14 जुलाई 2022

आलेख :- सोनू ठाकुर..!

 छेड़खानी करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज।

साहिबगंज/बोरियो :- 14/07/2022. थाना क्षेत्र अंतर्गत बांझी संथाली की एक आदिवासी युवती ने थाना में लिखिति आवेदन देकर एक युवक के विरुद्ध छेड़खानी का मामला दर्ज कराई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार बीते बुधवार देर रात युवती अपने घर पर सो रही थी। इसी दौरान गाँव के ही अनिल सोरेन घर में घुस कर छेड़खानी करने लगा एवं दुष्कर्म करने का प्रयास किया। जिससे युवती शोर मचाने लगी। शोर सुनकर युवती के पति जाग गए। जिसके बाद अनिल सोरेन युवती के गले से चांदी चेन छीन कर भागने लगा। तभी युवती के पति व अन्य तीन लोगों ने पीछा कर पकड़ लिया। जिसके बाद आरोपी को पुलिस के हवाले कर दिया। थाना प्रभारी जगन्नाथ पान ने बताया कि युवक के विरुद्ध थाना कांड 167/22 दर्ज कर मामले की छानबीन की जा रही है।

16 जुलाई 2021

रचना :- ज्योत्सना सिंह..!

मेरी जिंदगी का,कुछ इस तरह है आलम।
बाहर ही रौशनी है,अंदर बसा हुआ तम।
करके चरागे रोशन,बढ़ते रहे कदम पर,
तूफान से ही लड़ना, न सीख पाए थे हम।
सोचा था जिंदगी का सूरज न ढलने देंगे
सोचा था हसरतों को फिर से न छलने देंगे
सोचा था अपनी मंजिल खुद ही बनाएंगे हम
सोचा था गम का कारवां फिर से न लायेंगे हम
सोचों का अपने मन पर रह सका न काबू
होता रहा वही जो ना सोच पाए थे हम।
हम चले थे दूर तक बस ख्वाब में चलते रहे
आंख खुली तन्हाईयां थी हाथ बस मलते रहे
अपना साया देख कर दिल बाग बाग होता रहा
रात की तन्हाइयों में दिल बहुत रोता रहा
रौशन किया था जो शमां खुद ही बुझाना भी पड़ा
न होठ हिले मुस्काने में न आंख ही हों पाए नम।

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दिल कहता है चुप हो जाऊं
मौन निमंत्रण भेजूं तुझे।
पर फिर सोच के घबराती हूं
पास बुलाए कौन तुझे।।
धीरे धीरे चुपके चुपके
छुपके छुपके आ जाना।
प्रेम भरा एक दिल है मेरा
ख्वाब सुनहरे दिखा जाना
भूल के खुद ही खुद को 
खींच बिठाऊं पास तुझे।
छवि तुम्हारी ही रोपित हो
हृदयांगन में आस मुझे।।
दिल कहता है चुप हो जाऊं
मौन निमंत्रण भेजूं तुझे।।
पर फिर सोच के घबराती हूं
पास बुलाए कौन तुझे।।

अभीसंधि की इस दुनिया में
जब प्रेम हमारा मौन हुआ
तब निश्चल निर्भाव हृदय से
अविरल धारा गौण हुआ।
भूल गई मैं प्रेम प्रतिज्ञा
भूल है अब स्वीकार मुझे।
नाहक ही मैं मांग रही हूं।
करलो अंगीकार मुझे।
दिल कहता हैं चुप हो जाऊं
मौन निमंत्रण भेजूं तुझे।
पर फिर सोच के घबराती हूं
पास बुलाए कौन तुझे।।

प्रेम  हो अपना ऐसा जैसे
श्रद्धा पूजा हो जाए।
श्रृष्टि का श्रृंगार हो जैसे
जन्म ये दूजा हो जाए।
चिर प्रतीक्षा हो अंतिम पल 
में भी गर पा जाऊं तुझे
जीवन भर की अभिलाषा
तृप्त तृप्त हो जाए मुझे।
दिल कहता है चुप हो जाऊं
मौन निमंत्रण भेजूं तुझे।
पर फिर सोच के घबराती हूं
पास बुलाए कौन तुझे।।

********************

तुम्हारे चित्र उकेरने बैठी हूं।
नितांत एकांत में,
तुम्हारी यादों के सहारे,
हाथों में कूची और रंग लिए।
पर इतना तेज परिवर्तित,
विचारों का संग्रहालय,
कभी स्थिर तो हो।
कि तुम्हें उकेर सकूं,
कि अपने यादों के झरोखों के ,
कुछ पल समेट लूं ,
चित्र पटल पर।
मन का वेग स्थिर ही नहीं होता,
तुम्हारा होना ना होना,
सब लपेट देता है।
मेरी कल्पना ,
बदलती कल्पना,
अनेकों रंगों में समा जाती हैै।
और तुम्हें पता है!
उस रंग से कुछ नहीं बनता,
सिर्फ काला और अंधेरा ।
तुम आओ ,
रोशनी बनकर,
फिर बना लेंगे मिलकर,
हमारी तस्वीर।
आज रहने देते हैं।
तुम्हारे अस्तित्व की सार्थकता,
अपने ख्यालों में।
और मन के कोने में।


********************

कौन हैं अपने कौन पराए,
कितने हैं मेहमान यहां।
कौन कराए मानवता को 
रिश्तों की पहचान यहां।।
गूंज रहा है मानव क्रंदन, 
रक्तशोणिता मांग सजे।
बंद पटाखों की आवाजें,  
बंदूकों से कान बजे।
तोड़ के दुनिया की खामोशी, 
मौत लिखे फरमान यहां।
और दीवारों के उलझन में, 
बंद हुए अरमान यहां।।
क्यों न हो नारी के मस्तक,
शर्म घृणा से झुके हुए।
कहां हुए हैं, बहसी दानव,
जन्म लेने से चुके हुए।
जन्म देने वाली माता का ,
कुचल रहे अरमान यहां।
दानव वृत मानव हैं ये, 
क्या समझे अहसान यहां।।
भारत के हर कोने में 
फैल गया अब दुराचरण है।
राजनीति से शिक्षा तक में 
प्रलयंकारी आचरण है।
भारत विश्व गुरु कैसे हो,
पनप रहे हैवान यहां।
मानवता की हदें गिरी हैं,
बिकता है ईमान यहां।

*************

बांध लिया है हमने अपने 
अंतर मन में प्यार तुम्हारा।
तुम अस्तित्व बनाते जाती 
जग करता संहार तुम्हारा।।

अब भी उस संसार में हो तुम, 
जिसमें भाग्य बदल न पाया।
है संघर्ष कदम कदम पर, 
फिर भी नियति छल न पाया।
तुम अस्तित्व बनाते जाती 
जग करता संहार तुम्हारा।
बांध लिया है हमने अपने 
अंतर्मन में सार तुम्हारा।।

कितने बंधन काटे तुमने,  
खूब दिया है कुर्बानी
अग्नि परीक्षा भी दी तुमने, 
रावण करता मनमानी।
कितनी ही कलियां इस जग में, 
आने के पहले टूट गई
फिर भी इस जग में आकर 
करती हो उद्धार हमारा।
बांध लिया है हमने अपने 
अंतर्मन में सार तुम्हारा।।

कितने ही बुद्ध, राम ने 
बीच अधर में छोड़ दिया।
कितने ही दुश्शासन ने 
चिर हरण कर छोड़ दिया।
कितने ही युधिष्ठिर आए 
क्रीड़ा द्वांदो में हार गए।
फिर भी अस्तित्व बचाया तुमने,
है हमपर एहसान तुम्हारा।
बांध लिया है अंतर्मन में 
हमने सारा सार तुम्हारा।

सुख गई आदर्शवादिता,
बिन जन्में ही मिटा दिया।
फेंकी गई कुड़े करकट में, 
नाली में तुमको बहा दिया।।
मोल न जानें हम ईश्वर की
इस सुंदर संरचना का,
प्यार दया ममता की मूरत,
क्या केवल अधिकार हमारा?
बांध लिया है अंतर्मन में 
हमने सारा प्यार तुम्हारा।

अब भी टूट रही निश्छलता 
शकुंतला के रूपों में।
अब भी टूट रहा सतीत्व,
पाषाण अहिल्या रूपों में।
अब भी कितनी ही नारी 
जौहर करके बिखर गई।
सीता तेरे पुण्यप्रताप से 
धरती माता निखर गई
सदियों सदियों दबा रहा 
मन के अंदर अरमान तुम्हारा
बांध लिया है हमने अपने 
अंतर मन में प्यार तुम्हारा।

जहां कहीं बेटी है, 
घर है आंगन है चौबारा है।
नन्हीं-नन्हीं सी कलियों ने,
घर आंगन मन तारा है।
बड़ी हुई दो कुल की रौनक, 
दोनो घर को प्यार दिया
अपने जीवन की खुशियों को 
दोनो घर पर वार दिया।।
तेरे ही स्वर्णिम आभा से 
पूर्ण श्रृष्टि का तम हारा।
बांध लिया है हमने अपने 
अंतर्मन में सार तुम्हारा।


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चलो चलते हैं, समेट लेते हैं
फिर से अपनी यादों का पिटारा।
जिसमें अथाह वेदना, उद्वेग, प्रेम,
और न जाने क्या क्या है।
तुम्हारे साथ वो पल 
जो सिर्फ कल्पनाओं में ही रहा।
हकीकत न हुआ कभी।
पता है! यादों से निकलना 
बहुत मुश्किल लगता है।
पता नहीं हम यादों में क्यों जीना चाहते हैं।
शेशवास्था में सपनों की दुनिया,
किशोरावस्था में बचपने की दुनिया
जवानी में किशोरावस्था की बातें,
बुढ़ापे में जवानी को याद करते हैं।
जब अवसान का समय आता है 
तब सब भूल जाना चाहते हैं।
नया कुछ याद करने के लिए।
पा लेना चाहते हैं शून्यता, 
एक ठहराव पाने के लिए।
एक अनंत सफर में लीन होने के पहले
कभी न मिला संवेदना जीना चाहते हैं।
जो मन के मरुस्थल की मृगतृष्णा ही सही
जिसके लिए दौड़ता रहा मन जीवन भर
उस तृष्णा को पा लेना चाहते हैं।
बचा लेना चाहते हैं उस अंतिम क्षण को
मन के अनंत आकाश में  समेट लेते हैं।

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पानी में उठते तरंगों के जैसे,
कोई मन में हलचल मचाने लगा है।
निराकार रूपों में जो था अब तक,
साकार बन कर लुभाने लगा है।
कोई नगमा मेरी राहों में न था,
कोई फूल अपनी निगाहों में न था।
कोई आरजू न थी अपनी जहां में,
कभी मैं खड़ी थी अकेली जहां में।
कोई बन के रिश्ता बुलाने लगा है, 
मुझे कोई आकर जगाने लगा है।
जीवन का अकेला सफर चाहती थी,
गमों के धरा पर बसर चाहती थी।
हर पल रहे एक बचैनी का आलम,
कयामत का ऐसा असर चाहती थी।
पर,तरन्नम छलकने लगे हैं कि, जैसे,
नया कोई अरमां मचलने लगा है।
ख्वाबों में तस्वीर जब से है उसकी,
ख्यालों का आलम बदलने लगा है।

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मेरी पायल की रुनझुन
जो तुम्हें कर्णप्रिय थी 
और मुझे भी
पर तुम! तुम रहे नहीं
और मुझे अब भाती नहीं है।
मैंने छोड़ दिया पायल पहनना।
मेरे माथे कि बिंदिया 
जो तुम्हें अच्छी लगती थी
मेरे माथे में नहीं दिखने पर 
मेरी आलमारी से निकाल कर 
मेरे माथे पर सजा देते थे।
अब मुझे याद नहीं रहता 
बिंदिया लगाना।
मेरे महावर तुम्हारे साथ चले गए।
मेरी जिंदगी के रंग 
फिके हैं तुम्हारे बिना।
मुझे याद नहीं रहता 
कब सुबह और कब शाम होता है।
ऐसे ही एक दिन मेरे 
जीवन की शाम हो जाएगी,
तुम्हारी यादों के सहारे।
तुम्हारा खालीपन कोई न भर पाया।
सुनो इस बार पूर्ण संपूर्णता के साथ मिलना
कि मैं अधूरी न रहूं। 
अब जीवन में आना तो फिर 
वापस नहीं जाने के लिए आना।
और एक बात कहनी है तुमसे
मेरी यादों में न आया करो
बहुत तकलीफ़ होती है।
अब मुझमें सिमट जाने दो मुझे।
कि अंतिम सांस तक किसी की न हो पाऊं।
और गुजार दूं एकांकी जीवन तुम्हारे बिना।
फिर दुबारा मिलना तो कभी न जाना।
सिर्फ हमतुम रहेंगे,वहां
जहां धरती गगन मिलते हैं।

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दर्द उतरता है गया इस आंख में, 
पर नजर न आ सकी एक बूंद तक।
आंख खुली और राह में पथरा गई,
प्यासे मन ने रेत देखा दूर तक।
तब तलक चलता रहा वो राह में,
जब तलक पकड़े रही मैं दीप थी।
दीप मद्धम हो गया जब हाथ का,
तब लगा मैं दूर, उससे दूर थी।
आज दिल का दर्द भी सुना लगा,
दूर तक चलना अकेले रह में।
तन जलता ही रहा था आग सा,
चल रही थी चांदनी के छांह में।
हुक सी उठती है मन के आह में,
पर हर घड़ी एक साथ होता ही नहीं।
राह में चलना अकेला क्या भला,
रास्तों में कारवां खोता नहीं।
पलकें झुका कर दिल को न देना सजा
नजरें मिला लेना कभी जब पास हों।
कैसी रही यादें कुछ भी बता देना
मुझको लगेगा आज भी तुम साथ हो।
ये कभी भी भूल कर न सोचना,
दर से तेरे शून्यता में आ गई।
काव्य का सागर मिला है आह में,
आंख में इसकी खुशी लहरा गई।

****************

चैती फसिल गदराईल, 
फगुनवां गऊवां में आइल।
मनवा में गुलर फूलाइल,
फगुनवां गऊवां में आइल।

आइल बाड़ी हंस प वीणा भवानी।
देवी इ ज्ञान के हई बड़ा दानी।
लाल पीयर अबीर उड़ाइल,
फगुनवां गऊवां में आइल।

गेंदा आ चम्पा चमेली फूलाइल,
रंग विरंग के फूल फूलाइल,
तितली आ भौंरा बा ओ प मताइल,
नेहिया में मनवा बंधाइल,
फगुनवां गऊवां में आइल।

सरसों फुलाइल आ गहूं बोझाइल,
मीठ मीठ गंध लगे आम मोजराइल,
निमीया प झुलुवा टंगाइल,
फगुनवां गऊवां में आइल।

कुहू कुहू कोयल पीपहरा के बोली
अंगना में आवे बहुरिया के डोली
बिटिया के सुदिन धराइल
फगुनवां गऊवां में आइल।

होली में उड़ी अब रंग गुलाल हो
भांग के गोला आ पुआ के थाल हो।
दुवरा जोगिरा गवाइल,
फगुनवां गऊवां में आइल।

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वो खत जो तुमने  दिया नहीं
वो खत जो मैने   पढ़ा नहीं
क्या अब भी लिख कर रखे हो?

जिसमें प्यार का भाव छिपा था।
अंतर्मन का घाव छिपा था
जिसमें भाव हिलोरे  होंगे।
जिसमें शब्दअब्द उभरे होंगे।
क्या अब भी लिख कर रखे हो?

जाने कितने पन्ने फाड़े होंगे 
 कितनी बार  नाम लिखा होगा।
दिनभर कैसे रहते होंगे
और कैसा शाम लिखा होगा।
क्या अब भी लिख कर रखे हो?

प्यार से मोड़ा होगा तुमने
जब अंतिम रूप दिया होगा 
आंखे चमक गई होगी,
और खत को चूम लिया होगा।
क्या अब भी लिख कर रखे हो?

जब देने की बारी आई होगी
दिल जोड़ से धड़का होगा।
शायद मुझको बुरा लगेगा
सोच के मन तड़पा होगा।
छुपा लिया होगा तुमने ,
उस  खत को अपनी अलमारी में।
क्या अब भी लिखकर रखे हो?

**************

मैं चली जा रही थी।
चली जा रही थी...
अपने धुन में,
अचानक तुम्हारी याद आई।
मैं रुकी,
पीछे मुड़ी,
मैं पीछे आई।
पर सन्नाटा के सिवा कुछ न मिला।
तुम्हारी यादें भी नहीं।
देखो न!मैं कितनी स्वार्थी हूँ।
मैंने तुम्हारे बारे में कुछ पूछा ही नहीं।
न ही तुम्हें जानने की कोशिश की।
बस अपने धुन में चलती रही,
चलती रही......
लेकिन जब तुम्हारी आहट आनी बंद हुई,
तब लगा कुछ खो गया मेरा,
मैं रुकी,
पीछे मुड़ी।
पर कुछ नहीं था!
कुछ भी नहीं!
वो एहसासों की ऊँचाईयाँ,
वो प्रेम की गहराईयाँ,
जिसमें मन की भावनाएं हिलकोरे ले।
बचा था सिर्फ अट्टहास करता शून्यता।
मैं रुकी,
पीछे मुड़ी।
मेरे रुकने और पीछे मुड़ने के दरमियान,
न जाने कितने एहसास रुके,
न जाने कितने आस रुके,
ये उम्मीद रुकी कि फिर से तुम आओगे।
आओगे न!
ये सुनो! इतने वादे जो किये हो निभा पाओगे न!


*******************

सिमरेट की बुझती राख से,
निकाला आग को,
अँगुलियों ने सहलाया,
सुलगाया सांस की ताजगी से,
जलाया मशाल की लौ,
जिससे जिन्दगी रौशन हो। 
मशाल की लौ 
लगी आकाश छूती सी,
सहेजा था जिसे जतन से,
दिखी वह झूमती सी।
लगा कुछ फासला ,
अब और नहीं !
जिन्दगी का ठौर बस यही..।
जिन्दगी की नीन्द से,
शायद उठाया था कोई झकझोर के,
आंख खुली तो बौखला सी मैं गयी,
सामने पङा राख का एक ढेर था,
और दिल के विरान में था
धुआं-धुआं..।
कराहती हर सांस थी, 
जिन्दगी के आस में।
टूट कर बिखरा हुआ, 
तारा पङा था पास में ।
मगर मन का कोना 
मशक्कतो का लालसा सुलगाता 
नयी रौशनी की तलाश में.....

*****************

हाथ में आइल कटोरा,
और सड़क पर खाट बा।
लोग कहेलें ह भिखारी,
हम कहिला ठाठ बा।
राम-रहीम के नाम के बे च,
भले ही झूठा बात बा,
राम रहीम त मुफ्त मिलेलन,
भरत कैश से हाथ बा।
थथम-थथम के बाट चलेला,
सबके खुल ल पाट बा।
पैसा होखे भा ना होखॆ,
मा न अपने हाट बा।
बेमेहनत के रोटी आवे,
चैन से गुजरत रात बा।
भिखमंगन से कॉन्टैक्ट होखे,
मोबाइल पर बात बा।
MA,BA degree ध र,
देश में नोकरी short बा।
पद आ पदवी ओकरे मिली
जेकरा जेब में नोट बा।
सोच के दे ख शर्म न लागी,
समझ-समझ के बात बा।
ई दुनिया में क ह केकर,
नइखे उठल हाथ बा।
नईखे कोई ग़म के आंशु, 
न बर्बादी फांस बा।
मान के बात भिखारी हो ल,
फिर दे ख का खास बा।

******************

राजनीति में आके फंसनी,
नेतन कुल के मेला में।
ऎ में कतना गड़बड़ झाला,
पड़नी गजब झमेला में।
कहे खातिर सेवक ह ई,
ई सेवक त बोझा बा।
भीखमंगन अस मांगे वोट,
पांच बरीस में सोझा बा।
पांच बरीस तक मुंह चोराई,
खूबे करत घोटाला बा।
मुंह से निकले मिश्री बोली,
हाथ पकड़ले भाला बा।
वक्त से पहले आवे सोझा,
समझे काम से ज्यादा बा।
बहुत बड़ा नेतन कुल के,
बड़का-बड़का वादा बा।
सामाजिक दीवार बनावे,
कहे खातिर प्रजातंत्र बा।
जाति धर्म के लड़वावे ला,
तानाशाही मूल मंत्र बा।
आरक्षित के पदवी ऊंचा ,
भले ही मूर्ख चपाठ बा।
अनारक्षित लेके डिग्री,
चलल जा रहल बाट बा।
हमका समझीं, का समझाईं,
समझ-समझ के बात बा।
आरक्षण दे लड़वावे के
क ह केकर हाथ बा।

**************

क्रिकेट में का बा..?

क्रिकेट में का बा!
बॉलिंग बा, बैटिंग बा,
हर बॉल प सेटिंग बा।
तबो बढ़त रेटिंग बा।
का बा!
क्रिकेट में का बा!
क्रिकेट क्रिकेट हल्ला बा।
सड़क,खेत, मुहल्ला बा।
कुल बच्चन के हाथ में,
विकेट, बॉल आ बल्ला बा।
का बा!
क्रिकेट में का बा!
मियां बीबी झगड़ा बा।
टीवी सेट के लफड़ा बा।
सीरियल मैच ला झगड़ा बा
का बा!
क्रिकेट में का बा!
बूढ़ा चाहे बच्चा बा।
रात दिन मैच देखत बा।
काम धाम सब छोड़ छाड़ के,
टीवी सेट में ढूकत बा।
का बा!
क्रिकेट में का बा!
हमरा नाहीं भावेला।
सभकर मन ललचावेला।
बॉल फे क, बैट से मा र।
दूसर कुछ ना बुझावेला।
का बा!
क्रिकेट में और का बा?

***********

चलो चलते हैं।
चलो चलते हैं,
दूर क्षितिज तक,
कि उस ओर,
शाम से पहले, 
पहुंच जाना है,
अपने घोसलों में,
एक परिंदे की तरह। 
अंतिम छोर पर,
सुकून की तलाश में,
एक शांत, स्थिर,
जिंदगी पाने के लिए,
संघर्ष करते हैं।
चलो चलते हैं।
दुनिया की भीड़ में,
भीड़ से अलग,
परेशानियों से भरी,
दौड़ती भागती जिंदगी,
अट्टहास करते सूनेपन में
अपनी खोई मासूमियत 
तलाश करते हैं।
चलो चलते हैं।
खोते बचपने के साथ,
अपनी रोजी रोटी के लिए,
घर से अलग थलग,
अपने आशियाने में,
चिड़ियों, चुनमुन, के साथ,
 गुजरे पल को,
 नया आकाश देते हैं।
चलो चलते हैं।
अब समेटना है,
अपनी सारी भावनाएं,
सारी जरूरतें,
छोटी बड़ी इच्छाएं,
भूली बिसरी यादें,
संबंधों की मालाएं,
एहसासों में पिरोते हैं।
चलो चलते हैं।
सुखद एहसासों को ले
नए भोर की ओर
स्वागत करते हैं,
नई उम्मीदों की रोशनी का।
एक बार फिर से,
अपनी उड़ान भरते हैं।
चलो चलते हैं।

********************

चारदीवारी और एक छत है,
हर मकां भी तो घर नहीं होता!

आभाव जहां है मोहब्बत का,
 दुरत्व हृदय में ठहरा है।
मानों! वह एक खंडहर है,
वहां भूतकाल का पहरा है।।

हर बात छुपाना अपनों से, 
गैरों को अपना बना लिया।
हर रोज महाभारत रचते,
अपनों को नीचा दिखा दिया।।
मानव तन पाषाण हृदय है,
उसमें नागफणी का डेरा है।।

मियां बीबी ऑफिस ऑफिस, 
बच्चे पलते हैं दाई से।
मां पिता वृद्धा आश्रम में, 
भाई बन्धु लगते कसाई से।।
हर रोज सुबह होती है फिर भी,
 घन तिमिर का डेरा है।।

खून हुआ हो हर रिश्ते का, 
क्या ऐसा ही घर होता है?
हर रोज फजर के आते ही, 
तन्हाई का डर होता है।।
चाह फकत सब साथ रहें,
पर यह कैसा अंधेरा है।।

चारदीवारी और एक छत से,
शायद ढका सब सर होता है।
पर बेकार की सोच है अपनी, 
हर मकान एक घर होता है।।

********************

इस दुनिया की अभिसंधि में 
दिल का जलना क्या जानों..।
ख़ामोश भरी तन्हाई में 
दिल को छलना क्या जानों..।।
कुछ बात थी मीठे सपनों में,
अरमान भरा ये दिल भी था..।
संगीत भरे थे नगमों में 
और सजा हुआ महफिल भी था..।।
तूफानों के एक मंजर से 
गुल का बिखरना क्या जानो..।।
और दिल के अरमानों का 
दिल से निकलना क्या जानो..।।
सूने दिल अंगनाई में 
तस्वीर किसी की अपनाना।
दूर करें तो ईर्ष्या हो, 
और आंख खुले तो पछताना
ख्वाब टूटते सागर में 
खो जाना तुम क्या जानो
टूटे साहिल के दामन में 
गोते लगाना क्या जानो।
यहां हसरतों के पर्वत पर 
आग लगाना पड़ता है
मुस्कानों के चिलमन में 
एक दर्द छुपाना पड़ता है
मुस्कानों के चिलमन में 
छुप जाना क्या जानो..।
और दिल के अरमानों का 
राख सजाना क्या जानो..।।

चलो शब्दों के जाल बुनते हैं..!

चलो शब्दों के जाल बुनते हैं।
मन की गहराइयों से ,
जिंदगी को सुनते हैं।
चलो शब्दों के जाल बुनते हैं।

तोड़ देते हैं बंधनों को,
मड़ोड़ के जज्बातों को,
पा लेंगे कभी तो मंजिल,
बहते जल से बह के,
छू लेंगे सूखे तट को,
भावनाओं के सागर से,
शब्दों के मोती चुनते हैं।
चलो शब्दों के जाल बुनते हैं।

एहसासों की गहराइयों में,
जिंदगी की लड़ाइयों में,
कोई पास आते हैं,
कोई दूर जाते हैं,
कुछ यादें रहती है,
कुछ भावनाएं रहते हैं।
कुछ अपने होते हैं,
कुछ सपने होते हैं।
सबको इकट्ठा करते हैं,
 ...............  चुनते हैं।
चलो शब्दों के जाल बुनते हैं। 

*********************

चिरप्रतीक्षा का अंत काल था 
एक  भावोदय जग आया था।
भंगीमा युक्त  निःशब्द भाव थे
मुखमंडल   लहराया था ।।
शोणित मस्तक अरूणाया सी
चिर प्रतिक्षित नजरें थी।
स्मृति का आलोक   हृदय में
अजस प्रेम की डगरी थी।।
प्रतिदानित थे भाव हृदय के
सोच न थी क्या पाया था।
परस्त हुई जब प्रेम की डगरी
घन तिमिर घिर आया था।।
जग वालों की लघु चेता से,
खण्डित मन का धैर्य हुआ।
पाप पंक से सने हृदय में,
मल कुष्ठा भर आया था।।
मेरे मन की व्याकुलता से
मेरा भी प्रतिकार हुआ।
तन्मयता में सोच भी अपनी
खंडहर का आकार हुआ।।
निःशब्द कोकिला के तानों को
कुष्ठित मन वाले क्या जाने।
प्रेमासक्ति निहित हृदय का
विनिमय करना क्या जाने।।
वह दूर हमें क्या कर लेंगे
रह दूर पास ही रहते हैं।
न सोचो काया ही संधि
मिलन मन संधि कहते हैं।।
 

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हम और हमारा देश 72वां गणतंत्र दिवस मना रहा है।
भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था तथा 26 जनवरी 1950 को इसके संविधान को आत्मसात किया गया, जिसके अनुसार भारत देश एक लोकतांत्रिक, संप्रभु तथा गणतंत्र देश घोषित किया गया।
26 जनवरी 1950 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण कर भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया। यह ऐतिहासिक क्षणों में गिना जाने वाला समय था। इसके बाद से हर वर्ष इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है तथा इस दिन देशभर में राष्ट्रीय अवकाश रहता है। इसे गणतंत्र, जनतंत्र या प्रजातंत्र भी कहा जाता है।जिसका मतलब क्रमशः लोगों द्वारा,जनता के द्वारा या प्रजा का शासन होता है।
सभी को गणतंत्र दिवस कि हार्दिक शुभकामनाएं।
भारत माता की जय।
वंदेमातरम्।
जय हिन्द।

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10 जनवरी
अभिसंधि की है यह दुनियां चलो बसा लें गांव कहीं।
ये जीवन है अभिभूत सा मिल जाए एक छांव कहीं।
जहां रात्रि का जीवन अमानिशा से दूर रहे।
जहां पूर्णिमा की सूर्खाई खिला यशस्वी फूल सा।
बादल के जल कण बन बरसो मन के रेगिस्तान में।
उदित हो उठे स्वर श्रृंखला मेरे गीतों की तान में।
अमूर्ति प्रेम संजीवनी रस में डूबी हुई कविता दे दो।
जिसको मन के कण-कण में भर उडूं गगन में मूल सा।
आज विश्व हिंदी दिवस पर मेरी  हिंदी कविता की चार लाइनें।

05 जुलाई 2021

आलेख :- रीमा पांडेय..!

राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल के बांग्ला भाषा के कवियों ने स्वामी विवेकानंद को याद किया
कोलकाता :- 05/07/2021. राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल इकाई ने अपने राष्ट्रीय धर्म का निर्वाह करते हुए 04 जुलाई 2021 को विवेकानंद के पुण्य तिथि पर उनको काव्यांजलि के रूप में भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए उनके द्वारा जग को दी गई संस्कृति की सीख को याद किया। कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष डॉ गिरिधर राय की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। पटल पर उपस्थित संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश मित्तल जी का परिचय पटल पर उपस्थित रचनाकारों और श्रोताओं से डा. राय ने करवाया। कार्यक्रम का सुन्दर संचालन तरुन कान्ति घोष ने किया। कार्यक्रम शुरु होने के पहले संस्था के महामन्त्री रामपुकार सिंह ने सभी रचनाकारों का परिचय पटल के श्रोताओं को देकर विवेकानंद को याद करते हुए बांग्ला भाषा में कहा कि जब तक सूरज चाँद रहेगा तब तक इन्हें दुनिया में हिन्द के गौरव के रुप में याद किया जायेगा।कार्यक्रम की शुरुआत शिप्रा सामन्त की मधुर सरस्वती वंदना से हुई।संस्था के उपाध्यक्ष डाँ.ऋषिकेष राय ने स्वामी जी पर अपने ज्ञानवर्द्धक वक्तव्य में कहा कि विवेकानंद जी ने मानवता और सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताये थे। इस अवसर पर उपस्थित मानिन्द रचनाकार राजीव कोटल (कोलकाता), शिप्रा सामन्त (शान्तिनिकेतन), सुशान्त महतो (पुरुलिया), स्वागता बसु (यादवपुर), विश्वरुप दास (वर्द्धमान), डाँ. ममता बनर्जी मंजरी (पुरुलिया) और तरुन कान्ति घोष (वीरभूम) ने बांग्ला भाषा में विवेकानंद पर केन्द्रित अपनी  - अपनी स्वरचित रचना सुनाकर पटल पर उपस्थित श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश मित्तल जी और राष्ट्रीय सह महामन्त्री महेश कुमार शर्मा ने काव्य गोष्ठी की प्रशंसा करते हुए सभी रचनाकारों को खूब सराहा और भविष्य में ऐसे कार्यक्रम करते रहने की कामना की। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि राष्ट्रीय कवि संगम युवा पीढ़ी को आगे लाने के लिये आंचलिक भाषाओं के साहित्य को समृद्ध बनाने के लिये अनवरत प्रयास करने के लिये संकल्पित है। कार्यक्रम के अन्त में प्रान्तीय मंत्री बलवंत सिंह ने सभी को हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित किये।श्रोता के रूप में कई जाने-माने साहित्यकार एवं काव्यरसिक भी उपस्थित थे।


         बिटिया की व्यथा..!
गोद में मुझको लेकर दुलारो ना माँ
मैं हूँ तेरी बिटिया बिसारो ना माँ
भैया को बुलाती हो तुम 'राजा बेटा'
'रानी बिटिया' मुझे भी पुकारो ना माँ।

माखन-मिश्री मुझे भी खिलाओ ना माँ
स्नेह का हाथ अब तो बढ़ाओ ना माँ
जूठन भाई के मुझको देती हो क्यों
खून के आँसू मुझको रुलाओ ना माँ।

नये कपङे मुझे भी दिलाओ ना माँ
मेरी गुङिया की शादी रचाओ ना माँ
खेलने-खाने के मेरे दिन हैं यही
मेरे बचपन को मुझसे चुराओ ना माँ।

कौन कहता है मैं कि परायी हूँ माँ
लक्ष्मी बन तेरे घर ही तो आयी हूँ माँ
खर्च मुझपर करने से क्यों तू डरे
भाग्य अपना खुद ले के आयी हूँ माँ।

ब्याह मेरा अभी तुम रचाओ ना माँ
बङी अफसर मुझे भी बनाओ ना माँ
नाम तेरा जगत में मैं रौशन करूँगी
मेरे साये से तुम घबराओ ना माँ।

रघुनाथ के देश में कोई भी अनाथ नही :- जगदीश मित्तल..!
गंगा दशहरा और पितृ दिवस पर राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल द्वारा भव्य काव्य गोष्ठी सम्पन्न..!
राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल ने अपने राष्ट्रीय कवि धर्म का निर्वहन करते हुए प्रख्यात हास्य - व्यंग कवि डाँ. गिरिधर राय की अध्यक्षता में गंगा दशहरा दिवस एवं पितृ दिवस के अवसर पर एक भव्य आभासी काव्य गोष्ठी का आयोजन किया। उत्तर कोलकाता जिलाध्यक्ष डाँ. अनिरुद्ध राय का लाजबाब संयोजन और अंजनी कुमार राय का कुशल संचालन का पटल पर उपस्थित सभी प्रबुद्ध साहित्य प्रेमियों ने समवेत स्वर में प्रशंसा किया। काव्य गोष्ठी की शुरुआत रीमा पान्डेय की माँ गंगें की मधुर वंदना से हुई। काव्य गोष्ठी में  राष्ट्रीय कवि संगम  के राष्ट्रीय अध्यक्ष शजगदीश मित्तल बाबू जी,पश्चिम बंगाल के प्रांतीय अध्यक्ष डाँ. गिरिधर राय, प्रान्तीय महामंत्री राम पुकार सिंह (सदा है गर्व बच्चों का सदा सम्मान होते है पिता/सदा ताकत भी है उनकी, सदा पहचान होते है पिता।) और प्रांतीय मंत्री बलवंत सिंह न केवल उपस्थित थें बल्कि उन्होंने गंगा दशहरा और पितृ दिवस को केन्द्रित करती अपनी स्वरचित रचना और वक्तव्य के माध्यम से समाज को महत्वपूर्ण संदेश दिये और साथ में उपस्थित रचनाकारों की हौसला अफजाई भी की।।आमंत्रित रचनाकार कामायनी संजय,चन्द्रिका प्रसाद पाण्डेय "अनुरागी", सीमा सिंह, रीमा पाण्डेय, डाँ. अरविन्द कुमार मिश्रा, अंजनी कुमार राय, संतोष कुमार तिवारी, शिव शंकर सिंह "सुमित"और कोमल चूड़ीवाल ने अपनी - अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ खूबसूरत अंदाज में करते हुए श्रोताओं की खूब वाह - वाही बटोरी।
राष्ट्रीय अध्यक्ष ने काव्य गोष्ठी की प्रशंसा करते हुए सभी रचनाकारों को खूब सराहा और भविष्य में ऐसे कार्यक्रम करते रहने की कामना की। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय कवि संगम युवा पीढ़ी को आगे लाने और साहित्य को समृद्ध बनाने के लिये अनवरत प्रयास करने के लिये संकल्पित है। कार्यक्रम के अन्त में दक्षिण कोलकाता के मंत्री अशोक कुमार शर्मा ने सभी को हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित की।श्रोता के रूप में कई जाने-माने साहित्यकार एवं काव्यरसिक भी उपस्थित थे।

जय माँ गंगे..!

पावन तुम हो हे माँ गंगे
उठती रहती तरल तरंगें
निशदिन तेरा ध्यान धरू
पतित पावनी हे माँ गंगे।

शिव जटा में खुद को समेटे
भगीरथ हैं माँ तेरे चहेते
भारत भूमि को गले लगाया
चरण-धूलि हम तेरे लेते।

सुख-समृद्धि को बिखराया
धरा को तूने स्वर्ग बनाया
तेरे बिन मिले न मुक्ति
तूने हमे निज गोद बिठाया।

पाकर तेरा स्पर्श हे माता
कण-कण पावन बन जाता
दया-दृष्टि तुम हम पर रखना
तेरा आँचल हमें है भाता।


महारानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना द्वारा काव्यांजलि..!
झांसी की रानी को राष्ट्रीय कवि संगम ने किया याद..!
राष्ट्रीय कवि संगम  पश्चिम बंगाल की उत्तर 24 परगना जिला इकाई ने अपने राष्ट्रीय कवि धर्म का निर्वाह करते हुए वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्हें काव्यांजलि समर्पित  करते हुए भव्य काव्य गोष्ठी का आयोजन ऑनलाइन संपन्न किया। प्रांतीय अध्यक्ष डॉ.गिरिधर राय की उपस्थिति में संयोजिका श्रीमती सुषमा राय पटेल के निर्देशानुसार संचालिका श्रीमती श्यामा सिंह ने अपने कुशल संचालन द्वारा काव्य गोष्ठी में चार चांद लगाया । 
उत्तर 24 परगना जिला इकाई की सह सचिव सुषमा राय पटेल ने अपने स्वागत भाषण के द्वारा कार्यक्रम को आगे बढ़ाया । काव्य गोष्ठी की शुरुआत सुदामी यादव की सरस्वती वंदना से हुई। काव्य गोष्ठी में  राष्ट्रीय कवि संगम  पश्चिम बंगाल के प्रांतीय महामंत्री राम पुकार सिंह, प्रांतीय मंत्री बलवंत सिंह, उत्तर 24 परगना के जिला अध्यक्ष  राजीव मिश्र  विशिष्ट अतिथि के रूप में न केवल उपस्थित थें बल्कि उन्होंने अपनी स्वरचित कविताओं  द्वारा महारानी लक्ष्मीबाई की  गाथा का गुणगान करते हुए आज की नारी को भी महारानी लक्ष्मीबाई बनने का संदेश दिया। 
आमंत्रित कवयित्रियों में उपस्थित रहीं  प्रेम शर्मा, रीता चंदा पात्रा, बिंदु मिश्रा, सुषमा राय पटेल, पुष्पा मिश्रा, सुदामी यादव , श्यामा सिंह ने अपनी कविताओं के द्वारा महारानी लक्ष्मीबाई की शौर्य गाथा को याद करते हुए आशा की नई किरण जगाई ।
 प्रांतीय अध्यक्ष ने काव्य गोष्ठी की प्रशंसा करते हुए अपने आशीष वचनों से सभी कवि कवयित्रियों को खूब सराहा और भविष्य में ऐसे कार्यक्रम की कामना की। उन्होंने यह भी कहा कि हम सभी को मिलकर  युवा पीढ़ी को आगे लाना है और साहित्य को समृद्ध बनाना है। धन्यवाद ज्ञापन किया पुष्पा मिश्रा ने । श्रोता के रूप में कई जाने-माने साहित्यकार एवं काव्यरसिक भी उपस्थित थे।

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राष्ट्रीय कवि संगम, केंद्रीय द्वारा विशेष कार्यक्रम (काव्यनाद) का आयोजन..!
13 जून, राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा एक विशेष कार्यक्रम, काव्यनाद का आयोजन किया गया।कार्यक्रम का शानदार संचालन एवं संयोजन राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय मंत्री एवं देश के सुप्रसिद्ध कवि श्री दिनेश देवघरिया जी ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रीय कवि संगम के हुगली जिला इकाई की उपाध्यक्ष कवयित्री रीमा पांडेय की सरस्वती वंदना एवं काव्य-पाठ से हुआ। कवियों में श्री अजय अनजान श्री महेश चंद्र मिस्र श्री पी के आजाद श्री जगदीश मोहन रावत श्री देवेंद्र परिहार एवं डॉ संगीता नाथ ने अपनी ओजस्वी रचनाओं से श्रोताओं की वाह-वाही बटोरी।काव्य-गोष्ठी में सम्मिलित रचनाकार राष्ट्रीय कवि संगम के विविध प्रांतों के पदाधिकारी भी हैं। कोरोना महामारी के बीच राष्ट्रीय कवि संगम, केंद्रीय के फेसबुक पेज पर आयोजित इस कार्यक्रम का प्रसारण संस्था के यूट्यूब चैनल पर भी हुआ। कार्यक्रम को सफल बनाने में राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगदीश मित्तल जी,राष्ट्रीय सह महामंत्री श्री महेश कुमार शर्मा जी, प्रांतीय अध्यक्ष डॉ गिरिधर राय जी, प्रांतीय महामंत्री राम पुकार सिंह जी, प्रांतीय मंत्री बलवंत सिंह जी आदि ने शुरू से अंत तक रचनाकारों की हौसला अफजाई कर प्रबुद्ध श्रोता के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

गौतम बुद्ध..!

बही जगत में करूणा धारा
मानवता को मिला सहारा
राजकुमार बना तब योगी
देखा वृद्ध, मृत औ रोगी।

राजमहल ना मन को भाया
राजगद्दी को भी ठुकराया
प्राप्त किया जब सच्चा ज्ञान
किया जन-जन का कल्याण।

बुद्ध ने रखा मन को शुद्ध
किया विकारों से वह युद्ध
जीवन उसका बना महान
सबने किया सदा गुणगान।

दूर किया अज्ञान का तम
छू न सका उसे कोई गम
बोधिवृक्ष हो गया अमर
शान्त हुआ जीवन समर।


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पर्यावरण दिवस पर राष्ट्रीय कवि संगम हुगली का भव्य कविसम्मेलन..!
6 जून, हुगली :- विश्व पर्यावरण दिवस 2021 की थीम- पारिस्थितिकी तंत्र
 की बहाली यानी इकोसिस्टम रीस्टोरेशन पर बोलते हुए अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल के अध्यक्ष डॉ. गिरिधर राय ने कहा विश्व को बचाना है तो हमें पेड़ लगाना होगा।पर आज मनुष्य कुल्हाड़ी से पेड़ काटकर छाया खोज रहा है। पर्यावरण क्षरण रोकने का एकमात्र उपाय है- अगर एक पेड़ कटता है तो दो नहीं तो कम से कम एक पेड़ अवश्य लगाया जाय। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय कवि संगम की हुगली जिला इकाई द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारंभ कवयित्री रीमा पाण्डेय के मधुर सरस्वती वंदना से हुआ। कवियों में राम पुकार सिंह "पुकार" गाजीपुरी ने कहा-  प्रदूषित कर- कर के पर्यावरण अभिमान करते हैं,/निरा बुद्धु हैं दिखावे में हम यूँ ही नुकसान करते हैंं , राम जीत राम 'उन्मेष' , कमलेश मिश्रा, रीमा पाण्डेय , संजीव कुमार दुबे , शिव प्रकाश दास , देवेश मिश्रा , राजेश कुमार श्रीवास्तव , उमेश कुमार श्रीवास्तव एवं रंजन कुमार मिश्रा ने पर्यावरण संबंधी अपनी कविताओं से जन जागरण के संदेश के साथ सभी श्रोताओं की वाह - वाही बटोरी । कार्यक्रम का कुशल संचालन उमेश कुमार श्रीवास्तव ने किया । अन्त में अपने धन्यवाद ज्ञापन में राष्ट्रीय कवि संगम के प्रांतीय मंत्री बलवंत सिंह ने पर्यावरण संरक्षण के महत्व पर अपने विचार  साझा करते हुए सभी मानिन्द रचनाकारों की पर्यावरण संरक्षण पर संदेश देती हुई स्वरचित रचनाओं की प्रशंसा की। कोरोना महामारी के बीच गूगल मीट पर आयोजित इस कार्यक्रम को सफल बनाने में कमल कुमाय पुरोहित "अपरिचित", चन्द्रिका प्रसाद पाण्डेय "अनुरागी", कामायनी संजय, डाँ. अरविन्द कुमार मिश्रा, सीमा सिंह, अशोक कुमार शर्मा, रामाकान्त सिन्हा, सुषमा राय पटेल, विष्णु प्रिया त्रिवेदी, रीना पाणडेय, आलोक चौधरी, ज्योति झा और ज्योति पाण्डेय ने शुरु से अंत तक रचनाकारों की हौसला अफजाई कर प्रबुद्ध श्रोता के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

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प्रकृति के गीत..!

नदियाँ देती है संदेश
आओ मेरे मन के देश 
मैं हूँ जोश से भरपूर
आलस को रखती हूँ दूर।

झरने कहते गीत सुनाओ
देखो अब तुम रुक ना जाओ
हरदम तुम चलते ही रहना 
खुशियों की धारा में बहना।

पर्वत कहता डटे ही रहना
दुख को भी हँसकर  सहना
बधाएँ जायेंगी हार
होगा तेरा बेङा पार।

जंगल करते ध्यान लगाओ
पहले अपने भीतर जाओ 
रहना कोलाहल से दूर
एक दिन होगे तुम मशहूर।

सूरज कहता तपते रहना
सुख की दरिया में ना बहना
दुख तुमको है रोज तपाता 
लोहे- सा मज़बूत बनाता।


एक प्रेरक व्यक्तित्व..!

3 मई की मनहूस सुबह 5:30 बजे मोबाइल का रिंगटोन बज उठा।मैंने यह
 सोचकर डरते-डरते फोन रिसीव किया कि आखिर स्नेहा राय जी ने इतनी सुबह फोन क्यों किया! रोते हुए स्नेहा राय जी ने कहा-"रीमा दी मेरे पति नहीं रहे"
 मैं इतना ही कह पायी- "स्नेहा जी आप अपनी बिटिया के लिए अपने को मजबूत बनाएँ, अपने को संभाले" फोन कट गया, मैं लगभग आधे घंटे जड़वत् आँसूओं में डूबी बैठी रही।
स्नेहा जी के पति पिछले 10-15 दिनों से कोरोना संक्रमित होकर नर्सिंग होम में भर्ती थे। उनका पूरा परिवार संक्रमित हो गया था, वह स्वयं इस बीमारी को मात देकर पूरे परिवार की सेवा कर रही थी, इसके अलावा रांची के कई जरूरतमंद परिवार की भी मदद कर रहे थी।
 मेरा बेटा भी कोरोना संक्रमित हो गया था, स्नेहा जी स्वयं इतनी परेशानियों में रहते हुए भी फोन करके मेरे बेटे का हाल-चाल अवश्य पूछती थी।
स्नेहा जी हिंदी साहित्य परिषद के झारखंड शाखा की अध्यक्ष हैं मैंने उन्हें हमेशा प्रतिभाशाली परिश्रमी और मज़बूत महिला के रूप में देखा है,उन्हें हिंदी साहित्य परिषद का आधार स्तंभ कहा जाता है।उनके पति रांची में कंस्ट्रक्शन व्यवसाय में थे, इस व्यवसाय में उनकी गहरी पैठ थी। मां लक्ष्मी की कृपा उन पर बनी रही, महज 42 साल की उम्र में उनके निधन से परिवार की अपूरणीय क्षति हुई।
 4-5 दिनों तक मैं चाह कर भी उन्हें फोन नहीं कर पाई। वास्तव में मैं सांत्वना के एक भी शब्द नहीं जुटा पा रही थी, मैं ईश्वर से प्रार्थना करती थी कि स्नेहा जी को इतनी हिम्मत मिले कि वह अपनी बिटिया के लिए माता-पिता दोनों की भूमिका निभा पाए। उन्होंने 5-6दिनों बाद स्वयं फोन किया, उनकी आवाज में गजब का आत्मविश्वास था ।उन्होंने मुझे कहा- "रीमा दी,आपकी आवाज़ में इतनी उदासी क्यों? फिर उन्होंने कहना शुरू किया- "मैंने अपने मन को मजबूत कर लिया है दी, 3 दिनों बाद श्राद्ध कर दिया।" मैंने कहा- "12-13 दिनों बाद किया जाता है ना? उन्होंने कहा- "दीदी आर्य समाजी नियम के तहत 3 दिनों में किया जाता है" मैंने पूछा- आप लोग आर्यसमाजी हैं ?उन्होंने कहा-"नहीं दी, मुझे अपने घर से शोक का माहौल हटाना था,अपने सास-ससुर और बिटिया को नकारात्मकता से बचाना था, मेरा भाई इस हादसे को देख बार-बार बेहोश हो रहा था मेरे माता-पिता टूट गए हैं, यदि मैं टूट गयी तो मेरा पूरा परिवार बिखर जाएगा।"उन्होंने अपने आसपास के कई ऐसे परिवारों का जिक्र किया   जिन्हें कोरोना ने बरबाद कर दिया ,जैसे एक परिवार में कोरोना संक्रमित होकर पिता अस्पताल में थे, मां कोरोना संक्रमित होकर घर ही दम तोड़ देती है, घर आने पर पिता को जब यह पता चलता है कि उनकी पत्नी नहीं रही, वह सदमे को सहन नहीं कर पाए और  हृदयगति रुकने से उनकी भी मौत हो गई तथा बच्चे अनाथ हो गयें। 
उन्होंने आगे कहा-"मुझे बेटी की परवरिश करनी है, सास-ससुर का सहारा बनना है, अपने माता पिता और भाई को भी टूटने नहीं देना है।" स्नेहा जी से बातें कर मन बहुत हल्का हो गया, उनके मन को सबल बनाने के लिए मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया, एक दिन उनका फोन आया, उन्होंने मुझे बताया-"मैंने पति का कंस्ट्रक्शन का कारोबार संभाल लिया है, महिलाओं के लिए यह  आसान नहीं है, अतः मैंने एक सशस्त्र बॉडीगार्ड भी रखा है, मैं अपने पति के प्रत्येक प्रोजेक्ट को पूरा करुँगी। कुछ परिचित और कुछ परिवार के सदस्य कह रहे हैं कि इस व्यवसाय में फँसे पैसे निकालो और इस कंस्ट्रक्शन के धंधे से अलग रहो,लेकिन मैं पीछे नहीं हटूँगी, मैं किसी से नहीं डरती हूँ।" 
उन्होंने आगे कहा- "मैं पति की तस्वीर के आगे दीया नहीं जलाती, फूल माला भी नहीं चढ़ाती। मेरी 5 वर्षीय बिटिया यह सब करती है ,मैं उसी दिन दीया जलाऊँगी जब उनके सभी प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक पूरे करूँगी।" उनकी आत्मविश्वास से परिपूर्ण बातें सुनकर मैंने मन ही मन उन्हें सैल्यूट किया। मुझे झाँसी की रानी याद आई ,उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी हार ना मानते हुए कहा था- "मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी तथा अंत तक मैदान में डटी रही। आधुनिक रांची की रानी स्नेहा राय ने कहा चाहे जितनी विषम परिस्थितियाँ आयें, मैं पीछे नहीं हटूँगी, मैं हार नहीं मानूँगी।" कई लोगों के लिए प्रेरक व्यक्तित्व स्नेहा राय को सैल्यूट है।


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कोरोना..!

कोरोना ने बहुत सताया
इसने हमको खूब रुलाया
कितने संगी हमसे छूटे
स्वर्णिम सपने भी हैं टूटे।

कोरोना बना है काल
कलंकित है इसका भाल
कितने बच्चे हुये अनाथ
छूट गया अपनों का साथ।

कोरोना की कलुषित कहानी
भय में जीता है हर प्राणी
आओ!इसे भगायें दूर
सावधानी रखें भरपूर।

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रामनवमी के पावन अवसर पर 'राष्ट्रीय कवि संगम' पश्चिम बंगाल के हुगली जिले का भव्य कवि सम्मेलन..! 
श्रीराम तू है, तो है ख्वाब सभी / तुझसे बढ़कर कोई ख्वाब नही :- पुकार गाजीपुरी..!
हुगली, 21 अप्रैल :- राष्ट्रीय कवि संगम, पश्चिम बंगाल के हुगली जिला इकाई द्वारा रामनवमी के पावन अवसर पर एक भव्य कविसम्मेलन प्रांतीय अध्यक्ष डॉ.गिरिधर राय की अध्यक्षता और हुगली जिला उपाध्यक्ष रीमा पाण्डेय के कुशल संचालन  में यह गूगल मीट डिजिटल पटल पर आयोजित हुआ।प्रारंभ में प्रान्तीय अध्यक्ष डॉ.गिरिधर राय और प्रान्तीय महामंत्री राम पुकार सिंह ने बड़ाबाजार लाइब्रेरी के पूर्व अध्यक्ष प्रख्यात रंगकर्मी स्वर्गीय विमल लाठ के याद में उनको श्रद्धान्जलि अर्पित किये, फिर उनकी आत्मा के शान्ति के लिये दुर्गा व्यास, अनिल ओझा नीरद, रामाकांत सिन्हा सहित पटल पर उपस्थित सभी लोगों ने एक मिनट का मौन रखा।कवि सम्मेलन की शुरुआत आलोक चौधरी की श्रीराम वंदना -- "रघुनन्दन का जन्मोत्सव है ,आओ झूमें गाये"के मधुर गायन से हुआ। कवि सम्मेलन में गिरिधर राय ने अपनी कुंडली सुनाया- -''बाबा तुलसी रच गये मानस अद्भुत ग्रन्थ/ जिसको पढ़ने से मिले अंधियारे में पंथ",रामपुकार सिंह "पुकार" गाजीपुरी ने कहा-  "लिये अवतारथे प्रभु धर्म भी तो उसका निभाना था, पिता की आज्ञा पाकर वन- गमन तो इक बहाना था।" , बलवंत सिंह ने कहा " राघव तुमको आना होगा" और रीमा पाण्डेय ने "हे राम तेरा रास्ता निहारा करू / दिन- रात मै तुझको पुकारा करू" की मधुर प्रस्तुति दी।काव्य गोष्ठी में शामिल अन्य प्रमुख कवि शिव शंकर सिंह, चंद्रिका प्रसाद पांडेय, देवेश मिश्र, और डॉ.अरविंद कुमार मिश्रा ने अपनी-अपनी स्वरचित कविता से राम का रंग ऐसा रंगा कि सभी श्रोतागण राम भक्ति में  लीन हो राममय होकर झूम उठे।इस अवसर पर उपस्थित राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश मित्तल जी और राष्ट्रीय सह- महामंत्री महेश कुमार शर्मा जी ने इस कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई दी।अन्त में प्रांतीय मंत्री बलवंत सिंह गौतम ने सभी कवियों, अतिथियों और श्रोताओं को अपना अमूल्य समय देकर कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु हार्दिक धन्यवाद ज्ञापन किया।

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प्रख्यात रचनाकार स्वर्गीय प्रोफेसर श्यामलाल उपाध्याय जी की रचनाओं का सस्वर पाठ..!
18 अप्रैल,कोलकाता साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था धरोहर द्वारा प्रख्यात रचनाकार,प्रखर शिक्षाविद् तथा अत्यंत लोकप्रिय व्यक्तित्व स्वर्गीय प्रोफेसर श्यामलाल उपाध्याय जी की रचनाओं के सस्वर पाठ का ऑनलाइन आयोजन किया गया। प्रोफेसर उपाध्याय जी की रचित सरस्वती वंदना से रीमा पांडे ने कार्यक्रम की शुरुआत की।आचार्यश्री की रचनाओं का सस्वर पाठ करने वालों में रीमा पांडे, विजय शर्मा विद्रोही, आशुतोष कुमार रावत,एवं मौसमी प्रसाद शामिल रहें। कार्यक्रम का सफल संचालन तथा धन्यवाद ज्ञापन धरोहर संस्था के संस्थापक रासबिहारी गिरि जी ने किया। संयोजन शिव शंकर सिंह 'सुमित' जी ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में रीता श्रॉफ जी की भूमिका उल्लेखनीय रही।

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राष्ट्रीय कवि संगम बंगाल में नवसंवत्सर का आयोजन..!
कोलकाता,14 अप्रैल - राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल और इसकी इकाई ने पूरे उत्साह के साथ नवसंवत्सर का आगमन किया और गूगल मीट डिजिटल पटल पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी में कोलकाता के गणमान्य डॉ• गिरिधर राय (अध्यक्ष, पश्चिम बंगाल),श्री आर पी सिंह (महामंत्री, पश्चिम बंगाल) तथा श्री बलवंत सिंह (मंत्री,पश्चिम बंगाल) की उपस्थिति में मीना शर्मा (अध्यक्ष, दक्षिण 24 परगना) के स्वागत भाषण से कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ। श्रीमती रीमा पाण्डेय ने सरस्वती वंदना गायन प्रस्तुत किया। गोष्ठी में शामिल अन्य रचनाकार थे- डॉ• गिरिधर राय, श्री बलवंत सिंह,श्री आर पी सिंह, अरविंद कुमार मिश्रा, निहारिका सिंह,अंजलि मिश्रा, देवेश मिश्रा,रमाकांत सिन्हा, निखिता पाण्डेय,अभिषेक पाण्डेय, रीमा पाण्डेय,सुषमा राय पटेल,सीमा सिंह,मीना शर्मा एवं जयप्रकाश पाण्डेय उपस्थित थे।
निखिता पाण्डेय और अभिषेक पाण्डेय ने बड़ी कुशलता से पूरे कार्यक्रम का संचालन किया। पश्चिम बंगाल के प्रांतीय अध्यक्ष श्री गिरिधर राय ने अपनी उपस्थिति के साथ सभी का उत्साहवर्द्धन किया और अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए नए वर्ष की शुभकामनाएं दी तथा प्रांतीय मंत्री बलवंत सिंह ने युवा रचनाकारों से जुड़ी संभावनाओं को प्रोत्साहित किया। पश्चिम बंगाल के महामंत्री श्री राम पुकार सिंह ने अपनी आशावादी कविता के माध्यम से इस विकट परिस्थिति में स्वयं को सुरक्षित रखने की सलाह दी। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन प्रांतीय मंत्री श्री बलवंत सिंह ने किया।


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राष्ट्रीय कवि संगम बंगाल का होली काव्य संगम सम्पन्न..!
(कक्षा एक से एम.ए तक के विद्यार्थियों ने भाग लिया)
प्राइमरी से विश्वविद्यालय तक के विद्यार्थियों ने राष्ट्रीय कवि संगम बंगाल के मंच पर काव्यपाठ किया..!
राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल का सतरंगी कार्यक्रम
कोलकाता 31 मार्च।
"सभी रंगों का रास है होली/मन का उल्लास है होली"
यह आनन्द का उत्सव सत्य ही एकता और भाईचारे का संदेश लेकर आता है, और इसी संदेश को साझा करने के लिए राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल ने राज्य के विभिन्न विद्यालयों और विश्वविद्यालयों के  विद्यार्थियों को आभासीय मंच दिया जहाँ कक्षा प्रथम  से लेकर विश्वविद्यालय तक के विद्यार्थियों ने पूरे उत्साह के साथ संकलित तथा स्वरचित कविताओं का पाठ किया । इस अवसर पर बाल वर्ग तथा युवा वर्ग की प्रस्तुति नई संभावनाओं की ओर संकेत कर रही थी जहाँ संस्कारों की सुदृढ़ नींव का परिचय प्राप्त हुआ । राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल के दक्षिण कोलकाता, दक्षिण 24 परगना तथा मध्य कोलकाता इकाइयों द्वारा होली के शुभ अवसर पर एक आभासी  काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ। इस गोष्ठी में कोलकाता के गणमान्य विद्यालयों कॉलेज तथा विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. गिरिधर राय (अध्यक्ष पश्चिम बंगाल), श्री आर पी सिंह(महामंत्री पश्चिम बंगाल) तथा मुख्य वक्ता श्री बलवंत सिंह (मंत्री पश्चिम बंगाल) की उपस्थिति में मीना शर्मा (अध्यक्ष दक्षिण 24 परगना) के स्वागत भाषण से कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ।
मृदुल मिश्र (डीपीएस) ने सरस्वती वंदना की तथा ओलिप्रिया मंडल (द वेदांता अकैडमी) ने श्री राधा रानी का स्तुति  गायन प्रस्तुत किया । प्रतिभागी विद्यार्थियों में- 
 अर्जिंक्य कुमार सिंह (डॉन बॉस्को बेंडिल) शशांक सिंह, आरव आर्य (ला मार्टिनियर फॉर बॉयज), अरिनेश देवनाथ (द न्यू टाउन), शुभ्रजीत मुखर्जी, साक्षी सिंह (द वेदांता अकैडमी), देवायना भौमिक (भवन्स), करिश्मा समाद्दार (ऑग्ज़ीलियम कन्वेंट),श्रांतिका  मारिक  (पूर्वांचल विद्या मंदिर), प्रकृति मिश्रा (वैलेंड गोल्डस्मिथ, मृदुल मिश्रा, पायल सिंह, देवांशी विमूरी (डीपीएस न्यूटाउन), वार्तिक रैना, स्वास्तिका चक्रबर्ती  (बीडीएम इंटरनेशनल), अजलि रजक (प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय), अभिषेक पांडे, रवि बैठा (कलकत्ता विश्वविद्यालय), आदर्श ओझा (सुरेंद्रनाथ कॉलेज बैरकपुर) कीर्ति राय, गरिमा गुप्ता (राजस्थान विद्या मंदिर)  रिद्धि पाठक, श्रेया पाठक (नेशनल इंग्लिश स्कूल) नितिक निराला, अनुष्का दत्ता (इंदिरा गांधी मेमोरियल) तथा निखिल पांडे (पश्चिम बंगाल राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बारासात) । कार्यक्रम की विशेष बात यह थी कि कक्षा एक(1) से लेकर विश्वविद्यालय के स्तर तक के विद्यार्थियों ने पूरे उत्साह के साथ हिस्सा लिया ।
नीहारिका सिंह (दक्षिण कोलकाता उपाध्यक्ष) ने बड़ी कुशलता और सुगमता से पूरे कार्यक्रम का संचालन किया ।पश्चिम बंगाल के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. गिरधर राय  ने कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति के साथ विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन किया तथा प्रांतीय मंत्री श्री बलवंत सिंह ने नई संभावनाओं को प्रोत्साहित किया । कार्यक्रम में उपस्थित विशेष अतिथि साहित्यकार लेखिका "नारी रत्न अवॉर्ड-2021" से अलंकृत श्रीमती मल्लिका रूद्रा जी (छत्तीसगढ़) ने विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि काव्य प्रस्तुति करते समय भाव संप्रेषण का विशेष ध्यान रखना चाहिये । रंगों की व्याख्या कररती हुई उन्होंने रंगों के विभिन्न आयामों को समझया । पश्चिम बंगाल के (महामंत्री ) राम पुकार  ने भोजपुरी गीत के माध्यम से सभी को बधाइयाँ दी । मीना शर्मा (अध्यक्ष दक्षिण 24 परगना), सीमा सिंह (अध्यक्ष दक्षिण कोलकाता) , निहारिका सिंह (उपाध्यक्ष दक्षिण कोलकाता) तथा सुदामी यादव ( नॉर्थ चौबीस परगना) ने अपनी रचनाएं  प्रस्तुत  की और  विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया । 

कार्यक्रम की सफलता का श्रेय प्रांतीय अध्यक्ष डॉ गिरिधर राय  को, प्रांतीय महामंत्री श्री राम पुकार जी को, प्रांतीय मंत्री श्री बलवंत सिंह गौतम जी को जाता है जिनकी अनुप्रेरणा से यह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ । तीनों इकाइयों के सदस्यों का प्रयास सराहनीय था । दक्षिण कोलकाता-सीमा सिंह (अध्यक्षा) नीहारिका सिंह (उपाध्यक्षा) श्री उमेश पांडे,  श्री अशोक कुमार  शर्मा,,  श्री विशाल सिंह और सुधा सिंह । दक्षिण चौबीस परगना से मीना शर्मा (अध्यक्षा) उमा अगरवाल (उपाध्यक्षा) , रूमा गुप्ता, विनय ओझा तथा इवा अगरवाल और मध्य कोलकाता से श्री रामा कांत सिंहा जी (अध्यक्ष), अनूप यादव  श्यामा सिंह और प्रतीक प्रवीन जी भी जुड़े थे l अन्य जिला के पदाधिकारियों ने भी इस कार्यक्रम में जुड़ कर सभी का हौंसला बढ़ाया। 
अंजलि मिश्रा (पश्चिम बंगाल कोषाध्यक्ष) ने धन्यवाद ज्ञापन देते हुए सभी प्रतिभागियों तथा उनके अभिभावकों के प्रति आभार व्यक्त किया। इस तरह होली का यह आभासीय कार्यक्रम सफल और सार्थक रहा l

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दर्द देश का देख रहा हूँ वही तुम्हें दिखलाऊँगा :- गिरिधर राय..!
राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल द्वारा शहीदों को आभासी काव्यांजलि..!
कोलकाता :- 24/03/2021. राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल इकाई ने अपने राष्ट्रीय धर्म का निर्वाह करते हुए 23 मार्च2021 को  बलिदान दिवस पर अमर शहीदों को काव्यांजलि के रूप में भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए उनकी वीरता भरी शहादत को  याद किया । कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष डॉ गिरिधर राय की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन देवेश मिश्र ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित थे पश्चिम बंगाल इकाई के महामंत्री रामपुकार सिंह, सुषमा राय पटेल, रीमा पांडे एवं  सुदामी यादव ।
कार्यक्रम की शुरुआत रीमा पांडे  की सरस्वती वंदना "हे माता शारदे ढेर सारा प्यार दे" से हुई। सुदामी यादव ने "हे भारत के अमर शहीदों तुम्हें नहीं बिसराएंगे " कविता द्वारा शहीदों को काव्यांजलि समर्पित की।  सुषमा राय पटेल जी ने "मेरा रंग दे बसंती चोला " कविता का पाठ कर अमर शहीदों को याद किया। संचालक  देवेश मिश्र ने बीच-बीच में अमर शहीदों की वाणी का  स्मरण कराते हुए   शहीदों को अपनी काव्यांजलि  देते रहें। महामंत्री  रामपुकार सिंह ने अपनी कविता " हँसकर झूला फासी पर, सचमुच का मर्दाना था" द्वारा शहीदों की वीरता का बखान करते हुए अपनी काव्यांजलि समर्पित की। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष डॉ. गिरिधर राय  ने वीर शहीदों की कुछ बातों का स्मरण कराते हुए "जिस झूले पर झूल गए भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, खुदीराम मैं झूला वहीं झुलाऊंगा" सुनाकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।अंत में देवेश मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन  किया।

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सचेतन नागरिक मंच ने मातृशक्ति कवयित्री सम्मेलन का आयोजन किया..!
कोलकाता :- 24/03/2021. सचेतन नागरिक मंच ने 23 मार्च, 2021 को मातृशक्ति कवयित्री सम्मेलन का आयोजन किया। कार्यक्रम की शुरुआत रीमा पांडे की सरस्वती वंदना से हुई। काव्य पाठ में शामिल मातृशक्तियाँ थीं- रीमा पांडेय, रजनी मूंधङा मौसमी प्रसाद, शालिनी सिंह तथा ममता कुमारी। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती सुनीता सिंह ने की तथा संयोजन विजय शर्मा विद्रोही ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में सचेतन नागरिक मंच के सदस्यों का विशेष योगदान रहा।

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नारी तेरी क्या पहचान, रखती हो क्या अपना मान...।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर काव्य गोष्ठी का आयोजन..!
महिलाओं के सम्मान में साहित्यिक संस्था जी धरोहर संस्था ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया। काव्य गोष्ठी का शुभारंभ रीमा पांडे द्वारा सरस्वती वंदना के साथ किया गया।नारी शक्ति पर आधारित कविता पाठ करने वाले कवियों में शामिल कवयित्रियाँ थीं- प्रेम शर्मा ,रीमा पांडे, सुषमा राय पटेल सुदामी यादव,सुषमा राय पटेल तथा कामायनी पांडे। प्रेम शर्मा ने नारी शक्ति के सम्मान में दो शब्द कहें। कार्यक्रम का सफल संचालन जी धरोहर संस्था के संस्थापक रास बिहारी गिरि ने किया।

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कविता में भार और धार के साथ वार भी होना चाहिए..!
राष्ट्रीय कवि संगम का द्वितीय प्रांतीय अधिवेशन संपन्न..!
कोलकाता :- 08/03/2021. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की धरोहर बड़ाबाजार लाइब्रेरी के लिए दिनांक 7 मार्च शुभांक 7 में बदल गया। रविवार को आचार्य विष्णुकांत शास्त्री  सभागार में राष्ट्रीय कवि संगम की पश्चिम बंगाल इकाई का द्वितीय प्रांतीय अधिवेशन एवं एक सफलतम कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। अधिवेशन दो सत्रों में सम्पन्न हुआ। अधिवेशन की अध्यक्षता राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमान जगदीश मित्तल जी द्वारा की गई। मंच पर उपस्थित सम्मानित अतिथियों में  राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय मंत्री दिनेश देवघरिया जी, प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. गिरधर राय ,  चेयरमैन एवं डी एच टी सी इंडिया के सी एम डी श्री के के बंसल जी, अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त मोटिवेशनल स्पीकर श्री सूर्या सिन्हा जी एवं सुप्रसिद्ध समाजसेवी श्री के के सिंघानिया जी एवं डॉ.ऋषिकेश राय उपस्थित थे। उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों ने दीप प्रज्वलित किया और माँ सरस्वती के चरणों में पुष्प अर्पित किया।
अधिवेशन का शुभारंभ रीमा पाण्डेय द्वारा मधुर स्वर में गाए सरस्वती वंदना से हुई। स्वागत भाषण ऋषिकेश राय जी द्वारा दिया गया एवं कार्यक्रम का संचालन प्रांतीय मंत्री बलवंत सिंह ने किया।
सुप्रसिद्ध मेटिवेशनल स्पीकर श्री सूर्या सिन्हा जी ने कवियों की क्षमता का बखान करते हुए कहा कि कवि सिर्फ कविताओं से ही हमें परिचित नहीं करवाता है बल्कि उसकी कलम में इतनी ताकत होती है कि वह पूरे ब्रहमांड को अपने शब्दों में समेट लेता है। उनके संबोधन की सराहना लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट से की। काव्य पाठ करने वाले कवियों में  सीमा सिंह, रामाकांत सिन्हा, रंजन मिश्रा, रीमा पाण्डेय,संजय शुक्ल, कामायनी संजय, देवेश मिश्रा,श्यामा सिंह,न्नदलाल रोशन, निशंक उपाध्याय, मोहन चतुर्वेदी, शिवशंकर सिंह, रासबिहारी गिरि,विजय शर्मा, अनुराधा सिंह, सुषमा राय पटेल, सुदामी यादव, विष्णुप्रिया त्रिवेदी, चंद्रिका प्रसाद पांडे , नंदलाल रौशन, राम पुकार सिंह, ऋषभ द्विवेदी,विनय ओझा,कृष्ण कुमार दुबे,दीपा ओझा, पूजा दास,रवि बैठा, सागर शर्मा ,सुशील कुमार, राम अवतार सिंह, अजय सिंह, निहारिका सिंह, ऋषभ त्रिवेदी मीना शर्मा,रजनी मुंधरा, रामप्रवेश प्रसाद, रंजीत प्रसाद,प्रेम शर्मा, रंजन कुमार मिश्रा, शकील गोंडवी,अंजलि मिश्रा, संजीव कुमार दुबे नंदकिशोर झा, गजेंद्र नाहटा, शिव प्रकाश दास, मंजू बेज, दीपक सिंह, उमा अग्रवाल विश्वरूप साह आदि थे। राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगदीश मित्तल जी ने कहा कि युवा रचनाकारों तथा क्षेत्रीय भाषा के कवियों को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, उन्होंने उपहार स्वरूप प्रांतीय अध्यक्ष डॉ गिरधर राय जी को एक मोतियों की माला पहनाई जो सबके बीच आकर्षण का केंद्र बना रहा। राष्ट्रीय मंत्री श्री दिनेश देवरिया जी ने अपनी कविता 'जय काली कलकत्ते वाली' के मनमोहक पाठ से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कवियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि हमें ऐसा लिखना चाहिए कि लोग कहें कि आप और पढ़िए हम सुनना चाहते हैं ।प्रांतीय महामंत्री रामपुकार सिंह ने संस्था की गतिविधियों और भावी योजनाओं की जानकारी दी तथा सभी गणमान्य लोगों के सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष मित्तल जी ने डॉ गिरधर राय के संयोजन तथा कार्य प्रणाली की भूरि-भूरि प्रशंसा की। कार्यक्रम के द्वितीय सत्र का शुभारंभ कामायनी संजय द्वारा किए गए राष्ट्र वंदना से हुआ।द्वितीय सत्र का संचालन डॉ.ए.पी राय, देवेश मिश्र,रीमा पांंडेय तथा सीमा सिंह ने किया। सभी कवियों को राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश जी मित्तल एवं राष्ट्रीय मंत्री दिनेश देवघरिया जी द्वारा सम्मानित किया गया। इसके पश्चात नगर के प्रायः 75 कवियों ने पूरे जोश और उत्साह के साथ अपना काव्य पाठ किया। संगठन के सभी कार्यकर्ताओं ने कार्यक्रम को सफल बनाने में सक्रिय भूमिका निभाई।एन सी सी ने अतिथियों के स्वागत में प्रमुख भूमिका निभाई।कार्यक्रम में कोरोना काल के सभी नियमों का पालन किया गया। धन्यवाद ज्ञापन प्रांतीय सलाहकार संजय शुक्ल ने किया।कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान से किया गया।

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दर्द देश का देख रहा हूँ वही तुम्हें दिखलाऊँगा..!!
राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा चंद्रशेखर आजाद को काव्यांजलि..!
कोलकाता :- 27 फरवरी 2021. राष्ट्रीय कवि संगम पश्चिम बंगाल द्वारा भारत माता के सच्चे सपूत चंद्रशेखर आजाद को उनकी पुण्यतिथि पर प्रांतीय अध्यक्ष डॉ गिरिधर राय की अध्यक्षता में देशभक्ति से ओतपोत कविताओं द्वारा  काव्यांजलि दी गई। कार्यक्रम की शुरुआत रीमा पांडे द्वारा मधुर स्वर में सरस्वती वंदना से की गई। इसके बाद एक से बढ़कर एक देशभक्ति से परिपूर्ण रचनाओं का पाठ किया गया। काव्य पाठ में शामिल कवि थे- राम पुकार सिंह,रीमा पांडे, आलोक चौधरी, संजय शुक्ल, देवेश मिश्रा ।कार्यक्रम का सफल संचालन देवेश मिश्र ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन रामपुकार सिंह ने किया।

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मासिक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन..! 
कोलकाता :- 25 फरवरी 2021. पूर्वोत्तर भारत की प्राचीनतम लाइब्रेरी, (बड़ा बाजार लाइब्रेरी) के आचार्य विष्णुकांत शास्त्री सभागार में आयोजित मासिक साहित्यिक गोष्ठियों के अंतर्गत प्रख्यात गीतकार डॉ० बुद्धिनाथ मिश्र (देहरादून) की अध्यक्षता में एक सफल काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें शहर के गणमान्य कवियों ने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं से साहित्य के रसिक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था  l कार्यक्रम का प्रारंभ श्रीमती रीमा पांडे  द्वारा मधुर स्वर में गाए गए सरस्वती वंदना से हुआ, तत्पश्चात उपस्थित कवियों में राम पुकार सिंह, नंदलाल रोशन, संजय शुक्ल, कृष्णकांत दुबे, विजय कुमार विद्रोही, कामायनी संजय, देवेश कुमार मिश्र, निशा कोठारी, चन्द्रकिशोर चौधरी, शम्भूलाल जालान, संजय कुमार सिंह, नंदू बिहारी तथा रमाकांत सिन्हा आदि ने विभिन्न भावों एवं रसों से भरपूर गीतों एवं कविताओं का पाठ किया l  कवि गोष्ठी की उत्कृष्टता का चरम निर्धारण सभागार में गड़गड़ाती तालियों द्वारा हो रहा था l कार्यक्रम का सफल संचालन शहर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर गिरधार राय द्वारा संपन्न हुआ l अध्यक्ष महोदय के काव्य स्वर ने तो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध ही कर दिया था l कुल मिलाकर यह कवि गोष्ठी सफलता के चरम बिंदु पर पहुंची हुई थी l  


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हिन्दी साहित्य परिषद् के बसंत पंचमी और सरस्वती साधना महोत्सव में पूरे देश के कवियों का जमावड़ा..!

हिन्दी साहित्य परिषद् कोलकाता द्वारा आयोजित कार्यक्रम बसंत पंचमी और सरस्वती साधना महोत्सव कल बड़े धूम धाम से मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत राजीव नंदन मिश्र, बिहार , के गणेश वंदना से प्रारंभ हुई और इसके बाद आलोक चौधरी कोलकाता द्वारा मां वाग्देवी सरस्वती की वंदना और फिर श्री गीतेश्वर बाबू घायल , भोपाल मध्य प्रदेश द्वारा मां सरस्वती वंदना से सभी श्रोता भक्ति रस से सराबोर हो गए।
इसके बाद देश - प्रदेश से उपस्थित सभी रचनाकारों ने एक से बढ़कर एक कविता का पाठ किया। 
विशेष रूप से डॉ रंजीत कुमार , बैंगलोर की डी आर डी ओ पर आधारित रचना , गितेश्वर बाबू घायल की कलमुही नौकरिया .... और स्नेहा राय की राधा कृष्ण...... की रचना ने श्रोताओं का मन मोह लिया।
कार्यक्रम का सफल संचालन  रीमा पाण्डेय ने किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में हिन्दी साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री संजय शुक्ल ने बताया कि परिषद् बसंत पंचमी और मां सरस्वती के प्राकट्य दिवस के साथ ही साथ महाकवि सूर्य कांत त्रिपाठी निराला का जन्म दिवस भी मना रही है।
बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा महत्व के साथ ही साथ महाकवि निराला जी की रचनाओं का पाठ भी किया।
कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव में बाल कवि के रूप में महज 5 वर्ष की आयु की स्नेहज राय , रांची की बालकवियत्री ने अपनी कविता का पाठ करके सभी श्रोताओं को आश्चर्यचकित कर दिया।
कार्यक्रम में कवियत्री सुधा सिंह , रांची, कवियत्री मीनू मीणा सिन्हा , रांची , नेहाल हुसैन सरायवी , रांची , कवि नसीम अख्तर , पटना , कवि नंदू बिहारी , कोलकाता, कवियत्री प्रियंका चौरसिया , कोलकाता , कवि चमन सिंह ठाकुर, शिमला, कवियत्री ज्योति खेमका , कोलकाता आदि की रचनाओं से सभी श्रोता मंत्र मुग्ध हो गए।
कार्यक्रम के अंत में हिन्दी साहित्य परिषद् , कर्नाटका के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रंजीत कुमार ,बैंगलोर ने सभी अतिथियों एवं श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया।

परोपकार..!

धर्म ध्वजा लहरा ले मानव
बन जाता है तू क्यों दानव
मानवता ही परम धर्म है
परोपकार भी तेरा मर्म है।

प्रेम, दया, करूणा अपनाओ
घृणा, द्वेष के पास न आओ
सारा विश्व बने परिवार
करे बंधुत्व का व्यापार।

प्रकृति करती है उपकार
करती है सबका सत्कार
रखें हम भी भाईचारा
इसके बिन न कहीं गुजारा।

हे मानव!सत्पथ पर आओ
एक-दूजे को गले लगाओ
कर लो तुम मन का विस्तार
जगति बन जाये परिवार।

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सरस्वती वंदना..!

माँ शारदे!तूने संबल दिया है
शरण में अपनी हमें ले लिया है
स्नेह ने तेरा हमें छू लिया है
तेरा शुक्रिया है!तेरा शुक्रिया है!

माँ भारती! तूने भय हर लिया है
ज्ञान आलोक से हमें भर दिया है
अज्ञान के तम को दूर किया है
तेरा शुक्रिया है!तेरा शुक्रिया है!

माँ वाणी!तूने स्वर दे दिया है
सुर-सरिता का जल दे दिया है
स्वर-साधना का फल दे दिया है
तेरा शुक्रिया है!तेरा शुक्रिया है!

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सच्चाई की ताकत..!

जब मैने सच को सच ही कहा
दुनिया के तानों को हँसकर सहा
आया न मुझको सच को सजाने
झूठ का आवरण उसपर चढाने।

जब मैंने सच को दिल में बसाया
कदम-कदम पर ठोकर खाया
इन ठोकरों ने बहुत सताया
पर इसने ही इंसां बनाया।

सच जब सच में समीप आया
दुनिया को ये बिल्कुल न भाया
झूठ सदा अपने को छिपाया
सच ने सचमुच सच्चा बनाया।

सच जब सीना ताने आया
झूठ तब बहुत शर्माया
सच तो सदा ही आदर पाया
दुनिया में परचम लहराया।


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हमारा देश..!

आया है गणतंत्र दिवस
अब न रहेगा कोई विवश
सजेगा प्रगति का ताज़
पूरे होंगे सबके काज़।

गाँधी-नेहरू का यह देश
सुंदर, सुमधुर है परिवेश
नेताजी की पावन धरती
सारे दुख,बाधाएँ हरती।

जन्में यहाँ विवेकानंद
फैला तब अतुलित आनंद
भगतसिंह ने दी कुर्बानी
दधीचि-सा न कोई दानी।

माँ भारती की चूनर धानी
कहती सुंदर, सुखद कहानी
दुनिया देती सबको मान
बनी रहे भारत की शान।

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गुरु की महिमा..!

हे गुरु ! ज्ञान का देना संबल मुझे
ज्ञान का दीप जलता रहे ना बुझे
तेरे आशीष से सारे संकट टले
स्वर्णिम जीवन के सपने पले।

हे गुरु!पथ मेरा आलोकित करो
मेरी झोली में ज्ञान के मोती भरो
तेरे बिन चहुंओर अंधेरा घना
जीवन पथ मेरा जटिल है बना।

हे गुरु!तुम गोविंद से भी बङे
तुम ही बनाते हो सुंदर घङे
जीवन रुपी बगीया में फूल खिले
शिष्यों से अपने तुम जो मिले।

हे गुरु!तेरी महिमा है अपरम्पार
तेरे आने से नैया हो जाती है पार
राम भी करते सदा तेरी पूजा
तुझ सा नहीं जग में कोई दूजा।

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बिटिया की व्यथा..!

बेटी होना कहाँ सरल है
पीना पङता रोज गरल है
पग-पग पर आती कठिनाई
पीङाओं की नहीं भरपाई।
बिटिया न पाती एक कुटिया
रोज डूबती उसकी लुटिया
अपना घर किसे वह माने
जग तो उसे पराया जाने।
बिटिया कहलाये जब भार
टूटे मन के सब आधार
सींचे प्यार से घर की बगीया
फिर भी दिखती उसमें कमियां।
कभी चढती दहेज की भेंट
टूटा मन पाती न समेट
चाहो गर तुम देश बचाना
पहले बिटिया को अपनाना।

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        प्रार्थना..!

हे माता शेरोवाली कहाँ हो!
आँखों में तेरी छवि बसी है
बिटिया को अब गले लगाओ
ये मेरी भक्ति नयी नहीं है।
हे माँ पहाड़ावाली कहाँ हो!
रोम-रोम में तुम्हीं समायी
तुम बिन रोती हैं मेरी आँखें
ये मेरी पीङा नयी नहीं है।
हे माँ मेहरावाली कहाँ हो!
कण-कण में तुम्हीं बसी हो
तेरी दरस को तरस रही हूँ
ये मेरी हसरत नयी नहीं है।


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  जिंदगी..!

जियो जिंदगी गुनगुनाते हुए
आशा को हमसफर बनाते हुए
निराशा को दरिया में बहाते हुए
न जियो जिंदगी भुनभुनाते हुए।
जियो जिंदगी मुस्कुराते हुए
बाधाओं से राह बनाते हुए
बवंडरों के निशान मिटाते हुए
न जियो जिंदगी अलसाते हुए।
जियो जिंदगी उत्सव मनाते हुए
खुशियों के बारिश में नहाते हुए
गमों की अग्नि को बुझाते हुए
न जियो जिंदगी सकुचाते हुए।
जियो जिंदगी कुछ रचते हुए
परिश्रम से न थकते हुए
परपीड़ा से भी बचते हुए
न जियो दोस्तों ! मुँह तकते  हुए।


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मैं ना हारूँगी..!


ऐ जीवन..! मैं ना हारूँगी
तुझको मैं नित्य निखारूँगी 
चाहे तू ले कठिन परीक्षा 
करूँगी तेरी गहन समीक्षा।
ऐ जीवन..! मैं ना हारूँगी
विघ्नों को ठोकर मारूँगी 
चाहे मेरे अपने रूठे 
चाहे सारे संभल छूटे।
ऐ जीवन..! मैं ना हारूँगी
तुझको मैं सदा सँवारूँगी
चाहे तू नित्य शोर मचाए
चाहे मुझसे होङ लगाए।
ऐ जीवन..! मैं ना हारूँगी
तुझसे संघर्ष मैं ठानूँगी
सदा ही होगी मेरी जीत
तुझसे रखती हूँ मैं प्रीत..।


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तब मैं लिखती हूँ..........

जब बचपन मुस्काता है
नादानी पर इठलाता है
चंदा से नेह लगाता है
मन को मेरे छू जाता है
तब मैं लिखती हूँ।
जब नई आशाएँ जगती हैं
मन में तरंगें उठती है
उत्साह की आँधी चलती है
अंबर को छूने लगती है
तब मैं लिखती हूँ।
जब अंधकार छँट जाता है
अंतश प्रकाश भर जाता है
दिव्य आलोक फैलाता है
कुछ कहने को अकुलाता है
तब मैं लिखती हूँ।
जब कोई मीठी बोली से
जख़्मों को सहलाता है
अपना सा वह कहलाता है
जीवन को मधुर बनाता है
तब मैं लिखती हूँ।
जब कोई दुख ही पाता है
सुख सदा उसे भरमाता है
मन व्याकुल हो जाता है
पीङा से दमित हो जाता है
तब मैं लिखती हूँ।

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 माँ.......!

माँ! तुम कहलाती महान
तुम से हैंं छोटे भगवान
राम तेरी गोद में पलते
कृष्ण तेरी छङी से डरते।

माँ! तुम हो खुशियों की धारा
ऋणि है तेरा ये जग सारा
तू ही करती जीवन-सृष्टि
संतानों पर करूणा-वृष्टि।

माँ! तुम कहलाती जगदम्बा
तुम ही गौरी, तुम ही अम्बा
रखती जब करूणा का हाथ
भाग्य कभी न छोङे साथ।

माँ! तुम संतानों की रक्षक
चरणों मेंं झुक जाता मस्तक
तुम करती रहती विषपान
देती बच्चों को जीवनदान।



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        कौन....??

कौन बुलाता लेकर नाम
बनाता सारे बिगङे काम
हरपल रहता मेरे साथ
नहीं छोङता मेरा हाथ।

कौन यूँ करता है आह्वान 
रखता है वह मेरा ध्यान
पीताम्बर रहता लहराता
मन में मेरे गीत सजाता।

कौन यूँ मेरे आगे चलता
मन में मेरे साहस भरता
पग डगमग होने न देता
विपदा मेरी सब हर लेता।

कौन यूँ देता है मुस्कान
देता मेरे मन को त्राण
जीवन में वह रस भर देता
बदले में कुछ. भी न लेता।



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महामारी....!

संकट की घङियाँ है आयी
दुनिया पर विपदा है छायी
अब तो चारों ओर अंधेरा
नहीं दिखे है कोई सबेरा।

दुख से भीगे हैं सब प्राणी
ये सब है किसकी नादानी
पथ अब कोई नज़र न आता
दिल मेरा अब है घबराता।

मन में गहन उदासी छायी
सुख की कलियाँ हैं मुरझायी
होंठों ने मुस्काना छोङा
गम ने आकर डाला डेरा।

अब तो आओ तुम गिरिधारी
दूर करो तुम अब महामारी
सारे संकट तुम हर लेना
कर दो पावन हर एक कोना।


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        सन्नाटा..!
सङकों पर पसरा सन्नाटा
गलियों में न कोई आता
एक वायरस पङा है भारी
जैसे हो तलवार दो धारी।

सब हैं अपने घरों में बंदी
दुनिया में आयी है मंदी
बाहर तो ये मन घबराता
भीतर भी वह चैन न पाता।

सबकी है ये कठिन परीक्षा
प्रकृति की है कङवी शिक्षा
मानवता है आज बिलखती
पूरी दुनिया पङी सिसकती।

महामारी से मातम छाया
दुख रग-रग में गहराया
ये वक्त भी जायेगा बीत
जीवन गायेगा नवगीत।

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  -: दीया जलायें :-

आओ मिलकर दीया जलायें
अपने परचम को लहराये
प्रेम के बंधन को न तोङें
एक-दूजे से नाता जोङें।

मिलकर रहेंगे भारतवासी
एकजुटता के अभिलाषी
प्रेम की गंगा सदा बहायें
महामारी से सबको बचायें।

आओ मिलकर करें सामना
ईश्वर से भी करें याचना
एक-दूजे का देंगे साथ
अपने पर रखें विश्वास।

आओ मिलकर कदम बढाये
देश को विपदा से बचायें
एक रहेंगे हिंद के वासी
चाहे मथुरा या हो काशी।



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  ~: मेरा मीत :~

सपने में वह हरदम आता
मीत है मेरा मुझे रिझाता
पीताम्बर से वह है शोभित
मोरपंख भी करता मोहित।

अधरों पर रखता मुस्कान
देखो तो हर्षित हो प्राण
सोलह कलाओं का वह ज्ञाता
मीत है मेरा भाग्यविधाता।

वृन्दावन से उसका नाता
मथुरा तो है उसकी माता
राधा उसके हृदय में रहती
उसके सारे नखरे सहती।

मीत है मेरा बङा कमाल
सदा चमकता उसका भाल
सारी उलझन को सुलझाता
मेरा मीत मेरे मन भाता।

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    ~: मेरा मीत :~

सपने में वह हरदम आता
मीत है मेरा मुझे रिझाता
पीताम्बर से वह है शोभित
मोरपंख भी करता मोहित।

अधरों पर रखता मुस्कान
देखो तो हर्षित हो प्राण
सोलह कलाओं का वह ज्ञाता
मीत है मेरा भाग्यविधाता।

वृन्दावन से उसका नाता
मथुरा तो है उसकी माता
राधा उसके हृदय में रहती
उसके सारे नखरे रहती।

मीत है मेरा बङा कमाल
सदा चमकता उसका भाल
सारी उलझन को सुलझाता

मेरा मीत मेरे मन भाता।

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    ~: होली :~

होली रंगों का त्योहार
मन के भी हैं रंग हजार
दया, प्रेम करूणा अपनाये
खुशियों के ही रंग बरसाये।

होली बोले रंगों की बोली
घूम रहा तरूणों की टोली 
उत्साह, उमंग जीवन में आये
जीवन रंगों से भर जाये।

सबको है रंगों से प्यार
ये तो जीवन का आधार
रंगों से जीवन रंगीन
जैसे रहे जल में मीन।

बरसायें रंगों की धार
जीवन बन जाये त्योहार
सुख के रंगों से सब भीगे
सद्भाव का अमृत पी लें।

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        ~ : सीख : ~
जो सीख रहा वह जिन्दा है
बाकी तो सबकी निन्दा है
जो बहता वह पानी है
रूकना तो नादानी है।

जो सहता है वह सहनशील
विनम्र रहे वह विनयशील
जो खिलता है वह बने फूल 
व्यर्थ रहे वह बने धूल।

जो धैर्य रखे वह धैर्यवान
बल से भरा बने बलवान
तपस्वी करते रहते ध्यान
जग मेँ सबको देतें मान।

परहित करे वह परोपकारी
गिरि को धरतें हैं गिरिधारी
खेल दिखायें बनें खिलाड़ी
समाज गढे मिलकर नर-नारी।

नेक कार्य करता है लायक
कुछ न करे वह बने नालायक
मधुर गीत गाये वह गायक
अभिनय करे बने वह नायक।
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 ~: प्यारी बिटिया :~

वह कितनी मनमोहक होती
मेरी भी एक बिटिया होती
वह रहती हँसती और गाती
खुशियों के मोती बिखराती
घर-आंगन को महकाती
जीवन सुधा रहतीं छलकाती
बरसाती वह अमृत-धार
रखती सदा मीठा व्यवहार
नही मानती कभी हार
बिटिया रखती है अपनापन
उसका मन होता है पावन
मन मेँ रखती प्रेम का सागर 
भर लाती करूणा की गागर
बँध जाती वह प्रेम की डोर
कभी नहीं जाती मुख मोङ
दूर रहकर भी होती पास
मेरे लिए होती वह खास।

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 ~: लिखने की शक्ति :~

जो लिखा नहीं, वह दिखा नहीं
हे कवियों!आकाश लिखों
चारों ओर प्रकाश लिखो
शुभता का करो गुणगान
सबके मन का उल्लास लिखो।

जो लिखा नही , वह बिका नहीं
हे कवियों!तरंग लिखो
नवीनता का प्रसंग लिखो
गति तो जीवन के संग लिखो
सुन्दर फूलों के रंग लिखो।

जो लिखा नहीं, वह सीखा नहीं
हे कवियों!शौर्य लीखो
विपदा में रखना धैर्य लिखो
भारत शांति का ठौर लिखो 
वसंत के आमों का बौर लिखो।

जो लिखा नहीं, वह थमा नहीं
हे कवियों!नेतृत्व लिखो
नेताओं के दायित्व लिखो
जग को बहुत पवित्र लिखो 
देश का पावन चरित्र लिखो।


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~: कवियों का सच :~

देखो कवियों का ये मेला

इनके रहते कौन अकेला
कलम मेँ इनकी पैनी धार

नही मानते कभी ये हार

मन की बातें सब कह जातें
भय के पास कभी न आतें
कविता से इनका है नाता
हृदय मेँ रहता है विधाता
रखते हैं सम अपनी दृष्टि
शब्दों मेँ ही इनकी सृष्टि
सच कहने मेँ नहीं हिचकते
सूर्य सम ये सदा चमकते
यश, कीर्ति  के साथ ही रहते
सत्य-पथ पर सदा विचरते
मन को ये विस्तृत कर लेते
सम्मान कभी बिकने न देते
सच कहने का मोल चुकाते
परहित को ये भूल न पातें।

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सम्मान-समारोह सह कवि-सम्मेलन का आयोजन..!
स्वर्गीय आचार्य श्यामलाल उपाध्याय द्वारा स्थापित साहित्यिक संस्था 'भारतीय वाङ्गमय पीठ' द्वारा सम्मान-समारोह सह कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया..। भदोही से आये डा. कृष्णावतार त्रिपाठी 'राही' को संस्था की ओर से रीता श्राफ, शिवशंकर सिंह, रीमा पांडेय, विजय शर्मा, राम अवतार सिंह ने उत्तरीय, पुस्तक आदि देकर सम्मानित किया..।
कविता पाठ करने वाले कवियों में कालीप्रसाद जायसवाल, शिवशंकर सिंह ,रीमा पांडेय, विजय शर्मा, राम अवतार सिंह, भूपिंदर सिंह, रामनारायण झा, मौसमी प्रसाद आदि प्रमुख थे..।
समारोह के अंत में डा. राही ने स्वर्गीय उपाध्याय के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला..। संस्था की उपसभापति रीता श्राफ ने साहित्यिक गतिविधियों में संस्था की भागीदारी से सबको अवगत कराया..। कार्यक्रम का संचालन शिवशंकर सिंह ने किया..।

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बहनों का प्यार..!
बहनें आपस मेंं हँसती-गाती
मन की व्यथा सभी कह जाती
दुख मेंं हाथ नहीं छुङाती
एक-दूजे को सबल बनाती।

बहनें कहतीं 'मैं हूँ तेरी'
बँधी हूँ तेरे प्रेम की डोरी
तू है मेरे मन को भाती
स्नेह से तेरे नहीं अघाती।

बहनें मन को हैं बहलाती
घावों पर मरहम लगाती
इनके बिन कहीं चैन न आये
उलझे रिश्तों को सुलझाती।

बहनें देतीं हैं अपनापन
उनका मन होता है पावन
हृदय इनका होता विशाल
गिरते ही लेती सम्हाल।

बहनें नहीं होतीं हैं भार
ये तो हैं जीवन का सार
करना सदा इनका सम्मान
रखना इनका सदा ही ध्यान।

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जय श्री कृष्ण..

हे कृष्ण! बङा तू कृपानिधान
तनिक न रखता है अभिमान
भक्तों के तुम पालनहार
तुझसे ही है सबकी शान।

हे माधव!तू मन का मीत
तुझसे लगी है मेरी प्रीत
तू ही तो बस गले लगाता
सदा ही होती मेरी जीत।

हे कान्हा!करना कल्याण
रख लेना तू सबका मान
हर लेना सबके कष्ट अपार
करती हूँ मै तेरा ध्यान।

हे श्याम!कहाँ है तेरा धाम
तेरे बिन न कही आराम
बन जाते बिगङे काम
जपती रहती तेरा नाम।


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नववर्ष..!

नववर्ष है आनेवाला
खुशियाँ है बिखराने वाला
आशाएँ सब पूरी होंगी
निराशाएँ नहीं रहेंगीं
भाग्य अधिक प्रबल बनेगा
कर्म-पथ भी सहज चलेगा
जग में फैलेगा बंधुत्व
मिटेगा आतंक का प्रभुत्व
ऊँच-नीच का भेद न होगा
समरसता का तेज़ रहेगा
नयी दुनिया का नया विहान
करेगा जन-जन का कल्याण।