14 मई 2021

आलेख :- अंकित पांडेय..!

विश्व के प्रथम राम है भगवान परशुराम :- अंकित पाण्डेय..!
सत्य के रक्षक, शस्त्र सह शास्त्र के ज्ञाता, महापराक्रमी योद्धा, भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्मोत्सव पूरी श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाया गया। कोरोना महामारी एवं लॉकडाउन के चलते कहीं कोई विशेष समारोह तो नहीं हो पाया लेकिन सभी ने अपने घर पर ही पूजा-अर्चना कर जन्मोत्सव मनाया और भगवान परशुराम के आदर्शों के अनुपालन का संकल्प लिया। भगवान परशुराम जी का जन्मोत्सव आज मनाया जा रहा है। भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हुआ था। भगवान परशुराम जी चिरंजीवी हैं और आज भी सशरीर पृथ्वी पर मौजूद हैं। भगवान परशुराम जी ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पुत्र हैं। प्रभु के जन्मोत्सव की यह तिथि बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस तृतीया को अक्षय तृतीया भी कहा जाता है। भगवान परशुराम जी को बल, पराक्रम, साहस, वीरता एवं भगवान शंकर की भक्ति के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म अन्याय, अधर्म और पापकर्मों का विनाश करने के लिए हुआ था। भगवान परशुराम श्री हरि विष्णु के आवेशावतार हैं। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम कहलाए व ऋषि जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। भगवान परशुराम शस्त्रविद्या के सर्वश्रेष्ठ महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। प्राचीन मार्शल आर्ट के जन्मदाता है भगवान परशुराम जितने भी अस्त्र-शस्त्र की प्रमुख विद्या है सबके जब मैं दाता भगवान परशुराम ही है। वे अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार करने के लिए प्रसिद्ध हैं। जब सहस्त्रार्जुन के पापों से सनातन संस्कृति व समस्त मानव जाति खतरे में पड़ गई थी तब भगवान परशुराम ने शास्त्र को पीछे रख अपने हाथों में शस्त्र उठाया था और सहस्त्रार्जुन का वध कर संपूर्ण मानव जाति की रक्षा की थी। यह भी कहा जाता है की सृष्टि पर अधिकतर गांव भगवान परशुराम के हैं बताए गए हैं अथवा 21 बार युद्ध जीतने के बाद भगवान परशुराम विश्व विजयी हुए थे जिनके कारण उनकको विश्वबाहु नाम से भी पुकारा जाता है। भगवान परशुराम बहुत ही क्रोधी स्वभाव के थे, बड़े-बड़े राजा महाराजा भी उनसे डरते थे। एक बार उन्होंने क्रोध में आकर अपने तीर के वार से गुजरात से लेकर केरल तक समुद्र को पीछे जाने पर मजबूर किया था और नई भूमि का निर्माण किया था, जिनके कारण इन क्षेत्रों में भगवान परशुराम जी को पूजने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है। भगवान परशुराम जी को ओर भी कई नामो से भी पुकारा जाता है जैसे भृगु कुल में जन्म लेने के कारण भार्गव, इनके प्रिय शस्त्र फरसा धारण करने के कारण परशुधारी, विश्व के प्रथम राम होने के कारण भार्गव राम, बहुत ज्यादा तपस्या करने के कारण ब्रह्मराशि और अजर अमर होने के कारण इन्हें चिरंजीवी की भी उपाधि प्राप्त है। भगवान परशुराम जी ने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन किया था। नारी जागृति के लिए भी भगवान परशुराम सदैव जाने जाते हैं।अंत में हम कह सकते है कि भगवान परशुराम जी ने मानव को दर्शाने का यह कार्य किया है कि शस्त्र और शास्त्र दोनों जरूरी है। भगवान परशुराम युवाओं के आदर्श हैं। हमें उनके जीवन से संदेश लेते हुए सीख लेनी चाहिए। जय भगवान परशुराम।

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जब अपनों ने ठुकराया तो वृद्ध ने अपने एकमात्र सहारा सरकारी वृद्ध आश्रम स्थल को ठिकाना बनाया ताकि जिंदगी के आखिरी दिन सुकून से गुजर जाएं। आज नगर पालिका साहिबगंज के धोबी झरना निकट स्थित साहिबगंज वृद्धा आश्रम आश्रम में शहर के सामाजिक कार्यकर्ता राजीव ओझा ने अपने जन्मदिन के शुभ अवसर पर वृद्धा आश्रम में मौजूद वृद्धों के साथ अपना विशेष दिन बिताया। उन्होंने वहां मौजूद वृद्ध एवं आश्रम के स्टाफ मेंबर्स के बीच नाश्ता पैकेट का वितरण किया एवं उन सबों से उसके बदले आशीर्वाद मांगा।सेवा कर रहे राजीव ओझा ने कहा कि वृद्धों के बीच अपना जन्मदिन मना कर वह खुद को धन्य महसूस कर रहे हैं उन्होंने कहा कि हमारे जीवन का एक ही उद्देश्य है सेवा ही लक्ष्य। इस कार्यक्रम से पूर्व उन्होंने मुक बधिर विद्यालय साहिबगंज जाकर जहां पर कुछ कक्षा में पंखे नहीं लगे हुए थे वहां उन्होंने मुक बधिर विद्यालय के प्रधान सिस्टर को 4 पंखे भेंट किए। इन कार्यक्रम के दौरान डॉ सुरेंद्र नाथ तिवारी, अंकित पाण्डेय, देव कुमार, पंकज पाण्डेय, विकास कुमार, प्रमोद झा, सौरव मिश्रा, रोशन पासवान, गौतम पंडित आदि उपस्थित थे।

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Easy To Say, Difficult To Do......... !!

Easy is to judge the mistake of others,
Difficult is to recognize our own mistakes.

Easy is to hurt someone who loves you,
Difficult is to heal the wound.


Easy is to set the rules. 
Difficult is to follow them,

Easy is to dream every night.
Difficult is to true that dream,

Easy is to say that we love.
Difficult is to show it everyday,

Easy is to make mistakes.
Difficult is to learn from them.....



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क्रांति दिवस..!
आज़ादी के इतिहास में आज का दिन क्रांति दिवस के रूप में स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया गया है। इतिहास में आज का दिन 29 मार्च 1857 अंग्रेज़ों के दुर्भाग्य के रूप में उदित हुआ था। इसी दिन 34 रेजीमेंट के सिपाही मंगल पाण्डेय अंग्रेज़ों के लिए प्रलय बन कर बरसे। क्रांति की शुरुआत 31 मई 1857 को होना तय था।परन्तु यह दो माह पूर्व 29 मार्च 1857 को ही आरम्भ हो गई। सिपाहियों को 1853 में एनफ़ील्ड बंदूक दी जाती थीं।1857 में आयी नयी बंदूको में गोली भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था। कारतूस का बाहरी हिस्सा चर्बी की बनी होती थी। जैसे ही यह बात फ़ैल गई कि कारतूस में चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है। यह बात सिपाहियों को अपने धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध लगा ।
29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डेय ने नए कारतूस के प्रयोग से मना कर दिया और अंग्रेजी अफसर सार्जेंट को गोली मार कर क्रांति की शुरुआत की। इसी घटना के बाद भारत के विभिन्न हिस्सों में विद्रोह की आग भड़क उठी जो प्रथम आजादी आंदोलन के रूप में अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध चिंगारी बनकर उभरी। मंगल पाण्डेय पर मुक़दमा चला और 6 अप्रैल 1857 को मौत की सज़ा सुना दी गई। बागी बलिया के धरती पर जन्म लेकर क्रांति की मशाल को जलाने वाले उस महानायक के क्रांतिकारी योगदान को कदापि भुलाया नहीं जा सकता।


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क्रांति दिवस..!
आज़ादी के इतिहास में आज का दिन क्रांति दिवस के रूप में स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया गया है। इतिहास में आज का दिन 29 मार्च 1857 अंग्रेज़ों के दुर्भाग्य के रूप में उदित हुआ था। इसी दिन 34 रेजीमेंट के सिपाही मंगल पाण्डेय अंग्रेज़ों के लिए प्रलय बन कर बरसे। क्रांति की शुरुआत 31 मई 1857 को होना तय था। परन्तु यह दो माह पूर्व 29 मार्च 1857 को ही आरम्भ हो गई। सिपाहियों को 1853 में एनफ़ील्ड बंदूक दी जाती थीं। 1857 में आयी नयी बंदूको में गोली भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था। कारतूस का बाहरी हिस्सा चर्बी की बनी होती थी। जैसे ही यह बात फ़ैल गई कि कारतूस में चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है। यह बात सिपाहियों को अपने धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध लगा ।

29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डेय ने नए कारतूस के प्रयोग से मना कर दिया और अंग्रेजी अफसर सार्जेंट को गोली मार कर क्रांति की शुरुआत की। इसी घटना के बाद भारत के विभिन्न हिस्सों में विद्रोह की आग भड़क उठी जो प्रथम आजादी आंदोलन के रूप में अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध चिंगारी बनकर उभरी। मंगल पाण्डेय पर मुक़दमा चला और 6 अप्रैल 1857 को मौत की सज़ा सुना दी गई। बागी बलिया के धरती पर जन्म लेकर क्रांति की मशाल को जलाने वाले उस महानायक के क्रांतिकारी योगदान को कदापि भुलाया नहीं जा सकता।


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अन्नदाता की व्यथा..! 
पिछले दिनों हुई बारिश और तेज हवाओं ने किसानों की मेहनत पर फिर से कुदरत ने कहर बरपा दिया, सोच कर मन बहुत उदास हो गया..!
आज ट्रेन से साहिबगंज आने के क्रम में रेलवे लाइन के बगल से गुजरते खेतों को देखकर, लहलहाते हरे-भरे फसलों को देखने की तीव्र इच्छा हो रही थी, लेकिन खेतों में गिरी हुई फसल को देखकर उस तरफ देखने की हिम्मत नहीं हुई..।
मैं तब नि:शब्द हो गया, जब मेरे बगल में बैठे लगभग 70 वर्षीय किसान यात्री ने खेत में गिरे फसल को देखकर अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा, बबुआ कोई सरकार हमसब के नईखे , सब कठपुतली समझत बा किसान के, एक तो खेती से कोई बचत नईखे..फिर भी लगन से हरेक साल खेती करत बानी..एकरा बाद भी भगवान के ई मार केतना सही, केतना किसान बेमौत मर गईल सन । सब सोचत रहे की सरकार कुछ दिही पर लागत हवे की कुछ ना होई । शासन-सरकार अब असंवेदनशील हो गईल बा, हम-सब किसान से कौनो पार्टी के कोय लेना-देना नइखे.....इतना कहते-कहते किसान चचा की आंखे आँसुओं से डबडबा गई..!
एक किसान का दर्द किसान के अलावा और कोई नहीं समझ सकता किसान कल भी रोता था आज भी रोता है..! उसके आंसुओं की कोई कीमत नहीं..! कीमत है तो उस किसान के नाम पर देश में तुच्छ राजनीति..!
किसान पहले मंहगे बीज खरीदें, फिर उसे खेतों में बोने के बाद सारी रात माघ की कड़कड़ाती ठंड में खेतों में पानी डाले, फसल तैयार होने तक प्रकृति की मार सहे..। फिर दिन-रात जागकर आवारा मवेशियों से अपनी फसल बचाये, फिर किसी तरह एक दिन फसल तैयार कर कर उसे बाजार ले जाए, तो पता चलता है कि दाम सस्ते हो गए, फिर क्या उसी फसल को औने-पौने दाम पर बेच कर उसके जीवन की सांसें चलती रहती है..! और वो किसान हर बार खुद भूखा हो कर भी देश का पेट भरता है।
क्या इस देश की राजनीति बुद्धिजीवी किसानों की इन समस्याओं के बारे में कभी सोचेंगा..?? क्या प्राकृतिक आपदा में हुए फसलों की बर्बादी का मुआवजा इन्हे मिलेगा..??

रास्ते भाई यही सोचता रहा कि किस तरह राजनीतिक लाभ के लिए नेता लोग चुनाव के समय किसानों के मुद्दे को उठाते हैं, बाकी समय इन अन्नदाताओं के बारे कोई चिंता नहीं..। इसी बीच पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का दिया गया नारा "जय जवान, जय किसान" हमारे मस्तिष्क में घुमड़ने लगा..।

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किसान विरोधी घटित हुए कार्य का आधार हूं,
नरसंहारो के अग्नि में शवो का जलता हुआ आग हूं...

लोगों के चीखो की आवाज,
मैं वहीं घटित निर्मम हत्या वाली वो आग हूँ...

अन्याय के पक्ष में निर्ममता की हद हुई पार,
मैं जज के द्वारा कहा रेयरेस्ट ऑफ रेयरेस्ट वाला राग हूं...


अपनों के शव को भी न पहचान सकु
कई बहनों का उजड़ा हुआ कीमती सुहाग हूँ...

कई युवाओं की मौत के कारण,
एक खत्म हुई पीढ़ी का बचा हुआ मै वहीं राख हूं...

नक्सल और सत्ता से कुचला हुआ,
ब्रह्मजन के विरुद्ध घटित हुआ मै खूनी राग हूँ...

यातना के विरुद्ध उठे शस्त्र को,
जब दबाया गया उसके साक्षी अरवल का एक भाग हूँ...

क्रान्ति क्षेत्र में जो रहा समाज सहयोगी,
कटे उसके योद्धा उसी सेनारी नरसंहार का आग हूँ...

बिहार के अन्नदाताओं का एक तीर्थ,
मै जहानाबाद, भोजपुर जैसा ही एक बाग हूँ...

अन्याय से जो उपजी अशांति,
के विरुद्ध लड़ने वालों का मैं शहीद हुआ आग हूं...

एक नही दो नही पूरे 34,
नरसंहारो के शवो का जलता हुआ मै आग हूं...

इस निर्मम हत्या की सुध नहीं किसीको,

सिर्फ अब अंकित जैसे युवाओं के दिलों में बचा हुआ आग हूं...

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भारतीय संस्कृति को डसने वाला काल सर्प है वैलेंटाइन-डे..! वैलेंटाइन डे, एक ऐसा दिन जिसके बारे में कुछ सालों पहले तक हमारे देश में बहुत ही कम लोग जानते थे, आज इस दिन का इंतजार करने वालो की एक अच्छी संख्या उपलब्ध है। अगर आप सोच रहे हैं कि केवल इसे चाहने वाला युवा वर्ग ही इस दिन का इंतजार विशेष रूप से करता है तो आप गलत हैं क्योंकि इसका विरोध करने वाले दल व संगठन भी इस दिन का इंतजार उतनी ही बेसब्री से करते हैं। इसके अलावा आज के आधुनिक युग में जब हर मौके और हर भावना का आधुनिकीकरण हो गया हो, ऐसे दौर में गिफ्ट्स, टेडी बियर, चॉकलेट और फूलों का बाजार भी इस दिन का इंतजार उतनी ही व्याकुलता से करता है। 
आज प्रेम आपके दिल और उसकी भावनाओं तक सीमित रहने वाला केवल आपका एक निजी मामला नहीं रह गया है, आधुनिक युग के इस दौर में प्रेम भी आधुनिकता का शिकार हो गया हैं। आज प्रेम छुप कर करने वाली चीज नहीं है, फेसबुक इंस्टाग्राम व्हाट्सएप्प पर शेयर करने वाली चीज हो गई है। आज प्यार वो नहीं है जो निस्वार्थ होता है और बदले में कुछ नहीं चाहता बल्कि आज प्यार वो है जो त्याग नहीं अधिकार मांगता है। आज के समय में लोग यह सोचते हैं कि प्रेम को महंगे उपहार देकर जताया जा सकता है। इस अंग्रेजी कहावत की तरह "If you love someone show it". हम जानते हैं कि पश्चिमी सभ्यता के जकड़ में हमारा देश कितना है पर फिर भी प्यार जताने के लिए किसी विशेष दिन की जरूरत समझ से परे हैं। आज के समय में बहुत लोग आपको मिल जाएंगे कहते हुए की अगर आप किसी से प्रेम करते हैं तो जताने के लिए वैलेंटाइन डे सबसे शुभ दिन है।
अब प्रश्न यह है कि हमारे देश में जहां की संस्कृति का बखान विदेशों में होता है उस देश में ऐसे दिवस को मनाना क्या उचित है ? लोग कहते हैं कि वैलेंटाइन डे प्यार मनाने वाला दिन है तो क्या प्यार जताने के लिए किसी खास दिन का रहना आवश्यक है।
आज भारत जैसे देश में प्रेम के महत्व की जगह वैलेंटाइन डे ने ले ली है, उसका  कारण क्या हैं हमें ही खोजने होंगे। यह तो हमें ही समझना होगा कि हम केवल संस्कृति से ही नहीं बल्कि प्रकृति से भी दूर हो गए है। हमने केवल वैलेंटाइन डे नहीं अपनाया परंतु अपनी संस्कृति को डसने वाला शेषनाग अपना लिया। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि हम खुद अपनी संस्कृति के विनाशक बन गए हैं। जब हम अपने देश के त्योहारों को छोड़कर प्यार जताने के लिए किसी खास वैलेंटाइन डे जैसे दिन को मनाने लगे हैं।

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कलश यात्रा के साथ नौ दिवसीय श्रीराम महायज्ञ का शुभारम्भ...!
साहेबगंज जिला अंतर्गत महादेवगंज साकेतवासी श्री श्री 1008 गोपाल दास जी महाराज मठ में नौ दिवसीय श्री राम महायज्ञ आयोजन कार्यक्रम के तहत 1008 कलश शोभा यात्रा के साथ शुभारंभ हुआ..। कलश यात्रा में उपस्थित श्रद्धालुओं ने महादेवगंज पत्थर घाट से कलश में गंगा जल भर कर ग्राम भ्रमण के पश्चात यज्ञ स्थल पहुंचे..। कलश यात्रा में हजारों राम भक्त श्रद्धालुओं ने हाथी, घोड़े, गाजे-बाजे के साथ भाग लिया..। अखिल भारतीय पंच तेरह भाई त्यागी खालसा अयोध्या उतर प्रदेश के सैकड़ों संत महात्माओं ने इस शोभा यात्रा मे शामिल होकर जय श्री राम के उद्घोष के साथ ग्राम परिभ्रमण कर महादेवगंज वासीयों को आशीर्वाद दिया..। श्री राम महायज्ञ कार्यक्रम समाजसेवी बजरंगी प्रसाद यादव के करकमलों द्वारा आयोजित किया जा रहा है..। इस महायज्ञ को सफल बनाने के लिए अयोध्या से आए हुऐ संत शास्त्री, भारत दास, गणेश दास, परशुराम दास, प्रजापति प्रकाश बाबा, हरिदास जी, परमहंस एवं हरिद्वार से आए हुऐ हरिगोविंद एवं उनके सहयोगी आचार्यों का श्री राम महायज्ञ में पदार्पण हुआ..। श्री राम महायज्ञ के शुभारंभ होते ही आज पूरा महादेवगंज ग्राम जय श्री राम के नारों से गूंज उठा..।

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माघी पूर्णिमा जब स्वयं भगवान विष्णु आते हैं गंगा स्नान करने, पौराणिक मान्यतानुसार माघी पूर्णिमा में गंगा स्नान करने से धूल जाते हैं सभी पाप..।
भारत अनेकता में एकता का देश है जिसकी झलक त्यौहारों के मौकों पर भी देखने को मिलती है..। हमारे देश में ऐसे कई पर्व और त्योहार हैं, जिन्हें लोग बड़े ही श्रद्धा व उत्साह से मनाते हैं..। इन्हीं त्योहारों में से एक है माघी पूर्णिमा..। हिन्दू धर्म में माघी पूर्णिमा का बहुत महत्व माना गया है..। साल भर में जितनी भी पूर्णिमा होती हैं उनमें माघी पूर्णिमा का विशेष महत्व है..। इस दिन पवित्र नदी में स्नान और उसके बाद दान का विशेष महत्व है..। पौराणिक मान्यतानुसार माघी पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु स्वयं गंगाजल में निवास करते हैं पौराणिक वर्णन के अनुसार इस दिन से ही कलयुग की शुरुवात हुई थी..।
इस वर्ष पवित्र पर्व माघी पूर्णिमा नौ फरवरी को पूरे देश में मनाई गई..। अब जब पूरे देश में माघी पूर्णिमा आस्था और उत्साह के साथ मनाई जा रही हो तब हमारा साहिबगंज जिला कैसे पीछे रह सकता है, झारखंड का एक मात्र जिला जिसकी पवित्र भूमि से गंगा नदी के गुजरने का परम सौभाग्य प्राप्त हो..। साहिबगंज जिले में माघी पूर्णिमा का मुख्य आकर्षण केंद्र राजमहल नगर स्थित सूर्य देव घाट सिंधी दालान में राजकीय माघी पूर्णिमा मेला का आयोजन था..। इस मेले का उद्घाटन साहिबगंज उपायुक्त वरुण रंजन ने दीप प्रज्वलित कर किया..। ज्ञात हो कि वर्षों से इस पर्व पर साफा बांधे आदिवासी समाज के लाखों लोग भी गंगा नदी में एवं अपने ईष्ट देवता का पूजन करते हैं..। यह राजकीय माघी पूर्णिमा मेला 9 फरवरी से लेकर 15 फरवरी तक आयोजित किया जा रहा है..। वही पास में स्थित रेलवे मैदान में संताली विलेज का भी निर्माण किया गया है,  जहाँ लोग सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी लुफ्त उठा सकते हैं..।
पवित्र पर्व माघी पूर्णिमा के शुभ अवसर पर साहिबगंज शहर स्थित मुक्तेश्वर धाम गंगा तट पर भी गंगा आरती कार्यक्रम का आयोजिन किया गया था, वैदिक मंत्रोंचारण संग हर-हर गंगे के उदघोषण से गुंजायमान हुआ गंगा तट..।

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राजकीय माघी पूर्णिमा मेला के सफल संचालन हेतु उपायुक्त ने की बैठक, यात्रियों के सुख-सुविधाओं सहित सुरक्षा के मद्देनज़र मेले का लिया जायजा..!
साहिबगंज :- 08/02/2020. बीते शाम उपायुक्त वरुण रंजन की अध्यक्षता में मुख्य आयोजन स्थल राजमहल सिंघी दालान में संबंधित पदाधिकारियों के साथ माघी पूर्णिमा मेला के सफल संचालन हेतु बैठक की। उपायुक्त ने बैठक में बताया कि कल दिनांक 9 फ़रवरी 2020 को  माघी पूर्णिमा मेले की शुरुवात हो रही है जिसका इस वर्ष भव्य रूप से आयोजन किया जा रहा है।
उपायुक्त ने बताया कि जिला प्रशासन के द्वारा मेले की सारी तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं,पूजा स्थल पर श्रद्धालुओं की पूजन तथा ठहरने की पूरी व्यवस्था पूरी कर ली गयी है। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए टेन्ट पंडाल बना दिये गए हैं, साथ ही साथ शौचालय,पीने का पानी एवं अन्य सुविधाओं की व्यवस्था भी की गई है। आगे उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन द्वारा आगंतुकों, श्रद्धालुओं एवं आमजनों के लिए शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। राजमहल स्थित रेलवे मैदान में संथाल विलेज बनाया गया है,जो निश्चित ही मनोरंजन का केंद्र रहेगा। मेले के बारे में जानकारी देते हुए उपायुक्त वरुण रंजन ने बताया कि माघी पूर्णिमा मेला वर्षों से आस्था का केंद्र रहा है और हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी जिला प्रशासन द्वारा भव्य मेले के आयोजन के साथ साथ श्रद्धालुओं के सुवधा के लिए प्रशासन हमेशा तत्पर रहेगा।
बैठक सह निरीक्षण में पुलिस अधीक्षक अमन कुमार, अनुमंडल पदाधिकारी राजमहल कर्ण सत्यार्थी, प्रखंड विकास पदाधिकारी पतना चंदन सिंह, एन0डी0सी0 संजय कुमार,जिला जनसंपर्क पदाधिकारी विकास हेम्ब्रम, जिला समाजकल्याण पदाधिकारी अल्का हेम्ब्रम आदि उपस्थित थे..।

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गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे के सफल प्रयास से साहिबगंज पश्चिम रेलवे ओवर ब्रिज केंद्रीय बजट में हुआ पास :- अमित..!

साहिबगंज :- 06/02/2020. वर्षों से साहिबगंजवासियों की मांग रही पश्चिमी रेलवे फाटक ओवर ब्रिज के साथ बरहरवा का ROB केंद्रीय बजट में पास हो गया है..। जल्द ही टेंडर निकालकर इसके निर्माण की प्रक्रिया आरम्भ की जाएगी..। उपरोक्त जानकारी भारतीय जनता युवा मोर्चा के पूर्व राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य अमित सिंह ने देते हुए कहा कि सांसद निशिकांत दुबे के सफल प्रयास से जनता जनार्दन द्वारा लगातार कई वर्षों से साहिबगंज पश्चिमी फाटक पर रेलवे ओवर ब्रिज बनाने की मांग को पूरा किया गया है..। अमित सिंह ने साहिबगंज जिलेवासियों की ओर से धन्यवाद प्रकट करते हुए कहा कि साहिबगंज की तमाम जनता इस बहुप्रतीक्षित कार्य के लिए सांसद निशिकांत दुबे को भुलाये नहीं भूलेगा..! सांसद निशिकांत दुबे अपने लोकसभा क्षेत्र गोड्डा के साथ-साथ साहिबगंज व सम्पूर्ण संथाल परगना के विकास की भी चिंता करते रहते हैं..।


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सर्वसाधारण सूचना..! 
मेंटेनेंस कार्य के कारण कल बोरियों व बरहेट प्रखंड में बिजली गुल रहेगी..!

31 जनवरी की सुबह 10:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक बिजली आपूर्ति बाधित रहेगी..। इस दौरान बोरियों एवं बरहेट प्रखंड को बिजली सप्लाई देने वाले 33kv बोरियों शटडाउन रहेगा..। 132kv संचरण लाइन का निर्माण किया जाएगा जिसके फलस्वरूप बोरियो 33 kv फीडर को शटडाउन किया जाएगा..। सर्व साधारण को सूचित किया जाता है की साहिबगंज जिला अंतर्गत बोरियो प्रखंड एवं बरहेट प्रखंड सहित आसपास के इलाके में बिजली आपूर्ति बाधित रहेगी..। 

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कड़ाके की ठंड..!

ठंड हवा का झोंका आया, सुबह-शाम कोहरा है लाया,
इन दिनों है कांपता बदन, कड़ाके की ठंड है आया।
ये टंकी व नल का पानी, लगता है जैसे बर्फ बन आया,
कंपकपाती आवाज कहे, गुनगुनाता हुआ मौसम आया।

खाँस-खाँस कर इतना अब, हलक में लगता प्राण आया,
तबीयत हो गई अपनी झंड है, कड़ाके की ठंड है आया।


हवा लगे काटती तलवार जैसी, पानी लगे तब तन रोये।
इन दिनों नहाना बैरी लगता, जैसे-तैसे बदन को धोये।

टोपी मफलर दस्तानों ने भी, सब तरफ बनाई है पहचान,
स्वेटर,जैकट,जो भी गरम, सब लगता है इन दिनों महान।

लिट्टी चोखा इस मौसम के, लगते बहुत ही अहम अंग है,
स्वर्ग जैसा महसूस होता तब, जब चटनी भी अगर संग है।

घर से बाहर जाने का, अब मन में न कोई ख्याल आता,
इस वक़्त दुनिया में सबसे हंसी, जो पलंग व रजाई पाता।

जाड़े के दिन कितने सुखद, सोच ये मन प्रसन्न हो गया,
कुहारे में मोती जैसे ओस, देख जिसे मन चंचल हो गया।

ये ठंड के मौसम में क्यों, मिजाज आशिकाना हो जाता,
ज्ञात कि अभी कुंवारा हूं, सोच मुंह से ठंड भरी आह आता।
उफ़! इस ठंड का प्रकोप, जो लगे बहुत ही अनंत है,
कुछ समय धैर्य ही है रखना, आगे आने वाला वसंत है।
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साहिबगंज :- 15/01/2020. भारत एक ऐसा देश है जिसे वर्ष के त्योहारों और उत्सवों की भूमि माना जाता है। नए कैलेंडर वर्ष में त्योहारों का शुरुआत  मकर संक्रांति से शुरू होता है।मकर संक्रांति हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। इस वर्ष भी मकर संक्रांति का त्यौहार 15 जनवरी को मनाया जा रहा है। यह त्यौहार सूर्य के मकर राशि में आने या राशि चक्र के मकर राशि के स्वागत के लिए मनाया जाता है। मकर संक्रांति को बहुत ही शुभ दिन माना जाता है और बुजुर्गों द्वारा कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा नदी में स्नान करने से हमारे सभी पाप धुल सकते हैं और मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिलती है। मकर संक्रांति का त्यौहार देशभर में विभिन्न नामों से जाना जाता है उत्तर प्रदेश बिहार व पूर्वी झारखंड में लोग इस त्यौहार को खिचड़ी भी कहते हैं..! इस दिन लोग चुरा दही तिल और गुड़ से बनी मिठाइयां खाकर मौसम के उत्सव का आनंद लेते हैं।  सभी लोग, विशेष रूप से बच्चे, अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों के साथ पतंग उड़ाकर इस त्यौहार का आनंद लेते हैं।इस त्योहार को मनाते ही हमें एक बचपन की यादें ताजा हो जाती है जो मैं आप सभी पाठकों के साथ साझा कर रहा हूं..! अक्सर तो मैं इस त्यौहार के दिन अपने गांव में नहीं रहता हूं पर संयोगवश उस वर्ष में इस त्यौहार के दिन अपने गांव में था..! हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन हमारे घर हम सबों के पुरोहित जी खाने पर आते हैं और उस वर्ष भी आए थे। घर के अंदर मैं और मेरे चचेरे भाई एक दूसरे से लड़ रहे थे। जैसे ही उन्हें हम दोनों के झगड़ने की आवाज़े सुनाई दी वह हम लोगों की तरफ आए और पूछा- क्या बात है क्यों झगड़ रहे हो तुम दोनों..? तभी मैं तुरंत पुरोहित जी को प्रणाम करते हुए बोला  आज मकर संक्रांति के दिन मैं आपको तिल के लड्डू खिलाना चाहता था और आपसे ढेर सारा आशीर्वाद लेना चाहता था लेकिन मेरा यह भाई कहता है कि मैं पहले खिलाऊंगा..! जब विचार मेरे मन में पहले आया तो पहले खिलाने का अधिकार भी मेरा है..! लेकिन यह बेईमानी कर रहा है लगता है इसे मुझसे जलन है। तभी मेरा भाई बोला सोचने से कुछ नहीं होता है तिल के लड्डू में ही पहले खिलाऊंगा..! तभी पुरोहित जी ने हम दोनों से कहा कि मैं तुम दोनों की भावनाओं को समझता हूं लेकिन तुम्हें इस त्यौहार के बारे में सही जानकारी नहीं है। इसलिए तुम दोनों आपस में झगड़ रहे हो। तभी उन्होंने अपना प्रवचन चालू करते हुए कहा तब मै यही सोचता था, मकर संक्रांति के दिन तिल के लड्डू इसलिए खिलाए जाते हैं ताकि जो लोगों के बीच में मतभेद होता है वो नष्ट हो जाएं और लोग एक दूसरे से मीठा मीठा बोले। इसलिए लड्डू देते वक्त हम लोग कहते हैं कि तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो। तुम दोनों कितना मीठा बोल रहे हो, यह तुम दोनों स्वयं निर्णय करो। तब उन्होंने कहा कि मुझे तिल के लड्डू खिलाने से पहले तुम दोनों एक दूसरे को लड्डू खिलाओ। उनकी आज्ञा का पालन करते हुए हम दोनों भाई एक दूसरे को लड्डू खिलाते हैं और गले लगते हैं। क्या बात है..! वह बचपन की पुरानी यादें! अनोखा अंदाज था पुरोहित जी का हम दोनों भाई को कुछ सिखाने का। तो मकर संक्रांति पर आप सभी से भी मेरी एक आज्ञा है कि आज आप कहीं भी जाएं अपने सभी जानकारों को तिल के लड्डू अवश्य खिलाएं जिसके साथ आज आप की पटरी नहीं बैठ रही है..! तिल के लड्डू खिलाने के बाद उन से मीठी-मीठी बातें भी करना शुरू कर दें। कुछ समय के बाद आपको निश्चित ही परिणाम मिलेंगे और आप खुश महसूस करेंगे। लेकिन याद रहे आप अपनी सफलताओं पर फूल मत जाना वरना वही होगा जो आज पतंगों के साथ होता है।

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विपक्षी पार्टियाँ लोगों के बीच झूठ फैला रही है :- अनंत..!
साहिबगंज :- 12/01/2020. CAA पर मचे घमासान के बीच आज साहिबगंज के विवेकानंद चौक से नागरिकता कानून संशोधन बिल पास होने के समर्थन में विशाल जुलूस निकाला गया..। जुलूस में सम्मिलित लोग शहर भ्रमण करते 4 किलोमीटर तक पैदल चलकर नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन किया..। यह समर्थन जुलूस भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री सह राजमहल विधायक ओझा द्वारा आयोजित किया गया था..। इस समर्थन मार्च में हर वर्ग के लोग शामिल हुए और नागरिकता संशोधन कानून पर अपना समर्थन जताया..। जुलूस का नेतृत्व कर रहे विधायक अनंत ओझा ने कहां की विपक्षी पार्टियाँ लोगों के बीच झूठ फैला रही है..! नागरिकता संशोधन कानून पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के प्रताड़ित किए गए अल्पसंख्यकों जो भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं उन्हें नागरिकता देने का कानून है। वहीं उपस्थित हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव में बोरियों भाजपा के प्रत्याशी सूर्यनारायण हांसदा ने कहा कि CAA और एनआरसी का विरोध करने वाले ज्यादातर लोगों के पास इसके बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है। जुलूस में 100 मीटर का तिरंगा शहरवासियों के लिए आकर्षक का केंद्र था। मौके पर  विधायक अनंत ओझा, गणेश तिवारी, सूर्या हांसदा, सिमोन मालतो, पप्पू साह, बजरंगी प्रसाद यादव, रेणुका मुर्मू, श्रीनिवास यादव, रामानंद साह, रमिता तिवारी, अंकित पाण्डेय, प्रमोद झा, देव कुमार, विकास मंडल एवं हजारों की संख्या में लोग उपस्थित थे..! 


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इंसान किनारे भईले..!
कांट से माली अब बा लगावत नेह,
गम ईहे की फूल मुरझा रहल बा,
रखले बा छुपा के आंसू आंख में,
हवेे पलक जवन बहूते उदास बा।

खोज रहल इंसान बा चैन खुद में,
लेकिन फिर भी ज़िन्दगी हताश बा,
दिल के बतीया केकरा से बताए उ,
कौन ई जालिम दुनिया में खास बा।

कभी कभी दिल में लागत हवे की,
ई जिंदगी भईल कईसन मजाक बा,
चूम लेबे ला खुद के दुख दर्द के उ,
मजाक उड़ाई लोग इ एहसास बा।

देख कलयुग में इंसान के स्वार्थ,
शैतान लज्जा से सरमा रहल बा,
भीड़ से अलग अकेला हो गईल,
चोट अपने आप सहला रहल बा।

हर हवा के झोंखा तुफान ना हवे,
सच कहें सब पत्थर भगवान न बा,
आदमी त बहुत बा एह दुनिया में,

लेकिन हर आदमी इंसान ना बा।


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रक्तदान कर बचाई महिला की जान..!
साहिबगंज :-  04/01/2020. साहिबगंज सदर अस्पताल में भर्ती सकरीगली निवासी बुलबुल देवी जो गर्भवती महिला पेशेंट थी उसे डॉक्टरों ने प्लेटलेट्स काफी कम होने की बात बताई..। महिला का ब्लड ग्रुप ओ पॉजिटिव था और उन्हें एक यूनिट ब्लड की सख्त आवश्यकता थी लेकिन सदर अस्पताल स्थित ब्लड बैंक में रक्त उपलब्ध नहीं था..! सोशल मीडिया के माध्यम से अंकित पाण्डेय को जैसे ही इसकी जानकारी मिली उन्होंने अपने मित्र प्रमोद झा जिनका ओ पॉजिटिव ग्रुप है उन्हें रक्तदान करने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद प्रमोद झा ने बिना किसी संकोच के रक्तदान करने की इच्छा जताई..। स्वयं अपने मित्र प्रशांत शेखर के साथ सदर अस्पताल रक्तदान हेतु पहुंचे और ओ० पॉजिटिव ब्लड डोनेट कर महिला की जान बचाई..। मौके पर अंकित पाण्डेय, प्रशांत शेखर, विशाल ठाकुर उपस्थित थे। उधर ब्लड डोनेट होने के बाद महिला के पति अखिलेश ने रक्तदाता प्रमोद झा का आभार जताया..। 


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पेड़ अपनी जड़ों को खुद नहीं काटता, पतंग अपनी डोर को खुद नहीं काटती, लेकिन मनुष्य आज आधुनिकता की दौड़ में अपनी जड़ें और अपनी डोर दोनों काटता जा रहा है। आज पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करते हुए जाने अनजाने हम अपनी संस्कृति की जड़ों और परम्पराओं की डोर को काट कर किस दिशा में जा रहे हैं? ये प्रश्न आज कितना प्रासंगिक लग रहा है जब हमारे समाज में महज तारीख़ बदलने की एक प्रक्रिया को नववर्ष के रूप में मनाने की होड़ लगी हो। जब हमारे संस्कृति में हर शुभ कार्य का आरम्भ मन्दिर या फिर घर में ही ईश्वर की उपासना एवं माता पिता के आशीर्वाद से करने का संस्कार हो, उस समाज में कथित नववर्ष माता पिता को घर में छोड़, मांस व शराब के नशे में डूब कर मनाने की परम्परा चल निकली हो। 
              भारत में ऋतु परिवर्तन के साथ ही भारतीय नववर्ष प्रारंभ होता है. चैत्र माह में शीतऋतु को विदा करते हुए और वसंत ऋतु के सुहावने मौसम के साथ नववर्ष आता है. पौराणिक मान्यतानुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही सृष्टि की रचना हुई थी. इसीलिए हिन्दू-समाज भारतीय नववर्ष का पहला दिन अत्यंत हर्षोल्लास से मनाते हैं.
              इस वर्ष का स्वागत सिर्फ मनुष्य ही नहीं पूरी प्रकृति करती है, बसंत ऋतु का समय होता है जिस समय पौधे पर विभिन्न प्रकार व रंगो के फूल बिखरे होते हैं।पूरा खेत सरसों के फूलों से ढका हुआ रहता है, सुबह-सुबह कोयल की आवाज सुनाई देती है, पूरी धरती दुल्हन की तरह सजी रहती है मानो नवरात्रि में माँ के धरती पर आगमन की प्रतीक्षा कर रही हो। नववर्ष का आरंभ माँ के आशीर्वाद के साथ  होता है। नववर्ष के नए सफर की शुरूआत के इस पर्व को मनाने और आशीर्वाद देने स्वयं माँ पूरे नौ दिन तक धरती पर आती हैं। लेकिन इस सबको अनदेखा करके जब हमारा समाज 31 दिसंबर की रात मांस और मदिरा के साथ जश्न में डूबता है और 1 जनवरी को नववर्ष समझने की भूल करता है तो आश्चर्य भी और दुख भी होता है।अगर हम हिन्दू पंचांग के नववर्ष की बजाय पश्चिमी सभ्यता के नववर्ष को स्वीकार करते हैं तो फिर वर्ष के बाकी दिन हम पंचांग क्यों देखते हैं? उत्तर तो स्वयं हमें ही तलाशना होगा। क्योंकि बात अंग्रेजी नववर्ष के विरोध या समर्थन की नहीं है, बात है प्रमाणिकता की। हिन्दू संस्कृति में हर त्यौहारों की संस्कृति है,लेकिन जब पश्चिमी संस्कृति की बात आती है तो वहाँ नववर्ष का कोई इतिहासिक या वैज्ञानिक आधार नहीं है।
                 अपने देश के प्रति, उसकी संस्कृति के प्रति और आने वाले पीढ़ियों के प्रति हम सभी के कुछ कर्तव्य हैं। आखिर एक व्यक्ति के रूप में हम समाज को और माता पिता के रूप में अपने बच्चों के सामने अपने आचरण से एक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। समय आ गया है कि अंग्रेजी नववर्ष की अवैज्ञानिकता और भारतीय नववर्ष की संस्कृति को न केवल समझें बल्कि अपने जीवन में अपना कर अपनी भावी पीढ़ियों को भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित करें।



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साहिबगंज:- 28/11/2019. आज के समय में हम व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया साइट्स के इतने दीवाने 
हो चुके हैं कि हम यह भूलते जा रहे हैं कि फोन के बाहर भी एक दुनिया है जो हम सबकी असल दुनिया है। हम सब अपने फोन के साथ और अपने व्हाट्सएप आदि के साथ इतना जुड चुके हैं कि हम इस मिराज में खो चुके हैं।
एक परिवार केवल चार दीवारों से नहीं बल्कि उसमें रहने वाले लोगों से बनता है। पर जब ये लोग फोन की दुनिया में कैद होने लगें तो उस परिवार की आत्मीयता और स्नेह की डोर कमजोर होने लगती है। धीरे-धीरे हम अपने परिवार के सदस्यों से ही अनजान होने लगते हैं।
जब हम एक-दूसरे से दूर होते हैं तो हमारे पास व्हाट्सएप और फेसबुक पर एक-दूसरे को बताने के लिए, खुशियाँ और दुख साझा करने के लिए बहुत कुछ होता है। पर जब हम असल दुनिया में साथ होते हैं, तो हम अपने परिवार को समय देने की बजाय अपने फोन को समय देते हैं।
दरअसल फोन पर बनाए गए रिश्तों में हम उन रिश्तों से नहीं जुडते हैं। हम जुडते हैं अपने सोशल मीडिया से, अपने फोन पर मौजूद आकर्षक स्टेटस से, लोगों की टेक्निकल खुशियों और दुख से और इस कारण एक परिवार साथ होते हुए भी दूर हो जाता है।
व्हाट्सएप और फेसबुक ने केवल परिवार ही नहीं बल्कि हर संबंध की मधुरता को छीन लिया है। कुछ ही दिनों पूर्व साहिबगंज में नवनिर्मित एक शॉपिंग मॉल के अन्दर कुछ पूर्वपरिचित मित्रों से आकस्मिक मुलाक़ात हुई...। यूं तो हम दिन-रात चैटिंग करते थे पर जब हम मिले तो हम दोनों ही बातें कम और अपने-अपने फोन में ज्यादा लगे हुए थे..। तब मुझे एहसास हुआ कि हम अपने-अपने फोन से और सोशल मीडिया से इस कदर तक बंध चुके हैं जंजीर में जो हमारे रिश्तों की डोर को तोड़ रहा है...।



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लगता है चुनाव के दिन आ गए...!

आ रहा अब चुनाव का दिन,
अब जोर-शोर मचने लगे,
हमारे शहर में भी नेताओं के,
समूह हर जगह अब लगने लगे।

लोकतंत्र के उत्सव का दिन,
अब नजदीक आने लगे,
मतदान करने को सभी है तैयार,
शहर में चुनावी डंका बजने लगे।

कुछ चिकनी चिकनी बातें करते, 
नेताजी के समर्थक अब घूम रहे,
देख सड़कों पर लोगों का जमावड़ा,
लगता है अब चुनाव के दिन आने लगे।

अब हर जगह दिखने लगे नेताजी,
जो कभी ईद के चांद हुआ करते थे,
फिर जनता की आंखों में धूल झोंकने,
देखिए वो चुनावी मेला सजाने लगे।

ऊंचे ख्वाब दिखाने हेतु नेताजी,
वादे पर वादे गिनाने लगे,
फिर से पांच साल सत्ता जमाने,
बनावटी नए रिश्ते बनाने लगे।

कहीं मांस मदिरा और भोजन,
कहीं पैसा भी बांटने लगे,
प्रलोभन की हाहाकार मची,
शहर में चुनावी डंका बजने लगे।

अब यह अम्मा चाचा ताऊ,
कहकर गली-गली लहराते हैं,
बेबस और असहाय जनता से,
अजीब सहानभूति दिखाने लगे।

भाषण देने के लिए नेताजी,
जन समूह इकट्ठा कर लिये,
जुमले वाले वादों से अपने, 
वो चुनावी मेला सजाने लगे।

पार्टियों के प्रत्याशियों के बीच,
जुबानी जंग शुरू होने लगे,
कोई लाल,नीला तो कोई पीले
झंडे को थामे दिखने लगे।

जनता का राज होगा अबकी बार,
कह नेताजी चुनावी सपना दिखाने लगे,
वोटों का मोल भाव अब दिख रहा है,
शहर में चुनावी डंका बजने लगे।

मैं हूं लायक इस क्षेत्र के विकास हेतु
जनता से सभी प्रत्याशी कहने लगे,
नीचे गिराने अपने अपने विरोधी को,
सभी चालबाजी का खेल चलने लगे।

देख जनमानस लगा हंसने,
गिरगिट सा खेल नेताओं के,
अपने ही सपने सच करने को,
नेताजी चुनावी मेला सजाने लगे।

डीजे संगीत और पोस्टर के साथ, 
नेताजी चुनाव प्रचार करने लगे,
जनता के हको से फिर से खेलने को,
झूठे वादे वाले नेता फिर चहकने लगे।

अपना शहर भी चुनावी रंग में डूबा,
नेताजी चुनावी मेला सजाने लगे,
वोटों की भीख मांगने के लिए,
शहर में चुनावी डंका बजने लगे।


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एक बचपन का जमाना था,
जिसमें खुशियों का खजाना था,
चाहत थी चांद को पाने की,
पर मन गोलगप्पे का दीवाना था।

खबर ना रहती थी सुबह की 
और ना शाम का ठिकाना था,
थक कर आना स्कूल से 
पर खेलने भी जाना था।

मां की कहानी थी,
यारों का दोस्ताना था,
खेलते हुए हाथों में गेंदे थी,
झगड़ा करना भी एक याराना था।

हर खेल हर समय में साथी थे,
साथ ही खुशी और गम बांटना था।
कुछ सोचने का ख्याल ना रहता था,
हर पल हर समय सुहाना था।

बारिश में कागज की नाव थी,
ठंड में मां का आंचल था,
ना रोने की वजह थी,
ना हंसने का कोई बहाना था।

वो रातो में मां की कहानियां थी,
वो नंगे पांव ही दौड़ना था,
वह बहुत गुस्सा आने पर, 
जमीन में पांव को रगड़ना था।

वह नए-नए उपहार पाकर, 
खुशी से झूमना था,
बचपन होता कितना प्यारा था,
ना किसी से कोई भेदभाव था।

हर किसी से दोस्ती का ख्याल था,
किसी से ईर्ष्या न रखने का स्वभाव था,
कोई लौटा दे मेरे बचपन को, 
कितना सुंदर वो जमाना था।
क्यों हो गए इतने बड़े हम,
इससे अच्छा तो बचपन का जमाना था।।


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बचपन है ऐसा खजाना
आता है ना दोबारा
कूदना और खाना,
मौज मस्ती में बौखलाना,
वो माँ की ममता और वो पापा का दुलार
भुलाये ना भूले वह सावन की फुवार,
मुश्किल है इन सभी को भूलना

वह कागज की नाव बनाना
वो बारिश में खुद को भीगना
वो झूले झुलना और खुद ही मुस्कुराना 
वो यारो की यारी में सब भूल जाना
और डंडे से गिल्ली को मरना
वो अपने होमवर्क से जी चुराना
और teacher के पूछने पर तरह तरह के बहाने बनाना
बहुत मुश्किल है इनको भूलना

वो exam में रट्टा लगाना
उसके बाद result के डर से बहुत घबराना
वो दोस्तों के साथ साइकिल चलाना
वो छोटी छोटी बातो पर रूठ जाना
बहुत मुस्किल है इनको भुलाना…

वो माँ का प्यार से मनाना
वो पापा के साथ घुमने के लिए जाना
और जाकर पिज्जा और बर्गेर खाना
याद आता है वह बिता हुआ जमाना
बचपन है एक ऐसा खजाना,
बहुत मुश्किल है इसको भूल पाना।

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छट पूजा पर..!
छठ पूजा में जो तू चाहे वो तेरा हो
हर दिन खूबसूरत और रातें रोशन हों
कामयाबी चूमते रहे तेरे कदम हमेशा
छठ पूजा की बहुत बधाई हो
हैप्पी छठ पूजा..!
छठ पूजा का पावन पर्व है, 
सूर्य देव की पीजा का पर्व
करो मिल के सूर्य देव को प्रणाम, और बोलो सुख शांति दे अपार।
सुबह उगा है सूरज, अर्घ्य सांझ को देना है
पूरे दिन हमें छठ मैया का नाम लेना है,
अगली सुबह जीवन में नई खुशहाली लाएगी,
छठ मैया आपके सब मनोरथ पूरे कर जाएगी।।
सुनहरे रथ पर होके सवार,
सुर्य देव आएं हैं आपके द्वार,
छठ पर्व की शुभकामनाएं
मेरी ओर से करें स्वीकार
हैपी छठ पूजा!
एक पूरे साल के बाद
छठ पूजा का दिन आया है
सूर्य देव को नमन कर
हमने इसे धूमधाम से मनायेंगे।
कदुआ भात से होती है पूजा की शुरुआत,
खरना के दिन खाते हैं खीर में गुड़ और भात।
सांझ का अर्घ्य करता है, जीवन में शुभ शुरुआत
सुबह के अर्घ्य के साथ, पूरी हो आपकी हर मुराद।
सूर्यदेव से करते हैं प्रार्थना,
सभी को मिले सुख शांति अपार।
फिर से हैप्पी छठ पूजा,
आप सभी को बार-बार।

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