मेरी जिंदगी का,कुछ इस तरह है आलम।
बाहर ही रौशनी है,अंदर बसा हुआ तम।
करके चरागे रोशन,बढ़ते रहे कदम पर,
तूफान से ही लड़ना, न सीख पाए थे हम।
सोचा था जिंदगी का सूरज न ढलने देंगे
सोचा था हसरतों को फिर से न छलने देंगे
सोचा था अपनी मंजिल खुद ही बनाएंगे हम
सोचा था गम का कारवां फिर से न लायेंगे हम
सोचों का अपने मन पर रह सका न काबू
होता रहा वही जो ना सोच पाए थे हम।
हम चले थे दूर तक बस ख्वाब में चलते रहे
आंख खुली तन्हाईयां थी हाथ बस मलते रहे
अपना साया देख कर दिल बाग बाग होता रहा
रात की तन्हाइयों में दिल बहुत रोता रहा
रौशन किया था जो शमां खुद ही बुझाना भी पड़ा
न होठ हिले मुस्काने में न आंख ही हों पाए नम।
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दिल कहता है चुप हो जाऊं
मौन निमंत्रण भेजूं तुझे।
पर फिर सोच के घबराती हूं
पास बुलाए कौन तुझे।।
धीरे धीरे चुपके चुपके
छुपके छुपके आ जाना।
प्रेम भरा एक दिल है मेरा
ख्वाब सुनहरे दिखा जाना
भूल के खुद ही खुद को
खींच बिठाऊं पास तुझे।
छवि तुम्हारी ही रोपित हो
हृदयांगन में आस मुझे।।
दिल कहता है चुप हो जाऊं
मौन निमंत्रण भेजूं तुझे।।
पर फिर सोच के घबराती हूं
पास बुलाए कौन तुझे।।
अभीसंधि की इस दुनिया में
जब प्रेम हमारा मौन हुआ
तब निश्चल निर्भाव हृदय से
अविरल धारा गौण हुआ।
भूल गई मैं प्रेम प्रतिज्ञा
भूल है अब स्वीकार मुझे।
नाहक ही मैं मांग रही हूं।
करलो अंगीकार मुझे।
दिल कहता हैं चुप हो जाऊं
मौन निमंत्रण भेजूं तुझे।
पर फिर सोच के घबराती हूं
पास बुलाए कौन तुझे।।
प्रेम हो अपना ऐसा जैसे
श्रद्धा पूजा हो जाए।
श्रृष्टि का श्रृंगार हो जैसे
जन्म ये दूजा हो जाए।
चिर प्रतीक्षा हो अंतिम पल
में भी गर पा जाऊं तुझे
जीवन भर की अभिलाषा
तृप्त तृप्त हो जाए मुझे।
दिल कहता है चुप हो जाऊं
मौन निमंत्रण भेजूं तुझे।
पर फिर सोच के घबराती हूं
पास बुलाए कौन तुझे।।
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तुम्हारे चित्र उकेरने बैठी हूं।
नितांत एकांत में,
तुम्हारी यादों के सहारे,
हाथों में कूची और रंग लिए।
पर इतना तेज परिवर्तित,
विचारों का संग्रहालय,
कभी स्थिर तो हो।
कि तुम्हें उकेर सकूं,
कि अपने यादों के झरोखों के ,
कुछ पल समेट लूं ,
चित्र पटल पर।
मन का वेग स्थिर ही नहीं होता,
तुम्हारा होना ना होना,
सब लपेट देता है।
मेरी कल्पना ,
बदलती कल्पना,
अनेकों रंगों में समा जाती हैै।
और तुम्हें पता है!
उस रंग से कुछ नहीं बनता,
सिर्फ काला और अंधेरा ।
तुम आओ ,
रोशनी बनकर,
फिर बना लेंगे मिलकर,
हमारी तस्वीर।
आज रहने देते हैं।
तुम्हारे अस्तित्व की सार्थकता,
अपने ख्यालों में।
और मन के कोने में।
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कौन हैं अपने कौन पराए,
कितने हैं मेहमान यहां।
कौन कराए मानवता को
रिश्तों की पहचान यहां।।
गूंज रहा है मानव क्रंदन,
रक्तशोणिता मांग सजे।
बंद पटाखों की आवाजें,
बंदूकों से कान बजे।
तोड़ के दुनिया की खामोशी,
मौत लिखे फरमान यहां।
और दीवारों के उलझन में,
बंद हुए अरमान यहां।।
क्यों न हो नारी के मस्तक,
शर्म घृणा से झुके हुए।
कहां हुए हैं, बहसी दानव,
जन्म लेने से चुके हुए।
जन्म देने वाली माता का ,
कुचल रहे अरमान यहां।
दानव वृत मानव हैं ये,
क्या समझे अहसान यहां।।
भारत के हर कोने में
फैल गया अब दुराचरण है।
राजनीति से शिक्षा तक में
प्रलयंकारी आचरण है।
भारत विश्व गुरु कैसे हो,
पनप रहे हैवान यहां।
मानवता की हदें गिरी हैं,
बिकता है ईमान यहां।
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बांध लिया है हमने अपने
अंतर मन में प्यार तुम्हारा।
तुम अस्तित्व बनाते जाती
जग करता संहार तुम्हारा।।
अब भी उस संसार में हो तुम,
जिसमें भाग्य बदल न पाया।
है संघर्ष कदम कदम पर,
फिर भी नियति छल न पाया।
तुम अस्तित्व बनाते जाती
जग करता संहार तुम्हारा।
बांध लिया है हमने अपने
अंतर्मन में सार तुम्हारा।।
कितने बंधन काटे तुमने,
खूब दिया है कुर्बानी
अग्नि परीक्षा भी दी तुमने,
रावण करता मनमानी।
कितनी ही कलियां इस जग में,
आने के पहले टूट गई
फिर भी इस जग में आकर
करती हो उद्धार हमारा।
बांध लिया है हमने अपने
अंतर्मन में सार तुम्हारा।।
कितने ही बुद्ध, राम ने
बीच अधर में छोड़ दिया।
कितने ही दुश्शासन ने
चिर हरण कर छोड़ दिया।
कितने ही युधिष्ठिर आए
क्रीड़ा द्वांदो में हार गए।
फिर भी अस्तित्व बचाया तुमने,
है हमपर एहसान तुम्हारा।
बांध लिया है अंतर्मन में
हमने सारा सार तुम्हारा।
सुख गई आदर्शवादिता,
बिन जन्में ही मिटा दिया।
फेंकी गई कुड़े करकट में,
नाली में तुमको बहा दिया।।
मोल न जानें हम ईश्वर की
इस सुंदर संरचना का,
प्यार दया ममता की मूरत,
क्या केवल अधिकार हमारा?
बांध लिया है अंतर्मन में
हमने सारा प्यार तुम्हारा।
अब भी टूट रही निश्छलता
शकुंतला के रूपों में।
अब भी टूट रहा सतीत्व,
पाषाण अहिल्या रूपों में।
अब भी कितनी ही नारी
जौहर करके बिखर गई।
सीता तेरे पुण्यप्रताप से
धरती माता निखर गई
सदियों सदियों दबा रहा
मन के अंदर अरमान तुम्हारा
बांध लिया है हमने अपने
अंतर मन में प्यार तुम्हारा।
जहां कहीं बेटी है,
घर है आंगन है चौबारा है।
नन्हीं-नन्हीं सी कलियों ने,
घर आंगन मन तारा है।
बड़ी हुई दो कुल की रौनक,
दोनो घर को प्यार दिया
अपने जीवन की खुशियों को
दोनो घर पर वार दिया।।
तेरे ही स्वर्णिम आभा से
पूर्ण श्रृष्टि का तम हारा।
बांध लिया है हमने अपने
अंतर्मन में सार तुम्हारा।
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चलो चलते हैं, समेट लेते हैं
फिर से अपनी यादों का पिटारा।
जिसमें अथाह वेदना, उद्वेग, प्रेम,
और न जाने क्या क्या है।
तुम्हारे साथ वो पल
जो सिर्फ कल्पनाओं में ही रहा।
हकीकत न हुआ कभी।
पता है! यादों से निकलना
बहुत मुश्किल लगता है।
पता नहीं हम यादों में क्यों जीना चाहते हैं।
शेशवास्था में सपनों की दुनिया,
किशोरावस्था में बचपने की दुनिया
जवानी में किशोरावस्था की बातें,
बुढ़ापे में जवानी को याद करते हैं।
जब अवसान का समय आता है
तब सब भूल जाना चाहते हैं।
नया कुछ याद करने के लिए।
पा लेना चाहते हैं शून्यता,
एक ठहराव पाने के लिए।
एक अनंत सफर में लीन होने के पहले
कभी न मिला संवेदना जीना चाहते हैं।
जो मन के मरुस्थल की मृगतृष्णा ही सही
जिसके लिए दौड़ता रहा मन जीवन भर
उस तृष्णा को पा लेना चाहते हैं।
बचा लेना चाहते हैं उस अंतिम क्षण को
मन के अनंत आकाश में समेट लेते हैं।
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पानी में उठते तरंगों के जैसे,कोई मन में हलचल मचाने लगा है।
निराकार रूपों में जो था अब तक,
साकार बन कर लुभाने लगा है।
कोई नगमा मेरी राहों में न था,
कोई फूल अपनी निगाहों में न था।
कोई आरजू न थी अपनी जहां में,
कभी मैं खड़ी थी अकेली जहां में।
कोई बन के रिश्ता बुलाने लगा है,
मुझे कोई आकर जगाने लगा है।
जीवन का अकेला सफर चाहती थी,
गमों के धरा पर बसर चाहती थी।
हर पल रहे एक बचैनी का आलम,
कयामत का ऐसा असर चाहती थी।
पर,तरन्नम छलकने लगे हैं कि, जैसे,
नया कोई अरमां मचलने लगा है।
ख्वाबों में तस्वीर जब से है उसकी,
ख्यालों का आलम बदलने लगा है।
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मेरी पायल की रुनझुन
जो तुम्हें कर्णप्रिय थी
और मुझे भी
पर तुम! तुम रहे नहीं
और मुझे अब भाती नहीं है।
मैंने छोड़ दिया पायल पहनना।
मेरे माथे कि बिंदिया
जो तुम्हें अच्छी लगती थी
मेरे माथे में नहीं दिखने पर
मेरी आलमारी से निकाल कर
मेरे माथे पर सजा देते थे।
अब मुझे याद नहीं रहता
बिंदिया लगाना।
मेरे महावर तुम्हारे साथ चले गए।
मेरी जिंदगी के रंग
फिके हैं तुम्हारे बिना।
मुझे याद नहीं रहता
कब सुबह और कब शाम होता है।
ऐसे ही एक दिन मेरे
जीवन की शाम हो जाएगी,
तुम्हारी यादों के सहारे।
तुम्हारा खालीपन कोई न भर पाया।
सुनो इस बार पूर्ण संपूर्णता के साथ मिलना
कि मैं अधूरी न रहूं।
अब जीवन में आना तो फिर
वापस नहीं जाने के लिए आना।
और एक बात कहनी है तुमसे
मेरी यादों में न आया करो
बहुत तकलीफ़ होती है।
अब मुझमें सिमट जाने दो मुझे।
कि अंतिम सांस तक किसी की न हो पाऊं।
और गुजार दूं एकांकी जीवन तुम्हारे बिना।
फिर दुबारा मिलना तो कभी न जाना।
सिर्फ हमतुम रहेंगे,वहां
जहां धरती गगन मिलते हैं।
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दर्द उतरता है गया इस आंख में,
पर नजर न आ सकी एक बूंद तक।
आंख खुली और राह में पथरा गई,
प्यासे मन ने रेत देखा दूर तक।
तब तलक चलता रहा वो राह में,
जब तलक पकड़े रही मैं दीप थी।
दीप मद्धम हो गया जब हाथ का,
तब लगा मैं दूर, उससे दूर थी।
आज दिल का दर्द भी सुना लगा,
दूर तक चलना अकेले रह में।
तन जलता ही रहा था आग सा,
चल रही थी चांदनी के छांह में।
हुक सी उठती है मन के आह में,
पर हर घड़ी एक साथ होता ही नहीं।
राह में चलना अकेला क्या भला,
रास्तों में कारवां खोता नहीं।
पलकें झुका कर दिल को न देना सजा
नजरें मिला लेना कभी जब पास हों।
कैसी रही यादें कुछ भी बता देना
मुझको लगेगा आज भी तुम साथ हो।
ये कभी भी भूल कर न सोचना,
दर से तेरे शून्यता में आ गई।
काव्य का सागर मिला है आह में,
आंख में इसकी खुशी लहरा गई।