08 मई 2021

रचना :- सचिन केजरीवाल..!

लूट कर सब कुछ खुशियां मनाते
देखे हमने कितने लोग
दुनिया जिनको कहती है
भोले भाले प्यारे लोग
भोले बैठे मंदिर में
हमने देखा
भाले चुभोते लोग
जान के सब यहां दुश्मन हैं
बस भाई भाई कहते लोग
उजाड़ कर दुनिया सारी
पैगाम मुहब्बत के देते लोग
सब के सब नामुराद हैं
जाने कैसे जीतें लोग
फिक्र न करो तुम सब
मारे तुम भी जाओगे
वक्त करेगा कत्ल तुम्हारा
तुम देखना एक रोज

****************
हर टूटा दिल शायर है
हर भूखा मजबूर
बे गैरतों की बाते भी
गैरत से भरपूर
अमीरों को देखो वो दिखते नहीं
गरीबी छिपाए पर छिपती नही
पैबंद भले हैं मखमल से
किसी का खून पीते नहीं
जकड़ती हैं सांसे अकड़ता है जिस्म
जुबां काबू में कुछ अब रहती नहीं
दोनों तरफ है बराबर बराबर
वबा किसी एक की तो होती नहीं
किया है कल को जो तूने इंसा
भुगतने को उसको कोई आएगा नहीं
याद करो वो पेड़ वो पौधें
नदियों का बहना
वो खुशबू के झोंके
हर टूटा दिल शायर है
हर भूखा मजबूर
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काश के बदल जाती मेरे शब्दों से दुनियां
बड़ी खूबसूरती से सहेज लेता मैं दुनियां

खा लेता चांद समझ रोटी मैं तुझे
गर मां थाली में पड़ोस देती न दुनियां

तमाशे बड़े देखता हूं जहां में
नजारें भी गजब दिखती है दुनियां

हरारतें अपनी मिटा लेने के बाद
नामुराद समझ ही लेती है दुनियां

नाराज गर हो जाए सब अपने
तो दिलशाद हो जाती है दुनियां

काश के बदल जाती मेरे शब्दों से दुनियां
बड़ी खूबसूरती से सहेज लेता मैं दुनियां
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चार की जगह बस एक ही बनाते
बच्चों के लिए कमरे अलग बनाते

भाई ही रहते किसी शागिर्द की तरह
गर तुम हमे अपना दुश्मन न बनाते

बन जाया करते हैं रिश्ते किन्ही रस्मों की तरह
बन भी जाते जो तुम रस्मे अपनी जाया न करते

इच्छाएं तुम्हारी सुरसा सी हैं तुम समझ पाते
दिया तो दिल भी था हमने तुमको पर हर बार
तुम बेवजह की जिद पर हो आ जाते

मुल्क को चलाने के लिए कोई वजीर नहीं चाहिए
आवाम को समझते तो वजीर खुद बन जाते

मसले खुद की चौखट के सम्हलते नही हैं
उंगलियां हम पे उठाते हो बड़े कमजर्फ हो
समझा है हमने तुमको तुम अहसान फरामोश हो

गए वक्त को गवाह आसमा कर रहा है
आने वाले की तस्दीक जमी करेगी

बनाते रहो, बुनते रहो महल ख्वाबों के
सारी तम्मनाएँ एक रोज दफन हो के रहेंगी

कैसे लगे हैं सब कतार में खैरात बंट रही है
नंबर तुम्हारा भी आएगा तारीख बदल रही है

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हर ओर दौड़ रही हैं दास्तां दर्द की
के सुन ले आ के उपर वाला भी

ये अम्बर यूं ही तो नीला नहीं
इसके उपर क्या कोई रहता नहीं

नीली छतरी नीली आंखें सब किस्से थे क्या
जो सुनाए गए थे हमको वो गढ़े गए थे क्या

विपदा में आता है कोई विषधर भोला
आज सभी चालाक बन गए क्यूं ऐसा है लगता

सुना है कल से बनवासी आने वाले हैं
विष्णु अवतारी है जो वो राम आने वाले है

आखिर आना ही है तो पहले आते
विपदा के साथी ..............

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वो हंसते हैं मुझपे, 
वो नादान हैं
वो झूठे हैं 
उनको कहां पहचान है
जानते हैं 
लेकिन मानते ही नहीं
मुकद्दर से उनको 
शायद मिला भी नहीं
हसीं है ये तोहफा 
कुछ भी दौलत नहीं
कुछ करते है 
पूजा इसकी मगर
नाम इश्क़ है 
ये जानते ही नहीं
खुशबू हवा में 
है फैली मगर
चेहरे पे सबके 
है चेहरा चढ़ा
डरते हैं सब 
फिज़ा से भी कुछ कुछ
इश्क़ में डरना 
जरूरी तो नहीं

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मुहब्बत पिशाचन मोहे
डस गई है नागीन सी
नाम ये जुल्फों का तेरी ले के
मोहे डस गई है नागीन सी
ओढ़े लबादा इश्क का ये
मेरे दिल का लहू पी रही है
ये गुमशूम है चुप है
जुबां अब दिल की
मुहब्बत पिशाचन मोहे
डस गई है नागीन सी
क्यूं सिमटा मैं तेरी आगोश में
ख्वाबों में मेरे क्यूं तू आई
गुनाह है क्या मेरा बता
फजूल सजा मैंने जो पाई
मुहब्बत पिशाचन मोहे
डस गई है नागीन सी
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पहाड़ वीरान होते जा रहे हैं
फिर भी मौन है पत्थरों की तरह
जंगल सुनसान होते जा रहे हैं
फिर भी मौन है शमशान की तरह
ये नदियां अब जमींदोज हो रही हैं
मगर खामोश है कैदियों की तरह
जहर घुल रहा है वादियों में
पर चुप है वादियां 
किसी उम्मीद की तरह
जो जागेगी कभी, 
कभी पूरी होगी
फिर रोशन पहाड़ होंगे
जंगल आबाद होंगे
नदियां बलखाएगी
और वादियां चहकेगीं

***********************


प्रेमलता को जब लिखा प्रेम पत्र
उठा बेलन श्रीमती जी लगी देने
धका-धक
रफू हुआ दिल में ऐसा दिल लगा करने
धक-धक
डर से अब बंद है बेचारा दिल
कलेजे के कमरे में
आखरी सांसे मानो कर रही हो
धका-धक
प्रेमलता के प्रेम में पड़
पकड़ा गया मेरे दिल का रोग
रात-दिन अब लिखने का प्रेम पत्र
मनाता है दिल मेरा शोक
पिंड दान बस है बाकी दिल का
सोच ये करता दिल धक-धक
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दिल टूटने का दर्द कलेजे से पूछो
काटना ही होगा अब इसको भी
कई जगह प्लास्टर होंगे अब
दिल भी एक कलेजा भी ईक
न डाक्टर है न इलाज कोई
न नाम पता लिखने को नर्स कोई
कहां जमा करूं अपना दिल टूटा
जिसका इलाज करे कोई
चढ़ाए प्रेम का प्लास्टर दिल पर
करे इलाज कलेजे का भी कोई
महंगा सस्ता खर्च जैसा भी
खींच निकालो इस दिल को
कलेजे से सुकून मिले जरा इसको
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नाम लीजिए प्रभु श्री राम का 
श्री कृष्ण मिल जायेंगे
काम न बना रामायण से तो 
महाभारत सीखा जाएंगे

किया जैसे हश्र रावण का 
याद रहे सबको
वरना टूटी जांघ वाला 
दुर्योधन दिखायेंगे

जब सभी प्राकर्मी 
अधर्मी हो जाएंगे
तब गीता से धर्म 
उनको बताए जाएंगे

गंगा का जल भी 
न स्वीकारेगा उनको
जो मां बहनों की ओर 
बुरी दृष्टि डालेंगे

न सतयुग न द्वापर 
कलयुग है ये
हम में ही श्री राम 
श्री कृष्ण पाए जाएंगे

जितने भी कर्ण 
खुले घूम रहे हैं
एक दिन बेमौत 
सब मारे जाएंगे
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न मारो लाठी डंडे इनको
न करो इनसे कोई मशविरा

बस जैसे हैं पड़े रहने दो
न चलेगा इनका कोई पैतरा

देखना उठेंगे चलेंगे
घुटनों के बल
बिलबिला के
पड़े तो रहने दो
कुछ दिन और

उजाड़ रहें हैं ये खुद से बाग अपने
क्या बसाएंगे शहर कोई ये रहने दो
******************

तुम चांद सी चमकती हो
जब भी तुमको देखता हूं
मन मेरा पागल है कितना
छूने को तुमको मचलता है
ये पत्ते, शाखें, पेड़, पौधे
सब तेरी बातें करतें हैं
किसी ओस की बूंद हो तुम
किसी संगीत की हो रागिनी
कुछ दिखता ही नहीं मुझको
तुम जब चांद सी चमकती हो
तुम चांद सी चमकती हो
जब भी तुमको देखता हूं
स्वाद तुम्हारी बातों का
दिल मेरा भूलता नहीं
इश्क़ तुम्हारा यादों में है
चाह कर भी भूलता नहीं
रग-रग में बसी एक तुम हो
जब चांद सी चमकती हो
जब भी तुमको देखता हूं
तुम चांद सी चमकती हो
**********************

ये तेरी बैचैन रूह को समझता हूं मैं
मर रहे हो आहिस्ता आहिस्ता
 समझता हूं मैं
प्रेम में पागल हो तुम
प्रेम पागल है समझता हूं मैं
सुख दुख सब को माचिस दिखाए
दिन भी काली रात नजर आए
विरह में जो जले मन
समझता हूं मैं
उलझे डोर सांसों की पहले
प्रेम में वो पल कहां नसीब
सारी दुनियां सारे बाज़ार हंसे
समझता हूं मैं

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आसमां में उड़ते थे वो कभी
अब आज जमीं पर पड़े हैं
काय काय करते कव्वे
सारे मर रहें हैं
कल तक हम भले थे
हम पर ज़ुल्म हो रहे थे
अब किधर ढाओगे क़हर
अब हम बुरे हो रहें हैं
क्या सोचा था तुमने
चिंगारी सिर्फ हमे जलाएगी
नींद उड़ी हुई है तुम्हारी मतलब
वो तुम्हे भी जला रही है

*******************

वो कौन  है जो लिप गया  
मिट्टी आसमां  पर 
ये बिछा दी चांदनी  
किसने सारी धरा पर 
क्यूँ आसमां मटमैला है 
क्यूँ धरा भी ठहरी है  
हंसी छीन ली किसने दोनों कि 
जाने क्यूँ गमगीं दोनों हैं 
ज़ख्म देखने न सही 
मुझे देखने तो आओ कभी
हम दोनों ही काम अक्ल हैं
मुश्किल में हमारी नस्ल है
हम दोनों को ये समझाओ कोई

*******************

मुर्दों के शहर की दास्तां..!

हर गली, हर मुहल्ले, हर चौखट
पे दिखते हैं मुर्दे,
ज़िंदा हैं चलते हैं मुर्दे,

अजनबी निगाहों से एक दूसरे को
ताकते हैं, ये कैसा मंज़र है
ये कौन सा समंदर है
जहां  बस मुर्दे ही हैं

नही ऐसा नही है के वो
ज़िंदा नही हैं
ज़िंदा तो है
पर हैं सभी मुर्दे

**********


वक्त...….....

वक्त की बात है
वक्त के साथ है
बे - वक्त कुछ नहीं
वक्त ही मेहरबां है
हर ज़ख्म की इबतदा
हर सितम की इंतहा
बड़ा सफ्फाक वक्त है
जो चलता ही रहता है
यही इसका निशान है
जीवन है मृत्यु है
सब वक्त पे कायम है
और एक ये वक्त है
जो अपनी जगह स्थिर है
निश्चल है
फिर भी वक्त कहता है
"मैं आऊंगा
लो मैं आ गया
मेरा वक्त चला गया"


*********************


मैं जाहिल बस पन्नों पे लिखता रहा 
ख़्वाहिशें अपनी
वो सितम हम पे ढा पूरी करता रहा 
ख्वाहिशे अपनी

दुआएं जो निकलती थी 
दिल से उसके लिए
धुंआ-धुंआ हो गयी 
अब दुआएं वो दिल की

वो दौलत को ईमान मान बैठा था, 
कितना मुर्ख था
कोई उसे अपना खुदा मान बैठा था, 
वो कितना "मूरख" था

अजीब है दास्तां ए रोटी तेरी, 
क्या-क्या कैसे बयां करूं
"सचिन" तुझे तरसता है, 
और किसी को तेरी कद्र नही

*********************

सांसे मेरी मुझको डस रही हैं
धीरे-धीरे जां मेरी ले रही है
नासूर हैं नाखून मेरे, 
मुझको नोच रहे हैं
क्या मिले हैं लोग मुझको, 
बस दुत्कार रहे हैं
ना-मुराद क्या कहेंगे "सचिन"
बहरे हैं सब चुप ही रहेंगे
पहले सुर्ख लाल था
अब पानी जैसा है लहू
एक तेरी जुस्तजू थी 
अच्छा हुआ तुम न मिली
वरना ज़िन्दगी 
बेकार चली जाती "सचिन"

******************

दोस्ती भी रखनी है, और
पीठ में छुरा भी घोपना है
ऐसे थोड़े न चलेगा

राष्ट्र का अन्न भी खाना है, और
राष्ट्र के टुकड़े भी करने हैं
ऐसे थोड़े न चलेगा

ये जो हर बात पे सवाल करते हो न तुम
हर जवाब से इंकार करते रहते हो तुम
तुम्हारी हर बात पे कोई हामी भरे
ऐसे थोड़े न चलेगा

इंतहा मचा रक्खी है तुमने, सबके सब्र की
क्या लगता है तुमको, पैमाना खाली रहेगा
साकी भी तुम हो, जाम भी तुम हो. बस
फिर सारे दोष क्यूं कोई अपने सर लेगा

********************

अनपढ़ हैं जो वो क्या पढेंगें 
गैर मजहबी क्या पढेंगें
गैर हाजिर रहे जो गुरूकुलो में 
वो "सचिन" क्या पढेंगें

ना मुराद नहीं है तू, 
है तुझमें भी असर
बिन गुरु ज्ञान के, 
वो असर कैसे दिखेंगे

तुम तो बस ढोंग कर लो 
हो सके जितना दंभ भरलो
पर पता है सारे जग को 
सोए हुए हो तुम क्या जगोगे

क्यूं हाथों में है लाठी तुम्हारे 
उठ खड़ा हो ज्ञान लेे लेे
मां सरस्वती का बन पुत्र 
अपनी मां का मान रख लेे

पर अंधियारों में जीने वालों, 
तुम उजाला क्या जानो
क्या होता है ज्ञान प्रकाश का, 
करो हिम्मत समझो जानो


******************

क्यूं करता है स्याही फजुल अपनी
नदी, नालों, पहाड़ों पर
आ बैठ हल्दीघाटी लिख
जिस जिस ने लुटा हिन्द को
है हिम्मत, नाम उनका लिख
लुटेरों को धूल चटाई जिन्होंने
कर गर्व, महाराणा प्रताप लिख
जला रहें हैं जो हिन्द को देख
और देख के नाम सारे लिख
खाक ए सुपूर्द हुई जाती है चीजें हिन्द की
किसी के बाप की जागीर नहीं वो सब लिख..!

******************

आओ काट दो जड़ें मेरी
जैसे कोई पेड़ हूं
मैं बैठा हूं पहाड़ों पर
किसी जनावर जैसे
उठाओ और पटको मुझको
समझो मैं कोई तकिये जैसा हूं
चिपक जाओ दीमक की तरह मुझसे
जानो मैं किसी खोखले बांस जैसा हूं
हर बात को मेरी झुठला दो तुम
मानो मैं कोई मक्कार हूं
देख कर मुझको नज़रें फेरो मुझसे
समझो किसी अजनबी जैसा हूं
लिक्खो और मिटाओ मुझको
बस कोई इक लकीर हूं
मत पूजो बस तोड़ो मुझे
समझो कोई दीवार हूं
दूर रहो सब मुझसे ऐसे
जैसे कोई किनारा हूं
आते - जाते मिल लो मुझसे
चौराहे का कोई फकीर हूं
आते हैं सब दिल में छोड़ जाने के लिए
क्यूं लगता है जिस्म मेरा सराय जैसा है
घीन करो समझो मुझको
ज़ख्मों का कोई बसेरा हूं
क्या लिक्खुं शे"र क्या करूं शायरी
देखो खोलता हूं ज़ख्मों की पोटली
****************************

हुस्न कि गलियों में हम भी दिलशाद गए थे
लौट के जब आए तो "सचिन" बर्बाद खड़े थे
हर भीत पर एक मीत दिखता है
ये कैसा हुस्न ए बाज़ार सजा है
कर जोड़ कोई इश्क़ के सामने खड़ा है
जाने क्यों "सचिन" इश्क़ बीमार पड़ा है
नाशाद लौट के दर से उसके
ए "सचिन" तू क्यूं मरता नहीं
लम्स का जो है ये उसका
ए फूसुं तू क्यूं मिटता नहीं
अब सोचते है क्यूं इश्क़ किया
क्यूं बर्बाद खड़े है
क्यूं दिल को नासाज किया
क्यूं तन्हा पड़े है
दौलत ए इश्क़ से भला कहां रोटियां मिला करती
हिज़्र ए वफ़ा में "सचिन" भूख भी तो नहीं लगती..!

*****************

रख हाथ सीने पे अपने 
फिर बात कर
क्या किया है इतिहास में तूने 
याद कर
बाते बहोत करते हो 
अमन की तुम
चमन बर्बाद किया तूने 
क्या सोच कर
अफसाने फिर 
दोहरा रहा है वहीं
फिर से मासूमों का 
गला काट कर
शमशीरों से खेलने वालों 
ये ही तुम्हारी दुश्मन है
लाएंगे प्रताप जीत कर 
फिर धरती को याद रख

****************

कहीं पे ताली बजती है
कहीं पे ताले बजतें हैं
ध्यान दिया नहीं दुनियां ने
नैनों से अश्क के नाले बहते हैं
कम दिखते हैं वो लोग जो
दिल में नश्तर चुभोते हैं
समेटे रक्खो आस्तिनों को अपनी 
अस्तिनों में अक्सर सांप होते हैं
रहो बच के उनसे 
जो ऊपर दिखते हैं
आसमां से अक्सर 
आजाब उतरते हैं

***************
मैं डूबा नहीं हूं, 
मुझे डुबाया गया है
धोखे से ही मुझे 
रुलाया गया है
खंजरों को क्या 
उंगली दिखाना
अपनों के हाथों से 
वो चलाया गया है
जो फरेबी है, 
वो सारे फरेब करतें है
सिर्फ मुझे ही प्रेम 
सिखाया गया है
सर से पांव तक 
पट्टियों से ढके हैं सब
बस हर ज़ख्म मेरा ही 
दिखाया गया है
आशियाने सब के 
उजाड़ दिए तुमने
फिर लुटेरा मुझको 
क्यूं बताया गया है
****************

मौत इक दिन आनी है
आनी है आ जाएगी
मुझको गले लगाएगी
डरना क्यूं फिर खंजरों से
बिकना क्यूं चंद रुपयों में
पढ़ना है खूब पढ़ो
गीता का संदेश पढ़ो
सुनना है सुनते रहो
श्री कृष्ण के उपदेश सुनो
चलना है चलते रहो
कर्तव्य पथ पे बढ़ते रहो
ऋणी रहो अपने पूर्वजों के
तलवारों से डरे नहीं जो
मृत्यु से ना विचलित किंचित
सत्य अटल ये मौत है
आनी है आ जाएगी
वीरों के मस्तक की शोभा
विजय तिलक बढ़ाता है
रण छिड़ा है धरा पर
रणभूमि रक्त से लाल करो

*******************

अब क्या करे हम"
एक बार नहीं कई बार हुआ ये
कभी दिल टुटा कभी हम
खुशियाँ कोसों दुर देखी
पास मिले बस गम
हर गम में खुशी कि तलाश
करते रहे बेवजह 
यूं ही बेमकसद भटकते है अब हम
कोई समझदार है तो बतलाये
अब क्या करे हम

**********************

मैं रहता हूँ जहां, 
वो एक निर्जन टापू है
पहुंचना है वहां दुर्गम
जो लोग रहते हैं, 
वो है निर्मम
मैं एक ऐसे टापू का वाशिंदा हूँ
मत पूछ यार मेरे
वहां इन्शान इन्शान को खाता है
हैवानियत का नंगा नाच होता है
मैं जिस टापू पे बस्ता हूँ
वहां सच बोलने की सजा मौत है
झूठ को जीवन दान  "सचिन"
मेरे टापू का हाल न पूछ यार मेरे
ना कोई अपना है
ना कोई दोस्त  "सचिन"
हर तरफ बस एक आग सी है
आग!
आग नफरत की
आग दुश्मनी की
आग अविश्वास की
आग पेट की
मेरे टापू पे सबसे ज्यादा 
मसहूर जो चीज है वो है चाह
चाह!
चाह दूसरों को नीचा दिखाने की
चाह दूसरों की रोटी छीनने की
चाह जो कभी पूरी नहीं हो सकती
मेरे टापू का तो क्या कहना
अबे कुछ कहना ही नही है जब
तब सोचना क्या
पढ़ना क्या
लिखना क्या
हम भी भूखे नंगे
तुम भी भूखे नंगे
हम दोनो भाई हुए
आओ गले मिले
और जश्न मनाये
अपने इस
निर्जन दुर्गम 
निर्मम टापू के नाम पर

**********************

जागती रातों को मैं क्या लिखूं
कोई जलता हुआ ख्वाब लिखूं
या उगता हुआ आफताब लिखूं
याद करते हो सारी रात मुझे
तुम कहो तो मैं ये बात लिखूं
आसमां के जैसी ज़मीं लिखूं
समंदर सा सारा संसार लिखूं
लम्स याद है तुझे तो वो लिखूं
या लिखूं दास्तां सफ्फाख कोई
जिसमे सिर्फ मैं रहूं और मैं दिखूं
किसी नदी के पानी को लिखूं
किसी पहाड़ के झरने को लिखूं
या बहती आंखों की किताब लिखूं
ज़ख्म बहुत दिए हैं ज़माने तुमने
ज़ख्मों को सिलने की बात लिखूं

**********************************

अब कुछ आवाज़ें उठने वाली है इक शोर की शक्ल में
कुछ और आने वाला है दुश्मन इक दोस्त की शक्ल में
खबरदार होशियार न रहना तुम डूब जाना अफीम में 
धारदार हथियार की जरूरत नहीं तुमको काटने में
कौन लूटेगा तुम्हे जब तुम खुद दरवाज़ा खोले बैठे हो
खुद को डस रहे हो तुम आस्तीन में सांप लपेटे बैठे हो
आवाज़ें आएंगी पर सुनोगे नहीं कानों में तेल डाले हो
हवा गर्म हो रही है धूप में रेत सी पर तुम मरे हुए हो
आंखे तो खुली है तुम्हारी नज़रे कामचोर है
देखते सब हो मगर किसी को पहचानोगे नहीं
जब आएगा महीना क़त्ल होने का तुम्हारे
मार दिए जाओगे तुम मगर जगोगे नहीं

*******************

एक ये सूरज है 
जो खंजर धूप का है
एक ये चांद है 
जो कातिल मेरे ख्वाब का है
एक ये मैं हूं
जो दुश्मन खुद का हूं
एक ये तुम हो
जो ख्वाब सुनहरा हो
हंसते हैं सब मुझपे
मुझे पागल समझते हैं
समझाना यकीनन मुश्किल है
उन्हें वो गफलत में जो जीते हैं
एक पहाड़ है बस काटते जाना है
समय एक दरिया है गुजारते जाना है
बहुत बुरी भी नहीं है ज़िन्दगी
जितनी बुरी बताई गई है
क्यूं नाराज होते हो मुझसे
क्यूं मिरा बुरा चाहते हो
अपने कर्मों को टटोला करो
जिनसे तुम भागते फिरते हो

*************************


हम भी कभी दिलशाद थे
खुश थे आबाद थे
फिर एक दिन कुछ यूं हुआ
ना आशना सी सब नज़रे हैं
ना मेहरबान सारे अपने हैं
फिर
जल गया दिल 
बुझ गए हम
और फिर एक दिन
तौफे में मिले
ज़माने भर के सितम
उसके बाद
न दिल रहा न दिलशाद रहा
न खुश रहे न कुछ आबाद रहा

*******************

ओ संसद बरसों बीते अब तो बता
तू कश्मीर को याद कर कब रोएगी
या सुख गए हैं आंसू तेरे भी उनकी तरह
या समझ नहीं आया कश्मीर तुझको बता
क्यों कोई बेघर हुआ जाता है
क्यों तेरा मुंह बंद इसपर रहता है
जीते जी क़त्ल किया कातिलों ने मासूमों का
बस एक आखरी सवाल तू ज़िंदा है क्या बता












******************

ए दूनिया के लोगों सुनो

एक पाशान हृदय कि कहानी
चुपचाप 
खामोश हो सूनो
मैने भी सुनी थी कभी
तब 
जब तुमने
खूदा के बेटे को
चढाया था सलीब पे
किया था लहू लुहान उसे
उसके ही खून से
एक बूंद 
गिरी आंसू कि 
और
कुछ याद आया
ए दूनियां के लोगों
तब मैं मौन था
जब तुम्हे चढ़ाया जा रहा था
सलीब पर
अब तुम मौन हो
जब मुझे डाला जा रहा है
यादों की कालकोठरी में

********************

मैं भूल रहा हूं नाम तुम्हारा
मुझे दीवारों में चुनवा देना
जो सच दिखलाता हूं मैं तुमको
इसकी सजा भी दे देना
कातिल हो तुम मेरे दम हो गर 
तो तुम ये झूठला देना
मुझे पता है हर चाल तुम्हारी
नादां बन मत पेश आना
हैं दो तरीके आज़ादी के
एक नहीं मैं होने दूंगा
जा सकते हो घर तुम अपने
अब आज़ाद तुम्हे जो है होना

************************

कौन आया है यहां

क्यूं कोई आया है यहां
कुछ भी तो नहीं है सिवा एक हम के यहां
गमजदा दिलों की बस्ती हैं मैं रहता हूं जहां
इतनी सिद्दत यूं किसने दिखाई है
ये दरिया दिली क्यूं कर निभाई है
दरवाज़ा खोलता हूं
कोई मतलबी होगा
मतलब निकालते ही "सचिन"
तुम्हे तन्हा छोड़ फिर चल देगा....


********************

एक तरकीब..!


एक तरकीब है मेरे पास
"सचिन" तुम आजमाओगे

जिन्होंने तुम्हे छोड़ दिया
क्या तुम उन्हें भुलाओगे

वो उंगली, वो आंचल
कंधों पे घूमना

हांथो का लम्स
लम्स कि तपिश
तपिश का अहसास
को, क्या खुद से दूर कर पाओगे

अगर नहीं तो फिर
फिरते रहो मारे मारे

और
अगर हां, तो फिर
फिर ही रहे हो तुम
मारे मारे
चलो कोई दूसरा रास्ता देखो
कोई नया ख्याल ले आओ

अभी मैं ज़िंदा हूं
सांसे चल रही है

सारे सितम कहां ढाए हैं
अभी सितामगरों ने मुझ पर

उन्हें मुझे अभी
और आजमा लेने दो

*************************

कितने मस्खरे है लोग यहां न पूछो
मजबूरियों को हौसला कहते हैं

अब याद आ रही है गांव की जिनको
वो शहर को अपना घोंसला कहते थे

क्या कमाया उम्र भर क्या रक्खा सहेज कर
दो दिनों में ही भूख भूख दिखाते दिखते हैं

मालूम है मुसीबत है सर पर "सर" बांटनी होगी
फिर क्यूं सारे आसमां सर पे सारे उठा रक्खे हैं..!!

*****************

दिन कहता है गुजर जा
रात इशारे करती है थम जा
अभी वक़्त है दिन निकलने में
मेरे बच्चे सो जा
कल फिर जलना है तुझे

एक नई रोशनी देनी है
दुनियां को जगमगाना है
मुरझाए होंगे जो फूल बाग के
उन मासूमों को सीचना है

पढ़ लेना किताबों को जल्दी क्या है
हर शफ्फे पे नाम तुम्हारा लिखा है
न आइंदा है न गुजिस्ता है
बस दिन है एक, एक रात ही तो है



**********************


अब सिनेमा सर्कस बंद होंगे
सम्मेलनों का भी नाम ना होगा

नाम कलाकारी के कोई शाम ना होगी
दूर मुल्क की कोई सवारी न होगी

जो है माहिर खिलाड़ी पुराने वो महफूज है
शामत तो,
 जो नए आए है मैदान में उनकी होगी

नाज़ बड़ा था तुम्हे अपनी कलाकारी पर
अब इस बीमारी का इलाज करो तो जाने



*********************



वादियों में घुला है ज़हर ये आतंक  मचाएगा
पी जा "सचिन"  क्या होगा जो तू मर जाएगा

जी रहें हैं पी के भंग सभी नफरतों की
तू किस किस को इस नफरत से बचाएगा

लूटे कुछ सौदागर नफरतों के
भले लोगों का वजूद रह जाएगा

जो करतें है शर्मशार इंसानियत को
ज़िंदा वो शक्स अब किसको चाहिए
क्या आएगा अजाब कोई क्या कोई बवा छायेगी
खुद खुदा मिटाएगा एक रोज सितम इश्क़ रह जाएगा..!


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कल फिर रोना होगा..!            
बड़ी खूबसूरत सज़ा है, बहुत मज़े में फिज़ा है
कैद हर कोई अपनों के संग हर कोई घर में हुआ
वक़्त मिलता नहीं था अब वक़्त ही वक़्त मिला है

कीमत हर खुशी की एक होती है दुनियां में
यहां भी जा रही चुकाई हर एक इंसा से

संग बैठें हैं सब अपनों के एक रोटी खा कर के
आरजू रसमलाई की अब कहीं होती नहीं दिखती

रो रहें हैं चंद लोग वो दारू छोड़ी जिनसे नहीं जाती
हर कोई तो नहीं होता कहता है ज़माना गरीब जिनको

बुरे वक़्त का मज़ा भी है रोने से क्या होगा
मज़ा ले लीजिए वरना कल फिर रोना होगा

निकलना है घर से बुरा बे मतलब इंसा का
मौत लिए बाहर खड़ा समझ लीजे कोरोना


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       "ए मेरी जिंदगी"     

कुछ लेने नहीं आया हूँ मैं तुमसे
ए मेरी जिंदगी
मत घबरा बस कुछ देर ठहर जा
ए मेरी जिंदगी

मैं तो शामिल होने आया हूँ
तेरे गम में तेरे मातम में
मत घबरा ए मेरी जिंदगी

तेरी खुशियां तुझे मुबारक
तेरा जश्न तुझ पर नयौछावर
न मांगुगा मैं हिस्सा कभी
रख इत्मिनान ए मेरी जिंदगी

तनहा अंधेरो से रिश्ता मेरा है
देख उजाला तेरी ओर चला है
मेरा क्या है कुछ नहीं
सब तुझे मुबारक ए मेरी जिंदगी

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"प्रेम"             

मैं प्रमाण हूं प्रेम का और तुम
मेरे दिल का प्रमाण पत्र हो

मैं देखता हूं नज़रों से और तुम
मेरी निगाहों का नूर हो

ये जहां कुछ नहीं है मेरे लिए
मेरे लिए सब कुछ तुम हो

कृष्ण की बांसुरी शिव की धूनी
फजुल है सब जो तुम ना मिली

कहता हूं मैं सुन बावली
प्यासे है तल सुखी बावड़ी

पड़ के प्रेम में बन जाएं हम
मैं तेरा संवारा तू मेरी सवारी

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रुलाने का ठेका किसी का भी हो
पर हमारे पास आओ हसीं हम देंगें

देखलो जी भर के एक नजर
नजर में हसीं हम भर देगें

नाराज़ लगते हो कुछ ज़माने से
यकीं रक्खो हम ज़माना भूला देंगे

ज्यादा कुछ थोड़े न करना है तुमको
बस चेहरा मेरी तरफ रक्खों
और मुस्कराने सीखा देंगे

क्यूं घबराते हो क्या हो गया
जो कोई तुम्हे छोड़ गया
अरे हम दूसरी दिलवा देंगें

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हो मुकर्रर सज़ा कोई ऐसी अब
के कातिलों के दिल दहल जाए

ना हो बस में सरकार आपके
तो आप सत्ता से उतर जाए

और गर गीनानी है मजबूरियां ही तो
जो दिख रहें हैं पहले उनकी सुनिए

दिक्कत है आप को मेरे घर में तो साहेबान
आप अपने अपने घर शौख से चले जाइए


#पालघर_संत..!
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नाम लिख दिया है पत्थरों पे तुम्हारा
ये दिल पत्थर का है तुम्ही ने कहा था

आरजुओं को सारी हवाले आग के किया है
बिन तुम्हारे दिल जलेगा ये तुम्ही ने कहा था

सारी तमन्नाओं का अपनी क़त्ल कर दिया है
दिल मेरा घुट घुट मरेगा ये तुम्ही ने कहा था

गर्दिश में है हम और इश्क़ हमारा
भटकते रहोगे ये तुम्ही ने कहा था

नाशाद है फिज़ा अपनी और जां है आफत में
हर कोई छोड़ देगा तुमको ये तुम्ही ने कहा था

नाआशना हो जाएंगी ज़माने भर की नज़रें
कोई न पहचानेगा तुम्हे ये तुम्ही ने कहा था

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आदमी को आदमी की तलाश है
हर एक को इक रोटी की प्यास है

मजहबी रंग सब फिके सारे
पेट की सुलगती जब आग है

बवा है मुल्क की सरहद पे आईं
मयस्सर ना हो अब अज़ाब कोई

बस निकले हैं फरमान सुनो, समझो
घर में रहो ना बाहिर सचिन निकलो

जी उठेंगी फिर से गलियां सारी सूनी
बस चंद और दिन इन्हे सूनी ही रहने दो

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दुश्मनी पालें मुझसे मेरे सारे यार बैठें है
जाने कितने मेरे क़त्ल के तलबगार बैठें हैं

कितने फरमानों का सिलसिला चल पड़ा है
मेरे लिए और मुझे गुमराह किए बैठे हैं

जब भी पूछता हूं हल ए दिल
मुझे वो बहला दिया करते हैं

हर एक कि आंख मुझ पे घात लगाए हुए है
और मुझ ही को वो दहसत का नाम दिए बैठे हैं

कुछ भी तो नहीं हूं मैं फिर क्यूं
बेवजह मुझ पे इनाम रखे बैठे है



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ओर छोड़ भोर छोड़ 
सांझ की बात कर
दारू व्हिस्की छोड़ दे तू
चाई कॉफी की बात कर
है सवालssss लाईफ का


क्यूं पड़ा है लड़कियों पीछे तू
लड़कियां है रूत सी आती हैं जाती हैं
चलती है जो थाम के दामन
उस वाइफ कीssss कोई बात कर

है हसींssss शाम हमनशी
रात हैssss जिसकी सखी
आने वाली रात की
जुल्फों के छाव की
दिलबर के सौगात कीssss
तू बात कर


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जल गए मकां दुकान सब सपने बिखर गए
दिल्ली जली तो सबके कलेजे जल गए

आए थे बड़े शौक से मुफ्त समझें थे

क्या पता था हम कैसे ना समझे थे

मसरुफयत में इस कदर खोया था मैं

कि दिल्ली जल गई और सोया था मैं

फजुल है सब गुमान अपनी ताजपोशी का

कि अपने ही प्यादे से दिल्ली हार गया मैं

किले सभी फतह किए फिर शिकस्त भी पाई

मेरी गलतियों की कि दिल्ली ने भरपाई

अब ये शर्म कैसी क्यूं सर झुका है

कौन "कून" कहे कहां कोई बचा है


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मुर्दों के शहर की दास्तां..!

हर गली, हर मुहल्ले, हर चौखट
पे दिखते है मुर्दे,
ज़िंदा चलते है मुर्दे,

अजनबी निगाहों से एक दूसरे को
ताकते है मुर्दे, ये कैसा मंज़र है
ये कौन सा समंदर है
जहां  बस मुर्दे ही है

नही ऐसा नही है के वो
ज़िंदा नही है
ज़िंदा तो है
पर है मुर्दे


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धर्म और आतंकवाद

पहले कसाई का काम करता था वो, 
अब बिस्फोट करता है
इन सब से पहले वो लूटता था, 
औरो कों अलग अन्द्ज़ में
अपनापन जता-जता कर
कार्बन की कोठरी बन गया है घर उसका
धुंधली हो गई है तस्वीर उसकी, 
उन्ही की नजरो में
जिनकी शे पर करता था वो कृत्य इतने
संलिप्त थे इन कृत्यों में जो उसके
अब सुरक्षा परिषदों का पूर्णगठन करने में जुटे है
सलाखों से फांसी तक एकजुट हो जुटे है
फिर भी सबक नही सीखा बस एक सवाल बन गया
आते है दोस्ती का दामन थामे
मगर बाद में मजबूर कर देते है
लाखों आंसू रोने
रुलाने से पहले कहते है वो
राजनैतिक दलों का मंथन करो
कैसे बचेगी जनता की दौलत,
कहाँ मिलेगा उन्हें न्याय,
फिर एक सवाल छोड़ देते है वही
बढ़ता खर्च इनपे न लादो
राजनीती का नाम परिवर्तन कर
साजिश को नई सकल देते है वो
धर्म का सच्चा स्वरूप हमे,
अपना धर्म बेच-खो कर सिखलाते है
फिर आया धरम परिवर्तन का तीसरा पक्ष 
धर्म परिवर्तन का बुखार चढ़ा कुछ इस कदर
की वो दिमागी बुखार कर गया ग़दर
हिंदुत्व को लेकर कौन कितना उग्र होगा..??
कौन नही
हिंदुत्वा कों ले कर पब्लिसिटी का पात्र बन गया वही
प्रदर्शन से पहले उन गुणों के लिए चर्चित हो गया
जिनका असल में वो मालिक ही नही
फिर भी ये कहते है वही
धर्म से श्रेष्ट बंधु नही
धर्म से बढ़ कर धन नही
------------------------२
दूर कही खो गया है,
मुखड़ा उसका
अब जो दिखता है, 
खून से नहाया हुआ
अतीत वर्त्तमान है उसका
जो भविष्य तक रहेगा,
उसके बाद भी उसको रोयेगा
उसके सो जाने के बाद भी,
किताबों के पन्ने पे जागेगा
जब भी जागेगा दुःख के सिवा किसी कों कुछ नही मिलेगा
उसके भविष्य का चेहरा ही बिगाड़ दिया है

उसके अपने अतीत ने

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अब मैं अखबारी कर्मचारी न रहा..!

अब मैं अखबारी कर्मचारी न रहा
कागज कलम से मेरा कोई रिश्ता न रहा
अब मैं अखबारी कर्मचारी न रहा
कल परसों तक था जो रिश्ता
कब टूट गया पता ही न चला
अब मैं अखबारी कर्मचारी न रहा
हर जगह होड़ लगी है पैसों की
बचा इससे कोई ऐसा न रहा
इस होड़ मैं रुक कर भी चलता मैं रहा ,
रुकता मैं रहा चलता मैं रहा ,
रुक- रुक कर चलता मैं रहा
अब मैं अखबारी कर्मचारी न रहा
जितना चाहा "सचिन" ने पीछे रहना
अब उतना ही आगे बढ़ता मैं रहा
हर कदम पे पीछे रहने की चाह
हर कदम पे आगे मैं रहा
अब मैं अखबारी कर्मचारी न रहा
हसरत मेरे दिल की लिखने वाली
अब मेरे दिल में न रही
फिर भी कागज पे कलम घसीटता मैं रहा
लिखता मैं रहा - लिखता मैं रहा 
बस सब कुछ यू ही चलता रहा, पर अब
सचिन अखबारी कर्मचारी न रहा 
               
                                                                                                                                                     कसक..!

कसबिन कसे कसनी को कस से
कसनी में अपनी कसक को कस से
पत छोड़ पतिता बन गई , 
मनिका से बनी मंथर
पत्तेर बन उर गई वो ,
मेरे अंदर की मृगाछी
मवास में मर्दन हुआ मेरा
मराल उतरा आंखों का मेरी
पिशुन किया मेरे प्रिय ने, 
कुपंथ दिया मेरे अपनों ने
द्वीप जो था मेरा उसी ने कर 
"कर" इस घट को दुख्लाया
कहवा जाए अब कोई मनिका,
इस रण्य में सभी मदांध
मधुक लालसी मंडरा रहे करने को मर्दन
ऐसे पिशाच भी यहाँ घूम रहे
बिन पत जो माँ का भी कर दे मर्दन
माँ सु थी कभी यह कसबिन
इसको बाज़ार में लाया किसने ?
इसको कसबिन बनाया किसने ?
चंद्र बदन चंद्र नयन वीणा
हाथों में जाम थमाया किसने?
इसको कसबिन बनाया किसने ?
नाग सिंघासन हुआ जिसका
वन आँगन हुआ जिसका
हर जन आया इससे
फिर यहाँ इसको लाया किसने ?
इसको कसबिन बनाया किसने ?

***********************

गूँज उठा रक्त रंजित इतिहास
एक बार फिर से आज
जाने नज़र किसकी लगी,इसे
के रो पड़ा भारत फिर से आज
गूँज .......
जाग उठी जन-मानस के मन में
वही शहीदों की स्मृति
क्या मिली आजादी हमे
पा के खो देने के लिए?
शब्द जाल का ताना-बाना

बून रहे वो फिर से आज

गूँज.....
अब मुखौटा बदल गया है
बोल रहे फिर भी वो आज
गूँज ......
फैला रहे है वो फिर से
........,आतंक, जातिवाद
सत्तालोलुप्ता फिर से आज
गूँज........
कर रहे है बाज़ार तेज़,गरम
फिर से पलटने कों मर्म
खादी छोड़, फैशन पे ला खड़ा किया
हमे उन्होंने फिर से आज
हाथ मिला कर एक बार ...........
पहहने कों ताज
गूँज ........
हम भूल रहे है , शहीदों कों
उन शहीदों की कुर्बनिया
बिध्वाओं की टूटी चूड़ी
माओं की बिलाप्ती छतिया
फिर से सोच रहे हम
क्या हो कल क्या हो आज?
गूँज ..............

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