11 अप्रैल 2021

रचना :- शावर भकत " भवानी "

           ग़ज़ल..!
इन निगाहों में तेरी सूरत है
तू मेरी आख़िरी मुहब्बत है

जिससे शिकवा गिला शिकायत है
जाने क्यों उससे ही मुहब्बत है

सिर्फ और सिर्फ आपको मेरे
ख़्वाब में आने की इजाज़त है

के तुम्हारे ख़याल से दिलबर
मेरे अल्फ़ाज़ में नज़ाकत है

कोई बदले भी तो भला कैसे
ये मुहब्बत भी एक आदत है


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इक चमकती कटार है दुनिया
बचना के धारधार है दुनिया

दुख के दिन में ख़िज़ाँ है ये,लेकिन
सुख के दिन में बहार है दुनिया

सिर्फ बाहर से एक दिखती है
जबकि अंदर हज़ार है दुनिया

बात कोई नई नहीं है ये
के बहुत होशियार है दुनिया

वक्त अच्छा है गर तो मित्र ही क्या
शत्रु तक की भी यार है दुनिया

सामने से कभी नहीं करती
पीछे से करती वार है दुनिया

आप इतना समझ लिजे कि फ़क़त 
बहती नदिया के पार है दुनिया

तेज रफ़्तार संग चलती हुई
चमचमाती सी कार है दुनिया

वक्त गर है बुरा भवानी तो
यार की भी न यार है दुनिया

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जलधारा का द्वितीय वार्षिकोत्सव एवं होली मिलन समारोह सम्पन्न..!
देश की अग्रणी साहित्यिक संस्थाओं में से एक जलधारा
हिंदी साहित्यिक संस्था(पंजीकृत) द्वारा संस्था के द्वितीय वार्षिकोत्सव से पूर्व एवं होली के आगमन पर दिनांक 27 मार्च 2021, शनिवार ऑनलाइन काव्य गोष्ठी आयोजित की गई।
जलधारा हिंदी साहित्यिक संस्था के पश्चिम बंगाल इकाई के प्रांतीय मुख्य सलाहकार डॉ गिरिधर राय की अध्यक्षता में संपन्न हुए इस कार्यक्रम का संयोजन व संचालन कवयित्री रीमा पांडेय ने किया। कार्यक्रम की शुरूआत संस्था की संस्थापिका व राष्ट्रीय अध्यक्ष शावर भकत "भवानी" की सरस्वती वंदना "मात्र मानुष का हमें पहचान दो माँ शारदे" से हुई। काव्य गोष्ठी में सम्मिलित रचनाकारों डॉ गिरिधर राय,शावर भकत"भवानी", सुषमा राय पटेल,रीमा पांडेय, राम पुकार सिंह,रामाकांत सिन्हा, शिव शंकर सिंह"सुमित",पुष्पा मिश्रा, सुदामी यादव, आलोक चौधरी,विजय शर्मा "विद्रोही" एवं देवेश मिश्रा द्वारा होली,जल,प्रकृति,राष्ट्रीय एवं सामाजिक विषयों से सम्बंधित रचनाओं का बेहतरीन काव्य पाठ किया गया। सफल कार्यक्रम के उपरांत रीमा पांडेय ने धन्यवाद ज्ञापन किया। जलधारा हिंदी साहित्यिक संस्था की संस्थापिका व राष्ट्रीय अध्यक्ष शावर भकत"भवानी" ने एक शानदार व सफल कार्यक्रम हेतु बधाई देते हुए समस्त देशवासियों को होली की शुभकामनाओं के साथ जल की बचत करते हुए रंगों की जगह प्राकृतिक पदार्थों से निर्मित्त गुलाल का उपयोग करते हुए होली मनाने का अनुरोध किया।

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ग़ज़ल..!

पीछे में ही क्या आगे में भी ये न रुकी है,
जीवन की हक़ीक़त तो फ़क़त आज अभी है।

रोटी के सबब भूख की आँखों में नमी है,
लेकिन इसे पाते ही उसे मिलती खुशी है।

जो औरों से उम्मीद नहीं रखता कभी भी,
दुनिया में फ़क़त एक वही शख़्स सुखी है।

अपनों के बदलते हुये चेहरे के सबब ही,
आँगन में हरिक घर के ही दीवार खड़ी है।

नज़दीक से दुनिया को किया गौर तो देखा,
जितनी ये भली दिखती है,उतनी ही बुरी है।

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कैसा ग्रहण लगाया, 
चहुँ ओर है अँधेरा
जीवन हुआ अधूरा,
संताप क्यों बिखेरा।
संतान त्रुटि भुलाकर,
अब तो दया करो प्रभु
दिखने लगा चतुर्दिक,
अवसाद त्रास घेरा।
गृह नव्य कैदखाना,
यद्यपि एकल कवच ये
सुख का निवास टूटा,
दुख का हुआ बसेरा।
संतान पीर हरिये,
अपराध क्षम्य करिये
सुख चैन से चतुर्दिक,
हो मोद का बसेरा।
नूतन विहान में अब,
मानस पटल नवल हो
अँधकार दूर करके,
प्रभु कीजिये सवेरा।।


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जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह द्वारा"सुर झंकार"बच्चों की ऑनलाइन रिकार्डेड नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन..!
कोलकाता की साहित्यिक समूह जय नदी जय हिंद द्वारा वैश्विक महामारी कोरोना के कारण लॉकडाउन की परिस्थितियों को देखते हुए 5 साल से लेकर 15 साल तक के बच्चों के लिए 14 जून 2020, रविवार ,फेसबुक में ऑनलाइन रिकार्डेड नृत्य प्रतियोगिता आयोजित की गई। भारत के विभिन्न राज्यों के सरकारी एवं गैर सरकारी स्कूलों के बच्चों में भारतीय लोक नृत्यों, शास्त्रीय, क्षेत्रीय एवं हिंदी सिनेमा इत्यादि से सम्बंधित नृत्यों के प्रति जागरूकता,जानकारी एवं रूचि उद्देश्य से सार्थक तरीके से नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
समूह की संस्थापिका एवं अध्यक्ष शावर भकत"भवानी" ने बताया कि "सुर झंकार "आयोजन में पंद्रह बच्चों ने अपने नृत्य हुनर से सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। बच्चों ने भारतीय संस्कृति व हिंदी सिनेमा से सम्बंधित नृत्यों की बेहतरीन प्रस्तुति से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। "सुर झंकार"आयोजन में शामिल प्रतिभावान बच्चों में अक्षत सिंह, अनेरी पोद्दार, भव्या मराठे, उदिता भकत, अपेक्षा साहा, प्रिंसी शाह, वैनोरा, गार्गी शाह, धैर्य शाह, स्निग्धा कश्यप, सैयद असीम इलियास, पावनी माथुर, जय गर्ग, भव्या मित्तल एवं लावण्या सक्सेना ने बेहतरीन एवं मनमोहक नृत्यों की प्रस्तुति दी। 5 वर्ष से लेकर 15 वर्ष तक के छात्रों एवं छात्राओं के अतिसुन्दर नृत्यों से मात्र साहित्यिक परिवेश ही नहीं बल्कि मन मस्तिष्क भी प्रफ्फुलित हो गया। 
शावर भकत "भवानी" ने बताया कि "सुर झंकार"आयोजन में शामिल  बच्चों के लिए लॉकडाउन जैसी परिस्थिति में घर पर ही रहते हुए इस तरह के उत्साहवर्धन आयोजन में शामिल होना सुखद एवं प्रसन्नतादायक अनुभव था कि वे अपनी प्रतिभा सभी के समक्ष प्रस्तुत कर सकें। जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह द्वारा सभी सम्मिलित बच्चों के उत्साहवर्द्धन हेतु उन्हें ई-सम्मानपत्र प्रदान किया गया।
शावर भकत"भवानी"ने बताया कि"जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह " भविष्य में भी कर्तव्यबोध ज्ञान एवं नैतिकता का संदेश देने के उद्देश्य से  विभिन्न विशेष आयोजनों द्वारा भारत के भविष्य इन नन्हे- मुन्ने और किशोर बच्चों को लेकर प्रेरणादायक आयोजन करने का प्रयास करेगा। 
आयोजन के अंत में समूह की राष्ट्रीय अध्यक्ष शावर भकत"भवानी" द्वारा समूह के संरक्षक राजीव नसीब,सभी सम्मिलित बच्चों, उनके शिक्षकों,शिक्षिकाओं ,अभिभावकों, समूह के सहयोगी साथियों उस्मान गनी खान ,उषा गुप्ता ,अमृता कश्यप , कमलकिशोर अग्रवाल एवं सभी सहयोगी रचनाकार साथियों को बधाई प्रेषित करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना के संग आभार व्यक्त किया गया।

जय हिंद..!

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अनुभव....

गुरू अभिज्ञान अनुभव है
मिला जो दान अनुभव है

न पालें दर्प मानस में
सुमति वरदान अनुभव है

तरुण नव धारणा में ही
गवेषण ज्ञान अनुभव है

करें वंदन गुरूजन का
यही सम्मान अनुभव है

कहूँ माँ भारती की जय
धरा गुणगान अनुभव है

गलत क्या है सही है क्या
इसी का ध्यान अनुभव है

शहादत को करूँ वंदन
अमर बलिदान अनुभव है

सदा से हिंद सेना का
विजय अभियान अनुभव है

भला क्या और अच्छा क्या
यही पहचान अनुभव है

बुरा कोई करे भी तो
भला ही जान, अनुभव है

हमारा भी तुम्हारा भी
स्व पीड़ा पान अनुभव है

सदा दुर्गम डगर में ही
स्व की पहचान अनुभव है

छुपाकर पीर होठों में
रखूँ मुसकान अनुभव है

स्वयं की खोज करने में
सही संज्ञान अनुभव है

हलक में विष का नित ही

करूँ मैं पान अनुभव है...

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                         ग़ज़ल..!

दिल के रिश्तों में रुहानी प्यार होना लाज़िमी है,
दोनों ज़ानिब रम्ज़ में इज़हार होना लाज़िमी है।
  
रूहे एहसासात में इक़रार होना लाज़िमी है,
दरमियाँ जज़्बात में एतबार होना लाज़िमी है।

यूँ दिलों के दरमियाँ आधी अधूरी आँच में भी,
इक मुक़म्मल दास्ताँ का सार होना लाज़िमी है।

दोनों ज़ानिब हो रही है गुफ़्तगू ख़्यालों में पैहम,
इसलिये हर्फ़ों में आँखें चार होना लाज़िमी है।

दरमियाँ रुठने मनाने का मज़ा है अलहदा,पर
हर मधुर तकरार में अधिकार होना लाज़िमी है।

रूहे एहसासात की नज़रों में है सूरत तुम्हारी,
इसलिये ख़्यालों में भी दीदार होना लाज़िमी है।

मुब्तिला होने लगे जब दिल रुहानी आशिक़ी से,
तब भवानी खुद ब खुद अशआर होना लाज़िमी है।



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मुखरित है.................

हृदय उद्गार मुखरित है
मनोहर प्यार मुखरित है

वचन में प्यार मुखरित है
विनय अम्बार मुखरित है

सुना कुछ अनसुना में ही
प्रणय मनुहार मुखरित है

कहा कुछ अनकहा में ही
ललित अभिसार मुखरित है

अधूरी सी कहानी में
कथानक सार मुखरित है

विरह के मौन पावस में
सरस मल्हार मुखरित है

सरल संवेदनाओं में
मधुर अधिकार मुखरित है

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माँ नींद से, अब जागिये..!
तम दूर कर, आभा करो।
 सन्तान की, पीड़ा हरो।।
 दुर्गा तुझे, वंदन करूँ।
  संताप में,धीरज धरूँ।।

कर दो कृपा, सिर हाथ धर।
संताप अब, माँ दूर कर।।
सुन वंदना,अब देखिये।
संतान से, मत रूठिये ।।

विश्वास है, हिय में अटल।
नव आस है, होंगे सफ़ल।।
लूका जला, ना सोइये।
माँ नींद से, अब जागिये।।

मत क्रोध कर, संतान पर।
संज्ञान लो, सब भूल कर।।
ना भूल अब, होगी कभी।
संतान की, सुध लो अभी।।


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"अरुणोदय" काव्य संग्रह की समीक्षा..!
दोस्तों .....!
                 शावर भकत "भवानी " जी के प्रथम काव्य संग्रह ...अरुणोदय ..का लोकार्पण पिछले वर्ष कोलकता में हुआ था ...जिसमें मुझे भी सम्मिलित होने का सुअवसर प्राप्त हुआ था ..! 
पिछले दिनों मैंने ...शावर भकत ..जी की रचना संग्रह ..अरुणोदय को पढ़ा ..और ..बहुत प्रभावित हुआ ...! ..वास्तव में .. अरुणोदय ...की रचनाएँ ..शावर जी के ...सृजन की स्वर्णिम रश्मियाँ हैं जो साहित्य जगत को आलोकित कर रही हैं ..! ..उनकी रचनाओं में ...उनके व्यक्तित्व की ओजस्विता परिलक्षित  होती है ...! 
उनकी रचनाओं की भाषा मंत्रमुग्ध कर लेने वाली ...संस्कृतनिष्ठ ...प्रांजल ..शुद्ध ..हिंदी है ...जो आज के दौर में ...जय शंकर प्रसाद जैसे महाकवियों की भाषा का प्रतिनिधित्व करती है ..! 
शावर जी ने ...अपनी इस  रचना संग्रह को ..भारतीय नौ सेना को ...समर्पित किया है ..और ...अरुणोदय ..भारतीय नौ सेना के ...प्रमुख पुस्तकालयों में ...उपलब्ध है ..! 
उनकी संवेदनशीलता ....एक सैनिक के प्रति ...उनकी कविता ...सैनिक ...में देखने योग्य है ..! 
कहता है जग मुझको सैनिक , 
समझ सको तो समझो ...
मेरा श्रम दैनिक ..! 
उनकी प्रांजल भाषा की एक बानगी देखिए ....जो पुरुष मन का वर्णन कर रही है ..! 
पुरुष मन पिंजर 
कन्दुक सम अस्तित्व ..! 
व्यक्त अव्यक्त युग्म 
विशाल उर संकुचित 
भावनाएँ कर्माधीन , 
संवेदनाएँ धर्माधीन ...! 
जब वो अपने मन के भावों को ..प्रकट करती हैं ...तो ..शब्दों में एक ...स्वर्ण आभूषणों की चमक सी आ जाती है ...! 
चाहे मन बावरा , बन जाऊँ बावरी पवन , 
चाहे मन बावरा उन्मुक्त स्वच्छंद जीवन ..! 
कहाँ से चले ,  कब आए , कहाँ गमन , 
न हो कोई हँसी , न हो कोई रुदन , 
न हो कोई परिचय , न हो कोई स्मरण , 
न हो कोई रूप , न हो कोई रंग यौवन , 
फ़िक्र से परे ,  रहूँ सर्वदा निडर मैं पवन ...! 
शावर जी ..ग़ज़ल की विधा ..में  भी लिखती हैं ...और  उनकी ये प्रतिभा ..उनकी इस रचना में देखने  को मिलती है ...! 
तुम्हारी याद है आई , 
बजे क्यूँ आज शहनाई , 
सयानी शाम हरजाई , 
गगन में चाँदनी छाई , 
नवेली चाल बलखाई , 
लबों में लालिमा आई ..! 
उनके प्रेम की अभिव्यक्ति भी ...अलौकिक ..और ..आदर्श है ..! 
प्यार आस पास दूर कदापि नहीं , 
प्यार मधुमास बयार भी नहीं , 
तुमने मात्र प्यार शब्द दोहराया है ..! 
सुनो ...प्यार अनुभूति की उच्चतम 
पावन पराकाष्ठा है जो अदृश्य ...
अकल्पनीय , अवर्णनीय , अपरिभाषित , 
आदि मध्य अंत से परे मात्र एवं ...
मात्र था ,  है ,  और ..रहेगा ...! 
उन्हें अपने दायित्वों का भी बोध है ...और ..स्त्री मन की अभिलाषाओं का भी ...! ..एक मर्यादित श्रृंगार झलकता  है ...उनकी इन पंक्तियों में ....! 
लक्ष्य केंद्रित बिंदी लगा , 
नैनों में भविष्य काजल लगाऊँ, 
नथनी में उपहास अवहेलना समाऊँ, 
नकचढ़ी सी थोड़ी मैं , 
होंठों में जीवन रंग ...! 
केशों में उलझती सुलझती आलोचना 
कंगनों में कर्मठता की खनक ...
करधनी में बाँध जिम्मेदारी चलूँ ..! 
वो अपने पाठकों के मन में थोड़ी सी पनाह चाहती हैं ..जो उन्होंने ..अरुणोदय की अंतिम कविता ...पनाह ..की इन पंक्तियों में वयक्त की है ...! 
मैं रहूँ न रहूँ , 
शब्द ही मेरी पहचान , 
शब्द बन के दिखूँ,
स्याही रंग लहू भाए , 
पन्नों में सजूँ , 
पाठक चक्षु में पनाह मेरी ..! 
शावर भकत..' भवानी ' जी का सृजन ..उद्देश्यपूर्ण है ...और .वो ...समाज में ..जन जागरण की भावना से लिखती हैं ...! 
कई पत्र पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ छपती रहती हैं ...और ...वो कई साहित्यिक समूहों में सक्रिय हैं ...! 
शावर भकत जी को अरुणोदय ...की सफलता की ...अपरिमित  हार्दिक बधाई ..! मेरी अशेष स्नेहिल शुभकामनाएं ...उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए ।

शैलेश गुप्ता, कोलकाता(पश्चिम बंगाल)

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हो ज़िक्रे वफ़ा गर वहाँ मेरे बाद
ख़ामोशी में करना बयाँ मेरे बाद

ख़ामोशी जो होगी यहाँ मेरे बाद
सुनोगो फ़क़त तुम वहाँ मेरे बाद

तेरे नाम का कलमा पढ़ती हूँ मैं
सुनोगे मगर तुम अजां मेरे बाद

है ये आँच आधी अधूरी मगर
सुलगता रहेगा धुआँ मेरे बाद

बिना तेरे भी इश्क़ है तुझसे,पर
ये हर्फ़ों में होगी बयाँ मेरे बाद

अधूरी सी है बात जो राजदां
दिखेगी ग़ज़ल में अयाँ मेरे बाद

यक़ीनन है ये अलहदा आशिक़ी
रहेगी मेरी दास्ताँ मेरे बाद

यक़ीनन छुयेगी सबा जब तुम्हें
सहर बन जायेगा निशाँ मेरे बाद

यक़ीनन दिखेगी भवानी तुम्हें
नदी तीर होगा जहाँ मेरे बाद

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  ~: प्रेम शब्दकोश :~

स्त्री अंतर्मन प्रेम शब्दकोश में ,
तत्सम तद्भव अस्तित्व स्थित।
तत्सम यथार्थता संग व तद्भव,
कल्पित मृगतृष्णा सम भ्रमित।

प्रेम शब्दकोश में तत्सम ,
उच्चतम शिखर में सदैव स्थापित ।
भावना शब्दकोश में तद्भव ,
अदृश्य शिखर में क्षणिक उपस्थित।

स्त्री अंतर्मन में अधूरे अव्यक्त ,
अभिलाषाएँ अनुभूतियाँ समाहित।
उम्र बंधन तथ्य से परे अन्तस् ,
भावनाएँ संवेदनाएँ अंतर्निहित।

प्रेम पुस्तक के मूल शब्दों में ,
तद्भव तत्सम संग वर्णित विराजित ।
तत्सम व तद्भव द्वी अनकहे अनसुने ,
अस्तित्व अवर्णीय अकथित।

स्त्री मन मस्तिष्क तत्सम प्रेम में,
मोहित मार्जित मर्यादित सुशोभित।
अंतर्मन में दुविधा उलझन शंका ,
संकोच धारा अविरल प्रवाहित।

प्रणय अर्थ में तत्सम स्त्री अंतर्मन में ,
ध्वनित व्यक्त परिभाषित।
भावना अर्थ में तद्भव स्त्री अंतर्मन में ,
निःशब्द अव्यक्त अपरिभाषित।

उच्चतम मध्यम अल्पतम सर्व स्थान स्तर में,
सदा तत्सम प्रणय निहित।
क्षणिक सम्मोहन चुम्बकीय आकर्षण,
तद्भव शब्द में भ्रमित कल्पित।

हृदय अन्तरगुफ़ा में तत्सम पावन प्रीत,
महत्ता नैतिकता अर्थ में उचित।
हृदय अन्तरगुफ़ा में तद्भव भावना रंगत,
पुनीत अर्चन से आह्लादित।

मन दर्पण में तद्भव महत्ता आकर्षण ,
शब्दिक अर्थ में लघुतम वर्णित।
जिज्ञासु हृदय मन समक्ष अनुत्तरित प्रश्नों के ,
उत्तर हेतु व्याकुल विस्मित।।


सम्प्रति:- अरुणोदय(काव्य संग्रह)

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फ़ुर्सत से तसल्ली से ही आयेंगे किसी दिन
जो आ गए इक बार, न जायेंगे किसी दिन
जागी सोई पलकों से निहारूँ तुझे क्योंकर
हम रूह में ही झाँक के देखेंगे किसी दिन

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अंदर जो छुपा है उसे खोजेंगे किसी दिन
लम्हात के नज़रों में भी उतरेंगे किसी दिन
ज़ाहिर सी है ये बात,आता वक़्त नहीं खुद
हम वक़्त को भी लाके दिखायेंगे किसी दिन

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              ~: ग़ज़ल :~

हमें इश्क़ उल्फ़त निभाना भी है
मगर सच ये तुमसे छुपाना भी है

  अभी हौसले आज़माना भी है
मुझे मुझको मुझसा बनाना भी है

हैं माटी के ऊपर या नीचे,फ़क़त
यही ज़िंदगी का फ़साना भी है

है रिश्ता ये ज़ज़्बात का इसलिए
हमेशा तुझे अपना माना भी है

है ये मोह का ताना बाना,तभी
रफ़ू करके रिश्ते निभाना भी है

इरादा है गर शम्स बनने का तो
बशर शख़्सियत को तपाना भी है

है सच ये गमों को भुलाकर सदा
हमें उम्रभर मुस्कुराना भी है

पिलाना है बच्चों को गर शुद्ध जल
तो उनके लिए जल बचाना भी है

यक़ीनन सियासत है हर सू,मगर
उलझने से खुद को बचाना भी है

बशर लाज़मी है अगर आचमन
तो गंगा प्रदूषण मिटाना भी है

ये माना कि सबको है जाना,मगर
दुबारा यहीं फिर से आना भी है

पिपासा अगर शुद्ध जल की है,तो
बशर जल प्रदूषण हटाना भी है

सियासत का है शामियाना चार सू
कि खुद को भवानी बचाना भी है


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जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह द्वारा पुलवामा के शहीदों के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि..!
कोलकाता के साहित्यिक समूह "जय नदी जय हिंद" द्वारा "पुलवामा" के शहीदों के शहादत को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गई एवं इस अश्रुपूरित दिवस की स्मृति में 14 फरवरी 2020 से 15 फरवरी 2020 तक भारत के विभिन्न राज्यों के सरकारी एवं गैर सरकारी स्कूलों के बच्चों में देशप्रेम,पुलवामा में शहीद हुए जवानों के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि एवं भारतीय सेना के अथक परिश्रम, बलिदान और गौरवशाली पहलुओं से अवगत कराने के उद्देश्य से   ऑनलाइन "चित्र बनाओ" आयोजन को सार्थक तरीके से आयोजित किया गया।
समूह की संस्थापिका एवं अध्यक्षा शावर भकत "भवानी" ने बताया कि इस आयोजन को पुलवामा के शहीदों को समर्पित किया गया।
जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह की संस्थापिका एवं अध्यक्षा शावर भकत "भवानी" ने बताया कि 
"चित्र बनाओ" आयोजन में सतरह बच्चों ने अपने हुनर से सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। सरकारी स्कूलों एवं गैर सरकारी स्कूलों के बच्चों ने देशप्रेम से ओतप्रोत एवं भारतीय सेना के जीवन एवं गौरव को चित्रों के माध्यम से बख़ूबी दर्शाया। 
"चित्र बनाओ" आयोजन में शामिल प्रतिभावान बच्चों में सुम्बुल फ़िरोज़, आशिया ज़ाहिद, उदिता भकत, पीयूष प्रजापति, पावनी माथुर, इरम मो. हनीफ़ अंसारी, ज़ैनब बहादुर खान, खुशबू मिश्रा, गुलअफ़शा ए. वहाब, सुब्हाना शाकिर अली, शिवम चौधरी, कु. अलतमश, निगहत ज़हरा, जतिन मांझी, फ़रानहत ज़हरा,स्वागत बड़गुछिया एवं रौकी कुमार द्वारा बेहतरीन चित्रों की प्रस्तुति देकर पुलवामा के शहीदों की शहादत के प्रति नतमस्तक एवं गर्वित कर दिया गया। पाँच वर्ष से लेकर सोलह वर्ष तक के छात्रों एवं छात्राओं के अतिसुन्दर चित्रों से मात्र साहित्यिक परिवेश ही नहीं बल्कि मन मस्तिष्क भी गर्वित हो गया। 
शावर भकत "भवानी" ने बताया कि "चित्र बनाओ" आयोजन में शामिल कई बच्चों के लिए इस तरह के आयोजन में शामिल होना प्रथम अवसर था कि वे अपनी प्रतिभा सभी के समक्ष प्रस्तुत कर सकें। जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह द्वारा सभी सम्मिलित बच्चों के उत्साहवर्द्धन हेतु उन्हें सम्मानपत्र प्रदान किया गया।
शावर भकत "भवानी" ने बताया कि "जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह " भविष्य में भी देशप्रेम एवं भारतीय सेना के प्रति कर्तव्यबोध ज्ञान एवं नैतिकता का संदेश देने के उद्देश्य से  विभिन्न विशेष दिवस आयोजनों द्वारा भारत के भविष्य इन नन्हे- मुन्ने और किशोर बच्चों को लेकर प्रेरणादायक आयोजन करने का प्रयास करेगा। 

आयोजन के अंत में समूह की राष्ट्रीय अध्यक्षा शावर भकत "भवानी" द्वारा समूह के संरक्षक राजीव नसीब, सभी सम्मिलित बच्चों, उनके शिक्षकों एवं अभिभावकों, सभी सहयोगी साथियों को बधाई प्रेषित करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना के संग आभार व्यक्त किया गया।


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मेरे वालिद की ये निशानी है
शख़्सियत मेरी खानदानी है
नाम शावर मुझे पापा से मिला
पर तख़ल्लुस मेरा भवानी है


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          ~: ग़ज़ल :~


फ़क़त मर्ग से ज़िंदगी छूटती है
तभी पैरहन आख़िरी छूटती है

यक़ीनन हो गर मसअला आशिक़ी का
  तो शायर से कब शायरी छूटती है

छूटे से न छूटे है दिल की लगी,पर
यक़ीनन फ़क़त दिल्लगी छूटती है

है सच ना सियासत से ना ही धोखों से
  खोया पाया से दोस्ती छूटती है

हो गर राब्ता दर्दे दिल का तो ग़ालिब
  किसी से भला शाइरी छूटती है

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     ~: ग़ज़ल :~


मैं जब भी अपने घर गया
लगा तीरथ के दर गया

इधर गया उधर गया
पर लौटकर वो घर गया

न लौटकर आता कभी
जो वक्त गर गुज़र गया

जो माँ के चरणों पे झुका
यकीं कीजे वो तर गया

कठिन है राह सच की,पर
 जो डर गया वो मर गया

शग़फ़ है तुझसे इस कदर
न अब तलक असर गया

वो अपना क़ल्ब हारकर
हमी को जीतकर गया

जाते जाते भी देखिए
निगार बोलकर गया

तूने छुआ निगाह से
जमाल ये निखर गया


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इक गुलाबी गुलाब सी है वो

क्या कहूँ लाजवाब सी है वो

आब गंगा चनाब जैसी है,गर

प्रश्न हूँ मैं, जवाब सी है वो


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शख़्सियत लाजवाब रखते हो

क़ल्ब में इक गुलाब रखते हो

पूछे है जब सवाल शोख़-ए-हवा

ख़ामुशी का हिज़ाब रखते हो

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प्रेम समाधि..!

नर मन मधुप,
प्रेयसी ईप्सा रत।
मनोभाव विचरण,
सौंदर्य सम्मोहन।
भावनात्मक समागम,
आत्ममिलन।
नर मन मदमस्त,
नारी मन पुष्पासव।
तन्मय द्वी हिय,
अद्भुत प्रीत तृप्ति ।
हेत धरातल ,
ऐक्य अनुभूति।
प्रेम समाधि ।।

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ग़ज़ल..!

सच है कि धोखों से कभी राहत नहीं रही
ताउम्र मुझमें भी तो सियासत नहीं रही

उनको भी ख़ामुशी में महारत नहीं रही
हर्फ़ों में अब मेरे भी शिकायत नहीं रही

अशआर हाले दिल बयाँ करने लगे हैं,अब
हर्फ़ों को ख़ामुशी की भी आदत नहीं रही

गर चे यूँ वक़्त की चली हैं आँधियाँ,मगर
कैसे कहूँ कि तुमसे मुहब्बत नहीं रही

किरदार अलहिदा है भवानी समझ लीजे
गर चे कभी भी उसमें सियासत नहीं रही

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"जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह" द्वारा गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में वीडियो काव्य गोष्ठी का आयोजन..!
कोलकाता के साहित्यिक समूह "जय नदी जय हिंद" द्वारा "गणतंत्र दिवस" के उपलक्ष्य में 24 जनवरी 2020, शुक्रवार एवं 25 जनवरी 2020,शनिवार को द्विदिवसीय काव्य, गीत, भजन व ग़ज़ल गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। भारत के विभिन्न राज्यों के 31 कवियों एवं कवयित्रियों द्वारा जलहित, नदीहित, पर्यावरण, प्रकृति, देशप्रेम,भजन एवं विभिन्न सामाजिक और राष्ट्रीय विषयों के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से ऑनलाइन काव्यपाठ में बेहतरीन प्रस्तुति से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया गया।
समूह की संस्थापिका एवं अध्यक्षा शावर भकत "भवानी" ने बताया कि काव्य पाठ में सरला मेहता, उषा गुप्ता, राजीव नसीब,उस्मान ग़नी ख़ान,  मणि बेन द्विवेदी, रत्ना बापुलि, रेणुका सिंह, अमृता कश्यप, बिसेन श्रद्धा, नफे सिंह योगी मालड़ा , तिन्नी श्रीवास्तव, रीता 'अदा', मधु चोपड़ा, डॉ अंजू लता सिंह, कमल पुरोहित, रिपुदमन झा पिनाकी, अनिता तोमर, कुमुद साहा, अनिल कुमार निश्चल, मनीषा सहाय, गीता परिहार, कुसुम लता कुसुम, रंजना माथुर, कृष्ण कुमार दूबे, कुसुम त्रिवेदी, नीरज सिंह, निक्की शर्मा, पूनम त्रिपाठी, रचना उनियाल, अरविना गहलोत एवं गीता धवन लकवाल के बेहतरीन पाठ ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। सभी द्वारा एक से बढ़कर एक मनमोहक, मधुर स्वर में बेहतरीन वाचन किया गया।अतिसुन्दर पाठ से मात्र साहित्यिक परिवेश ही नहीं बल्कि सभी के मन मस्तिष्क भी आह्लादित हो गए। कवियों व कवयित्रियों  द्वारा स्वरचित एवं प्रसिद्ध रचनाकारों की रचनाओं का भी पाठ अतिउत्तम तरीके से किया गया। 
जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह के संरक्षक राजीव नसीब द्वारा सभी का उत्साहवर्धन किया गया एवं भविष्य में भी इस तरह के उत्साहवर्धक आयोजन करते रहने हेतु प्रयासरत रहने की बात बताई गई।
शावर भकत "भवानी" ने बताया कि "जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह " भविष्य में राष्ट्रीय,पर्यावरण व सामाजिक दिवसों के उपलक्ष्य में विभिन्न प्रकार के आयोजनों द्वारा जलहित,राष्ट्रीयहित एवं सामाजिक हित हेतु जागरूकता एवं प्रेरणादायक आयोजन करने का प्रयास करेगा। आयोजन के अंत में समूह की अध्यक्षा शावर भकत "भवानी" द्वारा सभी सम्मिलित कवियों एवं कवयित्रियों को बधाई प्रेषित करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना के संग उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया।

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ग़ज़ल..!

ख़ामोशी पढ़ें सब सुनाई हुई है
सनम राज़े उल्फ़त बताई हुई है

हमारी तुम्हारी लड़ाई हुई है
तभी दोस्ती मुस्कुराई हुई है

मेरे हौसलों से नहाई हुई है
तभी ज़िंदगी मुस्कुराई हुई है

लकीरों की कुछ बेवफ़ाई हुई है
मुहब्बत मेरी भी पराई हुई है

बशर गर पढ़ाई लिखाई हुई है
तो इंसानियत क्यों गंवाई हुई है

तुम्हारी ग़ज़ल गुनगुनाई हुई है
कि ख़्यालात में मुस्कुराई हुई है

ज़रा जलने की बू सी आई हुई है
हो ना हो मेरी भी बड़ाई हुई है

बुलंदी की पहली बड़ाई हुई है
तभी आपकी भी बुराई हुई है

ग़ज़ल की ये पहली चढ़ाई हुई है
कलम की फ़क़त कुछ घिसाई हुई है

मिठाई सगाई की आई हुई है
प' महबूबा मेरी पराई हुई है

ये सौदागरों की बनाई हुई है
तभी दोस्ती भी लजाई हुई है

चमक हुस्ने सीरत पे छाई हुई है
यक़ीनन तज़ुर्बा कमाई हुई है

निगाहों में तुझको दिखाई हुई है
फ़क़त तेरी सूरत बसाई हुई है

ये सच औलादों ने भुलाई हुई है
कि अश्कों से गंगा नहाई हुई है

फ़क़त कुछ कलम की घिसाई हुई है

मगर ये भवानी तो छाई हुई है


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ग़ज़ल..!
वही इक राज़दाँ मेरा,वही इक पासबाँ मेरा
यक़ीनन गर ज़मीं हूँ मैं, तो वो है आसमाँ मेरा

कभी बुझता धुआँ मेरा,कभी उठता धुआँ मेरा
कि वादी ए मुहब्बत में, सुलगता सा धुआँ मेरा 

सआदत है मेरी धड़के है जब भी दिल यहाँ मेरा
नफ़स क़ासिद कहे है, हाले दिल उसको वहाँ मेरा

जो भी हूँ सामने हूँ, कुछ नहीं पीछे निहाँ मेरा
सो खुद्दारी अजां मेरा ,भरोसा है ज़बाँ मेरा

सियासत सीख ना पाई, हुनर ये ना तवाँ मेरा
हकीकत है भवानी ये, न कोई हमज़बां मेरा

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"नदी चैतन्य हिंद धन्य" एक आह्वान..!

शावर भकत भवानी की एकल काव्य संग्रह 'अरुणोदय' और जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह की प्रथम साझा संग्रह 'नदी चैतन्य हिंद धन्य 'का द्वितीय संस्करण पिछले दिनों संपादक शावर भकत 'भवानी' के सौजन्य से मिला। धन्यवाद ।
प्रगति वार्ता कार्यालय में उपस्थित कवि, साहित्यकार एवं अन्य बुद्धिजीवियों के बीच में दोनों पुस्तकों का पुनः लोकार्पण भी किया गया।
नदी चैतन्य हिंद धन्य लघु कलेवर के पुस्तक की संपादिका और सहयोगी रचनाकारों की चिंता स्वाभाविक है जो कि राष्ट्र हित में ,पर्यावरण और पारिस्थितिकी  के हित में है।नदीहित के साथ ही अन्य जल स्त्रोतों के हित में है । 
सभी रचनाकारों ने कविता एवं लेख के माध्यम से नदियों एवं जल स्रोतों को बचाने के विषय में अपने भाव एवं विचारों को प्रकट किया है, जो प्रशंसनीय एवं सराहनीय है।
संपादिका शावर भकत 'भवानी' ने अपने जन्म स्थान के निकट स्थित उधवा पक्षी अभयारण्य के विषय में लिखा है।सरकारी संरक्षण के बाद भी उसकी स्थिति में सुधार नहीं है ।
गंगा ,यमुना इत्यादि नदियों के साफ सफाई की सरकारी योजनाओं के द्वारा करोड़ों रूपये खर्च के बाद भी  सार्थक परिणाम नहीं  मिल रहे हैं ।
शावर भकत 'भवानी' ने आह्वान किया है कि हिंद को धन्य बनाने के लिए सभी वर्गों का समर्थन और सहयोग अपेक्षित है ।
आम नागरिकों का सहयोग ही हिंद को धन्य बना सकता है ।
किसी भी पुस्तक का नया संस्करण उसकी स्वीकार्यता का प्रमाण है ।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।
राम जनम मिश्रा
वरिष्ठ साहित्यकार/जर्नलिस्ट
प्रगति वार्ता
साहिबगंज
21/12/2019.

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धरा आधी हमारी और आधी ये तुम्हारी है
यक़ीनन तुम्हारे त्याग अर्पण की अभारी है
कि हो त्रिज्या तुम्हीं पति की, तुम्हीं हो परिधि संतति की 
बनो माँ भारती की भाल,तू भारत की नारी है


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आँसू..!!
नीर पुष्कर में कमलनयन
विचरण करते अविराम
अलकनन्दा सी पवित्र
अप्रत्याशित अविरल धारा
अविलम्ब स्वतः प्रवाहित
आह्लाद उत्कर्ष में वारि निर्मल
वेदना ,अंत, नीर प्रवाह
अनिच्छित, न व्यवधित
नीर प्रवाह निरन्तर
अपार भावनाओं के वशीभूत
द्रव कुशल संवेदना दिशा में
करे भ्रमण प्रवाहित नयन
महादेव जट स्रोत से गतिमान
सुरसरिता सी निश्चल
सुखकर,दुखकर,सदैव 
लालिमा युक्त सरोवर
अश्रुधारा के पावस में
बहते मन मलिन
पीड़ा में निरन्तर अविरल प्रवाह
उर संतोष संग पूर्णता
अनकहे, अनसुने ,अबूझ अंतर्मन 
आँसू में लिप्त होकर
पावे स्वतः विशेष निदान।
सम्प्रति:-"अरुणोदय" एकल काव्य संग्रह



ग़ज़ल...!

है मुश्क़िल डगर पर ठहरना भी क्या
कि नज़दीक मंज़िल है,डरना भी क्या

कि हरपल ही ख़्यालात में रहते हो 
भला ख़्वाब से अब गुज़रना भी क्या

यकीं खुद पे और हौसलों पे है जब
बशर दौरे दुनिया से डरना भी क्या

किजे गौर हूँ शख़्सियत अलहिदा
कि बिगड़ी नहीं तो सुधरना भी क्या

सितम दोस्त दुश्मन करे लाख,पर
भवानी सियासत से डरना भी क्या...!

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भारतीय नौसेना के कोलकाता शाखा के वॉरशिप ओवरसीइंग टीम द्वारा शावर भकत "भवानी" का उत्साहवर्धन किया गया..! 
दिनांक 20 नवंबर 2019,बुधवार भारतीय नौसेना के कोलकाता शाखा के वॉरशिप ओवरसीइंग टीम (WOT) के सालगिरह समारोह में आमंत्रित करने एवं काव्य पाठ का अवसर प्रदान करने के लिए शावर भकत भवानी ने समस्त अधिकारियों को धन्यवाद व्यक्त करते हुए वॉरशिप ओवरसीइंग टीम के अधिकारी की पत्नी होने पर गर्व जताया कि उन्हें यह अवसर प्रदान किया गया।शावर भकत भवानी द्वारा कार्यक्रम में उनकी एकल काव्य संग्रह 'अरुणोदय' एवं जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह की प्रथम साझा संग्रह पुस्तक 'नदी चैतन्य हिंद धन्य' की रॉयल्टी का एक अंश कोलकाता शाखा के भारतीय नौसेना के वॉरशिप ओवरसीइंग टीम वेलफेयर फन्ड में समर्पण हेतु आदरणीय कोमोडर जयंत चौधुरी जी(युद्धपोत उत्पादन अधीक्षक)के हाथों में समर्पित की गई। भारतीय नौसेना के कोलकाता शाखा के कोमोडोर आदरणीय जयंत चौधुरी जी(युद्धपोत उत्पादन अधीक्षक),आदरणीय कमांडर मोहम्मद एम हुसैन जी, आदरणीय कैप्टेन सन्दीप लाहिरी जी एवं कई अधिकारियों को दोनों पुस्तकें भेंट स्वरूप देकर गौरवान्वित अनुभव करने की बात शावर भकत भवानी द्वारा बताई गई एवं  भविष्य में और बेहतर लिखने का प्रयास करते रहने की भी इच्छा ज़ाहिर की गई।शावर भकत ने बताया कि वॉरशिप ओवरसीइंग टीम के अधिकारी की पत्नी हिसाब से भी यह हर्ष एवं गौरव के पल थे कि उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए भारतीय नौसेना के अधिकारियों द्वारा यह अवसर प्रदान किया गया।शावर भकत ने भारतीय नौसेना के कोलकाता शाखा के समस्त अधिकारियों एवं वॉरशिप ओवरसीइंग टीम के समस्त अधिकारियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए भारत की सेना के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित किया।

शावर भकत ने बताया कि उनकी दिली ख़्वाहिश है कि उनके निजी एकल पुस्तकों एवं साहित्यिक समूह जय नदी जय हिंद की साझा पुस्तकों की बिक्री से प्राप्त राशि का और बड़ा अंश भविष्य में भारतीय सेना को समर्पित करने का सौभाग्य उन्हें पाठकगण देंगे।
शावर भकत भवानी ने बताया कि भारतीय नौसेना के कोलकाता शाखा एवं डब्लू ओ टी टीम के अधिकारियों की व्यवहारकुशलता एवं बिताए गए समय की स्मृतियाँ सदैव उनके लिए उत्साहवर्धन स्वरूप धरोहर रहेंगे कि वह एवं साहित्यिक समूह जय नदी जय हिंद और बेहतर व देशहित उद्देश्य परक साहित्यिक कार्य को लेकर प्रयासरत रह सकें।

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जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह द्वारा बालदिवस विशेष वीडियो काव्य गोष्ठी का आयोजन..! कोलकाता के साहित्यिक समूह "जय नदी जय हिंद" द्वारा "बालदिवस" के उपलक्ष्य में 13 नवंबर 2019, बुधवार को भारत के विभिन्न राज्यों के सरकारी एवं गैर सरकारी स्कूलों के बच्चों में जलहित, नदीहित, पर्यावरण, प्रकृति, देशप्रेम एवं विभिन्न सामाजिक और राष्ट्रीय विषयों के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से ऑनलाइन कहानी पाठ एवं काव्यपाठ गोष्ठी आयोजित किया गया।

 समूह की संस्थापक एवं अध्यक्ष शावर भकत "भवानी" ने बताया कि इस गद्य  एवं पद्य पाठ गोष्ठी को  "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" अभियान को समर्पित किया गया, ताकि जनमानस में लड़कियों के प्रति सकारात्मक संदेश जाए एवं बेटियों की महत्ता को स्वीकार करते हुए इस दिशा में सुखद कार्य करने हेतु आशावादी सन्देश जा सके।
जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह की प्रथम साझा संग्रह "नदी चैतन्य हिंद धन्य" पुस्तक की सफ़लता के बाद शीघ्र ही समूह की द्वितीय साझा संकलन पुस्तक भी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत होगी।
कहानी पाठ एवं काव्य पाठ में स्माही गर्ग , यथार्थ नेवटिया, उदिता भकत, पावनी माथुर, तनिष दत्ता, तुहिना बापुलि, नव्या त्रिपाठी, दिव्यांशु मौर्य, शैलेन्द्र मौर्य, ध्वनित गोयल, खंसा खान, अलफिया खान, 
आयशा अंसारी, अक्षत सिंह, गुलअफ़शा, अक्षत सीलियान एवं प्रेक्षा माहेश्वरी के बेहतरीन पाठ ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
सभी 17 बच्चों द्वारा एक से बढ़कर एक मनमोहक, मधुर स्वर में बेहतरीन वाचन किया गया। 4 वर्ष से लेकर 16 वर्ष तक के छात्रों एवं छात्राओं के अतिसुन्दर पाठ से मात्र साहित्यिक परिवेश ही नहीं बल्कि सभी का मन मस्तिष्क भी आह्लादित हो गया। बच्चों द्वारा अपने अभिभावकों एवं प्रसिद्ध रचनाकारों की रचनाओं का पाठ अतिउत्तम तरीके से किया गया। 
जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह की उपाध्यक्ष डॉ प्रतिभा गर्ग एवं संरक्षक राजीव नसीब द्वारा बच्चों का उत्साहवर्धन किया गया एवं भविष्य में भी इस तरह के प्रेरणादायक एवं उत्साहवर्धक आयोजन करते रहने हेतु प्रयासरत रहने की बात बताई गई।
शावर भकत "भवानी" ने बताया कि गोष्ठी में शामिल कई बच्चों के लिए इस तरह के आयोजन में शामिल होना प्रथम अवसर था कि वे अपनी प्रतिभा सभी के समक्ष प्रस्तुत कर सकें। जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह द्वारा सभी सम्मिलित बच्चों के उत्साहवर्द्धन हेतु उन्हें सम्मानपत्र प्रदान किया गया।
शावर भकत "भवानी" ने बताया कि "जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह " भविष्य में भी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री एवं बच्चों के चाचा नेहरू के जन्मदिवस 14 नवंबर के उपलक्ष्य में एवं साथ ही साथ विभिन्न विशेष दिवस आयोजनों द्वारा भारत के भविष्य इन नन्हे- मुन्ने और किशोर बच्चों को लेकर प्रेरणादायक आयोजन करने का प्रयास करेगा। 
आयोजन के अंत में समूह की अध्यक्ष शावर भकत भवानी द्वारा सभी सम्मिलित बच्चों, उनके शिक्षकों एवं अभिभावकों को बधाई प्रेषित करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना के संग धन्यवाद ज्ञापित किया गया।

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काश टाइम मशीन से भूत में जा सकती तो..!

श्वासों का श्वासों से
संवाद स्वर सदृश है काश।
अदृश्य पहलुओं का
शाब्दिक दृश्य है काश।

काश जीवन वर्तमान से
भूतकाल में प्रवेश करे और
यौवनता के मधुरतम पलों को
तुम्हारे संग बिता लूँ।

नैनों की निःशब्दता में
सर्वस्व उजागर हो जाए।
अधरों की उष्णता में
तुम्हें महसूस करती।

एक दूसरे के मौन शब्दों को
स्पष्ट पढ़ लेते और
रोम रोम तुम्हें और सिर्फ़ तुम्हें
अनुभव करते।

अधूरी इच्छाओं को
सम्पूर्णता दे पाती।
शर्म,रीति रिवाजों से परे
प्रेम नवगीत सुनाती।

दिल के अधूरे एहसास में
तुम्हें सम्पूर्ण नाम देती।
तुम पुरुष हो इसलिए निःसंकोच
अपने एहसास बोल दिए।
लेकिन मैं हाँ मैं प्रकृति सदा से
संकोच ,लज्जा बेड़ियों में उलझी।

भावनाशून्य न होते हुए भी
भावनाशून्य बनी रही।
प्रेम समय अधीन न होते हुए भी
पूर्णतः स्वाधीन भी नहीं।
बंधनमुक्त होकर भूत में मिल लूँ
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी बन जाऊँ।

समय को अनुरोध करके बोल पाती
काश!भूत से वर्तमान में वापस न आऊँ।
काश! प्रेम काल के अधीन न होता तो
शायद मैं तुम हम में परिणत होते और
प्रेम स्वीकृति के पराधीन नहीं होता और
टाइम मशीन से काश युक्त न होता।

अंतस टिस कहने को विवश न होते कि,
काश टाइम मशीन से भूत में जा सकती तो --------

सम्प्रति---अरुणोदय

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"नदी चैतन्य हिंद धन्य" साझा संकलन..!
      एक दृष्टिकोण (पुस्तक समीक्षा)
‘नदी चैतन्य हिन्द धन्य’ सुश्री ‘शावर भकत भवानी’ द्वारा संपादित एक ऐसी साझा संकलन पुस्तक है ,जिसे भारत के भिन्न-भिन्न राज्यों के प्रतिभावान कवियों,लेखकों ने अपनी कलम से सजाया है |
 सभी लेखकों ने अपनी लेखनी का ऐसा जादू चलाया है कि नदियों की निर्मलता और दुर्दशा दोनों ही हृदय में उतर जाती हैं | 
सुश्री ‘शावर’ जी , ‘डॉ प्रतिभा’ जी, ‘रूपल’ जी तथा श्री ‘जफ़र’ जी आदि सहित अन्य सभी लेखकों ने नदियों की महत्ता का ऐसा जीवंत वर्णन किया है कि महान कवि “काका कालेलकर” द्वारा नदियों को लोकमाता कहना सार्थक लगता है | 
 यूँ तो नदियों की महत्ता व संरक्षण पर पहले भी कई पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं, परन्तु यह पुस्तक बाकी पुस्तकों से अलग है | इस पुस्तक को लेखकों ने बड़े ही रोचक ढंग से लिखा है | चूँकि इस पुस्तक के अधिकांश लेखक भारत के भिन्न-भिन्न राज्यों से हैं और उन्होंने अपने-अपने राज्य में बहने वाली नदियों, झीलों तथा तालाबों का जीवंत वर्णन किया है ।अत: सब कुछ नेत्रों के समक्ष प्रतीत होता है |
 अपने-अपने क्षेत्र के जलाशयों की महत्ता,उनसे जुड़े अपने खट्टे-मीठे अनुभव व उनकी वर्तमान दुर्दशा का मार्मिक वर्णन हृदय स्पर्शी है | 
 प्रतिभा जी का यमुना वर्णन, शावर जी का पतौड़ा झील वर्णन , रूपल जी का दुखित मन से सरस्वती को ढूँढना दिल छू जाता है | अंजू जी का नर्मदा नदी के भेड़ाघाट का वर्णन पढ़कर ऐसा लगता है की मानो हम वहीं खड़े हों |
 कहा जाता  है कि ‘कलम तलवार से अधिक ताकतवर होती है’ | इस पुस्तक के सभी कवि व कवयित्रियों ने इसे सार्थक कर दिखाया है | पाठकों के हृदय पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है | यह पुस्तक दुकानों ,घरों के साथ-साथ भारत के कई प्रतिष्ठित विद्यालयों के पुस्तकालयों एवं भारतीय नौसेना के विभिन्न पुस्तकालयों में अपना विशिष्ट स्थान बना चुकी है।
 नदी चैतन्य हिंद धन्य एक उम्दा व सार्थक गद्य एवं पद्य विधाओं का संग्रह है | इसमें रोचक कविताओं के साथ-साथ नदियों के उद्गम , वहाँ की जलवायु, पशु-पक्षियों का भी वर्णन है |
 अभी से लो प्रतिज्ञा करो जल का संरक्षण
अन्यथा भविष्य में होगा जल का आरक्षण |
डॉ० प्रतिभा गर्ग जी की ये पंक्तियाँ अत्यंत प्रेरक हैं।इसकी भाषा छंदात्मक, गेयात्मक व सरल- सरस है | 
इस संग्रह को पढ़कर आम पाठक भी इनका आनंद उठा सकते हैं | इसे शौक से पढ़ा जा सकता है | इसमें विकसित की गई विचारधाराएँ, नीतियाँ एवं आदर्श स्वत: ही मन पर गहरी छाप छोड़ने में सक्षम है |
समीक्षक..!
नीलिमा चौहान, 
विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग
द वेंकटेश्वर स्कूल, गुरुगाम,हरियाणा
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साहिबगंज :- 05/11/2019.
बाल श्रम अभिशाप, हिंद का संताप..! बाल मज़दूरी या बाल श्रम जैसा कि शब्द उच्चारण के ध्वनि में ही विवशता एवं शोषण को उजागर करता हुआ प्रतीत होता है। किन्तु , यह घिनौना एवं कड़वा सत्य वर्तमान समय में भी विद्यमान है। कहाँ हम चाँद ,तारे और अन्य ग्रहों तक जाने लगे हैं और वही  दास प्रथा से भी पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाए हैं। भले उसका रूप परिवर्तित हो गया हो। परन्तु, शोषण तो शोषण ही है न, चाहे कैसे भी हो या किया जाए।

बाल मज़दूरी के अंतर्गत कार्यरत बालक या बालिका कानून द्वारा निर्धारित आयु से कम होने के बावज़ूद श्रम द्वारा जीविकोपार्जन करता हो या करने के लिए विवश हो या करवाया जाता हो। बाल श्रम औद्योगिक क्रांति के शुरुआत के साथ ही प्रारम्भ हो गया था।

प्रत्येक वर्ष 12 जून को बाल श्रम के समाप्ति के उद्देश्य हेतु विभिन्न सामाजिक संगठनों एवं सरकार द्वारा विश्व बालश्रम विरोध दिवस मनाया जाता है।
रिपोर्टों की मानें तो आज भी समूचे विश्व में करीब 15.2 करोड़ बाल मजदूर हैं। दुर्भाग्यपूर्ण एवं लज्जापूर्ण कटु सत्य है कि भारत में जनगणना 2011 की रिपोर्ट के मुताबिक़ एक करोड़ से ज्यादा बाल मजदूर हैं। क्या विकास है ? क्या आधुनिकता है ? क्या वाकई हमलोग शिक्षित हो गए हैं ? 
कृषि क्षेत्र में सर्वाधिक बाल श्रम देखने को मिलता है। इसके अलावा देह व्यापार, कारखानों, खतरनाक अवैध व्यवसायों एवं विभिन्न तरह के संस्थाओं, दुकानों इत्यादि में बाल मज़दूरी की बदत्तर हालात है और बच्चों का भयंकर शोषण होता है। 
जिस उम्र में हाथों में कलम और कंधों में स्कूल बैग होने चाहिए , अफ़सोस और शर्मनाक है कि उस उम्र में औज़ार, कुदाल, नशीले पदार्थ, कृत्रिम सौंदर्य  प्रसाधन थोपकर ग्राहक को मोहित करने जैसे घृणित कार्य पैसे के लिए बच्चे या बच्चियाँ कर रहे हैं।
गरीबी निसंदेह इसकी मुख्य वजह है। अशिक्षा, अनाथ, अपाहिज़ , नशा , देह व्यापार परिवार आदि से जुड़े होने के कारण भी यह अभिशाप अभी तक विद्यमान है। इन्हीं कारणों के कारण छुपकर भी बाल श्रम जारी है।
जी हाँ , आधुनिक भारत के लिए बाल मज़दूरी अभिशाप ही है और इस अभिशाप का उत्तरदायित्व मात्र सरकार का नहीं, बल्कि शिक्षित, अमीरवर्ग, आँखों में पट्टी बांधकर घूमने वाले निष्क्रिय सज्जनों के कारण भी है।
भारत और बंगलादेश सहित कई देशों में अभी भी बाल श्रम भयंकर और व्यापक रूप से विद्यमान है। यद्यपि भारत  के कानून के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे काम नहीं कर सकते, फ़िर भी कानून को नजरअंदाज कर दिया जाता है। विडंबना कैसी है कि बाल मज़दूरी स्वयं में गलत है और उसपर मालिकों द्वारा बच्चों को कम मज़दूरी दी जाती है। अर्थात इस तरह के शोषण के ऊपर शोषण की चरमसीमा को पार करना भी हैवानियत ही है।
बाल मज़दूरी को लेकर भारत का कानून क्या कहता है ?
14 साल से कम उम्र के बच्चों को कार्य देना गैरक़ानूनी है। यद्यपि इस नियम के कुछ अपवाद हैं ,जैसे कि पारिवारिक व्यवसायों में बच्चे स्कूल से वापस आकर या गर्मी की छुट्टियों में काम कर सकते हैं l इसी तरह फिल्मों में बाल कलाकारों को काम करने की अनुमति है, खेल से जुड़ी गतिविधियों में भी वह भाग ले सकते हैं l
हालाँकि बच्चे पारिवारिक व्यवसाय में सहयोग दे सकते हैं, ऊर्जा या बिजली उत्पादन से जुड़े उद्योग, खान, विस्फोटक पदार्थों से जुड़े उद्योग इसके अंतर्गत श्रम हेतु मनाही है।  
एक जागरूक भारतीय होने के नाते बाल श्रम के प्रति हम या आप क्या कर सकते हैं, इसे भी समझना ज़रूरी है।
कोई भी व्यक्ति जो 14 साल से कम उम्र के बच्चे से काम करवाता है अथवा 14-18 वर्ष के बच्चे को किसी खतरनाक व्यवसाय या प्रक्रिया में काम देता है, उसे 6 महीने से 2 साल तक की जेल की सज़ा हो सकती है और साथ ही 20,000 से 50,000 रूपए तक का जुर्माना भी हो सकता है l
रजिस्टर न रखना, काम करवाने की समय-सीमा न तय करना और स्वास्थ्य व सुरक्षा सम्बन्धी अन्य उल्लंघनों के लिए भी इस कानून के तहत 1 महीने तक की जेल और साथ ही 10,000 रूपए तक का जुर्माना भरने की सज़ा हो सकती है l यदि आरोपी ने पहली बार इस कानून के तहत कोई अपराध किया है तो केस का समाधान तय किया गया जुर्माना अदा करने से भी किया जा सकता है l
बाल मज़दूरी क़ानून का उल्लंघन होते हुए देखने पर हम या आप इसकी शिकायत पुलिस, बाल मज़दूर इंस्पेक्टर, सामाजिक संगठनों जो इस दिशा में कार्यरत व प्रयासरत हों या मजिस्ट्रेट से कर सकते हैं l 
बाल श्रम संज्ञेय अपराध श्रेणी में आने के कारण उल्लंघन होते देखने पर वारंट की गैर मौज़ूदगी में भी तुरन्त गिरफ़्तारी या जाँच प्रक्रिया की जा सकती है।
इस क़ानून के अलावा और भी ऐसे अधिनियम हैं जिनके तहत बच्चों को काम पर रखने के लिए सज़ा का प्रावधान है, पर बाल मज़दूरी करवाने के अपराध के लिए अभियोजन बाल मज़दूर कानून के तहत ही होगा l
इस क़ानून का उल्लंघन करने वाली परिस्थितियों से जिन बच्चों को बचाया जाता है उनका नए कानून के तहत पुनर्वास किया जाना चाहिए l ऐसे बच्चे जिन्हें देख-भाल और सुरक्षा की आवश्यकता है, उन पर किशोर न्याय  अधिनियम 2015 लागू होता है l
सामान्यतः बच्चों के अभिभावकों को अपने बच्चों को इस कानून के विरुद्ध काम करने की अनुमति देने के लिए सज़ा नहीं दी जा सकती है परन्तु यदि किसी 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे को व्यावसायिक उद्देश्य से काम करवाया जाता है या फिर किसी 14-18 वर्ष की आयु के बच्चे को किसी खतरनाक व्यवसाय या प्रक्रिया में काम करवाया जाता है तो यह प्रतिरक्षा लागू नहीं होती और उन्हें सज़ा दी जा सकती है l क़ानून उन्हें अपनी भूल सुधारने का एक अवसर देता है, यदि वह ऐसा करते हुए पहली बार पकड़े जाते हैं तो वह इसे समझौते की प्रक्रिया से निपटा सकते हैं, पर यदि वह फिर से अपने बच्चे को इस क़ानून का उल्लंघन करते हुए काम करवाते हैं तो उन्हें 10,000 रूपए तक का जुर्माना हो सकता है l
ये सभी तो कागज़ी बातें हुईं , किन्तु, इंसानियत क्या कहता है ?
सर्वप्रथम, गाँवों एवं शहरों में भी घरेलू कार्यों में बाल मज़दूर रखने का विरोध करना चाहिए। यदि गरीबी के कारण अभिभावक देना भी चाहे तो ,न करें एवं साथ ही साथ  यदि आप आर्थिक सक्षम हैं तो उस बच्चे के सामान्य शिक्षा हेतु सरकारी स्कूल में व्यवस्था कर दें या सामाजिक संगठनों की मदद लें। 
अमीर एवं मध्यम वर्ग परिवार अपने शौक के खर्चों को थोड़ा कम करके अपने आसपास ऐसे किसी एक बच्चा की ही सहायता करें। ज़रा सोचिए कि हिंदुस्तान जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में से कुछ शिक्षितवर्ग एवं जागरूक लोग ऐसे कार्य हेतु एक बच्चा को भी मदद करते हैं तो इस तरह से कितने बच्चे लाभान्वित होंगे ? अतः अत्याचार होते देखें तो कम से कम जितना हो सके उतना तो मदद अवश्य करें या करने की कोशिश करें।
सरकार को भी अब आँकड़ों से निकलकर धरातल पर कार्य करने की ज़रूरत है। तभी विकास का अर्थ सार्थक होगा, अन्यथा भारत को बाल श्रम अभिशाप से ग्रसित अग्रणी देश का काँटों भरा ताज पहने के लिए विवश रहना होगा।
बच्चे देश के भविष्य ही नहीं बल्कि वर्तमान भी हैं। वर्तमान के गर्भ से ही भविष्य का जन्म होता है। भारत का वर्तमान शोषित हो रहा है।अतः भविष्य भी प्रश्न चिन्हों के अंतर्गत ही है ? 

बाल श्रम अभिशाप हिंद का संताप सदृश ही है। निर्णय समस्त जनमानस एवं भारत सरकार दोनों को लेना है और उत्तर भी ढूंढना है। 
******ग़ज़ल..!
चलो ये हुनर भी बशर आज़माएँ
गमों से गुलाबी लबों को सजाएँ

कभी आप आएँ,कभी हम भी जाएँ
यूँ ख़्वाबों में ही रस्मे उल्फ़त निभाएँ

चलो हौसलों को बशर पंख देकर
फ़लक पे परिंदों जैसा फ़र्फ़राएँ

कभी हम गिराएँ,कभी तुम गिराओ
यूँ पलकों से ही राज़े उल्फ़त जताएँ

सियासी शोलों को बुझाकर भवानी
अमन चैन का इक जहाँ अब बनाएँ..! 

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( -: हाइकु :- )
गोवर्धन पूजा..!
लक्ष्मी स्वरूपा
आरोग्यता संपदा
 गोधन पूजा

 संत्रस्त जन
इंद्र मान मर्दन
 कृष्ण अर्चन

  प्रकृति कृपा
गिरिराज अर्चना
  समाज रक्षा

   धरा हर्षित
उँगली पे पर्वत
 गोपाल स्तुत

   गोसंवर्धन
लीलाधर की लीला
   छली है ग्वाला

  छपन्न भोग
अन्नकूट उत्सव
  कृषि महत्व

  वामन कान्हा
 है बलिप्रतिपदा 
    कृषक महा

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ग़ज़ल..!
मुझमें इक शख़्स नया हो जैसे
तपके कुंदन सा बना हो जैसे

आग का उठता धुआँ हो जैसे
दोनों ज़ानिब ही दिखा हो जैसे


खुद अकेले ही चला हो जैसे
आदमी कोई खरा हो जैसे

सान कर माटी खिला हो जैसे
वो गढ़ाई भी किया हो  जैसे

मुझमें शावर ये चढ़ा हो जैसे
शेर कहना भी नशा हो जैसे


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 रुदन करे खग
   ------------------
   हो
   सौम्य
   दीवाली
   द्युति भंग
   ध्वनित जग
     संत्रस्त विहंग
     रुदन करे खग

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ग़ज़ल..!

सिर्फ़ पलकों को गिराते और उठाते रहिए

हाले दिल आप छिपाकर भी बताते रहिए

ख़ामुशी पढ़ते भी रहिए और पढ़ाते रहिए
आप सुनिए मेरी अपनी भी सुनाते रहिए

शख़्सियत आप भी रवि जैसा तपाते रहिए
 खारा पानी भी समंदर में सुखाते रहिए

आप कदमों को धीरे धीरे बढ़ाते रहिए
रास्ता खुद के लिए खुद ही बनाते रहिए

खुद गमों को पीके दुनिया को हँसाते रहिए
बस भवानी ये हुनर सबको सिखाते रहिए
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साहिबगंज :- 16/10/2019. सौभाग्य एवं प्रेम प्रतीक पर्व करवा चौथ..!
 हमारे देश भारत में हिन्दू धर्म के अंतर्गत सुहागिन स्त्रियों द्वारा विभिन्न प्रकार के व्रत किए जाते हैं। इन्हीं व्रतों में करवा चौथ का व्रत अत्यंत पावन एवं प्रसिद्ध है। भारत के उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश , राजस्थान एवं पंजाब राज्यों में विशेष रूप से करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। आपसी प्रेम,सामंजस्य एवं सुहाग का प्रतीक है करवा चौथ, जो वर्तमान आधुनिक वयस्तता पूर्ण जीवन एवं दिन प्रतिदिन पति - पत्नी के बीच घटते प्यार को पुनः नवीन रूप से स्थापित करके सुदृढ़ करता है। रोज़ाना ज़िन्दगी के व्यस्तताओं एवं समयाभाव के कारण रिश्तों के बीच निःशब्दता एवं दूरियाँ जन्म ले लेती हैं। इन्हीं दूरियों को दूर करने में त्योहारों से भी कुछ हद तक सकारात्मक असर पड़ता है। करवा चौथ सुहाग की लंबी आयु के लिए किया जानेवाला प्रेम प्रतीक व्रत है। यह पर्व सुहागिन स्त्रियाँ मनाती हैं एवं सबसे अद्भुत बात यह भी है कि मात्र गाँव- देहात ही नहीं बल्कि महानगरों में भी आधुनिक स्त्रियाँ यह व्रत करती हैं।ऐसा मात्र भारतीय संस्कृति में ही देखने को मिलता है। करवा चौथ कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पूर्व ही 4 बजे के बाद शुरू होकर रात में चाँद के दर्शन के उपरांत ही पूर्ण होता है। प्रातः काल सरगी के रूप में प्राप्त भोजन करके व पानी पीकर निर्जला व्रत का संकल्प लिया जाता है। शास्त्रों की माने तो यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवा चौथ में  दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। 
किसी भी आयु, जाति, संप्रदाय की सुहागिन स्त्रियों को  इस व्रत को करने का अधिकार है। ऐसी मान्यता है कि यदि सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने पति की लम्बी आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं, तो वे यह व्रत अवश्य रखती हैं। करवा चौथ के दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, श्री गणेश एवं चंद्रमा की पूजा करने का विधान है।बालू या सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर पूजा की जाती है एवं कथा सुनी जाती है। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर ईश की भावना संग स्थापित करके भी पूजा होती है। शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर मोदक नैवेद्य बनाई जाती है।काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे में नैवेद्य रखकर अर्पित किए जाते हैं। एक लोटा, एक वस्त्र एवं एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित करके पूजन समापन किया जाता है। इसके बाद चौथ कथा सुनने या पढ़ने का नियम है। 
परिवारों एवं आस पास की सुहागिन स्त्रियाँ समूह में बैठकर चौथ पूजा संग में भी करती हैं । संध्या में चंद्रमा के उदित होते ही पूजन करके अर्घ्य  दिया जाता है। 
सुहागिन स्त्री पहले छलनी में दीपक रखकर चाँद को देखती है और उसके बाद पति को देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत खोलती है। सास को थाली में फल,मेवा, मिठाई, इत्यादि देकर बहू सौभाग्यवती होने का आशीष लेती है। पति के माता -पिता यदि जीवित हों तो उन्हें या न हों तो बड़े बुजुर्ग ,ब्राह्मण एवं सुहागिन स्त्रियों को भोजन भी कराना चाहिए एवं यथाशक्ति दान देकर बड़ों का आशीष लिया जाता है।
यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन  किया जाता है। यदि सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन व्रत रखना चाहें तो वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं।
हमारे देश भारत में चौथ माँ के कई मंदिर हैं। इनमें सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिला के अंतर्गत चौथ के बरवाड़ा गाँव में स्थित है।
इस साल करवा चौथ का व्रत अत्यंत शुभ दिन में है क्योंकि चंद्रमा अपनी पत्नी रोहिणी संग उदित होंगे अर्थात रोहिणी नक्षत्र में चंद्रोदय होगा। ज्योतिषियों के अनुसार ऐसा संयोग वर्षों के  बाद हो रहा है जो कि दुर्लभ है। ऐसी मान्यता है कि चौथ के दिन लाल, पीला जैसे रंगों के वस्त्र पहनने चाहिए जो सौभाग्य वृद्धि करते हैं।

सभी सुहागिन स्त्रियों को करवा चौथ के व्रत के दिन कोशिश करनी चाहिए कि सकारात्मक विचारों का चिंतन करें एवं कड़वे वचनों से दूर रहें। मन में ईश्वर को स्मरण करते हुए सुहाग एवं परिवार की सलामती की दुआ करें।ताकि, आपसी प्यार एवं अपनत्व से रिश्तों में मज़बूती आए और यह पावन पर्व घर- घर में खुशियों की वर्षा करे।

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साहिबगंज :- 13/10/2019. जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह की ऑनलाइन लघुकथा वीडियो गोष्ठी..! साहित्यिक समूह जय नदी जय हिंद द्वारा दिनांक 13 अक्टूबर 2019, रविवार को ऑनलाइन लघुकथा पाठ वीडियो गोष्ठी का आयोजन किया गया। जय नदी जय हिंद समूह जलहित एवं नदीहित उद्देश्य हेतु साहित्यिक जागरूकता लाने के लिए निरन्तर विभिन्न तरह के आयोजनों , प्रतियोगिताओं एवं पुस्तक द्वारा सदैव प्रयासरत रहने की कोशिश करता है। लघुकथा गोष्ठी में समूह के संरक्षक राजीव नसीब द्वारा जलसंरक्षण महत्ता हेतु सन्देशप्रेरक विचारों से सभी को अवगत कराया गया। समूह की संस्थापिका एवं अध्यक्ष शावर भकत" भवानी" ने बताया कि लघुकथा गोष्ठी में सोलह रचनाकारों द्वारा बेहतरीन लघुकथा पाठ किया गया। लघुकथाओं द्वारा जलप्रदूषण एवं नदी प्रदूषण जैसे गंभीर विषयों को लेकर प्रेरणादायक सन्देश देकर जागरूकता लाने का प्रयास किया गया। जय नदी जय हिंद समूह के लघुकथा वीडियो गोष्ठी में शामिल रचनाकारों में रंजना माथुर, रत्ना बापुलि, सरला मेहता, अनिल कुमार निश्छल, डॉ प्रतिभा गर्ग, उषा गुप्ता, रेणुका सिंह, मंजू सक्सेना, शिखा माहेश्वरी, गीता परिहार, शावर भकत "भवानी", अंजू खरबंदा, प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र, डॉ० अंजू लता सिंह , नूतन गर्ग एवं ज्योति जैन द्वारा अत्यंत बेहतरीन प्रस्तुति दी गई। समूह की अध्यक्ष शावर भकत भवानी एवं उपाध्यक्ष प्रतिभा गर्ग ने बताया कि जय नदी जय हिंद समूह जलहित उद्देश्य हेतु यूँ ही सदैव साहित्यिक जागरूकता लाने की कोशिश करेगा।

जय हिंद..!

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लघुकथा..! शुष्क सरिता..!
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सरिता ,ज़रा उधर सूर्यास्त का नज़ारा तो देखो।
वाह वाह ,आज घग्गर नदी के अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण दृश्य के दर्शन हो गए।

हाँ सागर ,अवर्णीय सौंदर्य है।

एक तो घग्गर स्वयं मौसमी नदी है और उसके ऊपर से मनुष्यों के स्वार्थों एवं शोषणों के फ़लस्वरूप घग्गर नदी को उपनदियों से कम जल प्राप्त होने के 
परिणामस्वरूप यह सूखने लगी है। हरियाणा भ्रमण से वापस जाकर ही इस विषय में कलम चलाऊँगा।
ज़रूर चलाना सागर क्योंकि शिक्षितवर्ग को शोषणों के प्रति कलम चलाना ही चाहिए।
बिल्कुल, सही बोल रही हो। देखना ,यह आलेख हमारे अख़बार में धूम मचाएगा। आख़िरकार नदी तो किसी से कुछ लेती नहीं है,बल्कि सबकुछ सहकर भी सदैव देती रहती है। अतः नदियों की निःशब्द वेदना को उजागर करना हम जैसे शिक्षितवर्गों का कर्तव्य है।
हाँ सही कहा तुमने, सहती रहती है।
चाहे घग्गर नदी हो या फिर मेरी सुसुप्त भावनाओं से निर्मित मूर्छित शब्दों की सरिता जो सरस्वती की तरह पूर्णतः शुष्क सरिता न बन जाए, उससे पहले ही ?
कवियित्री शावर भकत "भवानी" द्वारा रचित लघुकथा शुष्क सरिता का वाचन सुनने के लिए निचे लिंक/विडियो पर क्लिक करें..!    

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दरारें..!

कलयुग दिखाए अवांछनीय नज़ारे,
विवेक कपाट में उभरती निकृष्ट दरारें।

विवेक सदैव मनुज सद्बुद्धि द्योतक ,
जाग्रत विवेक ही शुद्ध चित्त प्रतीक।

जन्मजात प्राप्त विवेक शाश्वत सत्य,
त्याज्य व करणीय विवेकाधीन तथ्य।

अविवेकी धरित्री भार सम करे विचरण,
दूरदर्शी विवेकी अभ्र तक रचे कीर्तिमान।

हितकारक अहितकारक निर्णायक शक्ति,
स्व समंजित क्षमता निखारे इच्छाशक्ति।

 ज्ञात सत्य ज़िन्दगी अनसुलझी पहेली ,
मन हठी शिशु न समझे विचारों की रैली।

मनाते बनाते निभाते हँसाते रुलाते पल,
विवेक फाटक दरक में भ्रमित मायाजाल।

स्वार्थ, अहं,असत्य चतुर्दिक विद्यमान,
त्याग, निजत्व,सत्य दुर्लभ अनमोल रत्न।

कठपुतली सम मनुज करे नर्तन जीवनपर्यंत,
अंतोतगत्वा कर्मों की गठरी सर्वश्रेष्ठ वित्त।

क्षणभंगुर श्वास बावरा पँखेरू प्रतीक्षारत,
खोना -पाना व अपना-पराया मात्र कल्पित।

काहे करे निज विवेक पुकार अनसुना,

संचित व क्रियमान कर्मों का होगा गणना।

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दुर्गा..!

नमो दुर्गा दुर्गतिनाशिनी, जाग्रत होओ गिरीनन्दिनी,
आह्वान करे संसार, हे! दुर्गा सुखकरनी दुखहरनी।

शिशिर शारदीय धरा नभ चतुर्दिक दीप्तिमान ,
मातृ पद्धवनि स्वर भूवन में मोहे सर्व कर्ण,
आदिशक्ति करो शक्ति संचार तुम प्रतिक्षण ,
शाक्त संप्रदाय साक्ष्य सर्वोच्च शक्ति स्त्रेण,
दुर्गमासुर वध से दुर्गा रूप में हुई विद्यमान,
 दिव्य तेज से महिषासुर मर्दिनी दुर्गा उत्पन्न,
प्राणप्रतिष्ठा कर माटी मूर्ति में सर्वत्र पूजन,
दुर्गोत्सव उमंग प्रदत्त करे आशावान जीवन।

कालरूप सदाशिव विग्रह शक्ति अर्धांगिनी,
श्रीअंग अभिन्न परम ब्रह्म शिवप्रिया नारायणी।

गौरी मुख्य रूप शांत,सुंदर ,गोर वर्णीय दैदीप्यमान,
षोडश मातृका ,प्रधान प्रकृति ,गतियों से सम्पन्न ,
अष्टभुजा ,नवदुर्गा ,पराशक्ति ,विष्णुमाया नमन,
विकराल,भयंकर रूप काली से जग ध्यानमग्न,
अभय,शक्ति प्रदायनी ,करे अस्त्र-शस्त्र धारण ,
सद्बुद्धि अधिष्ठात्री ने देवों से प्रदत्त शस्त्र किया ग्रहण,
बाहुबल धारिणी,अतुल्य ,सत्यस्वरूपा सत्या नमन।

दसप्रहरधारिणी,त्रिलोक स्वामिनी दुर्गा असुरनाशिनी
सिंह में सवार, दुर्गा निर्भय स्त्री द्योतक, देवी ब्राह्मणी।

चैत्र व आश्विन नवरात्र में नौरूप से जग प्रकाशमान,
ढोल-मृदंग,शंख-घण्टा स्वर गूँजे नभ-भू ,कण-कण,
पान,सुपारी ,बेलपत्र ,जवा, शिउली, पद्यम अर्पण,
पेड़ा, अनार,श्रीफल संग लाल चुनरी से देवी पूजन,
सुहागपिटारी से अराधना ,मिले अमर सुहाग वरदान,
नवमी तिथि में आह्लादित करे कुँआरी पूजन विधान,
नवरात्रि में शैव तांत्रिक गतिविधि साधना अनुष्ठान ।

नमो दुर्गा दुर्गतिनाशिनी,जाग्रत होओ गिरिनन्दिनी,
आह्वान करे संसार, हे! दुर्गा सुखकरनी दुखहरनी ।।

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मेरे दृष्टिकोण से सर्वोपयुक्त श्राद्ध..!

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आश्विन कृष्ण पक्ष से पितृपक्ष प्रारंभ होता है और हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए लोग उनका तर्पण करते हैं।इसे महालया और पितृ पक्ष भी कहते हैं। आस्था एवं परम्पराओं के अनुसार श्राद्ध का अर्थ अपने वंश परंपरा, देवों ,पितरों के प्रति श्रद्धा समर्पण है।हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि जो स्वजन शरीर त्याग कर चले गए हैं चाहे वे किसी भी रूप में अथवा किसी भी लोक में हों, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, वह श्राद्ध है।केवल तीन पीढ़ियों का श्राद्ध और पिंड दान करने का ही विधान है। 
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखें तो हमारे पूर्वजों से गुणसूत्र के माध्यम से हम सभी जुड़े हुए हैं।
गुणसूत्र या क्रोमोज़ोम सभी वनस्पतियों व प्राणियों की कोशिकाओं में पाये जाने वाले तंतु रूपी पिंड होते हैं, जो कि सभी आनुवांशिक गुणों को निर्धारित व संचारित करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि पूर्वजों के आत्मा से हमारा जुड़ाव होता है और इन्हीं सम्बन्धों की मजबूती के लिए जल व मंत्र द्वारा तर्पण किया जाता है। यदि ध्वनि तरंग के तथ्य को माना जाए तो यह भी तर्कसंगत लगता है कि मंत्रोच्चारण व जल द्वारा पितरों की तरंगित आत्मा से सम्पर्क स्थापित होता है।
किन्तु, वर्तमान परिदृश्य में पिंडदान व तर्पण परम्पराओं में प्रयोग होने वाली सामग्री व अनाज नदियों में प्रवाहित करने से प्रदूषण में भी वृद्धि हो रही है। हालांकि, काफी स्थानों में सरकार द्वारा जल प्रदूषण रोकथाम उद्देश्य से इन अनाजों व सामग्रियों द्वारा खाद बनाए जाने की दिशा में निरन्तर नवीन प्रयास किये जा रहे हैं।
किन्तु, अशिक्षित व पिछड़े इलाकों में आज भी इन कारणों की वजह से नदियों में प्रदूषण को बढ़ावा मिला है। फूल,माला व आटा के कचरों द्वारा जैविक खाद बनाने हेतु कई राज्यों में अन्वेषण भी हो रहे हैं और बनाए भी जा रहे हैं। 
वैज्ञानिकों के अनुसार नाइट्रोजन, पोटैशियम और कैल्शियम से युक्त खाद पौधों के पोषण और विकास के लिए काफी उपयोगी साबित होंगे।
कौआ को मान्यताओं के अनुसार कर्कश आवाज और कई स्थानों में अपशकुन के रूप में माना जाता है। किन्तु, पितरों या अपने दिवंगत परिजनों को समर्पित श्राद्ध पक्ष के दिनों में कौओं और कुत्तों का विशेष महत्व होता है।
हिन्दू कर्मकांडों के मुताबिक़ यदि कौए आकर पिंड का भोजन खा लें तो पितरों को प्राप्त हो जाता है। वैसे तो कौआ को पर्यावरण की रक्षा करने वाला पक्षी माना जाता है, किंतु यही कौआ पर्यावरण संरक्षण वृक्षों के फलों को खाकर चतुर्दिक गंदगी भी फैलाता है। किसी भी चीज के दो पक्ष होते हैं और यह हमारा निजी अवलोकन व निर्णय होता है कि हम किस पक्ष का चयन करते हैं , बस ध्यान रहे कि वह हितकर हो न कि किसी का अहितकर ,चाहे वह हमारे प्राकृतिक सम्पदाओं से 
सम्बंधित हों ? दूसरी तरफ़ शहरों में बढ़ते प्रदूषण के कारण कौओं की संख्याओं में भारी कमी देखी जा रही है।
किन्तु, क्या मात्र कर्मकांडों व परम्पराओं के पालनमात्र से ही पितरों के प्रति श्रद्धा भाव समर्पित किया जा सकता है?
जिन पूर्वजों ने हमारे लिए अरण्य पूर्ण, शुद्ध वायु एवं पर्यावरण को उपहार स्वरूप छोड़कर गए । क्या हमलोगों द्वारा उसके प्रति श्रद्धा पुष्प समर्पित किया जा रहा है?
क्या हमलोगों द्वारा पितरों की धरोहर चाहे पारिवारिक संस्कार , आपसी प्रेम, रिश्तों की महत्ता, देश के प्रति निष्ठा , पर्यावरण संरक्षण या जल संरक्षण की ओर प्रयास किए जा रहे हैं ? 
क्या हमारे आत्मज भविष्य में पुरातन श्रद्धा भाव के अनुरूप हमारे लिए तर्पण करेंगे ? ज़रा सोचिए कि हमलोग आनेवाली पीढ़ियों को क्या देकर जाएंगे और जो देकर जाएंगे उससे क्या उनका भला होगा? 
जलप्रदूषण एकदिन जलसंकट को विकराल रूप देकर जाएगा और यह भी संभव है कि जल भी तर्पण हेतु क्रय न करना पड़े क्योंकि गंगा की दशा किसी से छुपी नहीं है। 
कहने का तात्पर्य है कि संस्कारों एवं परम्पराओं को अपनाए किन्तु, बंद आँखों से नहीं बल्कि खुली आँखों से स्वविश्लेषन करते हुए अपनाएं। 
 यदि किसी कारणवश सामर्थ्य न हो तो गाय को भोजन खिलाकर, चिड़ियों को दाना खिलाकर, पितरों को जल अर्पण कर के भी तर्पण किया जा सकता है। कर्मकांडों को जितनी शक्ति उतनी भक्ति की दृष्टिकोण से देखा जाना ही समस्याओं का निवारण है। दोनों हाथों को ऊपर करके भी पितरगण को श्रद्धा भाव समर्पण करके स्मरण करने से भी तर्पण किया जा सकता है। 
अर्थात यह निजी मानसिकता व सोच के ऊपर भी निर्भर करता है। वास्तविकता व प्रत्यक्ष के धरातल में श्रद्धा भाव दिखे न कि दिखावा हो। 
मेरे दृष्टिकोण से वचन ,कर्म, व्यवहार, रिश्तों के प्रति ईमानदारी, आपसी स्नेह, देश के प्रति निष्ठा ,पर्यावरण के प्रति जागरूक होना एवं मनुष्यता पूर्ण आचरण ही पितरों के प्रति श्रद्धा भाव पुष्प सम समर्पण है और तर्पण है जिन्हें आज़ीवन अनुसरण करना ही धरोहरों के प्रति श्रद्धा है और इससे ही पितरगण तृप्त होंगे।

अतः निष्कर्ष  यही निकलता है कि जो श्रद्धा से किया जाए वही श्राद्ध है ।

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कवयित्री शावर भकत 'भवानी' द्वारा स्वरचित रचना " रसास्वादन " का वाचन सुनने हेतु निचे लिंक पर या विडियो पर क्लिक करें..👇👇!
https://www.youtube.com/watch?v=_nfcbRW1EbY&feature=share&fbclid=IwAR15QHpOC4v1Zsr6DSxNmOcIERnXMEu6IPVmmNl6DyvPVUhw6XFNItrMP-k

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साहिबगंज :- 07/09/2019. 
जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह का जलसंरक्षण जागरूकता हेतु ऑनलाइन वीडियो काव्य गोष्ठी..!
 जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह द्वारा जलसंरक्षण, नदीसंरक्षण, जलप्रदूषण  एवं जलाशय प्रदूषण के प्रति साहित्यिक जागरूकता एवं कलम द्वारा चतुर्दिक सकारात्मक संदेश को पहुँचाने के उद्देश्य से ऑनलाइन वीडियो काव्य गोष्ठी का द्विदिवसीय आयोजन फेसबुक समूह में 6 सितंबर एवं 7 सितंबर को अत्यंत सफलतापूर्वक आयोजित किया गया । काव्य गोष्ठी में देश के विभिन्न राज्यों के 25 कवियों एवं कवयित्रियों द्वारा अपनी जलमहत्ता,सन्देशप्रेरक एवं  प्रेरणादायक रचनाओं के काव्य पाठ से खूबसूरत एवं संदेशात्मक माहौल में चार चाँद लगा दिया गया। काव्य गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में कोलकाता एवं देश के प्रसिद्ध साहित्यकार सुरेश चौधरी जी, विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रसिद्ध कवयित्री माधुरी स्वर्णकार जी एवं समूह के संरक्षक राजीव नसीब जी द्वारा  जलसंकट एवं जलप्रदूषण के प्रति सन्देशप्रेरक विचारों से सभी को अवगत कराया गया। वीडियो काव्य गोष्ठी में शामिल 25 रचनाकारों में रत्ना बापुलि , राजीव नसीब , डॉ प्रतिभा गर्ग, शावर भकत"भवानी", बी के शोभा, प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र , सरला मेहता, सुरेश चौधरी ,माधुरी स्वर्णकार,मधु चोपड़ा, ज्योति जैन, रंजना माथुर, अंजू खरबंदा, कृष्णकुमार दूबे, रवि शंकर विद्यार्थी, गीता परिहार, मनी बेन दवेदी, राजपूत गोकुल मौरा, स्वप्निल रंजन वैश्य, उमेश प्रसाद शर्मा फ़िक्र, आकिब जावेद , उषा गुप्ता , शिखा माहेश्वरी , खुशबू माथुर  एवं प्रभा नेह द्वारा बेहतरीन रचनाओं के काव्य पाठ से नदिया की कलकल सदृश मंत्रमुग्ध समा से आयोजन को अविस्मरणीय बना दिया गया।  समूह की संस्थापक शावर भकत भवानी ने बताया कि जय नदी जय हिंद समूह उपाध्यक्ष प्रतिभा गर्ग , सचिव बी के शोभा, मुख्य सलाहकार प्रियंका श्रीवास्तव  के सहयोग एवं संरक्षक राजीव नसीब जी के मार्गदर्शन में विभिन्न प्रकार के साहित्यिक आयोजन एवं कलम द्वारा लोगों में जलसंरक्षण के प्रति जागरूकता लाने हेतु सदैव प्रयत्न करेगा।

 
  
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साहिबगंज :- 06/09/2019. 
जय नदी जय हिंद साहित्यिक समूह द्वारा बच्चों एवं शिक्षिका को सम्मानित किया गया..! जय नदी जय हिंद ऑनलाइन साहित्यिक समूह द्वारा जलसंरक्षण, जलचक्र, नदी एवं प्रकृति हित को मद्देनज़र रखते हुए उपर्युक्त विषयों हेतु पाँच साल से लेकर सोलह साल तक के बच्चों को लेकर फेसबुक समूह में ऑनलाइन चित्र बनाओ आयोजन करवाया गया..। आयोजन में शामिल आठ बच्चों को समूह द्वारा..! " नदी चैतन्य, हिंद धन्य नवांकुर सम्मान" प्रदान किया गया..। नदी चैतन्य हिंद धन्य नवांकुर सम्मान प्राप्त बच्चों के नाम हैं :- ईशान टोप्पो, समीर यादव, माही चौधरी, विकेश किंडो, स्मही विजय, पावनी माथुर , उदिता भकत एवं तनिष दत्ता..। समूह द्वारा शा.मा.शा. आदर्शनगर, सीतापुर की एक जागरूक शिक्षिका आदरणीया स्नेहलता वर्मा जी को भी बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए " उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान " प्रदान किया गया..। समूह की संस्थापिका शावर भकत "भवानी" जी ने बताया कि इन्हीं चित्रों में से दो चित्रों को समूह की द्वितीय साझा पुस्तक में शामिल किया जाएगा..। हमारे देश भारत में भी भविष्य में आनेवाले जलसंकट को ध्यान में रखकर जय नदी जय हिंद समूह की उपाध्यक्ष डॉ० प्रतिभा गर्ग जी, सचिव बी के शोभा जी, संरक्षक राजीव नसीब जी एवं मुख्य सलाहकार प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र जी द्वारा जलसंरक्षण एवं नदीसंरक्षण हेतु जागरूकता लाने का भरसक प्रयास किया जा रहा है। शावर भकत"भवानी" जी ने बताया कि जय नदी जय हिंद समूह भविष्य में भी भारत के भविष्य अर्थात बच्चों को जलहित महत्ता समझाने हेतु विभिन्न प्रकार के उद्देश्यपरक आयोजन करने का भरसक प्रयास करेगा। 
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ग़ज़ल..!
ज़िन्दगी नख़रे करेगी एक दिन
यह निगाहें फेर लेगी एक दिन
माटी माटी में मिलेगी एक दिन
खोया पाया से हटेगी एक दिन
ज़िन्दगी के ठाठ पर मत जाइए
सिर्फ़ दो गज में सजेगी एक दिन
दोस्त दुश्मन मुझको इक जैसे मिले
क्या सियासत भी थकेगी एक दिन
लाख नख़रे ज़िन्दगी कर ले तू भी
है यकीं मुझको जमेगी एक दिन
बारहा वो अज़नबी कह दे मगर
गैर को अपना कहेगी एक दिन
सामने रब के भवानी झुकती है
सोचिए मत वो झुकेगी एक दिन


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कतअ..!
हौसला का हर शरारा भी बहुत होता है
दौरे गम में इक इशारा भी बहुत होता है
गर्दिश ए वक़्त पे हर डूबते को अक़्सर
एक तिनके का सहारा भी बहुत होता है..!

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मोती झरना....!  भारत का झारखंड राज्य खूबसूरत प्राकृतिक वरदानों से परिपूर्ण है। हालांकि, आधुनिक पर्यटक आज भी झारखंड के कई ऐतिहासिक व प्राकृतिक सौंदर्यपूर्ण पर्यटन स्थलों से अनभिज्ञ हैं। इसका मुख्य कारण प्रचार प्रसार की कमी है। जबकि, यह राज्य अतिसुन्दर मनमोहक प्राकृतिक परिवेश व ग्रामीण सादगी से परिपूर्ण जीवन शैली के संग बेहतरीन मौका पर्यटकों को देता है कि वे यहाँ अवकाश बिताएँ एवं अविस्मरणीय स्मृतियों को संजोकर ले जाएँ। झारखंड राज्य में साहिबगंज जिला का मोती झरना प्राकृतिक आकर्षण का एक मुख्य केंद्र है। मोती झरना झारखंड के साहिबगंज जिले के तालझारी प्रखण्ड में स्थित एक गांव है। यहाँ का प्राकृतिक दृश्य मनोरम है। स्वतः झरने से गिरती जल की बूँदें मन को मोह लेती हैं। झारखंड में कई खूबसूरत जलप्रपात मौजूद हैं, लेकिन साहिबगंज का यह वाटर फॉल सदैव ही पृथक अनुभव कराता है। अपने नाम के अनुरूप मोती झरना अत्यंत सुन्दर व आकर्षक है। 
यह जलप्रपात यहाँ की राजमहल पहाड़ियों से गिरता है। अवकाश में घूमने के लिए यह एक उत्तम गंतव्य है। पर्यटक यहाँ पिकनिक मनाने के उद्देश्य से भी आते हैं। प्रकृति से लगाव व प्रेम करनेवाले पर्यटकों के लिए मोती झरना स्वर्ग सदृश्य ही है। प्रकृति के मनोरम दृश्यों की फोटोग्राफी के शौकीन पर्यटकों को मोती झरना इधर स्वतः खींच लाता है। श्रावण मास में मोती झरना परिसर श्रद्धालुओं के बोल बम के जयकारे से गूँजता रहता है। वैसे तो हिन्दू श्रद्धालुओं का यहाँ सालभर आना जाना लगा रहता है, किन्तु सावन महीने में खासकर भीड़ काफी होती है।गुफा में स्थित भगवान भोलेशंकर के शिवलिंग पर जलार्पण कर श्रद्धालु मन्नतें माँगते हैं। साहिबगंज में राज्य सरकार की पर्यटन स्थलों को आकर्षक बनाने की कोशिशें अब पहले से ज़्यादा दिखने लगी हैं। वन विभाग द्वारा यहाँ पार्क और वाचटॉवर बनाया जा रहा है। पहाड़ों के बीच बसे मोतीनाथ बाबा मंदिर का भी कायाकल्प करने हेतु सरकार ने ध्यान देना शुरू किया है। वन विभाग द्वारा मोती झरने की सफाई और सौन्दर्यीकरण के संग कई उद्यानों में फूलों के पेड़ लगाए गये हैं। पहाड़ों के बीच बसे मोती झरने में सड़कों की मरम्मत और मंदिरों को भव्य बनाने की कोशिश की  जा रही हैं। देशी-विदेशी पर्यटक मोती झरना में भ्रमण के लिए आते हैं। यदि स्थानीय प्रशासन व राज्य सरकार मोती झरना के आस पास की व्यवस्थाएँ, रहने की सुविधाएँ एवं यातायात व्यवस्था में और ज़्यादा सुधार लाने में कामयाब होते हैं , तो भविष्य में पर्यटकों की भारी तादाद यहाँ बढ़ेगी और स्थानीय बेरोजगार युवकों को रोज़गार भी प्राप्त होगा। इसके साथ ही साथ संथाल परगना क्षेत्रों व ग्रामीण इलाकों में निर्धनता के कारण अपराध में भी कमी आएगी।


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तू इश्क़ मुहब्बत की दुनिया का खुदा होता
गर मेरे लिए क़िस्मत ने तुझको चुना होता
जो खाद लकीरों की जड़ को मिली होती तो
बगिया ये मुहब्बत उल्फ़त का और हरा होता..!

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कतअ...!
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गर चे थोड़ी मसरूफ़ हूँ, मग़रूर नहीं हूँ
क़िरदार यूँ उम्दा हूँ, प मशहूर नहीं हूँ
रहती हूँ सियासत से कोसों दूर मैं अक़्सर
इंसान हूँ, ज़न्नत की कोई  हूर नहीं हूँ..!

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झुक गई आपकी भावना देखकर
इश्क़ उल्फ़त मुहब्बत वफ़ा देखकर
बददुआओं पे भारी पड़ी कुछ दुआ
झुक गया सिर खुदा की रज़ा देखकर
देखिए मेरी क़िस्मत ज़रा गौर से
अपने मिलते हैं मुझसे नफ़ा देखकर
दोस्त दुश्मन गले मिलते हैं प्यार से
भोकते हैं वो खंजर मौका देखकर
छोड़कर मुझको मझधार में जो गए
खोजते हैं वो कश्ती हवा देखकर
मुझको हासिल महारत कलाकारी में
दाद रब भी देते हैं कला देखकर
अब मुरीदों में शामिल हैं दुश्मन मेरे
दोगुना चौगुना हौसला देखकर
ज़िन्दगी थक गई आज़माकर मुझे
गिरना उठना सँभलना अदा देखकर
पीठ पीछे तुझे कहते हैं प्रेरणा
सब भवानी तेरा हौसला देखकर
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ग़ज़ल..!
हैं दरमियाँ इक प्रयास आँखें
करे है इक़रार ख़ास आँखें
छलक जाती हैं ये दुख में सुख में
उदास आँखें मिठास आँखें
दफ़न हैं सीने में राज़ कितने
दो के ही अंदर पचास आँखें
ज़हन में इसके है शोर गहरा
ख़ामोशी की हैं निवास आँखें
ढके है अक़्सर ये तन गमों का
कि यास की हैं लिबास आँखें
झुकी उठी पलकों से कहे है
मेरे लिए ही हैं ख़ास आँखें
हैं उपमा उम्दा अदाकारी की
मिली "भवानी" को ख़ास आँखें..!
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लघुकथा..! 
बहता पानी..!
ऐs.! भोला भैया, बबुआ का केश ज़रा सावधानी से उतारना, कहीं कट न जाए..। बड़ी मुश्किल से कई महीनों के बाद मुंडन का बढ़िया दिन निकला है..। हे गंगा मैया..! मेरे बबुआ के ऊपर अपनी कृपा बनाए रखना..। 
संगीता भौजी, आप चिंता न करें, हम बबुआ का मुंडन सावधानी से ही करेंगे।
किसका फोन इस समय आ रहा है ? बिट्टू ज़रा पर्स से फोन निकालकर देख।
मम्मी, बड़े फूफा जी घर के बाहर खड़े हैं, ज़ल्दी बुला रहे हैं। ऑफिस के काम से पटना आए थे। लेकिन, घर में ताला देखकर फोन किए हैं ।
भैया, ज़रा ज़ल्दी से मुंडन करो, बाकी विधि विधान करके तुरन्त घर जाना है। 
बिट्टू चाय दुकान से पापा को बुलाकर ला, गंगा पूजन करके ज़ल्दी से घर जाऊँ।
संगीता अब चलो भी ,बड़े पाहुन घर के बाहर ही खड़े हैं।
बस हो गया, जय गंगा मैया ।
भौजी अब हम चलते हैं, देख लीजिए सब बढ़िया से कर दिए।
अरे, ये भोला भैया भी बहुत कामचोर है, आधा अधूरा कटा हुआ केश साफ़ किया और बाकी इधर ही छोड़ दिया। बिट्टू के पापा ज़रा रुकिए,---- केश सब पानी में बहा दूँ। कोई टोना टोटका न कर दे ? चलिए हो गया, बहा दी। चाय पीकर चलती हूँ। 
बैठो मैडम जी, फर्स्टक्लास इलायची वाली चाय पिलाता हूँ, तबतक आप बैठकर गाना सुनो----- मानो तो मैं गंगा माँ हूँ , न मानो तो बहता पानी--------?
वाचन सुनने के लिए निचे लिंक पर या विडियो पर क्लिक करें..👇👇!
https://www.youtube.com/watch?v=dUOvWpu_VeI&feature=share&fbclid=IwAR0UDCr50EUB9DUqbXyXa8QNT58xE6mHvfQJEBsnik93gjmxbq3eP3BPu-0

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ग़ज़ल..!

अज़ब ख़ुलूस अज़ब सादगी से करता है
है सच वो इश्क़ मुहब्बत मुझी से करता है 
वो ज़िक्र मेरा सदा बन्दगी से करता है
सो आशिक़ी तो फ़क़त शाइरी से करता है
कि क़त्ल करके वो नज़रों से बन गया मुंसिफ़
सो कटघरे में वफ़ा हाज़िरी से करता है
सुराख़ जज़्ब का कहता है हाले दिल उसका
वो आशिक़ी भी ज़रा सरगोशी से करता है
करे है शिकवा गिला तुझसे रोज़ाना गर चे
वो इश्क़ भी तो "भवानी" तुझी से करता है..!!

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बाढ़..!
1.  जलमग्न भू
     बाढ़ ग्रसित क्षेत्र
     व्यथित नेत्र ।
2.  नदी उफान
     कष्टमय जीवन
     बाढ़ तब्दील ।
3.  प्रकृति रोष
     महत्वाकांक्षा दोष
     बाढ़ निष्कर्ष ।
4.  भूमि स्खलन
     वन सर्वत्र क्षय 
     सैलाब  दृश्य ।
5.  सुनामी भय
     अनभ्यस्त बारिश
     बाढ़ त्रासद।
6.  अव्यक्त पीड़ा 
     विध्वंशक विपदा
     बाढ़  आपदा
7.  कृषक त्रस्त
     यातायात दुर्गम
     बाढ़ प्रकोप
8.  जलजमाव
     महामारी समस्या
     बाढ़ मलबा
9.  वृक्ष सन्तरी
     पर्यावरण रक्षा
     बाढ़ अल्पता
10. पुख्ता सुनीति
      शासन हस्तक्षेप
      बाढ़ पतन
11.   क्षुधा क्रंदन
        प्रदूषित अनाज
        आओ समाज
12.  नहर माँग
       जलाशय निर्माण
       बाढ़ दुरुस्त

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किसान..!
©कुमार संदीप..!
किसान का जीवन जीना 
नहीं आसान होता है
रोते हैं 
बिलखते हैं 
इनके दर्द 
फिर भी
न निकलती हैं 
इनके मुख से आह!
किसान का जीवन जीना 
नहीं आसान होता हैं
जब आती हैं आँधी 
घर का तिनका-तिनका 
बिखर जाता 
फिर बुनते हैं झोपड़ी 
गुजारने को दिन चार
किसान का जीवन जीना 
नहीं आसान होता है
बिटियाँ की शादी में 
बिक जाती हैं
झोपड़ी भी 
दब जाते हैं 
कर्ज के बोझ  से
किसान का जीवन जीना 
नहीं आसान होता है
कभी भूखे पेट भी 
पूरे दिन है कटते 
होती नहीं अन्नदाता को 
अन्न के एक दाने से ही भेंट

किसान का जीवन जीना 
नहीं आसान होता है
कड़कती धूप हो
या हो कंपकपाती ठंड 
नहीं हारते हिम्मत को 
रहते अटल खेतों में 
उम्मीदों के अभिलाषा लिए
किसान का जीवन जीना 
नहीं आसान होता है
नम आँखें
ये चेहरे की झुर्रियां
फटे पाँव
फटे कपड़ें 
करते हैं बयां इनके दर्द को 
किसान का जीवन जीना 
नहीं आसान होता है
अमुआ की डाली पर 
यूँ हीं नहीं देते बलिदान
ये बलिदान करता है बयां 
इनकी असहनीय पीड़ा को
किसान का जीवन जीना 
नहीं आसान होता है
हे ईश्वर दें आशीष
दूर करें इनकी पीड़ा
न हो इनके जीवन में 
दुख की रातें 
न हो इनकी नम आँखें

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ग़ज़ल..!
हाले दिल बुदबुदा ली गई
नज़्म में गुनगुना ली गई
इश्क़ दिल में दबा ली गई
बस ग़ज़ल में छुपा ली गई
लिख उन्हें शेर मफ़हूम में
रस्मे उल्फ़त निभा ली गई
हाले दिल हम पिरोने लगे
इश्क़ माला बना ली गई

तेरी सूरत मोहे इस कदर
दिल में मंदिर बना ली गई
बारहा ख़ामुशी में सनम
बात दिल की सुना ली गई
हैं दग़ाबाज़ ये पलकें सो
देख उनको गिरा ली गई
ख़्वाब आते कहाँ से उन्हें
रोग दिल की लगा ली गई
हो गया पलकों में कैद दिल
नींद जिनकी चुरा ली गई
ज़िक्र कंकर का करके सनम
 दर्दे उल्फ़त छुपा ली गई
साइकल सी है ये ज़िन्दगी
बस "भवानी"चला ली गई




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ग़ज़ल..!
गीत गाने की बात करते हैं
दिल लुभाने की बात करते हैं
दिल में आने की बात करते हैं
वो निभाने की बात करते हैं
दिल के बंजर ज़मीं पे वो उल्फ़त
गुल खिलाने की बात करते हैं
बारहा मेरा नाम रटने और
बुदबुदाने की बात करते हैं
हर मुखौटे पे है मुखौटा इक
क्या निभाने की बात करते हैं
ख़ामुशी में वो नाम लेके मेरा
गुनगुनाने की बात करते हैं
शेर मफ़हूम में भी वो अक़्सर
दिल लगाने की बात करते हैं
चाँद कहते हैं वो मुझे गर चे
चाँद लाने की बात करते हैं
मेरे अपने भी पीठ पीछे फ़क़त
खोने पाने की बात करते हैं
दिल के रस्ते से रूह तक वो जाके
मन मिलाने की बात करते हैं
हम "भवानी" ख़लिश में भी अक़्सर
मुस्कुराने की बात करते हैं..!
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ध्वनित कर दूँ..!

चक्षुओं से छेड़ अन्तर्मन तरंगों को,
जाग्रत करे सुसुप्त कामनाओं को।
मोहपाश मदिरा से सुधबुध सम्मोहित,
नैनों के सम्मोहन में चैन रैन मूर्छित।
आह ! अवर्णीय अनुभूति मनोदशा,
उफ़्फ़ आकर्षण महुआ का चढ़ता नशा।
हिय मध्य हूक संग धक धक स्पंदन,
रोम रोम सिहरन संग थर थर कम्पन।
प्रेम पराकाष्ठा पथ में पग पग डोलूँ ,
अधरों की निःशब्दता ध्वनित कर दूँ ।
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गंगा..!

१)
है
जग
विदित
प्रसू गंगा
सम्पदा गंगा
आय स्रोत गंगा
आस्था आधार गंगा


२)

है
तथ्य
माँ गंगा
शुचि गंगा
भजामि गंगा
निज मन चंगा
तो कठौती में गंगा
३)
है
राष्ट्र
सरिता
सरित्श्रेष्ठा
मोक्ष मान्यता
भारत सभ्यता
माता सुरसरिता




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साहिबगंज :- 30/06/2019. 
नदी चैतन्य,हिंद धन्य साझा पुस्तक समीक्षा..! नदी चैतन्य हिन्द धन्य के द्वितीय संस्करण को पढ़ने के पश्चात ....मन की बात..। जय नदी, जय हिन्द ऑनलाइन साहित्यिक समूह की संस्थापिका आदरणीया शावर भकत "भवानी" जी द्वारा संपादित साझा संग्रह "नदी चैतन्य हिन्द धन्य" का द्वितीय संस्करण कल मुझे प्राप्त हुआ....सर्वप्रथम मै आदरणीया शावर भकत जी का आभार प्रकट करता हूं कि आपने ये पुस्तक कोरियर करवाकर, मुझे इस पुस्तक से जुड़ने का अवसर प्रदान किया। पुस्तक अपने कवर पृष्ठ से ही प्रथम दृष्टया पूर्णतः जल, नदी के उद्देश्य को दृष्टिगत करती, साहित्यिक पुस्तक का भान कराती है, प्रिंटिग, अक्षरों का फ़ॉन्ट बहुत ही सधा हुआ है, जिसके लिए मै इस पुस्तक के प्रकाशक को भी साधुवाद देना चाहूंगा। "अपनी बात" में संपादक आदरणीया शावर भकत ’भवानी’ जी द्वारा आधुनिकता, औद्योगिकरण एवं शहरीकरण के परिणाम स्वरूप भूमंडलीय ऊष्मीकरण  एवं नदी संरक्षण व जल संरक्षण  पर व्यक्ति की गई चिंता जायज एवं समय की मांग है, जिसे हम सभी को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। कलम द्वारा शब्दों के माध्यम से नदी एवं जल के शोषण , गंदगी, अस्वच्छता, विलुप्तप्राय नदियों के बचाव हेतु किया गया अहवाहन, संपादक महोदया के प्रकृति स्नेह की तस्दीक करता है, आशा है कि इस जागरूकता अभियान में हम सभी रचनाकार अपनी अपनी हिस्सेदारी अवश्य करेंगे। बेहद सारगर्भित प्रस्तावना के लिए मै आदरणीया शावर भकत जी को बधाई प्रेषित करता हूं।
जय नदी जय हिन्द स्वर मिलकर अब गुनगुनाना है,
नदी बचाओ जीवन बचाओ सत्य अब समझाना है।
आदरणीया शावर भकत जी द्वारा रचित उक्त सृजन इस बात का द्योतक है कि कवियित्री जल, नदी, प्रकृति को लेकर कितनी चिंतित हैं, जो कि स्वभाविक भी है। 
संपादक महोदया द्वारा झारखंड राज्य में स्थित पतौड़ा झील, बरहेल झील एवं जलकुंभी के जाल में फंसी जलप्रजातियों पर व्यक्ति की गई चिंता सभ्य मानव समाज की असंवेदन शीलता की पहचान है, जिसे विस्तृत रूप से समझाने का प्रयास किया है....अब देखने वाली बात ये है कि हम में से कितने लोगों की आंखें खुलती है, संवेदना जागती है।
आगे बढ़ते हैं, आदरणीया डॉ प्रतिभा गर्ग ’प्रति’ जी द्वारा रचित 
नदियां रही पुकार, हैं ये तीर्थ का आधार,
अस्तित्व मांगे सुधार, संस्कृति को बचाइए।
अभी से लो प्रतिज्ञा करो जल का संरक्षण,
अन्यथा भविष्य में होगा जल का आरक्षण।
उक्त पंक्तियां, कविताएं  एवं यमुना नदी के प्रदूषण पर व्यक्ति की गई चिंता ये परिलक्षित करती है कि कवियित्री किस हद तक प्रकृति एवं जल, नदी, संरक्षण के प्रति संवेदनशील हैं। मै साधुवाद देना चाहता हूं ।
आदरणीया बी. के. शोभा जी द्वारा सृजित कविता शीर्षक "ये नदियां" "नदी हूं मैं" एवं आलेख शीर्षक ’शुद्ध विचार, स्वच्छता का आधार’ नदी, इसके अस्तित्व एवं  स्वच्छता पर की गई चिंता के लिए मैं कवियित्री को साधुवाद देता हूं....मानवता को संदेश देती आपकी दो पंक्तियां
सदियों से धरा को तृप्त मैं करती,
हां!नदी हूं मैं सबका भला हूं करती।
यथार्थ से दर्शन करवाती है।
आदरणीया अंजू निगम जी द्वारा सृजित "नर्मदा का आंचल" एवं "उचित निर्णय" सांस्कृतिक धरोहर एवं जागरूकता पर बेहद उम्दा है, जिसके लिए आप बधाई की पात्र हैं।
आदरणीया प्रियंका दुबे ’प्रबोधिनी’ जी ने यमुना नदी के इतिहास और यात्रा एवं गंगा और यमुना के दर्द का बहुत खूबसूरती से प्रस्तुतीकरण किया है साथ ही आपकी पंक्तियां :
माता नदियां हैं सभी वृक्ष पिता की छांव,
इनकी रक्षा सब करें रहे शहर या गांव।
नदी एवं पर्यावरण संरक्षण पर चिंता करती है, बहुत बहुत साधुवाद आपको
आदरणीया सुनीता सुमन जी द्वारा रचित
बहुत पावन है मेरा जल इसे गंदा नहीं करना,
नदी हूं मां सरीखी तुम कभी ऐसा नहीं करना।
एवं
इसके पावन जल में
कौन जहर सा घोल गया
दग्ध हृदय से करती मां
कातर स्वर में एक पुकार।
मां गंगा एवं अन्य सभी नदियों के संरक्षण एवं स्वच्छता हेतु एक विनम्र निवेदन है जिसे आज हम सभी को आत्मसात करने की आवश्यकता है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया सुनीता सुमन जी,आदरणीया रूपल उपाध्याय जी, आदरणीय विद्या भूषण मिश्रा जी, आदरणीय कुंवर कुशुमेश सर, आदरणीय सालिब चंदियानवी जी, आदरणीया अर्चना तिवारी जी, आदरणीय किशोर सोनवाने जी, आदरणीय रोहिताश्व मिश्रा जी, आदरणीया रंजना सिंह, आदरणीय निहाल छीपा जी, आदरणीया अंजलि सिफ़र जी, आदरणीया डॉ० दीपा संजय दीप जी, आदरणीय अनमोल बोहरा जी, आदरणीय कैलाश मंडलोई कदंब जी, आदरणीया अपर्णा गुप्ता जी एवं आदरणीया प्रियंका श्रीवास्तव ’शुभ्र’ जी आप सभी की कविताएं/ग़ज़ल एवं सृजनात्मकता विषय की गंभीरता को स्पष्ट रूप से परिलक्षित करता है, आप सभी को साधुवाद एवं नमन करता हूं संवेदन शीलता के इस कार्य में साथ देने के लिए..! अंत में पुनः मैं आदरणीया शावर भकत "भवानी" जी एवं उनकी पूरी टीम को साहित्य के माध्यम से आज के इस बेहद ज्वलंत समस्या को पाठक के समक्ष रखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ज्ञापित करता हूं एवं आशा करता हूं कि कम से कम प्रत्येक पाठक नदी, जल स्वच्छता एवं पर्यावरण स्वच्छता की दिशा में अपना योगदान देगा।

राजीव नसीब..! वरिष्ठ साहित्यकार, अध्यक्ष (सोपान साहित्यिक संस्था)..!

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ग़ज़ल..!
दर्दे दिल दरिया का भी सबको सुनाना चाहिए
अब बशर को आइना भी तो दिखाना चाहिए
हरकतों से अपनी दुनिया को लजाना चाहिए
अब नदी अभियान हर सू आज़माना चाहिए
जो भला गर कर न पाएँ तो बुरा क्योंकर करें
आब के भी ज़र्ब में मरहम लगाना चाहिए
जय नदी जय हिंद नारा हर ज़ुबां बोलेगा अब
मुल्क की ख़ातिर सभी को संग आना चाहिए
तुम "भवानी" इक नया अभियान लेकर चल पड़ो
चार सू इतिहास मिलकर अब बनाना चाहिए
( बशर-मनुष्य.., हर सू-हर तरफ़.., आब-पानी.., ज़र्ब-घाव/चोट.., चार सू-चारों तरफ़..!! )

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है रिश्ता ज़िन्दगी का तो पानी से

अगर्चे बेरुख़ी सी है नदी से
कहे है सिसकियाँ गंगा की अक़्सर
ख़ुशी मिलती नहीं अब बन्दगी से
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पूजा सदियों से किया करते थे
पाप गंगा में धोया करते थे
ज़िक्र इतिहास में होगा इक दिन
गंगा को मैया कहा करते थे

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ग़ज़ल..!
दिल है इक वो भी तुम्हारा कर दिया
तुमने भी तो खुद को मुझ सा कर दिया
दर्दे दिल पन्नों में हल्का कर दिया
चश्मे नम से शेर उम्दा कर दिया
हर पहर इक दीप दिल में जलता है
बुतख़ाना को भी तुम्हारा कर दिया
हर कसौटी पे खरा उतरा ये दिल
बस तपाकर मैंने सोना कर दिया
ज़िक्रे उल्फ़त शेर में करते गए
आधी उल्फ़त को यूँ पूरा कर दिया
गुज़रे लम्हों की कसक सी दिल में है
माज़ी के यादों को खारा कर दिया
बज़्म अपनों की सजाकर तुमने बस
इक "भवानी "को पराया कर दिया

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साहिबगंज :- 18/06/2019.
"अरूणोदय" एवं "नदी चैतन्य, हिंद धन्य" को भारतीय नौसेना के विशाखापत्तनम शाखा के कमांड रेफरेन्स लाइब्रेरी में स्थान..!"जय नदी, जय हिंद" ऑनलाइन साहित्यिक समूह के प्रथम साझा पुस्तक "नदी चैतन्य, हिन्द धन्य" एवं समूह की संस्थापिका शावर भकत "भवानी" की प्रथम एकल काव्य संग्रह "अरूणोदय" को भी भारतीय नौसेना के विशाखापत्तनम शाखा के "कमांड रेफरेन्स लाइब्रेरी" में स्थान दिया गया है। जैसा कि समूह की संस्थापिका  शावर भकत"भवानी" ने बताया कि इन दोनों ही पुस्तकों को कुछ दिनों पूर्व भारतीय नौसेना के कोलकाता शाखा के प्रमुख कार्यालय के शिप्स  लाइब्रेरी में भी स्थान मिल चुका है। भारतीय नौसेना के ईस्टर्न नेवल कमांड विशाखापत्तनम के कमांड रेफरेन्स लाइब्रेरी में भी पुस्तकों को स्थान देने के लिए शावर भकत" भवानी" ने नौसेना अधिकारियों के प्रति आभार व्यक्त किया है। समूह की संस्थापिका शावर भकत"भवानी" ने बताया कि  "नदी चैतन्य, हिंद धन्य" पुस्तक 21 रचनाकारों की पुस्तक है एवं इस पुस्तक में 14 रचनाकारों को निःशुल्क प्रकाशित किया गया है। जय नदी, जय हिंद समूह द्वारा जलहित एवं नदीहित हेतु साहित्यिक जागरूकता लाने के उद्देश्य से विषयपरक पुस्तक को तैयार किया है। नदी चैतन्य,हिंद धन्य साझा संग्रह को पुलवामा के शहीदों को समर्पित किया गया है।

नदी चैतन्य,हिन्द धन्य पुस्तक का द्वितीय संस्करण भी ऑनलाइन उपलब्ध है।दूसरी तरफ़ "अरूणोदय "शावर भकत "भवानी" की 117 कविताओं की एकल काव्य संग्रह है।अरूणोदय पुस्तक को भारतीय नौसेना को समर्पित किया गया है।दोनों ही पुस्तकें ऑनलाइन अमेज़न एवं फ्लिपकार्ट में उपलब्ध हैं। जय नदी, जय हिन्द समूह की मुख्य सदस्याओं शावर भकत"भवानी" ,डॉ० प्रतिभा गर्ग, प्रियंका दुबे प्रबोधिनी, बी०के० शोभा एवं प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र द्वारा जलसंरक्षण, नदीसंरक्षण, जलप्रदूषण एवं जलमहत्ता हेतु निःस्वार्थ साहित्यिक जागरूकता कलम द्वारा लाने का भरसक प्रयास किया जा रहा है।  लेखन एवं कलम के माध्यम से मानसिकता एवं सोच को बदलने की दिशा में "जय नदी, जय हिंद " समूह सकारात्मक विचारधाराओं के साथ निरन्तर प्रयासरत है।  

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जलाशय के कदर से चार सू हरियाली झूमे है
कि अक़्सर आब में आने वाली किलकारी झूमे है
रहे गर आब दरिया में तो कोई गम नहीं होगा
ज़मी से आसमां तक ज़िन्दगी मतवाली झूमे है

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दूधिया चाँद..!

चाँदनी उमस पिघले प्रतिक्षण ,
हे ! प्रियसी दूधिया चाँद गगन में ।
गगन अनन्त पार अनभिज्ञता ,
हे ! प्रिय मधु व्याप्त वसुधा में ।
क्षणिक शीतल प्रदत्त चाँद मोहे,
क्षणभंगुर मृदुलता मन में ।
सौम्यता शोकहरण जीवन का,
मधुपपाण रमणीय तन में ।

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ज़िन्दगी रोज़ाना फुसलाने लगी

बनके बच्ची में भी मुसकाने लगी

देखकर मुझको वो इठलाने लगी

हाले दिल बिन बोले बतलाने लगी

वो ख़यालों में आने जाने लगी

गेसुओं में अपने उलझाने लगी

खुद के नज़रों को वो झुठलाने लगी

रस्मे उल्फ़त मुझको समझाने लगी

नाम सुनकर मेरा बलखाने लगी

सुर्ख़ गालों को वो झुठलाने लगी

बज़्म में ज़ुल्फों को उलझाने लगी

राज़े उल्फ़त क्या वो जतलाने लगी

नींद आँखों से मेरी जाने लगी

अब "भवानी "ख़्वाब में आने लगी


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