साहिबगंज :- 04/04/2021. आज विश्व जियोलॉजिस्ट-डे (विश्व भू-वैज्ञानिक दिवस ) पर साहिबगंज महाविद्यालय के विज्ञान विभाग की ओर से जूम एप पर ऑनलाइन विमर्श गोष्टी का आयोजन किया गया, जिसमें झारखंड, बिहार, दिल्ली, नागपुर, हैदराबाद आदि स्थानों से भू-विज्ञान के विशेषज्ञ प्रोफेसर जुड़कर अपने-अपने विचारों को रखा, विमर्श का विषय था "राजमहल की पहाड़ियां इसके वैज्ञानिक महत्व एवं राजमहल पहाड़ी बनने का रहस्य"..! उपरोक्त विषय पर सभी लोगों ने अपने-अपने विचारों के माध्यम से राजमहल को सुरक्षित एवं संरक्षित करने और इससे सम्बंधित शोध कार्य को बढ़ावा देने के लिए एकजुट होकर शोध के माध्यम से कार्य करने की भावना का संकल्प लिया गया..! विश्व भू-वैज्ञानिक दिवस गोष्ठी में मुख्य अतिथि प्रो० सुरेश प्रसाद सिंह, पूर्व कुलपति विख्यात भू-वैज्ञानिक ने राजमहल की पहाड़ी को सुरक्षित करने एवं इस पर शोध कार्य और जियो हेरिटेज साइट घोषित करने के लिए उन्होंने हर संभव मदद करने की बात की साथ ही उन्होंने कहा कि झारखंड के वरीय पदाधिकारी एवं मंत्री से उनकी बातें हो रही है और जल्द ही राजमहल की पहाड़ियों को बचाने के लिए एक अभूतपूर्व प्रयास किया जाएगा..! वही विषय परिवेश करते हुए विशिष्ठ अतिथि व वक्ता डॉ० राजेश पॉल, निदेशक जॉमिट्स व पूर्व छात्र भू-विज्ञान विभाग, साहिबगंज महाविद्यालय साहिबगंज ने राजमहल पहाड़ी बनने के पीछे का कारण टेक्टोनिक प्लेट के मूवमेंट को बताया। प्रोफ़ेसर डॉ० रणजीत कुमार सिंह ने मंच संचालन के क्रम में बताया कि पहले मडगास्कर और ऑस्ट्रेलिया प्लेट एक साथ जुड़े थे और उन्हें गोंडवानालैंड कहा जाता था, टेक्टोनिक प्लेट्स जब अंटार्कटिका से उत्तर की ओर आ रही थी तब करगेलें आइलैंड जो कि लार्ज इग्नेओस प्रोविंस है, वहां के लावा फ्लो से राजमहल की पहाड़ियों का निर्माण हुआ..! कुल मिलाकर 9 लावा फ्लो हुए..! पहला लावा फ्लो तकरीबन 11 करोड़ वर्ष पूर्व एवम अंतिम लावा फ्लो 7 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। इस प्रकार लगभग 4 करोड़ वर्ष की अवधि में राजमहल की पहाड़ियों का निर्माण हुआ..! प्रत्येक लावा फ्लो के बीच इंटर टरपीन बेड्स का निर्माण हुआ जो कि सेडीमेंट्री (अवसादी) रॉक्स हैं जिनमे दुर्लभ पादप फॉसिल्स पाए जाते हैं। यहां पेट्रिफिएड वुड फॉसिल्स भी पाए जाते हैं। वर्तमान में राजमहल की पहाड़ियों के विस्तार उत्तर में कहलगांव/ साहिबगंज और दक्षिण में दुमका से दक्षिण सूरी, बीरभूम जिला तक पाया जाता है। सम्पदि के सेवानिवृत जियोलॉजिस्ट नगुला सत्यनारायण एवम जियोलॉजिस्ट डॉ० आनंद सिंह चौहान ने अपने विद्यार्थीकालीन यादों को साझा किया, जब उन्होंने राजमहल की पहाड़ियों में भुवैज्ञानिक फील्ड वर्क किया था और पेट्रिफिएड वुड फॉसिल्स संग्रह किया था। वही केंद्रीय साउथ बिहार विश्वविद्यालय गया के डॉ० विकल कुमार ने भी अपनी जानकारी साझा करते हुए राजमहल हिल्स पर जल्द ही अपने छात्रों के साथ साझा शोध कार्य करने की बात कही..!
विमर्श गोष्ठी में जुड़ने वाले जीएसआई के डॉ० रवि शंकर चौबे, डॉ मेरी सोरेन, प्रो० पी०के० जैन, छतरपुर भू-विज्ञान के मोहम्मद हैदर अली राजा, सिकेश मंडल, पूजा, प्रगति, नीलेश, विनय टुडू, साहिल, इरफान, सुजीत तिवारी, संजय कुमार पटेल, नीलेश पराशर, सुजीत तिवारी, श्रीकेश मंडल विकल पराग विनायक टूडू निलेश पराशर सहित दर्जनों छात्रों ने ऑनलाईन गोष्ठी में भाग लिया..!
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डॉ०रणजीत कुमार सिंह द्वारा लिखित विस्तृत आलेख को पढने के लिए निचे लिंक पर क्लिक करें..!
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