वर्तमान परिप्रेक्ष्य को मध्य नजर रखते हुए सामाजिक दृष्टिकोण से यदि अन्याय के खिलाफ व सत्याग्रह के यथार्थ विचारधारा की बात की जाए तो हमारे अंदर काफी विरोधाभास पैदा होता है । एक ओर तो हम गांधीवादी दर्शन और गांधी के विचार धाराओं को मानकर उन्हें अपने जीवन में अनुकरण करने के लिए ढोल पीटते हैं, तो वहीं दूसरी ओर समाज में हो रहे अन्याय, अपराध व व्यभिचार जैसी समस्याओं पर गांधी के दर्शन के साथ समझौता करने की कोशिश करते हैं।
यदि हम किसी भी सामाजिक समस्या, अपराध या शोषण के खिलाफ मुखर होकर आवाज बुलंद करते हैं तो हम अपराधियों के लिए भी वैसी ही दंड की अपेक्षा रखते हैं, जैसे घृणित अपराध उसने किए और मानवता के खिलाफ उसने जो कुकृत्कय अपनाया। एक ओर आक्रोशित हृदय अपराधियों को सामाजिक दंड देने की बात करता है, तो वहीं दूसरी ओर जब गांधी के दर्शन की बात आती है तो हम सत्याग्रह अहिंसा की नीति अपनाने की बात करते हुए अपनी यथार्थ मानसिक विचार से ही समझौता करते हैं।
यह उदाहरण तो हम सभी जानते ही होंगे कि" यदि कोई आपके एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरी गाल बढ़ा देना चाहिए" दरअसल सत्याग्रही की जो छवि हमारे मन पर उभरती है वह इस प्रकार है "सत्याग्रही सत्य की निष्ठा पर चलता है और उसी सत्य की निष्ठा पर चलते हुए वह अन्याय के हृदय को झकझोर देता है।तब तक वह अपने सत्य पर अटल रहता अन्याय, अत्याचारों को सहन करता रहता है , जब तक कि खुद अन्याययी की अंतरात्मा उसे ना धिक्कार दें। वहीं दूसरी ओर हम इस विचार को भी सुनते हैं कि जो जैसा है उसके साथ वैसा ही व्यवहार होना चाहिए।
अब इस विचारधारात्मक अंतर्द्वंद और ऊहापोह की मन: स्थिति को व्यक्ति सहन किस प्रकार कर सकता है? इस स्थिति में पड़े व्यक्ति यदि बाहुबल से कमजोर हो परंतु सहनशक्ति से बलिष्ठ हो, तो वह गांधीवादी नीति को अपनाते हैं । वहीं दूसरी ओर यदि व्यक्ति बाहुबल से मजबूत हो परंतु वह सहन शक्ति से बलिष्ठ ना हो तो वह व्यक्ति जैसे को तैसा यानी ब्रह्मास्त्र निकालकर एक ही बार में मसला हल करने पर उतारू हो जाते हैं। फिर भी इस विषय में विभिन्न लोगों की अपनी अपनी निजी राय हैं।
दरअसल अन्यायी और अन्याय के प्रति प्रतिकार का प्रश्न सनातन है। अपनी सभ्यता के विकासक्रम में मनुष्य ने प्रतिकार के लिए प्रमुखत: चार पद्धतियों का अवलंबन किया है-
पहली पद्धति है बुराई के बदले अधिक बुराई। इस पद्धति से दंडनीति का जन्म हुआ जब इससे समाज और राष्ट्र की समस्याओं के निराकरण का प्रयास हुआ तो युद्ध की संस्था का विकास हुआ।
दूसरी पद्धति है, बुराई के बदले समान बुराई अर्थात् अपराध का उचित दंड दिया जाए, अधि नहीं। यह अमर्यादित प्रतिकार को सीमित करने का प्रयास है।
तीसरी पद्धति है, बुराई के बदले भलाई। यह बुद्ध, ईसा, गांधी आदि संतों का मार्ग है। इसमें हिंसा के बदले अहिंसा का तत्व अंतर्निहित है।
चौथी पद्धति है बुराई की उपेक्षा।
गांधी विचार धाराओं के अनुसार सत्याग्रह' का मूल अर्थ है सत्य के प्रति आग्रह (सत्य का आग्रह) सत्य को पकड़े रहना और इसके साथ अहिंषा को मानना । अन्याय का सर्वथा विरोध(अन्याय के प्रति विरोध इसका मुख्या वजह था ) करते हुए अन्यायी के प्रति वैरभाव न रखना, सत्याग्रह का मूल लक्षण है। हमें सत्य का पालन करते हुए निर्भयतापूर्वक मृत्य का वरण करना चाहिए और मरते मरते भी जिसके विरुद्ध सत्याग्रह कर रहे हैं, उसके प्रति वैरभाव या क्रोध नहीं करना चाहिए।'
"सत्याग्रह' में अपने विरोधी के प्रति हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। वे अहिंषा वादी थे । धैर्य एवं सहानुभूति से विरोधी को उसकी गलती से मुक्त करना चाहिए, क्योंकि जो एक को सत्य प्रतीत होता है, वहीं दूसरे को गलत दिखाई दे सकता है। धैर्य का तात्पर्य कष्टसहन से है। इसलिए इस सिद्धांत का अर्थ हो गया, "विरोधी को कष्ट अथवा पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर सत्य का रक्षण।'
महात्मा गांधी ने कहा था कि सत्याग्रह में एक पद "प्रेम' अध्याहत है। सत्याग्रह मध्यमपदलोपी संधि है। सत्याग्रह यानी सत्य के लिए प्रेम द्वारा आग्रह।(सत्य + प्रेम + आग्रह = सत्याग्रह)
गांधी जी ने लार्ड इंटर के सामने सत्याग्रह की संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार की थी-"यह ऐसा आंदोलन है जो पूरी तरह सच्चाई पर कायम है और हिंसा के उपायों के एवज में चलाया जा रहा।' अहिंसा सत्याग्रह दर्शन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है, क्योंकि सत्य तक पहुँचने और उन पर टिके रहने का एकमात्र उपाय अहिंसा ही है। और गांधी जी के ही शब्दों में "अहिंसा किसी को चोट न पहुँचाने की नकारात्मक (निगेटिव) वृत्तिमात्र नहीं है, बल्कि वह सक्रिय प्रेम की विधायक वृत्ति है।'
सत्याग्रह में स्वयं कष्ट उठाने की बात है। सत्य का पालन करते हुए मृत्यु के वरण की बात है। सत्य और अहिंसा के पुजारी के शस्त्रागार में "उपवास' सबसे शक्तिशाली शस्त्र है। जिसे किसी रूप में हिंसा का आश्रय नहीं लेता है, उसके लिए उपवास अनिवार्य है। मृत्यु पर्यंत कष्ट सहन और इसलिए मृत्यु पर्यत उपवास भी, सत्याग्रही का अंतिम अस्त्र है।' परंतु अगर उपवास दूसरों को मजबूर करने के लिए आत्मपीड़न का रूप ग्रहण करे तो वह त्याज्य है : आचार्य विनोबा जिसे सौम्य, सौम्यतर, सौम्यतम सत्याग्रह कहते हैं, उस भूमिका में उपवास का स्थान अंतिम है।
"सत्याग्रह' एक प्रतिकारपद्धति ही नहीं है, एक विशिष्ट जीवनपद्धति भी है जिसके मूल में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, निर्भयता, ब्राहृचर्य, सर्वधर्म समभाव आदि एकादश व्रत हैं। जिसका व्यक्तिगत जीवन इन व्रतों के कारण शुद्ध नहीं है, वह सच्चा सत्याग्रही नहीं हो सकता। इसीलिए विनोबा इन व्रतों को "सत्याग्रह निष्ठा' कहते हैं।
"सत्याग्रह' और "नि:शस्त्र प्रतिकार' में उतना ही अंतर है, जितना उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में। नि:शस्त्र प्रतिकार की कल्पना एक निर्बल के अस्त्र के रूप में की गई है और उसमें अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए हिंसा का उपयोग वर्जित नहीं है, जबकि सत्याग्रह की कल्पना परम शूर के अस्त्र के रूप में की गई है और इसमें किसी भी रूप में हिंसा के प्रयोग के लिए स्थान नहीं है। इस प्रकार सत्याग्रह निष्क्रिय स्थिति नहीं है। वह प्रबल सक्रियता की स्थिति है। सत्याग्रह अहिंसक प्रतिकार है, परंतु वह निष्क्रिय नहीं है।
इस लेख में मैंने अपने निजी विचार व ऐतिहासिक व गांधीवादी विचारधारा के स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर इस लेख का रूपरेखा तैयार किया हूं। यदि किसी को मेरे विचारों से आपत्ति हो तो वह अपने विचार रखने के लिए स्वतंत्र है, स्वतंत्र रूप से विचारों का स्वागत करता हूं।
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दहाड़ सकती है नारियां..!
यूं खड़ी तूफानों में तू,
आंसू जब भी बहाएगी।
लोगों को तू ,
और कमजोर नज़र आएगी।
तूफानों में खड़ी,
उससे लड़ सकती है।
शेरनी की सी दहाड़ से,
हवा का रुख बदल सकती है।
फिर भी खड़ी तू कर्मवेदी पर,
क्यों सिसकती रहती है।
चल लड़ तू आज भी,
दुनिया बदल सकती है।
क्यों फंसी है तू सिर्फ,
रसोई के जंजालों में।
दिखा अपने कर्म व साहस,
दुनिया के उजालों में।
तुम में से बहुतों ने,
हैं तोड़ी अनेकों रूढ़ियां।
फिर बैठी क्यों घरों में,
गिन रहीं तू कल्पनाओं की सीढ़ियां।
आज भी तेरी पदचाप की,
गूंज रही है किलकारियां।
तुम में से हीं अनेकों ने,
लिख डाली अपनी जिंदगानियां।
चल आ तू भी ले,
उन्हीं से प्रेरणा।
छोड़ अब अपनी तू,
कल्पना रूपी मृगतृष्णा।
दुर्गा ,काली बन,
असुरों का संहार कर सकती है।
बन संतोष, बछेंद्री तू,
एवरेस्ट पर फतह कर सकती है।
कल्पना, सुनीता बन,
अंतरिक्ष की उड़ान भर सकती है।
टेरेसा की लिए प्रेरणा,
मानवता की सेवा कर सकती है।
अपनी संघर्ष और लगन से,
पुरुष प्रधान की मानसिकता बदल सकती है।
चल लड़ हित के लिए अपने,
तू भी दुनिया को बदल सकती है।
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नारी क्या है ?
मैंने पूछा लोगों से नारी क्या है ?
किसी ने कहा माँ है,
किसी ने कहा बहन..
किसी ने कहा हम सफर है,
तो किसी ने कहा दोस्त
सबने तुझे अलग रूपों में बयां कर दिया
अब मैं क्या तेरे बारे में कहूँ
तू ममता की मूरत है,
तू सच की सूरत है
तू रौशनी की मशाल है,
जो अंधकार से ले जाती है परे
तू गंगा की बहती धारा का वो वेग है,
जो पवित्र और निश्छल है
तेरे रूप तो कई हैं,
तू अन्नपूर्णा है तू मां काली है
तू ही दुर्गा,
तू ही ब्राह्मणी है
मां यशोदा की तरह तूने कृष्ण को पाला,
गौरी की तरह शिव को संभाला
तू ही हर घर के आंगन की तुलसी है
तू ही सबका मान है,
तू ही सबका अभिमान है
नवरात्री में नौ रूपों में पूजी जाती है
लेकिन तेरे नौ नहीं तेरे तो अनेक रूप हैं
ऐ नारी तुझे नमन!
************************
प्रकृति की नया संदेशा आने दो..!
बहुत घुटन है बन्द घरों में,
खुली हवा तो आने दो,
संशय की खिड़कियाँ खोल दो,
किरनों को मुस्काने दो!
ऊँचे-ऊँचे भवन उठ रहे,
पर आँगन का नाम नहीं,
चमक-दमक, आपा-धापी है,
पर जीवन का नाम नहीं!
लौट न जाए सूर्य द्वार से,
नया सन्देशा लाने दो!
बहुत घुटन है... बंद घरों में खुली हवा तो आने दो,
आज कमाने की होड़ लगी है
आगे बढ़ जाने की जोर लगी है
भौतिक सुख पाने की है अभिलाषा
धन कमाने की है जिजीविषा
बिल्डिंग की बिल्डिंग हमने खड़ी कर दी है
पर्वत और पठार को सपाट कर दी है
काट डाले हैं हमने वृक्षों को
जंगल और हरियाली को
उजाड़ दी है बस्तियां उनकी
जो लगे रहते हैं उनकी रखवाली को
लौट न जाए सूर्य द्वार से नया संदेशा लाने दो
बहुत घुटन है बंद घरों में खुली हवा अब तो आने दो
आओ मिलकर धरा सजाएं
पेड़ पौधे और खेत खलिहान सजाएं
फिर से हम आदिवासियों की बस्तियां बसाएं
भागदौड़ भरी इस जिंदगी से
दूर एक अलख जगाएं
लौटना जाए सूर्य द्वार से
नया संदेशा लाने दो
बहुत घुटन है बंद घरों में
खुली हवा तो आने दो...
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जिसका बेटा दुश्मन के सामने खड़ा हैं..!!
कैसे चहकती होगी वो हर बहन..??
जिसके भाई का इंतजार बंदूक की हर गोली कर रही हैं..!!
कैसे काम करता होगा वो हर भाई..??
जो उसके आने का इंतजार कर रहा हो..!!
कैसे जीती होगी वो नारी..??
जिसका सिंदूर कभी भी मिट सकता है..!!
कैसे रहते होंगे वो हर दोस्त..??
जिनका यार कभी भी तिरंगे में लिपटा आ सकता हैं…!!
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नव जागृति
आज जब मैं जागा, तब मैंने सोचा था
कुछ नया नजारा होगा
आसमां में कुछ नया रंग छाया होगा
उषा की लालिमा घिर गए होंगे नीले नीले गगनों पर
चीर घटाएं बरसीं होंगी अतृप्त गर्म धरातल पर
फिर रणभेरी गूंज उठी होगी जगत पटल पर
भाग कर मैंने अखबार उठाया
शायद देश परदेश में कुछ नया आया होगा
हर पन्ने को मैंने पलटाया
पर कुछ खास ना मैंने पाया
विस्मित होकर माँ से पूछा
क्यूँ कल रात इतना जश्न मनाया
सबने कहा था नया वर्ष हैं आया
कब से ढूंढ रहा हूँ मैं
पर कुछ नया ना मैंने पाया
माँ ने मुस्कुराकर मुझे बताया
जश्न तो बीती बातो का था
पुरानी यादों का था
अब तो नयी कोरे कागज की गट्ठी हैं
जिसमे नीली स्याही पिरौनी हैं
रंग बिरंगे रंगो के साथ
नयी कहानी रचनी हैं
एक नया संकल्प तुम साधो
नयी राह पर आगे बढ़कर
जीवन पथ को तुम बढ़ाओ
नए युग का निर्माण कर
युवा की शान तुम बढ़ाओ.
मातृभूमि की वेदी पर
वीरता की पृष्ठभूमि पर
स्वर्निम अक्षरों में नाम दर्ज करा जाओ
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साहिबगंज :- 02/10/2019. " स्वच्छता ही सेवा" स्वच्छता पखवाड़ा के तहत देश भर में बुधवार को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई गई। साहिबगंज महाविद्यालय राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवकों ने भी कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ रंजीत कुमार सिंह के नेतृत्व में नेताजी सुभाष चौक से होते हुए गांधी चौक तक जागरूकता रैली निकाली तथा महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की । इस अवसर पर छात्र-छात्राओं स्वच्छता शपथ ली। गांधी जी के आदर्शों एवं विचार को अपने जीवन में उतारने की भी प्रतिज्ञा की। अपने संबोधन के दौरान डॉ रंजीत कुमार सिंह ने कहा की गांधी जी स्वच्छता को सर्वोपरि मानते थे यही वजह है कि उनके नाम पर पीएम मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की. गांवों की स्वच्छता के संदर्भ सार्वजनिक रूप से गांधी जी ने पहला भाषण 14 फरवरी 1916 को मिशनरी सम्मेलन के दौरान दिया था. आज अगर स्वच्छता अभियान की सफलता सुनिश्चित करनी है, तो गांधी जी के इन विचारों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए .
- आंतरिक स्वच्छता पहली वस्तु है, जिसे पढ़ाया जाना चाहिए. बाकी बातें इसे पढ़ाने के बाद ही लागू की जानी चाहिए.। कार्यक्रम के दौरान एनएसएस छात्र अमन कुमार होली ने कहा कि
- यदि कोई व्यक्ति स्वच्छ नहीं है तो वह स्वस्थ नहीं रह सकता है. और यदि वह स्वस्थ नहीं है तो स्वस्थ मनोदशा के साथ नहीं रह पाएगा. स्वस्थ मनोदशा से ही स्वस्थ चरित्र का विकास होगा.
- यदि कोई व्यक्ति अपनी स्वच्छता के साथ दूसरों की स्वच्छता के प्रति संवेदनशील नहीं है तो ऐसी स्वच्छता बेईमानी है. उदाहरण के लिए इसे अपना घर साफ कर कूड़ा दूसरे घर के बाहर फेंक देने के रुप में देखा जा सकता है. अगर सभी लोग ऐसा करने लगें, तो ऐसे में तथाकथित स्वच्छ लोग अस्वच्छ वातावरण तथा अस्वच्छ समाज का ही निर्माण करेंगे.
- हम अपने घरों से गंदगी हटाने में विश्वास करते हैं. लेकिन समाज की परवाह किए बगैर इसे गली में फेंकने में विश्वास करते हैं. हम व्यक्तिगत रूप से साफ-सुथरे रहते हैं. परंतु राष्ट्र के, समाज के सदस्य के तौर पर नहीं. जिसमें कोई व्यक्ति छोटा-सा अंश होता है. यही कारण है कि हम अपने घर के दरवाजों पर इतनी अधिक गंदगी और कूड़ा-कचड़ा पड़ा हुआ पाते हैं. हमारे आस-पास कोई अजनबी अथवा बाहरी लोग गंदगी फैलाने नहीं आते हैं. ये हम ही हैं जो अपने आस-पास रहते हैं.। गांधी जी के विचारों एवं आदर्शों को मानते हुए अहिंसा सत्य की परंपरा को अपने जीवन में धारण करते हुए स्वच्छता को अपनाना अत्यंत ही जरूरी है। साथ ही साथ अपने पर्यावरण को शुद्ध एवं प्रदूषण मुक्त बनाए रखने के लिए प्लास्टिक मुक्त वातावरण का निर्माण करना आवश्यक है । कार्यक्रम में बहुत सारे छात्रों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए। साथ ही साथ छात्रों ने कॉलेज केंपस में श्रमदान भी किया।इस अवसर पर दर्जनों की संख्या में छात्र-छात्राओं ने अपनी सराहनीय भूमिका अदा की।
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हिंदी मेरी शान है..!
हिंदी मेरी शान है ,
है हिंदी अभिमान l
ओजस्विनी और अनूठी ,
सुंदर मनोरम है या मीठी l
सरल सुदृढ़ असीम साहित्य-
से सुसज्जित यह हिंदी,
जन मन की तृप्ति
आर्यों की अनुपम परंपरा की धनी
कालजई यह हिंदी l
हिंद की पहचान है हिंदी,
भारती की धात्री या हिंदी,
मेरा अभिमान , मेरा शान यह हिंदी l
लाई जो स्वतंत्रता की फरमान ,
जग में हो गया जिससे हिंदुस्तान का गौरव गानl
आम जनों की चिर अभिलाषी ,
मन को जो हमेशा से है भाती l
खुले गगन के सितारों की भाती ,
जग की रात्रि में उज्जवल जो बिखेरति l
सूर कबीर तुलसी की प्यारी ,
रची जिसमें मीरा अपनी रागिनी l
भारतेंदु निराला पंत की सुभाषिनी ,
मातृत्व इसने है जिसमें रची बसी
भारतीय एकता को जो पुकारती l
जनजीवन की परिभाषा हिंदी ,
अमन चैन की भाषा हिंदी l
मेरा अभिमान मेरा शान ,
मेरी पहचान मेरा गौरव गान है हिंदी l
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साहिबगंज :- 13/09/2019. लाइफलाइन एक्सप्रेस (जीवनरेखा एक्सप्रेस) दुनिया की पहली हॉस्पिटल ट्रेन है..। 16 जुलाई 1991 में चलाई गई लाइफलाइन एक्सप्रेस ने देश भर का सफर किया है..। इसका मुख्य उद्देश्य दूर-दराज और दुर्गम इलाकों में मेडिकल सहायता पहुंचाना है..।हॉस्पिटल-ऑन-वील्स..! लाइफलाइन एक्सप्रेस को मैजिक ट्रेन ऑफ इंडिया भी कहा जाता है। यह पिछले 23 साल से काम कर रही है..। इस ट्रेन को इम्पैक्ट इंडिया फाउंडेशन भारतीय रेलवे के साथ मिलकर चलाती है..। ट्रेन पर बेहतरीन स्टेट-ऑफ-द-आर्ट ऑपरेशन थिएटर हैं..। सर्जनों ने इस ओटी में कटे होंठ, पोलियो और मोतियाबिंद जैसे कई ऑपरेशन किए हैं..। पिछले 23 सालों में इस ट्रेन ने बिहार, महाराष्ट्र, एमपी से लेकर बंगाल और केरल सहित पूरे भारत का सफर तय किया है..। लाइफलाइन एक्सप्रेस का मेन टारगेट अच्छी मेडिकल सुविधा से महरूम ग्रामीण इलाकों में इलाज की सुविधाएं मुहैया कराना है। अलग-अलग राज्यों में कई प्राइवेट और पब्लिक ऑर्गनाइजेशन इसके प्रोजेक्ट्स को स्पॉन्सर करते हैं। लाइफलाइन एक्सप्रेस में मोतियाबिंद ऑपरेशन के जरिए आंखों की रोशनी लौटाने, सर्जरी के जरिए कटे होठ ठीक करने, दांतों का इलाज जैसी सुविधाएं दी जाती हैं। लाइफलाइन एक्सप्रेस में साथ ही छोटे शहरों के सर्जनों को इसके जरिए सिखाया भी जाता है। इ्म्पैक्ट इंडिया के मुताबिक, लाइफलाइन एक्सप्रेस के मॉडल से दूसरे देश भी सीख रहे हैं और चीन व सेंट्रल अफ्रीका में इसी की तर्ज पर प्रोजेक्ट बनाए जा रहे हैं। इसी से प्रेरणा लेकर बांग्लादेश और कंबोडिया में नाव पर अस्पताल भी शुरू किए गए हैं। साहिबगंज महाविद्यालय से भी 30 से अधिक वॉलिंटियर राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ रंजीत कुमार सिंह के नेतृत्व में निस्वार्थ भाव से 4 सितंबर से निरंतर सेवा दे रहे हैं..! साथ में मरीजों एवं पीड़ित व्यक्तियों के लिए श्रमदान कर रहे हैं..! स्वयंसेवकों के व्यवहार एवं कर्तव्यनिष्ठा को देखकर सेवा का लाभ उठा रहे मरीज भी काफी खुश है..! हालांकि मरीजों की समस्याएं काफी व्यापक है फिर भी अपनी जरूरत के मुताबिक एनएसएस वॉलिंटियर्स हर संभव सहायता पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि मरीजों को किसी प्रकार का दिक्कत ना हो सके l
*********- आंतरिक स्वच्छता पहली वस्तु है, जिसे पढ़ाया जाना चाहिए. बाकी बातें इसे पढ़ाने के बाद ही लागू की जानी चाहिए.। कार्यक्रम के दौरान एनएसएस छात्र अमन कुमार होली ने कहा कि
- यदि कोई व्यक्ति स्वच्छ नहीं है तो वह स्वस्थ नहीं रह सकता है. और यदि वह स्वस्थ नहीं है तो स्वस्थ मनोदशा के साथ नहीं रह पाएगा. स्वस्थ मनोदशा से ही स्वस्थ चरित्र का विकास होगा.
- यदि कोई व्यक्ति अपनी स्वच्छता के साथ दूसरों की स्वच्छता के प्रति संवेदनशील नहीं है तो ऐसी स्वच्छता बेईमानी है. उदाहरण के लिए इसे अपना घर साफ कर कूड़ा दूसरे घर के बाहर फेंक देने के रुप में देखा जा सकता है. अगर सभी लोग ऐसा करने लगें, तो ऐसे में तथाकथित स्वच्छ लोग अस्वच्छ वातावरण तथा अस्वच्छ समाज का ही निर्माण करेंगे.
- हम अपने घरों से गंदगी हटाने में विश्वास करते हैं. लेकिन समाज की परवाह किए बगैर इसे गली में फेंकने में विश्वास करते हैं. हम व्यक्तिगत रूप से साफ-सुथरे रहते हैं. परंतु राष्ट्र के, समाज के सदस्य के तौर पर नहीं. जिसमें कोई व्यक्ति छोटा-सा अंश होता है. यही कारण है कि हम अपने घर के दरवाजों पर इतनी अधिक गंदगी और कूड़ा-कचड़ा पड़ा हुआ पाते हैं. हमारे आस-पास कोई अजनबी अथवा बाहरी लोग गंदगी फैलाने नहीं आते हैं. ये हम ही हैं जो अपने आस-पास रहते हैं.। गांधी जी के विचारों एवं आदर्शों को मानते हुए अहिंसा सत्य की परंपरा को अपने जीवन में धारण करते हुए स्वच्छता को अपनाना अत्यंत ही जरूरी है। साथ ही साथ अपने पर्यावरण को शुद्ध एवं प्रदूषण मुक्त बनाए रखने के लिए प्लास्टिक मुक्त वातावरण का निर्माण करना आवश्यक है । कार्यक्रम में बहुत सारे छात्रों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए। साथ ही साथ छात्रों ने कॉलेज केंपस में श्रमदान भी किया।इस अवसर पर दर्जनों की संख्या में छात्र-छात्राओं ने अपनी सराहनीय भूमिका अदा की।
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हिंदी मेरी शान है..!
हिंदी मेरी शान है ,
है हिंदी अभिमान l
ओजस्विनी और अनूठी ,
सुंदर मनोरम है या मीठी l
सरल सुदृढ़ असीम साहित्य-
से सुसज्जित यह हिंदी,
जन मन की तृप्ति
आर्यों की अनुपम परंपरा की धनी
कालजई यह हिंदी l
हिंद की पहचान है हिंदी,
भारती की धात्री या हिंदी,
मेरा अभिमान , मेरा शान यह हिंदी l
लाई जो स्वतंत्रता की फरमान ,
जग में हो गया जिससे हिंदुस्तान का गौरव गानl
आम जनों की चिर अभिलाषी ,
मन को जो हमेशा से है भाती l
खुले गगन के सितारों की भाती ,
जग की रात्रि में उज्जवल जो बिखेरति l
सूर कबीर तुलसी की प्यारी ,
रची जिसमें मीरा अपनी रागिनी l
भारतेंदु निराला पंत की सुभाषिनी ,
मातृत्व इसने है जिसमें रची बसी
भारतीय एकता को जो पुकारती l
जनजीवन की परिभाषा हिंदी ,
अमन चैन की भाषा हिंदी l
मेरा अभिमान मेरा शान ,
मेरी पहचान मेरा गौरव गान है हिंदी l
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साहिबगंज :- 13/09/2019. लाइफलाइन एक्सप्रेस (जीवनरेखा एक्सप्रेस) दुनिया की पहली हॉस्पिटल ट्रेन है..। 16 जुलाई 1991 में चलाई गई लाइफलाइन एक्सप्रेस ने देश भर का सफर किया है..। इसका मुख्य उद्देश्य दूर-दराज और दुर्गम इलाकों में मेडिकल सहायता पहुंचाना है..।हॉस्पिटल-ऑन-वील्स..! लाइफलाइन एक्सप्रेस को मैजिक ट्रेन ऑफ इंडिया भी कहा जाता है। यह पिछले 23 साल से काम कर रही है..। इस ट्रेन को इम्पैक्ट इंडिया फाउंडेशन भारतीय रेलवे के साथ मिलकर चलाती है..। ट्रेन पर बेहतरीन स्टेट-ऑफ-द-आर्ट ऑपरेशन थिएटर हैं..। सर्जनों ने इस ओटी में कटे होंठ, पोलियो और मोतियाबिंद जैसे कई ऑपरेशन किए हैं..। पिछले 23 सालों में इस ट्रेन ने बिहार, महाराष्ट्र, एमपी से लेकर बंगाल और केरल सहित पूरे भारत का सफर तय किया है..। लाइफलाइन एक्सप्रेस का मेन टारगेट अच्छी मेडिकल सुविधा से महरूम ग्रामीण इलाकों में इलाज की सुविधाएं मुहैया कराना है। अलग-अलग राज्यों में कई प्राइवेट और पब्लिक ऑर्गनाइजेशन इसके प्रोजेक्ट्स को स्पॉन्सर करते हैं। लाइफलाइन एक्सप्रेस में मोतियाबिंद ऑपरेशन के जरिए आंखों की रोशनी लौटाने, सर्जरी के जरिए कटे होठ ठीक करने, दांतों का इलाज जैसी सुविधाएं दी जाती हैं। लाइफलाइन एक्सप्रेस में साथ ही छोटे शहरों के सर्जनों को इसके जरिए सिखाया भी जाता है। इ्म्पैक्ट इंडिया के मुताबिक, लाइफलाइन एक्सप्रेस के मॉडल से दूसरे देश भी सीख रहे हैं और चीन व सेंट्रल अफ्रीका में इसी की तर्ज पर प्रोजेक्ट बनाए जा रहे हैं। इसी से प्रेरणा लेकर बांग्लादेश और कंबोडिया में नाव पर अस्पताल भी शुरू किए गए हैं। साहिबगंज महाविद्यालय से भी 30 से अधिक वॉलिंटियर राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ रंजीत कुमार सिंह के नेतृत्व में निस्वार्थ भाव से 4 सितंबर से निरंतर सेवा दे रहे हैं..! साथ में मरीजों एवं पीड़ित व्यक्तियों के लिए श्रमदान कर रहे हैं..! स्वयंसेवकों के व्यवहार एवं कर्तव्यनिष्ठा को देखकर सेवा का लाभ उठा रहे मरीज भी काफी खुश है..! हालांकि मरीजों की समस्याएं काफी व्यापक है फिर भी अपनी जरूरत के मुताबिक एनएसएस वॉलिंटियर्स हर संभव सहायता पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि मरीजों को किसी प्रकार का दिक्कत ना हो सके l
बलिदानी..!
यह आडंबर पूर्ण की राजनीति..,
बोलो बदलाव करेंगे क्या..?
यह कजरारे के गाने..,
बोलो मातृभूमि के घाव भरेंगे क्या..?
अमर शहीदों का सोनित धिक्कार रहा पुरुषों को..!
वह धोखेबाज पड़ोसी देखो ललकार रहा पुरुषों को..!!
श्रृंगार गीत हो तुम्हें मुबारक..,
' अमन ' की कलम को अंगार चाहिए..!
भारत के हित की रक्षा के खातिर..,
फिर से सरदार, भगत, सुभाष, आजाद चाहिए..!!
क्या उन अमर शहीदों का कोई घर बार नहीं था..?
भूल गए सब नाते रिश्ते क्या उनको परिवार नहीं था..?
क्या राखी के धागा का कोई उन पर अधिकार नहीं था..?
क्या उनको लंबी जीवन का कोई आस नहीं था..?
आजादी की खातिर लड़ते सूली पर वे झूल गए..!
आजाद देश के वासी क्या उनके बलिदानों को भूल गए..!!
अमर शहीदों को पूरा संवैधानिक अधिकार चाहिए..!
भारत की हित की रक्षा के खातिर फिर से..,
अब बिस्मिल, अशफाक, उधम जैसे देशभक्त चाहिए..!
भला क्यों आज हम स्वार्थ लिप्त हो रहे हैं..!
मातृभूमि को आजादी दिलाने वाले उन वीर सपूतों को भूल रहे..!!
जरा याद आओ हम उनको भी कर ले..!
एक बूंद अश्रु वीरों के नाम भी बहा ले..!
मातृभूमि की रक्षा हेतु, सर्वस्व न्योछावर करने वाले..!
उन वीर सपूतों को नमन सदा यूंही हंसता और खिलखिलाता रहे..!
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