ग़ज़ल..!
कब से होंठों पे जो इज़हार बने बैठे हो
रोज़ मिलते ही नहीं हो मुझे यूं आ आकर
सात दिन तो हैं क्यूं इतवार बने बैठे हो
ज़िन्दगी बीच भंवर में भी है तो डर कैसा
तुम जो बाज़ू में ही पतवार बने बैठे हो
सर उठाने की भला कौन करेगा ज़ुर्रत
हाथ थामें सिपहसालार बने बैठे हो
अब ज़माने से छुपा कर मैं रखूंगा कैसे
हर ग़ज़ल में ही तो अश्आर बने बैठे हो
रांझणा बनना पड़ेगा, कि बनूं मैं मिर्ज़ा
साहिबा-हीर के अवतार बने बैठे हो
किसकी हिम्मत है तुम्हें रोक ले मनमानी से
ज़िन्दगी मेरी है मुख़्तार बने बैठे हो।
मिले ख़्वाब से जो डगर रख के चल
न रस्ता है आसां न मंज़िल है नज़दीक
नज़र में सफ़र के ख़तर रख के चल
पता नई ज़रूरत कहां आ पड़े
ये दुनिया है कोई हुनर रख के चल
कहीं तो नसीहत भी काम आएंगी
उन्हें दिल में रख ले मगर रख के चल
है ख़्वाहिश अगर सब सुनें ग़ौर से
तो बातों में थोड़ा असर रख के चल
कभी लौटना हो तो दिल भी मिलें
कोई वापसी की कसर रख के चल
बनाना है सबको जो अपना मुरीद
ज़ुबां शीरीं लहजा शकर रख के चल
मसीहा ख़ुद ही का ख़ुद ही अब बनो
ज़रा 'नूर' अब तो जिगर रख के चल।।
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ग़ज़ल..!
सब तमाशा हो गया था
बन गया था वो खिलाड़ी
दिल खिलौना हो गया था
कर दिए फिर टुकड़े-टुकड़े
शौक़ पूरा हो गया था
इश्क़ का सैलाब था और
ग़र्क बेड़ा हो गया था
दोस्त, दुनिया, रिश्तेदारी
सबसे पर्दा हो गया था
बोल कर सॉरी गया जब
ग़ुस्सा ठंडा हो गया था
'नूर' की आंखों में कुछ था
दर्द कम सा हो गया था।।
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ग़ज़ल..!
हां में हां तेरी भरता चला जाऊंगा
तुम कहो जो वो करता चला जाऊंगा
हाशिए में ज़माने को रख्खा है अब
जानता हूं अखरता चला जाऊंगा
यादें बिखरी मिलेंगी जहां भी सनम
रास्तों में ठहरता चला जाऊंगा
सीख लूं कुछ हुनर शायरी का अगर
फिर दिलों में उतरता चला जाऊंगा
गुफ़्तगू से मिलेगा सुकूं आपको
मैं भी ग़म से उबरता चला जाऊंगा
देख लोगे अगर मुस्कुरा के मुझे
इस तरह मैं संवरता चला जाऊंगा
तुम अगर दूर होते चले जाओगे
हो के तन्हा मैं मरता चला जाऊंगा।
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किताबों की बातें रिसालों की बातें
वो लफ़्ज़ों में उलझे सवालों की बातें
छुपा के सभी से जो अब तक रखी हैं
चलो आज कर लें ख़यालों की बातें
गुज़ारे थे संग हमने आज़ाद होकर
वो दुनियां-जहां के मक़ालों की बातें
तेरा बात करना घुमा के फिरा के
महज़ इश्क़ के ही हवालों की बातें
चलो रास्तों की ख़ुशी सब से बांटें
सुने पांव के कौन छालों की बातें
सभी को किसी ना किसी का नशा है
हैं बेकार फिर होश वालों की बातें
अंधेरों से किस का भला होगा हमदम
चलो 'नूर' कर लें उजालों की बातें।।
(रिसालों- किताबों, मक़ालों- सामाजिक अनुभव)
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वो लफ़्ज़ों में उलझे सवालों की बातें
छुपा के सभी से जो अब तक रखी हैं
चलो आज कर लें ख़यालों की बातें
गुज़ारे थे संग हमने आज़ाद होकर
वो दुनियां-जहां के मक़ालों की बातें
तेरा बात करना घुमा के फिरा के
महज़ इश्क़ के ही हवालों की बातें
चलो रास्तों की ख़ुशी सब से बांटें
सुने पांव के कौन छालों की बातें
सभी को किसी ना किसी का नशा है
हैं बेकार फिर होश वालों की बातें
अंधेरों से किस का भला होगा हमदम
चलो 'नूर' कर लें उजालों की बातें।।
(रिसालों- किताबों, मक़ालों- सामाजिक अनुभव)
हक़ीक़त से रखे जो आशना दिल
कहाँ मिलता है अब वो आइना दिल
समझता था जिसे पत्थर ज़माना
जो छू के देखता तो मोम था दिल
न की ख़्वाहिश कभी भी जानने की
अगरचे पूछते तो बोलता दिल
कोई हमराज़ मिल जाता अगर जो
छिपे सब राज़ अपने खोलता दिल
सुनो उम्मीद ना रख्खो कोई अब
किसी को दे सके क्या खोखला दिल
न तोड़ो इस तरह की जुड़ सके ना
नहीं है पास मेरे दूसरा दिल
यही उम्मीद सबकी आख़िरी है
ख़ुदाया रख सलामत 'नूर' का दिल
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-: ग़ज़ल :-
सही हमारे उसूल हों सब
दुआ करें जो क़बूल हों सब
सही जगह हो हमारी मेहनत
कि कोशिशें भी वसूल हों सब
क़दम जहाँ में जहाँ भी रख दें
क़दम के नीचे भी फूल हों सब
सफ़र हो मंज़िल के रास्तों का
तो दूर रस्तों के शूल हों सब
बहुत सी आफ़त गले पड़ी हैं
ये दूर मुश्किल रसूल हों सब
लो मांगते हैं सभी से माफ़ी
जो ग़ल्तियां हों जो भूल हों सब
ये 'नूर' करता दुआ ख़ुदा ये
रहे ख़ुशी, ना मलूल हों सब..!!
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~: ग़ज़ल :~
सबको अपनी अमान में रखना
बा-हिफ़ाज़त मकान में रखना
इक मुसीबत बड़ी ये आई है
नज़्रे-अकरम जहान में रखना
सब दुआएं क़बूल हो जाएं
इतनी कुव्वत ज़बान में रखना
मुफ़लिसी अब न भूख से तड़पे
रिज़्क के इत्मिनान में रखना
पास आकर न दूर हो जाएं
फ़ासला दरमियान में रखना
लाख हम हैं गुनाहगारों में
रहमतें साएबान में रखना
'नूर' ये कर रहा दुआ मौला!
हम फ़क़ीरों को ध्यान में रखना
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