जो शक्ति को मां तो कहते
पर नारी जो दिखीं तो फब्तियां कसते
मैं जो रात में बाहर थी सड़कों पे
नैतिक मूल्यों के थानेदार को वो गलत लगा
मैंने इस देश की रीति ना समझी
ये समझाने उसके अंदर का शैतान जगा
मुझे नोचके मेरी इस्मत को लूटके
शायद उसने समझा यही,
"मैं ठहरा मर्द, ये अबला नारी
हमारी जिस्मानी भूख मिटाए
इसका तो है मुकद्दर यही।"
ना मैं ऐसी पहली थी जिसका यूं अपमान हुआ
पर जाने क्यों मेरी खातिर पूरा देश उठा
कहीं मौन व्रत तो कहीं शोक सभा में
न्याय की मांगे तेज हुईं
मेरी मृत्यु से देश जगा है
सुखद मुझे एहसास हुआ।
समय का चक्का जो चला गति से
मैं बस इक इतिहास बनी
कहीं आसिफा कहीं पार्वती
फिर इन हैवानों की शिकार बनीं।
अब भी बेटी बाहर जाए तो
मांबाप की सांसे थमी रहती हैं
जब तक कुशल वो घर ना आए
आस लगाए आंखें टिकी रहती हैं
लालसा भी बस इतनी है
कि अपना भी सम्मान हो
जो कहीं बाहर निकले तो
सामने ना कोई हैवान हो।।
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