पिता की मृत्यु के बाद वे लाल बहादुर शास्त्री के मंत्री मंडल में पहली बार सूचना व प्रसारण मंत्री बनीं।
आपातकाल के विरोध में 1977 में जनता ने उसे सत्ताच्युत कर दिया।
लेकिन 1980 में जनता ने पुनः उनके नेतृत्व को स्वीकारा और इंदिरा गांधी पुनः देश की प्रधान मंत्री बनीं।
31 अक्टूबर 1984 को अपने अंग रक्षकों की गोली से उनकी मृत्यु हुई।
उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि..।

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-: लघु कथा :-
सासू मां का प्यार..!
सुबह से ही निकिता बहुत खुश थी। पच्चीस साल की निकिता आज पहली बार अपनी ससुराल में अपनी सालगिरह मनाएगी। पिछले साल ही उसकी शादी विजय के साथ हुई है।
शाम को जब विजय ऑफिस से घर आया तो निकिता ने मीठी मुस्कान से पति का स्वागत किया..।
विजय के हाथ से बैग लेकर सामानों को निकाल कर रख रही थी , कि एक ज्वेलरी की दुकान का पैकेट देख निकिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
"यह पैकेट?" निकिता ने पूछा।
"मम्मी ने लाने कहा था," विजय ने कहा।
विजय के जवाब से निकिता की खुशी गायब हो गई,लेकिन अपने मन के भाव को प्रकट किए बिना पैकेट अपनी सासू मां को देकर अन्य काम में व्यस्त हो गई।
  रात में जब निकिता ने केक काटा,विजय ने  पैकेट को  निकिता के हाथों देकर जन्मदिन की बधाई दी।
पीछे से सासुं मां ने निकिता के गले में सोने की चेन पहनाते हुए कहा,"तुम्हारे लिए ही तो विजय को लाने कहा था,बेटा निकिता।"
निकिता की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे। सासू मां ने मां की कमी दूर कर दी। निकिता की शादी के दो साल पहले ही उसकी मां की मृत्यु  बस एक्सिडेंट में हो गई थी।

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दरकते रिश्ते..!
 
मंदिर परिसर के समीप एक छोटे से ग्रुप में दस लड़कियां  अपने आप में मग्न थी। सभी लड़कियां आठ दस साल की थी। अंजू की बुआ की बेटी रेखा  कुछ ज्यादा ही तेज और वाकपटु थी जो दुर्गा पूजा में अपनी मां के साथ अाई है।
"तुम्हारी बहन नेहा नहीं आई है पूजा में,"  रेखा ने नीतू से पूछा।
 नेहा चार पांच पहले तक प्रति साल  आती थी पूजा में और  वह भी इन लड़कियों से अच्छी तरह घुल मिल जाती थी।
"नेहा नहीं आई है" नीतू ने जवाब दिया।
"नेहा आती तो और मजा आता," अंजू ने कहा।
संध्या आरती में सभी लड़कियां शामिल होने के बाद अपने अपने घर जाती है।
घर पहुंच कर नीतू अपनी मां से पूछती है,  नेहा दी क्यों नहीं आती है ,बुआ भी नहीं आती है। क्यों मां?
 बेटी के प्रश्न से नीतू की मां कोई जवाब नहीं दे पाती है।
 इस छोटी सी मासूम बच्ची को कैसे समझाए कि रिश्तों पर स्वार्थ हावी हो चुका है।

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लघु कथा
:- प्यारा शैशव..!!

 पूजा में घर जाने की तैयारी कर रहे थे प्रोफेसर शुक्ला। एक खिलौने की दुकान में कुछ खिलौने खरीद रहे थे पत्नी के साथ। साथ में सात साल का बेटा  राजेश भी था।
 बहुत सारे खिलौने खरीदे अपने बेटे के लिए। राजेश भी बहुत खुश था,इतने में राजेश ने कुछ चूल्हे चौके के बर्तन गैस चूल्हा और सिलेंडर के खिलौने देख उसे खरीदने की बात कही।
"यह क्या करेगा बेटा", प्रोफेसर शुक्ला की पत्नी ने कहा।
"मम्मी, नीतू के लिए खरीद लो ना !" राजेश ने कहा।
राजेश की बात सुन पति  पत्नी को  अपने गांव के मोहल्ले की नीतू और उसकी मां याद अा गई।
गरीब किन्तु अच्छे स्वभाव की नीतू की मां गांव के सरकारी स्कूल में रसोइया का काम करती है। नीतू  राजेश की हमउम्र की है और दोनों में काफी दोस्ती है।
 प्रोफेसर शुक्ला ने बेटे की बात रख ली और खिलौने खरीद लिए।
" चलिए,एक सेट ड्रेस नीतू के लिए भी खरीद लेते हैं"पत्नी ने पति से कहा।
तीनों एकबार फिर रेडीमेड कपड़े की दुकान पर गए।

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लघु कथा रावण की तस्वीर..!!
एक सोलह साल की लड़की फोटो विक्रेता की दुकान पर कुछ फोटो देखती है। दर्जनों फोटो देखने  के बाद वह निराश हो जाती है। अपनी पसंद की तस्वीर नहीं मिलने पर वह  दुकानदार से पूछती है,क्या आपके पास रावण की तस्वीर नहीं है..?
दुकानदार आश्चर्य से लड़की के चेहरे को देखता है..।
"रावण की तस्वीर..? क्या कहती हो..?" बूढ़ा दुकानदार पूछता है।
"जी, मुझे रावण जैसे चरित्रवान की तस्वीर चाहिए, जिन्होंने सीताजी की अस्मिता पर दाग नहीं लगाया। हर मर्द को उनसे सीख लेनी चाहिए।"
लड़की के जवाब से दुकानदार आज औरतों पर हो रहे अत्याचार पर सोचने लगा।


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लघु कथा..!
-:देखभाल :-
"चलिए मांजी , खा लीजिए," बहू ने बड़े ही प्यार से सास से कहा।
सास सुबह से ही दांत दर्द से परेशान थी। दोपहर का खाना दाल रोटी नहीं खा सकी थी।
 "ना बेटा कुछ नहीं खाऊंगी,बहुत दर्द हैं दातों में," सास ने जवाब दिया।
"मांजी,रात भर भूखे पेट रहना ठीक नहीं होगा। दिन में भी खाना नहीं खाया आपने। यहीं दलिया लेे आती हूं,आपके लिए बनाई है। कोई दिक्कत नहीं होगी," बहू ने सास को समझाते हुए कहा।
"दलिया बनाई हो? कैसे बनाई ? कहां मिला दलिया?" सास  ने एक साथ पूछ लिया।
 एक महीने पहले गांव से अाई है कमला छोटे बेटे के पास। बेटा रांची में एक कम्पनी में इंजीनियर है।
 "मांजी आजकल सबकुछ मिल जाता है शहर में। पॉकेट में दलिया मिल जाता है।"  बहू ने कहा।
"ठीक है, यहीं ला दो," सास ने कहा।
बहू  एक कटोरी में दलिया और चम्मच लाकर सास को देती है,"मांजी आपके लिए थोड़ा पतला ही बनाया है।निगलने में कोई दिक्कत नहीं होगी।"
कमला  दलिया खाकर बहुत खुश हुई।
"बेटा गांव में हमलोग मकई का भात बनाते हैं,इसी तरह होता है, थोड़ा दरदरा पीसा जाता है। दूध दही के साथ खाया जाता है। सब्जी या सिर्फ गुड़ के साथ भी खाते हैं लोग, कमला ने छोटी बहू रमा को गांव की बात बताई।
"वाह मांजी,मैंने तो अभीतक नहीं खाया है। पूजा में गांव जाऊंगी तो जरूर खाऊंगी।"
"हां बेटा जरूर बना दूंगी,लेकिन पूजा त्योहार में अन्य पकवान भी बनेंगे। बड़ी बहू सब सीख गई है बनाने। तुम भी सीख लेना।" कमला ने कहा।
"जरूर मां जी,अब एक टैबलेट खा लीजिए दर्द का,रात में ठीक से सो पाएंगी।  आपका बेटा कल आपको डॉक्टर को दिखा लेंगे,रमा ने टैबलेट और पानी दिया।
कमला संतुष्ट हो गई।

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तुम जब करते हो बलात्कार
याद नहीं आती तुम्हारी बहन
याद नहीं आती तुम्हारी मा
उसके पास भी है योनि 
जहां से तुम पैदा हुए
याद करो अपनी मां की दो छाती
जिसमें बहती थी अमृत धारा
पीकर जिसे तुम हो धरती पर खड़ा।
तुम भी योनिज हो मां  तेरी खुश हुई थी
अपनी योनि पर गर्व की थी
जाकर पूछो अपनी मां से
तुम्हारे कुकृत्य पर रो रही या हंस रही?
भारत माता  की ओर देखो
अश्रुसिक्त उनकी दो अनमोल नयन!
क्यों बर्बाद करते हो  बलात्कारियों
अपना बहुमूल्य जीवन।

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बहू की भूमिका..!
लॉक डाउन की वजह से कहीं आने जाने की मनाही के बाद बासठ वर्षीय अमिताभ बाबू दिन प्रतिदिन कमजोर और उदास हो चले थे।
अनूप ने एक दिन अपनी पत्नी से इस बात की चर्चा की। शादी हुए अभी दो ही महीने हुए थे।
अनूप की पत्नी कंचन  ने सारी बातें सुन अपने पति से कहा,"पिताजी की हॉबी क्या रही है?"
"पिताजी टीवी देखने से ज्यादा किताबें पढ़ना पसंद करते हैं। रिटायरमेंट के पहले दो तीन अखबार भी पढ़ते थे।"
"गीत संगीत में भी रुचि है क्या?"
"खुद तो गाते नहीं है लेकिन पुराने जमाने के फिल्मी गीत सुनना पसंद करते हैं" अनूप ने कहा।
"कुछ लिखने का भी शौक रहा है पिताजी को?" कंचन ने जानना चाहा।
"पहले लिखा करते थे लेकिन बहुत वर्षों से लिखते हुए नहीं देखा," अनूप ने जवाब दिया।
"आप कल बाबूजी को एक अच्छी नोट बुक और कलम  देकर लिखने के लिए प्रोत्साहित करें। आप कहेंगे तो उसे आपत्ति नहीं होगी। साथ ही एक डिब्बा च्यवनप्राश खरीद लाइए और हां सब्जी के साथ  नींबू  जरूर खरीद कर लाएं। फिर बाबूजी की देखभाल मैं करती हूं।"
  कंचन और अनूप ने पूरा ध्यान लगा दिया अपने पिताजी के देखभाल में। लॉक डाउन की वजह से  मां और पिताजी अलग अलग जगह पर फंस गए हैं। मां  छोटे बेटे के साथ गांव में है।
 कंचन सुबह गुनगुना पानी में नींबू पानी देने के बाद लाल चाय देती है अपने ससुर को। फिर  दो अखबार लेकर आती है।
"बाबूजी,आप तो बहुत कुछ लिख सकते हैं।  आप पहले लिखते थे।"
"पहले लिखा करते थे", अमिताभ बाबू ने कहा।
"तो अब क्यों नहीं,देखिए आपके लिए नोट बुक और कलम ला दिया है । आप कम से कम अपनी  पुरानी यादें लिख ही सकते हैं।"
 बहू की बातों से अमिताभ बाबू खुश नजर आए।
"ठीक कहती हो बेटा, वाह बहुत सुंदर नोट बुक और कलम है।" 
इतने में अनूप भी अा गया।
"पिताजी,आपको लिखने का शौक रहा है।  आप लिखिए। मैं मोबाइल में कुछ एप जोड़ देता हूं और साहित्यिक ग्रुप से आपको जोड़ देता हूं। खूब मन लगेगा। आपका स्वस्थ रहना  बहुत जरूरी है,अनूप ने कहा।
जब भी मन करे आप अपने पसंद के गीतों को भी सुन सकते हैं।  एक नया मोबाइल आज ही अा जाएगा। आपके लिए ऑनलाइन ऑर्डर कर दिया है अनूप ने कहा।
"क्यों ऑर्डर दिया,मेरे पास एक है न?" अमिताभ बाबू ने कहा।
"पिताजी आपके लिए एक नया मोबाइल चाहिए था जिसमें कुछ नए एप हों।
आपके लिए  च्यवनप्राश ला दिया है।लॉक डाउन के कारण अभी आप बाहर नहीं जा पा रहे हैं। सुबह शाम घर पर ही योगासन कीजिए।
कंचन आपका पूरा ध्यान रखेगी।" अनूप ने कहा।
"हां बाबूजी मैं आपकी बहू ही नहीं बेटी भी हूं" कंचन ने कहा।
कंचन की बात सुन अमिताभ बाबू बहुत खुश हुए। आशीर्वाद देते हुए कहा,"सदा सुखी रहो बेटा,भगवान की कृपा सदा बनी रहे।"
अनूप को विश्वास हो गया कि पिताजी के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार जरूर होगा।

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-: यादों के झरोखे से :- 
मेरे गांव में दुर्गा पूजा..!
  ग्राम- पंचकठिया, थाना- बरहेट,
  जिला - साहिबगंज, ( झारखंड)।
बचपन में  न महालया के बारे में जानते थे और न पूजन मंत्र की जानकारी थी। बस दुर्गा पूजा  समझते थे। आनंद ही आनंद। स्कूल से छुट्टी ।वैसे उस जमाने में  स्कूल की पढ़ाई मतलब बच्चों को स्कूल जाना चाहिए इतना ही समझते थे।
मेरे घर के बिल्कुल सामने दुर्गा मंदिर। बाबूपुर का एक कारीगर आता था मूर्ति बनाने। हम बच्चे लोग मंदिर पहुंच जाते थे। कभी पुआल लाना,कभी रस्सी लाना तो कभी आस पास के घरों से पुरानी धुली धोती लाकर कारीगर को देना। कितना मजा और कितना उत्साह। गंगा,उमापद,सागर निशीथ नीपेन विनय मिहिर पंकज रंजीत जितेन अंबिका  ये सब बालबंधू भी थे कई तो सहपाठी भी।
हम सभी दुर्गा मंदिर में जरूर जमा हो जाते थे। मूर्ति निर्माण से मूर्ति विसर्जन तक।
 मेरी उम्र से कम बच्चे और  जवान बुजुर्ग लोग भी मंदिर में रह कर कारीगर का काम देखते थे।
बुजुर्गों में बहुत से लोग थे लेकिन जिन लोगों को प्राय देखते थे,उनमें प्रफुल्ल दे, हाबू दे,  सुधाकर दे,मधुसूदन दत्ता गोपाल सेन सिद्धेश्वर रूज और  मास्टर प्रधान थे।
कुछ औरतें भी रोज आती थी किस तरह कारीगर काम का रहा है देखने।
मैं अपनी दस से पंद्रह साल की उम्र के स्मरण को साझा किया है।
एक दो बैलगाड़ी मिट्टी भी मंगानी पड़ती थी। हम बच्चों का काम था गाड़ीवाले को बोल कर आना। बैलगाड़ी वाले भी मां दुर्गा और मां लक्ष्मी की मूर्ति के लिए मिट्टी ला देते थे और पैसा नहीं लेते थे। कहते थे कि मेरे चंदा स्वरूप दिया।
नापित बुलाना, ढाकी वाले को बुलाना  फूल बेलपत्र आया या नहीं ये सब काम बड़ों ने हम बच्चों को दिया करते थे। सत्तर दशक तक मिटटी का मकान और खपरैल की छावनी थी।
 मात्र एक लालटेन वह भी सार्वजनिक। इसके बाद पेट्रोमेक्स खरीदी गई।
जब मधु दा सचिव थे और सुबोध  अध्यक्ष  उस समय अन्य साथियों के साथ चंदा वसूली से लेकर अन्य कामों न में सहयोग किया।
घंटी बजाने का भी अलग आंनद था। मेरे ख्याल से 60 और 70 के  दशक  में समाज में गरीबी थी। 1967 के अकाल की कहानी एक इतिहास है। आज के युवा वर्ग को अंदाजा नहीं होगा कि 67 /68 में किस तरह आम और खास बाजरे  भुटटे और लाल रंग के गेंहू  पर ज्यादा निर्भर थे।
आज खुशी के साथ देखने को मिलती है कि गरीबी बहुत हद तक नहीं है।
क्रमशः ...................

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पोस्ट पर टिप्पणी..!
पिताजी,आपके बारे में ढेर सारी टिप्पणियां हैं,बेटी ने कहा।
"टिप्पणियां कैसी है,अच्छी या बुरी।"
"अच्छी भी,बुरी भी; अच्छी टिप्पणियां ज्यादा है,चार पांच टिप्पणियां बुरी।"
 "अच्छी टिप्पणियां अलग कर हमें दिखाओ,बुरी टिप्पणियों को अलग कर रखो; उसे पीछे देखूंगा।"
 "ऐसा क्यों पिताजी?"
"अभी मैं सृजन कर्म में हूं जिसके लिए अच्छी टिप्पणी मिलती है। इन टिप्पणियों से मुझे और अधिक सृजन की प्रेरणा और ऊर्जा मिलती है।" बुरी टिप्पणियों से तकलीफ़ मिलेगी,काम करने का उत्साह ठंडा पड़ जाएगा। पिताजी ने कॉलेज में पढ़ रही बिटिया को समझाया।
"तो क्यों नहीं बुरी टिप्पणियों को हटा दूं?" बेटी ने पिता की राय जाननी चाही।
 "बेटी मैं इंसान हूं,भगवान नहीं। हो सकता है कुछ कमी मुझमें भी हो।आलोचना की अनदेखी भी नहीं कर सकता मैं। वस्तुपरख आलोचना का सम्मान करता हूं और ईर्ष्या या जानकारी के अभाव में गलत आलोचना की निन्दा करता हूं।" पिता ने बेटी को अच्छी तरह से समझाया।
वाह पिताजी बहुत अच्छा नजरिया है आपका। जो टिप्पणी ईर्ष्या के कारण की गई है उसको कहां रखूं
बेटी ने पूछा।
पिता ने हंसते हुए कहा,"देखो डस्टबिन भी है ।"
 बेटी चहक उठी  "वाउ।"

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हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में " मैं और मेरी हिंदी "

मेरी मातृभाषा बांग्ला है। पढ़ाई-लिखाई हिंदी माध्यम से हुई। इसे  आश्चर्य ही कहा जाएगा कि अक्षर ज्ञान बांग्ला में मां ने दिया और कक्षा दूसरी से हिंदी में पढ़ना शुरू किया। पहाड़ा और वर्तनी बांग्ला में सीखा, लेकिन सुयोग्य शिक्षकों के आशीर्वाद से बहुत जल्द हिंदी पढ़ना-लिखना सीख गया। वार्षिक परीक्षा में प्रथम आया।

और यह सिलसिला कभी नहीं टूटा। नौवीं दसवीं से ही कविता लिखना शुरू किया मैंने।

पहले पहल लिंग,वचन और वाक्य गठन में दिक्कत हुई। आगे चलकर हिंदी शिक्षक की सहायता से हिंदी भाषा में मेरी पकड मजबूत हो गई।  सत्तर के दशक में मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो और पत्र पत्रिकाएं थी। मैं गाना सुन कर अपना शब्द भंडार बढ़ाया। मेरे पास शब्द कोश नहीं था उस समय।

इंटर में वाद विवाद समिति का सचिव बना। विभिन्न विषयों पर वाद विवाद प्रतियोगिता के आयोजन में मेरी सक्रिय भूमिका रही।

साहिबगंज कॉलेज में  कुल दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता में बरहरवा कॉलेज से मैंने भी भाग लिया। फर्स्ट सेकंड तो नहीं हुआ लेकिन मेरे परफॉर्मेंस की सबों ने प्रशंसा की। मैंने अपने भाषण में एक जगह दबा दिया जाता है की जगह दाब दिया जाता है कह दिया।यह गलती बांग्ला भाषी होने के कारण हुई।

मेरी हिंदी अच्छी है सभी कहते हैं। मैं इसके लिए अधिक से अधिक हिंदी किताबें और पत्र-पत्रिकाओं पढ़ने की मेरी आदत को मानता हूं। प्रतिष्ठित साहित्यकारों के अलावा मैंने अपनी युवावस्था में गुलशन नंदा, रानू,कुशवाहा कांत और बांग्ला के महान साहित्यकारों की हिंदी में अनुवादित किताबें खूब पढ़ी है।

जय हिन्दी दिवस 2020.


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एक लघु कथा :- नेक सलाह..!

 " दीदी,तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं,चालीस साल की कलावती ने यशोधरा से सलाह मांगी।

उसका बेटा मैट्रिक पास किया था और आगे  पढ़ना चाहता था।

"अभी दीपक  कॉलेज से नहीं आया है,नहीं तो उसी से बात कर लेती।फिर भी मैं अपने अनुभव से तुम्हें बताती हूं तुम्हारे बेटे की इच्छा पूरी करना तुम्हारा दायित्व है।"

"लेकिन मेरी गरीबी किसी से छिपी हुई नहीं है। मां बेटा कुट्टी का काम करती हूं। धान कूटने के बाद चावल बना कर रोज बेचती हूं,तब जाकर घर का खर्चा उठा पाती हूं।"

"देख कलावती,आज गरीब के ही बच्चे पढ़ते हैं,रईस के बच्चे कॉलेज में मौज मस्ती करते हैं

तुम्हारा बेटा लगनशील है और पढ़ने में भी तेज है।मैट्रिक पास कर गया है तो गांव में ही आठ दस बच्चे को ट्यूशन पढ़ा कर कॉलेज का खर्चा निकाल लेगा।

अब तो हमारे गांव से दूर भी नहीं है कोलेज।पहले सौ दो सौ मील में कॉलेज था,इसी लिए अच्छा पैसा वाले घर के भी बच्चे कहां पढ़ पाए है?" यशोधरा ने समझाया।

"कुछ लोग कहते है कि कॉलेज में पढ़ने से बेटा बिगड़ जाएगा?"

" तुम्हारा मोती ? मोती बिगड़ नहीं सकता।"

वे लोग नहीं चाहते तुम जैसी गरीबन का बेटा आगे पढे। तुम मोती को अगले रविवार को दीपक से मिलने कहना।"

"जी,दीदी कहूंगी। चलती हूं" मोती घर में मेरी राह देखता होगा।

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