मेरी जिंदगी का,कुछ इस तरह है आलम।
बाहर ही रौशनी है,अंदर बसा हुआ तम।
करके चरागे रोशन,बढ़ते रहे कदम पर,
तूफान से ही लड़ना, न सीख पाए थे हम।
सोचा था जिंदगी का सूरज न ढलने देंगे
सोचा था हसरतों को फिर से न छलने देंगे
सोचा था अपनी मंजिल खुद ही बनाएंगे हम
सोचा था गम का कारवां फिर से न लायेंगे हम
सोचों का अपने मन पर रह सका न काबू
होता रहा वही जो ना सोच पाए थे हम।
हम चले थे दूर तक बस ख्वाब में चलते रहे
आंख खुली तन्हाईयां थी हाथ बस मलते रहे
अपना साया देख कर दिल बाग बाग होता रहा
रात की तन्हाइयों में दिल बहुत रोता रहा
रौशन किया था जो शमां खुद ही बुझाना भी पड़ा
न होठ हिले मुस्काने में न आंख ही हों पाए नम।
*******************
दिल कहता है चुप हो जाऊं
मौन निमंत्रण भेजूं तुझे।
पर फिर सोच के घबराती हूं
पास बुलाए कौन तुझे।।
धीरे धीरे चुपके चुपके
छुपके छुपके आ जाना।
प्रेम भरा एक दिल है मेरा
ख्वाब सुनहरे दिखा जाना
भूल के खुद ही खुद को
खींच बिठाऊं पास तुझे।
छवि तुम्हारी ही रोपित हो
हृदयांगन में आस मुझे।।
दिल कहता है चुप हो जाऊं
मौन निमंत्रण भेजूं तुझे।।
पर फिर सोच के घबराती हूं
पास बुलाए कौन तुझे।।
अभीसंधि की इस दुनिया में
जब प्रेम हमारा मौन हुआ
तब निश्चल निर्भाव हृदय से
अविरल धारा गौण हुआ।
भूल गई मैं प्रेम प्रतिज्ञा
भूल है अब स्वीकार मुझे।
नाहक ही मैं मांग रही हूं।
करलो अंगीकार मुझे।
दिल कहता हैं चुप हो जाऊं
मौन निमंत्रण भेजूं तुझे।
पर फिर सोच के घबराती हूं
पास बुलाए कौन तुझे।।
प्रेम हो अपना ऐसा जैसे
श्रद्धा पूजा हो जाए।
श्रृष्टि का श्रृंगार हो जैसे
जन्म ये दूजा हो जाए।
चिर प्रतीक्षा हो अंतिम पल
में भी गर पा जाऊं तुझे
जीवन भर की अभिलाषा
तृप्त तृप्त हो जाए मुझे।
दिल कहता है चुप हो जाऊं
मौन निमंत्रण भेजूं तुझे।
पर फिर सोच के घबराती हूं
पास बुलाए कौन तुझे।।
********************
तुम्हारे चित्र उकेरने बैठी हूं।
नितांत एकांत में,
तुम्हारी यादों के सहारे,
हाथों में कूची और रंग लिए।
पर इतना तेज परिवर्तित,
विचारों का संग्रहालय,
कभी स्थिर तो हो।
कि तुम्हें उकेर सकूं,
कि अपने यादों के झरोखों के ,
कुछ पल समेट लूं ,
चित्र पटल पर।
मन का वेग स्थिर ही नहीं होता,
तुम्हारा होना ना होना,
सब लपेट देता है।
मेरी कल्पना ,
बदलती कल्पना,
अनेकों रंगों में समा जाती हैै।
और तुम्हें पता है!
उस रंग से कुछ नहीं बनता,
सिर्फ काला और अंधेरा ।
तुम आओ ,
रोशनी बनकर,
फिर बना लेंगे मिलकर,
हमारी तस्वीर।
आज रहने देते हैं।
तुम्हारे अस्तित्व की सार्थकता,
अपने ख्यालों में।
और मन के कोने में।
********************
कौन हैं अपने कौन पराए,
कितने हैं मेहमान यहां।
कौन कराए मानवता को
रिश्तों की पहचान यहां।।
गूंज रहा है मानव क्रंदन,
रक्तशोणिता मांग सजे।
बंद पटाखों की आवाजें,
बंदूकों से कान बजे।
तोड़ के दुनिया की खामोशी,
मौत लिखे फरमान यहां।
और दीवारों के उलझन में,
बंद हुए अरमान यहां।।
क्यों न हो नारी के मस्तक,
शर्म घृणा से झुके हुए।
कहां हुए हैं, बहसी दानव,
जन्म लेने से चुके हुए।
जन्म देने वाली माता का ,
कुचल रहे अरमान यहां।
दानव वृत मानव हैं ये,
क्या समझे अहसान यहां।।
भारत के हर कोने में
फैल गया अब दुराचरण है।
राजनीति से शिक्षा तक में
प्रलयंकारी आचरण है।
भारत विश्व गुरु कैसे हो,
पनप रहे हैवान यहां।
मानवता की हदें गिरी हैं,
बिकता है ईमान यहां।
*************
बांध लिया है हमने अपने
अंतर मन में प्यार तुम्हारा।
तुम अस्तित्व बनाते जाती
जग करता संहार तुम्हारा।।
अब भी उस संसार में हो तुम,
जिसमें भाग्य बदल न पाया।
है संघर्ष कदम कदम पर,
फिर भी नियति छल न पाया।
तुम अस्तित्व बनाते जाती
जग करता संहार तुम्हारा।
बांध लिया है हमने अपने
अंतर्मन में सार तुम्हारा।।
कितने बंधन काटे तुमने,
खूब दिया है कुर्बानी
अग्नि परीक्षा भी दी तुमने,
रावण करता मनमानी।
कितनी ही कलियां इस जग में,
आने के पहले टूट गई
फिर भी इस जग में आकर
करती हो उद्धार हमारा।
बांध लिया है हमने अपने
अंतर्मन में सार तुम्हारा।।
कितने ही बुद्ध, राम ने
बीच अधर में छोड़ दिया।
कितने ही दुश्शासन ने
चिर हरण कर छोड़ दिया।
कितने ही युधिष्ठिर आए
क्रीड़ा द्वांदो में हार गए।
फिर भी अस्तित्व बचाया तुमने,
है हमपर एहसान तुम्हारा।
बांध लिया है अंतर्मन में
हमने सारा सार तुम्हारा।
सुख गई आदर्शवादिता,
बिन जन्में ही मिटा दिया।
फेंकी गई कुड़े करकट में,
नाली में तुमको बहा दिया।।
मोल न जानें हम ईश्वर की
इस सुंदर संरचना का,
प्यार दया ममता की मूरत,
क्या केवल अधिकार हमारा?
बांध लिया है अंतर्मन में
हमने सारा प्यार तुम्हारा।
अब भी टूट रही निश्छलता
शकुंतला के रूपों में।
अब भी टूट रहा सतीत्व,
पाषाण अहिल्या रूपों में।
अब भी कितनी ही नारी
जौहर करके बिखर गई।
सीता तेरे पुण्यप्रताप से
धरती माता निखर गई
सदियों सदियों दबा रहा
मन के अंदर अरमान तुम्हारा
बांध लिया है हमने अपने
अंतर मन में प्यार तुम्हारा।
जहां कहीं बेटी है,
घर है आंगन है चौबारा है।
नन्हीं-नन्हीं सी कलियों ने,
घर आंगन मन तारा है।
बड़ी हुई दो कुल की रौनक,
दोनो घर को प्यार दिया
अपने जीवन की खुशियों को
दोनो घर पर वार दिया।।
तेरे ही स्वर्णिम आभा से
पूर्ण श्रृष्टि का तम हारा।
बांध लिया है हमने अपने
अंतर्मन में सार तुम्हारा।
***************************
चलो चलते हैं, समेट लेते हैं
फिर से अपनी यादों का पिटारा।
जिसमें अथाह वेदना, उद्वेग, प्रेम,
और न जाने क्या क्या है।
तुम्हारे साथ वो पल
जो सिर्फ कल्पनाओं में ही रहा।
हकीकत न हुआ कभी।
पता है! यादों से निकलना
बहुत मुश्किल लगता है।
पता नहीं हम यादों में क्यों जीना चाहते हैं।
शेशवास्था में सपनों की दुनिया,
किशोरावस्था में बचपने की दुनिया
जवानी में किशोरावस्था की बातें,
बुढ़ापे में जवानी को याद करते हैं।
जब अवसान का समय आता है
तब सब भूल जाना चाहते हैं।
नया कुछ याद करने के लिए।
पा लेना चाहते हैं शून्यता,
एक ठहराव पाने के लिए।
एक अनंत सफर में लीन होने के पहले
कभी न मिला संवेदना जीना चाहते हैं।
जो मन के मरुस्थल की मृगतृष्णा ही सही
जिसके लिए दौड़ता रहा मन जीवन भर
उस तृष्णा को पा लेना चाहते हैं।
बचा लेना चाहते हैं उस अंतिम क्षण को
मन के अनंत आकाश में समेट लेते हैं।
***************************
कोई मन में हलचल मचाने लगा है।
निराकार रूपों में जो था अब तक,
साकार बन कर लुभाने लगा है।
कोई नगमा मेरी राहों में न था,
कोई फूल अपनी निगाहों में न था।
कोई आरजू न थी अपनी जहां में,
कभी मैं खड़ी थी अकेली जहां में।
कोई बन के रिश्ता बुलाने लगा है,
मुझे कोई आकर जगाने लगा है।
जीवन का अकेला सफर चाहती थी,
गमों के धरा पर बसर चाहती थी।
हर पल रहे एक बचैनी का आलम,
कयामत का ऐसा असर चाहती थी।
पर,तरन्नम छलकने लगे हैं कि, जैसे,
नया कोई अरमां मचलने लगा है।
ख्वाबों में तस्वीर जब से है उसकी,
ख्यालों का आलम बदलने लगा है।
*****************
मेरी पायल की रुनझुन
जो तुम्हें कर्णप्रिय थी
और मुझे भी
पर तुम! तुम रहे नहीं
और मुझे अब भाती नहीं है।
मैंने छोड़ दिया पायल पहनना।
मेरे माथे कि बिंदिया
जो तुम्हें अच्छी लगती थी
मेरे माथे में नहीं दिखने पर
मेरी आलमारी से निकाल कर
मेरे माथे पर सजा देते थे।
अब मुझे याद नहीं रहता
बिंदिया लगाना।
मेरे महावर तुम्हारे साथ चले गए।
मेरी जिंदगी के रंग
फिके हैं तुम्हारे बिना।
मुझे याद नहीं रहता
कब सुबह और कब शाम होता है।
ऐसे ही एक दिन मेरे
जीवन की शाम हो जाएगी,
तुम्हारी यादों के सहारे।
तुम्हारा खालीपन कोई न भर पाया।
सुनो इस बार पूर्ण संपूर्णता के साथ मिलना
कि मैं अधूरी न रहूं।
अब जीवन में आना तो फिर
वापस नहीं जाने के लिए आना।
और एक बात कहनी है तुमसे
मेरी यादों में न आया करो
बहुत तकलीफ़ होती है।
अब मुझमें सिमट जाने दो मुझे।
कि अंतिम सांस तक किसी की न हो पाऊं।
और गुजार दूं एकांकी जीवन तुम्हारे बिना।
फिर दुबारा मिलना तो कभी न जाना।
सिर्फ हमतुम रहेंगे,वहां
जहां धरती गगन मिलते हैं।
***********************
दर्द उतरता है गया इस आंख में,
पर नजर न आ सकी एक बूंद तक।
आंख खुली और राह में पथरा गई,
प्यासे मन ने रेत देखा दूर तक।
तब तलक चलता रहा वो राह में,
जब तलक पकड़े रही मैं दीप थी।
दीप मद्धम हो गया जब हाथ का,
तब लगा मैं दूर, उससे दूर थी।
आज दिल का दर्द भी सुना लगा,
दूर तक चलना अकेले रह में।
तन जलता ही रहा था आग सा,
चल रही थी चांदनी के छांह में।
हुक सी उठती है मन के आह में,
पर हर घड़ी एक साथ होता ही नहीं।
राह में चलना अकेला क्या भला,
रास्तों में कारवां खोता नहीं।
पलकें झुका कर दिल को न देना सजा
नजरें मिला लेना कभी जब पास हों।
कैसी रही यादें कुछ भी बता देना
मुझको लगेगा आज भी तुम साथ हो।
ये कभी भी भूल कर न सोचना,
दर से तेरे शून्यता में आ गई।
काव्य का सागर मिला है आह में,
आंख में इसकी खुशी लहरा गई।
****************
चैती फसिल गदराईल,
फगुनवां गऊवां में आइल।
मनवा में गुलर फूलाइल,
फगुनवां गऊवां में आइल।
आइल बाड़ी हंस प वीणा भवानी।
देवी इ ज्ञान के हई बड़ा दानी।
लाल पीयर अबीर उड़ाइल,
फगुनवां गऊवां में आइल।
गेंदा आ चम्पा चमेली फूलाइल,
रंग विरंग के फूल फूलाइल,
तितली आ भौंरा बा ओ प मताइल,
नेहिया में मनवा बंधाइल,
फगुनवां गऊवां में आइल।
सरसों फुलाइल आ गहूं बोझाइल,
मीठ मीठ गंध लगे आम मोजराइल,
निमीया प झुलुवा टंगाइल,
फगुनवां गऊवां में आइल।
कुहू कुहू कोयल पीपहरा के बोली
अंगना में आवे बहुरिया के डोली
बिटिया के सुदिन धराइल
फगुनवां गऊवां में आइल।
होली में उड़ी अब रंग गुलाल हो
भांग के गोला आ पुआ के थाल हो।
दुवरा जोगिरा गवाइल,
फगुनवां गऊवां में आइल।
*********************
वो खत जो तुमने दिया नहीं
वो खत जो मैने पढ़ा नहीं
क्या अब भी लिख कर रखे हो?
जिसमें प्यार का भाव छिपा था।
अंतर्मन का घाव छिपा था
जिसमें भाव हिलोरे होंगे।
जिसमें शब्दअब्द उभरे होंगे।
क्या अब भी लिख कर रखे हो?
जाने कितने पन्ने फाड़े होंगे
कितनी बार नाम लिखा होगा।
दिनभर कैसे रहते होंगे
और कैसा शाम लिखा होगा।
क्या अब भी लिख कर रखे हो?
प्यार से मोड़ा होगा तुमने
जब अंतिम रूप दिया होगा
आंखे चमक गई होगी,
और खत को चूम लिया होगा।
क्या अब भी लिख कर रखे हो?
जब देने की बारी आई होगी
दिल जोड़ से धड़का होगा।
शायद मुझको बुरा लगेगा
सोच के मन तड़पा होगा।
छुपा लिया होगा तुमने ,
उस खत को अपनी अलमारी में।
क्या अब भी लिखकर रखे हो?
**************
मैं चली जा रही थी।
चली जा रही थी...
अपने धुन में,
अचानक तुम्हारी याद आई।
मैं रुकी,
पीछे मुड़ी,
मैं पीछे आई।
पर सन्नाटा के सिवा कुछ न मिला।
तुम्हारी यादें भी नहीं।
देखो न!मैं कितनी स्वार्थी हूँ।
मैंने तुम्हारे बारे में कुछ पूछा ही नहीं।
न ही तुम्हें जानने की कोशिश की।
बस अपने धुन में चलती रही,
चलती रही......
लेकिन जब तुम्हारी आहट आनी बंद हुई,
तब लगा कुछ खो गया मेरा,
मैं रुकी,
पीछे मुड़ी।
पर कुछ नहीं था!
कुछ भी नहीं!
वो एहसासों की ऊँचाईयाँ,
वो प्रेम की गहराईयाँ,
जिसमें मन की भावनाएं हिलकोरे ले।
बचा था सिर्फ अट्टहास करता शून्यता।
मैं रुकी,
पीछे मुड़ी।
मेरे रुकने और पीछे मुड़ने के दरमियान,
न जाने कितने एहसास रुके,
न जाने कितने आस रुके,
ये उम्मीद रुकी कि फिर से तुम आओगे।
आओगे न!
ये सुनो! इतने वादे जो किये हो निभा पाओगे न!
*******************
सिमरेट की बुझती राख से,
निकाला आग को,
अँगुलियों ने सहलाया,
सुलगाया सांस की ताजगी से,
जलाया मशाल की लौ,
जिससे जिन्दगी रौशन हो।
मशाल की लौ
लगी आकाश छूती सी,
सहेजा था जिसे जतन से,
दिखी वह झूमती सी।
लगा कुछ फासला ,
अब और नहीं !
जिन्दगी का ठौर बस यही..।
जिन्दगी की नीन्द से,
शायद उठाया था कोई झकझोर के,
आंख खुली तो बौखला सी मैं गयी,
सामने पङा राख का एक ढेर था,
और दिल के विरान में था
धुआं-धुआं..।
कराहती हर सांस थी,
जिन्दगी के आस में।
टूट कर बिखरा हुआ,
तारा पङा था पास में ।
मगर मन का कोना
मशक्कतो का लालसा सुलगाता
नयी रौशनी की तलाश में.....
*****************
हाथ में आइल कटोरा,
और सड़क पर खाट बा।
लोग कहेलें ह भिखारी,
हम कहिला ठाठ बा।
राम-रहीम के नाम के बे च,
भले ही झूठा बात बा,
राम रहीम त मुफ्त मिलेलन,
भरत कैश से हाथ बा।
थथम-थथम के बाट चलेला,
सबके खुल ल पाट बा।
पैसा होखे भा ना होखॆ,
मा न अपने हाट बा।
बेमेहनत के रोटी आवे,
चैन से गुजरत रात बा।
भिखमंगन से कॉन्टैक्ट होखे,
मोबाइल पर बात बा।
MA,BA degree ध र,
देश में नोकरी short बा।
पद आ पदवी ओकरे मिली
जेकरा जेब में नोट बा।
सोच के दे ख शर्म न लागी,
समझ-समझ के बात बा।
ई दुनिया में क ह केकर,
नइखे उठल हाथ बा।
नईखे कोई ग़म के आंशु,
न बर्बादी फांस बा।
मान के बात भिखारी हो ल,
फिर दे ख का खास बा।
******************
राजनीति में आके फंसनी,
नेतन कुल के मेला में।
ऎ में कतना गड़बड़ झाला,
पड़नी गजब झमेला में।
कहे खातिर सेवक ह ई,
ई सेवक त बोझा बा।
भीखमंगन अस मांगे वोट,
पांच बरीस में सोझा बा।
पांच बरीस तक मुंह चोराई,
खूबे करत घोटाला बा।
मुंह से निकले मिश्री बोली,
हाथ पकड़ले भाला बा।
वक्त से पहले आवे सोझा,
समझे काम से ज्यादा बा।
बहुत बड़ा नेतन कुल के,
बड़का-बड़का वादा बा।
सामाजिक दीवार बनावे,
कहे खातिर प्रजातंत्र बा।
जाति धर्म के लड़वावे ला,
तानाशाही मूल मंत्र बा।
आरक्षित के पदवी ऊंचा ,
भले ही मूर्ख चपाठ बा।
अनारक्षित लेके डिग्री,
चलल जा रहल बाट बा।
हमका समझीं, का समझाईं,
समझ-समझ के बात बा।
आरक्षण दे लड़वावे के
क ह केकर हाथ बा।
**************
क्रिकेट में का बा..?
क्रिकेट में का बा!
बॉलिंग बा, बैटिंग बा,
हर बॉल प सेटिंग बा।
तबो बढ़त रेटिंग बा।
का बा!
क्रिकेट में का बा!
क्रिकेट क्रिकेट हल्ला बा।
सड़क,खेत, मुहल्ला बा।
कुल बच्चन के हाथ में,
विकेट, बॉल आ बल्ला बा।
का बा!
क्रिकेट में का बा!
मियां बीबी झगड़ा बा।
टीवी सेट के लफड़ा बा।
सीरियल मैच ला झगड़ा बा
का बा!
क्रिकेट में का बा!
बूढ़ा चाहे बच्चा बा।
रात दिन मैच देखत बा।
काम धाम सब छोड़ छाड़ के,
टीवी सेट में ढूकत बा।
का बा!
क्रिकेट में का बा!
हमरा नाहीं भावेला।
सभकर मन ललचावेला।
बॉल फे क, बैट से मा र।
दूसर कुछ ना बुझावेला।
का बा!
क्रिकेट में और का बा?
***********
चलो चलते हैं।
चलो चलते हैं,
दूर क्षितिज तक,
कि उस ओर,
शाम से पहले,
पहुंच जाना है,
अपने घोसलों में,
एक परिंदे की तरह।
अंतिम छोर पर,
सुकून की तलाश में,
एक शांत, स्थिर,
जिंदगी पाने के लिए,
संघर्ष करते हैं।
चलो चलते हैं।
दुनिया की भीड़ में,
भीड़ से अलग,
परेशानियों से भरी,
दौड़ती भागती जिंदगी,
अट्टहास करते सूनेपन में
अपनी खोई मासूमियत
तलाश करते हैं।
चलो चलते हैं।
खोते बचपने के साथ,
अपनी रोजी रोटी के लिए,
घर से अलग थलग,
अपने आशियाने में,
चिड़ियों, चुनमुन, के साथ,
गुजरे पल को,
नया आकाश देते हैं।
चलो चलते हैं।
अब समेटना है,
अपनी सारी भावनाएं,
सारी जरूरतें,
छोटी बड़ी इच्छाएं,
भूली बिसरी यादें,
संबंधों की मालाएं,
एहसासों में पिरोते हैं।
चलो चलते हैं।
सुखद एहसासों को ले
नए भोर की ओर
स्वागत करते हैं,
नई उम्मीदों की रोशनी का।
एक बार फिर से,
अपनी उड़ान भरते हैं।
चलो चलते हैं।
********************
चारदीवारी और एक छत है,
हर मकां भी तो घर नहीं होता!
आभाव जहां है मोहब्बत का,
दुरत्व हृदय में ठहरा है।
मानों! वह एक खंडहर है,
वहां भूतकाल का पहरा है।।
हर बात छुपाना अपनों से,
गैरों को अपना बना लिया।
हर रोज महाभारत रचते,
अपनों को नीचा दिखा दिया।।
मानव तन पाषाण हृदय है,
उसमें नागफणी का डेरा है।।
मियां बीबी ऑफिस ऑफिस,
बच्चे पलते हैं दाई से।
मां पिता वृद्धा आश्रम में,
भाई बन्धु लगते कसाई से।।
हर रोज सुबह होती है फिर भी,
घन तिमिर का डेरा है।।
खून हुआ हो हर रिश्ते का,
क्या ऐसा ही घर होता है?
हर रोज फजर के आते ही,
तन्हाई का डर होता है।।
चाह फकत सब साथ रहें,
पर यह कैसा अंधेरा है।।
चारदीवारी और एक छत से,
शायद ढका सब सर होता है।
पर बेकार की सोच है अपनी,
हर मकान एक घर होता है।।
********************
इस दुनिया की अभिसंधि में
दिल का जलना क्या जानों..।
ख़ामोश भरी तन्हाई में
दिल को छलना क्या जानों..।।
कुछ बात थी मीठे सपनों में,
अरमान भरा ये दिल भी था..।
संगीत भरे थे नगमों में
और सजा हुआ महफिल भी था..।।
तूफानों के एक मंजर से
गुल का बिखरना क्या जानो..।।
और दिल के अरमानों का
दिल से निकलना क्या जानो..।।
सूने दिल अंगनाई में
तस्वीर किसी की अपनाना।
दूर करें तो ईर्ष्या हो,
और आंख खुले तो पछताना
ख्वाब टूटते सागर में
खो जाना तुम क्या जानो
टूटे साहिल के दामन में
गोते लगाना क्या जानो।
यहां हसरतों के पर्वत पर
आग लगाना पड़ता है
मुस्कानों के चिलमन में
एक दर्द छुपाना पड़ता है
मुस्कानों के चिलमन में
छुप जाना क्या जानो..।
और दिल के अरमानों का
राख सजाना क्या जानो..।।
चलो शब्दों के जाल बुनते हैं..!
चलो शब्दों के जाल बुनते हैं।
मन की गहराइयों से ,
जिंदगी को सुनते हैं।
चलो शब्दों के जाल बुनते हैं।
तोड़ देते हैं बंधनों को,
मड़ोड़ के जज्बातों को,
पा लेंगे कभी तो मंजिल,
बहते जल से बह के,
छू लेंगे सूखे तट को,
भावनाओं के सागर से,
शब्दों के मोती चुनते हैं।
चलो शब्दों के जाल बुनते हैं।
एहसासों की गहराइयों में,
जिंदगी की लड़ाइयों में,
कोई पास आते हैं,
कोई दूर जाते हैं,
कुछ यादें रहती है,
कुछ भावनाएं रहते हैं।
कुछ अपने होते हैं,
कुछ सपने होते हैं।
सबको इकट्ठा करते हैं,
............... चुनते हैं।
चलो शब्दों के जाल बुनते हैं।
*********************
भंगीमा युक्त निःशब्द भाव थे
मुखमंडल लहराया था ।।
शोणित मस्तक अरूणाया सी
चिर प्रतिक्षित नजरें थी।
स्मृति का आलोक हृदय में
अजस प्रेम की डगरी थी।।
प्रतिदानित थे भाव हृदय के
सोच न थी क्या पाया था।
परस्त हुई जब प्रेम की डगरी
घन तिमिर घिर आया था।।
जग वालों की लघु चेता से,
खण्डित मन का धैर्य हुआ।
पाप पंक से सने हृदय में,
मल कुष्ठा भर आया था।।
मेरे मन की व्याकुलता से
मेरा भी प्रतिकार हुआ।
तन्मयता में सोच भी अपनी
खंडहर का आकार हुआ।।
निःशब्द कोकिला के तानों को
कुष्ठित मन वाले क्या जाने।
प्रेमासक्ति निहित हृदय का
विनिमय करना क्या जाने।।
वह दूर हमें क्या कर लेंगे
रह दूर पास ही रहते हैं।
न सोचो काया ही संधि
मिलन मन संधि कहते हैं।।
हम और हमारा देश 72वां गणतंत्र दिवस मना रहा है।
भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था तथा 26 जनवरी 1950 को इसके संविधान को आत्मसात किया गया, जिसके अनुसार भारत देश एक लोकतांत्रिक, संप्रभु तथा गणतंत्र देश घोषित किया गया।
26 जनवरी 1950 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण कर भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया। यह ऐतिहासिक क्षणों में गिना जाने वाला समय था। इसके बाद से हर वर्ष इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है तथा इस दिन देशभर में राष्ट्रीय अवकाश रहता है। इसे गणतंत्र, जनतंत्र या प्रजातंत्र भी कहा जाता है।जिसका मतलब क्रमशः लोगों द्वारा,जनता के द्वारा या प्रजा का शासन होता है।
सभी को गणतंत्र दिवस कि हार्दिक शुभकामनाएं।
भारत माता की जय।
वंदेमातरम्।
जय हिन्द।
*********************
10 जनवरी
अभिसंधि की है यह दुनियां चलो बसा लें गांव कहीं।
ये जीवन है अभिभूत सा मिल जाए एक छांव कहीं।
जहां रात्रि का जीवन अमानिशा से दूर रहे।
जहां पूर्णिमा की सूर्खाई खिला यशस्वी फूल सा।
बादल के जल कण बन बरसो मन के रेगिस्तान में।
उदित हो उठे स्वर श्रृंखला मेरे गीतों की तान में।
अमूर्ति प्रेम संजीवनी रस में डूबी हुई कविता दे दो।
जिसको मन के कण-कण में भर उडूं गगन में मूल सा।
अभिसंधि की है यह दुनियां चलो बसा लें गांव कहीं।
ये जीवन है अभिभूत सा मिल जाए एक छांव कहीं।
जहां रात्रि का जीवन अमानिशा से दूर रहे।
जहां पूर्णिमा की सूर्खाई खिला यशस्वी फूल सा।
बादल के जल कण बन बरसो मन के रेगिस्तान में।
उदित हो उठे स्वर श्रृंखला मेरे गीतों की तान में।
अमूर्ति प्रेम संजीवनी रस में डूबी हुई कविता दे दो।
जिसको मन के कण-कण में भर उडूं गगन में मूल सा।
आज विश्व हिंदी दिवस पर मेरी हिंदी कविता की चार लाइनें।
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