04 फ़रवरी 2021

रचना :- सुबोध कुमार झा..!

नाम करे संसार..!

जब जब भू पर पाप बढ़े,
बढ़ता रहे व्यभिचार-2 ;
तब तब राम ने जन्म लिए,
करे यहाँ संहार रे भईया ,
करे यहाँ संहार। 

राजनीति के खेल में,
उल्टे सीधे दाव-2
अपना इसमें कोई नहीं,
अपनों को दे घाव रे भईया, 
अपनों को दे घाव ।

ऐसे मित्र ना दिजीए,
सुख में समय बिताय-2,
जों दुख आयो आपनो,
बिल में गयो समाय रे भईया,
बिल में गयो समाय। 

ऐसे जीवन ना जीओ,
स्वारथ में हो समाय-2
कहने को तो साथ हैं ,
पर अंत नहीं कोई जाय रे भईया, 
अंत नहीं कोई जाय। 

कहत सुबोध हम काम करें,
करें ऐसों व्यवहार-2,
मानव मन प्रसन्न रहे,
नाम करे संसार,रे भईया, 
नाम करे संसार। 


मैं भी एक साहित्यकार हूँ..!

मैं भी एक छोटा-मोटा साहित्यकार हूँ,
पर नहीं कोई वामपंथी विचार हूँ।
कर रहा है जो राष्ट्र की बर्बादी,
पर मैं तो हूँ भाई एक राष्ट्रवादी। 
मैं तो निकला हूँ राष्ट्रवाद की ज्योत जलाने,
देशभक्ति की कहानियाँ सुनाने। 
मेरी लेखनी की तेज है धार, 
कर रही है वामपंथियों से आर या पार। 
शब्दों का प्रवाह इतना तेज
कि बह जाए माँ भारती को कलंकित करने वाले,
कर दूँ मैं उसे इतना निस्तेज,
कि सिमट कर रह जाए आँखें उठाने वाले। 
भाई मैं तो उसे ढूंढ रहा हूँ 
जिसने साहित्य को बदनाम किया।
आ जाए सामने है वो
जिसने भारत माता की अस्मिता को सरेआम किया।
उसी में ही कोई एक था
जिसने लाल किला पर तिरंगा को अपमान किया,
भारत के अन्नदाता को बदनाम किया।
मैं तो उसे ढूंढ रहा हूँ, 
जिसने इस आंदोलन की पटकथा लिखी,
लाओ मेरे सामने उसे 
जिसने भारत की व्यथा लिखी।
एक वो है जो 
देश के प्रति समर्पित है,
इसीलिए तो जनता उनकी ओर आकर्षित है।
मैं भी कर दूँ अपनी लेखनी,
देश के प्रति अर्पित है,
धन्य हो जाए कण कण मेरा,
देश को सम्पूर्ण समर्पित है। 

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26जनवरी 2021 मंगलवार का दिन भारतीय इतिहास में एक काला दिवस के रूप में जाना जाएगा। यहाँ मैं कह दूँ कि कुछ लोग समझते हैं कि इस घटना से मोदी की खुब जग हँसाई हुई है तो यह समझना उनकी भारी भूल है। आप उस देव तुल्य महामानव को पहचान नहीं पाए हो। उन्होंने तुम्हें ऐसा करने की इजाजत दी। वे नहीं चाहते थे कि ऐसा कुछ किया जाए कि सिक्खों का नरसंहार हो जाए और आने वाले दिनों में एक प्रायोजित 1984 की सिक्ख दंगे की पुनरावृत्ति हो जाए और विपक्ष बार बार संसद के पटल पर यह सवाल उठाते हुए मोदी को बदनाम करता रहे। अब आप खुद अंदाजा लगाओ भाई कि इस कुकृत्य में बदनामी किसकी हुई। मैं तो कहता हूँ कि मोदीजी और भी लोकप्रियता के ग्राफ में उपर गये हैं। 
      जनता सब समझती है कि ये लोग पंजाब सरकार खालिस्तानी समर्थक के भाड़े के टट्टू थे जो एक हवा की झोंका की तरह आया और भारत की अस्मिता को रौंदते हुए चला गया। उन्होंने सोचा कि इस आन्दोलन से परिवर्तन की पटकथा लिखी जाएगी और फिर सत्ता लोलुपता में उन्होंने भारत को बदनाम करने की भरपूर कोशिश की परन्तु उन मूर्खों को यह कहाँ मालूम था कि यह सब तुम्हें करने की इजाजत दी गई ताकि तुम्हारा अस्तित्व व तुम्हारी असलियत दुनियां की नजर में आ जाए कि तुम किस तरह के इन्सान हो कि उस लालकिले पर जहाँ भारत का तिरंगा फहराया जाता है वहाँ तुमने खालिस्तान जिन्दाबाद का नारा बुलंद कर साम्प्रदायिक झंडा फहराया । तुम मुट्ठी भर तथाकथित किसान सम्पूर्ण भारत के अन्नदाताओं का प्रतिनिधित्व करने योग्य हो ही नहीं सकते। आन्दोलन दिल, दिमाग और जज्बे से किया जाता है, भाड़े और आतंक से नहीं।
        बार-बार कहने की कोशिश करता हूँ कि मोदीजी भारत में भगवान का भेजा हुआ एक प्रतिनिधि है जो भारत की सम्पूर्ण कहानी लिखने आया है और वही सभ्यता-संस्कृति विकसित करना चाहता है जिसके लिए हम दुनिया में जाने जाते हैं। और यह बात भारत की जनता समझ भी चुकी है। इसलिए तो बार-बार जीत कर जा रहे हैं। फिर भी कुछ मुट्ठी भर तथाकथित सेकुलर गिरोह व देश विरोधी ताकतें आन्दोलनकारी का रूप लेकर जबर्दस्ती व्यवस्था को बदलने की असफल कोशिश करते हैं। वे इस बात को पचा नहीं पा रहे हैं कि उनका अस्तित्व खतरे में है और उनकी दुकानें बंद होने वालीं हैं।  
      मैं कहता हूँ कि आप जरा सोचें कुछ लोग जो लाल किला के प्राचीर से तिरंगे का अपमान कर रहे थे उसे कुचलने में मोदी को कितना समय लगता?दो गोलियां काफी थीं। लेकिन मोदी होशियारी का दूसरा नाम भी है ।सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी। देश के सभी चैनल जो कलतक मोदी का विरोध कर रहे थे आज तुम्हारा कवरेज देते हुए तुम्हें कोश रहें हैं। अपने अस्तित्व को पहचानो और यदि तुम अपने को भारतीय कहते हो तो जानो कि क्या यह कुकृत्य को कभी भूल सकेगा भारत। तुम मुट्ठी भर लोग कभी भी भारत का प्रतिनिधित्व करने योग्य हो ही नहीं सकते।क्या भारत के किसानों का प्रतिनिधित्व सिर्फ और सिर्फ पंजाब के भाड़े के टट्टू ही करेंगे?भारत एक विशालतम देश है जिसमें पंजाब एक छोटा सा प्रांत है। 
    देखो मोदी जी ने तुम्हें गांधीजी के अस्त्र अहिंसा से कुचल कर रख दिया है। आज आंदोलन के लिए तुम्हें फिलहाल फिर से खड़ा होना होगा। मैं तो कहता हूँ कि जिस तरह से शाहीनबाग का आयोजन (आंदोलन नाम नहीं दिया जा सकता है) महज एक पिकनिक स्पॉट बनकर रह गया  ।ठीक उसी तरह यह आंदोलन भी सिर्फ और सिर्फ फोटो सुट बनकर सेवा निवृत्त हो गया। 

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मान गया दिल्ली दिल वालों की है..!

कहते हैं कि दिल्ली 
दिल वालों की बस्ती है।
वहाँ रहते देश के 
नामी गिरामी हस्ती है।।
दुनियाँ के लोग आकर 
करते वहाँ मस्ती है।
पर ये क्या वहाँ तो 
जान बहुत ही सस्ती है।।

आज लाल किला के प्राचीर से 
तिरंगे की शान मिटते देखा।
वहीं दिल्ली पुलिस के जवानों को 
झंडे का मान बढ़ाते देखा।।
लाल किला पर आज 
खालिस्तानी झंडा फहरते देखा।
झंडे फहराकर आतंकियों को 
शान से उतरते देखा।।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर 
सवाल यहाँ तो उठते देखा।
आन्दोलन के आदेश को 
तार-तार कर मिटते देखा।।
आदेश की धज्जियां उड़ा कर 
हर तरफ उन्हें बँटते देखा।
बेकाबू हो चले भीड़ से 
नेताओं को लीक से हटते देखा।।

अफरा-तफरी चहुँ ओर था,
हुडदंगी को लड़ते देखा। 
अन्नदाता बन दिल्ली की सड़कों पर 
आम लोगों से भिड़ते देखा।।
बेसहाय बंद आंखों से 
पुलिस को सब कुछ सहते देखा।
वहीं विपक्षियों को दूरदर्शन पर 
ताली बजाकर हँसते देखा।।

क्या कोर्ट को मालूम नहीं था 
पिछले दिनों की बात है,
दर्द दे गया था दिल्ली ने 
वही पुरानी याद है।
आन्दोलन का आदेश लेकर 
कैसा हुडदंग मचाया था?
आन्दोलन के नाम पर दंगे करके 
दिल्ली को बदरंग बनाया था।।

आज विश्व सकते में है कि 
क्या यही है पुरातन गणतंत्र..?
इससे अच्छा तो वही था भइया 
नाम था उसका ब्रिटिशतंत्र।।
कोई कहता है हम सुधरे हैं 
विश्व गुरु बनने की ओर हैं।
पर उसे मालूम भी क्या है कि 
हमसब सारे चोर हैं।।

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प्यार हुआ इकरार हुआ..!

दुआओं में जो करता हूँ 
याद तुझे बार बार ,
खुदा से तुम्हारे लिए 
मिन्नतें करता हूँ हजार,
कहता हूँ कि तुम सदा 
यूँ ही मुस्कुराती रहो, 
कि कर सकूँ मैं तुम्हें 
पल पल ये प्यार बेशुमार। 

ये प्यार बेशुमार 
चलता रहे यूँ ही हर बार, 
रातें विरान ही सही 
पर दिन में हो तेरा दीदार,
तुम्हारी सारी तकलीफों को 
मैं दूर कर सकूँ,
चेहरे पर खुशी देखना 
चाहता है यह खाकसार।

चाहे कितने भी नखरे 
दिखाओ तुम हजार, 
कभी न कभी आना ही होगा 
तुम्हें एक बार। 
तुम्हारी मोहब्बत की चाहत में 
कट जाए ये जनम मेरे,
अगले जनम तक मैं 
करता रहूँगा इन्तजार।

क्या करूँ,किससे कहूँ?
कटते नहीं दिन दो चार,
पता नहीं कब और कैसे 
हो गया मुझे तुमसे प्यार?
अब जमाने से क्या डरना 
करता हूँ मैं प्यार का इजहार,
तुम भी तो कुछ ऐसा करो कि 
यह जीवन बन जाए यादगार।


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सरस्वती वंदना..!

हे वागीश्वरी! मां शारदे!
एक ज्ञानपुंज उधार दे।
विद्या की देवी ये वर दे,
अज्ञानता को उतार दे।

सुख शांति,अमृतवाणी से, 
संमृद्ध बनूँ ये विचार दे; 
सेवा करूं मैं भाव से,
ऐसा मुझे संसार दे।

है तिमिर में ये जिन्दगी,
माँ आके हमको तार दे;
तू भावों की है तरंगिणी,
भटके को आके प्यार दे।

गोदी में आकर हम पले
भाव ऐसा हो माँ शारदे,
कला,ज्ञान और बढ़ता रहे,
ऐसा मुझे वरदान दे।

करता रहूँ सेवा तेरी,
संगीतमय तू प्रकाश दे;
लौ बनूँ तेरी ज्योति का,
ऐसा मुझे कुछ आश दे।

धरा से लेकर व्योम तक,
तेरा नाम लूँ ऐसी भक्ति दे,
कुछ नाम हो मेरे साहित्य का,
ऐसा मुझे कुछ शक्ति दे।

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आज 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर विश्व भर के सभी हिन्दी भाषा-भाषियों तथा साहित्यकारों को हार्दिक शुभकामनायें..। ऐसे सुअवसर पर प्रस्तुत है मेरी एक स्वरचित रचना :-

विश्व हिन्दी दिवस..!

हम और हमारी मातृभाषा हिन्दी,
न कोई तमिल, न कोई झारखंडी;
अटक से कटक तक, 
जम्मू से कन्याकुमारी तक; 
चाहे हम क्यों न हों सतरंगी, 
हमें प्यारी है अपनी हिन्दी।।
संसद में अंग्रेजी हिन्दी की छिड़ी लड़ाई,
आज तक यह राष्ट्रभाषा कहाँ बन पायी?
आओ सम्पूर्ण भारत को एक करें,
हिन्दी अपना कर हम नेक बनें ।
भाषाओं में सबसे प्यारी हिन्दी है,
यह भारत के माथे की बिंदी है।   
आओ सबको एक समन करें, 
हिन्दी दिवस पर नमन करें।
हिन्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तान,
ये तीनों शब्द हैं बड़े महान ।
हमको है इनपर अभिमान, 
विश्व करे इनका सम्मान। 

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मेरे हिसाब से मित्र वही है..!

जीवन के हर मोड़ पर, 
सहयोगी हो,मित्र वही है।
मित्रता का जो धर्म निभाए,
मेरे हिसाब से, मित्र वही है।
सुगन्धित हो जीवन भर,
मेरे हिसाब से, इत्र वही है।
जीवन में खुशियाँ जो भर दे,
मेरे हिसाब से, मित्र वही है।
जो सामने रहकर निन्दा करे,
मेरे हिसाब से मित्र वही है। 
पर जो पीठ पीछे निन्दा करे,
मेरे हिसाब से,मित्र नहीं है।


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बिहार-झारखंड की एक प्रचलित भाषा "अंगिका" में किसान आंदोलन पर आधारित रचना। 
अंगिका अंग प्रदेश ( कर्ण- महाभारत) का एक प्रमुख भाषा है।

किसानो केरो आन्दोलन..!

कि कहियों भारत के विपक्षी केरो हाल,
करी देलकै देश क् बर्बाद  अभरी साल। 
किसान आन्दोलन केरो नाम प् 
जनता क् बरगलाय छै,
पैसा मिलै छै बैठी क् सड़को प् खाय छै। 
कि फैयदा सडको प् ढ़नकला सं?
कि फैयदा सरकारो प् सनकला सं?
सरकार त् किसानों वास्तं अच्छे करलकै,
कृषि बिल लानी क् जनता क् त् सच्चे कहलकै।
समर्थन मूल्य देलकै जे छै अबतक सबसं ज्यादा, 
पहले सरकारो सिनी केरो त् छेलै एकरो सं आधा।
ऊ सिनी त् विपक्ष के बनलो छै हथियार,
जे सिनी अपनै मं करै छै मारा मार।
कोय खालिस्तान जिन्दाबाद करै छै,
कोय त् इन्दिरा की तरह मोदिए क् मारै छै।
भर पेट खाय छै दही चुड़ा बिरयानी,
पहुंची जाय छै सडको प् बिहानी बिहानी।
लै छै पैसा आरो कहै छै किसान आंदोलन,
पुलिसो केरो मार पड़ला सं करै छै जनजागरण।
उ सिनी कुछू नाय जनतां सब समझै छै,
ओकरा सिनी कुछू नाय सभै मोदीए क् मानै छै।
हम्म त् कहि छियों समेटो आपनो तम्बू,
नाय मानभो त् पड़तौं पुलिसो केरो बम्बू। 
मोदी छेकै नाय खैतों आरो न खाय ल् देतों,
खाय केरौ कोशिश करभो त् उगलबाय लेतों।

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-:दिल्ली किसान आंदोलन :- 
 एक सोची समझी साजिश.। 

(यह मेरा एक ऐसा आलेख है जिसे समस्त राष्ट्रवादियों को जानना व समझना चाहिए कि वर्तमान परिस्थिति में  देश किस स्थिति से गुजर रहा है।अतः इस ज्ञानवर्धक आलेख को समय निकाल कर अवश्य पढ़ें।आज चौधरी चरण सिंह जी जो जीवनपर्यन्त किसानों के लिए लड़ते रहे, की जयंती के दिन अर्थात 23 दिसंबर को किसान दिवस मनाया जाता है।परन्तु आज भारतीय किसानों की दुर्दशा के लिए यदि विभिन्न  सरकारें  कुछ हद तक जिम्मेदार हैं तो सभी राजनीतिक स्वार्थवीर लोग जिन्होंने उन्हें आंदोलन के नाम पर छलने का प्रयास किया है बराबर के भागीदार हैं। वर्तमान किसान आंदोलन भी इससे अछूता नहीं है।यह आलेख भारतीय किसानों को समर्पित है।  )

आजकल भारत में आन्दोलन का एक विचित्र स्वरूप का प्रादुर्भाव हुआ है जो अंततः जानमाल के नुकसान पर ही समाप्त होता है। पिछले शाहीनबाग धरने की बात करें जो कहीं न कहीं दिल्ली दंगे की पृष्ठभूमि के लिए जाना जा सकता है।  वह तो यदि कोरोना संक्रमण का डर नहीं होता तो यह लंबा अनवरत चलता रहता । दरअसल आजकल लोग आन्दोलन जल्दी खत्म करने के पक्ष में ही नहीं रहते हैं। अब आन्दोलन का मुख्य स्वरूप धरना प्रदर्शन के रूप में पिकनिक स्पॉट बनकर रह गया है जिसे आप इस्लामी स्टाइल धरना प्रदर्शन कह सकते हैं।
     वास्तव में धरना का यह ट्रेंड, इस्लामी मुल्कों तथा मिडिल ईस्ट के देशों से आयातित है जिसकी शुरुआत मिस्त्र में काहिरा के तहरीर चौंक से हुई जब मिस्त्र की जनता ने 2011 से 2013 तक  हुस्नी मुबारक का तख्ता पलट कर इस प्रकार का कोई आंदोलन का श्री गणेश किया जिसके बाद पुरे मिडिल ईस्ट और अफ्रीका के मुस्लिम देशों में   "जैस्मिन रिवाॅल्यूशन" अर्थात बेला चमेली नाम से क्रांति  शुरू हुई  और बड़े बड़े तानाशाहों की सत्ता उखड़ गई।
   तहरीर चौंक धरने का नकल पाकिस्तानी नेताओं ने बार-बार किया।वहाँ इसे कन्टेनर पालिटिक्स भी कहते हैं कि कई दिनों तक एक बड़े से कन्टेनर को स्टेज बना कर वहाँ रहना ,खाना और धरना के काम करने लगे ।  यहाँ तक पाकिस्तानी नेतागण महिनों इस्लामाबाद घेरकर बैठ जाते थे।
 इस क्रांति को बेला-चमेली क्रान्ति इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि फूल की सुगंध की तरह सत्ता परिवर्तन की भी सुन्दर सुगंध महसूस कर लोग आनन्दित होते हैं। सत्ता लोलुपता में सत्ता परिवर्तन की यह क्रान्ति ट्यूनीसिया के सत्ता पलट से शुरू हुई और अल्जीरिया, यमन, जोर्डन, आल्बानिया आदि में भी फ़ैल रही है। अब मिस्र में भी इसने खुशबू बिखेरकर दो राष्ट्रों में सत्ता पलट दी। 
     बेला-चमेली क्रान्ति का यह प्रकरण, आने वाले समय में मानवता के लिए उदारवाद एवं कट्टरवाद के बीच के जद्दोजहद का रोचक एवं निर्णायक प्रसंग बनने की पूरी संभावना रखता है।
    भारत में भी इसी तरह की परिपाटी चल पड़ी है। इसे ही कहते हैं कि प्रचंड बहुमत से चुनी हुई मोदी सरकार को दादागिरी से दमन करना। जब से हिन्दुस्तान में हिन्दुवादियों की सरकार सत्ता में आयी है यही नया ट्रेंड देखने को मिला है कि--धरना लम्बा खींचो,सड़क जाम करो,लोगों को परेशान करो ताकि सरकार लाठी तथा गोलियां चलाने को मजबूर हो जाए और इसका असर सम्पूर्ण भारत को प्रभावित करे।
      विरोध प्रदर्शन तो अन्ना हजारे ने भी किया था लेकिन यह सड़क जाम अर्थात लोगों को तंग कर नहीं बल्कि रामलीला मैंदान में किया गया था।यह एक अनशन था । 
अनशन टुटा - आंदोलन खत्म।
 परन्तु तहरीर चौक टाइप का आंदोलन करने का मकसद ही देश में अराजकता पैदा करने के लिए किया जाता है। 
  इस वक्त दिल्ली में भी किसानों के प्रदर्शन पर, ऐसे ही विपक्षी दलों ने कंट्रोल कर लिया है, जो मोदी को मिले बहुमत का, दादागीरी से दमन करना चाहते हैं। 
  चाहे धारा 370 हटानी हो, या राफेल खरीदने हो, राम मंदिर का शिलान्यास हो, या CAA कानून हो, सरकार के हर छोटे-बड़े निर्णय पर, सुप्रीमकोर्ट की तरफ भागने वाले 'PIL ( Public Interest Litigation-  जनहित याचिका ) गैंग' के पंटरों ने, कृषि सुधार कानून के विरुद्ध कोई PIL नहीं लगाई।
    क्यों?
क्योंकि पता है जब कोर्ट में सुनवाई होगी तो नए कृषि कानूनों का सच सामने आ जाएगा और फर्जी विरोध की धज्जियाँ उड़ जाएंगी।
इसलिए बिना कोर्ट गए, ये गैंग सिर्फ आधी अधूरी बात करके, किसानों को भड़का रहें हैं।
   इस गैंग को उम्मीद है कि शायद अब मोदी सरकार गिर जाए, और उनका 6 साल से चल रहा षडयंत्र सफल हो जाए।
  काँग्रेस के नेतृत्व में बामिये, आपिये ,टुकड़े टुकड़े गेंग,  खालिस्तानिये , शाहिन बागिये,चांदबागिए ,पाकिस्तानिए ,चीनी, कनाडाई  एवं अखलेशिए - बसपायियों द्वारा छल -प्रपंच से किसानों को भ्रमित किया जा रहा है।
   इनकी माँग है कि किसान बिल वापस लेने के बाद ही बात करेंगे ।
   आन्दोलन की एक झाँकी :-
भिन्डरावाले की तस्वीर ,
हँसुआ हथौड़ा वाला झण्डा, 
इन्दिरा को ठोक दिया,  
मोदी को भी ठोक देंगे ।
धारा 370 और 35A फिर  से लागू करो अर्थात जेएनयू,  गुपकारिये तथा शाहीनबाग की दादी भी शामिल  ।
        भय है कि आढ़तिया ,बिचौलिया
(दलाल),सुखबीर व पवार ,सुप्रिया सुले एग्रो लिमिटेड बर्बाद हो जायेंगे ।
ये कैसे किसान हैं भाई ?
    चार महीने का रसद पानी लेकर दिल्ली के चारो बगल सड़क जाम कर पिकनिक मना रहे हैं। समाज में अव्यवस्था उत्पन्न करना ही इनका उद्देश्य है ।
शर्मनाक-- !
अरे भाई भागो दिल्ली में कड़ाके की ठंड है साथ ही कोरोना संक्रमण काल का तीसरा मोर्चा शुरू होने वाला है,जब संक्रमण बढ़ जाएगा तब  केजरीवाल जी खुद को कोरंटाइन कर लेंगे और तब बचाने वाला कोई नहीं होगा। लेकिन मेरे विचार से इतना अवश्य है कि तब भी मोदी जी आपके साथ होंगे क्योंकि वे देश से प्यार करते हैं।  
किसान आंदोलन तो बहाना है। 
वास्तव में मोदी ही निशाना है।।
(लेखक एक शिक्षाविद् हैं ।)

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कोरोना वैक्सीन..!
 

वैक्सीन-वैक्सीन ढ़ुंढ़त रहें,
वैक्सीन दियो न कोय;
जों घर ढ़ूंढ़ा आपनो,
छत पर रहे हैं सोय।
तुलसी रस में मिलाय के,
करिक मिर्च तनि कुट;
अदरख कुट मिलाय दियो,
तब यही त् वैक्सीन होय।
शहद लहसुन मिलाय के,
जे सुबह शाम नित पाय;
सदा यौवन बनल रहे,
कहीं भी दौड़ल जाए।
हल्दी दूध मिलाय के,
नित रात रात जे पाय;
उनकर शरीर कबहुँ नहीं,
डाक्टर के घर जाय।
करत-करत व्यायाम सब,
शरीर मजबूत कर पाय;
जो न योग करे भोरन को,
जल्दी सूर धाम जाय।
अंतिम बात सुनो सब प्राणी,
कवि "सुबोध" बड़ा है ज्ञानी;
बात पते की कहता है,
अमल करो मत बन अज्ञानी।



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दे दो हमको कोरोना से मुक्ति..!

आविर्भाव हो इस सुन्दर जग में,
एक निर्भीक निरोग सुप्रभात, 
परन्तु क्या करूँ कोरोना ने ,
बिछा दी है एक डरावनी बिसात।
आज सूज गए लोग घरों में बैठकर, 
गाल हो गए लाल अनार की तरह;
कहाँ जाऊँ,कैसे जाऊँ मास्क लगाकर,
लगते हैं लोग अपने पूर्वज बानर की तरह।
धंधा चौपट काम खतम है,
जो भी कमाया सब कुछ हजम है। 
कायम रहेगा अभी कुछ दिन और अंधेरा,
तरस गईं हैं आँखें ढ़ुंढ़त-ढ़ुंढ़त सबेरा ।
विज्ञान कहाँ है खोज रहा हूँ मैं अभी, 
कोई तो बताये कहाँ है उनका बसेरा।
अब राम बचावे आपन संस्कृति,
वही सुधारे कोरोना से दूषित प्रकृति,
ना आया वैक्सीन,ना बची संस्कृति,
चौपट हुआ व्यापार,
आयी सामाजिक विकृति।
मन क्रम वचन से करूँ मैं भक्ति,
दे दो हमको कोरोना से मुक्ति।

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भारतीय किसान..!
( परिपेक्ष्य :- वर्तमान किसान आंदोलन )

क्या करूँ, कैसे कहूँ 
इन किसानों की दर्दनाक कथा?
दिल में अथाह दर्द छिपाए 
सुनिए इनकी एक व्यथा।
हरित क्रांति की आढ़ में
बन गई कांग्रेसी सरकार;
आस जगी किसानों की
सबकुछ मिलेगा जो उन्हें है दरकार।
तब फिर आया एक सुनहरा 
सुप्रसिद्ध "स्वामीनाथन आयोग";
पर नेहरूजी ने हवा पिला दी 
कृषि में होने लगा वियोग।
बिखरने लगी देश की खेती
कृषि प्रधान देश बना एक संयोग;
खेत खलिहान उजड़ गए
फल फूलने लगा उद्योग।
क्या किस्मत लिखा था
कहाँ थे भाग्य विधाता? 
हर विकट परिस्थिति का
सामना कर रहे थे अन्नदाता।
आस जगी जब शास्त्री ने 
नारा दिया जय जवान जय किसान; 
सदियों बीत गए पर
जहाँ के तहाँ रह गए खेत खलिहान। 
मिटती रही आस करते रहे 
होता रहा किसानों की आत्महत्या;
दलाली में फलित हुए कुछ लोग 
फूलते रहे देश के कुछ नेता।
एक दिन भाग्य खूले इनके 
जब आया एक चौकीदार;
कोशिश हुई इसे बढ़ाने को 
जो अबतक थे बीमार।
जाने लगा प्रत्यक्ष रूप से
 इनके खाते में सब्सिडी;
मुखरित हुए इनके स्वर
जो आजतक थे रहे फिसड्डी।
किसानों की भलाई के लिए 
लाया एक कृषि बिल;
लागू किया स्वामीनाथन आयोग 
जो था कृषकों का दिल।
घोषणा हुई समर्थन मूल्य का 
जो अबतक का है अधिकत्तम;
भला करेंगे कृषकों जो
हो उनके लिए सर्वोत्तम। 
पर नजर लगी स्वार्थवीरों का 
उनका भला कहाँ पचा पाया?
खड़ा किया एक आंदोलन 
देश में एक भूचाल लाया।
माना कि यह आंदोलन है 
पर खालिस्तान समर्थक क्यों आया?
"इन्दिरा की तरह मोदी को भी मारेंगे" 
यह बात वहाँ किसने गाया?
मत तोड़ो सत्ता की खातिर 
इस अन्नपूर्णा भगवान को;
छोड़ दो इन्हें अपनी किस्मत पर 
बक्श दो भोले भाले किसान को।

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मुक्तक..!
साहित्यिक पृष्ठभूमि की महामंदी..!!

आजकल दूनियाँ में कैसे-कैसे लोग होते हैं,
जो मन में आया कागज पर लिख देते हैं। 
ना कहीं भाव और ना कहीं लिंग का ज्ञान होता,
पर देखो लोग इसे कविता का रूप दे देते हैं।

इसे कविता नहीं तुकबंदी कहते हैं,
जो सृजनशीलता का नसबंदी करते हैं।
यदि इसी तरह चलती रहे यह रचनात्मक दूनियाँ,
तो इसे साहित्यिक क्षेत्र में आया महामंदी कहते हैं। 

"मुक्तक" के छंद चार पंक्तियों में होते हैं, जिसमें तीसरी पंक्ति अलग लेकिन बाँकी पहली, दूसरी तथा चौथी पंक्तियों का तुकबंदी (Rhyming) एक समान होते हैं, जिसे मुक्तक कहा जाता है।


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विलुप्त होती गंगधारा..!

अंधेरी रात में
गंगा किनारे,
सुनसान, 
एकटक निहारता,
वही पुरानी यादें ।
क्या ये वही गंगधारा है?
जो सदियों से निश्छल,
निश्कलंकित बहती, 
समरसता का रूप दिखाती,
समुद्र में गिरने के पूर्व 
एकता का भाव जगाती है ।
नहीं कभी भी नहीं, 
पहचानता हूँ मैं, 
उन धाराओं को ।
याद है मुझे, 
बचपन की  वे मधुर यादें, 
दौड़कर छलांगें लगाना, 
माँ की गालियाँ सुनना ।
याद है मुझे
डर डर कर घर जाना, 
भींगे कमरबंध पर 
माँ द्वारा चपत लगाना ।
आज निःसंदेह दुख है,
बस स्मृति शेष है, 
रोता हूँ, 
गंगा की बेबसी पर ।
ना गंगा है, 
ना निश्छल धारा, 
यहाँ सिर्फ कसूर है हमारा, 
रूठ गयी गंगधारा,
टुट गई विश्वास हमारा। 
साहेबगंज की पहाड़ियों की तरह,
कोई यहाँ कहाँ करता है जिरह ?
छोड़ो इन बातों को 
किसकी क्या मजबूरी है? 
पर इनकी सफाई अधूरी है;
इनका सम्मान जरूरी है;
इनकी स्वच्छता अभियान जरूरी है;
सरकारी ईमानदार संरक्षण जरूरी है।
आएँ हम सब मिलकर 
एक प्रण करें, 
प्रण करें-
स्वच्छता की,
प्रण करें-
सामाजिक समरसता की,
साम्प्रदायिक सौहार्द की, 
प्रेरित करें-
सरकारी ईमानदार संरक्षण की,
सरकारी सहायता की,
मुहाने की सफाई की ,
भला हो गंगा परियोजनाओं की।
जय हो 
गंगा माँ की ।


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बिहार में का बा..?
उ त ठीक बा,
बाँकी अबकी नीतिशजी के बुरा हाल बा;
उनका के चढ़ल बुखार बा;
उनकर पार्टी बीमार बा;
सभे ओर मोदीए के बयार बा;
नीतीश से सभेके रेड़ रहले;
पर मोदी के 12 रैली से भइल सुधार बा;
उहे खातिर खींच तान के बनल सरकार बा;
खाली कहे के नीतिशे कुमार बा;
मने के मोदीए सरदार बा;
इहे खातिर डबल इंजन के सरकार बा;
गड़हा में गइला से बचल बिहार बा।
अब जौन बा कि तौन ;
बिहार में फिर से आ गईल बहार बा ;
काहे की फिर से बनल नीतिश सरकार बा।
पर होने सुशील भैया के का बा ?
हमरे विचार से;
कहे के त् सभे केहू आपन ,
पर पार्टी में उनकर
आपन कहाए वाला के बा?
सुखवा(उप मुख्यमंत्री) त् सभे केहू बाँटल;
दुखवा बँटावे वाला के बा ?
इहे एक दु गो कवि "सुबोध" के बात बा ;
आरू का बा ।
बाँकी जौन बा कि तौन 
बिहार में बहार रहले बा औरु रहबे करी।
इहे हमरा बुझाता । 
बिहार में चल रहल बात बा;
आरू का बा ?

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फरेबी दुनियाँ से दूरी..!!

हर रचना की तरह मेरी यह रचना भी शायद अच्छी है,
पर जो इसमें कही गई वह हम साहित्यकारों के लिए सच्ची है..!!

स्वयं जलकर हमें दूसरों के घरों को रौशन करना है;
हम कैसे रहें सदा यह एक दीपक से सीखना है।

फरेबी दुनियाँ को देखा है हमने कुछ दिन सुख से गुजरते हुए;
सच जब उजागर होता है तो हमने देखा है उस झूठे को रोते हुए।

हमने जाना है कि ईमानदारी एक अच्छी नीति है;
तो फिर हमें क्यों उस झूठी,फरेबी व मक्कारी से प्रीति है।

हम साहित्यकारों को फरेबी दुनियाँ में क्यों जाना है?
हमें तो अपनी कलम की धार को सत्य की ओर ले जाना है।

हम साहित्यकारों में हर परिस्थिति में प्रीत होनी चाहिए;
क्या रखा है उस दुनियाँ में अंततः सत्य की ही जीत होनी चाहिए। 

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नारी का सम्मान करो..!

आंसू से भीगे नयनों से,
नारी का सम्मान करता हूँ;
अपने लेखन के शब्दों से,
कुछ उनका बखान करता हूँ;
शब्द जुड़ते चले जाते हैं,
पर सम्मान कहाँ कर पाता हूँ?
दूख होता है उनकी दशा पर,
उनका दहन जब देखता हूँ;
लड़ जाता हूँ उन लोगों से;
अपमान कहाँ सह पाता हूँ?
मैं जुड़ता हूँ इस मुहिम से,
तुम्हारा आह्वान करता हूँ;
जीवन दो नारी शक्ति को,
बस इतनी सी बात करता हूँ।
सम्मान की बातें करता हूँ;
पर सम्मान कहाँ कर पाता हूँ?

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तेरे रूप अनेक..!

नारी तेरे हैं रूप अनेक,
कर्तव्यपरायणता एक से एक।
सदाचारी है रूप प्रत्येक,
तुम हो हम सब के लिए नेक।

किस किस को यहाँ प्यार करूँ?  
किसे किस रूप में स्वीकार करूँ?
कितने रूप हैं तेरे यहाँ,
बताओ कैसा इजहार करूँ?

बहन रूप मुझे हकीकत बताती है,
माँ रूप सब दुखों को दूर भगाती है,
प्रेमिका रूप मेरी आत्मा में समाती है,
बेटी रूप परम वैभव घर लाती है।

मुसीबत में तुम दुर्गा बन जाती है,
अपने बच्चों के लिए मुर्गा बन जाती है,
प्रेमी के लिए आत्मा बन जाती है,
माँ के रूप में परमात्मा बन जाती है।

तेरे रूप कभी समझ में न आया;
पर हर रूप में तुम हो हमें भाया;
कवि 'सुबोध' के हर शब्दों में समाया;
पर माँ रूप ही मुझे पसंद आया।

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कैसी रही मेरी यह दिवाली..??

कल मेरी वाली दिवाली खुब मनी,
ऐसी मनी कि घर में ही दोनों में ठनी।
मैं शाम से बाहर ही सोया था,
उसे क्या मालूम मैं अंदर ही रोया था।
सोचा क्यों किसी की दिवाली खराब करूँ,
कुछ कष्ट है चले जाएँगे स्वयं सहता रहूँ।
थोड़ा पड़ गया था मैं बीमार,
आ गया था एक सीजनल बुखार।
खीसियानी बिल्ली आ गई मेरे आगे,
बोलीं दिवाली के दिन भी आप नहीं जागे।
सरीर टूट रहा हिल रहा है मकान,
अकेले नहीं पक रहे हैं पकवान।
जैसे ही गुस्से में चादर हटाई,
गया गुस्सा जब मेरा शरीर गर्म पाई।
बहुत अफ़सोस करने लगी वह बेचारी,
क्या करतीं उनकी भी थीं एक लाचारी।
मुझे उसी समय एक अफ़सोस हुआ,
दुख हुआ जब मैंने उसे था छूआ।
तप रहा था तन बुखार था बड़ा भारी,
जल रही थी वह फिर भी  थी उपकारी।
कितना त्याग,कितनी होतीं हैं संस्कारी,
स्वयं जलकर भी ये माँएं होतीं हैं परोपकारी।
ऐसे कटी मेरी कल की ये दिवाली,
अब ठीक है आ गई है घर में हरियाली।

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राजनीति..!! 

आदतन तुमने किए थे वादे,
आदतन हमने मतदान किया;
आदतन तुम तो मुकर गए,
पर मैंने कहाँ व्यवधान किया?
जीत गए फिर कभी न आए,
पर हमने कहाँ प्रतिकार किया?
लोकतंत्र का धर्म निभाया,
पर हमने कहाँ इनकार किया?
जनता हूँ ठगी जाती हूँ,
पर अपना धर्म निभाती हूँ। 
ऐसे ही जीवन जीती हूँ,
पर इनकार कहाँ कर पाती हूँ?
वोट बैंक की राजनीति में,
ऐसा ही होते रहता है;
मूर्ख बनाए जाते हैं हम,
जनमानस सोते रहता है।
सारी गलतियाँ करते जाओ,
पर एक गुजारिश करता हूँ;
जात धर्म को नहीं लड़ाओ,
बस इतनी सी सिफारिश करता हूँ।  
सुना है कि भारत विश्वभर में,
सबसे बड़ा लोकतंत्र है।
पर कहाँ निभाये जाते हैं 
जो इसका मूलमंत्र है?
दरअसल अशिक्षा का बोलबाला है,
अनपढ़ मंत्री बनाए जाते हैं;
क्या कहूँ,किससे करूँ शिकायत,
आईएस/आईपीएस संतरी बनाए जाते हैं।
सरकारें आतीं जातीं रहेंगी,
हमें कोई गिला नहीं;
हम एक रहेंगे,नेक बनेंगे,
हमें कोई सिला नहीं।। 

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विशाल व्यक्तित्व :- लौह पुरुष..!

भारत की पूण्यभूमि पर
एक ऐसा भी शख्स जागा था,
काँप उठी दुश्मनों की आत्मा
और टांग उठाकर भागा था।
एकीकृत भारत के पक्ष में
जिसने भी प्रतिकार किया,
निकल पड़े फिर उसे निपटाने
भारत पर उपकार किया।
टुकड़े भारत को एकीकृत कर
अपना फर्ज निभाया था,
अनेकता में एकता स्थापित कर,
माँ भारती का कर्ज चुकाया था।
काश!यदि कश्मीर की शक्ति 
उनके ही हाथ निहित होती,
निकल न जाता वह हिस्सा तब
शक्ति पाक अधिकृत सहित होती।
विशाल व्यक्तित्व,कोमल हृदय से
जन-जन से प्यार किया,
आँखें उठाए जो भारत पर
फिर उसका संहार किया। 
जीत हुई थी किसी चुनाव में
फिर भी पद को ठुकराया था,
मान रखा गाँधी की बात का,
जो सबके मन को भाया था।
आज नमन है पुण्य आत्मा को
जिन्हें किसी ने भुला दिया,
पर कोई अवश्य था आया 
राष्ट्रवादियों ने अपना लिया। 
छोटे-छोटे लौह के टुकड़ों से
मूर्त स्वरूप को बना दिया,
स्टेच्यू ऑफ युनिटी नाम से 
सहृदय नमन वंदन किया। 

लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

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आज मैंने एक अपने प्यारे छोटे भाई घनश्याम यादव को अपनी माँ का प्यार दुनियाँ से छिपा कर लेते देखा इसमें वैसे लोग जिसकी माँ नहीं है को स्वाभाविक ही ईर्ष्या होगी। मेरी भी माँ नहीं है न लेकिन मुझे ईर्ष्या नहीं  बल्कि छोटे भाई की बचपना पर प्यार आ गया और अनायास ही शब्दों की धार प्रवाहित होने लगी तथा शब्दधारा के प्रवाह से काव्य सरिता बहने लगी जो निम्न है...
माँ की ममता..! 
चाहे कितना भी परिश्रम कर लो,
चाहे छत के मुंडेर पर चढ़ा लो,
चाहे टंकी में ही क्यों न छिपा लो,
ममतामयी माँ की ममता बँट ही जाएगी,
कितना भी कहीं भी छिपा लो,
कुछ न कुछ बच ही जाएगी। 
वही जो बच गया भाई ,
मुझे भी खिला देना,
भूखा हूँ माँ की ममता का वर्षों से,
मुझे भी थोड़ा प्रसाद दिला देना।
आत्मा तृप्त हो जाएगी मेरी भी,
मेरा प्यार भी उसमें मिला देना। 
प्यार बाँटने से बढ़ता है,
इसलिए बाँटने में ईर्ष्या मत करना,
मेरी माँ नहीं है न 
खोजता हूँ उसे वर्षों से,
अब जाकर मिला मुंडेर पर,
मेरे आंसू भरे प्यार भी उसमें मिला देना।
तुमसे यदि बच जाय तो,
थोड़ा मुझे भी आकर खिला देना। 
आज मैंने उस माँ में 
अपनी माँ की झलक देखी,
मैं भी था प्यार का भूखा, 
इसलिए मैंने ऐसा  लिखा। 
कोई है जिसे माँ के प्यार को छिपाते देखा।
पर मेरी पारखी नजर से छिपा न सका।
वह माँ ही थीं जिसने ऐसा होने न दिया ,
अपनी ममता से किसी को रोने न दिया। 
माँ तो माँ होती है,
हर शख्स की जाँ होती है।
भला एक को कहाँ मिला? 
दृश्य से शब्दों का बांध टूट गया ,
अंततः एक रचना के रूप में प्रस्तुत हुआ। 

ममतामयी माँ को समर्पित। 

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अभ्युदय अंतर्राष्ट्रीय समुह द्वारा काव्य गोष्ठी का आयोजन..!
अभ्युदय अंतरराष्ट्रीय समूह की ओर से आज जूम एप पर एक आभाषी काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें देश विदेश के विभिन्न रचनाकारों तथा गजलकारों ने गजब का माहौल तैयार किया।  तेलंगाना की विद्या कृष्णा ने अपने मधुर व ओजस्वी वाणी से मंच का सुंदर संचालन करते हुए हरियाणा के मंजू तंवर को सरस्वती वंदना "हे वीणा वादिनी" गाने के लिए आमंत्रित किया। तत्पश्चात काव्य रचना के प्रथम प्रस्तुति हेतु साहेबगंज, झारखंड प्रांत से प्रतिनिधित्व करते हुए प्रोफेसर सुबोध कुमार झा को आमंत्रित किया जिन्होंने प्रारंभ में ही "सावन की आई बहार चलो सखी झूलन जाएं"  एक कजरी गाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया ।इनकी राष्ट्रवाद पर आधारित रचना ने सबका मन मोह लिया। मुंबई के रुक्मण लड्ढा ने "यह बर्तन भी ले लो झाड़ू भी ले लो "गाकर सबों के मन को हास्य विनोद से भर दिया। आगरा की नीलम जैन, बिहार की ऋतु प्रज्ञा,  गुरुग्राम से अमिता जी, मंजू शर्मा , बंगलुरु से ज्योति तिवारी तथा बृजेश मिश्रा ,उज्जैन से माया जी, ललित प्रह्लादका, वैशाली बिहार से प्रीतम कुमार झा, जबलपुर से अविनाश भटकर, जयपुर से अलका बहोत तथा इलाहाबाद से स्मृति श्रीवास्तव ने अपनी रचना द्वारा सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। झारखंड बरहरवा के उषा भारती ने नारी सशक्तिकरण से संबंधित अपनी रचना "कलम मिली है कर्म करो, अंधकार में जीवन का अंत करो" प्रस्तुत कर सब के रोंगटे खड़े कर दिए ।साहिबगंज के ही घनश्याम यादव ने पिता पर आधारित  रचना प्रस्तुत कर सबकी वाहवाही लूटी। डाॅ इंदु झुनझुनवाला तथा विद्या जी की गजलों ने अंततः सबका मन प्रफुल्लित कर दिया। कार्यक्रम का समापन डॉ इंदु जी के मधुर वचनों से धन्यवाद ज्ञापन कर हुआ। सभी उपस्थित साहित्यकारों व पत्रकारों ने इस कोरोना संक्रमण काल में साहित्य जगत की बेहतरी के लिए इस प्रकार के आयोजन की सराहना की।

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एक नयी क्रांति..! 
कब साहित्यकारों की लेखनी में 
आएगी जागृति..?
कब कोई होगी, 
फिर एक क्रांति..?
कब साहित्यकारों के 
शब्द निकलेंगे..?
कब माँ भारती के 
जख्म भरेंगे..?
साहित्यकार नहीं हम सिर्फ, 
शब्दों के बुनकर हैं। 
कहाँ जन्म लेते,
अब कोई "दिनकर" हैं..?
सब यहाँ क्यूँ मौन हैं..?
सभी यहाँ क्यूँ गौण हैं..?
क्या इसे समझें, 
परिवर्तन के पूर्व की शांति..?
क्या आने वाली है 
एक नयी क्रांति..? 
क्या फिर होगा 
एक हुंकार..? 
बदलेगी व्यवस्था,
बदलेगी सरकार..?
कैसा लगा मेरा, 
सुबोधित विचार..?
कमेन्ट कर बताएँ, 
मेरे सरकार..!! 

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आज का रावण..!
 
त्रेता की त्रासदी, 
आज कलियुग में आ फंसी।
राम रावण की छिड़ी लड़ाई,
रावण की हुई जग हसाई।
परन्तु रावण एक विकट प्राणी था,
पापियों में उसका नहीं सानी था।
कुछ दिन वह एतवार किया, 
कलयुग आने का इन्तजार किया। 
चुप होकर फिर से उभरा है,
अब तो वह घर घर पसरा है। 
वह भी रावण,तुम भी रावण, 
गौर किया तो मैं भी रावण।
आज रावण खुद शर्मिंदा है,
पहले से भी बड़ा रावण जिन्दा है।
आज हर काम के पीछे रावण है,
हर रावण के पीछे हम भी हैं।
हर वर्ष हम करते उनका दहन है,
पर वह चला गया यह वहम है।
हर राम यहाँ पर मौन है,
उससे टकराने वाला कौन है?
आज का रावण पहले से महान है,
क्योंकि वह इन्सान नहीं शैतान है।
तुम कितने रावण मारोगे,
हर घर से रावण निकलेगा। 
अपने तेज तेवर से,
वह सारी दुनिया को निगलेगा।
हर इन्सान यहाँ अब रोता है,
पर अति का अंत होता है ।
कोई तो ऐसा आएगा ,
जो रामराज्य फिर लाएगा ।
राम की महिमा राम ही जाने,
हम तो ठहरे उनके दिवाने।

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कैसा हो परिधान..?

स्व रूचि भोजन, 
पर रूपी परिधान;
मियां बीबी राजी,
तो क्या करे प्रधान?
सबकी अपनी पहचान,
सबका अपना अरमान;
जिसका हो मान सम्मान,
वही हो समाज में महान।
कुछ भी कर लो भोजन,
पर पहिरो वही परिधान;
जो समाज में हो चलन ,
सुरक्षित रखे स्वाभिमान।

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      पाकिस्तान में प्रजातंत्र..! 

पाकिस्तान में प्रजातंत्र तो दिखावा है,
सब कुछ झूठ, नियंत्रक तो बाजवा है।
वहाँ तो बैठा एक झुठा इमरान है, 
हर एक झूठ के पीछे सेना मेहरबान है।
पाकिस्तान में बढ़ गई है मँहगाई,
वहाँ तो सरकार चलाती है उनकी लुगाई।
देश में व्याप्त हो गई है भुखमरी,  
फिर भी इमरान करते हैं चीन की मुखबरी।
आतंक के साये में पल रहा है हुक्मरान,
जिसके सरदार हैं प्रधानमंत्री इमरान।
हुक्मरान भूल गये हैं अपना फर्ज,
तबाह हैअर्थव्यवस्था,बढ़ गया है कर्ज।
पनप रहे हैं आतंकी,परेशान है आवाम,
चीनी मदद पर नेता फरमा रहे आराम।
हम तो चाहते हैं एक अच्छा व समृद्ध पड़ोसी,
खुशहाल होंगे दोनों जब हों एक-दुसरे के हितैषी।
शुरु करो क्रांति,दूर करो आतंकवाद,
होगा अमन चैन,जब शुरू हो मानवतावाद।

*******************
     बात मानो भाई..! 

कौन सा अदब, कैसा अदब?
अदब का बादशाह हूँ मैं। 
सीखा दूँ मैं दूनियाँ को अदब,
अदब का शहंशाह हूँ मैं।
अदब शदब को गोली मारो,
सबसे मित्रवत रहता हूँ मैं,
सहज-सरल सा बोली बोलो,
यही तो कुछ करता हूँ मैं।
मैंने भी दुनियाँ देखी है, 
उसी से सीखते जाता हूँ मैं,
क्या शिकायत करूँ अपनों से,
रूठे को मनाया करता हूँ मैं।
सबकी बातें सुनता रहता हूँ, 
पर अपने मन की करता हूँ मैं,
मैं तो कहता वही करो तुम,
जो भी करते रहता हूँ मैं।
कहत सुबोध रचना रचि प्यारे,
पते की बात बताता हूँ मैं,
जो कुछ पाये तुम समाज से,
थोड़ी वापस करने कहता हूँ मैं।


********************

क्या यही है लोकतंत्र?

आतंक के साये में ,
कैसे चले यह लोकतंत्र ?
कैसा धर्मसंकट है भाई,
कैसा है यह गणतंत्र?
कोई धार्मिक उन्माद फैलाता, 
कोई किसी की हँसी उड़ाता,
धर्म के नाम पर हत्या करता,
क्या यही है अपना जनतंत्र?
हत्या की राजनीति होती, 
विकास पंथ की बात न होती,
साज़िशों की साजिशें है करती,
क्या सही है सबका मनतंत्र?
परस्पर समभाव भी देखा,
नफरत के यहाँ भाव भी देखा,
जातियों में भेदभाव भी देखा,
क्या नहीं यहाँ है लोकतंत्र?
वोट बैंक की राजनीति में,
इन्सानों को बँटते देखा,
आतंक के साये में हमने,  
इन्सानियत को मरते देखा ।
हाथरस की घटना पर, 
यहाँ सबों को लड़ते देखा,
पर बलरामपुर की बात करो तो,
कहाँ किसी को भिड़ते देखा?
अपना स्वार्थ, अपनी जाति, 
यहाँ लोगों को करते देखा।
समाजवाद का झंडा लेकर,
नेताओं को अमीर बनते देखा।
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर,
बहुसंख्यकों को लूटते देखा,
मजहब की दीवार बनाकर,
इन्सानों को मिटते देखा।
हमने टोका,हमने रोका, 
पर नहीं यहाँ है झूकते देखा,  
"राष्ट्रवाद" की बात करो तो, 
लोगों को  है हँसते देखा।
साथ चले थे, साथ रहेंगे,
समरसता की बात करेंगे,
वंशतंत्र हम दूर करेंगे,
राजतंत्र को हम न सहेंगे,
स्वावलंबी भारत बनाकर,
स्वच्छ,निष्पक्ष गणतंत्र लाएँगे। 

********************
      
स्वाभिमान..!
क्यों किसी की बात सुनें, 
क्यों किसी की घात सहें, 
जो होगा अपनी फितरत से,
क्यों किसी को बर्दाश्त करें।
किस्मत में जो भी लिखा है, 
होने तो दो, देखा जाएगा। 
मैं भी तो देखूँ, मेरी क्या खता है,
बता भी दो, सोचा जाएगा ।
तुम जो भी हो,जैसा भी हो,
मैंने तुम्हें कहाँ रोका है?
मेरे हाल पे मुझे छोड़ दो,
मैं कुछ करूँ यही मौका है।
दुख में कोई नहीं भाता है,
इतना तो सब जानते हैं। 
दुख के बाद सुख आता है,
इतना तो हम मानते हैं।
अपने किए पर क्या शर्माना,
मिले सजा तो मत घबराना,
सुख,दुःख तो सिर्फ दो घटनाएं हैं,
लगा रहता है आना जाना।
जो सोचता हूँ, कर के रहूँगा,
अपना भी तो इमान है।
जो कहता हूँ,कर के रहूँगा,
यही तो अपना स्वाभिमान है।
*********************

कृष्ण अर्जुन संवाद वर्तमान परिप्रेक्ष्य में..!

जीवन मूल्य..!
 
हे पार्थ..!
शस्त्र त्याग मत करो,
न मौन तुम यहाँ रहो ।
रास्ता  अनजाना सा,
बढ़े चलो दिवाना सा ।
सत्य मार्ग तुम चुनो,
असत्य से तुम लड़ो ।
चाहे काम जो भी हो,
सामने कोई भी हो,
तुम कभी डरो नहीं, 
वहां से तुम हटो नहीं,  
तुम मगर रुको नहीं, 
तुम मगर झुको नहीं,
सबों को देखते चलो,
विकास पथ गढ़े चलो,
असत्य मार्ग रोकने,
कि सत्य मार्ग खोजने,
कल का विजय तुम्हारा है,
सबका बनो सहारा है,
जन जन की आवाज बनो,
धर्म ध्वजा साथ हो,
परम वैभव प्राप्ति को,
बढ़े चलो,बढ़े चलो ।।

*********************

   कहाँ है समरस समाज ?
हे प्रभु ! तुमने ही इंसान बनाया,
किसी को राजा तो किसी को 
रंक का घर दिखाया।
इंसानों की बस्ती में 
प्रकृति का मंच सजाया,
जिसमें तुमने ही 
हमारा घर बसाया।
तुमने ही दी सबों को 
रवि की एक सी रोशनी,
चांद बिखेरता है सबों को 
एक सी चांदनी। 
मंद-मंद हवाएँ 
सबों के घर जातीं हैं,
प्रकृति कहाँ किसी में 
भेद कर पाती है?
अपनी जो गलती है 
क्या कभी किसी ने बताया?
उसने ही सभी को झा, मंडल, 
प्रसाद और "अंबेडकर" बनाया।
हे प्रभु ! बताओ न 
इसमें किसकी क्या गलती है?
सृष्टि में सबकी एक समान 
क्यों नहीं चलती है?
क्यों भटकते हैं 
यहाँ कोई इंसान?
क्यों नहीं पुरे 
होते हैं सबके अरमान?
मानव क्या, यहाँ तो विभेद है 
हमें अपने भगवान में,
जलते हैं लोग, भटक रहे हैं,
अपने मिथ्या अभिमान में।
क्यों अंतर है,
ईश्वर के सभी संतान में?
आओ मिलकर काम करें 
समरस समाज के निर्माण में।

***************

लंका विजय उपरांत बिना किसी क्षण गँवाए हमारे आराध्य श्री राम अवधपुरी आ रहे हैं। नगरवासी उनके पवित्र चरणस्पर्श हेतु व्यग्र हैं। सुबोध का कवि हृदय जाग उठा है और व्याकुलतावश अपनी उद्गार को लिपिबद्ध करते हैं। इसे एक गीत के रूप में गाया जा सकता है।
लखन सियाराम आए हैं--!
सजा दो मेरे आँगन को 
मेरे घर राम आए हैं -2
मेरे घर राम आए हैं, 
मेरे भगवान आए हैं। 
सजा दो---।
कहीं त्वरणद्वार लागाए हैं,
कहीं दीवार सजाए हैं। 
कहीं कोई मेरे भाई 
फूलों की हार चढ़ाए हैं। 
सजा दो--।
चमकती है ये दीवारें 
सजी हुई दीपमाला से।
बजे हैं ढ़ोल ,शहनाई 
मेरे श्री राम आए हैं। 
सजा दो---।
मैं तो लगा लूँ अपने सिर
रस्ते की चरणधूली।
जहाँ से गुजरे हैं मेरे 
लखन सियाराम आए हैं।
सजा दो मेरे आँगन को
मेरे घर राम आए हैं-2
मेरे घर राम आए हैं 
मेरे भगवान आए हैं। 
सजा दो मेरे आँगन को
मेरे घर राम आए हैं। 

*******************

      हिन्दी दिवस..!
हम और हमारी मातृभाषा हिन्दी,
न कोई तमिल, न कोई झारखंडी;
अटक से कटक तक, 
जम्मू से कन्याकुमारी तक, 
चाहे हम क्यों न हों सतरंगी, 
हमें प्यारी है अपनी हिन्दी।।

संसद में अंग्रेजी हिन्दी की छिड़ी लड़ाई,
आज तक यह राष्ट्रभाषा कहाँ बन पायी?
सम्पूर्ण भारत को एक बनाएँ,
हिन्दी अपना कर नेक बनाएँ।
भाषाओं में सबसे प्यारी हिन्दी है,
यह भारत के माथे की बिंदी है।   
आओ सबको एक समन करें, 
हिन्दी दिवस पर नमन करें।
हिन्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तान,
ये तीनों हैं शब्द महान ।
हमको है इनपर अभिमान, 
विश्व करें इनका सम्मान। 


***********************

सिने कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या से आहत उद्गार....

सिने जगत है ही ऐसी,
न सभ्यता, न संस्कृति।
जीवन की सारी विकृति, 
इस जगत को है स्वीकृति।
सुशांत तुम तो चले गए,
तुम्हें कौन सी थी विरक्ति। 
किसने दी तुम्हें अनुमति,
परिवार को दे दी विपत्ति।
"पवित्र रिश्ता" से शुरू की,
जीवन में पायी प्रसिद्धि।
पहली फिल्म "काय पो छे"की,
"धोनी" बन सबका दिल जीत ली।
वृद्ध पिता को ऐसे छोड़ दी,
बहन बिलखती यहाँ रह गई। 
माँ जी तो पहले विदा थी,
तुम्हारी कहानी भी"छिछोरे" बन गई।
किसी कमबख्त ने तुम्हें धोखा दिया,
शायद उसका नाम था रिया,
कहाँ से वह पल था आया?
जिसने तुम्हारा जीवन ही खत्म किया।
दिल के हाथों मजबूर,
जीवन बन गया था आवारा ,
रिया ने भयानक दर्द दिया ,
पर अमर हो गया "दिल बेचारा" ।
दिल में अथाह दर्द छिपाए
जीवन का अंत कर गया, 
एक कशक सी रह गई 
और सुशांत मर गया।
(फिल्म "छिछोरे" के बाद  "दिल बेचारा" सुशांत सिंह राजपूत की अंतिम फिल्म थी तथा रिया उसकी दगाबाज मित्र थी )

सहृदय श्रद्धांजलि ! 

******************  


शिक्षक दिवस..! 
आज है भाई 5 सितंबर,
प्रसन्नचित्त है धरती अंबर। 
हम भी खुश हैं यह जानकर, 
मनाते शिक्षक दिवस सब मिलकर।
आज गुरु का करें गुणगान,
करता है जो राष्ट्र निर्माण। 
सभी मिलें हम शिष्य- सुजान, 
मिलकर करें हम उनका सम्मान।
देता है हमें विद्या-दान,
करता जो मानव कल्याण,
फलित हुए हैं यह विज्ञान,
उनके कारण ही राष्ट्र महान।
पितु,मातु,सूजन,गुरू,भगवान,
सभी हमारे पूज्य महान, 
पर गुरु को दो सर्वोपरि स्थान,
जो लक्ष्य की कराता पहचान। 
गुरु समस्त गुणों की खान,
उन्हें नहीं कोई अभिमान, 
जो गुरु का सत्कार करे,
ईश्वर उनका बेड़ा पार करे।

********************               

भटकाव..! 

यहीं अपने शहर में ही गंगा की धार छोड़कर,
एक अकेला चलता रहा मन की तार जोड़कर।
ढूंढता रहा मिल जाए किसी का साथ, 
कोई संभाले मुझे पकड़कर मेरा हाथ।
काश ! किसी को दया आ जाती,
खाली था आकर बगल में मुस्कराती।
अनायास मन में आयी एक जागृति, 
क्यों मुझे मिले किसी की स्वीकृति। 
सबकी अपनी अपनी कहानी है,
उसमें अपने विचार थोपना तो बेईमानी है।
मैंने पढ़ा था कि चलना ही जीवन है,
परन्तु जबर्दस्ती चलना किसका मन है।
ऐ पथिक!अब तुम्हें रूकना ही होगा,
जो भी हो पूर्ण अपने साधनों से ही होगा।
इसे चलना नहीं भटकना कहते हैं,
आओ लौट चलें अपने घर में ही हँसते हैं।
मैंने सारी अपनी कल्पना दी फेक,
भूख से पेट पीठ हो गए थे एक।
अब तो सिर्फ धर्मपत्नी का इन्तजार था,
और मुझे किसी पर नहीं एतवार था।
मैंने कहा छोड़ अब चल बेटा शहर,
इन्तजार कर रही जा बेटा अपना घर।
तय करना वहीं जो तुम्हारा मन्नत है,

क्योंकि घर में ही सारा जन्नत है।

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               माँ..! 
माँ की ममता की भव्यता,
ब्रम्हाण्ड की एक दिव्यता।
माँ के हृदय की कोमलता,
यही तो है उनकी विशेषता।
पृथ्वी पर नहीं ऐसी ममता, 
इसी में है यथार्थ सत्यता।
देख माँ के हृदय की विह्वलता,
मेरी बढ़ जाती है व्याकुलता।
माँ तो बस माँ होती है, 
हर टुकड़े की जां होती है।
सृष्टि में सबसे सुन्दर शब्द माँ है,
इस शब्द में ही सारा जहाँ है।
माँ अपने आप में संस्था है,
माँ से ही सारी व्यवस्था है।
माँ पृथ्वी पर सबसे बड़ी हस्ती है,
उनके चरणों में ही हमारी बस्ती है।
माँ जहाँ है वहीं भगवान का वास है,
तिरस्कृत करे जो उसका विनाश है।


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बहुत अच्छा पर जरूरी है..! 

बहुत अच्छा बिस्तर है 
पर नींद आना जरूरी है।
बहुत अच्छी किताब है 
पर उसपर जींद लगना जरूरी है। 
बहुत स्वादिष्ट भोजन है 
पर भूख लगनी जरूरी है। 
बहुत अच्छी रचना है 
पर उसके भाव समझना जरूरी है। 
बहुत अच्छा नेता है 
पर उसे विख्यात होना जरूरी है। 
बहुत अच्छे विचार हैं 
पर उसे आत्मसात करना जरूरी है।
बहुत अच्छे मित्र हैं 
पर उनके विचार मिलने जरूरी हैं।
बहुत अच्छा समाचार है 
पर उसका प्रसार होना जरूरी है। 
बहुत अच्छा घर है 
पर उसे हवादार होना जरूरी है।
बहुत अच्छी संतानें हैं 
पर उनका समझदार होना जरूरी है।  
बहुत अच्छा समाज है 
पर उसे स्वच्छ रखना जरूरी है।
बहुत अच्छे ज्यूरी हैं 
पर उनका निष्पक्ष होना जरूरी है। 
बहुत अच्छी संस्था है 
पर सदस्यों में एकता जरूरी है।
बहुत अच्छा राष्ट्र है 
पर उसमें संप्रभुता जरूरी है।
बहुत अच्छी सरकार है 

पर उसमें पारदर्शिता जरूरी है।

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फुर्सत में हैं तो ,
जरा इधर भी देखिये,
कैसी है ये दुनियाँ 
जरा नजर फेकिये।
चूस लेते हैं 
हर एक कतरा कतरा, 
विरान है जिन्दगी 
सन्नाटा है पसरा।
तरस जाते हैं 
वो एक एक बुंद को,
इन्तजार उन्हें है 
आके कोई टपके जो।
इन्तजार की घड़ियाँ खत्म ही नहीं होतीं,
काश ! कोई एक बुंद नीचे भी टपकती।
याद आती है किसी बड़े शायर की वो कविता,
सुन मेरे मुन्ने, सुन मेरी सविता। 
कि--
"उपर उपर पी जाते हैं जो पीने वाले होते हैं ,
कहते हैं ऐसे जीते हैं जो जीने वाले होते हैं। "

पर सुना है कि कोई आए हैं एक राष्ट्रवादी,
जिससे खुश है भारत की अधिकांश आबादी।
भ्रष्टाचारियों से छीन ली है उनकी आजादी,
अब नहीं होते हैं पैसे की बर्बादी ।
अब खुल चुके सबके लिए बैंक में खाते,
जो भी पैकेज हो सब सीधे उसी में जाते।
अब धूम मचेगा भारत में जब फैलेगा विकासवाद,
मिट जाए परिवारवाद जागृत होगा फिर राष्ट्रवाद।
 

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व्यवस्था पर प्रहार..! 

कैसा है अपना संसार,
अब हो जाए आर या पार,
अब न हो इन्तजार,
व्यवस्था पर हो प्रहार,
प्रशासन का हो प्रतिकार,
सजा मिले जो है जिम्मेदार,
बंद हो राजनीतिक व्यापार,
सुन्दर हो सबका व्यवहार,
बंद हो सारे भ्रष्टाचार,
कहीं न हो अत्याचार,
शुरू हो सामुहिक बहिष्कार, 
चलन में हो शिष्टाचार,
पारदर्शी हो अपनी सरकार,
समान हो सबका विचार,
सुन्दर हो सबका संस्कार,
संगठित हो समस्त पत्रकार,
तभी मिले सही समाचार,
जन जन का होगा आभार,
कैसा है मेरा "सुबोधित" विचार..?


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       सशक्त नारी..!

तू ही सरस्वती, तू ही पार्वती,
नारी तू कल्याणी है। 
तू ही लक्ष्मी, तू ही भगवती,
तू ही तो बलिदानी है।।
अमर प्रेम की जीती-जागती,
एक सुन्दर प्रेम कहानी है।
माँ के रूप में है ममतामयी,
बहन रूपी तू सयानी है।।
बेटी तू घर की लक्ष्मी है,
तू ही तो दादी नानी है।
सबकी बोलती बंद कर दे तू,
तू ही शक्ति की रानी है।।
आधी आबादी की मालकिन तू,
फिर भी क्यूँ नहीं अभिमानी है?
खुब लड़ी है इस समाज से,
तेरी यह बात पुरानी है।।
घर घर गाते हैं तेरी गाथा,
सबकी रही जुबानी है।
अनन्त त्याग की देवी है तू,
तेरी अनन्त कहानी है।।
शाश्वत है तू, अमृत है तू,
एक कोमल हृदय प्राणी है।
धरा पर प्रवाहित चरणामृत है तू, 
जो न माने बड़ा ही अज्ञानी है।। 



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कोरोना संक्रमण काल..!

कोरोना बीमारी है बड़ा भारी,
बचत-बचत सब रहियो भाय।
जान बचत तो लाख उपाय, 
संयम से घर ही रहियो भाय।।
जब घर से बाहर जइओ, 
तब मास्क लगैते जइयो भाय।
बाहर से लौट वस्त्र बदलकर,
स्नान ध्यान कर लइयो भाय।।
सेनिटाइजर सदा प्रयोग कर, 
साबुन हाथ लगइयो भाय। 
स्वयं सुरक्षित रहकर भइया, 
परिवार की सुरक्षा बनइयो भाय।।
दो गज दूरी बड़ा जरूरी,
सामाजिक दूरी बनइयो भाय।  
आपन सुरक्षा, परिवार सुरक्षा 
देश सुरक्षित करिइयो भाय।।
अर्थव्यवस्था पर संकट भारी,
कुछ कष्ट सहन कर लइयो भाय।
घर के पैसा बैंक में रखियो,
सरकार के न चपत लगयियो भाय।।
उत्पादन निम्न स्तर पर, 
रोजगार की आशा मत रखियो भाय।
कुछ दिन और कष्ट सहनकर,
सरकार के साथ बनइयो भाय।।
प्रवासी मजदूर के काम छूट गयो,
उसका दर्द बाँट  लइयो भाय। 
जो बन पड़े मदद कर उनका,
उनकी जान बचइयो भाय।।
कोरोना बीमारी है बड़ा भारी, 
बचत बचत सब रहियो भाय। 
बचत सब रहियो भाय,

बचत बचत सब रहियो भाय।।

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हास्य-व्यंग्य रचना..! 
तर्ज :- एक राधा एक मीरा, दोनों ने श्याम को चाहा..! 
योगी बनाम केजरीवाल..!

एक योगी, एक केजरी-2
दोनों ही बने मुख्यमंत्री,
अंतर क्या दोनों के राज में देखो-2
एक राम दिवाने, 
दूजा कदर न जाने-2।
अन्ना ने हुंकार भरे जब,
निकल पड़े केजरी जी।
गोरखनाथ की भक्ति से जब,
निकले हैं योगी जी।
एक योगी, एक भोगी-2
दोनों में प्रेम कब होगी ?
अंतर क्या दोनों की प्रेम में देखो-2
एक राम को जाने,
एक गुरु को न माने-2।
जनता ने विश्वास किया जब,
केजरी को तिलक लगायो-2।
मोदी के विश्वास जीतकर,
युपी के सी एम बनायो-2
एक रोगी,एक वैरागी-2
दोनों ही है बड़े विश्वासी।
अंतर क्या दोनों के विश्वास में देखो-2
एक मोदी के साथी,
दूजा अन्ना के घाती-2।
कोरोना के संक्रमण काल में,
दोनों ने ही काम लगायो-2
योगी ने प्रयास कियो पर
केजरी खुद कोरंटीन करायो।
एक योगी, एक रोगी-2
दोनों ही थे कोरोना वियोगी।
अंतर क्या दोनों के वियोग में देखो-2
एक खुद को लगायो 
दूजा केन्द्र को फँसायो-2।
एक योगी, एक केजरी-2 
दोनों ही बने मुख्यमंत्री। 
अंतर क्या दोनों के राज में देखो-2
एक राम दिवाने,

दूजा कदर न जाने-2।

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भारतीय क्रिकेट के  पूर्व ओपनर तथा वर्तमान में योगी मंत्रीमंडल में मंत्री चेतन चौहान का कोरोना संक्रमण से आकस्मिक निधन । उन्हें सहृदय श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। 

सुनील गावस्कर का जोड़ीदार,
पिच पर पहरेदार,
क्रिकेट कैरियर चमकदार,
करता था चमत्कार, 
विजेता अर्जुन पुरस्कार,
एक मंत्री योगी सरकार, 
योगीजी का वफादार,
हिन्दुओं का सिपहसालार,
देश का चौकीदार,
बरेली युपी का सरदार,
जिसकी वाणी थी असरदार,
हुए अनन्त यात्रा के सफरदार।

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   कृष्णावतार..! 
चलो सखी देखन कृष्ण लला को-2
गोकुल धाम पधारे हैं। 
बजी बधाई कृष्ण लला की-2
यशोदा नन्दन प्यारे हैं। 
चलो सखी देखन---
सांवली सूरत,मोहनी मूरत‐2
थकती नहीं ये अँखियां देखत। 
गोकुल नगरी-2,
गोकुल नगरी आनन्दित भयो,
जन्म लियो कान्हा म्हारे हैं। 
चलो सखी देखन--
नयनन भर भर सखियाँ निहारें-2
दौड़ पड़ी सब नन्द दुआरे। 
बेसुध सखियाँ-2 
बेसुध सखियाँ सोहर गावे,
नन्द के राजदुलारे हैं। 
चलो सखी देखन--
कहत सुबोध कविता रचि प्यारे-2
अवतारी हैं कृष्ण हमारे,
आयो हैं प्रभु-2,
आयो हैं प्रभु दुष्ट दलन को,
सबके न्यारे वारे हैं। 

चलो सखी देखन---

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मनहूसियत साथ लिए वह दिन 6 अगस्त 2019 ही था जब देश की एक तेज तर्रार बेटी सुषमा स्वराज जी हमें, अपने पति कौशल स्वराज तथा प्यारी बेटी बांसुरी को छोड़कर अपने गुरु जी अटलजी के पास सदा के लिए चलीं गईं..! मैंने उन्हें काव्य श्रद्धांजलि देने की कोशिश की है जो निम्न है :-

अलविदा..!

सियासत की "सुषमा" चलीं गईं,
सर्वमान्य, स्वाभिमानी "स्वराज" चलीं गईं।

वो सहज थीं,सरल थीं,शानदार थीं,
अटल परम्परा की एक शिल्पकार थीं।

ओजस्वी,प्रखर व मंत्रमुग्ध करने वाली वक्ता थीं,
एक निर्भीक,प्रख्यात व कर्तव्यनिष्ठ प्रवक्ता थीं। 

एक परोपकारी, ईमानदार,योग्य व प्रेरणास्रोत थीं,
पुरुष प्रधान समाज में एक स्त्री राष्ट्र-प्रेम से ओत-प्रोत थीं।

एक कुशल प्रशासक,सफल संगठक,देश की बेटी चलीं गईं।
स्वतंत्र,कर्मठ,निडर, कौशल स्वराज की अर्धांगनी चलीं गईं।

सत्ता की गलियारों में भी वह एक सुन्दर नारी थीं,
संसद की पृष्ठभूमि में सबकी बड़ी प्यारी थीं।

कौशल,बांसुरी की "सुषमा" अलविदा कह गईं, 

सत्ता की शीर्ष पर ही "स्वराज" अनन्त यात्रा पर चलीं गईं।

****************

इम्यूनिटी..!

इतनी इम्यूनिटी देना दाता, 
कभी हो सके ना मुझको कोरोना।
अपने पैरों से बाहर भी जाऊँ,
सदा ही तुम मुझको बचाना।
इतनी..........

जीवन के हर मोड़ पर ये, 
छू सके कोई भाई कभी ना,
हमको शक्ति तू इतना ही देना, 
कभी सैम्पल पोजिटिव हो ना।
चाहे रास्ता तो कितना कठिन हो,
सदा ही तुम मुझको बचाना।
इतनी...........

किसी को भूल से भी शंका न देना,
कि होऊँ मैं कोरंटीन कभी ना, 
कि जाऊँ वनवास चौदह दिनों का,
ऐसा कष्ट तुम कभी भी ना देना।
सारा सामान घर पहुँचा देने का,
ऐसा बंदोबस्त तुम कर ही देना। 
इतनी..........

बाहर बड़ा खराब है ये जमाना,
हर गलियों में घूमता कोरोना,
वारियर्स डर कर दुबक जाएगा,
ऐसा सोचा था मैंने कभी ना।
ऐसा वरदान दुनियाँ को देना, 
कि भाग जाए जल्दी कोरोना।।
इतनी..........

दुनियां को संदेशा ये देना,
तुलसी अदरक का काढ़ा पीओना।
गरम पानी पीते ही रहना,
रात हल्दी दूध निश्चित ही लेना। 
सदा संयमित जीवन बिताना, 
कभी आ पाएगा कोरोना। 
इतनी...........!

******************

बहुत उठा पटक, हँसी मजाक, राजनीतिक तोल मोल आदि कई मुद्दों से गुजरते हुए अंततः भारत में  भारतीय वायुसेना की शान बढ़ाने हेतु दुश्मनों के लिए आसमानी आफत रफाल की पहली खेप आ ही गया। ध्यान रहे कि यह खेप अभी नहीं बाद के महिनों में आने वाले थे।परन्तु चीन सीमा पर तानातानी को देखते हुए फ्रांस ने विशेषकर चीन को चिढ़ाने के लिए अभी तत्काल भारत को देने का प्रस्ताव रखा जिसे भारत ने स्वीकार कर पहली खेप ले ही आया।
रफाल..!
दहशत में ड्रैगन,खौफ में पाकिस्तान,
आ चुका है वायुसेना में मौत का तुफान।
फ्रांस से टेक ऑफ,अबुधावी में होल्ड किया,
पाकिस्तान को सी ऑफ, अम्बाला में लैन्ड किया।
देखो दुश्मनों की शामत आई,
सुखोई-30 ने की अगुवाई।
हिन्द पहुँचा दुश्मन का काल,
नाम है उसका वीर रफाल। 
नेभी ने स्वागत किया कहकर हैप्पी लैडिंग,
उसने ये जवाब दिया कहकर हैप्पी हंटिंग।
दृश्य था वह बड़ा ही  विहंगम,
उड़ रहा था आसमान का सिंघम। 
देखो दुश्मन हुए बेहाल ,
जब देखा उसने राफाल।
आसमान का है शहंशाह,  
वायू सेना में आया बादशाह।
वायु के हैं हम धुरंधर, 
आसमान में हमीं सिकन्दर। 
खौफ में होंगे सारे बंदर,
हम ही बनेंगे गेमचेन्जर।
दुश्मन के दांव होंगे फेल,
जब उड़ान भरे राफेल।



*********************

जान है तो जहान है..!

कहते हैं कि मानव महान है, 
समझते हैं कि हम तो जवान हैं।
मानते हैं कि हम सभी समान हैं,
सोचते हैं कि हर गति में विज्ञान है।
जपते हैं कि कण कण में भगवान है,
सुनते हैं कि उनकी सोच में ही कल्याण है।
परन्तु, 
क्यों भूलते हो कि हम इन्सान हैं ?
हम नहीं कोई सक्षम भगवान हैं। 
बाहर जो गलियों में है बड़ा बलवान है,
महामारी के रूप में आया शैतान है।
उसकी नजर में सभी समान हैं,
पकड़ ले तो पुरे समाज परेशान है।
तो फिर, ऐसा क्यों करते हो यार ?
क्यों छोटा नहीं करते अपना संसार?
बाहर कोरोना का कहर जारी है,
अभी मानव का हर पहर भारी है। 
कुछ दिन तो बिता लो अपने ही भेष में,
गुजर करलो जो मिलता हो परिवेश में।
क्या रखा है क्यों जाते हो शहरों में?
कुछ दिन तो बिता लो अपने घरों में। 
समझो कि कट रहे दिन किसी जेल में,
बुरे दिन हैं कट जाएँगे खेल ही खेल में।
खुद बचो,अपने परिवार को भी बचाओ,
हे भाई ! अब भी तो संभल जाओ।
बाँकी हैं दिन वैक्सीन के अनुसंधान में,
आशा बनाए रखना अपने ही विज्ञान में।
जो भी हो सभी जीवों में,
सिर्फ मानव ही महान है।
बाँध लो जंजीर अपने पैरों में,
जान है तो जहान है। 
जान है तो जहान है।।

******************

चीन धूर्तता का प्रतीक..! 
कहीं चीन 1962 की कहानी तो दुहराना नहीं चाहता है। क्योंकि 1962 के युद्ध की पटकथा 1959 रचने लगा था और घुसपैठ की प्रक्रिया शुरू कर दी थी।  जब माओ की सेना ने लद्दाख में खूनी झड़प किया था तो उस समय जुन 1962 ही था ।और फिर उसी तरह शी जिंगपिंग की सेना ने कुछ साल पहले डोकलाम में किया तथा वही कहानी जुन 2020 में भी खुनी झड़प की पुनरावृत्ति दोहराई गई।
छोटी आँखों वाले धूर्त चीनी शी जिंगपिंग ने अपने विश्व विख्यात धोखेबाजी की शुरुआत कर दी है पेंगाग में नया मोर्चा खोल कर ।वास्तव में ऐसी ओछी हरकत सिर्फ और सिर्फ दो तीन महीने का समय निकालने के लिए किया है क्योंकि जुन 1962 में हुए सीमा विवाद से उत्पन्न परिस्थिति को चीन ने बातचीत के माध्यम से सुलझाने के लिए भारत को दिग्भ्रमित करते हुए तीन महीने बाद 20अक्तूबर  1962 को युद्ध शुरू किया था। उसी तरह वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए शी जिंगपिंग अपने पूर्व राष्ट्रपति "माओ "के पदचिन्हों पर ही चल रहा है तथा पेंगाग में अपनी सेना की ताकत को बढ़ा रहा है, और मुझे डर लगता है कि कहीं यह अक्तूबर या नवम्बर के महीने में युद्ध का आरम्भ न कर दे। चीन के लिए बरसाती माह में युद्ध करना आसान नहीं होता है।इसलिए वह दो तीन महीने बातचीत कर भारत को उलझाए रखना चाहता है और तब तक युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है । लेकिन वह भूल गया है कि यह 1962 का भारत नहीं है भाई।चीन यदि पुनरावृत्ति दुहराने की दुस्साहस करेगा तो याद रखना होगा कि वह चारों तरफ से  घिरा है। ताइवान तथा आस्ट्रेलिया  युद्ध के लिए तैयार है।अमेरिकी जहाजी बेड़ा मंडरा रहा है। साथ अमेरिका तथा भारत ने आर्थिक नाकेबंदी कर चीन की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का काम किया है और उनकी जासुसी गतिविधियों को बंद कर अमेरिका ने चीन को छटपटाने के मजबूर कर दिया है।इजरायल और फ्रांस युद्ध की स्थिति में भारत का साथ देने के लिए वचनबद्ध हैं। अतः यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि यदि इस बार युद्ध हुआ तो भारत का नुकसान तो होगा और भारत 10 साल पीछे चला जाएगा लेकिन अक्साईचीन अवश्य भारत के पास आ जाएगा।
अब आइए बात करते हैं रूस की।याद रखें, पूर्व के विश्व युद्धों में रूस प्रत्यक्ष रूप से भाग लेकर अपनी स्थिति को कमजोर कर लिया था ।प्रथम विश्व युद्ध के बाद भयंकर 1929  की विश्वव्यापी  महामंदी की शुरुआत रूस से ही हुई थी। तथा द्वितीय विश्व युद्ध में भी भी पृष्ठभूमि अमेरिकी क्षेत्र नहीं था। अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर कोई खास असर नहीं पड़ा था और युद्धोपरांत पुनर्वास व पुनर्निर्माण कार्य हेतु अमेरिका ने सम्पूर्ण विश्व में व्यापक रूप से अपना आर्थिक व्यापार शुरु किया था। यहां रूस पिछड़ गया था।दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक पीता है।  अतः युद्ध की स्थिति में इस बार रूस मुझे लगता है कि कोई प्रत्यक्ष युद्ध नहीं करेगा। इतना जान लेना आवश्यक है कि रूस भारत के विरुद्ध कभी युद्ध नहीं करेगा।इसलिए इस युद्ध के वातावरण में भी वह बिलकुल चुपी लगाए है। निश्चित रूप से वह युद्ध के उपरांत सहयोगी की भूमिका का निर्वहन करते हुए अमेरिका की नीति को अपनाने का प्रयास करेगा। हलांकि पिछले कुछ दिनों से रूस यूक्रेन के ठीक समीप अपना अब तक का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास कर सबको डरा रहा है। लेकिन ऊंट किस करवट बैठेगा किसी को भी नहीं पता।

यद्यपि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है।

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मेरी यह रचना "देशभक्ति" तथा "कारगिल विजय दिवस " पर आधारित है जिसे एक गीत के रूप में गाया जा सकता है:-
हम हैं भारत की शान, 
हम हैं--2
हम हैं भारत की शान, 
हम न झूकेंगे, हम न हटेंगे,
रखेंगे देश का मान। 
हम हैं भारत की शान-2.
चाहे कारगिल हो, या हो गलवान,
हर जगह, हर डगर, हम ही हैं बलवान।
हम हैं भारत की शान--2
देश की ख़ातिर लड़ते-लड़ते,
तनिक न भय हो मरते-मरते।  
दे देंगे हम जान। 
हम हैं भारत की शान--2
भरी पड़ी है इस धरा पर,
लगाके मिट्टी अपने सिरा पर,
शौर्य पौरूष बलवान। 
हम हैं भारत की शान-2
बाह्य दुश्मनों से हम निपटें
पर घर में है शैतान।
हम न डरेंगे,हम तो लडेंगे,
हम तो हैं सुलतान।
हम हैं भारत की शान-2
एक एक ईंच की रक्षा करें हम,
हरा सके जो किसमें है दम,
हम हैं सीमा के जवान। 
हम हैं भारत की शान--2
चाहे चीन की सीमा हो,
या हो पाकिस्तान, 
हम न डरेंगे, हम तो लडेंगे, 
यह है हिन्दुस्तान। 
हम हैं भारत की शान-2 ।
जय हिंद, जय भारत ।



*********************

लोकतंत्र का मूलमंत्र !

युगों युगों से भारत भूमि पर,
पैदा होते रहेंगे,
राजनीति के महामना। 
जन्म होते रहेंगे ,
कुछ नेताओं का बचपना।
धर्मनिरपेक्षता का रंग मुखर होगा। 
राष्ट्रवाद का दंभ निखर होगा। 
डिजाइनर पत्रकारिता का असर होगा।
बेमतलबी समाचारों का कभर होगा।
फिर भी,  
देश सदा अमर रहेगा,
नहीं मिटेगा सद्भावना।
हाँ कुछ गलतियाँ इधर से 
तो कुछ गलतियाँ उधर से, 
लोग झुकना चाहेंगे दोनों तरफ से, 
पर दुर्भाग्य एक प्रमुख  की तरफ से, 
छोटा खटपट फिर  विवाद होगा,
फिर कोई अखलाक पैदा होगा, 
फिर कोई राजेश विदा होगा ।
लोकतंत्र में आएगी हैवानियत,
विदा हो जाएगी इन्सानियत। 
लेकिन चुनाव खत्म, 
फिर होगी शांति हीं शांति, 
नहीं होगी कोई और भ्रांति।
परन्तु क्या राजनीतिक दुकानें बंद होंगे?
तथाकथित सेकुलर मकानें बंद होंगे?
नहीं, 
फिर किसी बन्धु का स्वर मुखर होगा,
जनमानस पर कुछ नया असर होगा। 
और फिर होगी एक नयी क्रांति ,
फिर मिटेगा अमन चैन व शांति ।
परन्तु उनके चंगुल में फँसना नहीं,
फँसकर तुम फिर हँसना नहीं ।
दूर करो ये अराजकता, 
बढ़ाओ सौहार्दपूर्ण मित्रता। 
कुकृत्य न ये सरेआम करो,
भारत को न बदनाम करो।
बाद में तुम पछताओगे, 
क्या लेकर आए हो,
क्या लेकर जाओगे। 
सब धरे के धरे रह जाएँगे,
अपनों से ही लूटे जाएँगे। 
जो भी हों,
एक रहेंगे,
नेक बनेंगे।
भारत अमर रहेगा,
तुम भी यहीं रहोगे,
हम भी यहीं रहेंगे ।
दूर करें सारे विवाद,
जागृत करें हम राष्ट्रवाद।
सौहार्दपूर्ण हो अपना  गणतंत्र,
यही है लोकतंत्र का मूलमंत्र। 

*************************

भारतीय बामपंथी इतिहास, एक सोची समझी साजिश..!
वास्तव में चर्चा होनी ही चाहिए कि भारतीय इतिहास हजारों वर्षों की रही है कितने शक्तिशाली सनातन संस्कृति व सभ्यता पर आधारित साम्राज्य रहा है परन्तु सो क्या किया मुगल बादशाहों ने जो इतिहास का तीन चौथाई भाग भारतीय इतिहासकारों ने सिर्फ उन्हें ही समर्पित कर दिया ।
    चर्चा तो इस बात की भी  होनी चाहिए कि कौन ऐसे लोग हैं जिन्होंने हमारे आराध्य श्री रामजी के अस्तित्व को हीं नकारने की कोशिश करते हुए उन्हें एक काल्पनिक कहानी करार दिया है। 
   चर्चा तो इस बात की भी होनी चाहिए कि जब मंदिर तोड़ कर मस्जिद का निर्माण हो रहा था तब हमारे इतिहासकारों की लेखनी उसका विरोध न कर उसकी प्रसिद्धि व सम्प्रभुता को क्यूँ पन्नों में उद्धृत कर रहा था जिसे आज हमारे बच्चे पढ़ने को विवश हैं, और ध्यान रहे कि यही तथ्य हमारे बच्चों में चाहे किसी भी सम्प्रदाय के हों में वैमनस्यता फैलाने में भागीदार रहा है। 
   चर्चा तो इस बात की भी होनी चाहिए कि 
" दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढ़ाल, साबरमती के संत तुने कर दिया कमाल। "
इसकी सत्यता की भी जांच होनी चाहिए। जबकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजी हुकूमत और भी शक्तिशाली बनकर उभरा था क्योंकि उनके गुट की जीत हुई थी। इसलिए कोई कारण नहीं था कि वह भारत को मुक्त कर दे अर्थात आजादी दे दे।क्या ऐसा हुआ था गांधी बाबा 14 अगस्त 1947 को सबरे सबेरे उठे और बोले कि चलो आज भारत आजाद करते हैं और अंग्रेज डर कर भाग गए और भारत आजाद हो गया। बिलकुल नहीं ऐसा नहीं है।यह वास्तव में भारतीय क्रांतिकारी वीरों तथा देशभक्तों के अथक प्रयासों तथा बलिदानियों का परिणाम है जिसमें महात्मा गाँधी जी की महत्वपूर्ण भूमिका है। 
        चर्चा तो इस बात की भी होनी चाहिए कि गांधी बाबा का नेहरू स्नेह के कारण ही यह दुर्भाग्य है कि भारत की सबसे पुरानी पार्टी आज सत्ता लोलुपता में ऐसी ओछी हरकत पर उतर आयी है कि उसे इतना तक याद नहीं रहता कि यह वास्तव में भारत विरोध के लक्षण हैं क्योंकि उसी के वक्तव्य को दुश्मन देश भारत के विरुद्ध हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
          प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद जी ने अपने विवादास्पद पुस्तक जिसे बहुत दिनों तक प्रकाशित नहीं किया गया था "India wins freedom " में चर्चा की गई है कि द्वितीय विश्व युद्ध में आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों ने ऐसा बलिदान दिया था कि उसकी गूँज सम्पूर्ण भारत को एकजुट कर देशभक्ति जगा गया था और उसकी धमक अंग्रेजी सत्ता तक पहुँच चुकी थी कि अब वह दिन दूर नहीं जब भारत को आजाद कराने के लिए सभी भारतवासी सड़क से संसद तक आ जाएँगे क्योंकि देश के सभी सेनाओं में विद्रोह उठने लगा था। यही कारण था कि प्रारम्भ में उक्त किताब के अंतिम  30 पन्नों को प्रकाशित नहीं किया गया जिसे आदरणीय अटलजी ने प्रकाशित किया। 

बहुत सारी बातें हैं जिसकी चर्चा करनी चाहिए। इसलिए आवश्यकता है भारतीय इतिहास के वास्तविक व यथार्थ स्वरूप को लाकर देश के सामने समर्पित करने के साथ-साथ उसे पाठ्यक्रम में शामिल करें ताकि हमारे बच्चों को वास्तविक जानकारी प्राप्त हो सके।


******************

अधूरा प्रेम..!
आओ सुनें एक प्रेम कहानी, 
कवि की रचना उनकी जुबानी।
यह सपना नहीं हकीकत है, 
हर दिल की ये मुसीबत है। 
आगे क्या हुआ?
आगे,
आगे इक लम्बी कहानी है। 
अच्छा, फिर क्या हुआ?
फिर...
एक नारी थी सुकुमारी थी,
पता नहीं क्या कुँवारी थी।
सुन्दरता की प्रतिमूरत थी,
बला की वह खुबसूरत थी।
प्रेम की वह तो हाला थी,
एक सुन्दर सी मधुशाला थी।
वस्त्र सुनहरा गहरा लाल,
सुन्दरतम वो होंठ व गाल-2
क्या नारी थी सुकुमारी थी, 
अंतर्मन को बड़ी प्यारी थी।
कवि की सुन्दर अभिव्यक्ति थी,
ईश्वर की सुन्दर प्रस्तुति थी।
रूपवती वह प्राकृतिक थी,
लगती वह बड़ी सांस्कृतिक थी।
कवि हृदय की कल्पना थी,
एक कलाकार की अल्पना थी।
फिर क्या हुआ?
फिर ?
फिर आँखों में एक चमक उठी,
दिल में  दर्द की सिसक जगी। 
पता नहीं कब प्यार हुआ, 
एक अनजबी कब यार बना। 
यह प्यार बड़ा एकतरफा था,
पर इसने दिल को हड़पा था।
चेहरा जानी पहचानी थी,
कुछ धुंधली सी कहानी थी।
काश! पहले कभी मिली होती,
तब आत्मा मेरी नहीं रोती।
नींद ना देखे टुटी खाट,
प्यार ना देखे उम्र व जात-2
मैंने सोचा इजहार करूँ ,
अपने प्यार का इकरार करूँ। 
चाहे कोई इनकार करे, 
चाहे सपने साकार करे।
फिर क्या हुआ?
फिर ?
फिर मैंने एक रिक्वेस्ट किया,
कुछ शब्दों का इन्वेस्ट किया।
फिर उधर से कुछ जवाब मिला ,  
दिल में महकता गुलाब खिला।
फिर शब्दों का इजहार  हुआ, 
दिल ही दिल इकरार  हुआ।
फिर क्या हुआ ?
फिर ?
एक तुफान सा आकर चला गया,
एक दर्द ने मुझको हिला दिया।
एक छोटा सा दिल था रूठ गया,
सपनों का महल था टुट  गया। 
ऐसा क्यों हुआ ?
क्योंकि--
यह कुँवारी नहीं इक नारी थी,
किसी की अमानत प्यारी थी।
एक प्यार उभरकर ठहर गया, 
बोझिल मन पर एक असर नया।
ओ ये बात,फिर क्या हुआ?
फिर ?
फिर भी हमदोनों मित्र बनें, 
एक दूसरे के इत्र बनें।
एक कसक सी आकर सिहर गई,
जो अगले जनम तक ठहर गई।
फिर क्या हुआ ?
फिर ?
एक सपना ही था  टुट गया, 
बस निन्द खुली और फुट गया।
ओह! अफसोस !
पर याद रहे मित्रों-
जहाँ प्रेम नहीं वह दानव है, 
जहाँ प्रेम बसे वह मानव है। 
हर दिल में प्रेम की जोत जगे, 
जो खुशियों की सौगात बने। 
एक अनजाना सच !


**********************

हर-हर महादेव..!
राम भी उसका, रावण उसका,
हरा-भरा यह सावन उसका।
जीवन उसका, मरण भी उसका,
मेरी हर भक्ति में वरण हो उसका। 
काम भी उसका, नाम भी उसका, 
मेरा सब सम्मान है उसका।
मेरा सब अभिमान है उसका,
मेरा हर इक नाम है उसका।  
यदि मेरा हर इमान है उसका,
तो मेरा हर अपमान भी उसका।
सब दर्द हरण कर लूँ मैं उसका,
मेरा हर सुख हो सब उसका। 
अपना क्या है सब है उसका, 
रोम रोम पर हक हो उसका।
कल्याण हो जाएगा सबका,
जब भक्ति कर लें हम सब उसका।
भक्ति कर लें हम सब उसका।।


***************

बीस का खीस..!
बीस को भूल जाना ही उचित है,
क्योंकि यह साल बड़ा ही विचित्र है।
बीस का खीस लगातार जारी है, 
लगता नहीं यह साल संस्कारी है,
जीवन पर पड़ रहा असर  भारी है,
कोरोना का कहर चहूँओर जारी है।
लगता नहीं यह प्रकृति से आयी है,
यह तो चीन का शीर्ष पाने की लड़ाई है।
चीन ने सदा ही विस्तार की नीति अपनाई है,
यह तो चीन के संस्कृति की बुराई है। 
कहा था किसी ने हिन्दी चीनी भाई भाई है,
हमने तो कहा, पर उसने कहाँ निभाई है?
डोकलाम में नहीं सका तो,
गलवान में कर दी लड़ाई है। 
अचानक धोखे से वार कर,
भारत को हानि पहुंचाई है, 
पर गलवान के बलवान ने,
मार के धूल चटाई है। 
चीन की यह हरकत दुनियां को, 
बिलकुल ही नहीं भायी है।
एक हो गई दुनियां अब तो,
उसकी शामत आई है। 
चीन घिर रहा चहुँओर से,
अब युद्ध की बदली छाई है।
युद्ध बड़ा भीषण होगा यह,
अब तो तृतीय विश्वयुद्ध की  बारी है।
यह बीस सौ बीस जाता क्यों नहीं,
इसका कहर लगातार जारी है। 
कोरोना का संक्रमण, 
चीन का अतिक्रमण, 
ड्रेगन ने दुनियाँ को आँखें  दिखाई है।
सैलाब में डुबे,भूकंप से हिले,
पाक टिड्डियों ने आतंक मचाई है। 
समुद्री तुफान आया विकराल,
अर्थव्यवस्था का हुआ बुरा हाल,  
चीन को सबक सिखाने अब तो,
दुनियाँ ने हाथ मिलाई है। 
फिर भी बीस का खीस जारी है, 
जो मानवता पर पड़ रहा भारी है।
हे प्रभु!अब आ जा तेरी बारी है, 
दुनियाँ पुकार रही,सब तेरा आभारी है।

**********************

(तत्कालिक वैश्विक महामारी से उत्पन्न विकट परिस्थिति से आहत मेरा कवि हृदय व्याकुलता की पराकाष्ठा को पार कर एक काव्य के रूप में हुआ है। ध्यान रहे कि यह प्राकृतिक नहीं बल्कि वैश्विक प्रतिद्वंदिता का प्रतिरोध स्वरूप एक जैविक चीनी अस्त्र है क्योंकि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विश्व मंच पर अग्रणी बनने के चक्कर में यह चीनी हठधर्मिता को प्रदर्शित करता है..! मैंने आज तक अपने किसी रचना, संगीत या आलेख को शेयर करने नहीं कहा है, परन्तु आज मैं आपसे यह अनुरोध करता हूँ कि आप इसे इतना शेयर करें, इतना शेयर करें कि आवाज चीन तक गुंजन करे। तो आइए सुनते हैं मेरी अपनी यह रचना जिसे मैंने कलमबद्ध किया है। शीर्षक है "छोटी आँखों वाले तुने ए क्या किया...)

छोटी आँखों वाले---!

ऐसे फुसलाके तुने ये धोखा दिया, 
दुनिया संभले कि ऐसा  न मौका दिया। 
हमने समझा कि तुने खिलौना दिया -2
पर ये क्या था तुने कोरोना दिया।  
छोटी आँखों वाले, तुने ए क्या किया, 
सारी दुनियां को तुने दगा दे दिया -2
छोटी आँखों वाले...!

(एक पोस्ट वायरल हुआ था जिसमें दिखाया गया था कि चीन ने उस पत्रकार और डाक्टर को मृत्यु दे दिया जिसने कोरोना वायरस की जानकारी दूनियाँ को दी थी। बिमारी का प्रभाव इन चार पंक्तियों में सुनते हैं..)

ऐसी लाईलाज तुने बीमारी दिया,
मानव को मानव से जुदा कर गया। 
आज कोई सटता नहीं,
घरों से हटता नहीं-2,
बाजारों का रौनक जुदा हो गया।
छोटी आँखों वाले तुने ए क्या किया ,
सारी दुनियां को तुने तबाह कर दिया। 
छोटी आँखों वाले---!

एक शेर अर्ज है कि..

"मुसीबतों में हीं दुनियां की भारत पर नजर होती है, 
जो यह दुनिया को सिखाता है वो असर होती है।" 

( तो इन चार पंक्तियों में सुनते हैं भारत ने क्या किया । इससे निपटने के लिए..)

ऐसा फैसला लिया,
सबको हौसला दिया,
सारी दुनियां को हमने नमस्ते किया ।
अब ना ये हाथ मिले, और न गले को पड़े,
सारी दुनियां ने हमसे ये अपना लिया।
छोटी आँखों वाले तुने ए क्या किया, 
सारी दुनियां को तुने तबाह कर दिया।
छोटी आँखों वाले तुने ए क्या किया..।

(बेशर्मी की हद देखिये इस त्रासदी में भी उन्होंने किट, मास्क आदि के रूप में गलत व्यापार किया।इन चार पंक्तियों में सुनते हैं---)

सारी दुनियां में बाजार को मंदा किया,  
बेशर्मी की हद से तु धंधा किया।
न चुप बैठेंगे हम,न चुप बैठेगा वो,
जो भी होगा, वो होगा, देखा जाएगा। 
छोटी आँखों वाले तुने ए क्या किया,
सारी दुनियां को तुने तबाह कर दिया। 
छोटी आँखों वाले..।

( अब थोड़ा इतिहास के पन्नों को पलटने की कोशिश करता हूँ। 1962 के युद्ध में चीन ने भारत का अक्साईचीन क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।युद्धोपरांत संसद में बोलते हुए कहा गया था कि वहाँ घास का एक तिनका भी नहीं उगता है।मैं कहना चाहता हूँ कि इससे क्या, यहाँ मैं दुर्योधन की वाणी दुहराना चाहता हूँ कि सूई की नोंक के बराबर अपनी जमीन नहीं दूंगा।) 

यहाँ कहा गया 
हिन्दी चीनी भाई भाई ,
हम तो बने भाई,पर तुमने कहाँ निभाई?

(अब अंत में इन चार पंक्तियों में सुनते हैं कुछ ऐतिहासिक विरासत और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समन्वय की बातें--)

तुने पहले भी हमको था धोखा दिया,
अक्साई चीन को हमसे जुदा कर दिया ।- 2
अब न चाचा रहे,और न बासठ रहा-2,
भारतीय वीरों ने तुमको भगा ही दिया। 
छोटी आँखों वाले तुने ए क्या किया, 
सारी दुनियां को तुने दगा दे दिया। 
छोटी आँखों वाले....!

देश के कोरोना वारियर्स को समर्पित..!

*********************

अपना कुलदीप शहीद हुए...!
भारत माँ के सच्चे सपूतों की बस्ती है,
यह शहीदों की जन्मभूमि है,
यही पैदा हुए कुलदीपक नाम कुलदीप है,
यही तो शहीदों की कर्मभूमि है।
निकला था देश सेवा में, 
यही तो गुरूवार की बात है।
घोर अंधेरा सुनसान में, 
कैसी काली अंधेरी रात है।
कौन जानता छुपा झाड़ में,
बैठा कमबख़्त व बदज्जात है।
भनक लगी मुठभेड़ हुआ जब,
आतंक को बर्दाश्त किया कब।
चली लड़ाई घंटों बीत गए,
देश को दुश्मन से मुक्त कर गए।
पर एक लगी मेरे लाल को गोली,
वीर गति को प्राप्त हुए। 
माँ भारती की रक्षा में, 
अपना कुलदीप शहीद हुए।
अपना कुलदीप शहीद हुए। 
अपना कुलदीप शहीद हुए। 
जय हिंद जय भारत। 



*******************

दोस्त नहीं वह दुश्मन है..!
ना राम बनूँ, ना रावण,
ना बनूँ मैं कोई दुर्योधन,
क्यों बनूँ मैं कोई गुरू द्रोण,
ना भीष्म बनूँ और ना मोहन।
मुझे बनाना ए ब्रह्मा तुँ,
वीर शहीद होने को यूँ,
जगह वहाँ की खोज मैं करूँ,
चीन सीमा पर जा मैं मरूँ।
न विवादित हो ये डोकलाम,
न उदित हो ये गलवान, 
क्यों घुसता है ये हैवान, 
बना दूं मैं सारा श्मसान।
भारत पर जो आँख दिखाएँ, 
उसकी हस्ती मिटा दूं मैं,
दुनियां में हम नाम कमाएँ,
दुश्मन की बस्ती मिटा दूं मैं।
डोकलाम,गलवान को छोड़ो,
शंघाई में घर बना लूँ मैं, 
चीनी सेना की हड्डी तोड़ो,
मानसरोवर अपना लूँ मैं। 
इसीलिये कहता हूँ भाई, 
वह भाई नहीं कसाई है,
बहिष्कृत कर चीनी  सामग्री, 
हमने स्वदेशी अपनाई है।
देखो हमने तिरंगा लहराई,
अब तेरी शामत आई है ,
हिन्दी चीनी भाई भाई, 
नारे की करो विदाई है।
जय हिंद जय भारत।

*********************

आपबीती..!
25 June के बाद 26th June 1975 का दिन आया था,
जिसने बचपन में ही मेरे हृदय में राष्ट्रवाद जगाया था।
हाँ भाई! याद है वह दिन। मुझे आज भी याद है । कैसे भूल सकता हूँ। मेरे पीछवाड़े में खा- मखा पुलिस का एक भयानक डंडा पड़ा था जिसका मैं कुसूरवार नहीं था और डंडा इतना सख्त कि आज भी जब बड़ी बड़ी मूँछों वाले पुलिस कर्मी पर नजर पड़ती है तो-
" मैं कभी अपने पिछवाड़े तो कभी पुलिस की मूँछों को देखता हूँ।"
यह और कुछ नहीं सिर्फ लोगों में दहशत फैलाने के लिए किया गया एक सरकारी ऐटम था जिसका मैं दुर्भाग्यवश शिकार बन गया था।
  जानते हैं,उस समय  मैं एक पढ़ने लिखने वाला छोटा बालक था। मुझे सियासत या राजनीति की समझ कुछ ज्यादा नहीं थी लेकिन स्कूल में एक तेज बालक होने की ख्याति प्राप्त थी इसलिए स्कुल के हेडमास्टर साहब परम आदरणीय श्री पद्माकर चौधरी जी जो राजमहल में कभी  रहे एक ईमानदार SDO श्रीमान विधान चंद्र चौधरी के पिताजी हैं, का मैं प्रिय छात्र था ।अक्सर इन्सपेक्टर  को खुश करने के लिए सरकार के पक्ष में  मुझे भाषण देने को कहा करते थे।मुझे लगता था  कि सबका मालिक एक है- तत्कालीन प्रधानमंत्री  इन्दिरा गाँधीजी ।अटलजी ने तो उन्हें किसी समय  दुर्गा का अवतार तक कह दिया था जो वास्तव में सही व सटीक था ।यह अलग बात थी कि बाद में इसे कन्ट्रोभर्सियल मान लिया गया । उनके बाद कांग्रेस में न ऐसा व्यक्तित्व कभी आया और न आएगा। परंतु बाद के दिनों में उनका अहंकार तथा उनकी महत्वाकांक्षा स्वयं के साथ साथ सम्पूर्ण भारत को क्रांति की आग में झोंक दिया और दुर्भाग्यवश भारत में 25 june 1975 को सम्पूर्ण भारत में आपातकाल स्थिति लागू किया गया और जय प्रकाश नारायण बाबू द्वारा चलाया गया सम्पूर्ण क्रांति का प्रादुर्भाव हुआ। 
       इसी के बाद  26th June 1975 को मुझे पीछे पुलिस का एक भयानक डंडा पड़ा था जिसका सिरहन मैं आजतक पुलिस को देखकर महसूस करता हूँ। मुझे तब मालुम हुआ कि भारत में इमरजेन्सी लागू हो गया है। मैं कुछ समझ नहीं पाया परंतु दुर्भाग्यवश बिना कारण के डंडे के अनुभव से मैंने अपने आप से कहा- यह इमरजेन्सी नहीं यह लोकतंत्र का काला दिन है।और उसी समय मेरे मन में जो इन्दिरा जी के प्रति सम्मान व समर्पण का भाव पनप रहा था काफूर हो गया और नन्हा तन व स्वच्छ मन में वर्तमान व्यवस्था के प्रति रोष के साथ हृदय के किसी कोने में  राष्ट्रवाद की एक दिव्य ज्योति के प्रकाश का एहसास हुआ। 
      घर में कांग्रेसी वातावरण होने के कारण मन में कांग्रेस के प्रति स्वाभाविक रूप से अच्छे भाव थे  जो डंडा पड़ने के कारण ठंडा हो गया।  वास्तव में यह इमरजेन्सी कांग्रेस के लिए नासूर बन कर बार बार उनके कुशासन की याद दिलाती रहेगी। 
       इमरजेन्सी लागू कब होता है जब देश को कोई आन्तरिक सुरक्षा या बाह्य आक्रमण का खतरा हो।उस समय ऐसा कोई कारण नहीं था लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इसे लागू किया ।ऐसा इसलिए कि तत्कालीन परिस्थिति में कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना जागृत हो गई थी। इन्दिरा जी के अहंकार व जुल्म  ने देश को एकजुट कर दिया था। और फिर जो हुआ हमसब जानते हैं। यद्यपि सत्ता सुख भोगने के बाद नेतागण देशहित की जगह स्वहित संबर्धन पर काम करने वाले हो गए।उसी आन्दोलन से उपजा एक क्रांतिकारी व्यक्तित्व मोदी जी तत्कालीन प्रधानमंत्री हैं जो भारत को एक सशक्त राष्ट्र के निर्माण में सतत् प्रयासरत हैं जिसका हमें मजबुती से साथ देना चाहिए।यद्यपि वर्तमान राजनीति में सत्ता लोलुपता के कारण उस समय कांग्रेस विरोध की राजनीति कर बड़े नसीबों वाले बनने के उपरांत वर्तमान में उन्हीं के हाथ मजबूत करने के लिए तत्पर हैं। सब की अपनी अपनी सोच है भाई। 

                                             धन्यवाद..!

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टिक-टाॅक..! कुसूरवार कौन..??
ध्यान देने की बात है कि जब टिक टाॅक पहले पहल आया था और जिन्होंने भी इस पर अपना विडियो संदेश भेजा वह रातों रात स्टार बन गया..। करोड़ों का मालिक बन गया..। जिसमें कुछ को तो फायदा अवश्य हुआ इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता । जब इस एप को चीन की कम्पनी जिसका मालिक Zhang Yiming था ने एक बिलियन डॉलर में खरीदा तो उन्होंने अपना मकसद बताया विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले उन लोगों की प्रतिभा को उभारने हेतु प्लेटफार्म देना, जहाँ तक लोगों की पहुँच न थी..। देखते ही देखते यह भारतीय युवा पीढ़ी को असभ्यता व कुसंस्कृति की ओर ले जाने में सक्षम होने लगा..। हमारे प्यारे बच्चे जो कभी अपने घरों से नहीं निकलते आज बाहर जाकर घृणित पोज व व्यंग्यात्मक टिप्पणी करने लगे..।
कुछ दिन ऐसा ही लगा परन्तु जब Zhang Yiming ने खुद एक टोन्ट करते हुए कहा कि दुनियां में सबसे ज्यादा मूर्ख,धूर्त,नासमझ और बेरोजगार लोग भारत में ही रहते हैं तब लोगों की निन्द खुली।
      क्या करें, हम भारतीय उदार प्राणी होते हैं। दूसरे कि घृणित मानसिकता को समझने में देर कर देते हैं और जब समझ में आता है तबतक देर हो जाती है। ऐसा ही 1600 ईस्वी में हुआ जब East India Company भारत में व्यापार करने आई तब कुछ जयचंदों व आपसी फूट तथा वैमनस्यता के कारण कम्पनी ने सम्पूर्ण भारत में अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया। 
     अतः ध्यान रहे कि चीन की विस्तारवादी नीति कुछ इसी ओर संकेत करती है। अतः उन्हें आर्थिक मदद पहुँचा कर हमें उसे बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है भाई। 
   इसलिए कहता हूँ कि चीन की इरादों को रोकने के लिए  सम्पूर्ण चीनी एप सहित चीनी सामानों का सम्पूर्ण बहिष्कार करना हीं पड़ेगा भाई। पीछे क्या हुआ, किस सरकार ने क्या किया?इन बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है ।
    भारत हर परिस्थिति में सक्षम है दुनिया के बाजारों में प्रतियोगिता करने के लिए। अब देखिए न "टिक टाॅक" के बदले में एक ऐसा एप "MITRON" लांच किया गया है जो ज्यादा अच्छा है।इसका Voice, picture quality टिक टाॅक से बेहतर है। मैं तो कहता हूँ कि जो टिक टाॅक चलाते हैं वे अभी Mitron  app download कर लें। अभी नया है और शुरू शुरू में जो इस पर छा गया वह निश्चित रूप से भावी स्टार होगा। 
     लेकिन यहाँ समस्या उत्पन्न हो जाती है कि भारत में हर आलेख को वर्तमान परिस्थिति में सभी राजनीतिक दृष्टिकोण से पक्ष विपक्ष के रूप में देखने लगते हैं जो  समाज में दुर्भाग्य से दुर्भावना फैलाने लगते हैं कि फलां ने यह कहा अरे वह तो अंधभक्त है अरे वह तो चमचा है।इसतरह की समस्याओं में कई जयचंद समाज पर हावी हो कर सामाजिक वातावरण को दूषित कर रहे हैं। 
     हे भाई ! मैं क्या उपदेश दूँ। मेरे घर के बच्चे भी ऐसा करने लगे थे। परन्तु अब हमलोग सुधर गए हैं भाई, आप कब सुधरेंगें ? 
      जो खरीद लिया उसे रहने दें क्योंकि वह तो अब आप की सम्पत्ति है। उसका कर हमने चुका दिया अब आगे नहीं। 

जय हिंद,जय भारत..!

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और भारत का दिल रोया..!
और भारत का दिल रोया..!
होने का जो था हो गया, 
एक तुफान सा आया, 
जो दर्द जगाकर चला  गया। 
था एक विचित्र संधि,
एक राजनीति हुई थी गंदी, 
जो भारत ने चीन से  किया, 
उसी के कारण भारत का दिल रोया।
हम थे निहत्थे, 
पर एक धूर्त ने चरित्र दिखाया,
धोखे से वार किया,  
और फिर भारत का दिल रोया। 
रात की विरानियों में,
निकले थे गस्त लगाने, 
हर दिन की तरह।
पर कहाँ मालूम कि
पहाड़ों की आड़ में 
बैठे हैं वो उल्लू की तरह।
सब कुछ ठीक था,
लौट चला जवान,
हर दिन की तरह।
राहें थीं सुनसान, 
अचानक बुजदिल आया, 
पीछे से वार किया, 
धूर्त लोमड़ी की तरह। 
पर उसे क्या मालूम, 
हम बिहारी हैं और 
एक बिहारी 
सब पर भारी।
तुम्हें मालूम नहीं, 
सेना में हमें बजरंगी कहते हैं, 
देश के लिए जान भी जाए,
फिर भी हँसते हैं।
अफसोस नहीं, 
हम तो मरे ,
पर दुगुने को मार गए,
देशवासियों चिंता मत करो,
देश के लिए हम जान हार गए। 
कहते हैं कि, 
शहीदों की चिता पर
अफसोस नहीं करते, 
क्योंकि वे सदा अमर हैं
कदापि नहीं हैं मरते।
पर माँ तो बस माँ होती है, 
अपने लाल की जाँ होती है। 
गमगीन हैं आँखें 
अपने लाल की शहादत को देखकर, 
मानो कह रहा है,
कि रो मत, 
लौट कर आऊँगा,
उसे सबक सिखाकर।
देखो देखो, 
यहाँ की मिट्टी लाल हो गई,
शहीदों के खून की धार से,
गूँज उठी है धरती,
पिता की माँ भारती की जयकार से।
देखो देखो 
आ गया है किसी माँ की कोख में कोई "मुन्ना" बनकर,
देखो कैसा खड़ा है "गणेश"
सीना तनकर,
चमकने लगा है क्षितिज पर, 
एक दिव्य ज्योति "कुन्दन" बनकर।
मेरी यह रचना भारत-चीन वर्तमान सीमा विवाद से उत्पन्न परिस्थिति, एक विचित्र व विवादास्पद संधि तथा इस क्षेत्र में शहीद हुए लाल गणेश, मुन्ना तथा कुन्दन की शहादत पर आधारित है। 

उपरोक्त रचना का विडियो वर्जन रचनाकार से सुनने के लिए निचे क्लिक करें..!


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भाईयो,
          आज अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है। सोचा कि अपने मित्रों को कुछ अपनी बात सुनाकर कुछ अपनी गतिविधियों को बताएँ। परन्तु इतने में मेरी नजर राहुलजी के ट्वीट पर पड़ी जिससे सारा मजा किरकिरा हो गया।आइये देखते हैं, अभी अभी राहुल जी के ट्वीट को पढ़ें, हँसी आएगी। उन्होंने कहा कि Narendra Modi is Surender Modi. उन्होंने surrender का spelling भी गलत लिखा है। ठीक है गलती हुई लेकिन एक बच्चा भी जब कुछ लिखता है तो वह एक बार चेक अवश्य करता है। आप को तो सभी फाॅलो करते हैं। आपको ध्यान देने की आवश्यकता थी। दूसरी बात यह है कि ठीक है मोदी कमजोर है लेकिन भारतीय सेना तो मजबूत है।वर्तमान परिस्थिति में  अंतर्राष्ट्रीय नजर इस सीमा पर बनीं हुईं है। उनका हौसला अफजाई के लिए आपको लिखने की आवश्यकता है। आप प्रोपेगेन्डा आर्मी के सदस्य क्यों बने हुए हैं। याद रखें भारत भारतीय सेना माउंटेन वार में दुनिया का सबसे मजबूत है चीन कभी भी नहीं टिक सकता है,क्योंकि 15 june की घटना में जब बिहार रेजिमेंट को उनके कमांडर के शहीद होने की खबर  मालूम हुआ तो उन्होंने बजरंग बली का हुंकार भरी और दुगुने चीनी सैनिकों को उन्हीं के हथियार से मार गिराया। आज 3 मिडीयम रेजीमेंट ने स्वीकार किया है कि उन्होंने 7 चीनी सैनिकों को मार डाला है और एक कर्नल को बंदी बना लिया जिसे बाद में ब्रिगेडियर रेंक के मीटिंग के बाद छोड़ दिया गया। यहाँ एक बात है चीन अपनी विस्तारवादी नीति के कारण सदा ही भारत को सदा ही डराने की कोशिश करता है और इसी कारण से वह भारत को लेह या डोकलाम क्षेत्र में कोई स्ट्रेटिजिक रोड़ बनने देना नहीं चाहता है। परन्तु उसे यह मालूम होना चाहिए कि तह 1962 का भारत नहीं है। एक बात ध्यान रहे कि चीन को युद्ध का ज्यादा अनुभव नहीं है। एक छोटा सा बहुत ही कमजोर वियतनाम से युद्ध किया है। साथ ही जब भी युद्ध की नौबत आती है तो वे लोग ज्यादातर मामलों में नौकरी छोड़ना पसंद करने वाले होते हैं। जबकि युद्ध की परिस्थिति में भारतीयों के जोश का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। आवश्यकता है कुछ प्रतिशत लोगों को सही दिशा में सोचने की। वर्तमान परिस्थिति में हमें एक होने की आवश्यकता है भाई।यहाँ मैं बता दूं कि आपके कार्यकर्ता भारतीय सेना के हर कदम के साथ है परन्तु आपके ट्वीट ने उनकी आस्था को  थोड़ा डगमगा देते हैं क्योंकि आप शीर्षस्थ हैं,स्वाभाविक रूप से आपके मार्गदर्शन में अपनी गतिविधियों को सम्पन्न करेंगे चाहे वह उपरी मन से ही क्यों न हो। क्योंकि अंततः वे भी भारतीय हैं खुन उनका भी खौलता है भारतीय सेना के शहीद होने पर। धन्य हैं आप..!

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समसामयिक..! 
साहेबगंज :- 17 जून 2020. आज बहुत मन उदास है। कुछ महीने पहले मेरे छोटे भाई आकाश पाठक के साथ मेरे घर आया वह जोशीला युवा वीर शहीद कुन्दन कुमार ओझा..! जो भारत-चीन सीमा विवाद में वतन की रक्षा हेतु कल शहीद हो गया..। उसके द्वारा कहा गया एक-एक शब्द मुझे अभी भी याद है..! वह कहता था कि सर जी, मेरे अधिकारी जहाँ जाते हैं, मुझे निश्चित रूप से साथ ले जाते हैं । सही बात भी था क्योंकि वह सबसे आगे अपने ऑफिसर के साथ था..। इसलिए मैं जानता हूँ कि वह कई दुश्मनों को खत्म करने के बाद ही शहीद हुआ है..। यह अधिकारिक सूचना के बाद ही सम्पूर्ण जानकारी मिलेगी..। अभी-अभी तो उसके घर एक लक्ष्मी आईं (जन्म) हैं। खैर 
शहीदों की चिता पर अफसोस नहीं किया करते,
वे सदा ही दिलों में बसते हैं, वे कभी नहीं मरते !
गमगीन हैं आँखें, रोष है, अपने लाल की शहादत को देखकर,
मानो कह रहा है कि मत रो, मैं लौट आऊंगा उसे सबक सिखाकर। 
आज उन्हें मैं अपनी उपरोक्त रचना तथा गीत से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ..! जय हिन्द, जय हिन्द की सेना..!

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समसामयिक....!
साहेबगंज :-  जिला में 21 दिनों तक ABVP कार्यकर्ताओं द्वारा चलाए गए सहयोग कार्यक्रम के तहत मुझे उन युवाओं की निष्ठा, निस्वार्थ प्रेम व सेवाभाव, प्रवासी मजदूरों के प्रति सम्मान, दया व समर्पण का भाव, राष्ट्रप्रेम, कार्यक्षमता तथा कार्यकुशलता से अत्यंत प्रसन्नता हुई..। इस सेवाभाव से उन्होंने विपत्ति के समय एकता स्थापित करने का प्रयास किया जिसमें उन्होंने सिर्फ और सिर्फ प्रवासी मजदूरों को देखा, किसी जाति, धर्म व सम्प्रदाय को नहीं । उन्होंने दिखा दिया कि संघ संस्कृति क्या होती है..। वास्तव में संघ राष्ट्रवाद व सेवा भाव पर आधारित सिर्फ और सिर्फ एक सामाजिक संगठन है जिसमें व्यक्ति निर्माण के तहत राष्ट्र का निर्माण किया जाता है, जिसमें प्रत्येक स्वयंसेवक के लिए एक गिलहरी की भूमिका होती है, जो संघ की शाखाओं में नित्य जाने के क्रम में उनमें स्वतः स्फूर्त आ जाती हैं..। मैं उन सभी कार्यकर्ताओं को अपने अंतर्मन से शुभकामनायें एवं शुभाशिर्वाद देते हुए उनके लिए समृद्ध जीवन की मंगल कामना करता हूँ..। धन्यवाद...।

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सिने कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या से आहत उद्गार..!

सिने जगत है ही ऐसी,
न सभ्यता, न संस्कृति।
जीवन की सारी विकृति, 
इस जगत में है स्वीकृति।

सुशांत तुम तो चले गए,
तुम्हें कौन सी थी विरक्ति। 
किसने दी तुम्हें अनुमति,
परिवार को दे दी विपत्ति।

"पवित्र रिश्ता" से शुरू की,
जीवन में पायी प्रसिद्धि।
पहली फिल्म "काय पो छे"की,
"धोनी" बन सबका दिल जीत ली।

वृद्ध पिता को ऐसे छोड़ दी,
बहन बिलखती यहाँ रह गई। 
माँ जी तो पहले विदा थी,
तुम्हारी कहानी भी"छिछोरे" बन गई।

दिल में अथाह दर्द छिपाए
जीवन का अंत कर गया, 
एक कशक सी रह गई 
और सुशांत मर गया।


(छिछोरे सुशांत सिंह राजपूत की अंतिम फिल्म थी)

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याद आ गए वो दिन...!

क्षेत्र दहला दिया,
क्या इतनी तीव्रता थी?
मानव बना विनाशक,
बस इतनी सभ्यता थी। 
आतंक के साये में पल रहा ये सकरी, 
जहाँ सुरक्षित नहीं, 
एक भी भेड़-बकरी।
इससे तो अच्छा वही पुराना शासन था,
पर्वतों से आच्छादित प्राकृतिक आसन था।
भूल गये बरसाती दिन,
जब पहाडों से उतरता धार गंगा में समाता था,
पर्वतों से निकलता वर्षा की श्वेत धार, 
मन को बड़ा सुहाता था।
खत्म हो गए सारे सजर, 
कवि हृदय कराह रहा,
प्रकृति प्रदत्त यह थल,
अमीरी को सराह रहा।।
कलम की धार आज कुंद है,
इसलिए नहीं कोई आया छंद है।
गंगा की गोद में बसा यह शहर, 
दूर होती गई सारी प्राकृतिक नजर। 
मुश्किलों से भरा है हर एक डगर,
आश है सरकार व प्रशासन से,
कि दिखाएं जरा अपना असर..!


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आज ये दिवस, कल वो दिवस....!

रोज-रोज के दिवस पर,
आता-जाता विचार है।
कभी ए दिन, कभी वो दिन, 
थक जाता हूँ मैं गिन गिन। 
जीवन गुजर गए मनाने में ये दिन,
थोड़ा कर इधर-उधर 
फिर रह जाता हूँ तुम बिन।
कोई कहता,  
दिवस के पीछे बाजार है,
कोई कहता,
बाजार के पीछे व्यापार है।
पर मेरी समझ में 
व्यापार का मकसद परिवार है।
परिवार से ही संसार है,
पर धूमिल होता संस्कार है,
करता कोई नहीं विचार है,
बढ़ता जाता अत्याचार है,
हर जगह होता व्यभिचार है, 
सुसुप्त पड़ती सरकार है।
क्या करे,कहाँ जाए लोग?
इसीलिए दिवस का लगता अंबार है,
अब सिर्फ हँसने की दरकार है।।

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सरस्वती शिशु या विद्या मंदिर भारत का सर्वश्रेष्ठ विशुद्ध शैक्षणिक संस्थान है जहाँ बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया जाता है। भारत की आत्मा में सनातनी सभ्यता व संस्कृति का वास है और यह संस्था इस दृष्टिकोण में एकदम खरा सोना है। यहां बच्चों में आध्यात्मिक,बौद्धिक, वैज्ञानिक, सैद्धांतिक,व्यावहारिक,  व्यावसायिक,  सामाजिक, सांस्कृतिक, शारीरिक,मानसिक तथा एकेडमिक शिक्षा का सम्पूर्ण ज्ञान दिया जाता है।यहाँ ध्यान रहे कि हिन्दी, संस्कृत के साथ साथ वैश्विक व्यवस्था व प्रतियोगिता में बने रहने के लिए बच्चों को उचित अंग्रेजी भाषा का भी भरपूर ज्ञान देने की अनिवार्यता पर जोर दिया जाता है। ताकि हमारे बच्चे आधुनिकता पर आधारित वैश्विक व्यवस्था में पीछे न रह जाएँ। ऐसा सम्पूर्ण ज्ञान की सरिता का प्रवाह अन्य किसी भी संस्था में नहीं होता है। अतः सर्व गुण सम्पन्न व्यक्ति निश्चित रूप से अर्थोपार्जन हेतु सम्पूर्ण कलाओं से परिपूर्ण होने के साथ साथ राष्ट्र के प्रति समर्पित होते हैं। इस प्रकार उपरोक्त सम्पूर्ण तथ्यों को एक वाक्य में कहा जाए तो "यह व्यक्तित्व निर्माण की एक संस्था है।" 

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महान विचारक, सर्वश्रेष्ठ तपस्वी, अद्भुत संन्यासी,अतुल्य कर्मयोगी, शाश्वत मानवता के आदर्श, उत्कृष्ट राष्ट्रभक्त, एवं आध्यात्मिक ज्ञान के शक्तिपुंज, सन्मार्ग पारदर्शिता, प्रचंड आत्मविश्वास से युक्त तथा निष्पक्षता, निर्भीकता, निःस्वार्थता,स्पष्टवादिता,निरहंकारी और निश्चल प्रेम के प्रतीक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक पद पर विभूषित परम ज्ञानी राष्ट्रॠषि परम श्रद्धेय श्री माधव सदाशिव गोलवरकर  जी- " श्री गुरूजी " को उनकी पुण्यतिथि पर कोटिशः नमन करता हूँ। उन्होंने हिन्दू समाज का मनोबल बढ़ाने के लिए समाज का उद्बोधन किया।विभाजन की विभीषका से उत्पन्न  भीषण विपत्ति का धीरज से सामना करने की प्रेरणा दी। सैकड़ों सेवा शिविर के माध्यम से उन्होंने असंख्य निरपराध विस्थापितों के पुनर्वास हेतु समाज का आहवान किया। सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने लोकतंत्र के नाम पर व्यक्ति या व्यक्ति समूह की तानाशाही प्रवृति उत्पन्न होने वाली संभावना पर सत्तारूढ़ दल को सावधान किया। भारत भूमि पर  सामाजिक समरसता तथा एकात्मता को चिरस्थायी बनाने वाले भागीरथी को मैं बारम्बार श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ। 

        साथ ही आज "विश्व पर्यावरण दिवस" के सुअवसर पर आप सबों को शुभकामनाएं देते हुए अनुरोध करता हूँ कि आप सभी विश्व कल्याण के लिए  पार्यावरण की सुरक्षा व संरक्षा हेतु अपना सम्पूर्ण योगदान देने का प्रयास करें। मैंने तो वृक्षारोपण किया। क्या आपने क्या?यदि नहीं तो आज और अभी कम से कम एक पेड़ लगाएँ न, अपने भावी पीढ़ियों के कल्याण के लिए। 

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माँ भारती का हो अभिनन्दन...!
हर पल, हर क्षण,
स्वस्थ्य तन, स्वस्थ्य मन,
सृष्टि का कण-कण ,
प्रफुल्लित हों मानव जीवन।

देश में हो स्वावलम्बन,
आतंक का हो आत्मसमर्पण, 
अखंड भारत की जोत प्रज्वलन, 
अमर रहे यह धर्म सनातन।

छद्म धर्मनिरपेक्षता पर हो आत्म-मंथन,
सौहार्दपूर्ण हो सबका ये मन, 
गान करे सब जण-गण-मण,
विशुद्ध विचार का हो अभिनन्दन।।
स्वनिर्मित उपभोग का हो मन,
समृद्ध बनेगा भारत का जन,
पर राष्ट्र को मिले निमंत्रण, 
पर उस पर हो अपना नियंत्रण।

सुन्दर सा हो अपना गणतंत्र,
पक्ष-विपक्ष करे आत्म-मंथन,
भारत भारतीय का हो नवसृजन,
नवभारत का करो अभिनन्दन।।

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ये दिल है कि मानता नहीं..!

इस कोरोना संक्रमण काल में,
दिन है कि कटता नहीं, 
आस देखता हूँ किसी का,
कोई है कि घर आता नहीं।

व्यग्रता लिए, 
तुफान सा उठता है कभी-कभी, 
शांत रहने की कोशिश करूँ,
पर ये दिल है कि मानता नहीं।

सोचता हूँ कि दूर कहीं निकल जाउँ, 
कहीं किसी अपनों के पास, 
पर सुनी सडकें,
कहीं कोई है कि पहिया मिलता नहीं। 

कब तक,यह चलता रहे, पूँछता हूँ ,
पर कोई है कि मुझे यह बताता नहीं।

जग सुना, सुनी है गलियाँ, 
कोई है कि आता जाता नहीं,
यहाँ तक कि ईद का दिन है, 
कोई है कि गले लगाता नहीं।

कोई है कि गले लगाता नहीं। 
कोई है कि गले लगाता नहीं।।



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प्रवासी मजदूर..!
हर गाँव, हर शहर, 
चल रहा कोरोना कहर,
समस्या हीं समस्या, 
हर घड़ी, हर डगर।

कोई लेने वाला नहीं खबर,
इन्सानियत जिन्दा है मगर,
ऐसे में कोई उन्हें संभाले अगर,
कर दे कोई आसान उनकी डगर।

हाँ मुझे चिंता है उनकी,
जो भटकते हैं पैदल शहर शहर,
दया नहीं आती उनपर,
जो फैला रहा राजनीतिक जहर।

हाँ सामने आता है प्रवासी मजदूर,
जिनकी समस्या है भरपूर, 
उनकी कोई मदद करो हुजूर, 
उन्हें घर जाना है जरूर।

बढ़े चलो, तुम हो कर्मवीर, 
अवश्य जागेगा किसी का जमीर,
बनेगा मददगार कोई अमीर, 
जो मंजिल तक पहुँचाएगा तुम्हें सशरीर।



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सुप्रभात..............
हे मेरे दयालु कृपानिधान !
मेरी सुबह की प्रार्थना मान,
सबों को दे दे प्रेम का दान,
विश्व का कर दे कल्याण।।

तोड़ दे चीनी मिथ्या अभिमान ,
कोरोना नहीं है अच्छा मेहमान। 
विश्व बंधुत्व का सबको हो भान,
बनी रहे हमारा भारत की शान।।
जय हिंद !


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हाँ बंधु,
मुझे इससे भी ज्यादा मुहब्बत होती है 
जब मैं खिले पुष्प को देखता हूँ,
मुझे इससे भी ज्यादा मुहब्बत होती है।
जब किसी की प्रेमिका रोती है, 
तो मुहब्बत इससे भी ज्यादा होती है। 
जब कोई भूखे पेट सोता है तो मुझे, 
उससे इससे भी ज्यादा मुहब्बत होती है।
इस अवधि में जब किसी की आत्मा रोती है, 
तो मुझे उससे इससे भी ज्यादा मुहब्बत होती है।
जब ऐसे लोगों की कोई मदद होती है, 
तो मददगार के लिए मुझे 
इससे भी ज्यादा मुहब्बत होती है।
और जब कोई मेरी इस आकस्मिक रचना पर हँसता है, 
तो मुझे उससे इससे भी ज्यादा मुहब्बत होती है। 
यदि औरों की तरह आप को भी हँसी आती है, 
तो मुझे आपसे इससे भी ज्यादा मुहब्बत होती है।



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आज अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता स्वतंत्रता दिवस है।
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ प्रेस और इसकी स्वतंत्रता गणतन्त्रात्मक पद्धति को उत्कृष्ट बनाता है। आवश्यकता है तथ्यों के  सकारात्मक स्वरूप को प्रस्तुत कर पत्रकारिता में उच्च आदर्श स्थापित करने की।
    एक कहावत है कि ज्यादा "नारद" बनने की कोशिश मत करें। वास्तव में भारतीय आध्यात्म में ये नारदजी हीं थे जो तीनों लोकों में विचरण कर संवाद वाहक के रूप प्रसिद्धि प्राप्त की।इसीलिए नारद जी को विश्व का प्रथम पत्रकार कहा गया है।
    आज प्रेस दिवस के मौके पर मैं अपने क्षेत्र के समस्त पत्रकारों को शुभकामनायें देता हूँ जिसमें इस क्षेत्र के एक
ऐसे निर्भीक, निष्पक्ष, उत्कृष्ट,प्रखर, प्रख्यात, कर्तव्यनिष्ठ, स्वतंत्र एवं युवा पत्रकार श्री निर्भय कुमार ओझा को बधाई देता हूँ जिन्होंने अपनी  यश, अपयश, हानि, लाभ आदि की चिंता किए बगैर सोशल मिडिया में फेसबुक लाइव चलाकर पत्रकारिता के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी अभियान की शुरुआत कर दी है और अपने पत्रकारिता का लोहा मनवाकर अपने नाम "निर्भय" की सार्थकता को सिद्ध किया है। आज इनका यह लाइव शो साहेबगंज हीं नहीं बल्कि प्रांत, देश और विश्व स्तर पर कौतूहल का केंद्र है जिसमें इन्होंने कई नामी गिरामी लोगों का इन्टरव्यू लेकर क्षेत्र का मान बढ़ाया है।
     संयोग से यह मेरा शिष्य भी है और मैं इसके उज्जवल व समृद्ध भविष्य की मंगल कामना करता हूँ ।
धन्यवाद।

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मैं अपनी यह कविता उन कोरोना वारियर्स के नाम समर्पित करता हूँ जो अपनी जान की परवाह किए बिना देशहित के लिए कार्यरत हैं..। 

              ज्ञान दर्पण..! 
निष्ठा से करो कर्म,संतोष मिलता है, 
दान दो सुपात्र को,आनन्द मिलता है।
झूठे वादों से कर लो सदा परहेज,
कदापि न जाओ कमाने परदेश।।

अपना देश सदा अपना हीं होता है,
चैन की बंसी बजती है,सुख होता है।
दया धर्म है, क्रोध है पाप,
शास्त्रों के पालन से मिटता है शाप।।

स्वस्थ शरीर में बसता है स्वच्छ मन,
स्वच्छ वातावरण में हीं रहता है धन।
कल की छोड़ो,जो करना है अभी कर लो,
वर्तमान में रहकर,जीवन में खुशियाँ भर लो।।



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कुदरत की लीला..!

कुदरत की लीला है अपरम्पार। 
सोच लो, समझ लो, इसे बारम्बार ।।

चाहो कुछ भी,पर होगा वही जो विधाता ने है गढ़ा।
भले तुम कितने भी हो महान,पर विधाता से न है बड़ा।।

कहीं धूप, कहीं छाया, यह है प्रकृति की काया ।
कहीं वर्षा, कहीं सुखा,यह है प्रभु की माया ।।


फूल बहुतेरे, कोई लाल,कोई नीला,कोई सादा,कोई पीला।
दुनिया में कोई राजा,कोई रंक,यह है कुदरत की लीला।।

कुदरत के हैं बहुतेरे रंग ।
उनकी लीला के हीं रहो संग।।

श्रम करते हुए खुशियाँ बाँटते रहिए ।
जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिए ।।

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लचीलापन...! 

झूक जाना, सुन लेना या मान लेना है लचीलापन, 
समय देख परखकर ढ़ल जाना हीं है लचीलापन ।
रार नहीं ठानना हीं है लचीलापन, 
सह लेना या मान लेना हीं है लचीलापन ।

विनम्रता लचीलापन को कहते हैं, 
फलदार वृक्ष हीं झूका करते हैं ।
क्षमा करना या क्षमा माँगना लचीलापन है,
दुखियों के दुख हर लेना हीं लचीलापन है ।

लचीलापन जिद्दी आदत का है विलोम,
अकड़ने की आदत को करता  है होम।
सुलह या समाधान करना हीं है लचीलापन,
सहयोगी बन सहिष्णुता दिखाना है लचीलापन ।

समय देखकर पाला बदल लेना भी लचीलापन है,
पर राजनीति में पार्टी बदल लेना तो खोखलापन है ।
एक विचारधारा पर अडिग रहना लचीलापन नहीं है,
पर जीवन को एक विचारधारा पर आधारित रखना हीं सही है।

शांतिपुर्वक जीवन के लिए लचीलापन आवश्यक है,
आनंदमय जीवन का लचीलापन व्यवस्थापक है।
लचीलापन व्यक्तित्व विकास का आधार है  
पर स्वार्थपूर्ण विकास भी तो अत्याचार है । 

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साहिबगंज :- 15/11/2019. 
जेएनयू(JNU) :- शिक्षा संस्थान या राजनीतिक मैंदान..। शेहला रसीद, उमर खालिद तथा कन्हैया कुमार की जन्मभूमि जेएनयू (JNU) की गतिविधियों पर अंकुश ज़रूरी है..। इस विश्वविद्यालय की बिमारी और बुराई सिर पर चढ़ चुकी है। सुनकर दुख हुआ कि देश के ऋषितुल्य स्वामी विवेकानंद की मूर्ति को तोडऩे मे कौन सा मजा आया इन जेएनयू के तथाकथित विद्वान विद्यार्थियों को..।
सरकार के भी न जाने क्या मजबूरी है जो इस शिशुपाल रूपी जेएनयू के सौ पाप पूरे नहीं हो पा रहे हैं और भारत भूमि पर किसी कृष्ण का प्रादुर्भाव हो और ऐसी संस्था को सदगति प्राप्त हो । मुझे तो ऐसा लगता है कि ये विद्यार्थी नहीं गिरोहबंद अपराधी हैं और ये निश्चित लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। इनकी नकेल न कसना घातक होगा।
जेएनयू देश के सीने पर एक नासूर है।चाहे कपिल सिब्बल साहब हों या स्मृति ईरानी फिर प्रकाश जावड़ेकर और अब उनके उत्तराधिकारी रमेश पोखरियाल " निशंक " सबों की छवि इस क्षेत्र में किसी झोला छाप डॉक्टर से बेहतर नहीं दिख रही है। 
ईमानदारी से कहूँ तो बता दूँ कि  देश का भविष्य तय करने वाला  मंत्रालय दांत चियारने से नहीं चलता है । स्वायत्त संस्था में स्वायत्तता की परिभाषा और सीमा क्या है,निर्धारित होनी चाहिए ताकि संस्था निश्कलंकित चलता रहे ?
जेएनयू के भारत तेरे टुकड़े गेंग तथा निरंकुश और देशभंजक लौंडों ने निर्विवाद एवं आधुनिक भारत के देवतुल्य स्वामी विवेकानन्द जी की मूर्ति भी तोड़ दी ! ये छात्र नहीं बल्कि गिरोहबंद अपराधी हैं।
मुझे समझ नहीं आ रहा है कि जेएनयू को लेकर सरकार इतनी लाचार क्यों बनी हुई है समझ से परे है।
हे ईश्वर इन्हें सदबुद्धि दें।

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साहिबगंज:- 14/11/2019.

बाल मेला एवं प्रतियोगिता का आयोजन..! टाउन हॉल, साहिबगंज स्थित वंडर किड्स एकेडमी में पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिन बाल दिवस के रूप में मनाया गया..! उक्त बाल दिवस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित हुआ..! उक्त मौके पर बच्चों से जुड़े विभिन्न मुद्दों जैसे शिक्षा, संस्कार, उनकी सेहत, मानसिक और शारीरिक विकास हेतु जरूरी विषयों, बाल-श्रम एवं बाल-शोषण जैसे गंभीर मुद्दों पर विचार-विमर्श व पर्यावरण संरक्षण चित्रांकन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया..! कार्यक्रम में सम्मिलित बच्चों की क्षमता और प्रतिभा को बढ़ावा देने हेतु उनके विलक्षण योग्यता को परखा..। बाल-दिवस पूर्णत: बच्चों के लिए समर्पित है। बच्चे देश का भविष्य हैं, वे ऐसे बीज के समान हैं जिन्हें दिया गया पोषण उनके विकास और गुणवत्ता का निर्धारित करेगा..। पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहबाद में हुआ था..। उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है..। नेहरू जी का बच्चों से बड़ा स्नेह था और वे बच्चों को देश का भावी निर्माता मानते थे..। बच्चों के प्रति उनके इस स्नेह भाव के कारण बच्चे भी उनसे बेहद लगाव और प्रेम रखते थे और उन्हें चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे..। यही कारण है कि नेहरू जी के जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है..। 

बच्चे नाजुक मन के होते हैं और हर छोटी चीज या बात उनके दिमाग पर असर डालती है। उनका आज, देश के आने वाले कल के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसलिए उनके क्रियाकलापों, उन्हें दिए जाने वाले ज्ञान और संस्कारों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही बच्चों की मानसिक और शारीरिक सेहत का ख्याल रखना भी बेहद जरूरी है। बच्चों को सही शिक्षा, पोषण, संस्कार मिले य‍ह देशहित के लिए बेहद अहम है, क्योंकि आज के बच्चे ही कल का भविष्य है। वंडर किड्स एकेडमी में बच्चों के विलक्षण प्रतिभा को उभारने में स्कूल की मुख्य शिक्षिका सह निदेशक कुमारी गरिमा का सराहनीय योगदान रहा..। 

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विलुप्त होती गंगधारा..!


अंधेरी रात में 
गंगा के किनारे 
सुनसान 
एकटक निहारता,
वही पुरानी यादें ।
क्या वो यही गंगधारा है?
जो सदियों से निश्छल,निश्कलंकित बहती 
समरसता का भाव जगाती ,
समुद्र में गिरने के पूर्व 
एकता का भाव जगाती है ।
नहीं कभी भी नहीं, 
पहचानता हूँ मैं 
उन धाराओं को ।
याद है मुझे, 
वह बचपन की मधुर यादें, 
दौड़कर छलांगें लगाना 
माँ की गालियाँ सुनना ।
याद है मुझे 
भींगे कमरबंध पर 
माँ द्वारा चपत लगाना ।
आज निःसंदेह दुख है,
बस स्मृति शेष है, 
रोता हूँ, गंगा की बेबसी पर ।
ना गंगा है, ना निश्छल धारा, 
यहाँ सिर्फ कसूर है हमारा, 
उनका सम्मान जरूरी है,
उनकी स्वच्छता जरूरी है,
धारा रूठ गयी,
साहेबगंज की तरह,
सरकारी इमानदार संरक्षण जरूरी है ।
आएं हम सब मिलकर 
एक प्रण करें, 
प्रण करें-
स्वच्छता की,
प्रण करें-
सामाजिक समरसता की,
साम्प्रदायिक सौहार्द की, 
प्रेरित करें-
सरकारी इमानदार संरक्षण की,
सरकारी सहायता की,
मुहाने की सफाई की ,
गंगा परियोजनाओं की।
जय हो 
गंगा माँ की ।


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साहिबगंज :- 09/11/2019. एक समीक्षा :- कवियों की चर्चा करें तो सैकड़ों बड़े-बड़े नाम सहज हीं सामने आ जाते हैं, परंतु दुर्भाग्यवश हिन्दी साहित्य में कवयित्रियों को वह जगह नहीं मिल पाई है जिसका वे हकदार हैं ।गिने-चुने कुछ नाम रह जाते हैं जिनके लेखनी से प्रस्फुटित शब्दों के जादू ने सबको सम्मोहित किया है और उनमें सरोजनी नायडू, कमला सुरैय्या, महादेवी वर्मा, बालामणि अम्मा, मीराबाई, नंदिनी साहू, सुभद्रा कुमारी चौहान, अमृता प्रीतम आदि नाम प्रसिद्ध हैं ।
परंतु राजमहल जैसे एक छोटे नगर के छोटी सी गलियों से उदित तथा वर्तमान महानगर कोलकाता की शोभा बढ़ाने वाली "शावर भकत" वास्तव में लेखन कला की "भवानी" हैं । मुख मंडल की सुंदरता व तेज आभा से आच्छादित आधुनिक युग की "शावर भकत भवानी" की लेखनी व उनके द्वारा शब्दों का चयन समय और काल से परे भाषा के बंधनों से आजाद और बेबाक हैं ।उनकी काव्यसंग्रह "अरुणोदय" से मैं  इतना प्रभावित हूँ कि उनका नाम प्रथमतः साहित्य अकादमी पुरस्कार व अंततः ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए सिफारिश करना चाहता हूँ । इनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ तथा आशा करता हूं कि पाठकों को यह पुस्तक "अरुणोदय" रोमांचित करेगा और पुस्तक हिंदी साहित्य में युगों युगों  तक अपनी पहचान बनाए रखेगा।
  मैं कविता की कुछ पंक्तियों  द्वारा इनके कवितासंग्रह अरुणोदय के साथ साथ  "शावर भकत भवानी" की महिमामंडित कर अपने वाक्य को विराम देता हूँ:-
राजमहल की "बेटी" है,
हिन्दी में "आशा की किरण" है,
गंगधारा से बहकर,
"समुन्दर की गोद में जीवन" है।
"कवि","प्यारी सखी", "स्त्री मन चंदन",
"स्वागत" है,शायद राजमहल व कोलकाता का प्रणय मिलन है।
"कसक ही रह गई","स्मृतियाँ"शेष रह गईं, 
"आँसू", "विरह","घुटन" "बालपन" छोड़ 
"अतुल्य हिन्दी" की "अस्तित्व" बचाने "भवानी" चलीं गईं ।
"कलम" साथ "अध्यापिका","विद्या की देवी "
"वतन " की "सैनिक" "दुर्गा" चली गईं ।
परंतु सोचता हूँ अच्छा है,
"देश अपना है"
"पर्यावरण हमारा है"
"व्यस्तता" "बहुत है"
"क्या कहूँ "
इस हिंगलिश युग में हिन्दी का "अस्तित्व" बचाने "भवानी" चलीं गईं ।
"अग्निपरीझा" है हिन्दी साहित्य की जब
होगा शावर भकत भवानी का अभ्युदय, 
जाग उठेगी मनोभावना,
जब प्रचलित होगा "अरुणोदय"।
शुभकामनाएं। 
सुबोध कुमार झा 
  (व्याख्याता) 
अर्थशास्त्र विभाग..।

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