11 अगस्त 2020

रचनाकार :- अंकुर सिंह..!

दहेज प्रथा और संयुक्त परिवार..!
दहेज है एक दानव रूपी शब्द, 
हो जाते है सब इस पर निशब्द
दहेज में तो तनया है रोती 
सब करो इसे, 
अभी के अभी बन्द।।
दहेज के बदले शिक्षित कन्या लो, 
ताकि घर में बोले वो, 
संस्कारो के दो बोल।
वधु पर तुम मत करो अत्याचार
क्यूंकि, दिया किसी ने तुम्हे रत्न अनमोल।।
आज बहू बन जो दहेज के लिए उत्पीड़ित होती,
कभी वो अपने मैया के सीने लगकर थी सोती।
दहेज के लिए तुम कर, 
उस पर बेचारी पर अत्याचार,
अनजाने में अपने जन्मों की 
करते तुम लीपापोती ।।
पापा के घर की वो लाड़ली,
आंगन में चहकते कूदते थी वो रहती ।
आज वही बहू बन दहेज के नाम पर,
घुघंट में चेहरे ढककर है वो रोती।।
बन्द करो तुम, अब बन्द करो,
बेटों की सौदादारी, तुम बन्द करो।
दहेज में तो है तनुजा है जलती,
इसलिए ये कलाकारी, 
तुम अब बन्द करो।।
कन्या तुम भी अब, 
बहू से बेटी भी बन जाओ,
पति के सिवा तुम , 
सास ससुर को भी अपनाओ।
ननद को ननद नहीं, 
बहन के रूप मे तुम पहचानो,
देवर को देवर रूप नहीं, 
भाई रूप में  मानो।
नारी तुम भी दिलसे,
ससुराल मायका भेद मिटाओ।
अपने कर्तव्यों रूपी गुणों से तुम
संयुक्त परिवार में तुम छा जाओ।।


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शिक्षा..!
मैं तो बहुत उच्च शिक्षित नहीं हूँ (ये नहीं कहूंगा की कम उम्र में जिम्मेदारी लेना पड़ा , क्यूंकि ये सब बहानेबाजी हैं , कभी मन में कोई डर था तो  तो कभी कभी कुछ और खैर छोड़िये उन सब को .......)  लेकिन उच्च शिक्षा के महत्त्व को समझाता हूं, मेरे विचार से ज्ञान (शिक्षा) वो निवेश किया गया पूंजी हैं जो जो जिन्दगी भर आपके साथ रहेगा (बशर्ते वो शिक्षा कागज के पन्नो तक ही नहीं बल्कि ईमानदारी से मानवीय मूल्यों के साथ पूर्ण किया गया हो)। कभी कभी लोग पूछते हैं ... अपने से ज्यादे education क्यों मांगते हो ( किस मामले पर उसका जिक्र यहाँ नहीं करूंगा ) तो जन्म से आज तक के एक छोटे से सफर में मुझे समाज के कई वर्गो (चाहे वो राजनितिक हो, शिक्षित हो, व्यावसायिक हो, सामाजिक हो या कोई और वर्ग )के साथ समय बिताने का मौका मिला मैं अपने छोटे से अनुभव से ये कह सकता हूं की जंहा पर सुविचार के साथ अच्छी शिक्षित लोगो का वातावरण हो वो परिवेश का भविष्य काफी उज्जवल होता हैं । मेरा खुद का ये मानना हैं की इंसान की मूल जरुरत रोटी, कपडा और मकान के साथ शिक्षा को भी मूल जरूरतों में जोड़ देना चाहिए क्योंकि शिक्षा रूपी धन सदा आपके साथ रहता हैं। एक राजा ( आज के तारीख  में राजनैतिक पद प्राप्त, या काफी धन्यवान व्यक्ति या उद्योगपति को राजा बोल सकते हैं) बस अपने राज्य/देश या उद्योग के सीमा में ही पूजा जाता हैं पर एक शिक्षित विद्वान् व्यक्ति की पूजा तो हर जगह होती हैं। जैसा की मुझे मेरे  छोटे class में संस्कृत में एक श्लोक में पठाया जाता था मुझे ""स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ॥"" लेकिन वो शिक्षित व्यक्ति में शिक्षा के साथ सरलता होनी चाहिए( मेरा खुद का मानना हैं यदि उसका  परिवार संस्कारित होगा और उसने किताबी शिक्षा के साथ साथ मानवीय शिक्षा को भी समझा होगा तो उस इंसान में सरलता  जरूर होगी) तो बस इतना ही कुछ लोगो से कहना था की बार बार एक सवाल का जवाब कैसे दूं की खुद से ज्यादे शिक्षा क्यों बस इतना ही कह सकता हूं अपने छोटे से जीवन के अनुभव के आधार पर की मानवीय मूल्यों और उच्च शिक्षा ही ऐसी चीज़ हैं जो हालत  जैसे भी रहे आपके साथ हमेशा रहेंगे और आपकी मदद करते रहेंगे । और हां कोई जरुरी नहीं की किताबी ज्ञान ही सब कुछ हैं , जिंदगी हैं जो हुआ सो हुआ जिनदगी के हर पल से हर क्षण से सिखाते और सिखाते रहिये।

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झरना..!

नदियों का बाल्य रूप है झरना,
है पथ पर इसको निरंतर चलना।।
स्वच्छ निर्मल मृदुल जल लिए, 
झर-झर करके है आगे बढ़ना।।
पहाड़ों से ये टकराती है, 
अपना मार्ग खुद ही बनती है।
 जीवन के हर पल, हर क्षण में, 
संघर्ष हमको सिखलाती है।।
ऊँचें पर्वतों से इसका गिराना, 
गिरकर झर-झर करके चलना।
सच में जीवन मार्ग हेतु, 
बहुत कुछ बतलाती ये झरना।।
प्यासा चाहे इसके स्वच्छ जल से, 
अपनी प्यास बुझाना।
प्रेमी चाहे झरने में, 
प्रेमिका को अपनी बाहो में भरना ।।    
नव-युगलों में प्रेम जगाती झरना, 
कविता में सौंदर्य भरती झरना।
जीवन नीति सिखाकर हमको, 
खुद नदियों में समा जाती झरना।।

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