जय माँ सरस्वती..!
सरस्वती पूजा के दूसरे दिन से मैं शाम को घर से बाहर निकलना छोड़ देता हूँ।कम से कम मुख्य सड़क और बाजार की तरफ तो नहीं ही जाता।सरस्वती जी की प्रतिमा विसर्जन को जाते लड़कों के दलों की हहोरी,हुल्लड़बाजी देखी नहीं जाती।मन तिक्त हो जाता है।
सरसती जी की जै जै, विद्दादायिनी की जै जैसे नारे सुन तनबदन में आग लग जाती है। अपने आप को विद्यार्थी कहने वाले लड़के यहीं नहीं रुकते।कुछ तो #सुरसती_मइया की जै,#बिनापानी की जय का उद्घोष भी करते हैं।साहेबगंज वैसे भी पठारी इलाका है और पानी की हमेशा किल्लत रहती है।ऐसे में #बिनापानी की जय का औचित्य समझ में नहीं आता।
पहले सरस्वती पूजा केवल कुछ विद्यालयों में होती थी।हमारे विद्यालय में विसर्जन के पहले पंडित जी सभी लड़कों को अभ्यास करवाते-"सरस्वती माता की जय, मां शारदा की जय,वीणापाणि की जय इत्यादि।गलत उच्चारण करने वाले को तुरंत पंक्ति से निकाल बाहर करते।फिर समय बदला।विद्यालयों, विद्यार्थियों और शिक्षकों के सीमित दायरे से माँ सरस्वती सर्वसाधारण के लिए सुलभ हुईं तो सुरसती,बिनापानी इत्यादि नामों से भी जानी जाने लगीं।शांत,शिष्ट स्टेजों की जगह डीजे युक्त पंडालों ने ले ली।शांतिपूर्वक विसर्जन करने की प्रथा खत्म हो गई।
पूजा बड़े पैमाने पर हो या छोटे पैमाने पर, डीजे पंडाल और विसर्जन का अनिवार्य तत्व है।गयी-गुजरी पूजा समिति भी एक डीजे विसर्जन में लेकर जरूर चलती है।बड़ी-बड़ी पूजा समितियों का कहना ही क्या! ढोल-ताशा,बैंड-बाजा,डीजे और भक्तों का कमरतोड़ डांस विसर्जन के शोभायात्रा की शोभा बढ़ाते हैं। एक बार तो सरस्वती के विसर्जन के अवसर पर भक्तों ने पेशेवर नर्तकियों की सेवा भी ली।#कमर_उघाड़ डांस का वह नजारा दिखा कि छात्र-अछात्र, बूढ़े-जवान सभी चित्त हो गए। राह चलते राहगीर,सब्जीवाले,चाट के ठेले वाले सभी ने अपनी अपनी क्षमतानुसार सरस्वती की इन महिला भक्तों की सेवा में श्रद्धा -सुमन अर्पित किए।
एक बात और है।ऐसे आयोजन, खासकर विसर्जन की धूमधाम भोजपुरी गानों के बिना अधूरी है।लाख फिल्मी और दूसरे गाने बज जाएँ,जबतक डीजे के श्रीमुख से भोजपुरी गानों का वमन नहीं होता, भक्तों की नृत्यकला निखरती नहीं। सरस्वती पूजा के विसर्जन के लिए लगता है कि हमारे भोजपुरी कलाकार खासकर कुछ विशेष गीतों की रचना करते हैं।बहुत पहले ऐसे अवसर पर एक गाने का अविष्कार हुआ था-
" केसिया मे लाल पियर सोहेला गजरा
अँखियाँ में कारी कारी सोहेला कजरा
गोरिया तू रासलीला करऽ
तनी सा जींस ढीला करऽ
तनी सा जींस ढीला करऽ।"
लड़कियों और महिलाओं के झुंड को देख इस सात्विक गाने पर नाचने वाले कुछ लड़कों के जींस सचमुच ढीले हो गए।
कुछ वर्ष पूर्व इसी अवसर पर बाजार से आने के क्रम में भीड़ में फँस गया।जबरदस्त नाच चल रहा था।नाचने की प्रेरणा जिस गाने से मिल रही थी उसके बोल थे-
"कभी चित कभी पट
सइयाँ मारे सटासट।"
जिसे सार्वजनिक रूप से सुनकर कोई भी हयादार व्यक्ति कानों पर हाथ रख ले,उसे सुनकर मस्त लड़कों का दल उन्मुक्त अट्टहास कर रहा था...बिंदास नाच रहा था... सरस्वती जी का विसर्जन करने जा रहा था...।
हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी सरस्वती पूजा में भोजपुरी गानों का ही बोलबाला रहा।इस बार के विसर्जन का थीम सॉन्ग रहा-
"सुनऽ बंगाल वाली
नाचऽ तू हाली हाली
राखेलू दोकान आपन खुल्लाऽऽ
रसगुल्ला रसगुल्ला रसगुल्ला
हाय टप टप चूए मोरा रसगुल्ला।"
कल मातृभाषा दिवस था।हर किसी को अपनी मातृभाषा पर गर्व होता है।मुझे भी अपनी मातृभाषा भोजपुरी पर गर्व है।लेकिन ऐसी रचनाओं को सुन गर्व करुँ कि शर्म करुँ,समझ में नहीं आता।हमारे देश ही नहीं,संसार के कई देशों में अति लोकप्रिय और सशक्त भाषा है भोजपुरी।लेकिन कुछ गुंडे और अराजक तत्व जो अपने को कलाकार कहते हैं,इस भाषा में अश्लील गीत-संगीत की रचना कर युवा पीढ़ी में अपसंस्कृति फैला रहे हैं जो सोचनीय है,निंदनीय है।
हमारे मोहल्ले में पंडित जी ने विद्यार्थियों से सरस्वती पूजा का आयोजन करवाया।दूसरे दिन मिलने पर बोले-"लइकवा सब बहुत पेसेंस रखा।रात भर एको भोजपुरी गाना नहीं बजाया।"
भोजपुरी गीत-संगीत के स्तर की पोल पंडित जी के इस कथन से खुल जाती है।
अंत में यही कहना चाहूंगा कि हमारे धार्मिक आयोजनों,अनुष्ठानों, पर्व-त्योहारों में उच्छृंखलता,अपसंस्कृति तेजी से पैर पसार रहे हैं।यह स्थिति कमोबेश पूरे भारत में है। हम सोशल मीडिया में,खासतौर से फेसबुक पर,हिंदूत्व,सनातन की महानता,उत्थान आदि के साथ ही अपसंस्कृति और इससे होने वाले दुष्प्रभावों की चर्चा करते हैं। लेकिन,अब वक्त आ गया है कि इससे बचाव का व्यवहारिक रास्ता ढूंढा जाए और वर्तमान तथा भावी पीढ़ी को अपसंस्कृति से बचाने के लिए जमीनी स्तर पर कुछ किया जाए।आखिर अपसंस्कृति के शिकार ये लोग हमारे अपने हैं और इनका दोष सबसे कम है।
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