लघुकथा :- सौ रूपये की सब्जी..!
"क्या क्या लाना है?" रमेश ने पूछा
आलू, प्याज, भिंडी और टमाटर। हरी मिर्च भी मांग लेना जी,फ्री में दे देंगे दुकानदार ; पत्नी ने बताया।
"अब तो रोने का मन करता है, पास में है सौ रूपये और थमा दी बड़ा झोला। झोले का चौथाई भाग भी नहीं भरेगा सौ रूपये की सब्जी से" रमेश ने कहा।
पत्नी ने दूसरी छोटी झोली लाकर पति को देते हुए कहा,"सौ रूपये में जितनी मिले ले लेना।"
रमेश महंगाई के लिए एक भद्दी गाली देते हुए सब्जी लाने चला गया।
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लघुकथा :- प्रतिवाद..!
कस्बे के रघु बाबू ने चाटुकारिता और राजनीतिक पहुंच से दो तीन साल में काफी धन संपत्ति कमा ली थी। महीने दो महीने में कभी अफसरों को तो कभी इंजीनियरों को घर पर पार्टी देते थे।
रघु बाबू की दौलत बढ़ी,रुतबा बढ़ा लेकिन दिन प्रतिदिन चरित्र बिगड़ता गया। उनके साथ रहकर नौकर हरिया को भी शराब की लत लग गई। फ्री में शराब मिलने जो लगी।
एक दिन रघु बाबू हरिया के घर पहुंचे। हरिया की पत्नी घर में अकेली थी। रघु बाबू हाथ में पांच सौ रुपये लेकर बुरी नियत से उसका हाथ पकड़ने आगे बढ़े।
"खबरदार! बगल में रखी हंसिया हाथ में लेकर हरिया की पत्नी ने कहा, पहले मेरे पति को बिगाड़ा, नशेड़ी बना दिया, अब मुझे बिगाड़ने की सोचते हो। पैसे से मेरी अस्मत खरीदना चाहते हो।
हरिया की पत्नी के प्रतिवाद से रघु बाबू भीगी बिल्ली सा बन गए।
"तुरंत मेरे घर से निकल जाओ वरना जिंदा नहीं रहोगे हरामी,कभी मेरे दरवाजे पर पैर रखने की हिम्मत नहीं करना" हरिया की पत्नी के अंतिम वाक्य रघु बाबू के दिमाग में घूम रहे थे।
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एक आलीशान मकान के सामने
मजदूर एक खड़ा अकेला
चालीस साल पहले की बात
सोच रहा था बेचारा
मैंने महीनों काम किया है
कड़ी धूप और बारिश में
और भी मजदूर थे साथ मेरे
पच्चीस थी उम्र मेरी
आज पैंसठ में लाचार बूढ़ा
आंखों में ज्योति कम
शरीर में नहीं रहा दम
मालिक इस मकान का
अस्सी साल का होगा
फुर्तीला नौजवान सा
फियेट से उतरते देखा
सामने खड़े बूढ़े को
भिखारी समझ मालिक ने
पांच का सिक्का थमा दिया
कुछ कहता बूढ़ा पर
मालिक को क्या पता
किसके पसीने की खुश्बू से
उसका यह मकान खड़ा?
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भीमराव अंबेडकर महान व्यक्तित्व..!
14 अप्रैल बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिवस बनता जा रहा है भारतीय इतिहास और राजनीति में। स्वतंत्र भारत के संविधान के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले विद्वान और दूरदर्शी राजनेता भीमराव अम्बेडकर की जयंती आज ही के दिन मनाई जाती है।
प्रतिकूल परिस्थितियों का दृढ़ता से मुकाबला कर अपने अदम्य साहस और इच्छा से ऊंची से ऊंची शिक्षा की डिग्री हासिल करने वाले इस महान भारतीय का जन्म तथाकथित एक अछूत परिवार में 14 अप्रैल 1891 को हुआ था।
1907 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और बॉम्बे विश्विद्यालय से 1912 में स्नातक की परीक्षा पास की। अमेरिका और लंदन के विश्वविख्यात शैक्षणिक संस्थानों से इन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
इनकी शैक्षणिक योग्यता का लोहा पूरे विश्व के विद्वत समाज ने माना।।
अपनी पढ़ाई पूरी कर अंबेडकर जी ने 1917 से ही सामाजिक न्याय और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए मैदान में उतर पड़े। गांधीजी भी 1915 से भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए कमर कस ली। अंबेडकर शुरू से ही कुशाग्र बुद्धि और तेज विद्यार्थी थे जबकि गांधीजी एक औसत दर्जे के विद्यार्थी थे।
दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि अलग अलग थी ।गांधीजी का परिवार सुखी संपन्न था तो अंबेडकर का परिवार बहुत ही गरीब था।
तीस और चालीस दशक में दोनों नेताओं के वैचारिक मतभेद खासकर अछूत जाति के विकास और कल्याण के तरीकों और सिद्धांतों को लेकर जगजाहिर है।
भारतीय राजनीति में गांधीजी सर्वमान्य नेता थे लेकिन अंबेडकर जैसे व्यक्तित्व की उपेक्षा करना भी संभव नहीं था।
गांधीजी के दवाब से ही नेहरू मंत्रिमंडल में अंबेडकर को स्वतंत्र भारत का प्रथम कानून मंत्री बनाया गया।
29 अगस्त 1947 को भीमराव अम्बेडकर को संविधान समिति के प्रारूप समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन उन्होंने पूरी ईमानदारी और सफलतापूर्वक किया। दो साल ग्यारह महीने और अठारह दिन लग गए आजाद भारत के संविधान के निर्माण में। संविधान समिति के सभी सदस्यों के योगदान को स्वीकार करते हूं भीमराव अम्बेडकर को भारतीय संविधान का पिता कहा जाता है।
26 जनवरी 1950 को भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्त्व संपन्न गणराज्य बना। नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल रहकर अंबेडकर ने अपने कुशल नेतृत्व और गंभीर विद्वता का परिचय दिया।
इस महापुरुष की मृत्यु मात्र 65 साल की उम्र में 6 दिसंबर 1956 को हो गई। मृत्य के 34 साल बाद भारत सरकार ने भीमराव अम्बेडकर को भारत रत्न से सम्मानित किया। इनकी जन्मतिथि को राजकीय सम्मान के साथ पूरे देश में मनाई जाती है।
भीमराव अंबेडकर कुशल वक्ता,लेखक, विधिवेत्ता, भाषाशास्त्री और लोकप्रिय जननेता थे। इन्होंने कई किताबें लिखी है। इनके कृतितत्व और व्यक्तित्व पर देश विदेश में दर्जनों किताबें लिखी गई है। 1990 से अबतक हिंदी,अंग्रेजी मराठी,तेलुगु, कन्नड़ आदि भाषाओं में चौदह फिल्में और कई टीवी धारावाहिक बनी हैं।
अंबेडकर ने कहा है कि मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता समानता और भाईचारा सिखाए। मानवता के पुजारी भीमराव अम्बेडकर ने शिक्षा को हर तरह की दासता से मुक्ति का साधन माना है।
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कविता :- मां..!
वात्सल्य से बड़ा प्रेम नहीं
अपत्यस्नेह-सा दूजा कुछ नहीं
मातृ रुधिर से बनती संतान
कितना पवित्र स्तनपान।
संतान के लिए जीती मां
मां सदा देवी समान
मातृ स्पर्श से पुलकित शिशु
खेलते हंसते मीठी मुस्कान।
कितनी भी व्यस्त हो जननी
रखती सदा बच्चे का ध्यान
सबसे बड़ी रक्षक है माता
सुर नर करते मां को प्रणाम।
मां की छाया मां की कृपा
प्रकृति का अनुपम दान
मां तेरे चरणों में जन्नत
आंचल तेरा सदा महान।
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शीर्षक :- दो टूक बात..!
"आपने शादी के पहले खुद मुझसे बहुत सारी जानकारी ली। फिर दूसरों से क्यों तुलना? मैंने तो कभी अपनी डिग्री की गलत सूचना नहीं दी।"
पत्नी की बातों से आकाश को लगा पत्नी आज मूड बना कर बात कर रही है,
"आज तुम बहुत नाराज़ हो?"
"मैं नाराज़ नहीं हूं,नाराज होकर भी क्या कर सकती हूं," नीला ने कहा।
"तो फिर?"
"आप मेरे पति हैं। आपकी जिन बातों से मुझे दुख होता है उसकी चर्चा बाहर नहीं करना चाहा,अपने माता पिता से भी नहीं,इसी लिए आपसे की।"
"दूसरों की पत्नी से तुलना करना मुझे खराब लगा। हर इंसान की अपनी अलग अलग शख्शियत होती है।"
" हां इसे मैं मानता हूं" आकाश को लगा कि नीला इतनी साधारण नहीं है जितना वह समझता है।
"आप मर्द लोग दूसरों की बीबी की प्रशंसा कितनी आसानी से कर लेते हैं। कोई औरत पराए मर्द की प्रशंसा कर दे तो उसे बदचलन तक कहने से बाज नहीं आता उसका मर्द" नीला ने कहा।
"बस करो मैडम,आपकी बातों में दम है।चलो अब चाय तो पिला दो" आकाश ने कहा।
अपनी दो टूक बात से आकाश को पहली बार पराजित देख हँस पड़ी नीला और चाय बनाने किचेन में चली गई।
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हाइकु..!
1.
होली के रंग
महकते गुलाल
फागुनी मस्ती।
2.
होली आई रे
मन में है तरंग
खेले अनंग
3.
प्रेम का पर्व
दिल से दिल मिले
रंग बरसे।
4
होली के गीत
बूढ़ा हुआ जवान
बौराया मन।
5
गोरी के गाल
मुट्ठी भर गुलाल
खिला गुलाब।
6
दंभ की हार
होलिका जल गई
प्रह्लाद बचा।
7
रंग से दूरी
महामारी का भय
शब्दों की होली।
8
भींगा बदन
शराबी हुआ मन
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प्यारी चिड़िया :- गौरैया..!
गौरैया एक बहुत ही प्यारी पक्षी है जो हमारे आस पास ही रहना पसंद करती है। पहले यह गांव शहर सभी जगह दिख जाती थी लेकिन आज गौरैया विलुप्ति के कगार पर है। सर्वेक्षणों के आधार पर इनकी संख्या में 75 प्रतिशत की कमी आ गई है।
दुनिया भर में गौरैया की 26 प्रजातियां हैं जबकि उनमें से 5 भारत में पाई जाती हैं।
गौरैया की लंबाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है और इनका वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है।रंग रूप और कद में नर और मादा में थोड़ा अंतर होता है।
साल में गौरैया तीन से चार अंडे देती है। दस ग्यारह दिनों के बाद अंडों से बच्चे निकल जाते हैं। सात दिनों के बाद बच्चे घोंसलों से निकल आते हैं और तीन चार दिन में स्वतंत्र रूप से उड़ने चहकने और खाने पीने लगते हैं।नर गौरेया घोंसला बनाने में तथा मादा गौरैया बच्चों को खिलाने में भूमिका निभाती है। एक गौरैया का जीवन काल 12 से 15 वर्षों का होता है।
गौरैया अधिकतर झुंड में रहती है। भोजन तलाशने के लिए गौरैया का एक एक झुंड अधिकतर दो मील की दूरी तय करता है।
गौरेया के संरक्षण तथा पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से प्रति वर्ष 20 मार्च को " विश्व गौरैया दिवस" मनाया जाता है। नेचर फॉरेवर सोसाइटी के अध्यक्ष मोहम्मद दिलावर के प्रयासों से 2010 से विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। भारत के दिल्ली तथा बिहार का राजकीय पक्षी गौरैया ही है।
गौरैया का महत्त्व :
पर्यावरण संतुलन में गौरैया महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।गौरैया अपने चूजों को अल्फा और कैटवर्म नामक कीड़े खिलाती है जो पेड़ पौधों के लिए काफी खतरनाक होते हैं। गौरैया मानसून के मौसम में दिखाई देने वाले कीड़े भी खाती है।1958 में चीन में गौरैया को मारने की योजना चलाई गई और लाखों की तादाद में गौरैया का निधन किया गया। गौरैया न रहने से कीड़ों की बहुतायत से फसल की काफी क्षति हुई और अनाज के अभाव में अकाल का सामना करना पड़ा। बाद में गौरैया के संरक्षण के लिए कदम उठाए गए।
दाना-पानी जैसी संस्थाओं के अलावा विश्वभर में बहुत सी संस्थाएं गौरैया के संरक्षण एवम संवर्द्धन हेतु अभियान शुरू किया है।
आजकल पेड़ पौधों के कटान तथा आधुनिक भवन निर्माण में गौरैया के लिए घोंसला बनाने की जगह नहीं रहने के कारण गौरेया गांव शहरों से दूर चली जा रही है।
हमें गौरैया के प्रति मेहरबान होना चाहिए। उनके घौसलों को सुरक्षित रखना चाहिए।
दाना पानी के अभाव में गौरैया का जीना दूभर न हो इसकी व्यवस्था करनी चाहिए। गर्मी के दिनों में गौरैया को पीने के लिए तथा जलक्रीड़ा के लिए बर्तनों,कनस्तरों में पानी रख देना चाहिए।
मोबाइल तथा टावर रेडिएशन से गौरैया की प्रजनन शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है,हमें इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
साग सब्जियों,पौधों में कीटनाशक दवाओं का सीमित प्रयोग गौरैया के संरक्षण के लिए जरूरी है।
आइए,इस विश्व गौरैया दिवस के उपलक्ष्य में गौरैया के संरक्षण हेतु अपनी जिम्मेदारियां निभाने की शपथ लेते हैं।
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आलेख :- गौरैया और हम..!
आज विश्व गौरैया दिवस है। दिनानुदिन गौरैया की घटती संख्या से न सिर्फ पर्यावरणविद बल्कि आम आदमी भी चिंतित दिख रहे हैं। गौरेया की संख्या में 60 से 80 फीसदी की कमी आई है जिससे प्राकृतिक असुंतलन और पर्यावरण प्रदूषण का खतरा गहराता जा रहा है। गौरैया के संरक्षण हेतु आम आदमी में जागरूकता पैदा करने तथा उचित व्यवस्था करने लिए इस विषय पर अखबारों एवम सोशल मीडिया में आज खूब लिखा गया है।
मैंने भी आलेख,कविता और लघुकथा लिखी है। मेरे स्नेही वरिष्ठ पत्रकार श्री सच्चिदानंद मिश्रा,साहिबगंज की सलाह से उनके निर्देशों के अनुरूप यह दूसरा आलेख प्रस्तुत है।
गौरैया के संरक्षण के लिए हम क्या करें..??
गौरैया एक प्यारी और घरेलू पक्षी है। जहां कहीं इंसानों की आबादी है वहां रहना पसंद करती है क्योंकि घोंसले बनाने के लिए उपयुक्त जगह मिल जाती है और दाना पानी भी। लेकिन कैंकरिट संस्कृति और नगरायण के चलते इनके रहने और खाने पीने का संकट खड़ा हो गया है।
1. पहले फूस या खपरैल के मकान होते थे,पक्के मकान में भी खुले रोशनदान होते थे; गौरैया को आसानी से अपना घोंसला बनाने की जगह मिल जाती थी।
झाड़ी छोटे नींबू,कनेर अमरूद अनार के पेड़ों में भी गौरैया घोंसला बनाती है। ये सब पेड़ लगभग सभी के घर आंगन में होते थे।
हमें चाहिए कि घर आंगन में लगे पेड़ न काटें, नए पेड़ पौधे लगाएं,गौरैया को घोंसला बनाने दें।
छत पर सुरक्षित जगहों पर जूते के पुराने बक्से,प्लास्टिक के डब्बों आदि को कृत्रिम घोंसला का आकार देकर रखें।
2. आजकल छोटी दुकानों की जगह मॉल खुल रहे हैं जिससे गौरैया को खाने के लिए खुला अनाज दाल या तेलहन नहीं मिल रहा है। हमें चाहिए कि गौरैया के लिए दाना पानी की थोड़ी बहुत व्यवस्था कर दें। रसोईघर के बचे भोजन तथा जूठन गौरैया को खाने के लिए दे दें।
3.गौरैया अपने चूजों को कीट पतंग खिलाती है। खेत खलिहानों में उर्वरक कीटनाशक का सीमित प्रयोग करें ताकि इनके चूजों को खिलाने के लिए खेत खलिहानों में कीड़े भी मिल जाए।
4.मोबाइल तथा टावर के तरंगों का बुरा प्रभाव पड़ता है गौरैया की प्रजनन शक्ति पर।पेड़ पौधों से दूर ही हो टावर।
5. बहुत सी संस्थाएं के द्वारा गौरेया के संरक्षण हेतु अभियान चलाया जा है। निःशुल्क कृत्रिम घोंसले, दाना पानी आदि वितरित किए जा रहे हैं। आम जनता,छात्र छात्राओं तथा युवाओं की भी इसमें भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में पहल करनी चाहिए।
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प्रेरक प्रसंग:- ईश्वर चंद्र विद्यासागर..!
कुली! कुली!
ट्रेन से उतरते ही एक तीस साल के युवक ने जोर से आवाज लगाई।इधर उधर रेलवे के किसी कुली को न को पाकर वह परेशान सा हो गया।
उसके हाथ में एक छोटा सा संदूक भी था। युवक मन ही मन गुस्साया और बोला,धत कितना छोटा स्टेशन है यह कर्मा टांड़।बिल्कुल देहाती जगह है।क्यों विद्यासागर महाशय इस गांव में रहने का निश्चय किया है।
स्टेशन पर एक अधेढ़ जो धोती कुर्ता पहने था उस युवक के सामने आया।
युवक उसे कुली समझकर अपना संदूक थमाया और कहा चलो ,विद्यासागर महाशय के यहां; तुम्हे चार आने दूंगा।
अधेढ़ ने कुछ नहीं कहा।इशारे से सम्मति जताई और संदूक लेकर युवक के साथ साथ चलने लगा।
अपने गंतव्य जगह पहुंचकर युवक ने संदूक अपने हाथों लिया और अधेढ़ व्यक्ति को एक आना के चार सिक्के देना चाहा।
अधेढ़ ने सिक्के नहीं लिए और कहा, आप किनसे मिलने आए हैं?
युवक ने विद्यासागर महाशय का नाम लिया।
अधेढ़ ने कहा" अंदर पधारिए,यही आपके विद्यासागर की कुटिया है। मैं ही आपका विद्यासागर हूं।
युवक पानी पानी हो गया। विद्यासागर के पैरों में गिरा और कहा,मुझे माफ़ कर दीजिए प्रभु,मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।
विद्यासागर ने उसे प्यार से उठाया और कहा,
"वत्स,छोटा मोटा काम खुद कर लेना चाहिए।इसे स्वावलंबन कहते हैं।इससे छवि बिगड़ती नहीं, निखरती है।अब तुम डॉक्टर हो। आगे पेशा को सेवा की तरह अपनाना।चलो ,अंदर चलते हैं।"
विद्यासागर की सादगी और सज्जनता देख युवक की आंखे खुल गई और मन ही मन उनके आदर्शों पर चलने की शपथ ली।
ईश्वर चंद्र विद्यासागर(1820 बांग्ला और संस्कृत के प्रकांड विद्वान, लेखक और शिक्षक थे। विधवा पुनर्विवाह,नारी शिक्षा और समाजसेवा में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
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विधा :- आलेख..!
विषय :- देवों के देव महादेव..!
आज महाशिवरात्रि पर्व है। भारत,नेपाल बांग्लादेश सहित विश्वभर में अनेक देशों में इसे मनाया जाता है। फाल्गुन महीने की कृष्ण चतुर्दशी में देवों के देव महादेव की पूजा अर्चना की जाती है। मंदिरों को फूलों से बंदनवारों से सजाया जाता है।
शिव के अनेक नाम हैं जिसमें शिव,नीलकंठ और आशुतोष नाम की महत्ता पर दो शब्द लिख रहा हूं।
शिव का अर्थ होता है कल्याणकारी। शिव भगवान लोक कल्याण के रूप हैं।
देवों के देव महादेव खूब जल्द और सहज से संतुष्ट हो जाते हैं। अपने भक्तों की पूजा से संतुष्ट हो आशीर्वाद दे देते हैं। इसीलिए इन्हें आशुतोष कहा जाता है।
महादेव का एक नाम नीलकंठ भी है। धार्मिक ग्रंथ में कहा गया है कि देव और देवताओं ने मिलकर समुंद्र मंथन किया था। क्षीर सागर के मंथन से चौदह रत्न निकले जिसमें अमृत के साथ गरल अर्थात विष भी था। अमृत तो देवों के हिस्से में गया, विष को लेकर चिंता बढ़ गई। एक बूंद विष सम्पूर्ण जगत को समाप्त कर सकता था। विष के घड़े को लेकर देवगण महादेवजी के पास गए। महादेव जी ने विष को पी गए लेकिन गले से नीचे जाने नहीं दिया। उनका कंठ विष के रंग के समान नीला हो गया, इस प्रकार उनका नीलकंठ नाम भी बहुत मशहूर है।
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कविता :- नए भारत की पहचान हूं..!
मैं भी उड़ सकती हूं
हर उम्मीद पूरी करूंगी
परिवार का नाम रोशन करूंगी
बेटी हूं पर नाकाबिल नहीं
माता पिता का अरमान हूं।
इंदिरा, कल्पना,किरण बेदी
मैं नई सदी की लक्ष्मीबाई
पुरानी मान्यताओं की जंजीरों से
मत जकड़ों मेरी उड़ान को
मैं नहीं अबला , बनूंगी आत्मनिर्भर
नए भारत की पहचान हूं।
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मुक्तक..!
बेटी हूं, हौसले हैं
आसमान में उड़ने के लिए।
देखो हूं तैयार अब,
नया इतिहास लिखने के लिए
बंद करो सवाल करना
मेरी ताकत पर दोस्तों
जज्बा है बेटियों का,
चांद पर पैर धरने के लिए।
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महान लेखक :- फणीश्वरनाथ रेणु
( 4 मार्च 1921 -11 अप्रैल 1977)
हिंदी भाषा के लोकप्रिय कहानीकार फणीश्वर नाथ रेणु के जन्म शताब्दी वर्ष में देश के कई साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन रेणु विशेषांक के रूप में हो रहा है। इनमें संवेद,लमही, जनपथ, नवनीत,बनास जन, सृजन लोक,प्रयागपथ, सृजन सरोकार, माटी और मुक्तांचल प्रमुख हैं।
रेणु का उपन्यास मैला आंचल एक कालजयी उपन्यास है जिसका प्रकाशन 1954 में राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा किया गया है। प्रेमचंद के गोदान ( 1936) के बाद मैला आंचल ही हिंदी भाषा का सबसे सशक्त उपन्यास है जिसमें भारतीय ग्रामीण जीवन की आर्थिक, सामाजिक,राजनीतिक और धार्मिक स्थितियों के विविध आयामों का सफल और जीवंत चित्रण देखने को मिलता है।
इस उपन्यास का अनुवाद रूसी भाषा के अलावा कई अन्य यूरोपीय भाषाओं में किया गया है।
राजकपूर और वहीदा रहमान अभिनीत सुपरहिट फिल्म तीसरी कसम रेणु जी की कहानी मारे गए गुलफाम पर आधारित है।उनकी लिखी कहानी पंचलाइट पर भी फिल्म बन चुकी है। मैला आंचल पर भी फिल्म बनाई जा रही थी जो किसी कारण अधूरी रह गई। डागदर बाबू के नाम से मैला आंचल की कहानी टीवी धारावाहिक पर प्रसारित हो चुकी है।
मैला आंचल, परती परिकथा,दीर्घतपा,जुलूस, पलटू बाबू रोड, कितने चौराहे आदि उपन्यास लिखे हैं रेणुजी ने। इनकी लिखी कहानियां, रिपोर्टाज,संस्मरण हिंदी साहित्य भंडार को समृद्ध किया है। रेणुजी ने अपनी आत्मकथा नहीं लिखी है लेकिन उनकी रचनाओं के गहन अध्ययन से उनके व्यक्तित्व को आसानी से समझा जा सकता है।
आंचलिक उपन्यासकार के नाम से प्रसिद्ध रेणुजी
स्वतंत्र भारत के सबसे चर्चित और मूर्धन्य लेखक के रूप में गिने जाते हैं। बंगला भाषा के लेखक सतीनाथ भादुड़ी के उपन्यास "ढोड़ाइ चरित मानस" का प्रभाव रेणु जी के मैला आंचल में देखने को मिलता है। दोनों एक ही अंचल के थे और दोनों में साहित्यिक मित्रता भी थी। रेणुजी बंगला भाषा के ज्ञाता थे।
रेणु जितने प्रसिद्ध उपन्यासकार के रूप में हुए लगभग उतने ही प्रसिद्ध वे कहानीकार भी हुए।ठुमरी, अगिनखोर, आदिम रात्रि की महक,एक श्रावणी दोपहरी की धूप,अच्छे आदमी आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं।
इन्होंने अंचल विशेष को अपनी रचनाओं का आधार बनाकर वहां के जीवन और वातावरण का सजीव चित्रण किया है।इनकी कहानियों में आर्थिक अभाव तथा विवशताओं से जूझता समाज यथार्थ के धरातल पर उभर कर सामने आता है।अपनी गहरी मानवीय संवेदना के कारण वे अभावग्रस्त जनता की बेबसी और पीड़ा को भोगते से लगते हैं।
फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म एक सामान्य किसान परिवार में बिहार के पिछड़े जिले पूर्णिया के औराही हिंगना नामक गांव में 4 मार्च 1921 को हुआ था। अति पिछड़ी जाति में जन्मे रेणुजी ने सामाजिक असमानता और वर्ग चेतना के दुष्प्रभाव को अपनी आंखों से देखा है।इनके पिता शीलानाथ मंडल प्रगतिशील विचार धारा के सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्त्ता थे।
प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई,जबकि मैट्रिक की परीक्षा नेपाल के विराटनगर से पास की। उच्च शिक्षा के लिए काशी विश्विद्यालय में भर्ती हुए लेकिन स्वाधीनता संग्राम और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण आगे की पढ़ाई पूरी नहीं हुई।
गांधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने के जुर्म में इन्हें भागलपुर सेंट्रल जेल में रखा गया। जेल में उनके साथ सतीनाथ भादुड़ी भी थे जो राजनीतिक कार्यकर्ता के साथ साथ बंगला भाषा के विद्वान लेखक भी थे।
नेपाल के साथ भी रेणु जी का संबंध रहा है। इनकी लिखी नेपाली क्रांति कथा भी इनके जुझारूपन व्यक्तित्व की गवाही है।
आजादी के बाद रेणुजी का कांग्रेस की राजनीति से मोह भंग हो गया और सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गए। एक जनवादी लेखक और निर्भीक चेतना के प्रहरी आपातकाल के पूर्व जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में काफी सक्रिय भूमिका निभाई।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण के शब्दों में रेणुजी सच्चे सत्याग्रही और देशभक्त थे।वह 1942 की क्रान्ति में ही नहीं,1974 के छात्र आंदोलन में भी जेल गए थे। जेल में उनके गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए जयप्रकाश नारायण ने उन्हें जमानत पर रिहा होने का आग्रह किया,जिस पर रेणुजी ने कहा, "सरकार को चाहिए कि वह अपनी गलती के लिए क्षमा मांगे और बाइज्जत रिहा करे।"
4 नवंबर 1974 को पटना के गांधी मैदान की आम सभा में पुलिस लाठीचार्ज में जयप्रकाश नारायण को बचाने के क्रम में उसके सर पर चोट लगी जिससे वे लहूलुहान हो गए थे।
सरकार की तानाशाही और पुलिस बर्बरता के विरोध में उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद को पत्र लिखकर पद्मश्री पुरस्कार लौटा दिया और सरकार द्वारा दी जा रही स्वतंत्रता सेनानी भत्ता भी आगे लेने से मना कर दिया।
जनता के अधिकारों के लिए सड़क पर उतरकर संघर्ष करनेवाले इस महान साहित्यकार ने 11 अप्रैल 1977 को अंतिम सांस ली।
उनकी मृत्यु पर जयप्रकाश ने गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए लिखा था, "रेणुजी के निधन जो अपूरणीय क्षति समाज और साहित्य को हुई उसकी पूर्ति तत्काल क्या भविष्य में भी संभव नहीं दिखती।वह मेरे सम्मानित मित्र और सहयोगी थे।
अपने उपन्यास और कहानियों से हिंदी साहित्य को समृद्ध करनेवाले फणीश्वरनाथ रेणु की ख्याति देश विदेश में देखने को मिलती है।
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मेरी पसंदीदा उपन्यास मैला आंचल..!
विधा :- संवाद..!
मैं हिंदी भाषा के महान उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु के लोकप्रिय उपन्यास " मैला आंचल " के बारे में संवाद शैली में दो शब्द लिख रहा हूं।
1 आपका पसंदीदा उपन्यास का नाम बताना चाहेंगे?
मेरा पसंदीदा उपन्यास है मैला आंचल जिसका प्रकाशन हुआ था 1954 में।
2इस उपन्यास की लोकप्रियता और विशेषता के बारे में संक्षिप्त जानकारी देना चाहेंगे
हिंदी के महान लेखक प्रेमचंद के गोदान के बाद सबसे अधिक लोकप्रिय उपन्यास है मैला आंचल। मेरी राय में गोदान के बाद यह सबसे चर्चित और पठित उपन्यास है।
इसमें गरीबी,रोग,भुखमरी, ज़हालत,धर्म में हो रहे व्यभिचार,शोषण, अंधविश्वासों आदि का चित्रण है।
स्वतंत्र होते और उसके तुरंत बाद भारत के राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य का ग्रामीण संस्करण है यह उपन्यास।
आलोचक डॉ नलिन विलोचन शर्मा की राय में मैला आंचल हिंदी के दस सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में एक है।
रेणु जी के अपने शब्दों में,इसमें फूल भी है, शूल भी है,धूल भी है,गुलाब भी और कीचड़ भी है।
3इस उपन्यास की कोई अन्य विशेषता?
हिंदी भाषा में आंचलिक उपन्यासों में इसे प्रतिनिधि उपन्यास का स्थान दिया जाता है। इस युगांतरकारी उपन्यास में कथाशिल्प के साथ साथ भाषा शिल्प और शैली शिल्प का विलक्षण सामंजस्य है जो जितना सहज है,उतना ही प्रभावकारी और मोहक भी।
4क्या इस उपन्यास का अनुवाद भी हुआ है अन्य भाषा में?
जी मैला आंचल का अनुवाद रूसी तथा अन्य यूरोपीय भाषाओं में हुआ है
5 सुना है इस उपन्यास पर फिल्म भी बनी है?
जी एक फिल्म बन रही थी डॉक्टर बाबू जिसमें उपन्यास के नायक प्रशांत का रोल किया था अभिनेता धर्मेंद्र ने,लेकिन फिल्म पूरी नहीं की जा सकी।
6कहानी की पृष्ठभूमि?
रेणु ने बिहार जैसे पिछड़े राज्य के अत्यंत पिछड़ा गांव मेरीगंज की कहानी के माध्यम से भारतीय ग्रामीण जीवन का सुंदर और वास्तविक चित्रण किया है।
7क्या रेणु को कोई पुरस्कार भी मिला है?
फणीश्वरनाथ रेणु को उसके इस उपन्यास के लिया पद्मश्री से नवाजा गया है।
8रेणु के संबंध में कुछ बताना चाहेंगे
रेणु जी हिंदी भाषा के प्रमुख उपन्यासकार,कहानीकार,निबंधकार और सामाजिक राजनीतिक कर्मी रहे हैं। उनकी एक कहानी मारे गए गुलफाम पर प्रसिद्ध फिल्म तीसरी कसम बनी है।
9अन्तिम प्रश्न मैला आंचल का प्रकाशक?
मैला आंचल का प्रकाशक प्रमुख प्रकाशन संस्था राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली है।
धन्यवाद.!
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!..लघुकथा..!
महंगाई मार गई..!
बहू, अब मात्र दो ही बार चाय दिया करो सुबह शाम,प्रशांत बाबू ने कहा।
क्यों बाबूजी, चाय में कटौती क्यों,आप नाराज तो नहीं ,बहू ने नम्रता से कहा।
नहीं बेटा तुमसे क्यों नाराजगी, देखती नहीं महंगाई कितनी बढ़ गई है। चाय दूध चीनी तेल के साथ साथ दवाई का दाम आसमान छूने लगा है।
सो तो देख रही हूं बाबूजी, डीजल पेट्रोल के साथ साथ गैस का दाम भी बढ़ गया, बहू ने कहा।
सब्जी का भाव भी तेजी पर है, हम मध्यम वित्त वर्गीय लोगों का जीना मुश्किल कर दिया इस महंगाई ने।
बाबूजी इसीलिए मम्मी ने फिर लकड़ी और उपल का व्यवहार करने पर जोर डाल रही है। लेकिन मैं कैसे लकड़ी उपल का व्यवहार करूं बाबूजी ।मां को कोई तकलीफ नहीं होगी, पहले लकड़ी उपल का व्यवहार कर चुकी है।
तुम ठीक कहती हो बेटा, लकड़ी उपल जलाने से पर्यावरण भी प्रदूषित होगा,प्रशांत बाबू ने कहा।
बाबूजी, मैं चाहती हूं बुटीक का काम मैं शुरू कर दूं,थोड़ी बहुत आय हो जायेगी,तो महंगाई को झेल लेंगे।
प्रशांत बाबू ने सर हिलाकर हामी भर दी और मोबाइल पर "रोटी कपड़ा और मकान" फिल्म का गाना "महंगाई मार गई" सर्च करने लगे।
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लघु कथा :- कंडे का ग्राहक..!
गुलाबी आज बहुत खुश नजर आ रही थी। बाज़ार में एक बोरा कांडा भी बिक गया और लकड़ी का गट्ठर भी।
कुछ दिन पहले तक न कंडे का ग्राहक मिलता था और न जलवान की लकड़ी लेने वाला।
मन ही मन बोली और दाम बढ़े गैस का,हम गरीब कितना कष्ट से मैदान से गोबर जमाकर उपले बनाती थी जंगल से लकड़ियां लाती थी पर कोई लेनेवाला नहीं था।
मुफ्त में मिला सिलेंडर तो जंजाल बन गया है घर में । घर की शोभा अब घर के पिछवाड़े में आराम कर रही है मेरे भी गांव में, गुलाबी की हंसी देखने लायक थी।
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कविता :- तन्हाई..!
महकता गुलाब
दहकता पलाश
पर, दिल है मेरा
बुझा सा
दूर कहां तुम
तन्हा में
चैन मुझे नहीं
थोड़ा सा।
खिलती कलियां
बहती नदियां
कहती मस्ती
मौसम की
पहाड़ का आंचल
हरा भरा
रात अंधेरी
पूनम की
सब लगता सुखद हमें
जो प्रिये तुम
मेरे साथ होती।
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अनकही बातें..!
मेरी काली-काली आखों में
तस्वीर तुम्हारी है।
मेरे लाल-लाल होठों पे
गीत तुम्हारे हैं।
मेरी नासिका जो लेती है साँस,
खुश्बू तेरी अलकों की है।
मेरी हर धड़कन में अस्फुट आवाज
तेरी पलकों की है।
तुम्हें मालूम? शायद नामालूम!
तेरे हाथों लिखा छोटा सा तेरा नाम,
मैंने तस्वीर बना रखा है
सुबह होती है
एक नजर देखता हूँ
रात होती है
सीने से लगाये सो जाता हूँ
तुम्हें मालूम ? शायद नामालूम!
कैसे करूं इजहार अपना प्रेम
शब्दों की कमी खलती है
भेज रहा हूं गुलाब
यह फूल नहीं मेरा दिल है
तुम्हें मालूम? शायद नामालूम!
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कहानी :- कच्ची उम्र का प्रेम..!
लवलीन ने अपने क्लासमेट को किताब की दुकान पर देख छत से नीचे उतरी और दुकान पर पहुंच गई।
"क्या ले रहे हैं ?"
सामने खड़ी लवलीन के प्रश्न से दीपक चौंक गया। क्लास की सबसे चंचल और एक्स्ट्रोवर्ट अपनी क्लासमेट को मुस्कुराते हुए जवाब दिया,कुछ कॉपी और कलम खरीदने हैं।
ओह ,सामने ही मेरा मकान है। चलिए मेरे यहां, मां से मिलाती हूं।
दीपक गांव से आया है,कॉलेज में पढ़ने।लवलीन का अपना शहर है। शहर के इंटर कॉलेज में दोनों फर्स्ट ईयर के छात्र हैं। लवलीन के पीछे पीछे दीपक घर में प्रवेश करता है।
"मां, मेरा क्लासमेट दीपक,दीपक कुमार सेन",लवलीन दीपक का परिचय देती है
मां मुस्कुरा कर दीपक का स्वागत करती है। दीपक पैर छूकर प्रणाम करता है।
लवलीन अपने स्टडी रूम में दीपक को बैठने के लिए कुर्सी बढ़ाता है।
"आपने डिबेट कंपीटिशन में अपनी वाकपटुता और वाग्मिता से कमाल कर दिया। देर तक तालियां बजती रही।"
लवलीन की बातों से दीपक को खुशी होती है,जी धन्यवाद, मुझे तो लगा था आप फर्स्ट होंगी। लेकिन जूरी ने मुझे फर्स्ट घोषित किया और आपको रनर अप।
जी जूरी का निर्णय बिल्कुल सही है। एक बात कहूं आप मुझे तुम संबोधन करें तो मुझे ज्यादा खुशी होगी, लवलीन ने कहा।
तो तुम भी मुझे तुम कह सकती हो। दीपक ने अपनी राय दी।
बिल्कुल ,लवलीन ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया। दीपक थोड़ी देर सकपका गया,फिर लवलीन की हथेली को अपनी मुट्ठी में लेकर कहा, थैंक यू।
फिर देर तक दोनों ने पढ़ाई-लिखाई की बातें करती रही।
"बेटा,तुम्हारी चर्चा लवली करती रहती है। दोनों खूब मन लगा कर पढ़ाई करो। लवली की अंग्रेजी उतनी अच्छी नहीं, थोड़ी मदद करना लवली की अंग्रेजी ठीक हो जाए। लवलीन की मां ने प्लेट में नमकीन और सूखी मिठाई दीपक के लिए लेकर आई थी।
दीपक को पंजाबी परिवार का सामाजिक परिवेश पसंद आया।
दीपक पढ़ने में तेज तो है ही,कॉलेज की अन्य गतिविधियों खासकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर भाग लेता है। शिक्षकों के साथ साथ कॉलेज के सभी छात्र छात्राओं की नजर में कॉलेज का स्टार है दीपक।
धीरे-धीरे लवलीन और दीपक की दोस्ती चर्चा का विषय बनती गई।
कॉलेज के बगल की कैंटीन में,लाइब्रेरी में और कॉलेज के निकट पहाड़ी तलहटी में दोनों को प्राय: एकसाथ देखकर अफवाहें फैलने लगी कि दोनों में सिर्फ दोस्ती ही नहीं प्यार भी है।
कुछ उदंड छात्रों ने कॉलेज की दीवारों और टॉयलेट में थर्टी प्लस फिफ्टी लिखना शुरू कर दिया। दीपक का रोल नंबर थर्टी है और लवलीन का फिफ्टी। कहीं दिल का चित्र बनाकर दोनों का नाम लिख देता।
दीपक को सहपाठियों की यह हरकत बिल्कुल पसंद नहीं लेकिन क्या करे! लवलीन भी इन हरकतों से दुखी है परन्तु कुछ साथियों के ओछेपन की बिल्कुल परवाह नहीं है उसे।
दिन, महीने, साल बीत गए। दोनों की दोस्ती गुलाब के फूल की तरह महकने लगी। छोटा सा कस्बाई शहर दोनों की दोस्ती से कुछ स्थानीय युवकों को अखरने लगी।
लेकिन दोनों पढ़ने-लिखने में तेज और छात्रों के बीच लोकप्रिय इसीलिए चाह कर भी कुछ बिगाड़ नहीं पा रहे हैं।
दोनों एक दूसरे को नोट्स का आदान-प्रदान करते और लोगों की बातों की परवाह नहीं करते।
एक दिन लवलीन दीपक की हिंदी कॉपी लौटाती है जिसे दो दिन पहले ली थी। कॉपी के एक कोने पर थैंक्स लिख देती है।
दीपक की आंखें उस पर जाती है, थैंक्स के नीचे लिख देता है "सिर्फ थैंक्स"?
दूसरी बार जब लवलीन उस कॉपी को नोट्स की नकल करने हेतु लेती है और देखती है तो जवाब में लिख देती है, "थैंक्स नहीं तो क्या चाहिए?"
"करती हो सवाल क्या चाहते हो
खुद हो जवाब जवाब चाहती हो"
दीपक के शायराना अंदाज से लवलीन के दिल का गुलाब खिल जाता है।
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लघुकथा :- मुझे माफ़ कर दो..!
बूढ़े की आंखो की ज्योति क्षीण थी। इसका फायदा उठाकर कुछ लोग नकली सिक्के देकर उससे खिलौने ले लेते थे। बूढ़े को जब पता चलता तो मन ही मन कहता,"हो सकता है नकली सिक्के देनेवालों के पास असली सिक्के न हो और बच्चे को खुश करने के लिए खिलौने खरीदना चाहते हो।"
आज भी किसी ने नकली सिक्के देकर खिलौने ले गया।
"कोई बात नहीं बच्चे खुश तो हुए बूढ़े ने संतोष की सांस ली।'
कुछ दिनों के बाद बूढ़े की मृत्यु हो जाती है।उसकी मृतात्मा स्वर्ग पहुंच जाती है और भगवान के दरवाजे के सामने खड़ा हो प्रार्थना करती है, "प्रभो, मैं भी नकली सिक्के देने वालों की तरह अपराधी हूं,मुझे माफ़ कर दो।"
दरवाजा खुलता है और भगवान प्रकट होते हैं, "जिसने कभी किसी का विचार नहीं किया उसका विचार मैं कैसे कर सकता हूं!"
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लघुकथा :- पोती का नाम..!
कई दिनों से रमेश और उसकी पत्नी डॉली अपनी बेटी के नाम को लेकर उधेड़बुन में है। एकमात्र बेटी का नाम क्या रखे। कभी नेट से तो कभी पत्रिकाओं से नाम का चयन करते अं दोनों एकमत नहीं हो पा रहे हैं। खुली छत पर बैठकर आज दोनों अंतिम निर्णय लेना चाहते हैं ,लेकिन आज भी दोनों किसी एक नाम पर सहमत नहीं हो पा रहे हैं।
अरे तुमलोग क्या कर रहे हो,देखो गोद में ही मेरी चंदा सो गई,पूनम देवी ने आकर कहा।
मां तुम आज पोती को चंदा बोल रही हो! बेटे ने आश्चर्य हो पूछा।
आज कौन तिथि है तुम लोगों को मालूम?
मां ,हमलोग आजकल कहां तिथि नक्षत्र का ख्याल रखते हैं, डॉली ने कहा।
तो सुनो मेरा फैसला, पूनम देवी ने आकाश में पूर्णिमा के चांद की ओर संकेत करते हुए बोली,आज से मेरी पोती का नाम पूर्णिमा रहा। आज पूर्णिमा तिथि है।
पूर्णिमा तिथि बड़ी शुभ होती है,मेरी पोती के लिए पूर्णिमा नाम सबसे उपयुक्त है।
पूनम देवी की बातों से रमेश और डॉली बिल्कुल सहमत हो गए ।
चंचल चितवन
मधुर वचन
चांद सा चेहरा
जन्नत की हुर तुम
फूलों की ताजगी
मौजों की रवानी
पूनम की चांदनी
आंखों का नूर तुम
सफर का साथी
इंद्रधनुषी सपने
हसीन हुई जिंदगी
जब मेरे साथ हुई तुम।
मधुर वचन
चांद सा चेहरा
जन्नत की हुर तुम
फूलों की ताजगी
मौजों की रवानी
पूनम की चांदनी
आंखों का नूर तुम
सफर का साथी
इंद्रधनुषी सपने
हसीन हुई जिंदगी
जब मेरे साथ हुई तुम।
( आलेखकार/रचनाकार निर्मल कुमार "दे" रचित रचना, आलेख, व्यंग के विस्तृत संग्रह को पढने के लिए निचे लिंक पर क्लिक करें..! )