19 जून 2020

रचना :- पंकज मंडल..!

कहते हैं ज़िन्दगी का दूसरा नाम इम्तिहान हैं
पर क्यूँ..?? 
हर इम्तिहान में कोई न कोई क़ुर्बान हैं..!
अक्सर, 
टूटे सपनों से बिखर जाया करते है वो लोग…
जो भी यहां जीवन के सच से रहते अनजान है
अब सपने संजोने वाली उन आखों का क्या कसूर
नादान दिल की वो तो बस एक छवि, एक पहचान है
ज़िन्दगी समझते हैं कुछ लोग चंद पलों को
इश्क़ में कहाँ रहता ज़मीन पर कोई इंसान है
जब मिलती है सजा ज़िन्दगी में, किसी से दिल लगाने की,
लगे बोझ खुदा का वो तोहफा, जिसका नाम जान है
ज़िन्दगी कितना भी दे गम, हंस के जी लो यारों
मौत भी आज तक कहाँ हुयी किसी पे मेहरबान है
जीवन सुख दुःख का एक घूमता चक्र है
जो ना समझा ये, वो नादान है, वो नादान है



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हे ईश्वर आन पड़ा है कहर कोरोना..!
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो न..!!

भूल गए थे हम हस्ती तुम्हारी..!
मालिक संभाल ले अब कश्ती हमारी..!!
अपने बच्चों को अब और सीख मत दो ना..!
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो न..!!

प्रकृति की वेदना हम क्यों ना सुन पाए..??
आज अपनों की चीखे हमें यह बताएं..!!
बहुत बड़ा ऋण प्रकृति का है चुकाना..!
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो न..!

रूह कांप जाती है आज ऐसी घड़ी है..!
फिर भी तेरी रहमत की आशा सबसे बड़ी है..!!
ऐ विधाता विधि का यह लेख बदल दो ना..!
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो न..!!

मोल क्या है अपनों का आज तूने सिखाया..!
घर बंद कर दिल के दरवाजों को खुलवाया..!!
मकसद तेरा था हम सोते हुए को जगाना..!
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो न..!!

आज हिंदू-मुस्लिम-सिख हो या इसाई..!
सबकी आंखें करुणा से हैं भर आई..!!
कितना मुश्किल है अपनों से दूर जाना..!
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो न..!

नतमस्तक हम देश के उन रखवालों के..!
खुद को भूल जो लगे हैं लड़ने महामारी से..!!
इनके नाम जले दियो को मत बुझाना..!
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो न..!!

गाते पंछी, निर्मल नदिया, वायु बिन जहर..!
बरसों के बाद आज देखी ऐसी शहर..!!
साफ खुला आसमाँ कहे अब तो समझो ना..!
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो न..!!

मानते हम हुई भूल हमसे बड़ी है..!
माफ बच्चों को करना जिम्मेदारी तेरी है..!!
हाथ जोड़े इन बेबस बच्चों को क्षमा दो ना..!
विनती मेरे मालिक तुम मेंहर करो न..!

हे ईश्वर आन पड़ा है कहर कोरोना..!
विनती मेरे मालिक तुम मेहर करो न..!

1 टिप्पणी:

  1. कहते हैं ज़िन्दगी का दूसरा नाम इम्तिहान हैं
    पर क्यूँ, हर इम्तिहान में कोई न कोई क़ुर्बान हैं

    अक्सर टूटे सपनो से बिखर जाया करते है वो लोग…
    जो भी यहां जीवन के सच से रहते अनजान है

    अब सपने संजोने वाली उन आखों का क्या कसूर
    नादान दिल की वो तो बस एक छवि, एक पहचान है

    ज़िन्दगी समझते हैं कुछ लोग चंद पलों को
    इश्क़ में कहाँ रहता ज़मीन पर कोई इंसान है

    जब मिलती है सजा ज़िन्दगी में, किसी से दिल लगाने की,
    लगे बोझ खुदा का वो तोहफा, जिसका नाम जान है

    ज़िन्दगी कितना भी दे गम, हंस के जी लो यारों
    मौत भी आज तक कहाँ हुयी किसी पे मेहरबान है

    जीवन सुख दुःख का एक घूमता चक्र है
    जो ना समझा ये, वो नादान है, वो नादान है

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