20 जून 2021

रचना :- उषा भारती..!

नारी हूँ, कमजोर नहीं..!

मानती हूँ नारी ही सही,
पर हूँ मैं कमजोर नहीं।
यही अपनी शक्ति जो दिखाई ,
कि लोग बुरा मान गए।

जब तक मैं सहती रही,
दुनियाँ संस्कारी कहती रही,
पर थोड़ी जुबान क्या चलाई,
कि लोग बुरा मान गए।

नर और नारी नारायण के ही रूप हैं,
दोनों के अधिकारों के समान स्वरूप हैं,
पर अधिकार जो जताई 
कि लोग बुरा मान गए।

खुबसूरत गुड़िया हूँ मैं घर की, 
प्यार करो खिलौना ना बनाओ मन की,
यही एहसास जो कराई,
कि लोग बुरा मान गए। 

नारी हूँ पर आधी आबादी की मालकिन,
चाहती समानता का अधिकार हो मुमकिन,
बस यही आइना जो दिखाई, 
कि लोग बुरा मान गए।

पुरूष की सफलता में स्त्री का हाथ है,
पग पग पर होता उनका ही साथ है,
पर यही हक जो जताई,
कि लोग बुरा मान गए। 

नारी घर से निकल चाँद पर चमक गई,
उनका हर स्वरूप दुनियाँ में दमक गई,
बस अपनी पहचान जो दिखाई, 
कि लोग बुरा मान गए। 

नारी कभी डरती नहीं,डरायी जाती है,
नारी कभी हारती नही,हरायी जाती है,
बस यही बात जो बताई, 
कि लोग बुरा मान गए। 

इसीलिए कहती हूँ बहनों,
घर बैठ सिर्फ चुड़ियाँ मत पहनो,
समाज में जीना है यदि शान से,
तो अपनी शक्ति को स्वयं पहचानो।

आओ चलें अपना अधिकार जताएं,
अपनी शक्ति से खुद की सरकार बनाएं,
अपना अधिकार व पहचान दिखाकर,
आओ समाज को अपना सरोकार दिखाएँ।

जबतक घर में हूँ, रही मैं "ऊषा" बनकर,
अब नारी सम्मान के लिए खड़ी है"भारती" सीना तनकर,
आज "ऊषा भारती" का रूप जो दिखाई,
कि लोग बुरा मान गए।

समाज को उनकी गलती जो बताई, 
कि लोग बुरा मान गए। 

दुनियाँ को आइना जो दिखाई,
कि लोग बुरा मान गए।

समाज में अपना अधिकार जो जताई,
कि लोग बुरा मान गए।
अब होगा सच अपना सपना।
50/पर होगा सिंहासन अपना।
ये आइना जो दिखाई की लोग बुरा मान गए।

ठीक है,नारी ही सही,
पर हूँ मैं कमजोर नहीं।

जय हिंद,जय भारत..!


पर्यावरण से है जीवन हमारा..!

चलो इस दिल में 
प्रकृति प्रेम जगाते हैं।..2
मिलती है सांसे जीवन को।
चलो इस अनमोल रत्न से 
प्रेम करते हैं।..2

करती है यह शुद्ध वातावरण 
देती है फल फूल और छाया।

चलो इस दिल में हम 
प्रकृति प्रेम जगाते हैं..2
धरा अंबर सागर प्रदूषित 
जन जीवन उपवन प्रदूषित।
चलो इस दिल में 
प्रकृति प्रेम जगाते हैं...2
रूठ गई प्रकृति हमसे 
चलो मिलकर हम मनाते हैं।
चलो इस दिल में 
प्रकृति प्रेम जगाते हैं।..2
हरा भरा वन उपवन कर 
हमें जीवन दे जाती है।
चलो इस दिल में 
प्रकृति प्रेम जगाते हैं..2
कितनी मनोरम में यह प्रकृति 
हमें देती जीने की स्वीकृति।
चलो इस दिल में 
प्रकृति प्रेम जगाते हैं।...2
सबको जीवन देने वाली प्रकृति 
ना आए इसमें कोई विकृति 
हम सब मिलकर करें 
पर्यावरण को सुरक्षित।
चलो इस दिल में 
प्रकृति प्रेम जगाते हैं 
चलो इस दिल में 
प्रकृति प्रेम जगाते हैं।

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क्या सच में होली आई है.....!
अभी-अभी तो "उषा" 
अपने मधुर होंठ खोली है,
क्या सच में अब आ गई होली है? 
चहुँओर सतरंगी किरण छाई है,
क्या सच में बसंत ॠतु आई है?

उषा की किरणों की लालिमा ऐसी,
मानो राधा के खुले हुए सुन्दर होंठ,
या आसमान में इन्द्रधनुष छाई है,
देखो चहुँओर बासंती तरुणाई है 
क्या सच में होली आई है?

देखो इन्तजार करतीं सखियाँ बरसाने में ,
इधर ग्वाल बाल खड़े कृष्ण के सिरहाने में।
देखो चारों ओर कृष्ण संग राधा छाई है,
क्या सच में होली आई है?

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मैं नारी एक बेचारी हूँ..!!

मैं अबला एक नारी हूँ,
पर पालक बड़ा भारी हूँ। 
सबकी सेवा मैें करती हूँ, 
फिर भी दुत्कारी जाती हूँ।

किसी को मेरी परवाह नहीं,
जबकि कुछ पाने की चाह नहीं,
जैसे तैसे कटते मेरे दिन यहाँ ,
शिकायत पर भी मेरी चाह नहीं।

दिन रात परिश्रम करती हूँ,
परिवार पर मर मिटती हूँ,
फिर भी मेरी कोई फिक्र नहीं,
दुख ही दुख मैं तो सहती हूँ।
 
ससुराल में ताने सुनती हूँ, 
फिर भी कुछ ना कहती हूँ,
एक बार जो गलती होती है,
हरबार मुसीबत सहती हूँ।

घर बार छोड़ मैं यहाँ आयी,
बाबुल का साथ कहाँ निभा पायी?
गलती से क्या कुछ बोली मैं,
सौ बार ये आँखें भर आईं।
 
मैं बच्चों को भी पढ़ाती हूँ,
सबकी भोजन को पकाती हूँ, 
मर्दों की तरह सब काम किया, 
फिर भी कामचोर कहलाती हूँ।

दिन भर पति का साथ नहीं, 
मेरे बच्चे ही मेरे हाथ नहीं,
मतभेद सदा ही पाती हूँ, 
फिर भी कहाँ घबराती हूँ?

मैं चमक चांदनी अपने प्रीतम की, 
मैं भागीदार इस सृष्टि सृजन की,
फिर भी अपमान मैं सहती हूँ, 
एक विचित्र सी जीवन जीती हूँ।

अब चाह नहीं मुझे जीने की,
सरेआम पथ पर नोंची जाऊँ,
पर चाह भी नहीं मुझे मरने की,
जबतक न उसे सजा दिला पाऊँ।

मैं ही तो परिवार की मीत,
अपने प्रीतम की जीत
दे दो मुझे यह अभयदान, 
कि गाती रहूँ खुशियों के गीत।

सृष्टि का मैं सृजनहार,
उस आबादी की पालनहार,
मुझसे ही चलता यह परिवार, 
फिर भी सहती हूँ अत्याचार।

चाह मुझे है नारी सम्मान की,
शक्ति स्वरूपा पुजी जाऊँ,
चाह मुझे है कवि वाणी की,
अपने समाज को जगा पाऊँ।


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राम और चन्द्र संवाद..!!

हे राम! 
मुझे शिकायत है आपसे,
यह बात कहूँ मैं किससे?
सभी चाहने वाले हैं आपके, 
आपकी शिकायत पर 
रूठ जाते हैं मुझसे।

आप तो हैं करूणा के सागर,
सम्पूर्ण सृष्टि में है आपका आदर,
आप सब भक्तों का रखते हैं मान,
आपको तनिक भी नहीं है अभिमान।

आपकी महिमा है अपरम्पार, 
अपने प्रेम से सबों का किया उद्धार,
पर मैंने ऐसा क्या कर डाला, 
जो मेरे साथ ऐसा हुआ व्यवहार ?

प्रश्न भी नहीं पूछते मैं क्यों व्यथित हूँ?
मन में एक उद्गार लिए मैं यहाँ कुंठित हूँ। 
मुझे इस व्यवहार से स्वयं पर है गुस्सा,
क्या आप नहीं सुनेंगे मेरा किस्सा?

तो सुनें------!

आपने अपना विजयोत्सव अमावस को मनाया,
मेरा क्या कसूर जो आपने मुझे यह नहीं दिखाया। 
हे प्रभु! आपने जाना मेरी अनुपस्थिति को,
फिर भी ऐसा कर आपने मुझे रूलाया। 

हे राम!मुझे शिकायत है आपसे ,
सीताहरण में आप छुप छुप कर रोया करते ,
सारी रात मैं दुखी मन आपके साथ जगा करता,
यह विजयोत्सव मुझे अच्छा कहाँ लगता?

लक्ष्मण को जब शक्तिबाण लगा था,
सारी सृष्टि दुःखी हुआ था,
पूछो तब दुष्ट अमावस कहाँ गया था?
सारी रात तब मैं ही जगा था।

जब हनुमत गए लाने संजीवनी, 
तब मैंने ही बिखेरा अपनी चाँदनी।
पुछा नहीं वह अमावस कहाँ छिपा था? 
जब सूनसान राहों पर मैंने ही दिखाया रौशनी।

हे प्रभु! यह विजयोत्सव किसी और दिन होता।
आधे अधूरे ही सही मैं भी पहुँच जाता।
हे राम!यह दिवस मैं क्यों याद करूँ?
काश!मैं भी इसका साक्षी बन जाता।

हे प्रभु!दूख में दर्शन मैं करूँ,
सुख में करे कोई और,
मैं क्यों प्रकृति के साथ रहूँ?
मर जाउँ कहीं ठौर। 

अब बारी थी श्री राम की,
कहने लगे रघुवीर,
मत रूठो श्री चन्द्र जी,
नयनन भर भर नीर। 

तुम मेरे शुभचिंतक हो सबसे करीब,
तुम्हारे ही प्रयास से मेरे खुले नसीब। 
चिंता मत कर दुनिया तेरा भी मान बढ़ाएगा,
अब तुम्हारा नाम भी मेरे नाम से रामचंद्र कहलाएगा।

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संविधान दिवस पर..!

जग में हुआ तेरा नाम
आई शहीदों के दिलों में प्राण
बाबा साहेब के संविधान से

बनायी स्वयं की तूने पहचान
आई चहेरे पे तेरी मुस्कान
बाबा साहेब के संविधान से

मिला जीने का अधिकार
तेरे सपने हुए सब साकार
बाबा साहेब के संविधान से

आसमान छूने की चाह
तेरे जीवन को मिली नई राह
बाबा साहेब के संविधान से

हुई दूर अंधेरी रात
सुनी दुनियाने तेरी बात
बाबा साहेब के संविधान से

न्याय सबको मिले एक समान
तेरा बढ़ गया अब सम्मान
बड़ा प्यारा है बाबा साहब का संविधान
तुम अब ना भाई बन बेईमान
वीर हुआ है देश के लिए लहूलुहान
भाई कर तुम संविधान पर अभिमान।
जय किसान जय संविधान
बाबा साहेब के संविधान

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मातृशक्ति उठो..!!
मातृशक्ति उठो तुम भी 
भारत भूमि डूबी जा रही हैं।
तपस्विनी का भी 
अगम जो व्रत तुम्हारा है।
वही जो मातृ रक्षक हो 
वही सुता श्रेष्ठ जाता है।
कोई महान नहीं बनती 
लघु और नम्र बने बिना।
हे मातृशक्ति सोए बहुत 
अब तो उठो जागो।
देखो अपनी दशा 
आलस्य को त्यागो।
कुछ पार है क्या क्या 
समय के उलटफेर ना हो चुके।
अब भी सजग होंगे ना क्या ?
सर्वस्व तो खो चुके।
आओ मिलें सब देश के
हार बांधव बनकर देश के।
साधक बने सब प्रेम से 
सुख शांति मय उद्देश्य के।
पुरुष प्रधान देश में 
भेद मिटा सकते हैं।
माला भी विविध 
सुमनों से बना सकते हैं।
बरस रहा है रवि अनल 
भूतल तवा सा जल रहा है।
फिर भी इस भूतल पर 
चलने का निर्णय हम ले रहे हैं।
औरों के सहारे नहीं पलती हूं।
अपने पैरों पर खड़ी
आप चलती हूं।
अपने आंचल में व्यथा 
अपने आप झेलती हूं।
तनु लता सफलता स्वाद 
अपने आप महसूस करती हूं। 
थूके मुझ पर त्रिलोक भले ही
जो कोई कह सके कहे क्यों चुके।
युगो युगो से चली आई है 
भूल भुलैया की कहानी।
मैं हूं एक स्वतंत्र स्वाभिमानी।

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नारी विश्वास का प्रतीक..!

बेटा..! मत पूछो कि मैं कौन हूँ..?
नहीं पता, कैसे दूँ उत्तर, इसीलिए मौन हूँ..। 
मां के पास ना पद है और ना ही पैसा,
चलती है अपनी गाड़ी तुम्हारे पिता चलाना चाहे जैसा।
ना तो मुझे समृद्धि है और ना व्यवसाय,
ना गृहस्थी चलाने वाली भी कोई आय ।
फिर भी चलती चली जाती हूँ एक अजनबी पथ पर, 
ताकि भटक न जाओ कहीं तुम किसी मोड़ पर। 
मां एक प्रवाह है जिसकी मंजिल नहीं,
तुम्हें कहीं कोई कष्ट हो ऐसी बातें शामिल नहीं। 
मां तो पवित्र है महक फैलाने वाले इत्र है,
वह तुम्हारी गुरु है सही राह दिखाने वाली मित्र है।
डालती है चांद सितारे तक तुम्हारी झोली में,
बोलती है बिल्कुल तुम्हारे ही बोली में ।
वह कभी मित्र है तो कभी गुरु,
माँ से ही होता है तुम्हारा जीवन शुरू।  
वह तो तुम्हारे लिए  शक्ति का स्त्रोत है, 
उसका हृदय तुम्हारे लिए भक्ति से ओत प्रोत है।
साथ ना रहते हुए भी ता उम्र का साथ है,
हर वक़्त तुम्हारे सर उसके आशीष का हाथ है। 
वह कभी नायिका तो कभी सेविका बन जाती है,
तुम पर आँच आए तो फिर रक्षिका बन जाती है। 
तुम्हारे लिए ना जाने कितने मुखोटे लगाती है,
दुख सहकर भी तुम्हारे लिए खिलौने जुटाती है।
इतने मुखोटे लगाने के बाद भी वह समभाव है,
क्योंकि यही तो उनका स्वभाव है।
कहती है "उषा" कि सृष्टि में एक शब्द है माता, 
जिसमें समाहित है सम्पूर्ण विधाता। 

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बेटी अब तुझे फूलन बनना होगा..!

कितनों  को मारेंगे  ये,
किन- किन  को  जलाएंगे  जिंदा,
किसे पता किस बेटी को,
अपना शिकार बनाएंगे दरिंदा।
कभी निर्भया, कभी  प्रियंका, 
तो कभी आसिफा को,
और न जाने किन-किन का 
चिरहरण करेंगे ये दरिंदा।
अपने-अपने घरों में आराम से रहो सब,
तुम्हारा क्या गया,
तुम क्यों करोगे चिंता।
जिसके  घर पे बिता, 
वो समझे, वो करे चिंता,
जिसकी आबरु जाए,
जिसकी बेटी जले जिंदा।
तुम तो कल भी  सोये थे, 
और आज़ भी सोये रहोगे,
चाहे दरिंदा इज्ज़त लुटे 
या किसी को जलाये जिंदा।
तुम तब नींद से जागोगे,
जब तुम्हारे घर के
इज्ज़त के पिंजरे से, 
कोई उड़ा देगा परिंदा।
जिंदा लाश हो सब के सब, 
मोमबत्तियां ही जला सकते हो,
बहन बेटी की आबरू लूटने पर,
तुम चिल्ला ही सकते हो।
बहन का भाई, बेटी के पिता हो, 
तो क्या  कोई गलती है?
नहीं, तो बहन बेटियों को 
फूलन क्यों नहीं बना सकते हो?
कितनी बेटी को खोओगे तुम सब,
तुम्हें अब और कितना जलाना होगा।
सिर्फ मोमबत्तियां जलाने से कुछ नहीं होगा,
बदलाव चाहिए तो तुम्हें,
इससे आगे निकलना होगा।
इन बैहसी दरिंदों को सबक सिखाने के लिए,
अब तो बहन बेटियों को फूलन बनना होगा।
बेटी को बचाने के लिए,
फूलन का पिता बनना होगा,
दिल में हमदर्दी नहीं,
आँखों में ज्वाला जलाना होगा।
जहाँ दिखे ये हवस के पुजारी,
उसे वहीं कुचलना होगा,
जिसको लगे पूत कपूत है,
उसको वहीं मिटाना होगा।
बेटी, लगता है अब तुझे फूलन बनना होगा,
जिस्म नोचने वाले को,
तुझे ही निगलना होगा।
अब तुझे अबला  नहीं, 
रौद्र रूप लेकर चलना होगा,
छाती पे जो हाथ रखे,
उसके सीने को मसलना होगा।
बेटी अब तुझे फूलन बनना होगा।
बेटी अब तुझे फूलन बनना होगा।।
मैं भी नारी थी पर किसी से नहीं हारी थी
अपने अपमान का बदला लेने की पूरी तैयारी थी
उन दरिंदों की दबंगई मुझ फूलन से हारी थी..!



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नारी तुम करो अपनी शक्ति को प्रदर्शित..!

नारी तुम करो अपनी शक्ति को प्रदर्शित।
नारी तुम करो अपने ज्ञान को प्रकाशित।।
प्राचीन काल से ही तुम हो संयमित। 
युगों युगों  में तुम ना हुई विचलित।।
नारी तुम करो अपनी शक्ति को प्रदर्शित।
आदिकाल से ही तुम हो प्रचलित।
नारी हित में करो अपने को समर्पित।।
नारी तुम क्यों हो घर में मूर्छित।
नारी तुम करो अपने धर्म को सुरक्षित।
नारी करो तुम अपनी शक्ति को प्रदर्शित।।
युगों युगों में हाहाकार हुआ।
तुम पर कितना अत्याचार हुआ।।
तुम्हारा कितना तार-तार हुआ।
आज भी तुम कितना शर्मसार हुआ।।
नारी तुम करो अपनी शक्ति को प्रदर्शित।।
कलम की ज्योति जगाओ,
जीवन के अंधकार मिटाओ।
नवजीवन में अपना प्रतिनिधित्व लाओ
जन जन को अपनी शक्ति दिखाओ।।
नारी तुम करो अपनी शक्ति को प्रदर्शित।।
शिक्षा का अलख जगाओ।
स्वयं जागो और सब को जगाओ।।
अत्याचार का विरोध कर भगाओ।
व्यभिचार को दूर भगाओ।।
अपना देश अपनी माटी की रक्षा में अलख जगाओ।।
नारी हित में हो जाओ संगठित। 
संघर्ष के लिए हो संकल्पित। 
नारी तुम करो अपनी शक्ति को प्रदर्शित। 


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सौभाग्य और सुहाग का प्रतीक,
परम पावन व्रत हरतालिका तीज। 
माथे पर बिंदिया चमकती रहे,
हाथों में चूड़ी खनकती रहे। 
पैरों में पायल झनकती रहे,
सर पर लाल चुनर सजती रहे। 
सुंदर मुखड़े पर काले बाल ,
उस पर लाल सिंदूरी दमकती रहे। 
अखंड सुहाग बना रहे सबका, 
दाम्पत्य जीवन खुश रहें सबका।
तू बड़ी मनभावन लागे। 
जब हाथ में मेहंदी लागे।
तो बड़ी सुहावन लागे।
जब बालों में गजरा लागे।
नयन तेरा कजरा रन लागे।
जब नयन में काजल लागे।
ललाट तेरा चम चम लागे।
जब माथे पर कुम कुम लागे
संग तेरे जब साजन  देखे।
तब तुम सुंदर और मनभावन लागे। 

*****************
गोली चले चाहे, 
चाहे चले बम
ना लद्दाख देंगे 
ना कश्मीर हम
देश आजादी में 
कितने नेता खाए बम, 
ना लद्दाख देंगे 
ना कश्मीर हम ।
सदियां गुजर गई 
गुलामी की जंजीर से, 
ना लद्दाख देंगे 
ना कश्मीर हम ।
62 की युद्ध नीति न दोहराने देंगे हम।
तार-तार कर देंगे इस बार हम।
नारद नीति से पड़ोसी को उकसाया है
बेशर्मी का हद पार तुमने किया है।
गोली चले चाहे चाहे चले बम 
ना लद्दाख देंगे ना कश्मीर हम।
हम हैं वतन के प्रेमी वतन पर मिटेंगे।
हम विस्तार नीति का पतन करेंगे।
गोली चले चाहे चाहे चले बम 
ना लद्दाख देंगे ना कश्मीर हम ।
हम नारिया भी ना किसी से हैं कम।
वतन के लिए मर मिटेंगे हम।
मेरे संस्कार को तुम ने ललकारा है।
मेरे स्वाभिमान को तुम ने ललकारा है
अपने अभिमान को तुमने बखाना है।
पाई पाई करके हिसाब लेंगे हम।
गोली चले चाहे चाहे चले बम 
ना लद्दाख देंगे ना कश्मीर हम।


******************

हम पर वतन का उपकार 

यूं ही उधार रहने दो।
बड़ा खूबसूरत है यह कर्ज 
हमें कर्जदार रहने दो।
हमारी आंखों में जो 
छलकती है आजादी 
इन आंखों में सदा 
आजाद रहने दो।
सत्ता बदलते रहे , 
पार्टी की सरकार बनती रहे।
हमें अपने जीवन में यूं ही 
वतन के लिए सदाबहार रहने दो।
हम पर वतन का उपकार 
यू ही उधार रहने दो।
बड़ा खूबसूरत है यह कर्ज 
हमें कर्जदार रहने दो।
सिर्फ वतन नहीं 
यह कहने का मेरा।
मातृभूमि की रक्षा में 
कफन में हो मेरा सवेरा।
हम पर वतन का उपकार 
यू ही उधार रहने दो।
बड़ा खूबसूरत है यह कर्ज 
हमें कर्जदार रहने दो।
वतन के लिए जान लुटा दी 
देश की वीरांगना ने
हां हम देश की नारी न रहेंगे 
सिमटकर अंगना में।
देश आजाद हुआ मगर 
नारी को आजादी मिली नहीं।
बड़ी अफसोस है हम नारी 
वीरांगना के पथ पर चली नहीं।
हम पर वतन का उपकार 
यूं ही उधार रहने दो।
बड़ा खूबसूरत है यह कर्ज 
हमें कर्जदार रहने दो।
इतनी मेहरबानी मेरे ईश्वर 
मुझ पर बनाए रखना।
देशभक्ति की ज्योति 
मेरे दिल में सदा जलाए रखना।
हम पर वतन का उपकार 
यूं ही उधर रहने दो।
बड़ा खूबसूरत है यह कर्ज 
हमें कर्जदार रहने दो।


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पूर्वजों के कथनानुसार..!
बांका जिला में एक सुप्रसिद्ध गांव है। वह गांव का नाम पिंडरा है। प्राचीन काल से ही यह गांव बहुत ही  प्रसिद्ध है। पूर्वजों का कहना है कि भगवान श्री रामचंद्र द्वारा द्धारा लंकापति रावण का वध कर, लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद जब वह अयोध्या लौटे थे ।  तो मुनि वशिष्ठ द्धारा भगवान श्री रामचंद्र को वध का प्रायश्चित के लिए द्वादशा ज्योतिर्लिंग की  पूजा अर्चना करने के लिए कहा गया था। तो भगवान रामचंद्र ने माता सीता और भैया लक्ष्मण सहित जल लेकर सुल्तानगंज से बाबा बैद्यनाथ धाम पहुंचे थे। रास्ते में सुईया पहाड़ के समीप पूर्व बोलबम रास्ता जो एक बहुत ही दुर्गम पहाड़ी पगडंडी रास्ता है। उसी रास्ते से  बरूआ नदी पार कर महादेवा खार प्रसिद्ध पहाड़ी बाबा , पिंडरा गांव होते हुए। प्रसिद्ध झाझवा मंदिर होते हुए भैरोगंज पार करते हुए , विश्व कर्मा द्वारा अर्धनिर्मित शिव मंदिर बघवा पहाड़ होते हुए चांदन होते हुए बैद्यनाथ धाम  द्वादशा ज्योतिर्लिंग रावणेश्वर महादेव की पूजा किए थे। आज भी उस गांव में एक निर्माणाधीन 108 फीट की शिव मंदिर है। जिसे पहाड़ी बाबा के नाम से जानते हैं। इस मंदिर में पुजारी आज भी हमारे परिवार के सदस्य हैं।यह रास्ता काफी पथरीली और पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से इसे बाद में सत लेटवा कमरिया धर्मशाला राजवाड़ा  चानदन होते हुए बैजनाथ धाम पहुंचाया गया। पहाड़ी बाबा की कृपा सभी भक्तों पर बनी रहती है। इस प्रकार आस्था है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से पहाड़ी बाबा की पूजा करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यहां पर काफी खनिज संपदा भी है यहां पर सभी धर्म के लोग भी रहते हैं। सभी धर्म के लोगों में भाईचारा भी बनी हुई है। आपसी सहमति भाई चारा सौहार्द सदा कायम है !
शांति यहां का प्रतीक है। शिक्षा के मामले में भी यह गांव प्रसिद्ध है। यहां पढ़े-लिखे अनुभवी लोग भी रहते हैं जो कि समाज के उत्थान के लिए सोचते रहते हैं। हमारा गांव बहुत ही सुंदर है यहां पर कंदमूल भी लोगों को मिल जाता है। पहाड़ी व दुर्गम क्षेत्र होने के वजह से यहां पर आधुनिकीकरण की कमी है। लेकिन ईश्वर की महिमा बनी हुई है। हमारा गांव बहुत ही सुंदर गांव है । हमें गर्व है कि जिस  गांव में मां सीता का पदार्पण हुआ। उस गांव में हमारा जन्म हुआ है। इस बात पर मुझे गर्व है। कि मैं बचपन से ही पहाड़ी बाबा का पूजा करती आई हूं। धन्य पिंडरा की धरती जहां प्रभु श्री राम पधारे।


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मानव सम्मान..!

मानव होकर के मानव का  
              आप सभी सम्मान करो 
सभी मानव एक हमारे 
          मत उसका नुकसान करो
चाहे मानव कोई भी हो 
            मत उसका अपमान करो 
जो ग़रीब हो अपना मानव
               धन देके  धनवान करो 
हो गरीब मानव की बेटी 
           मिल कर कन्या दान करो 

हो बीमार कोई भी मानव
               उसे रक्त का दान करो
बिन घर के कोई मिले मानव
           उसका खड़ा  मकान करो 

अगर मानव दिखता भूखा 
             भोजन का इंतजाम करो 
अगर मुसीबत में हो मानव 
          फौरन मदद का काम करो 
अगर मानव दिखे वस्त्र बिन 
               उसे वस्त्र का दान करो 
अगर मानव दिखे उदासा 
            खुश करने का काम करो 
अगर मानव घर पर आये 
          गले लगा   सम्मान करो 

अपने से हो बड़ा मानव
             उसको आप प्रणाम करो               
ईश्वर ने अगर तुम्हें नवाजा 

            नही आप अभिमान करो..!

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मेरी माँ !
मेरी मां ने मुझे लोगों को हंसाना सिखाई ।
मेरी मां ने मुझे लोगों पर हंसना ना सिखाई ।
मेरी मां ने मुझे स्वाभिमान को संयोगना  सिखाई ।
मेरी मां ने मुझे स्वाभिमान को बेचना ना सिखाई ।
मेरी मां ने मुझे सच्चाई के साथ सहमति जताने सिखाई ।
मेरे मां ने मुझे सच्चाई के साथ आपत्ति जताने ना  सिखाई ।
मेरी मां ने मुझे प्रतिकूल परिस्थिति में जीना सिखाई ।
मेरी मां ने मुझे प्रतिकूल परिस्थिति में घबराना ना सिखाई ।
मेरी मां ने मुझे नारी धर्म निभाने सिखाई।
मेरी मां ने मुझे नारी धर्म से घबराने ना सिखाई।
मेरी मां ने चुनौतियों से निपटना सिखाई।
मेरी मां ने चुनौतियों में सिमट ना ना सिखाई।
मेरे अंदर जो भी गुण है वह मेरी मां ने सिखाई।
मेरी मां ने मुझे हंस बनाना सिखाई।
मेरी मां ने मुझे बत्तख बनाना ना सिखाई। 
इसलिए मैं अपनी मां पर गर्व करती हूं



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सोचिए कि हम कितना मजबूर हैं 
जन्म दिवस के दिन भी हम मां से दूर हैं 
सोचिए कि हम कितना मजबूर हैं
एक लम्हा भी हम मुस्कुरा ना सके
हम सभी गम में हंसे चूर होकर
सोचिए कि हम कितना मजबूर हैं 
जन्म दिवस के दिन भी हम मां से दूर हैं
अपने अश्कों से दामन भिगोते रहे
चुपके-चुपके हम रोते रहे
सोचिए कि हम कितना मजबूर हैं 
जन्म दिवस के दिन भी हम मां से दूर है
चेहरे पर उदासी की लहरें आई है 
सारी खुशियां हमसे पराई है
सोचिए कि हम कितना मजबूर हैं 
जन्म दिवस के दिन भी हम मां से दूर हैं
सोचते सोचते आंख भर आई है 
हम तो जन्म से पराई है
सोचिए कि हम कितना मजबूर हैं 
जन्म दिवस के दिन भी हम मां से दूर है
मां के पास जा ना सके 
आंचल से आंसू सूखा न सके
सोचिए कि हम कितना मजबूर हैं 
जन्म दिवस के दिन भी हम मां से दूर हैं
अब तो हर तरफ से यही खबर आई है
बेटियां तो घर से पराई है 
सोचते-सोचते आंख भर आई है
सोचिए कि हम कितना मजबूर हैं 
जन्म दिवस के दिन भी हम मां से दूर हैं

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तू जिंदगी को जी 
उलझने की कोशिश ना कर..!
जिन्दगी समझने की कोशिश कर.!!
सुन्दर सपनों के ताने-बाने बुन.!
उसमें उलझने की कोशिश न कर.!!
चलते वक्त के साथ तू भी चल.!
उसमें सिमटने की कोशिश न कर.!!
अपने हाथों को फैला, खुल कर सांस ले.!
अंदर ही अंदर घुटने की कोशिश न कर.!!
मन में चल रहे युद्ध को विराम दे.!
बेवजह खुद से लड़ने की कोशिश न कर.!!
कुछ बातें भगवान पर छोड़ दें.!
सब कुछ खुद सुलझाने की कोशिश न कर.!!
जो मिल गया उसी में खुश रहें.!
जो सुकून छीन ले वो पाने की कोशिश न कर.!!
रास्ते की मंजिल का लुत्फ उठा.!
मंजिल पर पहुंचने की कोशिश  कर.!!

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नारी सम्मान..!
बदल कर चेहरे की मुस्कान 
मैं मुस्कुराती हूं।
उठाती हूं नारी सम्मान की
बात बहुत सुकून पाती हूं।
ना मैं कविता लिखती जो नारी द्रोही है।
जिसे दिल में नारी का सम्मान है 
उन्हें कविता सुनती हूं।
दिल में नारी सम्मान का प्रवाह बहेगा।
साहस से साजिशों का दमन पर मुकाम मिलेगा।
बदल कर चेहरे की मुस्कान को मैं मुस्कुराती हूं।
उठाती नारी सम्मान की बात बहुत सुकून पाती हूं।
अगर देश में नारी का सम्मान कायम है।
तभी देश में संस्कृति कायम है।
नारी को सम्मान दिलाना सबको अच्छा लगता है।
माता की मातृ प्रेम प्राणों से बढ़कर अच्छा लगता है।
फिर प्रश्न खड़े होते हैं 
जगह-जगह पर मां तेरी कैसी अपमान होती है।
बदल कर चेहरे की मुस्कान को में मुस्कुराती हूं। 
उठाती नारी सम्मान की बात बहुत सुकून पाती हूं।
जब देश का बच्चा बच्चा नारी का सम्मान करेगा
फिर कोई नहीं नारी का अपमान करेगा।
फिर जो नारी का अपमान करेगा 
वह मिट्टी में मिल जाएगा।
आओ करें प्रतिज्ञा हम अपनी अपनी भाषा में
समाज को जागरूक करें नारी सम्मान की आशा में।
बदल कर चेहरे की मुस्कान को में मुस्कुराती हूं।

उठाती नारी सम्मान की बात बहुत सुकून पाती हूं।

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जो सफलता के शिखर पर यूं यहां आरुढ़ हैं।
दृष्टि में उनकी जो निर्धन है, घृणित है, मूढ़ हैं।।
हैं स्वयं श्रम से पृथक पर देखिए धनवान है। 
हमारे देश में गुणवान हैं।
खेलते हैं ये कली से फूल की मुस्कान से। 
हम दुनियां को सबक सिखाए हैं , 
अपने स्वाभिमान से।।
देश में क्रांति का विस्फोट हो पाए नहीं।
देश के लोगों में विदेशी खोट उजागर हो पाए नहीं।।
गढ़ दिया फैशन की जो इस जन्म में बेहाल है।
संस्कृति विषाक्त में संतप्त हो रही है 
विदेशी माले-माल है।।
वह जो संयम से रहे परलोक में सुख पाएंगे।
हो गए पथभ्रष्ट तो सीधे नरक में जाएंगे।।
ना संस्कृति रहेगी ना परम्परा रहेगा।
देश विदेशी का बसेरा रहेगा।।
इसलिए अभी से हो जाओ एकचित। 
अपने देश को करो विदेशी से सुरक्षित। 


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हम इस देश की नारी हैं, 
हम कुछ कर के दिखलाएंगे।
पवित्र देश हमारा है, 
और पवित्र बनाएंगे।
इस देश की परम्परा को सीता, 
अनुसुइया ने अपने हाथों सींचा है।
हम लक्ष्मी है, 
नन्हीं लक्ष्मीबाई बनकर दिखलाएंगे।
हम इस देश की नारी हैं, 
हम कुछ कर के दिखलाएंगे
पवित्र देश हमारा, 
और पवित्र बनाएंगे।
नारी ने सबको शरण दिया, 
पाल-पोसकर बड़ा किया।
गद्दारों और दुष्टों ने नारी का अपमान किया।
अपना रक्त बहाकर भी हम इनको दूर भगाएंगे।
पवित्र देश हमारा और पवित्र बनाएंगे।
इस धरती का रूप देखो 
प्राणों से भी प्यारा है।
दुनिया का एक मात्र देश हमारा न्यारा है।
इसकी खातिर अब हम भी, 
प्राणों की बलि चढ़ाएंगे।
पवित्र देश हमारा और पवित्र बनाएंगे। 
जब से होश संभाला है, 
संकल्प ने सिखाया है।
कर्मों से इतिहास बदलता
भाग्य को हमने बनाया है।

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मां भारती की सुनो पुकार..!
मां भारती की सुनो पुकार। 
चाईनीज सामानों का करो बहिष्कार।।
कितना सहोगे अत्याचार 
चीन ने मानवता को किया शर्मसार।।
आज हुए देश हमारा तार-तार। 
उजड़ा मेरा घर परिवार।।
उतरा बहनों का सिर से श्रृंगार।।
शहीद हुए मां का दुलार।।
मां भारती की सुनो पुकार।
मां भारती की सुनो पुकार। 
नारी अब भरो हुंकार। 
बंद करो चीन के सामानों का उपयोग। 
देश की सेना का करो सहयोग।। 
मां भारती की सुनो पुकार।
पहले तो हमला का नाम वार्ता का रूप दिया।
फिर मेरे वीर सपूतों को लहूलुहान किया।
कब तक तुम सहोगी अपने पुत्रों की शहादत।
अभी से करो चीन के सामानों का बगावत।
मां भारती की सुनो पुकार।
उठो देश में आई है विपत्ति । 
सब मिलकर हो जाओ एकचित।।
अपने देश को करो सुरक्षित।
चीन को करो मां भारती के आंचल में व्यपार से वंचित।।

मां भारती की सुनो पुकार।

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कोरोना को सबक सिखाने आता है...!
आसमां जमीं पर लकीर खींचने आता है, 
हमें अपने देश को सुरक्षा करने आता है..!
कोरोना तुम जितना भी विनाशकारी बन जाओ, 
तुम जैसे महामारी को सबक सिखाने आता है..!!
कोरोना तुम मानव का शत्रु हो, 
हम मानव तुम्हारा शत्रु हैं..!  
तुम अप्रत्यक्ष रुप में हो में प्रत्यक्ष हुं..
कोरोना तुम कितना भी विनाशकारी बन जाओ 
तुम जैसे महामारी को सबक सिखाने आता है।
तुम विदेशियों की मानसिकता है घृणित, 
संसार को कर दिया है विचलित।
लेकिन हम भारतीय तुमसे डरते नहीं, 
क्योंकि तुम जैसे बहुरूपिए से निपटने आता है। 
कोरोना तुम जितना भी विनाशकारी बन जाओ 
तुम जैसे महामारी को सबक सिखाने आता है। 

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बेटी क्यों आज घर में मूर्छित....??


लक्ष्मी है धूल में लेटी। 
सरस्वती है घर घर में बेटी।
दुर्गा है हर घर की शक्ति।।
बेटी क्यों आज घर में मूर्छित.....??
बेटी न शरहद से हट ती। 
बेटी ना दुश्मन से डरती। 
बेटी ना कभी होती कुंठित। 
बेटी ना कभी होती विचलित।।
बेटी क्यों आज घर में मूर्छित.....??
नरी जाति का सुनो हुंकार। 
बंद करो अब अत्याचार। 
लेंगे हम शतचंडी का अवतार। 
कर देंगे हम दुराचारी का संहार। 
फिर बेटी ना मिलेगी रोती। 
फिर ना कोई मिलेगी मूर्छित।।
बेटी होगी हर दर पर चर्चित। 
फिर होगा देश अनुशासित।
बेटी क्यों आज घर में मूर्छित.....??
उषा की पुकार सुनो। 
नारी जाति हुंकार भरो।
अब ना अत्याचार सहो...
आओ हम सब मिलकर बेटी को करें सुरक्षित....
(जय सामाजिक क्रान्ति, जय मां भारती, जय नारी शक्ति)



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जाग उठो ए नारियों.......!
जाग उठो ए नारियों 
स्वाभिमान को बेचो ना। 
समाज में काबिज नारी शोषणकर्ता 
उनकी जड़ को सिचों ना।।
तनिक स्वार्थ के वशीभूत होकर 
नारी विद्रोही बन जाओ ना। 
नारी समाज की दल छोड़ कहीं जाओ ना।।
बंट जाओगी मिट जाओगी। 
आंह भरोगी फिर एक दिन। 
आज हुए ना एक सब मर जाओगे गिन-गिन
ज्ञात नहीं तुम्हें उन वीरांगना का। 
जिन्होंने समाज के हित में सही थी ताना।
जाग उठो ए नरियो स्वाभिमान को बेचो ना। 
समाज में कविज नारी शोषणकर्ता 
उनकी जड़ को सीचों ना।
धन्य धारा पर इस भारत का 
नारी जाती का नाम पड़ा। 
आदि काल से ही भारत में 
नारी का सम्मान रहा।                      


***********************   सुन जरा....!

सुन जरा बिलख-बिलख कर नारी कर रही पुकार..।
हो रहे हम नारियों पर अत्याचार..।।
क्या होगा हम नारियों का सुन जरा, सुन जरा...
सहम उठी धरा भी बेटियों पर कहर से।
समाज सो रहा पहर दो पहर से।।
क्या होगा हम नारियों का सुन जरा सुन जरा....
बेटी की यहां कोई कदर नहीं।
समाज पर बेटी की दुर्दशा की कोई असर नहीं।।
क्या होगा हम नारियों का सुन जरा सुन जरा...
पहले तो कु विचार किया।
फिर तार तार किया,
फिर अत्याचार किया,
फिर छोड़ दिया उस पथ पर तड़पते।
जहां ना कोई झांकते नजर से।।
क्या होगा हम नारियों का सुन जरा सुन जरा। 




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नारी जीवन है खतरे में....!

कलम मिली है कर्म करो।
अंधकारमय जीवन का अंत करो।। 
आज नारी जीवन है खतरे में।
राक्षसी प्रवृति का वध करो।।

आज नारी जीवन है खतरे में।
चूड़ी पहन डरकर बैठे अंधेरे में। 
क्यों पड़े हो भूलभुलैया के फेरे में। 
जीवन कब आए सबेरे में।।

जिस दिन होगा हाथ में तलवार, 
फिर ना होगा नारी पर अत्याचार।
चीख चीख कर करे पुकार। 
दूर करो जीवन के  अन्धकार।। 

राक्षस रूपी दानव का संहार करो,
अब तुम न यहाँ अत्याचार सहो।
 कलम मिली है कर्म करो,
अन्धकारमय जीवन का अंत करो।।

दुनिया समझे तुम अबला हो, 
पर मैं समझी तुम सबला हो। 
चल उठो तुम हुंकार भरो, 
दानव का अब संहार करो।

उषा की वाणी की ज्वाला बन,
उस कुंठा का संहार करो। 
चल उठो समय अब आया है,
नारी जाति का कल्याण करो।।

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